Monday, July 20, 2020

लड़कियाँ

लड़कियाँ
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नये ऑफिस में लड़कियाँ ज़्यादा थीं. नहीं... नहीं... ये कहना ग़लत होगा.... दरअसल यहाँ सिर्फ़ वो अकेला मर्द है. बाक़ी सब औरतें. उसने हेड ऑफिस में अपने बॉस से रिक्वेस्ट की है जैसे भी हो इस महिला बहुल प्रतिष्ठान से उसे निकाल लिया जाए, या एक आध पुरुष कोऔर भेज दिया जाए.
वो कुछ दिनों पहले ही यहाँ आया है.
ये लड़कियाँ पूरे समय या अपनी सास की बातें करती रहती हैं या किसी खाने की रेसिपी डिस्कस करतीं , और कभी कभी कपड़ों की बातें करती हैं. हद तो तब हो जाती जब नेटफ्लिक्स की स्टोरी सुनाई जा रही होती है.
पीठ पीछे एक दूसरे के स्टाइल की चुगली करने वाली लड़कियाँ हैरत की बात है कि लंच टाइम में सब एक हो जाती हैं . मिल बांट कर खाना खाया जाता.पीछे की दुकान से समोसे मंगा कर खाए बिना उनका खाना पूरा ना होता है.
पर उसे क्या वो तो मूक दर्शक बना हुआ है.
"जो जी चाहे करो, प्रजातंत्र है, सब अपनी मर्जी के मालिक हो बस इतनी कृपा करना देवियों जिस कम्पनी की तनख्वाह ले रही हो उसका भी कुछ काम कर देना." वो मन ही मन सोचता रहता है.
उसकी आदत है कम बोलने की और अपना काम दुरुस्त रखने की. मन ही मन गौरान्वित होता है बॉस ने उसे जानबूझ कर भेजा है इस ऑफिस में. इन लड़कियों की मदद करने के लिए. पुरुषोचित अभिमान से सीना चौड़ा हो जाता है उसका.

