गद्य रचना
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कहानी
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चाँद और छोटा सा हाथ
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पार्ट 4
आपने पढ़ा रूबी के हाथ एक पार्सल लगता है वो उसे देखते ही अतीत में पहुँच जाती है. उसके पति डॉ रोहित और उसमें आपसी मतभेद हैं. रोहित को जीवन में सीधा सादा रास्ता पसंद है. रूबी अमीर बनना चाहती है. उसका जीवन दर्शन है "ये ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा." सिंह साहब और रागिनी का रहन सहन उसकी विचार धारा से मेल खाता है वो भी उनके पीछे पीछे चल पड़ती है...... अब आगे
रागिनी अपने मायके से वापस आ गई थी और हम अपने बच्चों के साथ बिजी हो गए थे.रागिनी को मेरी जरूरत पड़ती थी मायरा को पढ़ाने में. मायरा मुझसे बहुत हिल मिल गई थी.वो दुबली पतली बच्ची खाना खाने की बहुत चोर थी. रागिनी उसके साथ एक एक घंटा बैठी रहती थी. किन्तु हमारे घर विभू के साथ पाँच मिनट में खाना खाकर चलती बनती थी.मां बेटी के दूसरे झगड़े भी मैं ही निबटाती थी.
रागिनी परफेक्शनिस्ट थी. इसलिए दोनों के बीच खूब लड़ाई होती.मायरा दौड़ कर मेरे घर आ जाती थी.
उस दिन दोपहर का समय था,जोरों की बारिश होने लगी. मैं और विभू रागिनी के घर पे थे. विभू बोला "चलो मायरा दीदी हम लोग बारिश में नहाते हैं."गर्मी के बाद बारिश से राहत मिल रही थी.पर बच्चे घर में अन्दर आने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मैं उन्हें बुलाने गई तो मायरा ने कहा "ऑन्टी आप भी आजाइये."इस तरह मैं भी उनके साथ शामिल हो गई. होश आया तो सारे कपड़े गीले हो चुके थे.
रागिनी के कोई कपड़े मुझे फिट नहीं आने वाले थे. इसलिये उसने अपनी एक पतली सी पारदर्शी नाइटी दे दी और बोली "अभी ड्रायर में तुम्हारे कपड़े सुखा देती हूँ."
मैं तौलिए से गीले बालों को पोंछ रही थी और बच्चों को डांट रही थी."आज तुम लोगों ने कितना पागलपन कराया है. अगर बुखार आया तो रोहित अंकल जान ले लेंगे."
उसी समयअचानक सिंह साहब ने घर में प्रवेश किया और वो मुझे अपलक निहारने लगे. रागिनी का चेहरा अपने पति के बदलते हुए भाव भाव को देखकर मुरझा गया.सिंह साहब ने खुद को सम्भाला और अपने कमरे में चले गए." रागिनी तुमने ही ये फ़ालतू सी ड्रेस दी थी मुझे पहनने के लिए मेरी क्या ग़लती है?"
रागिनी बोली "मैंने कुछ कहा तुमको? पर ये मर्द लोग स्त्रियों को देखकर कितनी जल्दी फ़िसल जाते हैं?देखा तुमने."थोड़ी देर बाद मैं वहाँ से चली आयी.अजीब सी परिस्थिति हो गई थी.
उस रोज के बाद कई दिनों तक रागिनी मेरे घर नहीं आई मैंने सोचा "भाड़ में जाए रागिनी और उस का पति."किंतु मेरे बिना काम ही नहीं चलता था उन लोगों का. हो सकता है मायरा ने ज़िद की हो.उसके बर्थडे पर हमारे परिवार को फिर से बुलाया गया और हम दोनों में पहले सा बहनापा हो गया था.
रागिनी ने जन्मदिन पर हीरेऔर पन्ने का नया सेट पहना था. जो कि उसके व्यक्तित्व को और भी गरिमामयी बना रहा था.मैंने घर आकर रोहित से कहा "रागिनी मुझे बड़ी ग्रेसफुल लगती है."
वो बोले "मैं सिर्फ़ अपनी बीवी को देखता हूँ. क्योंकि मेरी शादी हो चुकी है."
"जो चीज़े सिलेबस में नहीं होती उन्हें मैं कभी भी नहीं पढ़ता हूँ."वो हँसे थे.
