Sunday, February 7, 2021

कविता नाविक मेरे

 


नाविक मेरे.....

लहर उठे कि शान्त हो
मन तेरा ना क्लान्त हो
बढ़े सदा तू लक्ष्य को
साहस जुटा चप्पू चला
अकेला है तो क्या हुआ
खुद से आज प्रीत कर
तू हार को जीत कर

ऊपर गगन नीचे पवन
लहरों के संग है धड़कन
नदिया परबत साथी तेरे
फिर क्यों रुके तू क्यों डरे
अपनी शक्तियाँ पहचान ले
ए मीत कहना मान ले
रुकना नहीं, थकना नहीं
दुनिया में क्या सम्भव नहीं
हां हैं सजग आँखें तेरी
बस पास मंज़िल है खड़ी
विश्वास रख हिम्मत जुटा
नाविक मेरे बढ़ता ही जा
प्रीति मिश्रा

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