Tuesday, June 23, 2020

शाबाश (कहानी)

शाबाश
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तन्वी छोटी सी थी जब उसके पिता नहीं रहे थे. नानी, माँ  और उसे अपने घर ले आयी थीं.
 वैसे बाक़ी सब ठीक था किन्तु उसकी  माँ ने सबके लाख समझाने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया था.
 इसलिये जब कभी नानी और माँ में खटकती तो नानी
पहले उसके मरहूम पापा को कोसती जो अपनी जिम्मेदारी पूरी किये बिना इस दुनिया से चले गए, और फ़िर तन्वी की बारी आती, जिसके मोह में उनकी बेटी जीवन भर वैधव्य की चादर ओढ़ कर बैठी थी.  तीसरा वार वो ईश्वर पर करती थी. जिसने उसकी पुत्री और नातिन को आश्चर्यजनक रूप दिया, और इतनी ख़राब किस्मत दी, अब इन दो प्राणियों की चिन्ता में वो  स्त्री दिन प्रतिदिन चिड़चिड़ी होती जा रही है.

माँ जब नानी के शब्द वाणों को ना झेल पातीं तो अपना कमरा जोर से बन्द कर लेती, तब नानी डर जाती और चुप हो जाती थीं.
इस तमाशे के बीच वो चुपचाप पेंसिल से स्केचिंग करती रहती थी.कभी कभी वो और नाना जी घर से बाहर निकल जाते थे. एक घंटे टहल कर लौटते जब घर का माहौल शान्त हो चुकता था. 
नानी को उसकी चित्रकला के जूनून से भी दिक्कत थी "क्या मिलेगा, तुझे ये आड़े तिरछे चित्र बना कर? इस उम्र में लड़कियां घर के कामकाज सीखती हैं और ये महारानी  चित्र बनाती रहती हैं. ये बड़े आदमियों के चोंचले हैं. हमारे घर में जगह कहाँ है तुम्हारा ये  कूड़ा रखने के लिए."
नानी को उसकी पेंसिलें,  ईज़ल, ब्रश, कैनवास फैले देख कर गुस्सा आता था. जब देखो कोई अड़ोसी पड़ोसी ही मुहँ उठाये चला आता था, किसी को स्कूल का प्रोजेक्ट बनवाने में मदद चाहिए थी, किसी को घर में लगाने के लिए पेंटिंग सीखनी होती थी.
घर ना हो गया ख़ैरातखाना है.
"इतना वक़्त बर्बाद करती है इन फ़ालतू लोगों के चक्कर में मेरी मान पढ़ाई कर ले, कहीं धंधे से लग जाएगी."नानी उससे कहती थीं.
पर उसके कानों पर जूँ भी नहीं रेंगती थी. पता नहीं क्या था, बूढ़ी नानी  जितने उपदेश देतीं  उसके हाथों की स्पीड बढ़ जाती,  रेखाएँ और भी साफ़ पैनी होकर उभरती जाती थीं,  रंग खिल जाते थे .
आज वो इस चीख पुकार में बूढ़ी नानी का ही चित्र बना बैठी थी. काफ़ी झुर्रियाँ आ गई हैं.उसने आज नोटिस किया. मन ही मन दया भी आ गई थी. चित्र पूर्ण करने के बाद उसने एक तस्वीर खींची और इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर  दी.अब  पहले से बेहतर लग रहा था उसे. देखती हूँ कैसा रेस्पॉन्स आता है? लोग पसन्द करते हैं मेरी कलाकारी या नहीं.  उसने सोचा.

फ़िर लेमनग्रास और अदरक, इलाइची डाल कर चाय बनाई, एक कप नानी को थमाया एक माँ के आगे रखा,  दोनों स्त्रियाँ चाय पीने लगीं वातावरण में शान्ति हो गई थी. वो ख़ुद बिना कुछ खाए पिए  कॉलेज के लिए निकल गई थी.

उसे पता था चाय पीने के बाद नानी और माँ में सुलह भी हो जाएगी. ये इस घर के रोज़ के झगड़े थे.इसी तरह निबटते थे.
अगले दिन सुबह सुबह अख़बार वाला छत पर अख़बार की फुँकनी सी बना कर अख़बार डाल गया था. बूढ़ी नानी ने झुकी हुई कमर से कराहते हुए अख़बार उठाया और अपने पति को पकड़ा आयीं.
ये क्या?
वो खुशी और आश्चर्यमिश्रित स्वर में बोले "इधर आओ जी "
"अब सुबह सुबह क्या हुआ? जो इतना ख़ुश हो रहे हो. लाटरी निकल आयी है क्या? "
"लॉटरी ही निकली है पर मेरी नहीं तुम्हारी, ये देखो. मशहूर कर दिया तुमको तुम्हारी नातिन ने."
वो बोले "कितना सुन्दर स्केच बनाया है तुम्हारा. इस की चर्चा बड़े बड़े चित्रकार भी कर रहे हैं.ये चित्र अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में शामिल किया जाएगा .
आज भी बात है तुम्हारे अंदर.भई वाह !तुम तो बुढ़ापे में मशहूर हो गयी. "
पति ने हँसते हुए अख़बार का पन्ना आगे कर दिया.
बूढ़ी नानी की आँखों से आँसू झड़ने लगे.
इतनी बड़ी हो गई है तन्वी बिटिया.
अख़बार में उसके बनाए चित्र छपने लगे हैं.
वो घर में ख़ुशी से इधर उधर घूम रही थीं. इतनी सुबह सुबह ये समाचार किसको दें?
थोड़ी देर में ख़बर फैल गई. बधाइयों के फ़ोन आने लगे थे.
आज तन्वी को गले लगाने का दिल चाह रहा था. शाबाशी देने को जी चाह रहा था. बरसों बाद इतनी अच्छी सुबह हुई थी. बार बार कमरे में झाँक कर आतीं, जहाँ वो मासूम बेखबर सोई हुई थी.
 नानी बड़बड़ा रही थीं
"कानों में इयरप्लग लगा कर सोती है.
 ना कुछ सुनेगी और ना
दस बजे से पहले  उठेगी.

इन निगोड़ी  आँखों को जाने क्या हुआ है क्यों बैरिन बार बार भर आती हैं."
......समाप्त..... प्रीति मिश्रा

Tuesday, June 16, 2020

पुत्र का पत्र माँ के नाम





विभा ने जैसे ही अपनी स्क्रिप्ट पर नज़र डालने के लिए ग्रीन रूम में मोबाइल खोला कि उसकी नज़र एक अभी अभी आए मेल पर गई.
ना जाने किस आशंका से उसकी साँसे तेज चलने लगीं.क्या हुआ वैभव को?
वो तो हमेशा व्हाट्सप्प पर कॉल करता है.
तब तक मेकअप मैन उठ चुका था जाते जाते वो बोला "मैडम स्टेज पर सभी कलाकार पहुँच गए हैं. बस शो शुरू होने में पांच मिनट हैं. आप मंच की ओर चलिए."
विभा ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा. "बस दो मिनट शांतु दा.... मुझे शान्ति चाहिए. बेटे का मेल है."