"मुझे एक डायमंड सेट खरीदना है.जैसा रागिनी ने पहना था."
"ले लेना देखते हैं कितने का है?आगे पीछे कर के ले लेंगें. किन्तु रागिनी जैसा ही क्यों वो कोई पैमाना है क्या?
तुम हर बात में उस फैमिली से इतना मुकाबला क्यों करती हो? हमारा तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है?
मुझे तो उन लोगों में कुछ भी ख़ास नहीं दिखता है."रोहित नाराज़ हो रहे थे.
हम दोनों एक दूसरे से रूठ गए थे और एक दूसरे की ओर पीठ करके सो गए थे.
आये दिन ऐसी बातें होने लगी थीं. हम दोनों अलग विचारधारा के थे. टकराव स्वाभाविक था.
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उस दिन सिस्टर नीलम घर आई और बोली"एक बात सच सच बता .डॉ रोहित और तेरे बीच सब ठीक तो है?"
"क्यों क्या हुआ?"
"आजकल उनका व्यवहार बदल सा गया है .शान्त आदमी बात बात पर झुंझलाने लगा है .अब तो स्टाफ़ में भी बात होने लगी है .बॉस घर का गुस्सा हम पर निकाल रहे हैं."
मैं नीलम से झूठ नहीं बोल पायी थी .अपनी गलती स्वीकार कर ली थी मैंने.
"हाँ आजकल हम लोग लड़ रहे हैं ."
"कभी विभू के बारे में सोचा है रूबी?"
"कब तक मैं विभू की ख़ातिर अपने स्वप्नों को तिलांजलि देती रहूँ .मेरे आगे बढ़ने पर विभू और रोहित का भी भला ही होगा."
मैंने उसे सिंह साहब के बारे में बताया "अगर हम अपनी क्लीनिक डाल लेते हैं तो तुम भी हमारे साथ आ सकती हो."
"तूने रागिनी से बात की है."
"नहीं."
"डॉ रोहित से?"
"नहीं आज करुंगी."
"कहीं सिंह साहब तुझे चारा तो नहीं डाल रहे हैं."
"क्यों?"
"इस क्यों का जवाब मुझसे नहीं अपनेआप से पूछ रूबी."
सिस्टर नीलम मुझे उलझा कर चली गई थी .
इन प्रश्नों के उत्तर मुझे नहीं जानने हैं .
जो चल रहा है बस वैसे ही चलता रहे .
रोहित आ गए थे .मैं बहुत उत्साहित थी
रोहित के आगे जब मैंने अपनी क्लीनिक खोलने का ऑफर रखा उन्होंने बिना सोचे समझे रिजेक्ट कर दिया और बोले "तुम देखो आजकल बाजार में डॉक्टर्स खाली बैठे हैं .अब क्लीनिक्स का रिवाज़ नहीं रहा है .सिंह साहब को अपनी ब्लैक मनी कहीं लगानी है.इसलिए उनका कुछ नहीं जा रहा है .मेरी तरफ़ से माफ़ी मांग लेना.सीधा सादा रास्ता चलने की आदत है .डॉक्टर बन कर मेरा उद्देश्य लोगों की सेवा करना और इज़्ज़त से जीवन यापन करना है .बिज़नेस करना नहीं."
बस यही कुछ बातें हैं जो रोहित को सबसे अलग बनाती हैं.
काश !मैं भी रोहित जैसी हो जाती.
"किन खयालों में खोई हुई हो मैडम ?"
रोहित ने मुझे छेड़ा था "आजकल कहाँ दिल लगा लिया है ?कोई और मिल गया क्या ?सच्चा आशिक़ एक ही है तुम्हारा, याद रखना."
मुझे क्यों नहीं याद रहता अब उनकी पसंद नापसंद का मैंने टोमेटो सूप बनाया था तो उसमें चिली फ्लेक्स डाल दिए थे .
रोहित ने हैरानी से मेरी ओर देखा था. कहा कुछ नहीं .
रोहित सूप छोड़ कर उठ गए थे और फ्रूट्स खाने लगे थे .मैं कैसे भूल गई कि रोहित को जरा भी मिर्च बर्दाश्त नहीं शायद इसलिए कि सिंह साहब खूब तीखा खाते हैं कहते हैं "चाहे हरी हो लाल हो या काली मुझे हर तरह की मिर्च पसन्द है."
