Sunday, February 28, 2021

इकतारा बोले क्या बोले इकतारा कविता

 इकतारा बोले सुन सुन 

क्या बोले इकतारा !!

ऊपर वाले तेरी दुनिया का 

है हर खेल निराला...


झूठ यहां पर सीना ताने सच्चाई दब जाती

विह्ववल मानवता उलट व्यवस्था देख देख घबराती...


इकतारा बोले सुन सुन 

क्या बोले इकतारा !!


 भीड़ की धक्का-मुक्की में मानव यहाँ अकेला

 हर एक हृदय में लगा हुआ है सन्नाटो का मेला...


इकतारा बोले सुन सुन 

क्या बोले इकतारा !!


मजबूरी के नाम पे 

निर्बल तन मन शोषण देखा 

लज्जा हो गयी तार तार अपमानित होती लक्ष्मण रेखा 


इकतारा बोले सुन सुन 

क्या बोले इकतारा !!

Sunday, February 7, 2021

कविता नाविक मेरे

 


नाविक मेरे.....

लहर उठे कि शान्त हो
मन तेरा ना क्लान्त हो
बढ़े सदा तू लक्ष्य को
साहस जुटा चप्पू चला
अकेला है तो क्या हुआ
खुद से आज प्रीत कर
तू हार को जीत कर

ऊपर गगन नीचे पवन
लहरों के संग है धड़कन
नदिया परबत साथी तेरे
फिर क्यों रुके तू क्यों डरे
अपनी शक्तियाँ पहचान ले
ए मीत कहना मान ले
रुकना नहीं, थकना नहीं
दुनिया में क्या सम्भव नहीं
हां हैं सजग आँखें तेरी
बस पास मंज़िल है खड़ी
विश्वास रख हिम्मत जुटा
नाविक मेरे बढ़ता ही जा
प्रीति मिश्रा

Saturday, January 23, 2021

चाँद और छोटा सा हाथ 4

 गद्य रचना

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कहानी

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चाँद और छोटा सा हाथ

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पार्ट 4

आपने पढ़ा रूबी के हाथ एक पार्सल लगता है वो उसे देखते ही अतीत में  पहुँच जाती है. उसके पति  डॉ  रोहित और उसमें आपसी मतभेद हैं. रोहित को जीवन में सीधा सादा रास्ता पसंद है. रूबी अमीर बनना चाहती है. उसका जीवन दर्शन है "ये ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा." सिंह साहब और रागिनी का रहन सहन उसकी विचार धारा से मेल खाता है वो भी उनके पीछे पीछे चल पड़ती है...... अब आगे


रागिनी अपने मायके से वापस आ गई थी और हम अपने बच्चों के साथ बिजी हो गए थे.रागिनी को मेरी जरूरत पड़ती थी मायरा को पढ़ाने में. मायरा मुझसे बहुत हिल मिल गई थी.वो दुबली पतली बच्ची खाना खाने की बहुत चोर थी. रागिनी उसके साथ एक एक घंटा बैठी रहती थी. किन्तु हमारे घर विभू के साथ पाँच मिनट में खाना खाकर चलती बनती थी.मां बेटी के दूसरे झगड़े भी मैं ही निबटाती थी.

रागिनी परफेक्शनिस्ट थी. इसलिए दोनों के बीच खूब लड़ाई होती.मायरा दौड़ कर मेरे घर आ जाती थी.

उस दिन दोपहर का समय था,जोरों की बारिश होने लगी. मैं और विभू रागिनी के घर पे थे. विभू बोला "चलो मायरा दीदी  हम लोग बारिश में नहाते हैं."गर्मी के बाद बारिश से राहत मिल रही थी.पर बच्चे घर में अन्दर आने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मैं उन्हें बुलाने गई तो मायरा ने कहा "ऑन्टी आप भी आजाइये."इस तरह मैं भी उनके साथ शामिल हो गई. होश आया तो सारे कपड़े गीले हो चुके थे.

रागिनी के कोई कपड़े मुझे फिट नहीं आने वाले थे. इसलिये उसने अपनी एक पतली सी पारदर्शी नाइटी दे दी और बोली "अभी ड्रायर में तुम्हारे कपड़े सुखा देती हूँ."

मैं तौलिए से गीले बालों को पोंछ रही थी और बच्चों को डांट रही थी."आज तुम लोगों ने कितना पागलपन कराया है. अगर बुखार आया तो रोहित अंकल जान ले लेंगे."

   उसी समयअचानक सिंह साहब ने घर में प्रवेश किया और वो मुझे अपलक निहारने लगे. रागिनी का चेहरा अपने पति के बदलते हुए भाव भाव को देखकर मुरझा गया.सिंह साहब ने खुद को सम्भाला और अपने कमरे में चले गए." रागिनी तुमने ही ये फ़ालतू सी ड्रेस दी थी मुझे पहनने के लिए मेरी क्या ग़लती है?"

रागिनी बोली "मैंने कुछ कहा तुमको? पर ये मर्द लोग स्त्रियों को देखकर कितनी जल्दी फ़िसल जाते हैं?देखा तुमने."थोड़ी देर बाद  मैं वहाँ से चली आयी.अजीब सी परिस्थिति हो गई थी.


उस रोज के बाद कई दिनों तक रागिनी  मेरे घर नहीं आई मैंने सोचा "भाड़ में जाए रागिनी और उस का पति."किंतु मेरे बिना काम ही नहीं चलता था उन लोगों का. हो सकता है मायरा ने ज़िद की हो.उसके बर्थडे पर हमारे परिवार को फिर से बुलाया गया और हम दोनों में पहले सा बहनापा हो गया था.

रागिनी ने जन्मदिन पर  हीरेऔर पन्ने का नया सेट पहना था. जो कि उसके व्यक्तित्व को और भी गरिमामयी बना रहा था.मैंने घर आकर रोहित से कहा "रागिनी मुझे बड़ी ग्रेसफुल लगती है."

वो बोले "मैं सिर्फ़ अपनी बीवी को देखता हूँ. क्योंकि मेरी शादी हो चुकी है."

"जो चीज़े सिलेबस में नहीं होती उन्हें मैं कभी भी नहीं पढ़ता हूँ."वो हँसे थे.

"मुझे एक डायमंड सेट खरीदना है.जैसा रागिनी ने पहना था."

"ले लेना देखते हैं कितने का है?आगे पीछे कर के ले लेंगें. किन्तु रागिनी जैसा ही क्यों वो कोई पैमाना है क्या?

तुम हर बात में उस फैमिली से इतना मुकाबला क्यों करती हो? हमारा  तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है?

मुझे तो उन लोगों में कुछ भी ख़ास नहीं दिखता है."रोहित नाराज़ हो रहे थे.

हम दोनों एक दूसरे से रूठ गए थे और एक दूसरे की ओर पीठ करके सो गए थे.

आये दिन ऐसी बातें होने लगी थीं. हम दोनों अलग विचारधारा के थे. टकराव स्वाभाविक था.

********

उस दिन सिस्टर नीलम घर आई और बोली"एक बात सच सच बता .डॉ रोहित और तेरे बीच सब ठीक तो है?"

"क्यों क्या हुआ?"

"आजकल उनका व्यवहार बदल सा गया है .शान्त आदमी बात बात पर झुंझलाने लगा है .अब तो स्टाफ़ में भी बात होने लगी है .बॉस घर का गुस्सा हम पर निकाल रहे हैं."

मैं नीलम से झूठ नहीं बोल पायी थी .अपनी गलती स्वीकार कर ली थी मैंने.

"हाँ आजकल हम लोग लड़ रहे हैं ."

"कभी विभू के बारे में सोचा है रूबी?"

"कब तक मैं विभू की ख़ातिर अपने स्वप्नों को तिलांजलि देती रहूँ .मेरे आगे बढ़ने पर विभू और रोहित का भी भला ही होगा."

मैंने उसे सिंह साहब के बारे में बताया "अगर हम अपनी क्लीनिक डाल लेते हैं तो तुम भी हमारे साथ आ सकती हो."

"तूने रागिनी से बात की है."

"नहीं."

"डॉ रोहित से?"

"नहीं आज करुंगी."

"कहीं सिंह साहब तुझे चारा तो नहीं डाल रहे हैं."

"क्यों?"

"इस क्यों का जवाब मुझसे नहीं अपनेआप से पूछ रूबी."

सिस्टर नीलम मुझे उलझा कर चली गई थी .

इन प्रश्नों के उत्तर मुझे नहीं जानने हैं .

जो चल रहा है बस वैसे ही चलता रहे .

रोहित आ गए थे .मैं बहुत उत्साहित थी

रोहित के आगे जब मैंने अपनी क्लीनिक खोलने का ऑफर रखा उन्होंने बिना सोचे समझे रिजेक्ट कर दिया और बोले "तुम देखो आजकल बाजार में डॉक्टर्स खाली बैठे हैं .अब क्लीनिक्स का रिवाज़ नहीं रहा है .सिंह साहब को अपनी ब्लैक मनी कहीं लगानी है.इसलिए उनका कुछ नहीं जा रहा है .मेरी तरफ़ से माफ़ी मांग लेना.सीधा सादा रास्ता चलने की आदत है .डॉक्टर बन कर मेरा उद्देश्य लोगों की सेवा करना और इज़्ज़त से जीवन यापन करना है .बिज़नेस करना नहीं."

बस यही कुछ बातें हैं जो रोहित को सबसे अलग बनाती हैं.

काश !मैं भी रोहित जैसी हो जाती.

"किन खयालों में खोई हुई हो मैडम ?"

रोहित ने मुझे छेड़ा था "आजकल कहाँ दिल लगा लिया है ?कोई और मिल गया क्या ?सच्चा आशिक़ एक ही है तुम्हारा, याद रखना."

मुझे क्यों नहीं याद रहता अब उनकी पसंद नापसंद का मैंने टोमेटो सूप बनाया था तो उसमें चिली फ्लेक्स डाल दिए थे .

रोहित ने हैरानी से मेरी ओर देखा था. कहा कुछ नहीं .

 रोहित सूप छोड़ कर उठ गए थे और फ्रूट्स खाने लगे थे .मैं कैसे भूल गई कि रोहित को जरा भी मिर्च बर्दाश्त नहीं शायद इसलिए कि सिंह साहब खूब तीखा खाते हैं कहते हैं "चाहे हरी हो लाल हो या काली मुझे हर तरह की मिर्च पसन्द है."

*************

कुछ वर्ष और खिसक गए थे .मेरी अंतरंगता सिंह साहब से बढ़ गई वहीं रोहित से दूरी अपनेआप होने लगी.