काम करने के गजब तरीके हैं , उन लड़कियों के.
पहली बार जब कुछ नया काम या नयी ऐप खोलनी होती उनमें से एक दो घबरा जातीं, एक से दूसरे के डेस्कटॉप पर काम ट्रान्सफर करतीं, मक्खियों की तरह भिन भिन करतीं और फ़िर काम पूरा करने पर चैन की सांस ऐसे लेतीं मानो एवेरेस्ट की चढ़ाई फतह कर ली हो.
वो सोचता है जितनी देर आपस में भिनभिनाती हो. अगर उतनी देर सेटिंग्स पर जाकर, देखो, इंस्ट्रक्शन पढ़ो समझो, सारा काम सीख जाओगी.
तभी उसकी तन्द्रा टूटी.
"सर !आपको पता है फ्राइडे हमारे ऑफिस में कैज़ुअल्स
पहन के आते हैं. आप जींस पहन कर आइये ना सर."
इन लड़कियों में जो बहुत बातूनी थी उसने कहा.
वो उसकी बात हवा में उड़ाते हुए रुखाई से बोला "हेडऑफिस से फ़ोन आया था. डाएरेक्टर साहब को रिपोर्ट करना है. अगर आपका काम पूरा हो गया हो तो हम निकलें."कहते कहते वो थोड़ा सख्त हो गया था.
लड़की ने भाँप लिया और बोली "जी सर !बस एक नज़र डाल लूँ."
उसके चेहरे पर पड़ती शिकन देख कर वो हँस पड़ी. "सर काम पर नहीं, शीशे पर नज़र डालनी है.जरा
टचिंग कर के आती हूँ. काम पूरा है सर!"
"अजीब बेशर्म लड़की है.कुछ भी कह लो इस पर जूं नहीं रेंगने वाली. एक आदत ख़ास है इसमें कभी पूछेगी नहीं. हमेशा बताएगी."
कार में बैठते ही लड़की का रिकॉर्ड चालू हो गया.
"यहाँ पर आने से पहले दो साल तक विदेश में थी सर !
फ़िर लौट आयी."
"क्यों पी आर नहीं मिला क्या?"वो बोला
"जी नहीं ये बात नहीं है. पी आर था, नौकरी भी ठीक ठाक थी, मेरे हस्बेंड ने कहा वापस चलते हैं तो मैंने भी अपना मन बदल लिया. यहाँ पर सारे लोग हैं. मेरे मम्मी पापा, मेरे इनलॉज़. हम दोनों के फ्रेंड्स. फ़िर काम वाली बाइयाँ."
"दरअसल मुझे भीड़ अच्छी लगती है, इतनी कि बस टकराते टकराते बचो."
"ये बात भी नहीं थी बात कुछ और ही थी मेरे बेटे को अपने रंग को लेकर हीनभावना आ गई थी. उसने कहा कि टीचर गोरे (अंग्रेज )बच्चों को ज़्यादा प्यार करती है.
बस सर !मैंने अपना मन बदल दिया. वापस आ गए हमदोनों."
"बुरा नहीं लगता. आपको."उसने लड़की से पूछा.
"बुरा क्यों लगेगा?"
"अपना देश है जैसा भी है. टेढ़ा है पर मेरा है."
इतने में लाल बत्ती पर कार रुक गई थी. लड़की ने फ़टाफ़ट अपना बैग खोला और एक पोटली नुमा पर्स निकाला. थोड़ा सा कार का शीशा नीचे किया जो भी बच्चे महिलायें भीख माँग रहे थे. उन्हें पैसे बाँटने लगी.
तभी कार चल पड़ी.
उसने देखा एक छोटा लड़का सड़क से फ़्लाइंग किस उछाल रहा था. जिसे इसने लपक कर कैच कर लिया.
वो बोला"कभी भी इन लोगों को पैसे नहीं देने चाहिए.ये आपका बैग छीन कर भाग सकते हैं. "
"जी सर सही कह रहे हैं पर क्या है ना अब परिस्थतियाँ बदल गई हैं."
"क्या पता कौन किस मजबूरी में भीख माँग रहा हो." "इसलिये मैंने अपने विचारों को थोड़ा बदल लिया है. मेरा छोटा सा कंट्रीब्यूशन हो सकता है किसी की भूख मिटा दे."उसने पैसों की पोटली फ़िर अपने बैग में रख ली.
अब वो ड्राइवर से बोली भैया जी गाना बदलिए. कुछ फड़कता हुआ सा म्यूज़िक लगाइये ना.
तभी उसके बच्चे की कॉल आ गई थी. उसने म्यूज़िक धीरे करवाया पूरा रास्ता बच्चे का होमवर्क कराने में काट दिया .
सर !बहुत शरारती है. मेरा बेटा बिना मेरे साथ बैठे कुछ नहीं करता. इसलिये रोज़ आधा घंटा ऑफिस के साथ थोड़ी बेवफ़ाई करती हूँ. सर ! आखिरकार नौकरी भी तो फैमिली के लिए ही कर रही हूँ.
हाँ हुं हाँ, करते उसनेअपने दिमाग़ और ज़ुबान में मानो संतुलन बनाया.
वो तो पूरी तन्मयता से नौकरी कर रहा है. पत्नी और बच्चे उसकी राह देख कर थक चुके हैं.
उसका बच्चा भी आठ वर्ष का है. पर स्कूल से आने के बाद उसकी दिनचर्या का उसे पता नहीं है. रात्रि के भोजन पर ही उनकी मुलाक़ात होती है.
बिटिया ज़रूर लाड़ दिखा जाती है.
सर ! लड़की ने उसके विचारों को लगाम दी.
"हाँ बोलो."
"आप भी हमारे साथ ही लंच किया करिये.
अच्छा नहीं लगता आप अकेले बैठते हैं."
"मैं ज़्यादा कुछ नहीं खाता. हेवी ब्रेकफास्ट करता हूं. लंच तो बस नाम मात्र का."
"सर ! कल आइये हमारे साथ. देखिये अगर अच्छा ना लगे तो फ़िर नहीं कहूँगी."
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अब एक बार सिलसिला चल पड़ा तो ख़त्म ना हुआ.... दूर से जैसी दिखती थीउसके विपरीत अन्दर से बहुत संवेदनशील दुनिया थी इन लड़कियों की.
कोई टूटी टांग वाली पड़ोसी ऑन्टी को पूड़ी छोले पकड़ा कर आ रही है.
तो एक शाम को अपनी सहेली के तलाक के लिए वकीलों के चक्कर काट रही है.
यहाँ से घर जाकर किसी को ननद को मेहंदी लगवाने ले जाना है.
किसी को बच्चे को साईकिल के चार राउंड लगवाने हैं.
किसी के घर मेहमान आए पड़े हैं. जाते ही नहीं.
फ़िर भी ऑफिस में बर्थडे, प्रमोशन, बच्चे का रिज़ल्ट, हस्बेंड का बर्थडे, शादी की सालगिरह हर दिन लंच टाइम पर एक उत्सव है. इन लड़कियों का.
फ्राइडे को इस बात का जश्न कि शनिवार, इतवार छुट्टी है.
क्या कमाल की दुनिया है.
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सब के पास ढेरों काम हैं ऑफिस से पहले भी और घर जाकर भी.
ऑफिस के काम में भी पूरी भागीदारी है.
उसके विचार बदलने लग पड़े हैं.