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कुछ वर्ष और खिसक गए थे .मेरी अंतरंगता सिंह साहब से बढ़ गई वहीं रोहित से दूरी अपनेआप होने लगी.
अजीब बेचैनी होने लगी है मिनट मिनट पर व्हाट्सएप मैसेज खोलती हूँ. सिंह साहब का गुडमार्निंग मैसेज के साथ एक गीत का वीडियो भी है.बन्द कर देती हूं मैं.कान में ईयरफ़ोन लगा कर चुपके से सुनती हूँ.दिन में ना जाने कितनी चैट होती है?आजकल रात में सोने से पहले भी उनका गुड नाइट मैसेज आता है और एक फिल्मी गाना भी उस गाने के बोल से मैं खुद को जोड़ती हूं. अपने लिए उनकी फीलिंग्स जानना चाहती हूं मुझको यह क्या होता जा रहा है.मुझे खुद नहीं पता क्या सही है क्या गलत?इसकी परिभाषा तय करना और इन दोनों के बीच में जो सूक्ष्म अंतर है उसको जानना.
किसी के लिए भी मुश्किल हो सकता है ये उत्तर और मैं जिसका एकमात्र उद्देश्य बस किसी तरह सफलता की सीढ़ी पर चढ़ना है उसके लिए और भी मुश्किल हो जाता है.
आजकल बातों में कहीं न कहीं सिंह साहब का जिक्र आ ही जाता है. रोहित कुछ कहते नहीं किंतु एक दिन विभू से कह रहे थे कि "हम जिसके बारे में सोचते हैं उसी की बात करते हैं."शायद मुझे सुना रहे थे.
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अचानक फ़ोन बज उठा था .माँ का फ़ोन था " रूबी तेरे पापा को सांस नहीं आ रही है."
हाथ से फ़ोन छूट गया था .जैसे बैठी थी वैसे ही घर से निकल पड़ी थी.पीछे से रोहित भी आ गए थे.माँ का बुरा हाल था थोड़ी देर में ही सभी लोग इकट्ठे हो गए थे .
दूर के रिश्तेदार और पुराने दोस्त जिन्हें मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था .अंतिम संस्कार पर सब हाज़िर थे .
कुछ लोग आज ही पूरे जीवन की व्याख्या करना चाहते थे .उनकी उपलब्धियों और दरियादिली की बातें हो रही थीं .
हम बहनों के मुहं दुःख गए थे सबको बताते बताते कि अंतिम समय से पहले पापा ने क्या खाया क्या माँ से कहा था?
माँ बिचारी वैसे ही बेहाल हो रही थी और ये लोग उन्हें दुःखी रखने में कोई कसर नहीं छोड़े थे .
तभी किसी ने कहा "बिचारी के भाग्य में सुख नहीं था .तभी तो एक लड़का हुआ भी थाऔर बचा नहीं."
निश्चित ही मां के बारे में बात थी ."मुझे क्यों नहीं बताया कभी किसी ने कि मेरे एक भाई भी था."
मैंने बड़ी दीदी से पूछा वो बोली "देख रही है ना चाची कितनी गँवार हैं? तू मां को लेकर अंदर जा.मैं इन लोगों को संभालती हूँ."
तभी आवाज आई "वो छोटी गुड़िया कितनी बड़ी हो गई?"
माँ ने मेरी गोद में अपना सिर छुपा लिया था .हम दोनों साथ साथ रो रहे थे.
मैंने मां सेधीरे से अपने को छुड़ाया बैठक में जाकर पापा की पसंदीदा सी.डी.लगा दी थी .
लोगों की गॉसिप बंद हो गई थी .
कबीर वाणी गूंज रही थी .
लंबा मारग, दूरि पथ ,विकट पंथ ,बहु मार ।
कहो संतो, क्यों पाइये ,दुर्लभ हरि -दीदार ।।
एक के बाद एक दोहे बज रहे थे लोग शांत हो गए थे.थोड़ी देर में पापा की तस्वीर को प्रणाम करके अपने अपने घर जाने लगे थे.अब हम सबको राहत महसूस हुई थी.