अजीब बेचैनी होने लगी है मिनट मिनट पर  व्हाट्सएप मैसेज खोलती हूँ. सिंह साहब का गुडमार्निंग मैसेज के साथ एक गीत का वीडियो भी है.बन्द कर देती हूं मैं.कान में ईयरफ़ोन  लगा कर चुपके से सुनती हूँ.दिन में ना जाने कितनी चैट होती है?आजकल रात में सोने से पहले भी उनका गुड नाइट मैसेज आता है और एक फिल्मी गाना भी उस गाने के बोल से मैं खुद को जोड़ती  हूं. अपने लिए उनकी फीलिंग्स  जानना चाहती हूं मुझको यह क्या होता जा रहा है.मुझे खुद नहीं पता क्या सही है क्या गलत?इसकी परिभाषा तय करना और इन दोनों के बीच में जो सूक्ष्म अंतर है उसको जानना.

किसी के लिए भी मुश्किल हो सकता है ये उत्तर और मैं जिसका एकमात्र उद्देश्य बस किसी तरह सफलता की सीढ़ी पर चढ़ना है उसके लिए और भी मुश्किल हो जाता है.

आजकल बातों में कहीं न कहीं सिंह साहब का जिक्र आ ही जाता है. रोहित कुछ कहते नहीं किंतु एक दिन विभू से कह रहे थे कि "हम जिसके बारे में सोचते हैं उसी की बात करते हैं."शायद मुझे सुना रहे थे.

**********

अचानक फ़ोन बज उठा था .माँ का फ़ोन था " रूबी तेरे पापा को सांस नहीं आ रही है."

हाथ से फ़ोन छूट गया था .जैसे बैठी थी वैसे ही घर से निकल पड़ी थी.पीछे से रोहित भी आ गए थे.माँ का बुरा हाल था थोड़ी देर में ही सभी लोग इकट्ठे हो गए थे .

दूर के रिश्तेदार और पुराने दोस्त जिन्हें मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था .अंतिम संस्कार पर सब हाज़िर थे .

कुछ लोग आज ही पूरे जीवन की व्याख्या करना चाहते थे .उनकी उपलब्धियों और दरियादिली की बातें हो रही थीं .

हम बहनों के मुहं दुःख गए थे सबको बताते बताते कि अंतिम समय से पहले पापा ने क्या खाया क्या माँ से कहा था?

माँ बिचारी वैसे ही बेहाल हो रही थी और ये लोग उन्हें दुःखी रखने में कोई कसर नहीं छोड़े थे .

तभी किसी ने कहा "बिचारी के भाग्य में सुख नहीं था .तभी तो एक लड़का हुआ भी थाऔर बचा नहीं."

निश्चित ही मां के बारे में बात थी ."मुझे क्यों नहीं बताया कभी किसी ने कि मेरे एक भाई भी था."

मैंने बड़ी दीदी से पूछा वो बोली "देख रही है ना चाची कितनी गँवार हैं? तू मां को लेकर अंदर जा.मैं इन लोगों को संभालती हूँ."

तभी आवाज आई "वो छोटी गुड़िया कितनी बड़ी हो गई?"

माँ ने मेरी गोद में अपना सिर छुपा लिया था .हम दोनों साथ साथ रो रहे थे.

मैंने मां सेधीरे से अपने को छुड़ाया बैठक में जाकर पापा की पसंदीदा सी.डी.लगा दी थी .

लोगों की गॉसिप बंद हो गई थी .

कबीर वाणी गूंज रही थी .

लंबा मारग, दूरि पथ ,विकट पंथ ,बहु मार ।

कहो संतो, क्यों पाइये ,दुर्लभ हरि -दीदार ।।

एक के बाद एक दोहे बज रहे थे लोग शांत हो गए थे.थोड़ी देर में पापा की तस्वीर को प्रणाम करके अपने अपने घर जाने लगे थे.अब हम सबको राहत महसूस हुई थी.


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जब से पापा गए हैं कुछ करने को मन नहीं करता है.रोहित मेरा ख़याल रखते हैं .सिस्टर नीलम विभू को देख रही हैं.रागिनी और सिंह साहब भी आये थे .

हर बार की तरह वो आज भी करीने से बँधी हुई साड़ी में किसी चित्रकार की बनाई हुई  सुन्दर कलाकृति  सी लग रही थी. उसने मुझे गले से लगाया. चुपचाप बैठी रही.रागिनी बस एक ही बार आयी उसके बाद फ़िर नहीं आई. स्त्रियों के पास सिक्स्थ सेंस होता है.अपने चारों ओर का ख़तरा बड़ी जल्दी पहचान लेती हैं.

रोहित अपने काम में मशगूल हो गए थे .मेरी उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे कि मेरे पास शहर के एन जी ओ के प्रेसिडेंट का प्रस्ताव आया कि मैं उनकी ब्रांड एंबेसेडर बन जाऊं. मैं राजी हो गई थी .जब फ़ोटो शूट कराने पहुंची तो बातों बातों में पता चला मेरे नाम का प्रस्ताव सिंह साहब ने रखा है .

एक बार फ़िर उनसे सामना हो गया था .उनके एहसानों का बदला कैसे चुकाऊंगी मुझे पता नहीं था.

अब हमारा मिलना जुलना बढ़ने लगा था. मेरा संकोच दूर होने लगा और अब हमअपने घर की बातें, अपनी पसन्द नापसंद की बातें एक दूसरे से करने लगे.

हम दोनों की रुचियाँ काफ़ी मेल खाती थीं.पहले विभू और मायरा की बातें होती थी. बाद में रोहित और रागिनी की बातें होने लगी मैंने उनसे कहा था कि मैं रागिनी के स्टाइलऔर घर के रखरखाव से बेहद प्रभावित हूं वह मुस्कुरा दिए और बोले "घर को सजाना एक बात होती है और घर को घर बनाना दूसरी बात .रागिनी का झुकाव आज भी अपने मायके की ओर है .कभी भी ऐसा नहीं हुआ जब वह मायरा की छुट्टियों में मायके न गई हो.हर वर्ष दो-तीन महीने मुझे अकेले ही गुजारने पड़ते हैं.अब तो मायरा भी तेरह वर्ष की होने को आई है."

" आप कुछ कहते नहीं?"

" क्या कहूंगा ?अकेली लड़की है रागिनी माँ बाप की लाड़ली और यह जो हमारी गृह सज्जा देख रही हैं. सब उसके माता-पिता की ही कृपा है."

ऐसे में मैं संकुचित हो उठती हूं. मुझे अपने माता-पिता का घर याद आ जाता है. मैं नहीं चाहती कि कोई हमारे घर की बात करे. जबकि माँ पापा दोनों की आँखों का तारा हूँ मैं.

एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया "डॉक्टर रोहित कहां से हैं ?"और जब मैंने रोहित के परिवार का जिक्र किया तो वह हैरानी से बोल पड़े थे."अच्छा !तभी डॉ रोहित इतने सौम्य हैं .जितना फलदार वृक्ष उतना झुका हुआ होता है .सही कहावत है."

"हम लोग तो गांव की पृष्ठभूमि से हैं.पढ़ने में अच्छे थे सो सिविल इंजीनयर बन गए. बाद में ससुराल की सम्पत्ति मिल गई.रागिनी मेरे माता पिता को बर्दाश्त नहीं कर पाती है. गाँव के जो ठहरे, मैं ही कभी कभी गाँव चला जाता हूँ."सिंह साहब ने कहा था .

मेरे मुंह पर जैसे कोई बात आते-आते रह गई थी पर मैं चुप हो गई . अपने आप को संभाल लिया था .

रोहित को मेरे घर से बाहर रहने से मेरे काम से कोई एतराज नहीं था,लेकिन वह विभू को उपेक्षित होता नहीं देख सकते थे.इसलिये घर पर एक नौकर रख लिया गया .अब हमारे संवाद और कम हो गए थे .

रोहित को फ़िश के बिना खाना अच्छा नहीं लगता लेकिन कितने दिन हो गए मैं वेजीटेरियन खाना बनवाकर जल्दी से घर से निकल जाती हूं. मेरे इस बदलाव पर छोटे से  विभू  ने ध्यान दिया था और मैं भी चकित रह गई थी .एक छत के नीचे रहते हुए एक बिस्तर पर मुहँ फेर कर सोते हुए हम दोनों पति पत्नी अजनबी होते जा रहे हैं. जिसका प्रभाव हमारी दैनिक दिनचर्या पर पड़ा है .हास्य ,चुहल सब गायब हो गई है.लगता है दो अजनबियों का घर है. हाँ अच्छे पैसे कमाने का जुगाड़ अवश्य होता दिख रहा है.

**********


मैं सिंह साहब के प्रभाव में इस कदर आयी थी कि मैंने अपनी मर्यादा को ताक़ पर रख दिया .उनके रूप में मैंने अपनी पसंद का पुरुष प्राप्त कर लिया था .उनके साथ शहर के बाहर भी जाना शुरू कर दिया था.मेरी वजह से उनको नए प्रोजेक्ट मिल रहे थे.उनके अनुसार मैं उनकी बिज़नेस मीटिंग्स के लिए उपयुक्त थी.

उन्होंने वादा निभाया नये बिज़नेस में फ़िफ़्टी की पार्टनरशिप थी मेरी.

"जब से तुम मेरे जीवन में आई हो रूबी मानो लक्ष्मी स्वयं आ गई हों."

ऐसे ही किसी दिन मैंने उनसे पूछ लिया था "आपने मुझे कैसे चुना?आप मुझ पर इतने कृपालु क्यों हो गए ?"

वो बोले "एक जबरजस्त आकर्षण महसूस करता हूँ. जब तुम्हें पहली बार देखा था तब से वैसा जैसा कभी किसी के लिए नहीं महसूस किया."

ऐसी बातों से मैं आनंदित हो जाती थी.

हम लोग  दिन पर दिन खुल रहे थे और एक दूसरे की आदत बनते जा रहे थे.जब भी समय मिलता दूसरों की नज़रों से ओझल हो आनन्द मना लेते. उनकी नज़रों में मैं एक अप्सरा थी.वो मेरी हर छोटी बड़ी चीज़ में दिलचस्पी लेते. मुझे ज़मीन से उठा कर आसमान पर बैठा दिया था.

समय तेज़ी से भाग रहा था.

सिंह साहब के अनुसार पहले मैं पिंजरे में बंद चिड़िया थी .जो पिंजरा खुलने पर भी उड़ने को तैयार न थी .

मैंने शरारत से पूछा

"आप क्या हैं?"

"मैं वो शिकारी हूँ. जिसका शिकार एक चिड़िया ने किया है."

मेरे कान कुछ और सुनने को तरस रहे थे .मैं चाहती थी कि वे अपने प्रेम का इज़हार करें. वो प्रेम जो मैं बरसों से उनकी आंखों में देखती आयी हूँ.

"क्या ये प्रेम है ?"

"प्रेम शब्द का बड़ा दुरुपयोग होते देखा है मैंने." वो बोले "लेकिन वर्षो से जिस एक संबंध के प्रति आकर्षित हूँ. अगर इसे तुम प्रेम की परिभाषा में फ़िट करना चाहो तो कर सकती हो ."

