Sunday, January 10, 2021

चाँद और छोटा सा हाथ

चाँद और छोटा सा  हाथ 

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भाग 1


 आज अपने को इतनाशक्तिहीन पा रही हूं  कि सारा दिनसे  बस बिस्तर में गड्ड मड्ड हो लेटी हुई हूं.

ऐसा भी दिन आएगा कभी मैंने जीवन में सोचा नहीं था.कुछ देर पहले तक मैं पूर्ण आत्मविश्वास से भरी हुई थी.अभी डाकिया एक  पुरानी डाक दे गया है.एक नोट लिखा है  "मिसेज रूबी गांगुली आपका यह पार्सल कई दिनों बाद आप तक पहुंच रहा है. इसका हमें अफसोस है."

ऐसा भी होता है वह भी हमारे देश में,  यकीन नहीं आता कोई और दिन होता तो मैं हंसती,किंतु आज लिफ़ाफ़ा खोलते ही मानो सारा जीवन दर्पण से झाँकने लगा है."मिसेज़ गांगुली"शब्द ने वर्तमान से उठाकर अतीत में पटक दिया है.याद आ गया है गुज़रा ज़माना,जब मैं रूबी सक्सेना से मिसेज़ गांगुली बनी थी.रोहित और मैं अपनी मित्रता से कब प्रेम की डगर पर जा पहुंचे पता नहीं चला. मानो हर घटना को दैवीय शक्ति दिशा निर्देश दे रही थी.

एम.एस.सी.माइक्रोबायोलॉजी करने के बाद मुझे  मेडिकल कॉलेज में लैब टेक्निशियन का पद मिलना हमारे परिवार के लिए मायने रखता था.

ये एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज था. रोहित भी यहाँ  चिकित्सक थे.

जब भी किसी मरीज़ की रिपोर्ट देखनी होती वो अपने चेम्बर से उठकर मेरे लैब में चलकर आ जाते थे.कोई ना कोई निर्देश देते और बस बाहर निकल जाते थे.

उस दिन मुझसे एक मरीज़ अपनी रिपोर्ट के लिए उलझ रहा था.मैंने उसे समझाया था "ये माइक्रोबायलॉजी लैब है यहाँ कल्चर को इनक्यूबेशन में  48 से 72 घंटे तक रखते हैं तब जाकर रिपोर्ट मिलती है."

"सिर्फ़ इसी रिपोर्ट के इंतज़ार में हम अपनी अम्मा को दिखा नहीं पा रहे हैं."वो अधीर हो रहा था.अपनी आँखों के आँसू पोंछने लगा, "कहीं देर ना हो जाए.मैं उन्हें ठीक करवाना चाहता हूं."

"देखिये आप हिम्मत रखिये आपकी माँ को कुछ नहीं होगा. जिन बातों को हम डरते हैं वो कभी नहीं होती हैं."


"यहाँ सब डॉक्टर लोग देख रहे हैं ना."मैंने कहा था.

मुझे ऐसे मरीज़ों को सँभालने में बड़ी दिक्कत होतीथी  जो रोने धोने बैठ जाएं.

रोहित कब पीछे से आकर खड़े हो गए नहीं पता चला.

वो मरीज़ से बोले "मैडम ठीक कह रही हैं.आप घर जाइये अपना फ़ोन नम्बर बताइये. मैं ख़ुद आपको कॉल करूँगा."

उन का धीर गम्भीर स्वभाव और मरीज़ों के प्रति सहानुभूति मुझे भा गयी थी .

मैंने कहा "रोज़ का प्रॉब्लम है डॉक्टर!!लोगों को  पैथ लैब और रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की रिपोर्ट्स मिल जाती हैं. उन्हें लगता है हमारे यहाँ काम ठीक से नहीं हो रहा है."


 डॉ रोहित ने कहा "कॉफ़ी हाउस चलेंगी."

"जी डॉक्टर.चल सकती थी.मगर पापा लेने आते हैं पांच बजे."

"अंकल जी को मना कर दो मैं ड्रॉप कर दूंगा."

"कहाँ डॉक्टर आपकी लम्बी सी कार और मेरा शहर के बीच संकरी सी गली में घर, पापा की स्कूटी बड़ी मुश्किल से निकलती है."मैंने संकोच में पड़ कर कहा था.

"आज नहीं संडे को चलते हैं.आज दीदी जीजाजी भी घर आ रहे हैं."

उस रोज़ मेरा अपने दिल की धड़कनों पर काबू नहीं रहा था."बल्लियों दिल का उछलना"उसी दिन जाना था क्या होता है.

सोचती रही उनको मना करके ठीक किया या नहीं.

पिछले कई दिनों से मैं मेडिकल कॉलेज के स्टॉफ के लिए बने क्वार्टर में शिफ़्ट होने का सोच रही थी.

आज ही इरादा कर लिया कि घर बदल लेना है.

अगले दिन ही थोड़ा सा सामान लेकर अपना ठिकाना बदल लिया था.

वहीं मुझे सिस्टर नीलम मिली थी. जो बाद में मेरी प्रिय सखी बनी.उसके बारे में बाद में बात करूंगी.

पापा ने हमेशा सिखाया था "बड़े सपने देखो और उनको पूरा करने के लिए आज से ही जुट जाओ.सपने उन्हीं के पूरे होते हैं जो उन्हें पूरा करने का प्रयास करते हैं."

मेरी आँखों में एक डॉक्टर की पत्नी बनना उन सपनों  में से एक था.