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जब से पापा गए हैं कुछ करने को मन नहीं करता है.रोहित मेरा ख़याल रखते हैं .सिस्टर नीलम विभू को देख रही हैं.रागिनी और सिंह साहब भी आये थे .
हर बार की तरह वो आज भी करीने से बँधी हुई साड़ी में किसी चित्रकार की बनाई हुई सुन्दर कलाकृति सी लग रही थी. उसने मुझे गले से लगाया. चुपचाप बैठी रही.रागिनी बस एक ही बार आयी उसके बाद फ़िर नहीं आई. स्त्रियों के पास सिक्स्थ सेंस होता है.अपने चारों ओर का ख़तरा बड़ी जल्दी पहचान लेती हैं.
रोहित अपने काम में मशगूल हो गए थे .मेरी उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे कि मेरे पास शहर के एन जी ओ के प्रेसिडेंट का प्रस्ताव आया कि मैं उनकी ब्रांड एंबेसेडर बन जाऊं. मैं राजी हो गई थी .जब फ़ोटो शूट कराने पहुंची तो बातों बातों में पता चला मेरे नाम का प्रस्ताव सिंह साहब ने रखा है .
एक बार फ़िर उनसे सामना हो गया था .उनके एहसानों का बदला कैसे चुकाऊंगी मुझे पता नहीं था.
अब हमारा मिलना जुलना बढ़ने लगा था. मेरा संकोच दूर होने लगा और अब हमअपने घर की बातें, अपनी पसन्द नापसंद की बातें एक दूसरे से करने लगे.
हम दोनों की रुचियाँ काफ़ी मेल खाती थीं.पहले विभू और मायरा की बातें होती थी. बाद में रोहित और रागिनी की बातें होने लगी मैंने उनसे कहा था कि मैं रागिनी के स्टाइलऔर घर के रखरखाव से बेहद प्रभावित हूं वह मुस्कुरा दिए और बोले "घर को सजाना एक बात होती है और घर को घर बनाना दूसरी बात .रागिनी का झुकाव आज भी अपने मायके की ओर है .कभी भी ऐसा नहीं हुआ जब वह मायरा की छुट्टियों में मायके न गई हो.हर वर्ष दो-तीन महीने मुझे अकेले ही गुजारने पड़ते हैं.अब तो मायरा भी तेरह वर्ष की होने को आई है."
" आप कुछ कहते नहीं?"
" क्या कहूंगा ?अकेली लड़की है रागिनी माँ बाप की लाड़ली और यह जो हमारी गृह सज्जा देख रही हैं. सब उसके माता-पिता की ही कृपा है."
ऐसे में मैं संकुचित हो उठती हूं. मुझे अपने माता-पिता का घर याद आ जाता है. मैं नहीं चाहती कि कोई हमारे घर की बात करे. जबकि माँ पापा दोनों की आँखों का तारा हूँ मैं.
एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया "डॉक्टर रोहित कहां से हैं ?"और जब मैंने रोहित के परिवार का जिक्र किया तो वह हैरानी से बोल पड़े थे."अच्छा !तभी डॉ रोहित इतने सौम्य हैं .जितना फलदार वृक्ष उतना झुका हुआ होता है .सही कहावत है."
"हम लोग तो गांव की पृष्ठभूमि से हैं.पढ़ने में अच्छे थे सो सिविल इंजीनयर बन गए. बाद में ससुराल की सम्पत्ति मिल गई.रागिनी मेरे माता पिता को बर्दाश्त नहीं कर पाती है. गाँव के जो ठहरे, मैं ही कभी कभी गाँव चला जाता हूँ."सिंह साहब ने कहा था .
मेरे मुंह पर जैसे कोई बात आते-आते रह गई थी पर मैं चुप हो गई . अपने आप को संभाल लिया था .
रोहित को मेरे घर से बाहर रहने से मेरे काम से कोई एतराज नहीं था,लेकिन वह विभू को उपेक्षित होता नहीं देख सकते थे.इसलिये घर पर एक नौकर रख लिया गया .अब हमारे संवाद और कम हो गए थे .