वो वैभव का मैसेज पढ़ने लगी.
प्यारी माँ
आज आपको यह पत्र लिखना पड़ रहा है. चाहता तो फ़ोन कर सकता था.
फ़ोन ना करने की वजह सिर्फ यह है कि मैं चाह कर भी आपसे कह नहीं पाता . हो सकता है आपको मेरे कुछ बातें बुरी लगे. आप मुझे छोटा समझ कर माफ कर दीजिएगा. कहां से शुरू करूँ?
आपने मुझे बताया था ना कि जब मैंने बोलना शुरू किया तो मेरे मुख से पहला शब्द पापा निकला था. जब से मैंने होश संभाला मैंने देखा कि पापा और आप दोनों में कितनी अच्छी अंडरस्टैंडिंग है. हमारे घर में कभी लड़ाई नहीं होती थी और फिर एक दिन आप हमें छोड़ कर चली गईं.
क्यों मम्मा?
हमारी ग़लती भी बता कर जातीं.
क्या आप हम दोनों में से किसी से रूठ गई थी?
"पापा आपने कुछ कहा मम्मा को?"
जब पापा से पूछा था वो कुछ ना बोले. बस एकदम शान्त और हारे हुए दिखे मुझे.
उस दिन पापा को हार्ट अटैक आया था.
बाद में पापा मुझसे धीरे धीरे खुलने लगे थे.
उन्होंने बताया था कि घर में रहकर आप अपने आप से रूठी थीं. आपको चाहिए थी बाहरी दुनिया में अपनी पहचान. जहाँ आपको लोग आपके नाम से जानें. जब आप कहीं जाएं तो स्वागत में तालियों की गूँज हो. माइक पर आपकी सुरीली आवाज़ और स्टेज पर आपका जलवा हो.
सही कह रहा हूँ ना मैं.
आप ये सब कुछ घर से भी कर सकती थीं माँ.हमें छोड़ने की क्या ज़रूरत थी.
कभी सोचा कि आपके सभी शौकआज तक किसने पूरे किये? घर में कमाने वाले पापा ही थे.
मुझे याद है जब आप ने भारत माँ का रोल किया था तो आपकी तिरंगे के रंग में साड़ी रंगवाने पापा ही रंगरेज़ के यहाँ बदबूदार नाली के किनारे खड़े थे.
कितनी बार मैं भी किराये के लहंगे लाने, लौटने पापा के साथ गया हूँ.
आपके संगीत अध्यापक की फ़ीस, आपके नृत्य, जिम के ख़र्चे किसने पूरे किये?
आपको पहली बार टी वी पर विज्ञापन भी पापा के दोस्त ने ही दिया था. याद है आप उसमें मुझे परी सी लग रही थी.मेरे दोस्त भी मुझसे ईर्ष्या कर रहे थे.मेरी माँ अब हीरोइन बन गई थी.
पर बाद में समझ आया,सच्चे हीरो थे हमारे घर में पापा.
आप क्या कहती हैं? जिन्होंने हर परिस्थिति में धैर्य नहीं खोया. अपने चेहरे पर शिकन भी नहीं आने दी.
मुझे ए बी सी सिखाने से लेकर चार्टर्ड एकाउंटेंट बनाने का श्रेय उनको ही जाता है.
आप नाराज़ हो गईं?
सच्ची सॉरी माँ !!मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहता हूँ. बस जो सच है दिखाना चाहता हूँ.
ये जो लोग आपको हाथों हाथ ले रहे हैं.आपकी अच्छी पर्सनालिटी के कारण ही तो.
आपके इस व्यक्तित्व को उभारने में भी मानिये ना मानिये पापा का ही हाथ है.वो हर जगह आपको साथ ले जाते थे.
यकीन ना हो तो अपनी पुरानी तस्वीरें उठा कर देख लीजिये.पता चल जाएगा मेरी बात में कितना दम है.
मैं बहुत रूड होता जा रहा हूँ ना, पर क्या करूँ? आपकी फ़िक्र जो है. आपको पता है अगर आप थिएटर करें या ना करें किसी को फर्क नहीं पड़ेगा.बाहर की दुनिया बस थोड़े दिन की साथी है. एक से एक सितारे आये और चले गए. किसी को क्या फर्क पड़ा? सब लोग भूल जाते हैं. बस पल दो पल उनकी तारीफ़ कर ली या कभी बुराई कर ली. पर माँ सितारों के आगे भी एक जहाँ है.
आपके यहाँ से चले जाने से हमें बहोत फर्क पड़ रहा है.घर के हर कोने में आपकी खुशबू बसी हुई है.आप के गानों की गुनगुन सुन कर बड़ा हुआ हूँ. अब बिल्कुल सन्नाटा पसरा हुआ है. बता रहा हूँ अगर मुझे गुस्सा आ गया तो आपका हारमोनियम, तानपूरा सब फेंक दूँगा ... अरे !ये क्या बचपना है माँ?
कभी तो बड़ी हो जाओ.
माँ कल आपकी अलमारी साफ़ कर रहा था तो खतों का एक पुलिंदा मिला. वो ख़त जो आपने कभी पापा को लिखे थे.
आपने मुझे कभी क्यों नहीं बताया कि पापा से आपकी लव मैरिज थी.
आप लोगों ने भाग के शादी की थी?
या नाना जी मान गए थे. बस मन में सवाल उठा तो पूछ रहा हूँ. हा.. हा हा.
मानिये ना मानिये आप थोड़ी हिली हुई हो (दिमाग़ से )शुरू से ही, फ़िर पापा के लाड़ में, रही सही भी बर्बाद हो गईं.
माँ आपको याद है वो लड़की जो हमारे घर सफ़ाई करती थी. मेरे इयरफोन उठा ले गई थी आपने कहा था "एक दो दिन में वापस रख जाएगी. उससे कुछ कहना नहीं."
और वो रख भी गई थी.
"माँ आपको कैसे पता था?"
तब आपने कहा था कि "उसका मन आ गया होगा ले गई उठा के, पर तुझसे भी बहुत प्रेम करती है तेरा उतरा चेहरा देखेगी तो वापस रख जाएगी."
माँ हमारे चेहरे भी उतर गए हैं, क्या आपको बताना पड़ेगा कि आपसे सभी कितना प्रेम करते हैं.
आप भी घर वापस आ जाओ आजकल बाहर बहुत खतरा है.हम लोगों को आपके लिए बड़ा डर लगता है. माँ मुझे आप और पापा दोनों की ज़रूरत है. प्लीज़ माँ जल्दी घर आओ
आपके इंतज़ार में........
आपका विभू
स्टेज पर उसके नाम की उद्घोषणा हो रही थी. उसने अपनी आँखों में आये आँसू पोंछ लिए. आज वो इस शहर में अपनी आख़िरी परफॉर्मेंस देने वाली थी. इसके बाद यहाँ से सीधा एयरपोर्ट जाएगी.अभी भी देर नहीं हुई है.... समाप्त

Monday, June 15, 2020

बरगद 
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उसकी उम्र थी यही कोई बीस बरस,जब उसने धरती से उखाड़ कर बरगद का पौधा गमले में लगाया था.
