## हिस्सा ## (लघु कथा )
ट्रेन दिल्ली से चल पड़ी वर्षों बाद नॉन ए सी स्लीपर क्लास में चढ़े उनकी उम्र यही कोई 62 वर्ष,उजले कपडों और चाल ढाल से अभिजात्य वर्ग का रौब चेहरे पर साफ नजर आता था।
उन्हें देखते ही चौबीस पच्चीस वर्ष की सींक सी पतली ग्रामीण युवती ने सिर पर आंचल कर लिया और अपने छोटे बच्चे को गोद में खींच कर बोली," गोपाल संभल कर बैठना नहीं तो बाबूजी के कपड़े गंदे हो जाएंगे" अपनी साड़ी के पल्लू से उनके लिए सीट पोंछ दी फिर पारले जी का पैकेट अपनी 5 वर्षीय पुत्र को थमा कर ऊपर की बर्थ पर बैठे व्यक्ति की गोद में पुत्र को चढ़ा दिया
" जरा थाम लीजिए, सुला दीजिएगा इसको नीचे उधम करेगा," बेटा बाबा को तंग मत करना
"हम बस उदयपुर तक जा रहे हैं ,गोपाल का जन्मजात पैर टेढ़ा था नारायण सेवा आश्रम में फ्री में इलाज हो रहा है इसका, डॉक्टर तो मानो देवता मनई है एक पैसा भी नहीं लेते हां दवाई का थोड़ा बहुत खर्च आता है ,"उसने पूरी बात कह कर ही सांस ली वह सामने की सीट पर बैठी स्त्री से बातें कर रही थी
वे स्वयं अहमदाबाद जा रहे हैं ,अपने छोटे भाई से बात करने की सोच रहे हैं पुश्तैनी मकान में हिस्सा चाहिए।
हालांकि कोई रहने नहीं जाएगा उन्हें भी पता है किंतु पिताजी की नाइंसाफी से दुखी हैं।
उनकी काबिलियत का अच्छा इनाम दिया पिता ने, जायदाद में से कुछ भी ना दिया।
सब कुछ छोटे पुत्र को दे दिया दलील यह थी कि वह बेचारा कभी अपना घर नहीं बना पाएगा ,विचारों की तंत्रा टूट गई।
युवा स्त्री के चेहरे से आंचल सरक गया बड़ी बड़ी आंखें उनको ही देख रही थी अब उनकी ओर मुहँ घुमा कर बैठ गई और उनसे से बोली ,
"जब से गोपाल के पापा की परमानेंट नौकरी लगी तब से 1 तारीख को पूरे ₹13000 बैंक में आ जाते हैंअब ठेकेदार के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता बाबूजी! अब हमेशा रिजर्व डिब्बे में पूरे आराम से हम जाते हैं अमृतसर से दिल्ली फिर दिल्ली में ट्रेन बदलकर उदयपुर ,बड़ा चैन रहता है" बातूनी लड़की थी वह फिर फुसफुसा कर धीरे से बोली" यह गोपाल के बाबा नहीं है सगे बाबा तो बिहार में रहते हैं समस्तीपुर में यह हमारे मोहल्ले के बड़े भले मनई है हम मां बेटे को अकेले आता देखकर साथ चले आए"
" हमारे यह यानी कि गोपाल के पापा पूरा ₹500 दिए हैं इनको पूरा उदयपुर घुमा दूंगी "
तभी बातचीत में व्यवधान आ गया
टिकट कलेक्टर आ गया था इसी बीच उनसे बोला ,"सर आप की सीट कंफर्म हो सकती है नेक्स्ट स्टेशन से आप एसी फर्स्ट क्लास में आ जाइएगा यहां से पांचवा डिब्बा है,"
आपके पास सामान है क्या सर?
" नहीं कुछ सामान नहीं है" ।
Sir, टिकेट यहीं बना दूँ?
एक मिनट उन्होंने पॉकेट में हाथ डालते हुए टी सी से कहा क्या आप रिटर्न टिकट बना देंगे दिल्ली का वे कुछ हिचकते से बोले आई मीन मैं दिल्ली वापस जाना चाहता हूं कुछ अर्जेंट काम आन पड़ा है अहमदाबाद नहीं जा पाऊंगा,"
टीसी ने कहा आप ट्रेन के बदले टैक्सी कर लीजिए सर!
टाइम और पैसे दोनों बचेंगे
हां शायद ठीक कह रहे हैं आप
उन्होंने टी सी को धन्यवाद दिया।
बाहर झांका ट्रेन ने धीमें होना शुरू कर दिया था।
टैक्सी में बैठते ही अपने छोटे भाई की याद आई वर्षों पहले जब उसे बुखार हो गया था वह रात भर गोद में लेकर घूमे थे उसके पसीने की बनियान से तब उनकी शर्ट भीग गई थी आज करीब 35 वर्ष बाद वह पुरानी घटना याद कर उनकी आंखें भर आयीं।
"जाते ही उस नालायक को पूरे परिवार के साथ दिल्ली बुलाऊंगा, इस बार दिवाली साथ मनाएंगे" ।.......प्रीति मिश्रा
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