"आप मेरे लिए क्या कर सकते हैं ?"

"कभी आजमा लेना."

"जहां आजमाइश हो वो संबंध ही क्या?"

"सुन्दरता के साथ समझदारी भी है तुम्हारे पास."वो मेरे करीब खिसक आये थे.

मैंने पूछा "मुझसे शादी करेंगें."

मानो बिजली के तार से झटका लग गया हो .

वो बोले "ये कैसी बात कर रही हो?क्या हो गया है तुम्हें?"

मेरा चेहरा निस्तेज हो गया था.

**************

आज रात नींद नहीं आ रही थी .दिमाग़ में सिंह साहब की बातें गूंजने लगी थीं .

"रूबी तुम इतनी नासमझ नहीं हो .हम लोग एक दूसरे के साथ अपनी खुशी से हैं. मैंने कभी भी जबरजस्ती या धोखे से तुम्हें प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया है,किन्तु परिवार के प्रति समाज के प्रति मेरे कर्तव्य हैं.उनको अनदेखा कर दूंगा तुमने ऐसा कैसे सोच लिया?"

"और मैं.....मेरा क्या होगा?"

"क्या कमी है तुम्हें?"

"नाम शोहरत पैसा सब मुहैय्या करा रहा हूँ ."

"मैंने कभी कहा कि डॉक्टर को छोड़ दो."

"हमारे रिश्ते का क्या नाम है ?"मैंने पूछा

"बस रूबी बस !"वो मुझे चुप करने का प्रयास कर रहे थे.जब मेरे आंसू बहने लगे उन्होंने मुझे अपने आगोश में ले लियाऔर अपने होठों से आँसुओ को पोंछते हुए कहा ."इन आँखों में चमक देखना चाहता हूं .आंसू नहीं.सॉरी !!हम कोई ना कोई रास्ता निकालेंगे, बस मायरा को समझदार हो जाने दो."मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा था.चाहती थी धरती फट जाए और उसमें गड़ जाऊं .

***********

रोहित शालीन थे शरीफ थे. इसीलिए उन्होंने घर के हालात काबू से बाहर जाते देखकर एक फैसला लिया और समय मिलते ही हैदराबाद के अस्पताल में अपना तबादला करा लिया. वह चाहते थे कि विभू को भी अपने साथ ही ले जाएं किंतु उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे विभू को यह साल पूरा करा कर बाद में हैदराबाद आ जाना चाहिए .मुझे रोना आ रहा था रोहित को विदा करते हुए .क्योंकि मुझे कहीं ना कहीं पता था कि मैं रोहित के साथ नहीं जाऊंगी .विभू को उनके पास भेजना है या नहीं यह फैसला समय को करना था .

हम अक्सर सोचते हैं कि चीजें हमारे हाथ में है किंतु ऐसा होता नहीं है और फिर ऊपर वाले का फैसला हमारी सोच से बहुत अलग होता है .यह मैंने बाद में जाना था अभी भी किस्मत के कुछ रंग देखने बचे थे.

अभी अभी रोहित का भेजा पार्सल उत्सुकता से खोला.बहुत सारे पत्र हैं एक एक कर पढ़ना शुरू किया है सर चकरा गया है .

पापा को किसी महिला ने ये पत्र लिखे हैं .साथ ही उनकी प्रॉपर्टी के कागज़ात भी हैं .सब कुछ मेरे नाम है .

"पापा माँ आपने इतना बड़ा सच मुझसे छुपाया मैं आपकी बेटी ही नहीं थी."मेरी जन्मदात्री मुझे अस्पताल में जन्म देकर छोड़ कर भाग गई थी,और माँ ने अपने मृत पुत्र के स्थान पर मुझे ईश्वर का वरदान समझ कर अपने सीने से लगा लिया था. कभी भी किसी ने ये राज़ जाहिर नहीं होने दिया था.

मेरी बहनें जो मुझे गुड़िया की तरह पाल रही थीं.कभी किसी के मन में विचार न आया होगा ये लड़की कहाँ से आ गई हमारा हिस्सा मारने .

आज समझ आया था कितनी बड़ी हतभागिनी हूँ.

मैं आगे पत्र पढ़ती हूँ मेरी जन्मदात्री के कोई सन्तान नहीं हुई थी .उन्होंने कुछ समय पहले अपने पति को सब बता दिया था .इसलिये ज़मीन का हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया है.इसी शहर के नामी बिज़नेस मेन हैं वे लोग.

मेरे पापा की मृत्यु के बाद किसी दिन माँ ने रोहित को ये पेपर्स सौंपे थे ,या पापा ने मेरे विवाह पर ही रोहित को दे दिए थे. अब इन बातों का कोई अर्थ नहीं है .पर मन को मथ रही थीं ये बातें.

"रोहित तुमको कब से ये सब पता था?"

ये सब बातें अब रहस्य ही रहने वाली थीं .

अब मैं किसी से कुछ पूछने के लायक नहीं रही थी.

जिस दौलत के लिए दौड़ रही थी .एकअदना से लिफ़ाफ़े में बन्द मुझे मुहँ चिढ़ा रही थी .

मैं उठी और उसअलमारी की ओर बढ़ी जहां रोहित दवाइयां और इंजेक्शन्स रखते थे .सोचा एक इंजेक्शन ले लूं और चैन की नींद सो जाऊं .बहुत ढूंढा ना नींद की गोली मिली ना ही दर्दनिवारक इंजेक्शन.

सिस्टर नीलम को फ़ोन किया "जल्दी आओ."

उसने मेरी टाँग से गाउन उठाकर देखा तो घबरा कर चिल्ला उठी ."मरने की ठान ली है.कब से इंजेक्शन ले रही है?

क्या बताती उसे जब से सिंह साहब जीवन में आये हैं.मैं बिना नशे के सो नहीं पाती हूँ .

सिस्टर नीलम की बड़बड़ चालू थी

"घाव हो गए हैं.सेप्टीसीमिया हो जाएगा .रूबी मिनटों में चलती बनेगी इस दुनिया से ."

अब सिंह साहब से मिलने की इच्छा नहीं होती है. उनका फ़ोन आता है, मेरी फ़िक्र करते हैं पर मैं किसी बहाने फ़ोन रख देती हूँ. आजकल अपने आप इंजेक्शन लेने लगी हूँ. नशे की आदत होती जा रही है.कई मेडिकल स्टोर वाले दवा देने से मना भी करने लगे हैं. पेट में आग सी लग जाती है तब. दर्द सहा नहीं जाता है.

अब कुछ याद नहीं रहता है, रोहित का फ़ोन आया या नहीं  , विभू ने होम वर्क किया या नहीं.

जब सिस्टर नीलम मुझे रीहैब सेंटर ले जाना चाहती है.तब मुझमें जीने की उमंग जाग जाती है. अन्यथा बिस्तर में गुड़ी मुड़ी पड़े रहना ही मेरे जीवन का अंग होता जा रहा है.

मैं नींद के आगोश में हूँ किसी स्वप्न में खो जाती हूं देखती हूं मिशेल ओबामा और मिसेज़ बुश व्हाइट हाउस में बैठे हैं.

मिसेज़ बुश मिशेल से कह रही हैं "बेशक हमारे पतियों में आपस में मतभेद हों लेकिन मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं तुम यहाँ पर जो समय बिताओगी वो अद्भुत होगा."

मिशेल मुस्कुराती है

"मुझे आज याद आ रहा है जब मैं पहली बार अपने पति के साथ व्हाइट हाउस में प्रवेश कर रही थी तब मेरा स्वागत जिस तरह से हुआ था, ठीक उसी तरह से मैं आज तुम्हारा स्वागत करना चाहती हूं."

मिसेज़ बुश अपनी बेटी से कह रही हैं "जाओ इन छोटी बच्चियों को ले जाओ और इनके कमरे दिखा दो."

"मिशेल कल से तुम्हारे बच्चे जेड सिक्योरिटी के साथ स्कूल जाएंगे."

मिशेल खुश है लेकिन घबरा रही है.

( दृश्य बदल जाता है)

मायराआ जाती है वो बड़ी हो गई है .उसके हाथों में मेहंदी लगी है ."आंटी आपने हमारे साथ ऐसा क्यों किया आप तो मेरीआंटी थी ना मैं विभू को राखी बांधती थी. आपने उसकी भी लाज नहीं रखी . आपकी वजह से मम्मी पापा आपस में बात नहीं करते हैं.हमारी फैमिली लाइफ पूरी तरह से बर्बाद हो गई है .आंटी मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी."

मैं अपने कानों पर उंगली में रख लेती हूं मेरे सामने एक एक करके रोहित विभू मायरा और रागिनी चारों ओर चक्कर लगाने लगते हैं मेरा सर चकरा रहा है...... मैं नींद में सो जाना चाहती हूं पापा याद आने लगते हैं "पापा मुझे आपके पास आना है मैं यहां पर अपने सपने पूरा करते-करते थक चुकी हूँ कितनी भी कोशिश करती हूं चांद मेरे हाथ नहीं आता.पापा मेरे हाथ बहुत छोटे हैं."

पापा की दी हुई कबीर वाणी बज रही है मेरे कानों में

माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।

आसा त्रिषणा ना मुई ,यों कहि गया कबीर।।

विभू रो रहा है ,रोहित को फ़ोन कर रहा है .रोहित सिस्टर को फ़ोन पर समझाते हैं हार्ट पम्प करो सिस्टर नीलम बेकार की कोशिश में लगी है पर मेरा जागने का मन नहीं करता है.लगता है चिरनिद्रा इसी को कहते हैं.....

समाप्त

चाँद और छोटा सा हाथ

Sunday, January 10, 2021

चाँद और छोटा सा हाथ 

++++++


रोहित के साथ  घूमते फ़िरते हुए कुछ महीने और गुज़र गए. किन्तु वो मुद्दे की बात पर नहीं आये.

मुझमें अब  सब्र नहीं रहा था.

मैंने कहा "माँ भी अब काम छोड़ना चाहती हैं.सबसे बड़ी दीदी के पास जाना चाहती हैं. उन दोनों को बस मेरी ही फ़िक्र इस शहर में रोके हुए है.उस सीलन भरे घर का किराया बढ़ता ही जा रहा है."

हुँ अ हुँ....

"सब समझ रहा हूँ.लेकिन तुमसे जो कहना चाहता हूँ डरता हूँ पता नहीं उसको सुनने के बाद तुम क्या निर्णय लोगी?"

"ऐसा क्या है?"मन ने शंकाओं की नागफनी खड़ी कर ली. मेरा चेहरा सूख गया था.