कल्पना की थी "एक दिन सुन्दर बोनसाई बनाऊॅगी,वैसा जो किसी प्रदर्शनी में भाग ले सके मोटी सी जड़ वाला बौना सा पेड़ जिस पर छोटे- छोटे फल लगे हों शाखाओं से नीचे की ओर जड़ें भी लटकती हों"।
समय भीअजीब होता है,कैसे फुर्र हो जाता है पैंतीस बरस बीत गए , काफी कुछ बदल गया इतने समय में,बहुत से रिश्ते बने ,स्थान परिवर्तन हुए बस एक स्वप्न अब भी है उसकी आंखों में वैसा ही ,बरगद को सुन्दर बोनसाई के रूप में देखने का, न जाने कब बनेगा? जैसा वो चाहती है, हर वर्ष अपने हाथों से जड़ों की छॅटाई की ,बिलकुल नाप तौल के मिट्टी भरी छोटे से गमले में, पर मन का न बना बोनसाई,अपने बच्चों की तरह पाला,बच्चों से याद आया ज़माना बीत गया उन्हें घर से निकले। पिछले दिन की बात है, सावन की फुहारों में उसने सभी गमलों को लाॅन में भीगते देखा बरबस ऑखें बरगद के बोनसाई पर टिक गयीं कुछ लाल रंग बह निकला बरगद के नन्हे वृक्ष से,क्या रक्त बह रहा है? डर से प्राण पेट से चल कर गले तक आ पहुंचे उसके, बारिश की परवाह किये बिना दौड़ कर बोनसाई को देखने लगी जैसे कोई माॅ अपने शिशु को देखती हो, पूजा की रोली बह रही थी नन्ही टहनियों से ,रक्त का आभास देती थी, उसने बौने से वृक्ष के गमले को छाती से लगा लिया,आह!इतनी बड़ी भूल कैसे हुई मुझसे ? हर साल तुम्हारी पूजा की, व्रत रखा वट सावित्री का,सालों साल पूरे परिवार की सलामती की प्रार्थना की तुम्हारे आगे,और सावन के आते ही जब तुम बढ़ सकते थे आनन्द ले सकते थे मन भावन ऋतु का तुम्हारी जड़े काट कर तुम्हें ही नन्हे से गमले में कैद कर दिया।
अभी इस का प्रायश्चित करना होगा, नंगे पाॅव हाथ में बोनसाई और खुरपी लेकर वो घर से दूर पार्क में लगवा आई ,माली को जब पांच सौ का नोट थमाया वो आश्चर्य से देखने लगा,रुंधे गले से बोली ध्यान रखना इसका, घर लौटते हुए बारिश ने उसके कपड़ों से रोली कुमकुम के दाग धो दिए ,
अपनी धुन में मगन थी,उसने देखा घर पीछे छूट गया था,सामने खुला आसमान था बाहें फैलाए।आज फिर स्वतः पाॅव पार्क की ओर बढ़ चले हैं ।बोनसाई को वृक्ष बनते दैखना है।
पश्चाताप (कहानी )
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आठ वर्षीय अनुराग ने माँ के गले में बाहें डालते हुए पूछा "माँ मेरे सब फ्रेंड्स पिकनिक जा रहे हैं मैं भी जाऊं."
"नहीं बेटा आप हमारे इकलौते बेटे हो मम्मा पापा को डर लगता है, आपको अकेले बाहर भेजते हुए."
अनुराग की माँ ने कहा.
"जब पापा की छुट्टी होगी हम तीनों चलेंगे."
"पर फ्रेंड्स तो अभी जा रहे हैं."
नन्हा अनुराग उस दिन कहना चाहता था कि "मुझको अपने दोस्तों साथ ही मज़े करने हैं. आप के साथ तो कभी भी जा सकता हूं."पर कह नहीं पाया
 उस के घर में अनुशासन हर बात में दिखाई देता है.
वो बहुत ही सभ्य बच्चा है.
उसके माता पिता को बड़ा गर्व है कि उनका बेटा उनकी हर बात मानता है.
बाकी बच्चों की तरह ज़िद नहीं करता है.
बस अभी कुछ दिनों पहले एक डॉग के पप्पी को देख कर मचल गया था. पर प्यार से समझाया मान गया.
लोगों के बच्चे कितने फ़िजूल खर्च हैं. पर उनका बेटा कभी कोई फरमाइश ही नहीं करता है.
उन लोगों को टी वी देखने का भी शौक़ नहीं है. दोनों पति पत्नी अपने काम में लगे रहते हैं. सादा जीवन उच्च विचार.
जिसकी वजह से उनका बेटा पढ़ाई लिखाई में हमेशा अव्वल ही रहा है.माता पिता दोनों ही शिक्षक हैं.
संस्कारों पर बेहद ज़ोर देते हैं.
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समय बीता अनुराग ने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन ले लिया है यहीं उसे अंजलि मिल गई, एक दम मस्तमौला, बिन्दास लड़की जहाँ खड़ी हो जाए, वहां फूल खिल जाएं. ठहाकों के शोर उसके साथ साथ चलते हैं.
अंजलि के घर का वातावरण बहुत ही खुला है.
धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती प्रेम में परिवर्तित हो रही है.
अंजलि का आना जाना अनुराग के घर होने लगा है.
अनुराग की मां को वो बहुत पसंद है.
अगर अंजलि क्रिश्चियन होती तो वो कब का उसका हाथ अपने बेटे के लिए मांग लेती .
किन्तु हिन्दू लड़की से विवाह के बारे में वो सोच भी नहीं सकती हैं. इससे प्यारी लड़की अनुराग के लिये वो भी नहीं ढूंढ पाएंगी.पर उन्हें पता है अनुराग के पापा किसी भी हाल में इस सम्बन्ध के लिये नहीं मानेंगे.
"दुनिया में क्या मुंह दिखाएंगे वो! फ़िर क्या अपने यहाँ अच्छी लड़कियों की कमी है."
इससे पहले कि वो किसी धर्म संकट में पड़ें उन्होंने अनुराग के लिये रिश्तों की खोज शुरू कर दी.
तभी अनुराग की पोस्टिंग दो वर्ष के लिये अमेरिका हो गई.इसलिए शादी की बात बीच में ही रह गई. एक पल भी आँखों से ओझल ना होने वाले बच्चे को विदेश भेज दिया.
बड़े भारी मन से उसको विदा किया. हालांकि जब से वो बाहर गया है उन दोनों का ख़याल और भी ज्यादा रखने लगा है.डॉलर्स में मिली तनख्वाह से अनुराग ने माता पिता के घर की काया पलट कर दी है.
अपने बचपन में जिस जिस चीज़ की उसे तमन्ना थी सब कुछ माता पिता के घर भिजवा दिया है.
अब उनकी कलाई पर एक से एक महंगे ब्रांड्स की घड़ी सुशोभित होने लगी है. बैग्स, जूते, बेल्ट्स, मोबाईल, परफ्यूम्स के पार्सल्स हर तीसरे दिन आते हैं. कुछ दिनों पहले मूवी के टिकट भी भेजे थे बेटे ने. जीवन को ऐसे भी जी सकते हैं, उन दोनों पति पत्नी को तो पता ही नहीं था.