रोहित ने मेरे घर आना जाना शुरू कर दिया था.हँसी ख़ुशी दिन गुज़र रहे  थे. मैं इंतज़ार कर रही थी कब वो मुझे प्रपोज़ करेंगे.

सिस्टर नीलम ने डरा दिया था "ये डॉक्टर लोग मज़े कर के उड़नछू हो जाते हैं ज़रा संभल के क़दम बढ़ाना.ऐसा ना हो बाद में रोती रह जाओ."

मुझे पता था वो कहीं ना कहीं सही कह रही है.लेकिन फ़िर सोचा मेरा केस अलग है.मैंने कभी भी अपनी ओर से किसी भी प्रकार का निमंत्रण नहीं दिया है.

 डॉ रोहित स्वयं मुझमें रूचि दिखा रहे हैं.हाँ ये भी सच है इतना अच्छा अवसर मैं हाथ से जाने नहीं दे सकती हूं.

हमारी जैसी लोअर मिडिल क्लास लड़कियों को शादी के बाज़ार में कोई साधारण नौकरी वाला व्यक्ति ही मिलेगा.

पापा बड़ी चार बहनों का विवाह करके खाली हो चुके हैं.

माँ आज भी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हैं. आठ घंटे खड़े रह कर पढ़ाने से उपजी चिड़चिड़ाहट उनके चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती है.

हमारी दोस्ती को प्रेम में बदले एक वर्ष हो गया था.अभी तक रोहित ने मुझसे विवाह के बारे में कोई बात नहीं की थी. मुझे सिस्टर नीलम की चेतावनी सच मालूम पड़ने लगी थी क्योंकि इतने दिनों में रोहित ने अपने परिवार के बारे में भी कुछ नहीं बताया था.

मैं अब ना चाहते हुए भी थोड़ा उखड़ी उखड़ी रहने लगी थी. डॉ रोहित ने मेरी बेरुख़ी को भाँप लिया था.

उस शाम वो मेरे घर आये और बोले "तुमने गांगुली एंड संस का नाम सुना है?"

"जी!जो फर्नीचर बनाते हैं."

"उसी परिवार से हूँ मैं."

मेरे मन में एक साथ सैकड़ों चाँद तारे जगमगाने लगे.

बस अब अगले कुछ क्षणों में वो मुझे प्रपोज़ करने वाले हैं.

मैंने ईश्वर को पहले ही धन्यवाद अदा कर दिया था.ऐसा तो मैं  स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी कि किसी उद्योगपति का बेटा मेरा हमसफ़र बन सकता है.

एक पल को लगा मेरी साँसे कहीं थम ना जाएं. ख़ुशी और उत्तेजना के रंग चेहरे पर आ जा रहे थे.मेरी आँखे स्वयं ही मुंद गईं.

"माचिस मिलेगी क्या?"डाक्टर रोहित की आवाज़ से मैं धरातल पर आ गई.

"जी अभी लाई."

मुझे पता था इस तरह का इंट्रोवर्ट इन्सान झिझक रहा है.

सो मैंने उनके सामने जाकर हिम्मत करके कह दिया "मुझे लगता है कि हमारे माता पिता को भी आपस में मिलवा देना चाहिए. मैं अपने पापा से कभी कुछ छुपा नहीं पाती हूं."

रोहित बोले "हमारे घर में दादू का सिक्का चलता है.सभी उनसे डरते  हैं.

 वही सबको आज भी सारा हिसाब किताब देखते हैं. ये देखो इधर आओ." रोहित ने मोबाइल पर अपने दादाजी की पिक्चर दिखाई. फ़िर अपनी माँ की तस्वीर भी दिखाई.

उन्होंने एक छोटा सा गिफ्ट रैप में लिपटा डब्बा मुझे पकड़ाया और कहा "मम्मी ने दिया है और कहा है कि अपनी गर्लफ्रेंड को दे देना.

"मुझसे पूछ रही थी ये गिफ्ट सुन्दर है या वो लड़की?"

मेरे कान गरम हो कर लाल हो गए थे. जी चाहता था कि उनके गले से लग जाऊं, लेकिन वो बहुत ही रिजर्व किस्म के शान्त और सौम्य व्यक्तित्व वाले थे.

उन्होंने एक सिगरेट ख़त्म कर जैसे ही दूसरी सुलगानी चाही, मुझे खांसी आ गई खाँसते खाँसते आँखों में आँसू आ गए. रोहित पानी का एक गिलास ले आये थे. पानी पीकर मुझे कुछ ठीक लग रहा था.

वो बोले "चलता हूं कल काम पर मिलते हैं."

उनके जाते ही मैंने सिस्टर नीलम को फ़ोन करके बुलाया और सारा घटनाक्रम दोहरा दियाऔर पूछा "इसे तुम क्या कहोगी?"

नीलम बोली "कुछ बातों के उत्तर हमारा दिल देता हैऔर कुछ प्रश्नों को समय सुलझाता है. चलो ख़ुशी की बात है आपकी गाड़ी आगे की ओर बढ़ चली है."

"मतलब सब सही दिशा में जा रहा है."

मुझे वाकई बेचैनी हो रही थी. नीलम ने कहा "गिफ्ट तो खोलो देखें उसमें क्या है?"

डब्बे के अंदर कुछ ब्रांडेड मेकअप का सामान और एक रिस्टवाच थी.

हम दोनों को इन ब्रांड्स के बारे में पता नहीं था. सिस्टर नीलम गूगल सर्च करने के लिए उत्सुक थी किन्तु मैंने रोक दिया था.

"प्रेम से दी गई वस्तु का मूल्य क्यों लगाना?"

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