रोहित ने कहा "हर व्यक्ति का एक अतीत होता है. कई बार हमें अपने माता पिता, या अन्य रिश्तेदारों  के कर्मों के फल भी भोगने पड़ते हैं. चाह कर भी कोई कहाँ बच पाता है."

"ये जो मेरे दादू हैं ना दरअसल वो ही मेरे पापा हैं. "

उनकी आवाज़ का दर्द मुझ तक आ गया था. वो अपनी होने वाली पत्नी को धोखे या फ़रेब में नहीं रखना चाहते थे.

इतना बड़ा रहस्योद्धघाटन करने के लिए उन्होंने करीब दो वर्ष का समय ले लिया था. अब तक पूरे मेडिकल कॉलेज को हमारे रिश्ते की  हवा लग चुकी थी.


सच पूछो तो उन्होंने मुझे ठगा था. एक मिनट में प्रेम की हवा फुस्स हो गई. अलग अलग विचार आने लगे.

समझ आ गई अपनी औकात, इसीलिये डॉक्टर साथी लड़कियों को छोड़कर मुझ जैसी गरीब लड़की को फंसाया है.रोहित का चेहरा निस्तेज था. वो बोले "तुम्हारे जैसी चारित्रिक मूल्यों वाले परिवार की लड़की को देखकर मेरा मन तुम पर आ गया था.मुझे सम्बन्धों में पारदर्शिता पसन्द है. मैं तुमको धोखे में नहीं रख सकता हूँ."

मुझे लगा मैं चक्कर खा कर गिर पड़ूँगी. डॉ रोहित की सच्चाई ने मेरा हर स्वप्न तोड़ दिया था. पापा सुनेंगे तो कभी राज़ी नहीं होंगें.मुझे पूरा यकीन था.

उधर मेरे मनोभावो को समझे बिना रोहित कह रहे थे 

"मेरी माँ को ग़लत नहीं समझना. उनके घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं थी. उनकी मजबूरी का ग़लत फायदा उठाया गया है.जब मेरे जन्म की सुगबुगाहट हुई तो पापा ने अपना नाम मुझे देने के लिए मम्मी से शादी कर ली थी.दरअसल वो मेरी दादी से बहुत प्यार करते थे."

रोहित कह रहे थे.पापा यानि कि दादू के बेटे.(एक हिसाब से रोहित के सौतेले भाई मैंने मन ही मन में सोचा )

"आपके पापा सारी उम्र ये राज़ छुपाए रहे.उन्होंने दूसरी शादी नहीं की." मैंने पूछ लिया हालांकि इस समय मुझे ये प्रश्न पूछना नहीं चाहिए था, मैं जानती थी पर पूछ ही लिया.

"नहीं शादी नहीं की लेकिन उनकी लाइफ़ में कोई और है."रोहित ने कहा "मेरी मॉम से उनका रिश्ता दिखावे का है."

"मेरे घर में कोई किसी के लिए लॉयल नहीं है."

"आपको ये सब कब पता चला?"मैं पूछना चाहती थी. पर आवाज़ नहीं निकल रही थी.

रोहित ने ख़ुद ही बताया "सभी फैक्ट्री वर्कर्स ये बातें करते थे. बचपन में मैंने सुना था.मुझे बहुत बुरा लगता था. ऐसा लगता था पागल हो जाऊंगा. इसलिये ख़ुद को पढ़ाई में झोंक दिया.मुझे छोटी उम्र में ही छात्रावास भेज दिया गया था."

"हो सकता है जो आपने सुना है उसमें सच्चाई ना हो." मैंने कहा था.

रोहित ने कहा "सुनी हुई बातें झूठ हो सकती हैं किन्तु कई बार मैंने अपनी आँखों से....."वो आगे ना बोल कर चुप हो गए थे.

इतनी देर में मैंने ख़ुद को संभाल लिया था अब मैं दिल से रोहित के लिए दुःखी थी.

इन अमीरजादों के तो दुःख ही अजीब हैं. रोहित को उस शाम मैंने खाना खिलाया क्योंकि मुझे पता था आज अकेले वो कुछ ना खा पाएंगे.बाद में वो घर चले गए और मैं सिस्टर नीलम के घर की ओर दौड़ पड़ी.

सोचा था उन्हें अपना दुखड़ा सुनाऊंगी किन्तु सिस्टर नीलम  पेट के दर्द के कारण तड़प रही थी.

मुझे देखकर उन्हें जैसे तसल्ली आ गई मेरे हाथ में सिरिंजऔर इंजेक्शन पकड़ाते हुए उन्होंने मुझसे कहा रूबी "प्लीज़ ये दर्दनिवारक  इंजक्शन लगा दो."

"सिस्टर!आप दर्द के शुरू होते ही दवा क्यों नहीं खा लेती हैं?"

"पहले मुझे इंजेक्शन दो. बात मत करो. बहुत दर्द है."

वो बोली "अगर इंजेक्शन नहीं लूंगी तो उल्टियां करती नज़र आऊंगी, कम से कम चैन की नींद सो जाऊँगी."

मैंने चुपचाप उनको इंजेक्शन देने के दस मिनट बाद एक लम्बा लेक्चर दिया कि "जब दवा खाने से काम चल रहा है.इतनी हेवी डोज़ के इंजेक्शन क्यों लेती हो."

वो बोली "खाली पेट में नहीं शरीर के हर अंग में दर्द है.

"शुक्रिया!!रूबी."थोड़ी देर में नीलम खर्राटे भरने लगी थी, मैं अपने दुखों के साथ फिर अकेली थी.मुझे अपनी दुनिया घूमती हुई लगी थी.

+++++++

मुसीबत में आज पापा की बहुत याद आयी. घड़ी देखी रात के नौ बजे थे. ये उनके पसंदीदा टी वी शो का वक्त था. मैं पापा की भेजी हुई  "कबीर वाणी" सुनने लगी .कानों में ईयर फ़ोन लगा लिए थे. मोबाइल बिस्तर के किनारे रख दिया था. 

आज एक एक दोहे का अर्थ दिल को भेद रहा था.

" पतिबरता मैली भली,गले कांच की पोत।

सब सखियां में यों दिपे, ज्यों रवि ससि की जोत ।।"

ईयर फ़ोन फ़ेंक दिया ,और बैठकर आँसू बहा लिए. रोने से जी हल्का हो जाता है. रो धो कर सो गई मैं. अगले दिन मैंने छुट्टी ले ली और पापा से मिलने घर जा पहुंची.

माँ चाय बना रही थीं, पापा धूप में अख़बार पढ़ रहे थे. मेरी सूजी आँखें देखकर मुझसे बोले "चल बाहर पार्क में टहल कर आते हैं."

"सुनो!दरवाज़ा बंद कर लेना. रूबी के साथ घूमने के बाद चाय पियूँगा."

"क्या हुआ है? सुबह सुबह आज घर क्यों आ गई? और रोई क्यों तुम?"

पापा ने पूछा तो मैंने रोहित से हुआ सारा वार्तालाप बता दिया.

पापा ने कहा "किसी और को भी बताया है तुमने?"

"नहीं."

"अच्छा किया.किसी ने आपके ऊपर विश्वास किया है उसकी लाज रखनी चाहिए."

"आप क्या कहते हैं मुझे रोहित से अपनी दोस्ती ख़त्म कर आगे बढ़ जाना चाहिए."

"हर व्यक्ति के लिए ऐसी बातें अलग-अलग महत्व की होती हैं. ये तुम पर डिपेंड करता है कि तुम्हारे लिए रोहित इम्पोर्टेन्ट है या उसकी फैमिली हिस्ट्री."

"पापा मैं सारी रात रोती रही हूँ."

पापा ने कहा "अपने माता पिता को चूज़ करना किसी के हाथ में नहीं है, इसलिये रोहित को मैं दोषी नहीं समझता हूँ."

मेरी बड़ी मुश्किल को उन्होंने दो मिनट में हल कर दिया था. मैंने घड़ी देखी अभी नौ बजे थे. अगर मैं चाहूँ तो अभी भी टाइम पर लैब पहुँच सकती थी.

मैंने तुरन्त एक ऑटोरिक्शा को रोका और पापा से कहा "मैं संडे घर आऊंगी, अभी चलती हूँ."

पापा ने कहा "ठीक है मैं इंतज़ार करूँगा."

"आई लव यू!पापा."

मैं उनके सीने से लग गई और उनसे जुदा होकर सीधी ऑटो में जा बैठी.

अगले हफ़्ते ही मैंने और रोहित ने कोर्ट में विवाह के लिए अर्जी दे दीथी  और एक महीने बाद पापा, माँ,सिस्टर नीलम और डॉक्टर माथुर की उपस्थिति में हस्ताक्षर करने के बाद एक दूसरे को माला पहना कर हम पति पत्नी बन गए थे.

रोहित ने अपने घर में किसी को इन्फॉर्म नहीं किया था.

शाम को वीडिओकॉल कर अपनी माँ से मेरी बात कराई थी.

ढेरों आशीर्वाद के साथ वो बोली थी "मेरे बच्चे का ख़याल रखना. बहुत भावुक है. मुँह से कुछ नहीं कहता है पर दिल पे ले लेता है."

जी ऑन्टी जी!

"ऑन्टी नहीं माँ कहो."उनके स्वर के अपनेपन से मैं भीग गई थी.

रोहित से मैंने कई बार कहा मुझे माँ से मिला दें वो बोले "तुमको शान्ति से रहने में क्या तकलीफ़ है?"

"मैं तुम्हें जब ठीक समझूंगा अपने आप घर ले चलूँगा."

हमारा जीवन बहुत खुशहाल था.मैं अपना छोटा सा क्वार्टर छोड़ कर रोहित के बंगलेनुमा बड़े से ऑफिसर्स क्वार्टर में आ गई थी.अब भी अपने काम पर जा रही थी.

सुबह की चाय रोहित बनाते थे. हमेशा एक से स्वाद की कड़क और कम चीनी वाली . उसके बाद झटपट घर के काम निबटाकर मैं जब घर से निकलती रोहित की आँखों में तरलता देख कर भाव विभोर हो जाती थी.

इस हीरे के समान दिल वाले को छोड़ने की कल्पना भी कैसे कर बैठी थी मैं?

वो मेरे जीवन के सुहाने पल थे.इसी बीच मेरे अंदर एक नन्हें जीव का अंकुरण हो चुका था , रोहित के अनुसार मुझे काम से थोड़े दिनों का ब्रेक लेना चाहिए.

 "कुछ भी हो मायक्रोबायलोजी लैब में इन्फेक्शन का डर बना रहता है रूबी!"

"मैं अच्छा कमा रहा हूँ. तुम कहो तो पहली तारीख को तुम्हारे अकाउंट में तुम्हारी तनख्वाह जितने पैसे ट्रांसफर कर दूंगा."वो हँस कर बोले ही नहीं बल्कि उन्होंने ऐसा ही किया भी.

जल्द ही मैं एक प्यारे से बच्चे की माँ बन गई थी.