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दो वर्ष पश्चात् --------
जब अनुराग घर आया और उसने माता पिता को बताया कि वो अंजलि से प्रेम करता है.
उसनेअपने माता पिता से अंजलि से विवाह की अनुमति मांगी है.
किन्तु दोनों ने साफ़ मना कर दिया कि ये संभव नहीं हो सकता है.
हम लोग बिरादरी में क्या मुहं दिखाएंगे.
अनुराग ने कहा "पापा क्या मेरी खुशियाँ आपके लिये कोई माने नहीं रखतीं. क्या मैं आपकी दुनिया नहीं हूं."
"मैं तो समझता था कि हम तीनों ही एक दूसरे की दुनिया हैं ये मेरी गलतफहमी थी."
"माँ आप ही पापा को समझाइये."
माँ तो तब समझाती जब उसे ये बात खुद समझ में आती.
क्लेश लम्बा खिंच गया है.
अब बेटा माँ बाप से बात ही नहीं कर रहा है. घर में दो भाग हो गए हैं एक ओर माँ पापा दूसरी ओर अनुराग अकेला है.वो पछता रहा है इंडिया वापस ही क्यों आया.
घर की घुटन असहनीय हो चली है. वो कोशिश कर रहा है कि किसी भी तरह इस वातावरण से बाहर निकल आये.
उधर अंजलि ने ज़िद पकड़ी है शादी तो अंकल आंटी के आशीर्वाद के साथ ही करेगी.
वो खिसियाई मुस्कान लाकर बोला" तब तो हमारी शादी नहीं हो पाएगी. मुझे पता है मेरे माँ बाप समाज दुनिया से बहुत डरते हैं."
"वो गलत भी नहीं हैं. उस ज़माने के लोग ऐसे ही होते हैं .फ़िर टीचर्स ज्यादा आदर्शवादी होते हैं."
अंजलि ने अनुराग को धैर्य दिलाया.
आज अनुराग ने आखिरी प्रयास करने की सोची है.
घर की चुप्पी तोड़ते हुए वो अपनी माँ के पास गया और बोला "मम्मा आपसे एक बात शेयर करना चाहता हूं.
मैं और अंजलि यू एस में एक साथ ही रह रहे थे. अब हमारा अलग होना मुश्किल है."
माँ की आँखों में आँसू आ गए और बोली "तुम्हें पता है हमारे मजहब में शादी से पहले साथ रहना पाप है."
"पापा सुनेंगे तो उन्हें गहरा सदमा लगेगा."
"तू अपने संस्कार कैसे भूल गया? ताज्जुब है."
माँ अब ज़ोर से रोने लगी अनुराग की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की.
साल दो साल और गुज़रे अंजलि की पोस्टिंग
न्यूज़ीलैण्ड हो गई. जाने से पहले उन लोगों से मिलने आयी थी.आखिरकार वे दोनों कभी उसके भी गुरु रहे थे.
उसने मन ही मन फैसला कर लिया थाअब वो कभी इंडिया नहीं लौटेगी.
इन तीनों को ही उसकी वजह से दुःख पहुंचा है.
अजीब हिमशिलायें हैं. जो पिघलती ही नहीं.
हर रिश्ते को नाम मिले ये ज़रूरी तो नहीं है. अपनी तरफ़ से उसने अनुराग को अलविदा कह दिया है.
**********
दिन गुज़रते जा रहे हैं अनुराग अंजलि के जाने के बाद खुद को बिलकुल अकेला महसूस करने लगा है. घंटों गुमसुम बैठा रहता है.खाना पीना सोना सब कुछ डिस्टर्ब हो गया है. वो डिप्रेशन कीओर जा रहा है.
उसने उस दिन ना जाने क्या सोच कर फेसबुक खोला देखा.अंजलि की एक पोस्ट पड़ी है.
जिसमें उसने अनुराग का नाम ना लिखते हुए भी उसने अपने दिल का हाल बयां कर दिया है.
इतनी खुशमिजाज़ लड़की को क्या हो गया ?
हर रोज़ अब वो फेसबुक पर अंजलि की पोस्ट पढ़ता है.बहुत 
चार    तक अंजलि का पांच ह बाद अंजलि ने अपनी सगाई की फोटोज़ अपलोड किये हैं.
जिन्हें देखकर घबरा गया है अनुराग.
वो दौड़कर अपने पापा के पास पहुंचा पापा ये देखिए अंजलि ने क्या किया?
उसके पापा ने कहा हुँ..अभी देखता हूं.
फ़िर नज़र भर देखने के बाद उसे झिड़क कर बोले तुम भी उसे भूल जाओ बरखुरदार.
इसी लड़की के पीछे पिछले कई महीने से घर में दंगल कर रहे थे.
अब देख लिया.
अनुराग गुस्से और क्षोभ से भर उठा, आख़िर किस मिट्टी के बने हैं पापा.
वो अपनी माँ के पास गया वे किचेन में सुबह के खाने की तैयारी में व्यस्त थीं.
उनसे भी दिल का हाल कहना उचित नहीं लगा उसको.
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रात्रि के दो बजे अचानक कार स्टार्ट होने की आवाज़ से सन्नाटे का सीना जैसे चीर दिया था किसी ने.
अनुराग कार लेकर बाहर निकल गया. सुबह तक वापस नहीं आया. अब माता पिता उसे ढूँढ़ते घूम रहे हैं. ना जाने किस मनः स्थित से गुज़र रहा है?
मन अनहोनी घटना से डर रहा है.
दो चार दिन गुज़र गए फ़िर पुलिस वालों को उसकी गाड़ी पहाड़ी से नीचे गिरी मिली. गिरते वक्त आग लग गई थी.
अनुराग की लाश पहचानी भी नहीं जा पा रही थी.
उसके माता पिता की हालत बेहद ख़राब हो गई है . दोनों के पास आज पश्चाताप के आंसुओं के अलावा कुछ नहीं बचा है .
अब आये दिन डॉक्टर के यहाँ चक्कर लगने लगे हैं.
डॉक्टर ने कहा मेरी मानिये तो घर में एक छोटा सा पप्पी ले आइये आपका मन बदल जाएगा.कोई काम मिल जाएगा आप लोगों को.
"किस मुँह से ले आएं डॉग? मेरे बेटे ने जीवन में एक, दो ही फरमाइशें की थीं वो भी मैंने पूरी नहीं की." अनुराग की माँ याद कर कर के दुःखी होती हैं.
पचपन वर्ष की उम्र में ही बेटे के दुःख ने अस्सी वर्ष की आयु जैसा बुढ़ापा ला दिया है.घर के हर कोने में अनुराग का लाया सामान सजा है.
बस नहीं है तो उनका लाडला अनुराग नहीं दिखाई देता है.
अनुराग की माँ को किसी चमत्कार की आशा है. अजीब बहकी बहकी बातें करती हैं कि एक दिन उनका बेटा अवश्य लौटेगा.
उसके पिताजी हर स्टूडेंट के माता पिता को समझाते हैं कि "प्लीज़ अपने बच्चों को खुला वातावरण दीजिये."
"उन पर रोक टोक बन्धन मत लगाइये."