उसकी हिचक भी निकलती जा रही है. अब उसे नहीं लगता कि वो ऑफिस में अकेला मर्द है.
घर में पत्नी भी खुश, वो रोज़ घर जाकर बताता है कि खाना कितना अच्छा बना था .
ये तारीफ़ करना भी इन्हीं देवियों ने सिखाया है.
आज फ्राइडे है उसने अपनी ब्लू जींस पहनी, पत्नी देखकर हैरान हुई आप तो ऑफिस जा रहे हैं ना.
"हाँ तो क्या हुआ? कभी कभी चेंज अच्छा लगता है."
"ये भी सही है."पत्नी ने ऊपरी तौर पर सहमति जताई. जबकि वो जानती थी कि वो कितना जिद्दी है. अपने कपड़ों को लेकर.
वो भी झेंप गया था. पर झटके से घर से निकल लिया.
रास्ते में बॉस का फ़ोन आ गया. वो बोले "तुम्हारा ट्रांसफर कर दूँ वापस आना चाहोगे."
उसको मानो झटका सा लगा. "जैसा आप कहें मुझे तो जो आदेश मिलेगा वही पालन करूँगा."
"नहीं तुम कह रहे थे ऑफिस में खाली लड़कियाँ हैं."
"सर ! लड़कियाँ ही तो हैं. क्या फर्क पड़ता है? मुझे तो अब अच्छा लगता है. रौनक वाली जगह है सर !"
"हा हा हा उसके बॉस की हँसी गूँज उठी. एक्चुअली ये बेस्ट पोस्टिंग है तुम्हारी."
"जी सर ! आप ठीक कहते हैं. यहाँ सीखने को बहुत कुछ है."
वो मुस्कुरा दिया था.
समाप्त