रोहित को उनका संसार मिल गया था.वो बोले "हम लोग कहीं दूर चलेंगे."

मैंने कहा "कहाँ"

वो बोले "जहाँ कहो बस यहाँ नहीं रहना है."

"जहाँ बच्चे की अच्छी एजुकेशन हो. "

"न्यूज़ीलैंड चलोगी."

"यहाँ सब कुछ छोड़कर?"

" माँ पापा को भी बुला लेंगें."रोहित ने कहा तो मैंने उनके कंधे पर सिर रख दिया "तब जहाँ ले चलना हो चलिए."

उस रोज़ हम दोनों ने कहीं बाहर जाकर खाने का प्लान किया था कि बीच रास्ते में हमारी कार खराब हो गई थी. बेटा रोने लगा था"मम्मा पानी."मैंने उसको पानी पिलाना चाहा लेकिन बहुत ठंडा था. उसका गला बहुत जल्दी ख़राब हो जाता था. इसलिये मैंने बिना सोचे समझे एक बँगले के द्वार पर लगी घंटी बजा दी थी.

दरवाज़ा एक सुदर्शन पुरुष ने खोला था.

जिसे देख कर एक पल को मैं भूल गई थी मुझे क्या काम है.जब अपने होश में आयी  मैंने उन्हें बताया कि हमारी कार ख़राब हो गई है. वो मुझे अंदर बुला लाये और अपनी पत्नी रागिनी को आवाज़ दी "देखो घर में मेहमान आये हैं."

जब तक कार मकैनिक आया मैं और रोहित उनके ड्राइंगरूम में बैठे रहे.

इत्तिफ़ाक़ की बात वो लोग रोहित के शहर से ही थे. उनके घर की भव्यता और फर्नीचर ने मेरा मन मोह लिया था.

मैंने घर आकर रोहित से कहा भी. वो बोले "सब कुछ "गांगुली एन्ड संस"से खरीदा है."

मैंने कहा "हमलोग क्यों नहीं कभी घर चलते हैं."मेरे अंदर की इच्छाएं उस आलीशान घर को देख कर जाग उठी थीं.

अपने बच्चे का बेहतर भविष्य भी "गांगुली एन्ड संस" से जुड़कर ही बनाया जा सकता था.

उस दिन पहली बार मेरे और रोहित के बीच में लड़ाई हुई और हमारी बोलचाल बंद हो गई.

उसके बाद अक्सर हमलोग किसी ना किसी बात पर उलझ जाते थे. रोहित ने मुझे समझाया वो मेरी हर ख्वाहिश पूरी करेंगे. अपने बेटे को बड़ा करने के लिए उनके पास पर्याप्त व्यवस्था और प्लानिंग है. मेरा कहना था कि मैं चाहती हूँ बच्चा रिश्तों को पहचाने. (जबकि मेरे मन में सम्पत्ति का लालच था)कल को बड़ा होगा तरह तरह के सवाल करेगा.

मेरे रोज़ रोज़ के वहमों की  वजह से रोहित ने न्यूज़ीलैण्ड, और दुबई दोनों जगह नौकरी ढूंढ़ना प्रारम्भ कर दिया था.

बेटे के होने के बाद मैंने नौकरी नहीं की. अब धीरे धीरे खाली वक्त में बोरियत सी होने लगी थी. इसलिये डान्स क्लास ज्वाइन कर ली थी. डिलीवरी के बाद बाहर निकला हुआ पेट फ़िर से अंदर आ गया था.

यहीं मेरी मुलाक़ात दोबारा रागिनी से हुई. वो अपनी बच्ची मायरा  को डांस क्लास में लाती थी.अब हमारे बीच मित्रता बढ़ने लगी थी. उस स्त्री से सीखने को बहुत कुछ था. यद्यपि साधारण नयन नख्श की स्त्री थी. किन्तु चेहरे का  आभामंडल आकर्षित  करता रहता था.हमेशा करीने से बांधी हुई साड़ी, तन पर हीरे उसकी सुरुचिऔर सम्पन्नता को दर्शाते थे.

 सच पूछिए तो मुझे रागिनी भा गई थी. मैं उससे पूछ पूछ कर अपनी कच्ची गृहस्थी को संवारने का प्रयास करने लगी थी. अच्छी बात यह हुई उन लोगों ने मेडिकल कॉलेज के साथ हीलगा हुआ एक बड़ा प्लॉट खरीद कर मकान बनाना शुरू कर दिया था.

हमारे आउट हाउस में वे अपने सीमेंट के बोरे रखने की सोच  रहे थे तो रोहित ने कहा "संकोच कैसा आपका ही घर है."

स्त्रियों और पुरुषों में एक बड़ा अन्तर पाया जाता है. स्त्रियाँ अपने मन की बातें एक अन्य स्त्री से आराम से कर लेती हैं. अपने पति के बारे में भी अगर वो खुल जाएं तो उन्हें कुछ भी बताने में संकोच नहीं होता है. जबकि पुरुषों के लिए दूसरे मित्र की पत्नी भाभीजी ही रहती है.

रागिनी के मकान की नींव के साथ रखी मेरी और उसकी मित्रता भी गाढ़ी होती जा रही थी.मेरे और रोहित के बीच का तनाव कम होता जा रहा था.अब हम लोग मिलकर कभी पिकनिक मनाने जाते कभी ताश खेलने बैठ जाते थे. मुझे कोट पीस ही खेलना आता था सो अक्सर वही खेला जाता था. जब रोहित की अस्पताल से कॉल आ जाती वो चले जाते थे. ऐसे में तीन, दो, पांच की पत्ती जमती थी.

उस दिन मैं चाय बनाते हुए गुनगुना रही थी

"मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर।

तेरा तुझको सौंपता, क्या लागे है मोर।।"

रागिनी के पति कब पीछे से आकर खड़े हो गए और बोले "डॉ रोहित बड़े लकी हैं. आप उनके लिए कितना सुन्दर गीत गुनगुना रही हैं."

मैंने कहा "ये "कबीर वाणी" का दोहा है और मैं ईश्वर के लिए गा रही हूँ. बस उस दिन ईश्वर, आराधना, कबीर पर चर्चा छिड़ी तो रात के नौ बज गए.

समय इतनी सुन्दर चर्चा में कहाँ बीत गया मुझे पता नहीं चला.उनको कबीर के बहुत से दोहे याद थे, और सुरों पर ऐसी पकड़ थी क्या बताऊँ? रागिनी से ईर्ष्या हो उठी. मैंने उससे कहा भी "भैया तो कमाल का गाना गाते हैं, और क्या क्या कलाएं छुपी हुई हैं बताओ हमें भी."

वो बोली "अपने बच्चे और दूसरों के पति सबको अच्छे लगते हैं"...


शेष फ़िर....प्रीति मिश्रा

चाँद और छोटा सा हाथ

चाँद और छोटा सा  हाथ 

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भाग 1


 आज अपने को इतनाशक्तिहीन पा रही हूं  कि सारा दिनसे  बस बिस्तर में गड्ड मड्ड हो लेटी हुई हूं.

ऐसा भी दिन आएगा कभी मैंने जीवन में सोचा नहीं था.कुछ देर पहले तक मैं पूर्ण आत्मविश्वास से भरी हुई थी.अभी डाकिया एक  पुरानी डाक दे गया है.एक नोट लिखा है  "मिसेज रूबी गांगुली आपका यह पार्सल कई दिनों बाद आप तक पहुंच रहा है. इसका हमें अफसोस है."

ऐसा भी होता है वह भी हमारे देश में,  यकीन नहीं आता कोई और दिन होता तो मैं हंसती,किंतु आज लिफ़ाफ़ा खोलते ही मानो सारा जीवन दर्पण से झाँकने लगा है."मिसेज़ गांगुली"शब्द ने वर्तमान से उठाकर अतीत में पटक दिया है.याद आ गया है गुज़रा ज़माना,जब मैं रूबी सक्सेना से मिसेज़ गांगुली बनी थी.रोहित और मैं अपनी मित्रता से कब प्रेम की डगर पर जा पहुंचे पता नहीं चला. मानो हर घटना को दैवीय शक्ति दिशा निर्देश दे रही थी.

एम.एस.सी.माइक्रोबायोलॉजी करने के बाद मुझे  मेडिकल कॉलेज में लैब टेक्निशियन का पद मिलना हमारे परिवार के लिए मायने रखता था.

ये एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज था. रोहित भी यहाँ  चिकित्सक थे.

जब भी किसी मरीज़ की रिपोर्ट देखनी होती वो अपने चेम्बर से उठकर मेरे लैब में चलकर आ जाते थे.कोई ना कोई निर्देश देते और बस बाहर निकल जाते थे.

उस दिन मुझसे एक मरीज़ अपनी रिपोर्ट के लिए उलझ रहा था.मैंने उसे समझाया था "ये माइक्रोबायलॉजी लैब है यहाँ कल्चर को इनक्यूबेशन में  48 से 72 घंटे तक रखते हैं तब जाकर रिपोर्ट मिलती है."

"सिर्फ़ इसी रिपोर्ट के इंतज़ार में हम अपनी अम्मा को दिखा नहीं पा रहे हैं."वो अधीर हो रहा था.अपनी आँखों के आँसू पोंछने लगा, "कहीं देर ना हो जाए.मैं उन्हें ठीक करवाना चाहता हूं."

"देखिये आप हिम्मत रखिये आपकी माँ को कुछ नहीं होगा. जिन बातों को हम डरते हैं वो कभी नहीं होती हैं."


"यहाँ सब डॉक्टर लोग देख रहे हैं ना."मैंने कहा था.

मुझे ऐसे मरीज़ों को सँभालने में बड़ी दिक्कत होतीथी  जो रोने धोने बैठ जाएं.

रोहित कब पीछे से आकर खड़े हो गए नहीं पता चला.

वो मरीज़ से बोले "मैडम ठीक कह रही हैं.आप घर जाइये अपना फ़ोन नम्बर बताइये. मैं ख़ुद आपको कॉल करूँगा."

उन का धीर गम्भीर स्वभाव और मरीज़ों के प्रति सहानुभूति मुझे भा गयी थी .

मैंने कहा "रोज़ का प्रॉब्लम है डॉक्टर!!लोगों को  पैथ लैब और रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की रिपोर्ट्स मिल जाती हैं. उन्हें लगता है हमारे यहाँ काम ठीक से नहीं हो रहा है."


 डॉ रोहित ने कहा "कॉफ़ी हाउस चलेंगी."

"जी डॉक्टर.चल सकती थी.मगर पापा लेने आते हैं पांच बजे."

"अंकल जी को मना कर दो मैं ड्रॉप कर दूंगा."

"कहाँ डॉक्टर आपकी लम्बी सी कार और मेरा शहर के बीच संकरी सी गली में घर, पापा की स्कूटी बड़ी मुश्किल से निकलती है."मैंने संकोच में पड़ कर कहा था.