"उनसे दोस्ताना व्यवहार रखिये."
"उनकी हंसी और किलकारियों से अपना घर भरिये."
"बच्चों की ख़ुशी ही सबसे बड़ी उपलब्धि है. वे ही आपकी दुनिया हैं. बाकी बातें सब बेकार हैं."
"अगर हमने अनुराग की बात सुनी होती, तो शायद वो आज हमारे बीच होता."
मैं हर माता पिता को ये सन्देश देना चाहता हूं कि आपके बच्चे क्या करना चाहते हैं उन्हें करने दीजिये. वो अपनी संभावनाएं स्वयं खोजें. यदि कोई नया रास्ता चुनते हैं तो उस राह पर चलने दीजिए. जीवन आगे बढ़ने का नाम है.
नवजीवन की सुबह का मिलकर स्वागत करिये. जो गुज़र गया है लौट कर कभी नहीं आता.
बोलते बोलते उनका गला रुंध जाता है.
किन्तु वे फिर एक नये स्कूल में चल पड़ते हैं.
किसी और अनुराग के जीवन बचाने के लिये. यही एक ढंग है जिससे वो पश्चाताप कर सकते हैं.
समाप्त
चम्पा बाई
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चम्पा बाई एक आदिवासी स्त्री थी.सांवली रंग की चमकदार त्वचा और तीखे नयन नक्श वाली ऊँचे कद की. उसके शरीर पर मात्र एक चटकीली फूलदार सूती धोती रहती जिसे वो घुटनों तक पहनती थी.उसी धोती को आगे लाकर अपना वक्ष स्थल ढँक लेती.
गर्दन में हँसुली और छोटे से बड़े होते चाँद के हार उसके तन की शोभा बढ़ाते. पीछे की सुडौल पीठ खुली दिखती रहती. कमर में भारी करधनऔर पैरों में लच्छे हर उँगली में बिछिया.अपने केशों को छोटी छोटी पतली चोटियों से गूंध कर माथे पर मांग टीका लगा कर बाकी बाल कस कर बांध देती थी. जब वो निकलती उस पर से दृष्टि हटाए ना हटती थी.मानो किसी कलाकार की बनाई कोई मूरत हो.
लाखों में नहीं पर हजारों में एक थी चम्पा बाई.
एक ही रंज था उसे कि वो अंगूठा छाप थी.
गाँव में खाने पीने के लाले थे. पाठशाला का मुहँ भी नहीं देखा था.
पांच साल की थी ब्याह दी गई थी और ग्यारह वर्ष की हुई तो गौना कर के पति गृह आ गई थी.
वो मजदूरी से पेट पालती और हर वर्ष एक सन्तान को जन्म देती थी. अजीब सी बेचैनी थी उसके अंदर, कुछ सुलगता सा रहता था पर उसको बताने में अक्षम थी.
उस दिन प्रातः काल से गाँव से बाहर कस्बे से शहर की ओर जाने वाली सड़कें चूने से सुशोभित हो गईं थी . सड़कों के किनारे पुलिस दल गश्त लगाने लगा.दारूबाज और ताड़ीबाज लोग घरों में दुबक गए थे.
लाउडस्पीकर बजते हुए शहर की ओर जाने लगे.बच्चे घरों से भाग कर मोटर के भोंपू सुनने में मगन हो गए थे. औरतों ने घर में चैन की सांस ली थी.
शहरी लोगों से पूरा रास्ता भर गया था.
प्रधान जी ने सभी गांव वालों को इकठ्ठा किया और कहा "सब तैयार होकर जमा हो जाओ थोड़ी दूर चलना होगा.इसी सड़क से प्रधानमंत्री गुजरेंगी. शहर में देश की प्रधानमंत्री आ रही हैं. अच्छा अवसर है कोई ना गवांए.
सभी बच्चे और स्त्रियां भी अवश्य आएं."
दिन भर चिलचिलाती धूप में भीड़ के साथ चलने के बाद चम्पा ने देखा एक सफ़ेद एम्बेसेडर कार से एक स्त्री उतरी और खुली हुई गाड़ी में चढ़ गई थी. वो गोरी तीखे नयन नख्श, लड़कों की तरह कटे बाल जिसमें आगे की कुछ लटें सफ़ेद थीं, लाल बॉर्डर वाली नीली साड़ी, गले में एक रुद्राक्ष की माला, एक हाथ में घड़ी, दूसरा खाली. सीधी सतर चाल थी.
हाथों में फूल माला लेकर वो जनता पर उछालती, तो कभी हाथ जोड़ कर अभिवादन करती या छोटे बच्चों को देख कर हाथ हिलाती हुई मुस्कुरा रही थी. इंदिरा गाँधी जी की गाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी और चम्पा भीड़ से हट कर जिधर को गाड़ी जा रही थी उधर लगभग भागते हुए करीब करीब10 किलोमीटर तक दौड़ गई थी वो हाँफते हुए उनके साथ ही पंडाल में पहुँच गई थी. जहाँ प्रधानमंत्री का भाषण होने वाला था. भीड़ के एक धक्के ने उसे सबसे आगे की कतार तक पहुंचा दिया था.
चम्पा आँखें फाड़ फाड़ कर देखती रही थी.
कैसी विलक्षण स्त्री थी ये. सारे लोग पीछे पीछे घूम रहे थे.चम्पा को मन ही मन खूब मजा आया.
इंदिरा गाँधी जी ने भाषण दिया बहुत सी बातें बताईं थीं . पर सच पूछो चम्पा को कुछ भी समझ ना आया . उसका ध्यान कहीं और जो था.
ये कहाँ रहती हैं.? क्या खाती होंगी?
चम्पा के बगलवाली स्त्री ने उसे कोहनी मारीऔर बोली "देख रही हो राजा लोग हैं जी. यही हमारे देश की राजा हैं."
चम्पा ने कहा
"भक्क !राजा तो मनई होता है. ई तो मेहरारू है."
स्त्री ने अपना ज्ञान बघारा "अरे !देस पर सासन करती है.चुनाव जीत कर सबसे अधिक भोट पायी थी.
उसके पिताजी का फ़ोटो हमारे बाबू की किताब में छपा है."
चम्पा ने पूछा"गहना नहीं पहनी हैं.ऐसी कैसी राजा है?"
"जा ना अपना एक हार दे दे पहन लेगी."
वो स्त्री हँस पड़ी थी.
अचानक किसी ने उन्हें चुप रहने का संकेत किया.
सबकी नज़रें चम्पा की ओर उठ गई थीं.
वो संकोच से सिकुड़ गई थी.
भाषण के बाद में प्रश्न उत्तर शुरू हुए.
"जो चाहे अपनी बात नोट करा सकता है. मैडम जी को बाद में बता दिया जाएगा और नहीं तो आगे आते जाइये सब लोग प्रणाम करते हुए दर्शन करते हुए लड्डू लेते हुए निकलते जाइये . देखिये भीड़ मत लगाइये."
औरतें और बच्चे कब के निकल गए किन्तु चम्पा जड़वत खड़ी थी. फ़िर धीरे धीरे सरकती हुई बाड़ के पास खड़ी हो गई. अब वो मंच के नजदीक आ गई थी.