रोहित को फ़िश के बिना खाना अच्छा नहीं लगता लेकिन कितने दिन हो गए मैं वेजीटेरियन खाना बनवाकर जल्दी से घर से निकल जाती हूं. मेरे इस बदलाव पर छोटे से विभू ने ध्यान दिया था और मैं भी चकित रह गई थी .एक छत के नीचे रहते हुए एक बिस्तर पर मुहँ फेर कर सोते हुए हम दोनों पति पत्नी अजनबी होते जा रहे हैं. जिसका प्रभाव हमारी दैनिक दिनचर्या पर पड़ा है .हास्य ,चुहल सब गायब हो गई है.लगता है दो अजनबियों का घर है. हाँ अच्छे पैसे कमाने का जुगाड़ अवश्य होता दिख रहा है.
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मैं सिंह साहब के प्रभाव में इस कदर आयी थी कि मैंने अपनी मर्यादा को ताक़ पर रख दिया .उनके रूप में मैंने अपनी पसंद का पुरुष प्राप्त कर लिया था .उनके साथ शहर के बाहर भी जाना शुरू कर दिया था.मेरी वजह से उनको नए प्रोजेक्ट मिल रहे थे.उनके अनुसार मैं उनकी बिज़नेस मीटिंग्स के लिए उपयुक्त थी.
उन्होंने वादा निभाया नये बिज़नेस में फ़िफ़्टी की पार्टनरशिप थी मेरी.
"जब से तुम मेरे जीवन में आई हो रूबी मानो लक्ष्मी स्वयं आ गई हों."
ऐसे ही किसी दिन मैंने उनसे पूछ लिया था "आपने मुझे कैसे चुना?आप मुझ पर इतने कृपालु क्यों हो गए ?"
वो बोले "एक जबरजस्त आकर्षण महसूस करता हूँ. जब तुम्हें पहली बार देखा था तब से वैसा जैसा कभी किसी के लिए नहीं महसूस किया."
ऐसी बातों से मैं आनंदित हो जाती थी.
हम लोग दिन पर दिन खुल रहे थे और एक दूसरे की आदत बनते जा रहे थे.जब भी समय मिलता दूसरों की नज़रों से ओझल हो आनन्द मना लेते. उनकी नज़रों में मैं एक अप्सरा थी.वो मेरी हर छोटी बड़ी चीज़ में दिलचस्पी लेते. मुझे ज़मीन से उठा कर आसमान पर बैठा दिया था.
समय तेज़ी से भाग रहा था.
सिंह साहब के अनुसार पहले मैं पिंजरे में बंद चिड़िया थी .जो पिंजरा खुलने पर भी उड़ने को तैयार न थी .
मैंने शरारत से पूछा
"आप क्या हैं?"
"मैं वो शिकारी हूँ. जिसका शिकार एक चिड़िया ने किया है."
मेरे कान कुछ और सुनने को तरस रहे थे .मैं चाहती थी कि वे अपने प्रेम का इज़हार करें. वो प्रेम जो मैं बरसों से उनकी आंखों में देखती आयी हूँ.
"क्या ये प्रेम है ?"
"प्रेम शब्द का बड़ा दुरुपयोग होते देखा है मैंने." वो बोले "लेकिन वर्षो से जिस एक संबंध के प्रति आकर्षित हूँ. अगर इसे तुम प्रेम की परिभाषा में फ़िट करना चाहो तो कर सकती हो ."
"आप मेरे लिए क्या कर सकते हैं ?"
"कभी आजमा लेना."
"जहां आजमाइश हो वो संबंध ही क्या?"
"सुन्दरता के साथ समझदारी भी है तुम्हारे पास."वो मेरे करीब खिसक आये थे.
मैंने पूछा "मुझसे शादी करेंगें."
मानो बिजली के तार से झटका लग गया हो .
वो बोले "ये कैसी बात कर रही हो?क्या हो गया है तुम्हें?"
मेरा चेहरा निस्तेज हो गया था.
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आज रात नींद नहीं आ रही थी .दिमाग़ में सिंह साहब की बातें गूंजने लगी थीं .
"रूबी तुम इतनी नासमझ नहीं हो .हम लोग एक दूसरे के साथ अपनी खुशी से हैं. मैंने कभी भी जबरजस्ती या धोखे से तुम्हें प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया है,किन्तु परिवार के प्रति समाज के प्रति मेरे कर्तव्य हैं.उनको अनदेखा कर दूंगा तुमने ऐसा कैसे सोच लिया?"
"और मैं.....मेरा क्या होगा?"
"क्या कमी है तुम्हें?"