Saturday, July 11, 2020

मृगतृष्णा


मृगतृष्णा
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"हैलो अनन्या  से बात हो रही है? "
"हां आप कौन बोल रहे हैं? "
"पहचाना?"
"क्लू देता हूं बिल्लो !!तुम्हारा मित्र हूं."
"अबे ! मोटे गेंडे !इतने सालों बाद याद आयी है."
 " सुनो!! कल शाम को फोन करूंगा.उठा लेना."
वो हड़बड़ी में था.
फ़ोन रखते ही उससे जुड़ी यादों ने मेला लगा लिया था.
अनन्या ने  सारा दिन उसकी ही बातें की थीं.
उसकी  चहक देख कर बच्चों से उसके पति  ने बस इतना कहा "अभिनव तुम्हारी मम्मी का दोस्त है पक्का वाला. लेकिन बीस साल बाद प्रकट हुआ है."
"हमारे दोस्त अच्छे हैं, पर पक्के नहीं हैं, हाँ सब मिलते जुलते रहते हैं. "पति ने चुटकी ली थी
दोनों बच्चे हँस पड़े थे.
अनन्या को इतना गुस्सा आया इन तीनों पर, क्या  बताए,  सोच लिया था, "आज आख़िरी बार है जो अपनी कोई बात शेयर की है. अब कभी नहीं बताऊंगी. सारा मूड ख़राब कर दिया."
शाम कोअभिनव का फ़ोन आया. वो अपनी ज़िन्दगी में ख़ुश था.उसने अनन्या को बताया एक प्यारी सी पत्नी दो बेटे हैं.देश विदेश घूमता रहता हूं.काम ही ऐसा है.बच्चों के साथ मिसेज़ इंडिया में ही रहती है."
"ओ. के."
वो  सुन रही थी.चुप थी क्योंकि कहीं ना कहीं अभिनव उससे  बहुत आगे निकल गया था. वो दिन और थे जब ये मेरे नोट्स से पढ़ाई करता था.
अनन्या के मन में अलग अलग तरह के विचार उठ रहे थे.
काश !मैं भी किसी बड़े शहर में होती तो कोई अच्छी नौकरी कर पाती. यहाँ प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका के पद पर लगी हूं.
वो अचानक हीनभावना से भर उठी थी.
"मैं ही बोलूंगा या तुम भी कुछ बोलोगी?"
उसने कहा था.
फ़िर उसने उसके  बच्चों और पति के बारे में पूछा.
 "छोटा सा शहर है ना पीलीभीत !
बिल्कुल वैसी ही लिविंग होगी जैसी  हल्द्वानी में थी."
"हाँ ! कुछ लोग भी हैं पुराने हल्द्वानी वाले ."
अब अनन्या  उसके और अपने कॉमन फ्रैंड्स के बारे में बात कर रही थी.
सर्दियों के दिन थे वो अपनी लॉन के झूले पर बैठी थी. धूप खिसक चुकी थी और पहाड़ों की ठंडी हवा उसके यहाँ तक आने लगी थी.तभी बेटी शॉल लेकर आयी, बोली "पापा ने भिजवाया है. ओढ़ लो. ठण्ड खा जाओगी माँ!"
वो बोला "क्या कर रही है बिटिया?"
उसने कहा "अहमदाबाद में पढ़ रही है."
अभिनव बहुत ख़ुश हुआ. उसको बेटी के कॉलेज के बारे में अच्छी जानकारी थी.कहने लगा "बहुत अच्छा कॉलेज है."