तभी उसके पास एक सिपाही आया और बोला
"आपको सर बुला रही हैं."
"मुझको"चम्पा डर गई थी.उसकी साँसे तेज तेज चल पड़ी थीं.
धीरे धीरे क़दम बढाती मंच की ओर चल पड़ी थी. और मंच से उतर कर मिसेज़ गाँधी नीचे आ गई थीं. उसको देख कर बोलीं "अकेले खड़ी हुई थी, हमारी गाड़ी के साथ दौड़ भी रही थी ना."
"हाँ.... ना हाँ नहीं जी". चम्पा काँप गई थी. प्रधानमंत्री ने कहा
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"चम्पा बाई"वो आँखें नीची कर के बोली.
"तुम्हारे गहने बहुत सुन्दर हैं. चाँदी पहनने में ठंडी रहती है .मुझे भी बहुत पसन्द हैं इस तरह के गहने."
उन्होंने बातचीत से चम्पा का भय दूर कर दिया था.
चम्पा बोली "तो पहनती क्यों नहीं? भगवान इतना सुन्दर बनाए हैं आपको. घोड़ा गाड़ी हवाई जहाज पर चलती हैं. क्या कमी है?
गहना स्त्रियों की शोभा होता है.बच्चों वाली माँ का गला नाक कान हमेशा भरा रहना चाहिए. सुभ होता है.
हमारा गहना चाँदी का नहीं है.
हम सिक्का गलवा कर बनवाए हैं.
बहुत सस्ता है. पर चाँदी जैसा दिखाता है ना."
इंदिरा जी ने चम्पा से कहा "सिक्के सामान खरीदने के लिए होते हैं चम्पा. "
आगे से सिक्के मत गलवाना."
"जी ठीक है."
प्रधानमंत्री बोलीं
"और कुछ बात हो, कुछ कहना चाहती हो. बताओ."
"जी गाँव में स्कूल नहीं है. बच्चा लोग पढ़ नहीं पा रहे हैं.
काम भी नहीं है. बहुत सारा दिक्कत होता है गाँव में, जाने दीजिये.
आप घूमने आयी हैं.अच्छे मन से वापस जाइये.हमारा भाग्य ऐसा ही है. "
"नहीं तुमलोगों की दिक्कतें दूर करने ही दिल्ली से आयी हूँ. "
"दिल्ली कहाँ है?"चम्पा ने पूछा "क्या हम लोग भी जा सकते हैं?"
"क्यों नहीं बल्कि आजकल बड़े शहरों में अच्छी मजदूरी मिलती है.जो लोग भी दिल्ली जाकर काम करना चाहते हैं ज़रूर जाएँ. यहाँ से अच्छे रहेंगेआप लोग.आगे बढ़ना है तो घर का मोह छोड़ना होगा."
प्रधानमंत्री चली गईं थीं.
किन्तु चम्पा की आँखों में स्वप्न दे गईं सोते जागते दिल्ली जाने का स्वप्न.
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दिन गुजरते गए, एक दिन सुबह गाँव में मुनादी हुई "जो लोग दिल्ली काम करने जाना चाहते हैं.अपना नाम ठेकेदार साहब को लिखवा दें. पगार के साथ रहने का जगह मुफ़्त. ट्रक चार दिन बाद लग जाएगा. रास्ते का खाना पीना मुफ़्त मिलेगा."
अपनी आँखों में सपने लेकर बच्चों और पति के साथ चम्पा भी दिल्ली चल पड़ी थी. गाँव में याद करने लायक कुछ नहीं था.मिट्टी ने जनम दिया था सो थोड़ी सी धूल आँचल में बाँध चली थी.
दिल्ली में गगन चुम्बी इमारतें बनाते हुए समय निकलता जा रहा था. पास में जब चार पैसे जमा होने लगे तो बच्चों को भी स्कूल भेजना शुरू कर दिया था. किसी अख़बार में इंदिरा गांधी की फ़ोटो देखी तो चम्पा घर ले आयी थी आटे की लेई बना कर एक दरवाजे पर चिपका दिया था.
बच्चों ने पूछा इनकी फ़ोटो क्यों लगाई हो? तो वो बोली "इन्हीं के कारण तुम लोग स्कूल जा रहे हो. हमारी गुरु और सहेली हैं."
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चम्पा के बच्चे घर की ओर दौड़े और माँ से लिपट गए. बोले "माई बहुत बुरा हो गया. वो जो फोटो वाली सहेली हैं ना आपकी उनका लड़का विमान उड़ाते हुए गिरा दिया.सब कह रहे हैं वो मर गया.एक ठो और आदमी था विमान में कोई नहीं बचा."
"क्या कह रहे हो?"खाना बनाती हुई चम्पा ने कहा "तुमको कौन बताया?"
टी.वी. पर बतला रहा है. बेटे ने कहा.
"ओह! सुनो बिटिया आज खाने में हल्दी मत डालना घर में ग़मी हो गयी है."
"बताओ कितनी बड़ी विपत्ति में पड़ गई बिचारी ?"चम्पा ठेकेदार के घर जाकर टी वी पर समाचार देख कर आयी थी.
फ़िर ठेकेदार से बोली "क्या हम सब लोग शोक व्यक्त करने प्रधानमंत्री के घर जा सकते हैं.
"लेकिन वो तुम लोगों को नहीं जानती हैं. क्या कहोगी उनसे?"
वो बोली "कहना क्या है? जवान लड़का मरा है उनका, और हम घर पर बैठे रहें. ई हमसे ना होई.
या तो हमें उनके घर पंहुचा दो. या पता लिख के दे दो."
चम्पा के साथ बाक़ी मजदूर स्त्रियों ने भी हामी भरी.
"विपत्ति में जो काम नहीं आवे तो देश की प्रजा बेकार है."
बहुत समझाने के बावज़ूद जब मजदूर स्त्रियाँ नहीं मानी हार कर ठेकेदार तैयार हो गया था और बोला "पंद्रह बीस दिन बाद चलना, थोड़ा रुक जाओ."
आदिवासी स्त्रियां जब गेट पर पहुंची तो उस दिन जनता दरबार लगा हुआ था. इसलिये उन्हें भी घुसने को मिल गया था.जब उनका नम्बर आया और उन्होंने अपने आने का मन्तव्य बताया तो माँ की आँखें छलछला आयी थी.
तभी चम्पा ने अपनी धोती की गाँठ से एक मुड़ा तुड़ा लिफ़ाफ़ा निकाल कर इंदिरा जी को दिया.
"ये क्या है?"
"कुछ नहीं. हमारे यहाँ का रिवाज़ है किसी दोस्त, रिश्तेदार के घर जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो सब लोग कुछ पैसा देते हैं."
"मेरे पास पैसे रूपए की कोई कमी नहीं है. प्लीज़ ये अपने पास रखिये"प्रधानमंत्री ने कहा .... चम्पा मान नहीं रही थी क्योंकि ये उसकी जिम्मेदारी थी ....
"आपको कैसे विश्वास दिलाऊं." इंदिरा जी ने पास खड़े व्यक्ति को बुलाया और कहा "इन लोगों को हमारा घर घुमा दो और हाँ बिना चाय नाश्ते के ना जाने देना.हमारी सहेलियां हैं ये."
