Monday, June 15, 2020

आदान -प्रदान
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लड़का था यही कोई इक्कीस बरस का, उसके साथी शहर छोड़ कर अपने अपने घर जा चुके थे. वो इस शहर में अपने किराए के घर से काम कर रहा था. उसके गाँव में इंटरनेट की अच्छी सुविधा नहीं थी, और वहाँ बिजली भी बहुत जाती थी. इसलिये यहीं सही है. कम्पनी वाले कम से कम नौकरी से नहीं निकालेंगे.
आजअपने कमरे से निकल पड़ा ये सोच कर बाहर ही खाना खाएगा.उसे कोई ना कोरोना फोरोना होने वाला, गरम गरम खाने से.
हल्दीराम की गरम कचौड़ियाँ और जलेबी याद करके मुहँ में पानी आ रहा था. पिछले दो महीने मैगी और खिचड़ी खा खा कर कैसे निकाले हैं वो ही जानता है. सा आ... ला !कोरोना ना हो गई आफ़त कट गई. सोते जागते का ख़ौफ़.
होना है तो हो जाए. छुट्टी मिले, सुना है जवान लोगों को कम ख़तरा है.हो जाए थोड़ा सर्दी जुकाम झेल लूँगा. लेकिन अगर बढ़ गया तो........
अस्पताल की कल्पना करते ही उसे झुरझुरी सी आ गई.
उफ़ ये क्या मुसीबत है?
ये मास्क भी क्या कम दुखदाई है? पसीना टपक रहा है इसके अंदर से, और उस पर मुश्किल ये है आप छू भी नहीं सकते हैं उसे, वरना लगाना बेकार हो जाएगा. वो बेचैनी से कुनमुना उठा था.
गर्मी बढ़ रही है पर पैदल चलना मजबूरी है टैक्सी ऑटो में बैठने में डर लगता है. हे प्रभु ! कौन सा बदला निकाल रहे हो? अब कुछ तो रहम करो बच्चे पर, बहुत हो गया. प्लीज़.
तभी एक मीठी और कच्ची सी आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
"साहब ! हमसे कुछ खरीद लीजिये. आजकल कोई बिक्री नहीं हो रही है."
उसने देखा सामने एक प्यारी सी कोमल आठ बरस की बच्ची मुहँ पर मास्क लगाए खड़ी थी. बड़ी बड़ी सी आँखे बोल रही थीं.
वो हमारी गमलों और सुराही की दुकान से कुछ ले लीजिये.उसने दस क़दम दूर एक सड़क पर लगी दुकान की ओर इशारा किया.
"क्या नाम है आपका?"लड़के ने पूछा.
"तपस्या"
"पढ़ती हो? "
"हाँ दूसरी में. पर अभी स्कूल बन्द हैं."
"हाँ आजकल तो सब बन्द है."वो बोल पड़ा.
आपको क्या दिखाऊं?
बच्ची अपना सामान बेचना चाहती थी.मानो उसके पास फ़ालतू बातों के लिए वक्त ना था.
लड़के ने कहा "मैं अकेला रहता हूँ. घर में कोई पौधे नहीं हैं. गमलों का क्या करूंगा?"
"मैं मिट्टी भर दूँगी, आप मनी प्लान्ट लगा लेना. डंडी से हो जाता है."नन्ही बच्ची ने उसकी ओर आशा भरी नज़रों से देखा.
"तुमको दाम पता हैं हर चीज़ के?"
"जी हाँ!मैं अपने माता पिता के साथ रोज़ बेचती हूँ. अभी माँ खाना बना रही है. पिताजी माल छुड़ाने गए हैं पिछले तीन महीनों से कुछ नया नहीं आया."
आठ बरस की बच्ची उसे अब पचास की प्रौढ़ा लगने लगी थी.
"ये पचास रूपए का एक है." बच्ची ने एक गमला दिखाते हुए कहा.
"नहीं मुझे छोटे छोटे पॉट्स दिखाओ."
"ओह !!समझ गई.आपको सस्ते चाहिए, ये देखिये बीस बीस रूपए में ले जाइये."
"चाहे तो एक जैसे रंग के ले लो या फ़िर कंट्रास्ट."लड़की पूरे मनोयोग से उसको गमले दिखा रही थी.
बहुत सोच विचार कर लड़के ने दो छोटे पॉट्स ले लिए उसने सोचा था. कुछ नहीं होगा तो वो एक का पेंसिल स्टैंड बनाएगा. एक वाश रूम में रख देगा. टूथ ब्रश और टूथपेस्ट आ जाएगा इसमें.
"कितने रुपए हुए?"
"चालीस रूपए."
लड़के ने बच्ची के हाथ पर पचास का नोट थमाया. और बोला"ये रख लो टूटे पैसे नहीं चाहिए. प्यार से दे रहा हूँ."
लड़की ने दो की जगह एक और छोटा गमला देते हुए कहा. "साहब आप भी एक गमला और रख लो. मैं भी प्यार से ही दे रही हूँ."
लड़का नन्ही बच्ची को देखता रह गया. उसके हाथ बच्ची के सिर पर आशीर्वाद के लिए उठे थे, किन्तु सोशल डिस्टेंसिंग का ख़याल आते ही पीछे हो गए.
अब वो गुनगुनाता हुआ आगे बढ़ रहा था. स्थितियाँ इतनी भी बेकाबू नहीं हैं. मानवता का आदान प्रदान हो रहा है. उसने आसमान की ओर देखा और ईश्वर को धन्यवाद दिया.

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