मृगतृष्णा
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"हैलो अनन्या से बात हो रही है? "
"हां आप कौन बोल रहे हैं? "
"पहचाना?"
"क्लू देता हूं बिल्लो !!तुम्हारा मित्र हूं."
"अबे ! मोटे गेंडे !इतने सालों बाद याद आयी है."
" सुनो!! कल शाम को फोन करूंगा.उठा लेना."
वो हड़बड़ी में था.
फ़ोन रखते ही उससे जुड़ी यादों ने मेला लगा लिया था.
अनन्या ने सारा दिन उसकी ही बातें की थीं.
उसकी चहक देख कर बच्चों से उसके पति ने बस इतना कहा "अभिनव तुम्हारी मम्मी का दोस्त है पक्का वाला. लेकिन बीस साल बाद प्रकट हुआ है."
"हमारे दोस्त अच्छे हैं, पर पक्के नहीं हैं, हाँ सब मिलते जुलते रहते हैं. "पति ने चुटकी ली थी
दोनों बच्चे हँस पड़े थे.
अनन्या को इतना गुस्सा आया इन तीनों पर, क्या बताए, सोच लिया था, "आज आख़िरी बार है जो अपनी कोई बात शेयर की है. अब कभी नहीं बताऊंगी. सारा मूड ख़राब कर दिया."
शाम कोअभिनव का फ़ोन आया. वो अपनी ज़िन्दगी में ख़ुश था.उसने अनन्या को बताया एक प्यारी सी पत्नी दो बेटे हैं.देश विदेश घूमता रहता हूं.काम ही ऐसा है.बच्चों के साथ मिसेज़ इंडिया में ही रहती है."
"ओ. के."
वो सुन रही थी.चुप थी क्योंकि कहीं ना कहीं अभिनव उससे बहुत आगे निकल गया था. वो दिन और थे जब ये मेरे नोट्स से पढ़ाई करता था.
अनन्या के मन में अलग अलग तरह के विचार उठ रहे थे.
काश !मैं भी किसी बड़े शहर में होती तो कोई अच्छी नौकरी कर पाती. यहाँ प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका के पद पर लगी हूं.
वो अचानक हीनभावना से भर उठी थी.
"मैं ही बोलूंगा या तुम भी कुछ बोलोगी?"
उसने कहा था.
फ़िर उसने उसके बच्चों और पति के बारे में पूछा.
"छोटा सा शहर है ना पीलीभीत !
बिल्कुल वैसी ही लिविंग होगी जैसी हल्द्वानी में थी."
"हाँ ! कुछ लोग भी हैं पुराने हल्द्वानी वाले ."
अब अनन्या उसके और अपने कॉमन फ्रैंड्स के बारे में बात कर रही थी.
सर्दियों के दिन थे वो अपनी लॉन के झूले पर बैठी थी. धूप खिसक चुकी थी और पहाड़ों की ठंडी हवा उसके यहाँ तक आने लगी थी.तभी बेटी शॉल लेकर आयी, बोली "पापा ने भिजवाया है. ओढ़ लो. ठण्ड खा जाओगी माँ!"
वो बोला "क्या कर रही है बिटिया?"
उसने कहा "अहमदाबाद में पढ़ रही है."
अभिनव बहुत ख़ुश हुआ. उसको बेटी के कॉलेज के बारे में अच्छी जानकारी थी.कहने लगा "बहुत अच्छा कॉलेज है."
करीब एक घंटे बात की थी उन्होंने .
अभिनव ने बतायाथा ये नम्बर उसकी पत्नी का है. सेव कर लेना.
उसका अपना ऐसा कोई नम्बर नहीं है, जिस पर वो उपलब्ध हो. वो इस देश से उस देश घूमता रहता है.
फ़ोन रखने के बाद भी वो बहुत ख़ुश थी. बड़े दिनों बाद किसी मित्र का फ़ोन आया था.