इंदिरा गाँधी चम्पा और उसकी सखियों से विदा लेकरआँसू भरी आँखों से अपने ऑफिस की ओर बढ़ गई थीं.
चम्पा और उसकी सखियाँ उनका घर घूमने के बाद जब चाय पी रही थीं और सोच रही थीं ये उनके जीवन की सबसे अच्छी चाय थी,ख़ालिस दूध में बनी इलाइची की खुशबू वाली चाय.
जब चम्पा दोपहर में घर आई तो बिटिया ने पूछा माई का खाना बनी. चम्पा बोली तू रहे दे. जाकर किताब पढ़. खाना ते बनबे जाई.
चम्पा बाई की आँखों में एक नया स्वप्न कुलबुलाने लगा था. वो अपने पति के पास गयी और बोली "सुनते हैं लइकिया का बियाह गाँव में नहीं देंगे. पहले पढ़ाएंगे उसको.लड़कियों को भीअपना पैर पर खड़ा करेंगे "
"का हुआ? कौन बियाह कर रहा है जी पगला गई हो का?"
चम्पा मुस्कुरा कर सब्जी काटने चल दी थी.
.... समाप्त.....
आदान -प्रदान
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लड़का था यही कोई इक्कीस बरस का, उसके साथी शहर छोड़ कर अपने अपने घर जा चुके थे. वो इस शहर में अपने किराए के घर से काम कर रहा था. उसके गाँव में इंटरनेट की अच्छी सुविधा नहीं थी, और वहाँ बिजली भी बहुत जाती थी. इसलिये यहीं सही है. कम्पनी वाले कम से कम नौकरी से नहीं निकालेंगे.
आजअपने कमरे से निकल पड़ा ये सोच कर बाहर ही खाना खाएगा.उसे कोई ना कोरोना फोरोना होने वाला, गरम गरम खाने से.
हल्दीराम की गरम कचौड़ियाँ और जलेबी याद करके मुहँ में पानी आ रहा था. पिछले दो महीने मैगी और खिचड़ी खा खा कर कैसे निकाले हैं वो ही जानता है. सा आ... ला !कोरोना ना हो गई आफ़त कट गई. सोते जागते का ख़ौफ़.
होना है तो हो जाए. छुट्टी मिले, सुना है जवान लोगों को कम ख़तरा है.हो जाए थोड़ा सर्दी जुकाम झेल लूँगा. लेकिन अगर बढ़ गया तो........
अस्पताल की कल्पना करते ही उसे झुरझुरी सी आ गई.
उफ़ ये क्या मुसीबत है?
ये मास्क भी क्या कम दुखदाई है? पसीना टपक रहा है इसके अंदर से, और उस पर मुश्किल ये है आप छू भी नहीं सकते हैं उसे, वरना लगाना बेकार हो जाएगा. वो बेचैनी से कुनमुना उठा था.
गर्मी बढ़ रही है पर पैदल चलना मजबूरी है टैक्सी ऑटो में बैठने में डर लगता है. हे प्रभु ! कौन सा बदला निकाल रहे हो? अब कुछ तो रहम करो बच्चे पर, बहुत हो गया. प्लीज़.
तभी एक मीठी और कच्ची सी आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
"साहब ! हमसे कुछ खरीद लीजिये. आजकल कोई बिक्री नहीं हो रही है."
उसने देखा सामने एक प्यारी सी कोमल आठ बरस की बच्ची मुहँ पर मास्क लगाए खड़ी थी. बड़ी बड़ी सी आँखे बोल रही थीं.
वो हमारी गमलों और सुराही की दुकान से कुछ ले लीजिये.उसने दस क़दम दूर एक सड़क पर लगी दुकान की ओर इशारा किया.
"क्या नाम है आपका?"लड़के ने पूछा.
"तपस्या"
"पढ़ती हो? "
"हाँ दूसरी में. पर अभी स्कूल बन्द हैं."
"हाँ आजकल तो सब बन्द है."वो बोल पड़ा.
आपको क्या दिखाऊं?
बच्ची अपना सामान बेचना चाहती थी.मानो उसके पास फ़ालतू बातों के लिए वक्त ना था.
लड़के ने कहा "मैं अकेला रहता हूँ. घर में कोई पौधे नहीं हैं. गमलों का क्या करूंगा?"
"मैं मिट्टी भर दूँगी, आप मनी प्लान्ट लगा लेना. डंडी से हो जाता है."नन्ही बच्ची ने उसकी ओर आशा भरी नज़रों से देखा.
"तुमको दाम पता हैं हर चीज़ के?"
"जी हाँ!मैं अपने माता पिता के साथ रोज़ बेचती हूँ. अभी माँ खाना बना रही है. पिताजी माल छुड़ाने गए हैं पिछले तीन महीनों से कुछ नया नहीं आया."
आठ बरस की बच्ची उसे अब पचास की प्रौढ़ा लगने लगी थी.
"ये पचास रूपए का एक है." बच्ची ने एक गमला दिखाते हुए कहा.
"नहीं मुझे छोटे छोटे पॉट्स दिखाओ."
"ओह !!समझ गई.आपको सस्ते चाहिए, ये देखिये बीस बीस रूपए में ले जाइये."
"चाहे तो एक जैसे रंग के ले लो या फ़िर कंट्रास्ट."लड़की पूरे मनोयोग से उसको गमले दिखा रही थी.
बहुत सोच विचार कर लड़के ने दो छोटे पॉट्स ले लिए उसने सोचा था. कुछ नहीं होगा तो वो एक का पेंसिल स्टैंड बनाएगा. एक वाश रूम में रख देगा. टूथ ब्रश और टूथपेस्ट आ जाएगा इसमें.
"कितने रुपए हुए?"
"चालीस रूपए."
लड़के ने बच्ची के हाथ पर पचास का नोट थमाया. और बोला"ये रख लो टूटे पैसे नहीं चाहिए. प्यार से दे रहा हूँ."
लड़की ने दो की जगह एक और छोटा गमला देते हुए कहा. "साहब आप भी एक गमला और रख लो. मैं भी प्यार से ही दे रही हूँ."
लड़का नन्ही बच्ची को देखता रह गया. उसके हाथ बच्ची के सिर पर आशीर्वाद के लिए उठे थे, किन्तु सोशल डिस्टेंसिंग का ख़याल आते ही पीछे हो गए.
अब वो गुनगुनाता हुआ आगे बढ़ रहा था. स्थितियाँ इतनी भी बेकाबू नहीं हैं. मानवता का आदान प्रदान हो रहा है. उसने आसमान की ओर देखा और ईश्वर को धन्यवाद दिया.