"आज नहीं संडे को चलते हैं.आज दीदी जीजाजी भी घर आ रहे हैं."

उस रोज़ मेरा अपने दिल की धड़कनों पर काबू नहीं रहा था."बल्लियों दिल का उछलना"उसी दिन जाना था क्या होता है.

सोचती रही उनको मना करके ठीक किया या नहीं.

पिछले कई दिनों से मैं मेडिकल कॉलेज के स्टॉफ के लिए बने क्वार्टर में शिफ़्ट होने का सोच रही थी.

आज ही इरादा कर लिया कि घर बदल लेना है.

अगले दिन ही थोड़ा सा सामान लेकर अपना ठिकाना बदल लिया था.

वहीं मुझे सिस्टर नीलम मिली थी. जो बाद में मेरी प्रिय सखी बनी.उसके बारे में बाद में बात करूंगी.

पापा ने हमेशा सिखाया था "बड़े सपने देखो और उनको पूरा करने के लिए आज से ही जुट जाओ.सपने उन्हीं के पूरे होते हैं जो उन्हें पूरा करने का प्रयास करते हैं."

मेरी आँखों में एक डॉक्टर की पत्नी बनना उन सपनों  में से एक था.

रोहित ने मेरे घर आना जाना शुरू कर दिया था.हँसी ख़ुशी दिन गुज़र रहे  थे. मैं इंतज़ार कर रही थी कब वो मुझे प्रपोज़ करेंगे.

सिस्टर नीलम ने डरा दिया था "ये डॉक्टर लोग मज़े कर के उड़नछू हो जाते हैं ज़रा संभल के क़दम बढ़ाना.ऐसा ना हो बाद में रोती रह जाओ."

मुझे पता था वो कहीं ना कहीं सही कह रही है.लेकिन फ़िर सोचा मेरा केस अलग है.मैंने कभी भी अपनी ओर से किसी भी प्रकार का निमंत्रण नहीं दिया है.

 डॉ रोहित स्वयं मुझमें रूचि दिखा रहे हैं.हाँ ये भी सच है इतना अच्छा अवसर मैं हाथ से जाने नहीं दे सकती हूं.

हमारी जैसी लोअर मिडिल क्लास लड़कियों को शादी के बाज़ार में कोई साधारण नौकरी वाला व्यक्ति ही मिलेगा.

पापा बड़ी चार बहनों का विवाह करके खाली हो चुके हैं.

माँ आज भी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हैं. आठ घंटे खड़े रह कर पढ़ाने से उपजी चिड़चिड़ाहट उनके चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती है.

हमारी दोस्ती को प्रेम में बदले एक वर्ष हो गया था.अभी तक रोहित ने मुझसे विवाह के बारे में कोई बात नहीं की थी. मुझे सिस्टर नीलम की चेतावनी सच मालूम पड़ने लगी थी क्योंकि इतने दिनों में रोहित ने अपने परिवार के बारे में भी कुछ नहीं बताया था.

मैं अब ना चाहते हुए भी थोड़ा उखड़ी उखड़ी रहने लगी थी. डॉ रोहित ने मेरी बेरुख़ी को भाँप लिया था.

उस शाम वो मेरे घर आये और बोले "तुमने गांगुली एंड संस का नाम सुना है?"

"जी!जो फर्नीचर बनाते हैं."

"उसी परिवार से हूँ मैं."

मेरे मन में एक साथ सैकड़ों चाँद तारे जगमगाने लगे.

बस अब अगले कुछ क्षणों में वो मुझे प्रपोज़ करने वाले हैं.

मैंने ईश्वर को पहले ही धन्यवाद अदा कर दिया था.ऐसा तो मैं  स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी कि किसी उद्योगपति का बेटा मेरा हमसफ़र बन सकता है.

एक पल को लगा मेरी साँसे कहीं थम ना जाएं. ख़ुशी और उत्तेजना के रंग चेहरे पर आ जा रहे थे.मेरी आँखे स्वयं ही मुंद गईं.

"माचिस मिलेगी क्या?"डाक्टर रोहित की आवाज़ से मैं धरातल पर आ गई.

"जी अभी लाई."

मुझे पता था इस तरह का इंट्रोवर्ट इन्सान झिझक रहा है.

सो मैंने उनके सामने जाकर हिम्मत करके कह दिया "मुझे लगता है कि हमारे माता पिता को भी आपस में मिलवा देना चाहिए. मैं अपने पापा से कभी कुछ छुपा नहीं पाती हूं."

रोहित बोले "हमारे घर में दादू का सिक्का चलता है.सभी उनसे डरते  हैं.

 वही सबको आज भी सारा हिसाब किताब देखते हैं. ये देखो इधर आओ." रोहित ने मोबाइल पर अपने दादाजी की पिक्चर दिखाई. फ़िर अपनी माँ की तस्वीर भी दिखाई.

उन्होंने एक छोटा सा गिफ्ट रैप में लिपटा डब्बा मुझे पकड़ाया और कहा "मम्मी ने दिया है और कहा है कि अपनी गर्लफ्रेंड को दे देना.

"मुझसे पूछ रही थी ये गिफ्ट सुन्दर है या वो लड़की?"

मेरे कान गरम हो कर लाल हो गए थे. जी चाहता था कि उनके गले से लग जाऊं, लेकिन वो बहुत ही रिजर्व किस्म के शान्त और सौम्य व्यक्तित्व वाले थे.

उन्होंने एक सिगरेट ख़त्म कर जैसे ही दूसरी सुलगानी चाही, मुझे खांसी आ गई खाँसते खाँसते आँखों में आँसू आ गए. रोहित पानी का एक गिलास ले आये थे. पानी पीकर मुझे कुछ ठीक लग रहा था.

वो बोले "चलता हूं कल काम पर मिलते हैं."

उनके जाते ही मैंने सिस्टर नीलम को फ़ोन करके बुलाया और सारा घटनाक्रम दोहरा दियाऔर पूछा "इसे तुम क्या कहोगी?"

नीलम बोली "कुछ बातों के उत्तर हमारा दिल देता हैऔर कुछ प्रश्नों को समय सुलझाता है. चलो ख़ुशी की बात है आपकी गाड़ी आगे की ओर बढ़ चली है."

"मतलब सब सही दिशा में जा रहा है."

मुझे वाकई बेचैनी हो रही थी. नीलम ने कहा "गिफ्ट तो खोलो देखें उसमें क्या है?"

डब्बे के अंदर कुछ ब्रांडेड मेकअप का सामान और एक रिस्टवाच थी.

हम दोनों को इन ब्रांड्स के बारे में पता नहीं था. सिस्टर नीलम गूगल सर्च करने के लिए उत्सुक थी किन्तु मैंने रोक दिया था.

"प्रेम से दी गई वस्तु का मूल्य क्यों लगाना?"