"मम्मा क्या बात हुई?"बेटी ने पूछा तो उसका सारा गुस्सा जाता रहा था.
वो विस्तार से अपने और अभिनव के बचपन की कहानियाँ सुनाने लग गई थी.
"अब वो बड़ा आदमी हो गया है. सारे पुलिस वालों से और मंत्रियों से भी उसकी पहचान है.उसने बताया है."
अनन्या के पति बोले" कितना बड़ा हो गया है? इस घर में तो समा जाएगा ना.मेरा मतलब है लम्बाई में बड़ा हो गया है या चौड़ाई में. "
"अब कुछ पूछना मुझसे या अपने किसी घटिया दोस्त का किस्सा सुनाना. मैं नहीं सुनूँगी."
पति ने कहा "नाराज़ क्यों होती हो? मज़ाक कर रहा था.
लड़कियों को देखकर शेखी मारते हैं लड़के. आधी बातें झूठ होंगी. तुम भी बड़ी भोली हो."
"वो बड़े शहर में रहता है." अनन्या ने कहा. "मुझे समझा रहा था कि मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स कैसी होती हैं?वो मुझे गँवार समझ रहा था.
कब तक हम यहाँ पड़े सड़ते रहेंगे. आप भी कहीं और जॉब एप्लाई क्यों नहीं करते?"
उसके पति का चेहरा उतर गया "क्यों तुम ख़ुश नहीं हो?
अनन्या बोली "ख़ुश हूं.लेकिन कभी कभी लगता है कहाँ पड़े हुए हैं. दुनिया कितनी आगे निकल गई है."
"दूसरों से बराबरी नहीं की जा सकती है.अनन्या! सब अपनी मेहनत और किस्मत का खा रहे हैं."
वो चुप हो गई थी ग़लती हो गई है उससे, अनजाने ही अपने पति की तुलना अपने मित्र से कर दी है. पुरुष कुछ भी सह सकता है. किन्तु किसी के साथ अपनी तुलना बर्दाश्त नहीं कर सकता है.
पतिदेव का मुहँ फूलना जायज़ है.
बात आयी गई हो गई थी.
एक दो दिन बाद पति पत्नी में सब कुछ सामान्य हो गया था.
++++++
अगले साल दिल्ली में सारे पुराने फ्रेंड्स इकट्ठे होने वाले थे. अनन्या ने अपने पति से कहा "हम भी चलें."
वो बोले "देखता हूं पूरी कोशिश करूंगा."
"तुम्हारा वो बड़ा आदमी भी आएगा."
"आप अभी तक भूले नहीं."अनन्या ने कहा "सॉरी कहा तो था उस दिन."
फ़िर बोली "पता नहीं बड़े दिनों से फ़ोन नहीं आया उसका.
वहीं चलकर देखेंगे."
++++++
पुराने साथियों को देखकर अनन्या आह्लादित हो उठी थी. एक से एक दुबली पतली लड़कियां गोलगप्पों सी फूल गई थीं.
अभी तक अभिनव नहीं आया. उसकी दृष्टि बाहर की ओर ही लगी थी.
पता चला वो कल सुबह आएगा. उसके पास ज़्यादा वक्त नहीं है. उसकी पत्नी रूम नम्बर 404 में आ गई है.
अनन्या और उसके पति, अभिनव की पत्नी रूबी से मिलने उसके कमरे में जा पहुंचे थे.
रूबी ने अनन्या से कहा "आप पीलीभीत से हैं?तब तो हमारे मायके से हुईं. "
" नैनीताल खूब जाना होता होगा."
अनन्या "जी हाँ !"
रूबी मानो किसी कल्पना लोक में खो गई "मेरा बचपन वहीं गुजरा है. हमारी चावल की मिलें थीं. धान के खेत, आम के बाग़, आटा चक्की, बर्फ़ का गोला,कम्पट, बड़े चकोतरे सब आँखों के आगे ताज़ा हो गए हैं.