गद्य रचना
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लघु कथा
***नए ज़माने की लड़की***
नीमा का विवाह जब नीतीश से हुआ तो उसे बड़ी प्रसन्नता थी कि नीतीश का परिवार बहुत आधुनिक विचारों वाला था।
जो चाहो पहनो जैसे जी चाहो रहो।इसलिये आम लड़कियों की तरह नीमा का कभी मन ही नहीं हुआ कि वह अलग घर ले कर रहे,इसके विपरीत नीतीश कभी कभी अलग रहने की बात करता तब उसे बड़ी हैरानी होती।
किंतु 6 महीने गुजरते ही उसने पाया कि ऊपर से सुखी दिखने वाला परिवार उतना सुखी है नहीं।सब खोखला है अंदर से।
नीतीश के पिता और उसके पिता दोनों में एक ही दोष है कि दोनों एक ही तरह से दहाड़ते हैं और इसी दहाड़ से वह बचपन से डरती आ रही है।
अपनी सास में उसको अपनी मां दिखाई देने लगी डरी सहमी और फिर उसकी मां के साथ तो यह ग़नीमत थी कि वह कम से कम 8 घंटे के लिए काम पर चली जाती थी,खुली हवा में साँस लेने,वो अपने पैरों पर खड़ी थीं किंतु सास के साथ ऐसा कुछ न था।
उसके ससुर अच्छे इन्सान थे किंतु जब भी उनके मन की बात न होती तो वह दहाड़ कर अपनी बात मनवा लेते थे,और फिर सब कुछ नार्मल हो जाता उनकी नज़र में, नीमा, नीतीश भी काम पर निकल जाते,रह जाती घर में एक स्त्री ,यानी कि उसकी सास कई बार नीमा ने उनको रोते हुए देखा।
उसने नीतीश से बात की किन्तु उसने कहा" मम्मी भी डाँट खाने के काम करती हैं पापा की छोटी छोटी बातें नहीं मानती हैं।
क्यों अपनी चलाने की कोशिश करती हैं।
जबकि उन्हें पता है कि पिताजी नहीं सुनेंगे उनकी बात।"
"अरे ये कौन सी बात हुई?"
नीमा ने असहमति जताते हुए कहा,"कोई इतनी ज़ोर से क्यों चिल्लाए वो भी सबके सामने।मुझे अच्छा नहीं लगता।"
इसीलिए तो कहता हूं,डार्लिंग कट लेते हैं यहां से,धीरे से।
किन्तु नीमा किसी और ही सोच में पड़ गई।
नीतीश के पिता और उसके पिता दोनों में एक ही दोष है कि दोनों एक ही तरह से रिएक्ट करते हैं दहाड़ कर और इसी दहाड़ से वह बचपन से डरती आ रही है।
जब वो इतना डरती है ,तो जो स्त्री सहती है इतनी बदतमीज़ी, उस पर क्या गुज़रती होगी?
उसे अपनी सास पर क्रोध भी आया और दुःख भी हुआ,उनके लिये।
एक दिन वह मौका पाकर अपनी सास के पास गई और बोली मम्मी अब तो मैं आ गई हूं आप क्यों नहीं अपनी बहन के पास घूम आती हैं या अपने भाई के पास।
आपको भी तो छुट्टी लेनी चाहिए।
कौन सी छुट्टी सास ने आश्चर्य से कहा मैं कोई नौकरी थोड़ी करती हूं।
नौकरी तो आप करती हैं ,पर आपको इसके पैसे नहीं मिलते।या आपने कभी अपनी तनख्वाह मांगी नहीं।
और न ही छुट्टियां।
उसकी सास चाय की प्याली मेज़ पर रख कर बोली
बेटा!तुम ठहरी नए ज़माने की, हमारे लिए तो विवाह सात जन्मों का बन्धन है।
रियली!!
नीमा खुशी से कूद पड़ी तब तो आपको एक्शन लेना चाहिये इसी जन्म में,पापा को समझा दीजिये इतना चीखना चिल्लाना ठीक नहीं,कहीं ऐसा न हो अगले जन्म तक ये आदतें पड़ी रह जाएं।
नीमा चिप्प्स कुतरते हुए शरारत से बोली "कहीं अगले जन्म में मर्द बनने का इरादा तो नहीं।"
सही कह रही हूं मैं, आप सोच कर देखिए।कितने घंटे काम करती हैं सबकी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए चरखी की तरह घूमती रहती हैं,सारा दिन
अरे !! कभीअपने लिए समय निकालिये।
क्या कहेंगी ऊपर जाकर भगवान जी से,कि अपने लिए क्या किया?
"तुम मुझे भड़का रही हो।"
"नहीं मां"
सिर्फ आपसे आपका परिचय करवा रही हूँ।
नीमा ने मुद्दे पर आते हुए कहा मम्मीआप तो पढ़ी-लिखी हैं अभी तक पुरानी बातों पर विश्वास करती हैं।
नीमा ने प्यार से उनके हाथ पकड़े और बोली" मेरी मम्मा भी बिल्कुल आप की तरह है कभी भी अपने लिए नहीं लड़ी हमेशा मेरे बारे में ही सोचती रही,और घर की शांति के लिए चुपचाप घुटती रही, थोड़ी डरपोक थी"
वो फिर बोली
"लेकिन मुझे लगता है डर को महसूस करना चाहिए और फिर उसी के अनुसार इंसान को उससे निपटने के लिए अपनी कार्यशैली बनानी चाहिए।
जबआप अपने बच्चों की अच्छी परवरिश घर की देखभाल के लिए कार्य शैली बना सकती हैं,फिर अपने वजूद के लिए भी अवश्य कार्यशैली होगी आपके पास।बस आपने अपने को कभी महत्व नहीं दिया है।"
ज्यादा लम्बा बोरिंग भाषण दे दिया क्या माँ?
मम्मी आपको एक लंबी छुट्टी की जरूरत है सीरियसली!!
जाओ मौज करो, थोड़े दिन उन लोगों के बीच जो आपके अपने हैं।
अगले दिन उसकी सास ने अपना सामान पैक किया,उनकेभाई के घर के टिकटें नीमा ने करवा दीं।
हाँ जब उसके ससुर को पता चला कि वह 15 दिन के लिए घर से बाहर भाई के पास जा रही हैं, आश्चर्यचकित होकर उन्होंने कहा कि तुमने मुझे पहले नहीं बताया।
उन्होंने दहाड़ते हुए कहा "तुमने एक बार जरूरत भी नहीं समझी,मुझसे पूछने की।
नीमा की सास सधे स्वर में बोली "धीमी आवाज में बात करो दहाड़ना मुझे भी आता है"।
पर्दे के पीछे से नीमा मुस्कुरा उठी जो बात अपने माता पिता के बीच ठीक ना करा सकी थी सास ससुर के बीच ठीक करा दी।
एक बात और है 15 दिन के लंबे अवकाश के बाद जब सास घर वापस आई, ससुर जी ने अपनी दहाड़ छोड़ दी है, इन 25 सालों में पहली बार पत्नी से अलग रहकर उसका महत्व जान गए हैं वह।
अब नीमा ने अपनी मम्मी को फ़ोन लगाया "प्लीज़ मम्मी आपकी बहुत याद आ रही है सिर्फ 15 दिन के लिए हमारे पास रहने आ जाओ मेरी नई नौकरी है मॉम मुझे छुट्टी नहीं मिल पा रही है।"
"यहां आपको मेरी सास सब घुमा देंगी"
उधर से शायद हाँ में जवाब आया है,नीमा फ़ोन रख कर खुशी से नाच जो रही थी।
**** समाप्त****