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Monday, December 21, 2020

एक कहानी अनकही

गद्य रचना
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एक कहानीअनकही
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मेवाड़ के छोटे से ठिकाने बिजौलिया के राव ठाकुर रतन सिंह कुछ दिन से अत्यंत उद्वेलित हैं. उनका संयमी मन अब किसी कार्य में नहीं लगता है. जब से उनकी पुत्री तेजल का विवाह नेपाल के शक्तिपुर के राणा के यहां तय हुआ है, उनकी रातों की नींद उड़ गई है.
अगर उनके बस में होता तो इस संबंध के लिए मना कर देते. किंतु उनके ऊपर मेवाड़ के राणा जी का दबाव था और राणा जी से बैर लेना उनके बस की बात नहीं थी.वे उनके मौसेरे भाई भी थे. अगर मन में संतोष था तो बस यह कि कम से कम उनकी बेटी हिंदू राजा के घर भी जा रही है.
वरना आजकल तो सत्ता लोलुपता इतनी बढ़ गई है कि कितने राजपूतों ने अपनी पुत्रियों के रिश्ते मुगलों के साथ कर लिए हैं.
उस दिन रतन सिंह की पत्नी देवल ने पूछ लिया "आजकल आपको क्या हो गया है और यह आप पुत्री को लेकर कहां निकल जाते हैं."
"विवाह के समय कोई पिता अपनी पुत्री को तलवारबाजी घुड़सवारी की शिक्षा देता है क्या?"
वो आगे बोलीं "विवाह में अभी 6 महीने बचे हैं.आप की अधीरता मुझसे देखी नहीं जाती है."
राव ने ठंडी सांस ली और बोले "पुत्री को घर से बहुत दूर भेज रहा हूं.इसलिए उसे किसी भी विषम परिस्थिति के लिए तैयार कर रहा हूं."
घर की बड़ी बूढ़िया चाहती थीं कि यदि तेजल घर में रहे तो वह उसे उबटन लगाएं, संगीत सिखाएं कुछ घर गृहस्थी की बातें भी सिखा दे.
राव की शिक्षा खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी. पिता और पुत्री एक दूसरे के करीब आ चुके थे. दिन भर साथ रहती किशोरी तेजल से वे धर्म, राजनीति, समाज की बातें छेड़ देते थे.
उसने पिता से कहा "दात्ता ! क्या आप कभी मीरा बाई से मिले हैं.
ये प्रश्न क्यों पूछ रही हो?
उन्होंने पुत्री से प्रश्न किया "गढ़ में स्त्रियां हमेशा उनके बारे में बातें करती रहती हैं. कहती है कि वह अपनी मर्जी की मालिक है और उन पर कृष्ण जी की कृपा है."
"हां बेटा! कृष्ण जी की तो कृपा है ही किंतु मीराबाई पर सरस्वती मां की भी कृपा है. "
तेजल ने पूछा "क्या वे कभी हमारे घर आ सकती हैं. "
अब राव हँस पड़े थे "सीधे-सीधे कहो ना?
"तुम क्या जानना चाहती हो? "
" हां आप सुनाइए नाआपके मुंह से सुनना चाहती हूं. "
राव बोले" थोड़ी पुरानी बात है तब मैं वृंदावन में मीराबाई तुलसीदास और सूरदास इन तीनों से ही मिला था."
" किसी से कहना नहीं अपने कुछ साथियों के साथ मीराबाई को वृन्दावन पहुंचाने का कार्य हम लोगों ने ही किया था. "राव मुस्कुराए "अब घर चले. "
तेजल ने कहा "दात्ता ! आप लोग मुझे विवाह के बाद भूल तो ना जाएंगे.? "
"नहीं कभी नहीं याद रखना विवाह पर तुम्हारी विदाई हो रही है. हम में से कोई भी तुमको अलविदा नहीं कह रहा है." यह घर हमेशा तुम्हारे लिए खुला है क्योंकि लड़कियों को पितृ गृह से पति के घर भेजने की रीति है इसलिए तुम्हें भी जाना पड़ेगा.
" आपको क्या लगता है राज महल में मुझे अलग ढंग से रहना पड़ेगा. "
जब पुत्री ने पूछा तो पिता बोले "मनुष्य तो सभी एक से ही हैं, किंतु अक्सर सत्ता और धन की अधिकता से कुछ लोगों का दिमाग खराब हो जाता है. ऐसी परिस्थिति आने पर तुम्हें यह निर्णय स्वयं लेना पड़ेगा कि तुम्हारे लिए क्या उचित है."
" जी मैं समझ गई " तेजल ने फ़िर सवाल किया " आपको क्या लगता है स्त्री और पुरुष में कोई भेद है मेरा मतलब है कि वे शासन क्यों नहीं करती हैं.
ठाकुर रतन सिंह ने कहा "अभी नहीं करती हैं शीघ्र ही करेंगी, वो दिन दूर नहीं है जब वे अपने अधिकारों के लिए खुल कर लड़ेंगी. "
तेजल उत्साहित थी, उसके सांवले सुन्दर चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक आ गई वो कल्पना लोक में विचरने लगी थी
"मुझसे रानी पद्मिनी का जौहर बिल्कुल भी भूला नहीं जा पाता है. सोचिये कितनी स्त्रियां एक साथ मर गईं. कितनी बहादुर स्त्रियाँ थीं. सोच कर गर्व होता है किन्तु आँखों में आँसू आ जाते हैं. "
"और क्या करेगी हमारी राजकुमारी, अगर उसने कभी शासन किया तो "ठाकुर रतनसिंह ने पूछा मैं आपको, मां सा को और दादी सा को हमेशा के लिए अपने पास बुला लूंगी. राणा आगे बढ़े और अपनी पुत्री के पाँव छू लिए (जब वे प्रसन्न होते थे, ऐसा ही करते थे. )
बालिका तेजल दिन भर की थकान के कारण घर आकर सो गई थी. पिता की आंखों में नींद नहीं थी दिन पर दिन मन की चिंता बढ़ती जा रही थी.
समय पंख लगा कर उड़ गया और बेटी विदा भी हो गई है.
उन्होंने अपने आपको अब अन्य कार्यों में व्यस्त कर लिया है.
+++++++++++++++++
तेजल को नेपाल आये पंद्रह दिन गुज़र चुके हैं.
वह सोच में पड़ी है...... यहाँ की भाषा अलग, खानपान अलग, विवाह संस्कार के बाद की रीतियाँ भी अलग हैं.
उसने नेपाल और मेवाड़ की संस्कृति में इतने भेद की कल्पना नहीं की थी.
यही सब विचार करते करते उस दिन संध्या हो गई और अंधेरा अपने पाँव पसारने लगा था कि कक्ष में उसकी प्रिय दासी राधा आ गई.
तेजल उसे सदा ही उल्लसित देखती है.
तेजल ने कहा "एक बात कहूं."
"जी क्या "राधा ने पूछा
"तुम क्या सोते हुए भी मुस्कुराती हो.
अपने पति से पूछ कर बताना मुझे."
राधा लज्जा से दोहरी हो आई और बोली, "आपके कक्ष में आते हुए डर नहीं लगता है अन्यथा जब मैं राजमाता के यहाँ थी तो मुस्कान क्या मेरी बोली भी नहीं निकलती थी."
"क्यों भला?"
तेजल ने पूछा
"आप तो राजकुमारी हैं क्या आपको नहीं पता कि बड़े राणा जी की पत्नियों में राजमहल में अपना स्थान बनाने के लिएआपस में कितना संघर्ष और छल कुचाल चलती रहती है. "
"वे विलासिता की चरम सीमा पर हैं. कई बार तो कोई दासी ही उनका जीवन दूभर कर सकती है. "
"अंत में सबसे अधिक व्याकुल तो राजमाता ही हो जाती हैं. अंतःपुर की राजनीति, षड्यंत्रों का निर्णय करते करते समय से पहले ही बूढ़ी हो गईं हैं वो."
"वे भी अपना क्रोध हमारे जैसे छोटे लोगों पर ही निकाल कर जी हल्का कर लेती हैं . "
"रानी साहिबा ये बातें अपने तक ही रखियेगा. अन्यथा मुझे राजद्रोह के अपराध में कारागार में डाल दिया जाएगा. "
राधा के जाने के बाद तेजल का मन मस्तिष्क घटनाओं की पुनरावृति करने लगा था उसका कुंवर जी के साथ विवाह, बिना शोर-शराबे के इस कक्ष में आना.
रानी माँ का उससे मिलने आना, उसके सांवले रंग को देखकर महल में खुसुर पुसुर होना.
उसने बिजौलिया में सुना था उसके विवाह संबंध से मेवाड़ और नेपाल के राजनैतिक संबंध सुदृढ़ होंगे इसलिए उसने प्रतिज्ञा की थी कि वो अपनी मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ लुटा देगी........उसने विवाह में कुंवर जी की बस एक झलक ही देखी है सुंदर बलिष्ठ गौर वर्ण युवक,...... क्या वे उसको पसंद करेंगे?
तभी पिता के वचन याद आए "बेटी तुम सदैव याद रखना क्षत्रिय की पुत्री हो तनिक ना घबराना."
आज कुंवर जी से उसका प्रथम मिलन था.
वह गहनों और भारी-भरकम लहंगे और लज्जा के बोझ तले दबी जा रही है.
जब वे उसके कक्ष में आए तो वह हतप्रभ सी उनके मुखमंडल के भाव ही देखती रह गई, उसने सोचा था कि वह उन्हें प्रणाम करेगी किंतु घबराहट में भूल गई थी.
राज कुंवरने ने ही बातचीत प्रारम्भ की थी.
उनकी बातचीत का ढंग शिष्ट और शालीनता से भरा हुआ था. किशोरी तेजल का भय जाता रहा था . जब कुंवर ने कहा कि वे उसे कुछ उसकी पसन्द का उपहार देना चाहते हैं तो तेजल पुलकित और आनंदित हो उठी थी. वह धीरे से बोली" मेरे जैसी छोटे ठिकाने की एक लड़की का विवाह इस राजघराने में हुआ. ये अपने आप में बड़ा उपहार है. मैं सोचती हूं इससे अधिक सौभाग्य की बात किसी भी लड़की के लिए क्या होगी?
कुँवर बोले "मेरे प्रश्न का सही उत्तर दीजिये. आप अपनी कोई इच्छा बताइये तो सही इस संसार में जो भी प्राप्त है मैं आपको उपलब्ध कराऊंगा. "तब तेजल ने कहा" मैं सीता माता के जन्म स्थल का दर्शन करना चाहती हूं." "मैंने बिजौलिया में सुना था कि वे यही कहीं आसपास की थी."
उसके पति हंस पड़े थे उन्होंने कहा"आश्चर्य की बात है तुम्हारी आयु की किशोरी धर्मस्थल देखने की बात कर रही है, और हम राजपूत जब भी बाहर निकलते हैं तो सिर्फ युद्ध के लिए निकलते हैं.
किसी को ऐसा विचार क्यों नहीं आता है?
मैं वचन देता हूं कि हम दोनों अवश्य ही जनकपुर जाएंगे."
शक्तिपुर के जनसमुदाय में बात फैल गई थी राजकुमार नरेन्द्र जंग की पत्नी राजघराने की स्त्रियों से भिन्न है वह तेजस्विनी है मर्यादा का पालन करने वाली, सामान्य रंग रूप की किशोरी है किन्तु सिंघनी के समान निडर भी है.
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राणा नरेंद्र जंग को आराम तलबी के जीवन की आदत है.
उनके विलासिता पूर्ण जीवन में यह षोडशी कैसे आन टपकी? वे स्वयं अचम्भित हैं.
उनकी जीवन शैली इस बालिका से कहीं से भी मेल नहीं खाती है. किन्तु उसकी आभा के आगे वे नतमस्तक से होते जा रहे हैं.इस साधारण सी किशोरी को दूसरों की व्यथा दिखाई दे जाती है. जो उन्हें कभी अनुभव नहीं हुई. क्या इसका कारण राणा का सुख पूर्वक जीवन बिताना है?
तेजल जनसाधारण का मान, अपमान, न्याय, अन्याय ख़ूब समझती है. यहाँ तक कि राज महल की उपेक्षित रानियों की दुर्दशा को लेकर चिंतित है.
इतने ही दिनों में राजमाता उसे बहुरुपिया लगती हैं. वह अपने विचार प्रमाण सहित अपने पति के आगे प्रस्तुत कर चुकी है.
उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया था कि उनकी अपनी माता ही पिता द्वारा उपेक्षित हैं. राजमाता उनका शोषण कर रही हैं. माँ के साथ कुंवर का अब नया परिचय हुआ है.
तेजल महल की हर गतिविधि पर कैसी तीक्ष्ण पहरेदारी कर सकती है?
किन्तु तेजल को प्राप्त करने के बाद भी उनके मन को संतोष नहीं है. या कहें उसके गुणों का रंग फीका हो चला है.
जैसे जैसे समय व्यतीत हुआ राणा जी को आभास होता जा रहा है तेजल धर्मपत्नी तो बन सकती है.
वे उसे अपनी प्रेमिका नहीं बना पाएंगे.
विवाह के कुछ वर्ष बीत गए हैं. राजमहल में तेजल के विरुद्ध स्वर उठने लगे हैं कि वह अभी तक माँ नहीं बन पायी है.
राणा जी अब एक मृगतृष्णा में जी रहे हैं. उनकी रंगशाला विवाह के बाद भंग हो गई है.उन्हें उसकी याद सताने लगी, पहले वो अपने विलासी वातावरण में प्रसन्न थे. अधिक दिनों तक तेजल उन्हें बाँध ना पायी........ अपितु उसके संपर्क में कुछ ऐसे प्रश्न उठ खड़े हुए जिनसे राणा बचना चाहते हैं.
वे सुख से अभिशापित हैं, दूसरों की व्यथा देखना पसन्द नहीं करते हैं. वे अपने सुख के लिए आँखों पर पट्टी बाँध लेना पसन्द करेंगे. हां यदि वे चाहे तो अन्य स्त्रियों से संपर्क बना सकते हैं कोई नहीं रोकेगा किंतु वे तो भटक रहे हैं ना जाने किसकी खोज में?
शायद एक प्रियतमा की खोज में. उन्हें प्रेमिका चाहिए. एक रूपवती अपनी आयु की पत्नी.