करीब एक घंटे बात की थी उन्होंने .
अभिनव ने बतायाथा ये नम्बर उसकी पत्नी का है. सेव कर लेना.
उसका अपना ऐसा कोई नम्बर नहीं है, जिस पर वो उपलब्ध हो.  वो इस देश से उस देश घूमता रहता है.
फ़ोन रखने के बाद भी वो बहुत ख़ुश थी. बड़े दिनों बाद किसी मित्र का फ़ोन आया था.
"मम्मा क्या बात हुई?"बेटी ने पूछा तो उसका सारा गुस्सा जाता रहा था.
वो विस्तार से अपने और अभिनव के बचपन की कहानियाँ सुनाने लग गई थी.
"अब वो बड़ा आदमी हो गया है. सारे पुलिस वालों से और मंत्रियों से भी उसकी पहचान है.उसने बताया है."
अनन्या के पति बोले" कितना बड़ा हो गया है? इस घर में तो समा जाएगा ना.मेरा मतलब है लम्बाई में बड़ा हो गया है या चौड़ाई में. "
"अब कुछ पूछना मुझसे या अपने किसी घटिया दोस्त का किस्सा सुनाना. मैं नहीं सुनूँगी."
पति ने कहा "नाराज़ क्यों होती हो? मज़ाक कर रहा था.
लड़कियों को देखकर शेखी मारते हैं लड़के. आधी बातें झूठ होंगी. तुम भी बड़ी भोली हो."
"वो बड़े शहर में रहता है." अनन्या ने कहा. "मुझे समझा  रहा था कि मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स कैसी होती हैं?वो मुझे गँवार समझ रहा था.
कब तक हम यहाँ पड़े सड़ते रहेंगे. आप भी कहीं और जॉब एप्लाई क्यों नहीं करते?"
उसके पति का चेहरा उतर गया "क्यों तुम ख़ुश नहीं हो?
अनन्या बोली "ख़ुश हूं.लेकिन कभी कभी लगता है कहाँ पड़े हुए हैं. दुनिया कितनी आगे निकल गई है."
"दूसरों से बराबरी नहीं की जा सकती है.अनन्या! सब अपनी मेहनत और किस्मत का खा रहे हैं."
वो चुप हो गई थी ग़लती हो गई है उससे, अनजाने ही अपने पति की  तुलना अपने मित्र से कर दी  है. पुरुष कुछ भी सह सकता है. किन्तु किसी के साथ अपनी तुलना बर्दाश्त नहीं कर सकता है.
पतिदेव का मुहँ फूलना जायज़ है.
बात आयी गई हो गई थी.
एक दो दिन बाद पति पत्नी में सब कुछ सामान्य हो गया था.
++++++
अगले साल दिल्ली में सारे पुराने  फ्रेंड्स इकट्ठे होने वाले थे. अनन्या ने अपने पति से कहा "हम भी चलें."
वो बोले "देखता हूं पूरी कोशिश करूंगा."
"तुम्हारा वो बड़ा आदमी भी आएगा."
"आप अभी तक भूले नहीं."अनन्या ने कहा "सॉरी कहा तो था उस दिन."
फ़िर बोली "पता नहीं बड़े दिनों से फ़ोन नहीं आया उसका.
वहीं चलकर देखेंगे."
++++++
पुराने साथियों को देखकर अनन्या आह्लादित हो उठी थी. एक से एक दुबली पतली लड़कियां गोलगप्पों सी फूल गई थीं.
अभी तक अभिनव नहीं आया. उसकी दृष्टि बाहर की ओर ही लगी थी.
पता चला वो कल सुबह आएगा. उसके पास ज़्यादा वक्त नहीं है. उसकी पत्नी रूम नम्बर 404 में आ गई है.
अनन्या और उसके पति, अभिनव की पत्नी रूबी  से मिलने उसके कमरे में जा पहुंचे थे.
रूबी ने अनन्या से कहा "आप पीलीभीत से हैं?तब तो हमारे मायके से हुईं. "
" नैनीताल खूब जाना होता होगा."
अनन्या "जी हाँ !"
रूबी मानो किसी कल्पना लोक में खो गई "मेरा बचपन वहीं गुजरा है. हमारी चावल की मिलें थीं. धान के खेत, आम के बाग़, आटा चक्की, बर्फ़ का गोला,कम्पट, बड़े चकोतरे सब आँखों के आगे ताज़ा हो गए हैं.
हल्द्वानी की मूंगफली भी कितनी बड़ी होती थी ना.
अब भी बाल मिठाई मिलती होगी.
बारिश होने पर पहाड़ दिखते होंगे.
अनन्या ने कहा "जी हाँ ! हल्द्वानी से बालमिठाई लाये थे हम लोग आपके लिए."उसने हिचकते हुए मिठाई का डिब्बा रूबी को दे दिया.
जिसे रूबी ने तुरन्त ही खोल लिया और एक छोटा टुकड़ा मुहँ में रख कर बोली. "ये स्वाद पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिल सकता है. "
रूबी फ़िर अपनी यादों में खो गई
वो बोलती जा रही थी
"वहाँ से थोड़ी दूर पर ही तो वो एक सुन्दर सा मंदिर है ना
जी गिरजा देवी. "
"वहाँ जो नदी बहती है उसका पानी कितना साफ़ है? पहाड़,नदी, मंदिर सब एक जगह, कितना अद्भुत दृश्य है ना."
"आपको कभी लेपर्ड दिखे क्या?"
आप लोग अक्सर जाते हैं? उसने पूछा.

