Friday, July 10, 2020

वेंटिलेटर
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"पता नहीं इस मशीन के आने से कितनों की जान बची? या नहीं. पर अच्छे अच्छों को जीते जी मौत से बदतर हालत में पहुँचाया है इस नामुराद ने."
आई सी यू की सफ़ाई करते हुए वो बूढ़ा सफ़ाई   कर्मचारी अपने आप से बातें कर रहा था.
उधर से पान को मुहँ में भरे हुए तिवारी जी बोले "बड़े बोल बोल रहे हो चाचा  !लगता है कहीं और नौकरी देख लियो हो का? बग़ावत की बू आ रही है."
"हाँ किसी से डरते हैं क्या?"
"जा कह दे अपने अस्पताल वालों से. मैंने भी यहाँ पैंतीस साल नौकरी की है. तुम्हारा ये डॉक्टर तब पैदा भी नहीं हुआ था."
"जो मरीज बच ना सकें, बड़े डॉक्टर साहब सीधे अस्पताल से छुट्टी कर देते  थे. कहते थे "अब भगवान का नाम लीजिए. जो इनको अच्छा लगता हो, घर ले जाकर खिलाइये पिलाइये."
बूढ़े ने अपने हाथों को पोंछते हुए कहा
"अब सब कुछ जानते बूझते झूठी सांस और आस दे रहे हैं. ये पाप है और मैं इस पाप का भागीदार नहीं बनूँगा.
तुम लोग तो मरने वाले के साथ पूरे परिवार को जीते जी वेंटीलेटर पर रख देते हो."
" पिछले बीस दिनों से ये जो लड़का ठूँठ सा पड़ा है.इसकी माँ कंगाल हो चुकी है. अपना सब ज़ेवर बेच दिया है.तब अस्पताल में इस मनहूस बेड का किराया भर रही है.  सबको पता है ये नहीं बचेगा फ़िर क्यों इसके परिवार को जीते जी मार रहे हैं."
"बुड्ढा पागल हो गया है."
एक वार्ड बॉय हँसता हुआ निकल गया.
"कुछ ठंडा पिलाओ बड़ी गर्मी चढ़ी है बुढ़ऊ को."
ऑन ड्यूटी नर्स जो मोबाइल में फेसबुक खोले बैठी थी झल्ला कर बोली.... उसको डिस्टर्ब जो  हो रहा था.
"मैं जानता हूँ इसको, अगर दो दिन और रह गया इसके बच्चे भूख से मरेंगे." बूढ़े ने बेहोश पड़े मरीज की टांग ऊपर तक उठा कर छोड़ दीऔर कहा "तुम देखो इसमें कुछ नहीं है. कब तक इसके कपड़े लत्ते बदलोगे और बालों में नारियल तेल लगा कर बूढ़ी माँ और उसकी पत्नी को झूठे सपने दिखाओगे कि उसने पलकें झपकाई हैं."
"झूठे हैं सब के सब."
अब वो जोर जोर से बड़बड़ाने लगा.
"चच्चा आज चाची से लड़कर आये हैं."दूसरे  मेल नर्स ने टिप्पणी की.
"हम किसी से लड़कर नहीं आये हैं. पर कसाईयों  की नौकरी नहीं करेंगे.
 कितना पाते हैं?
छः हजार ना.
कैसे भी  कमा लेंगे. पर मुर्दों से पैसे नहीं कमाएंगे.
हमारा अपना ईमान है."
जाते जाते उसने आँख बचाकर ऑक्सीजन का रेगुलेटर ऑफ कर दिया और उस ब्रेन डेड व्यक्ति को सांसारिक कष्टों से मुक्ति दे दी थी.

उसको संतोष था उसने एक गरीब का घर बिकने से बचा लिया था.
अब जो चाहे हो देखा जाएगा. उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे. वो एक साथ हँस और रो रहा था.
वो अस्पताल से घर की ओर चल पड़ा था, तभी उसकी निगाह एक फ़कीर पर पड़ी जो
एकतारे पर मीठे स्वर में  गा रहा था :
" मत कर ग़ुरूर ओ धोखा रे बंदे
दुनिया तो दो दिन का मेला है........
वो ठहर गया और गीत सुनने लगा.
गीत ख़त्म हुआ, उसने घर जाने का विचार त्याग दिया.  अब उसके क़दम बड़े डॉक्टर साहब की क्लीनिक की ओर बढ़ गए  थे.सुना है आजकल धर्मार्थ क्लीनिक खोल कर बैठे हैं. उनसे कहेगा अपने पास ही रख लें. वो मन ही मन योजना बना रहा था.क्या कैसे कहना है. उसके चेहरे पर अब तेज दिख रहा था. वो मन ही मन फिर बड़बड़ा रहा था........ समाप्त
प्रीति मिश्रा

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