उनकी इच्छा की पूर्ति भी शीघ्र हो गई थी.
अपने परममित्र के घर विवाहोत्सव पर उनकी भेंट पूर्वी नामक युवती से हुई जो कि नववधू की सखियों में से एक थी.
उसके रूप से उनकी आंखें चौथिया गई थी. कुंवर उसे पाने को मचल पड़े.
आनन-फानन में "पूर्वी"राणा नरेंद्र जंग की पत्नी हुई. उस विवाह की सभी रीतियों को पूर्ण कराने का उत्तरदायित्व रानी तेजल ने निस्पृह भाव से अपने हाथ में ले लिया है.
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इधर राजमहल में बड़े परिवर्तन हुए हैं.
इसी बीच राणा नरेन्द्र जंग के पिता का निधन हो गया और राजकार्य की सारी जिम्मेदारी नरेंद्र जंग पर आ गई है. शासन संबंधी राय मशवरे में राणा तेजल पर ही आश्रित है.
नवीन विवाह के बाद भी राणा नरेन्द्र जंग जब तब तेजल के कक्ष में देखे जाते हैं.
राणा और तेजल का साथ नई रानी पूर्वी को फूटी आंख नहीं सुहाता है.
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पूर्वी नित नये श्रंगार से अपने रूप पर आप ही मोहित है.
पूर्वी चाहती है किसी भी प्रकार राणा उसके वश में हो जाए.
उस साधारण सी दिखने वाली तेजल में ऐसा क्या है कि राणा उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते हैं.
पूर्वी की ऑंखें आजकल एक नवीन स्वप्न देख रही हैं.
राणा की पटरानी बनने का स्वप्न.
सुदूर देशों तक उसके सौंदर्य के चर्चे हों.
जनसमुदाय में तेजल की जगह राणा के साथ वह जाए.
इस राजप्रासाद की आने वाले समय में वो राजमाता हो.
तेजल उसकी आँखों में खटक रही है.
शीघ्र ही पूर्वी ने अपने गर्भवती होने के समाचार से राणा को चिरप्रतीक्षित सुख की कल्पना से भर दिया था.
राणा चाहते थे कि पूर्वी के स्वास्थ्य का ध्यान रानी तेजल रखे.
किन्तु तेजल को पूर्वी ने अपने पास नहीं फटकने दिया था. उसने तेजल से कहा वो अपनी सेवा में केवल उन्हें ही पसन्द करेगी जिनको माँ बनने का अनुभव है.
इसलिये रानी तेजल ने राणा से कुछ ना कहा उसने अपनेआप को अपने कक्ष में ही सीमित कर लिया है.
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पिछले कुछ दिनों से तेजल का जी बहुत घबराता है. भोजन पचता नहीं भूख मर गई है.
राधा ने उसकी यह दशा देखी तो बोली " मैं राजवैद्य को बुलाती हूं."
"नहीं रहने दे अगर दो चार दिन और तबीयत ठीक ना हुई तब देखेंगे."
तेजल को आज पितृगृह की बहुत याद आ रही है. उसने अपने पिता को एक पत्र लिखा और राणा जी से कहा कि कृपया वे यह पत्र बिजौलिया भिजवा दें.
राणा ने अनजाने ही पत्र खोल लिया तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. तेजल ने अपनी कुशलक्षेम के साथ ही ठाकुर रतनसिंह को शुभ समाचार भी सुनाया था कि वे नाना बनने वाले हैं वह चार मास की गर्भवती है और परंपरानुसार उसे प्रसव के लिए अपने मायके आना है.
राणा सोच में पड़ गए कि रानी तेजल ने यह शुभ समाचार उन्हें क्यों नहीं सुनाया?
क्या उनसे कुछ भूल हुई?
रानी राजमहल क्यों छोड़ना चाहती है?
अथवा परम्परा का निर्वाह करना चाहती है?
क्या उसे यहाँ किसी प्रकार की हानि का अंदेशा है?
किससे डर है उसे?
राजमाता से?
या पूर्वी से?
उन्हें साक्ष्य चाहिए.
किन्तु तेजल के प्राणों की रक्षा उनका प्रथम कर्तव्य है.
रानी तेजल के पास सभी प्रश्नों के उत्तर हैं.
वे समय आने पर ले भी लेंगे.
किन्तु अभी यही उचित यही होगा कि वे तेजल को मेवाड़ भिजवाने का प्रबंध कर दें. कहीं देर ना हो जाये.
उन्होंने रानी की विश्वस्त सेविका राधा और उसके पति को आदेश दिया कि वे मेवाड़ जाने की तैयारी करें.
साथ में विश्वत रक्षकों की टोली को साथ कर राणा जी ने अपनी पत्नी को मेवाड़ के लिए भारी मन से विदा दी और कहा, शीघ्र ही हमें अपनी और हमारी नन्ही जान की कुशलता का समाचार सुनाइयेगा.
तेजल अब करीब पच्चीस छब्बीस वर्ष की युवती थी. जब राजमहल में आयी थी एक किशोरी थी. आज इतने वर्षों बाद वह पितृगृह जा रही है.
ना जाने क्यों भय सा प्रतीत हो रहा है. उसके क़दम शिथिल हो रहे हैं. जब वह रथ पर सवार हुई तो पवन की गति से मन चल पड़ा है.
लाख झटकती है, पर विचारों की श्रंखला टूटती नहीं.
वह नेपाल के राजमहल में पलंग पर बैठ कर सोलह श्रंगार करने कभी भी नहीं आयी थी.
जब उसे पता चला था कि वह विवाह के चार पांच वर्षों बाद तक राज कुल को संतान नहीं दे पाई थी........ तो
राणा का विवाह भी उसके लिए कोई बड़ी बात ना था. वहाँ आये दिन यही सब देख रही थी.
उसने खुले ह्रदय से पूर्वी को अपनाया था.
उसे पूर्वी के सौंदर्य से भी कोई ईर्ष्या नहीं है.
किन्तु पिछले दो महीनों में पांच बार उसके भोजन में कुछ विषाक्त दवाइयां मिलायी जा रही हैं.उसके विश्वस्त सूत्रों ने बताया है. इसके पीछे पूर्वी के चाहने वालों का हाथ है.
अभी राणा तेजल के अनुकूल हैं, और उसकी गुप्तचरों पर पूरी पकड़ है.
किन्तु पूर्वी पर आक्षेप लगाते ही वह राणा की आँखों में एक सामान्य ईर्ष्यालु स्त्री रह जाएगी.
इसलिये उसे चुप रह जाना चाहिए था उसने वही किया था. पता नहीं सही था अथवा ग़लत .
तेजल के विचारों को विराम मिला जब राधा ने कहा
"नेपाल की सीमा छोड़ दी है. रानी साहिबा अब थोड़ी देर में मगध की सीमा में प्रवेश कर लेंगे हमलोग."
"ठीक है आपलोग जहाँ भी चाहें वहीं विश्राम की व्यवस्था करें."
"क्या रात्रि में हम लोग किसी धर्मशाला में रुकेंगे ?"साथ चल रहे घुड़ सवार अंग रक्षकों में से एक ने पूछा.
"नहीं कहीं बाहर ही तम्बू लगा लीजिए. मैं नहीं चाहती कि हमारे ठिकाने की भनक किसी को भी लगे."
जैसी आज्ञा.
एक दिन में वे लगभग बीस से तीस मील रास्ता तय कर पाते थे.
जैसे जैसे समय बीता रानी तेजल कांतिहीन होती जा रही थी.
उसके अंग रक्षकों ने कई बार विनती की कि यहीं रुक जाइये .आपका स्वास्थ्य सुधरे तब हम लोग आगे चलेंगे.
राधा ने भी कहा" इतनी दुर्बलता में आप स्वस्थ शिशु को जन्म कैसे देंगी?"
किन्तु रानी तेजल ने किसी की ना सुनी. उसके जीवन का एक मात्र ध्येय अपनेअंदर पल रहे शिशु के प्राणों की रक्षा करना था.
जिस बात का डर था वही हुआ तेजल बेहद कमज़ोर हो गई, उसने पितृ गृह जाने का विचार त्याग दिया था,
यहाँ से केवल चार कोस पर उसके नाना सा का गाँव था. जहाँ वह अपनी मां सा के साथ आया करती थी.
तेजल ने राधा को अपने पास बिठाया और बोली. यहाँ बी दासर के "ठाकुर मानसिंह जी "मेरे नानोसा हैं. यदि मुझे कुछ हो जाये तो मेरी सन्तान को उनके हवाले कर देना.
उसके स्वर क्षीण होते जा रहे हैं....... राधा.......
मुझे ये वचन दे कभी किसी को भी नहीं बताएगी कि मैंने अपनी सन्तान नानोसा को दी है. समझ रही है तू.
कुछ लोग ऐसे हैं जो मेरे बच्चे को मार देंगे....... मैंने देख लिया है कि मनुष्य के लिए जीवन जितना सरलता से जिया जाए उतना आनन्द दायक है..वो अगर साधारण जीवन जिएगा तभी अच्छा शासक बन सकेगा. मेरे बेटे की माँ बन जाना.और अगर बेटी हो तो उसे भी मजबूत बनाना ... राधा.... सुन रही है ना.
उसकी आवाज़ डूबती सी प्रतीत हुई.
राधा तेजल के गले लग कर रो पड़ी थी. तेजल ने कहा "आज के समय में हम स्त्रियों की आँखों में तेज और ज्वाला होनी चाहिए, ताकि हम विषम परिस्थियों में आग लगा सकें."
"तेरे मुख पर हमेशा मुस्कान ही शोभा देती है राधा!! आज मेरे निकट ही सो जाना देखती हूं तू रात में सोते हुए भी मुस्कुराती है या नहीं."

"मेरे बाद मेरी सन्तान की देखभाल कर सकेगी राधा!!"
"आप हिम्मत हार रही हैं रानी, देखिएगा प्रसव पीड़ा से निवृत होते ही आप ठीक हो जाएंगी."राधा बोली.
"मैंने राणा जी को वचन दिया है मैं आपको और आपकी सन्तान को वापस ले कर आऊंगी. "
तेजल का मुखमण्डल मधुर स्मित से भर उठा.
"राणा से मेरा सम्बन्ध बस यहीं तक था. अब तो मैं मां का कर्तव्य निभा रही हूं."
"ऊपर देख राधा" रानी ने बरगद के वृक्ष की ओर लटक रहे घोंसले को दिखा कर कहा, "इस घोंसले में रहने वाले पक्षियों को पता है यहाँ उनके अंडे और चूज़े सुरक्षित हैं."
"मैं भी जानती हूं तुम सब मिलकर इस रानी का मान रख लोगे. "
अगले दिन तेजल ने बरगद के वृक्ष के नीचे ही एक बालक को जन्म दिया.तब तक उनके अंग रक्षक ठाकुर मानसिंह को बुलाकर ले आए थे.
तेजल को बचाया ना जा सका था.
वह दुधमुँहे बालक को तीन दिन का छोड़ कर इस निष्ठुर संसार को विदा कह गई थी.इतिहास में यह घटना कहीं वर्णित नहीं है. अनेकों अवर्णित बलिदानों में एक बलिदान उसका भी था.
समाप्त
प्रीति मिश्रा