"जी पास में है इसलिये लगता है कभी भी चले जाएंगे. पिछले वर्ष स्कूल के बच्चों को पिकनिक पर ले गई थी." अनन्या ने कहा.
"आप लोग कितने किस्मत वाले हैं. प्रकृति के मध्य रह रहे हैं. साथ में हैं. भाई साहब आपको लेकर यहाँ सिर्फ़ आपके दोस्तों से मिलवाने आ गए."
"इसमें आश्चर्य क्या है?"अनन्या बोली.
"हम लोग तो हर जगह साथ ही जाते हैं."
रूबी बोली" हाँ यही तो भाग्य की बात है."
" मैं पिछले कई वर्षों से अकेले ही रह रही हूं. बच्चे कौन सी क्लास में हैं?
अभिनव को पता नहीं होता है. आज भी मैं यहाँ पहले पहुंची हूं. ये कल सुबह अफ्रीका से आएँगे और परसों शाम को फ़िर जापान की फ्लाइट है. एक दिन हम साथ बिताएंगे."
"कितना रोमांचकारी  होता होगा इस तरह का जीवन.आज इस देश कल दूसरे देश."अनन्या ने कहा
रूबी हँस पड़ी "हाँ अगर तुम्हारी दृष्टि से देखूँ तो, किन्तु मेरी दृष्टि से देखोगी तो बड़ा बोरिंग है ये जीवन . बच्चे छोटे थे तो साथ में चली जाती थी, पर अब उनकी पढ़ाई है, वो भी देखनी है. "
"हाँ नो डाउट पैसा इज़्ज़त है. पर उसकी बड़ी कीमत चुका रही हूं.
मैं तो अकेली ही हूं ना."...... रूबी ने अपनी बात पूरी की.

अनन्या रूबी से मिलने के बाद बड़ी देर तक सोचती रही ये जीवन भी अजीब मृगतृष्णा से भरा है.हर कोई  दूसरे के सुख से प्रभावित है. उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई.
जो भी हो अभिनव है बहुत किस्मत वाला रूबी बड़ी प्यारी है. लग ही नहीं रहा था पहली बार मिली हूं.अब कल अभिनव से मुलाक़ात होगी..... सोचते सोचते उसकी आँख लग गई थी.
उस दिन अभिनव प्रेम से मिला था, फ़िर आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ होते चले गए,आज सुबह सुबह उसके पुत्र का मैसेज आया है. पापा हम सबको छोड़ कर चले गए. उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हुआ. बाद में पता चला कई बरसों से परिवार से दूर रहने के कारण वो अवसाद में चला गया था. अपनी डायबिटीज़ को ठीक से कंट्रोल नहीं कर पाया. असमय ही दुनिया से विदा ले गया.
वो आंसू बहाती बड़ी देर सोफे पर बैठी रही.
समाप्त

