चाँद और छोटा सा हाथ
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रोहित के साथ घूमते फ़िरते हुए कुछ महीने और गुज़र गए. किन्तु वो मुद्दे की बात पर नहीं आये.
मुझमें अब सब्र नहीं रहा था.
मैंने कहा "माँ भी अब काम छोड़ना चाहती हैं.सबसे बड़ी दीदी के पास जाना चाहती हैं. उन दोनों को बस मेरी ही फ़िक्र इस शहर में रोके हुए है.उस सीलन भरे घर का किराया बढ़ता ही जा रहा है."
हुँ अ हुँ....
"सब समझ रहा हूँ.लेकिन तुमसे जो कहना चाहता हूँ डरता हूँ पता नहीं उसको सुनने के बाद तुम क्या निर्णय लोगी?"
"ऐसा क्या है?"मन ने शंकाओं की नागफनी खड़ी कर ली. मेरा चेहरा सूख गया था.
रोहित ने कहा "हर व्यक्ति का एक अतीत होता है. कई बार हमें अपने माता पिता, या अन्य रिश्तेदारों के कर्मों के फल भी भोगने पड़ते हैं. चाह कर भी कोई कहाँ बच पाता है."
"ये जो मेरे दादू हैं ना दरअसल वो ही मेरे पापा हैं. "
उनकी आवाज़ का दर्द मुझ तक आ गया था. वो अपनी होने वाली पत्नी को धोखे या फ़रेब में नहीं रखना चाहते थे.
इतना बड़ा रहस्योद्धघाटन करने के लिए उन्होंने करीब दो वर्ष का समय ले लिया था. अब तक पूरे मेडिकल कॉलेज को हमारे रिश्ते की हवा लग चुकी थी.
सच पूछो तो उन्होंने मुझे ठगा था. एक मिनट में प्रेम की हवा फुस्स हो गई. अलग अलग विचार आने लगे.
समझ आ गई अपनी औकात, इसीलिये डॉक्टर साथी लड़कियों को छोड़कर मुझ जैसी गरीब लड़की को फंसाया है.रोहित का चेहरा निस्तेज था. वो बोले "तुम्हारे जैसी चारित्रिक मूल्यों वाले परिवार की लड़की को देखकर मेरा मन तुम पर आ गया था.मुझे सम्बन्धों में पारदर्शिता पसन्द है. मैं तुमको धोखे में नहीं रख सकता हूँ."
मुझे लगा मैं चक्कर खा कर गिर पड़ूँगी. डॉ रोहित की सच्चाई ने मेरा हर स्वप्न तोड़ दिया था. पापा सुनेंगे तो कभी राज़ी नहीं होंगें.मुझे पूरा यकीन था.
उधर मेरे मनोभावो को समझे बिना रोहित कह रहे थे
"मेरी माँ को ग़लत नहीं समझना. उनके घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं थी. उनकी मजबूरी का ग़लत फायदा उठाया गया है.जब मेरे जन्म की सुगबुगाहट हुई तो पापा ने अपना नाम मुझे देने के लिए मम्मी से शादी कर ली थी.दरअसल वो मेरी दादी से बहुत प्यार करते थे."
रोहित कह रहे थे.पापा यानि कि दादू के बेटे.(एक हिसाब से रोहित के सौतेले भाई मैंने मन ही मन में सोचा )
"आपके पापा सारी उम्र ये राज़ छुपाए रहे.उन्होंने दूसरी शादी नहीं की." मैंने पूछ लिया हालांकि इस समय मुझे ये प्रश्न पूछना नहीं चाहिए था, मैं जानती थी पर पूछ ही लिया.
"नहीं शादी नहीं की लेकिन उनकी लाइफ़ में कोई और है."रोहित ने कहा "मेरी मॉम से उनका रिश्ता दिखावे का है."
"मेरे घर में कोई किसी के लिए लॉयल नहीं है."
"आपको ये सब कब पता चला?"मैं पूछना चाहती थी. पर आवाज़ नहीं निकल रही थी.
रोहित ने ख़ुद ही बताया "सभी फैक्ट्री वर्कर्स ये बातें करते थे. बचपन में मैंने सुना था.मुझे बहुत बुरा लगता था. ऐसा लगता था पागल हो जाऊंगा. इसलिये ख़ुद को पढ़ाई में झोंक दिया.मुझे छोटी उम्र में ही छात्रावास भेज दिया गया था."
"हो सकता है जो आपने सुना है उसमें सच्चाई ना हो." मैंने कहा था.
रोहित ने कहा "सुनी हुई बातें झूठ हो सकती हैं किन्तु कई बार मैंने अपनी आँखों से....."वो आगे ना बोल कर चुप हो गए थे.