"नाम शोहरत पैसा सब मुहैय्या करा रहा हूँ ."
"मैंने कभी कहा कि डॉक्टर को छोड़ दो."
"हमारे रिश्ते का क्या नाम है ?"मैंने पूछा
"बस रूबी बस !"वो मुझे चुप करने का प्रयास कर रहे थे.जब मेरे आंसू बहने लगे उन्होंने मुझे अपने आगोश में ले लियाऔर अपने होठों से आँसुओ को पोंछते हुए कहा ."इन आँखों में चमक देखना चाहता हूं .आंसू नहीं.सॉरी !!हम कोई ना कोई रास्ता निकालेंगे, बस मायरा को समझदार हो जाने दो."मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा था.चाहती थी धरती फट जाए और उसमें गड़ जाऊं .
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रोहित शालीन थे शरीफ थे. इसीलिए उन्होंने घर के हालात काबू से बाहर जाते देखकर एक फैसला लिया और समय मिलते ही हैदराबाद के अस्पताल में अपना तबादला करा लिया. वह चाहते थे कि विभू को भी अपने साथ ही ले जाएं किंतु उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे विभू को यह साल पूरा करा कर बाद में हैदराबाद आ जाना चाहिए .मुझे रोना आ रहा था रोहित को विदा करते हुए .क्योंकि मुझे कहीं ना कहीं पता था कि मैं रोहित के साथ नहीं जाऊंगी .विभू को उनके पास भेजना है या नहीं यह फैसला समय को करना था .
हम अक्सर सोचते हैं कि चीजें हमारे हाथ में है किंतु ऐसा होता नहीं है और फिर ऊपर वाले का फैसला हमारी सोच से बहुत अलग होता है .यह मैंने बाद में जाना था अभी भी किस्मत के कुछ रंग देखने बचे थे.
अभी अभी रोहित का भेजा पार्सल उत्सुकता से खोला.बहुत सारे पत्र हैं एक एक कर पढ़ना शुरू किया है सर चकरा गया है .
पापा को किसी महिला ने ये पत्र लिखे हैं .साथ ही उनकी प्रॉपर्टी के कागज़ात भी हैं .सब कुछ मेरे नाम है .
"पापा माँ आपने इतना बड़ा सच मुझसे छुपाया मैं आपकी बेटी ही नहीं थी."मेरी जन्मदात्री मुझे अस्पताल में जन्म देकर छोड़ कर भाग गई थी,और माँ ने अपने मृत पुत्र के स्थान पर मुझे ईश्वर का वरदान समझ कर अपने सीने से लगा लिया था. कभी भी किसी ने ये राज़ जाहिर नहीं होने दिया था.
मेरी बहनें जो मुझे गुड़िया की तरह पाल रही थीं.कभी किसी के मन में विचार न आया होगा ये लड़की कहाँ से आ गई हमारा हिस्सा मारने .
आज समझ आया था कितनी बड़ी हतभागिनी हूँ.
मैं आगे पत्र पढ़ती हूँ मेरी जन्मदात्री के कोई सन्तान नहीं हुई थी .उन्होंने कुछ समय पहले अपने पति को सब बता दिया था .इसलिये ज़मीन का हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया है.इसी शहर के नामी बिज़नेस मेन हैं वे लोग.
मेरे पापा की मृत्यु के बाद किसी दिन माँ ने रोहित को ये पेपर्स सौंपे थे ,या पापा ने मेरे विवाह पर ही रोहित को दे दिए थे. अब इन बातों का कोई अर्थ नहीं है .पर मन को मथ रही थीं ये बातें.
"रोहित तुमको कब से ये सब पता था?"
ये सब बातें अब रहस्य ही रहने वाली थीं .
अब मैं किसी से कुछ पूछने के लायक नहीं रही थी.
जिस दौलत के लिए दौड़ रही थी .एकअदना से लिफ़ाफ़े में बन्द मुझे मुहँ चिढ़ा रही थी .
मैं उठी और उसअलमारी की ओर बढ़ी जहां रोहित दवाइयां और इंजेक्शन्स रखते थे .सोचा एक इंजेक्शन ले लूं और चैन की नींद सो जाऊं .बहुत ढूंढा ना नींद की गोली मिली ना ही दर्दनिवारक इंजेक्शन.