Friday, July 10, 2020

वेंटिलेटर
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"पता नहीं इस मशीन के आने से कितनों की जान बची? या नहीं. पर अच्छे अच्छों को जीते जी मौत से बदतर हालत में पहुँचाया है इस नामुराद ने."
आई सी यू की सफ़ाई करते हुए वो बूढ़ा सफ़ाई   कर्मचारी अपने आप से बातें कर रहा था.
उधर से पान को मुहँ में भरे हुए तिवारी जी बोले "बड़े बोल बोल रहे हो चाचा  !लगता है कहीं और नौकरी देख लियो हो का? बग़ावत की बू आ रही है."
"हाँ किसी से डरते हैं क्या?"
"जा कह दे अपने अस्पताल वालों से. मैंने भी यहाँ पैंतीस साल नौकरी की है. तुम्हारा ये डॉक्टर तब पैदा भी नहीं हुआ था."
"जो मरीज बच ना सकें, बड़े डॉक्टर साहब सीधे अस्पताल से छुट्टी कर देते  थे. कहते थे "अब भगवान का नाम लीजिए. जो इनको अच्छा लगता हो, घर ले जाकर खिलाइये पिलाइये."
बूढ़े ने अपने हाथों को पोंछते हुए कहा
"अब सब कुछ जानते बूझते झूठी सांस और आस दे रहे हैं. ये पाप है और मैं इस पाप का भागीदार नहीं बनूँगा.
तुम लोग तो मरने वाले के साथ पूरे परिवार को जीते जी वेंटीलेटर पर रख देते हो."
" पिछले बीस दिनों से ये जो लड़का ठूँठ सा पड़ा है.इसकी माँ कंगाल हो चुकी है. अपना सब ज़ेवर बेच दिया है.तब अस्पताल में इस मनहूस बेड का किराया भर रही है.  सबको पता है ये नहीं बचेगा फ़िर क्यों इसके परिवार को जीते जी मार रहे हैं."
"बुड्ढा पागल हो गया है."
एक वार्ड बॉय हँसता हुआ निकल गया.
"कुछ ठंडा पिलाओ बड़ी गर्मी चढ़ी है बुढ़ऊ को."
ऑन ड्यूटी नर्स जो मोबाइल में फेसबुक खोले बैठी थी झल्ला कर बोली.... उसको डिस्टर्ब जो  हो रहा था.
"मैं जानता हूँ इसको, अगर दो दिन और रह गया इसके बच्चे भूख से मरेंगे." बूढ़े ने बेहोश पड़े मरीज की टांग ऊपर तक उठा कर छोड़ दीऔर कहा "तुम देखो इसमें कुछ नहीं है. कब तक इसके कपड़े लत्ते बदलोगे और बालों में नारियल तेल लगा कर बूढ़ी माँ और उसकी पत्नी को झूठे सपने दिखाओगे कि उसने पलकें झपकाई हैं."
"झूठे हैं सब के सब."
अब वो जोर जोर से बड़बड़ाने लगा.
"चच्चा आज चाची से लड़कर आये हैं."दूसरे  मेल नर्स ने टिप्पणी की.
"हम किसी से लड़कर नहीं आये हैं. पर कसाईयों  की नौकरी नहीं करेंगे.
 कितना पाते हैं?
छः हजार ना.
कैसे भी  कमा लेंगे. पर मुर्दों से पैसे नहीं कमाएंगे.
हमारा अपना ईमान है."
जाते जाते उसने आँख बचाकर ऑक्सीजन का रेगुलेटर ऑफ कर दिया और उस ब्रेन डेड व्यक्ति को सांसारिक कष्टों से मुक्ति दे दी थी.

उसको संतोष था उसने एक गरीब का घर बिकने से बचा लिया था.
अब जो चाहे हो देखा जाएगा. उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे. वो एक साथ हँस और रो रहा था.
वो अस्पताल से घर की ओर चल पड़ा था, तभी उसकी निगाह एक फ़कीर पर पड़ी जो
एकतारे पर मीठे स्वर में  गा रहा था :
" मत कर ग़ुरूर ओ धोखा रे बंदे
दुनिया तो दो दिन का मेला है........
वो ठहर गया और गीत सुनने लगा.
गीत ख़त्म हुआ, उसने घर जाने का विचार त्याग दिया.  अब उसके क़दम बड़े डॉक्टर साहब की क्लीनिक की ओर बढ़ गए  थे.सुना है आजकल धर्मार्थ क्लीनिक खोल कर बैठे हैं. उनसे कहेगा अपने पास ही रख लें. वो मन ही मन योजना बना रहा था.क्या कैसे कहना है. उसके चेहरे पर अब तेज दिख रहा था. वो मन ही मन फिर बड़बड़ा रहा था........ समाप्त
प्रीति मिश्रा