इतनी देर में मैंने ख़ुद को संभाल लिया था अब मैं दिल से रोहित के लिए दुःखी थी.
इन अमीरजादों के तो दुःख ही अजीब हैं. रोहित को उस शाम मैंने खाना खिलाया क्योंकि मुझे पता था आज अकेले वो कुछ ना खा पाएंगे.बाद में वो घर चले गए और मैं सिस्टर नीलम के घर की ओर दौड़ पड़ी.
सोचा था उन्हें अपना दुखड़ा सुनाऊंगी किन्तु सिस्टर नीलम पेट के दर्द के कारण तड़प रही थी.
मुझे देखकर उन्हें जैसे तसल्ली आ गई मेरे हाथ में सिरिंजऔर इंजेक्शन पकड़ाते हुए उन्होंने मुझसे कहा रूबी "प्लीज़ ये दर्दनिवारक इंजक्शन लगा दो."
"सिस्टर!आप दर्द के शुरू होते ही दवा क्यों नहीं खा लेती हैं?"
"पहले मुझे इंजेक्शन दो. बात मत करो. बहुत दर्द है."
वो बोली "अगर इंजेक्शन नहीं लूंगी तो उल्टियां करती नज़र आऊंगी, कम से कम चैन की नींद सो जाऊँगी."
मैंने चुपचाप उनको इंजेक्शन देने के दस मिनट बाद एक लम्बा लेक्चर दिया कि "जब दवा खाने से काम चल रहा है.इतनी हेवी डोज़ के इंजेक्शन क्यों लेती हो."
वो बोली "खाली पेट में नहीं शरीर के हर अंग में दर्द है.
"शुक्रिया!!रूबी."थोड़ी देर में नीलम खर्राटे भरने लगी थी, मैं अपने दुखों के साथ फिर अकेली थी.मुझे अपनी दुनिया घूमती हुई लगी थी.
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मुसीबत में आज पापा की बहुत याद आयी. घड़ी देखी रात के नौ बजे थे. ये उनके पसंदीदा टी वी शो का वक्त था. मैं पापा की भेजी हुई "कबीर वाणी" सुनने लगी .कानों में ईयर फ़ोन लगा लिए थे. मोबाइल बिस्तर के किनारे रख दिया था.
आज एक एक दोहे का अर्थ दिल को भेद रहा था.
" पतिबरता मैली भली,गले कांच की पोत।
सब सखियां में यों दिपे, ज्यों रवि ससि की जोत ।।"
ईयर फ़ोन फ़ेंक दिया ,और बैठकर आँसू बहा लिए. रोने से जी हल्का हो जाता है. रो धो कर सो गई मैं. अगले दिन मैंने छुट्टी ले ली और पापा से मिलने घर जा पहुंची.
माँ चाय बना रही थीं, पापा धूप में अख़बार पढ़ रहे थे. मेरी सूजी आँखें देखकर मुझसे बोले "चल बाहर पार्क में टहल कर आते हैं."
"सुनो!दरवाज़ा बंद कर लेना. रूबी के साथ घूमने के बाद चाय पियूँगा."
"क्या हुआ है? सुबह सुबह आज घर क्यों आ गई? और रोई क्यों तुम?"
पापा ने पूछा तो मैंने रोहित से हुआ सारा वार्तालाप बता दिया.
पापा ने कहा "किसी और को भी बताया है तुमने?"
"नहीं."
"अच्छा किया.किसी ने आपके ऊपर विश्वास किया है उसकी लाज रखनी चाहिए."
"आप क्या कहते हैं मुझे रोहित से अपनी दोस्ती ख़त्म कर आगे बढ़ जाना चाहिए."
"हर व्यक्ति के लिए ऐसी बातें अलग-अलग महत्व की होती हैं. ये तुम पर डिपेंड करता है कि तुम्हारे लिए रोहित इम्पोर्टेन्ट है या उसकी फैमिली हिस्ट्री."
"पापा मैं सारी रात रोती रही हूँ."
पापा ने कहा "अपने माता पिता को चूज़ करना किसी के हाथ में नहीं है, इसलिये रोहित को मैं दोषी नहीं समझता हूँ."
मेरी बड़ी मुश्किल को उन्होंने दो मिनट में हल कर दिया था. मैंने घड़ी देखी अभी नौ बजे थे. अगर मैं चाहूँ तो अभी भी टाइम पर लैब पहुँच सकती थी.
मैंने तुरन्त एक ऑटोरिक्शा को रोका और पापा से कहा "मैं संडे घर आऊंगी, अभी चलती हूँ."
पापा ने कहा "ठीक है मैं इंतज़ार करूँगा."
"आई लव यू!पापा."
मैं उनके सीने से लग गई और उनसे जुदा होकर सीधी ऑटो में जा बैठी.