सिस्टर नीलम को फ़ोन किया "जल्दी आओ."
उसने मेरी टाँग से गाउन उठाकर देखा तो घबरा कर चिल्ला उठी ."मरने की ठान ली है.कब से इंजेक्शन ले रही है?
क्या बताती उसे जब से सिंह साहब जीवन में आये हैं.मैं बिना नशे के सो नहीं पाती हूँ .
सिस्टर नीलम की बड़बड़ चालू थी
"घाव हो गए हैं.सेप्टीसीमिया हो जाएगा .रूबी मिनटों में चलती बनेगी इस दुनिया से ."
अब सिंह साहब से मिलने की इच्छा नहीं होती है. उनका फ़ोन आता है, मेरी फ़िक्र करते हैं पर मैं किसी बहाने फ़ोन रख देती हूँ. आजकल अपने आप इंजेक्शन लेने लगी हूँ. नशे की आदत होती जा रही है.कई मेडिकल स्टोर वाले दवा देने से मना भी करने लगे हैं. पेट में आग सी लग जाती है तब. दर्द सहा नहीं जाता है.
अब कुछ याद नहीं रहता है, रोहित का फ़ोन आया या नहीं , विभू ने होम वर्क किया या नहीं.
जब सिस्टर नीलम मुझे रीहैब सेंटर ले जाना चाहती है.तब मुझमें जीने की उमंग जाग जाती है. अन्यथा बिस्तर में गुड़ी मुड़ी पड़े रहना ही मेरे जीवन का अंग होता जा रहा है.
मैं नींद के आगोश में हूँ किसी स्वप्न में खो जाती हूं देखती हूं मिशेल ओबामा और मिसेज़ बुश व्हाइट हाउस में बैठे हैं.
मिसेज़ बुश मिशेल से कह रही हैं "बेशक हमारे पतियों में आपस में मतभेद हों लेकिन मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं तुम यहाँ पर जो समय बिताओगी वो अद्भुत होगा."
मिशेल मुस्कुराती है
"मुझे आज याद आ रहा है जब मैं पहली बार अपने पति के साथ व्हाइट हाउस में प्रवेश कर रही थी तब मेरा स्वागत जिस तरह से हुआ था, ठीक उसी तरह से मैं आज तुम्हारा स्वागत करना चाहती हूं."
मिसेज़ बुश अपनी बेटी से कह रही हैं "जाओ इन छोटी बच्चियों को ले जाओ और इनके कमरे दिखा दो."
"मिशेल कल से तुम्हारे बच्चे जेड सिक्योरिटी के साथ स्कूल जाएंगे."
मिशेल खुश है लेकिन घबरा रही है.
( दृश्य बदल जाता है)
मायराआ जाती है वो बड़ी हो गई है .उसके हाथों में मेहंदी लगी है ."आंटी आपने हमारे साथ ऐसा क्यों किया आप तो मेरीआंटी थी ना मैं विभू को राखी बांधती थी. आपने उसकी भी लाज नहीं रखी . आपकी वजह से मम्मी पापा आपस में बात नहीं करते हैं.हमारी फैमिली लाइफ पूरी तरह से बर्बाद हो गई है .आंटी मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी."
मैं अपने कानों पर उंगली में रख लेती हूं मेरे सामने एक एक करके रोहित विभू मायरा और रागिनी चारों ओर चक्कर लगाने लगते हैं मेरा सर चकरा रहा है...... मैं नींद में सो जाना चाहती हूं पापा याद आने लगते हैं "पापा मुझे आपके पास आना है मैं यहां पर अपने सपने पूरा करते-करते थक चुकी हूँ कितनी भी कोशिश करती हूं चांद मेरे हाथ नहीं आता.पापा मेरे हाथ बहुत छोटे हैं."
पापा की दी हुई कबीर वाणी बज रही है मेरे कानों में
माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।
आसा त्रिषणा ना मुई ,यों कहि गया कबीर।।
विभू रो रहा है ,रोहित को फ़ोन कर रहा है .रोहित सिस्टर को फ़ोन पर समझाते हैं हार्ट पम्प करो सिस्टर नीलम बेकार की कोशिश में लगी है पर मेरा जागने का मन नहीं करता है.लगता है चिरनिद्रा इसी को कहते हैं.....
समाप्त