हल्द्वानी की मूंगफली भी कितनी बड़ी होती थी ना.
अब भी बाल मिठाई मिलती होगी.
बारिश होने पर पहाड़ दिखते होंगे.
अनन्या ने कहा "जी हाँ ! हल्द्वानी से बालमिठाई लाये थे हम लोग आपके लिए."उसने हिचकते हुए मिठाई का डिब्बा रूबी को दे दिया.
जिसे रूबी ने तुरन्त ही खोल लिया और एक छोटा टुकड़ा मुहँ में रख कर बोली. "ये स्वाद पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिल सकता है. "
रूबी फ़िर अपनी यादों में खो गई
वो बोलती जा रही थी
"वहाँ से थोड़ी दूर पर ही तो वो एक सुन्दर सा मंदिर है ना
जी गिरजा देवी. "
"वहाँ जो नदी बहती है उसका पानी कितना साफ़ है? पहाड़,नदी, मंदिर सब एक जगह, कितना अद्भुत दृश्य है ना."
"आपको कभी लेपर्ड दिखे क्या?"
आप लोग अक्सर जाते हैं? उसने पूछा.
"जी पास में है इसलिये लगता है कभी भी चले जाएंगे. पिछले वर्ष स्कूल के बच्चों को पिकनिक पर ले गई थी." अनन्या ने कहा.
"आप लोग कितने किस्मत वाले हैं. प्रकृति के मध्य रह रहे हैं. साथ में हैं. भाई साहब आपको लेकर यहाँ सिर्फ़ आपके दोस्तों से मिलवाने आ गए."
"इसमें आश्चर्य क्या है?"अनन्या बोली.
"हम लोग तो हर जगह साथ ही जाते हैं."
रूबी बोली" हाँ यही तो भाग्य की बात है."
" मैं पिछले कई वर्षों से अकेले ही रह रही हूं. बच्चे कौन सी क्लास में हैं?
अभिनव को पता नहीं होता है. आज भी मैं यहाँ पहले पहुंची हूं. ये कल सुबह अफ्रीका से आएँगे और परसों शाम को फ़िर जापान की फ्लाइट है. एक दिन हम साथ बिताएंगे."
"कितना रोमांचकारी होता होगा इस तरह का जीवन.आज इस देश कल दूसरे देश."अनन्या ने कहा
रूबी हँस पड़ी "हाँ अगर तुम्हारी दृष्टि से देखूँ तो, किन्तु मेरी दृष्टि से देखोगी तो बड़ा बोरिंग है ये जीवन . बच्चे छोटे थे तो साथ में चली जाती थी, पर अब उनकी पढ़ाई है, वो भी देखनी है. "
"हाँ नो डाउट पैसा इज़्ज़त है. पर उसकी बड़ी कीमत चुका रही हूं.
मैं तो अकेली ही हूं ना."...... रूबी ने अपनी बात पूरी की.
अनन्या रूबी से मिलने के बाद बड़ी देर तक सोचती रही ये जीवन भी अजीब मृगतृष्णा से भरा है.हर कोई दूसरे के सुख से प्रभावित है. उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई.
जो भी हो अभिनव है बहुत किस्मत वाला रूबी बड़ी प्यारी है. लग ही नहीं रहा था पहली बार मिली हूं.अब कल अभिनव से मुलाक़ात होगी..... सोचते सोचते उसकी आँख लग गई थी.
उस दिन अभिनव प्रेम से मिला था, फ़िर आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ होते चले गए,आज सुबह सुबह उसके पुत्र का मैसेज आया है. पापा हम सबको छोड़ कर चले गए. उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हुआ. बाद में पता चला कई बरसों से परिवार से दूर रहने के कारण वो अवसाद में चला गया था. अपनी डायबिटीज़ को ठीक से कंट्रोल नहीं कर पाया. असमय ही दुनिया से विदा ले गया.
वो आंसू बहाती बड़ी देर सोफे पर बैठी रही.
समाप्त
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