अगले हफ़्ते ही मैंने और रोहित ने कोर्ट में विवाह के लिए अर्जी दे दीथी और एक महीने बाद पापा, माँ,सिस्टर नीलम और डॉक्टर माथुर की उपस्थिति में हस्ताक्षर करने के बाद एक दूसरे को माला पहना कर हम पति पत्नी बन गए थे.
रोहित ने अपने घर में किसी को इन्फॉर्म नहीं किया था.
शाम को वीडिओकॉल कर अपनी माँ से मेरी बात कराई थी.
ढेरों आशीर्वाद के साथ वो बोली थी "मेरे बच्चे का ख़याल रखना. बहुत भावुक है. मुँह से कुछ नहीं कहता है पर दिल पे ले लेता है."
जी ऑन्टी जी!
"ऑन्टी नहीं माँ कहो."उनके स्वर के अपनेपन से मैं भीग गई थी.
रोहित से मैंने कई बार कहा मुझे माँ से मिला दें वो बोले "तुमको शान्ति से रहने में क्या तकलीफ़ है?"
"मैं तुम्हें जब ठीक समझूंगा अपने आप घर ले चलूँगा."
हमारा जीवन बहुत खुशहाल था.मैं अपना छोटा सा क्वार्टर छोड़ कर रोहित के बंगलेनुमा बड़े से ऑफिसर्स क्वार्टर में आ गई थी.अब भी अपने काम पर जा रही थी.
सुबह की चाय रोहित बनाते थे. हमेशा एक से स्वाद की कड़क और कम चीनी वाली . उसके बाद झटपट घर के काम निबटाकर मैं जब घर से निकलती रोहित की आँखों में तरलता देख कर भाव विभोर हो जाती थी.
इस हीरे के समान दिल वाले को छोड़ने की कल्पना भी कैसे कर बैठी थी मैं?
वो मेरे जीवन के सुहाने पल थे.इसी बीच मेरे अंदर एक नन्हें जीव का अंकुरण हो चुका था , रोहित के अनुसार मुझे काम से थोड़े दिनों का ब्रेक लेना चाहिए.
"कुछ भी हो मायक्रोबायलोजी लैब में इन्फेक्शन का डर बना रहता है रूबी!"
"मैं अच्छा कमा रहा हूँ. तुम कहो तो पहली तारीख को तुम्हारे अकाउंट में तुम्हारी तनख्वाह जितने पैसे ट्रांसफर कर दूंगा."वो हँस कर बोले ही नहीं बल्कि उन्होंने ऐसा ही किया भी.
जल्द ही मैं एक प्यारे से बच्चे की माँ बन गई थी.
रोहित को उनका संसार मिल गया था.वो बोले "हम लोग कहीं दूर चलेंगे."
मैंने कहा "कहाँ"
वो बोले "जहाँ कहो बस यहाँ नहीं रहना है."
"जहाँ बच्चे की अच्छी एजुकेशन हो. "
"न्यूज़ीलैंड चलोगी."
"यहाँ सब कुछ छोड़कर?"
" माँ पापा को भी बुला लेंगें."रोहित ने कहा तो मैंने उनके कंधे पर सिर रख दिया "तब जहाँ ले चलना हो चलिए."
उस रोज़ हम दोनों ने कहीं बाहर जाकर खाने का प्लान किया था कि बीच रास्ते में हमारी कार खराब हो गई थी. बेटा रोने लगा था"मम्मा पानी."मैंने उसको पानी पिलाना चाहा लेकिन बहुत ठंडा था. उसका गला बहुत जल्दी ख़राब हो जाता था. इसलिये मैंने बिना सोचे समझे एक बँगले के द्वार पर लगी घंटी बजा दी थी.
दरवाज़ा एक सुदर्शन पुरुष ने खोला था.
जिसे देख कर एक पल को मैं भूल गई थी मुझे क्या काम है.जब अपने होश में आयी मैंने उन्हें बताया कि हमारी कार ख़राब हो गई है. वो मुझे अंदर बुला लाये और अपनी पत्नी रागिनी को आवाज़ दी "देखो घर में मेहमान आये हैं."
जब तक कार मकैनिक आया मैं और रोहित उनके ड्राइंगरूम में बैठे रहे.
इत्तिफ़ाक़ की बात वो लोग रोहित के शहर से ही थे. उनके घर की भव्यता और फर्नीचर ने मेरा मन मोह लिया था.
मैंने घर आकर रोहित से कहा भी. वो बोले "सब कुछ "गांगुली एन्ड संस"से खरीदा है."
मैंने कहा "हमलोग क्यों नहीं कभी घर चलते हैं."मेरे अंदर की इच्छाएं उस आलीशान घर को देख कर जाग उठी थीं.
अपने बच्चे का बेहतर भविष्य भी "गांगुली एन्ड संस" से जुड़कर ही बनाया जा सकता था.
उस दिन पहली बार मेरे और रोहित के बीच में लड़ाई हुई और हमारी बोलचाल बंद हो गई.
उसके बाद अक्सर हमलोग किसी ना किसी बात पर उलझ जाते थे. रोहित ने मुझे समझाया वो मेरी हर ख्वाहिश पूरी करेंगे. अपने बेटे को बड़ा करने के लिए उनके पास पर्याप्त व्यवस्था और प्लानिंग है. मेरा कहना था कि मैं चाहती हूँ बच्चा रिश्तों को पहचाने. (जबकि मेरे मन में सम्पत्ति का लालच था)कल को बड़ा होगा तरह तरह के सवाल करेगा.
मेरे रोज़ रोज़ के वहमों की वजह से रोहित ने न्यूज़ीलैण्ड, और दुबई दोनों जगह नौकरी ढूंढ़ना प्रारम्भ कर दिया था.
बेटे के होने के बाद मैंने नौकरी नहीं की. अब धीरे धीरे खाली वक्त में बोरियत सी होने लगी थी. इसलिये डान्स क्लास ज्वाइन कर ली थी. डिलीवरी के बाद बाहर निकला हुआ पेट फ़िर से अंदर आ गया था.
यहीं मेरी मुलाक़ात दोबारा रागिनी से हुई. वो अपनी बच्ची मायरा को डांस क्लास में लाती थी.अब हमारे बीच मित्रता बढ़ने लगी थी. उस स्त्री से सीखने को बहुत कुछ था. यद्यपि साधारण नयन नख्श की स्त्री थी. किन्तु चेहरे का आभामंडल आकर्षित करता रहता था.हमेशा करीने से बांधी हुई साड़ी, तन पर हीरे उसकी सुरुचिऔर सम्पन्नता को दर्शाते थे.
सच पूछिए तो मुझे रागिनी भा गई थी. मैं उससे पूछ पूछ कर अपनी कच्ची गृहस्थी को संवारने का प्रयास करने लगी थी. अच्छी बात यह हुई उन लोगों ने मेडिकल कॉलेज के साथ हीलगा हुआ एक बड़ा प्लॉट खरीद कर मकान बनाना शुरू कर दिया था.
हमारे आउट हाउस में वे अपने सीमेंट के बोरे रखने की सोच रहे थे तो रोहित ने कहा "संकोच कैसा आपका ही घर है."
स्त्रियों और पुरुषों में एक बड़ा अन्तर पाया जाता है. स्त्रियाँ अपने मन की बातें एक अन्य स्त्री से आराम से कर लेती हैं. अपने पति के बारे में भी अगर वो खुल जाएं तो उन्हें कुछ भी बताने में संकोच नहीं होता है. जबकि पुरुषों के लिए दूसरे मित्र की पत्नी भाभीजी ही रहती है.
रागिनी के मकान की नींव के साथ रखी मेरी और उसकी मित्रता भी गाढ़ी होती जा रही थी.मेरे और रोहित के बीच का तनाव कम होता जा रहा था.अब हम लोग मिलकर कभी पिकनिक मनाने जाते कभी ताश खेलने बैठ जाते थे. मुझे कोट पीस ही खेलना आता था सो अक्सर वही खेला जाता था. जब रोहित की अस्पताल से कॉल आ जाती वो चले जाते थे. ऐसे में तीन, दो, पांच की पत्ती जमती थी.
उस दिन मैं चाय बनाते हुए गुनगुना रही थी
"मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर।
तेरा तुझको सौंपता, क्या लागे है मोर।।"
रागिनी के पति कब पीछे से आकर खड़े हो गए और बोले "डॉ रोहित बड़े लकी हैं. आप उनके लिए कितना सुन्दर गीत गुनगुना रही हैं."
मैंने कहा "ये "कबीर वाणी" का दोहा है और मैं ईश्वर के लिए गा रही हूँ. बस उस दिन ईश्वर, आराधना, कबीर पर चर्चा छिड़ी तो रात के नौ बज गए.
समय इतनी सुन्दर चर्चा में कहाँ बीत गया मुझे पता नहीं चला.उनको कबीर के बहुत से दोहे याद थे, और सुरों पर ऐसी पकड़ थी क्या बताऊँ? रागिनी से ईर्ष्या हो उठी. मैंने उससे कहा भी "भैया तो कमाल का गाना गाते हैं, और क्या क्या कलाएं छुपी हुई हैं बताओ हमें भी."
वो बोली "अपने बच्चे और दूसरों के पति सबको अच्छे लगते हैं"...
शेष फ़िर....प्रीति मिश्रा
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