Tuesday, June 23, 2020

शाबाश (कहानी)

शाबाश
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तन्वी छोटी सी थी जब उसके पिता नहीं रहे थे. नानी, माँ  और उसे अपने घर ले आयी थीं.
 वैसे बाक़ी सब ठीक था किन्तु उसकी  माँ ने सबके लाख समझाने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया था.
 इसलिये जब कभी नानी और माँ में खटकती तो नानी
पहले उसके मरहूम पापा को कोसती जो अपनी जिम्मेदारी पूरी किये बिना इस दुनिया से चले गए, और फ़िर तन्वी की बारी आती, जिसके मोह में उनकी बेटी जीवन भर वैधव्य की चादर ओढ़ कर बैठी थी.  तीसरा वार वो ईश्वर पर करती थी. जिसने उसकी पुत्री और नातिन को आश्चर्यजनक रूप दिया, और इतनी ख़राब किस्मत दी, अब इन दो प्राणियों की चिन्ता में वो  स्त्री दिन प्रतिदिन चिड़चिड़ी होती जा रही है.

माँ जब नानी के शब्द वाणों को ना झेल पातीं तो अपना कमरा जोर से बन्द कर लेती, तब नानी डर जाती और चुप हो जाती थीं.
इस तमाशे के बीच वो चुपचाप पेंसिल से स्केचिंग करती रहती थी.कभी कभी वो और नाना जी घर से बाहर निकल जाते थे. एक घंटे टहल कर लौटते जब घर का माहौल शान्त हो चुकता था. 
नानी को उसकी चित्रकला के जूनून से भी दिक्कत थी "क्या मिलेगा, तुझे ये आड़े तिरछे चित्र बना कर? इस उम्र में लड़कियां घर के कामकाज सीखती हैं और ये महारानी  चित्र बनाती रहती हैं. ये बड़े आदमियों के चोंचले हैं. हमारे घर में जगह कहाँ है तुम्हारा ये  कूड़ा रखने के लिए."
नानी को उसकी पेंसिलें,  ईज़ल, ब्रश, कैनवास फैले देख कर गुस्सा आता था. जब देखो कोई अड़ोसी पड़ोसी ही मुहँ उठाये चला आता था, किसी को स्कूल का प्रोजेक्ट बनवाने में मदद चाहिए थी, किसी को घर में लगाने के लिए पेंटिंग सीखनी होती थी.
घर ना हो गया ख़ैरातखाना है.
"इतना वक़्त बर्बाद करती है इन फ़ालतू लोगों के चक्कर में मेरी मान पढ़ाई कर ले, कहीं धंधे से लग जाएगी."नानी उससे कहती थीं.
पर उसके कानों पर जूँ भी नहीं रेंगती थी. पता नहीं क्या था, बूढ़ी नानी  जितने उपदेश देतीं  उसके हाथों की स्पीड बढ़ जाती,  रेखाएँ और भी साफ़ पैनी होकर उभरती जाती थीं,  रंग खिल जाते थे .
आज वो इस चीख पुकार में बूढ़ी नानी का ही चित्र बना बैठी थी. काफ़ी झुर्रियाँ आ गई हैं.उसने आज नोटिस किया. मन ही मन दया भी आ गई थी. चित्र पूर्ण करने के बाद उसने एक तस्वीर खींची और इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर  दी.अब  पहले से बेहतर लग रहा था उसे. देखती हूँ कैसा रेस्पॉन्स आता है? लोग पसन्द करते हैं मेरी कलाकारी या नहीं.  उसने सोचा.

फ़िर लेमनग्रास और अदरक, इलाइची डाल कर चाय बनाई, एक कप नानी को थमाया एक माँ के आगे रखा,  दोनों स्त्रियाँ चाय पीने लगीं वातावरण में शान्ति हो गई थी. वो ख़ुद बिना कुछ खाए पिए  कॉलेज के लिए निकल गई थी.

उसे पता था चाय पीने के बाद नानी और माँ में सुलह भी हो जाएगी. ये इस घर के रोज़ के झगड़े थे.इसी तरह निबटते थे.
अगले दिन सुबह सुबह अख़बार वाला छत पर अख़बार की फुँकनी सी बना कर अख़बार डाल गया था. बूढ़ी नानी ने झुकी हुई कमर से कराहते हुए अख़बार उठाया और अपने पति को पकड़ा आयीं.
ये क्या?
वो खुशी और आश्चर्यमिश्रित स्वर में बोले "इधर आओ जी "
"अब सुबह सुबह क्या हुआ? जो इतना ख़ुश हो रहे हो. लाटरी निकल आयी है क्या? "
"लॉटरी ही निकली है पर मेरी नहीं तुम्हारी, ये देखो. मशहूर कर दिया तुमको तुम्हारी नातिन ने."
वो बोले "कितना सुन्दर स्केच बनाया है तुम्हारा. इस की चर्चा बड़े बड़े चित्रकार भी कर रहे हैं.ये चित्र अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में शामिल किया जाएगा .
आज भी बात है तुम्हारे अंदर.भई वाह !तुम तो बुढ़ापे में मशहूर हो गयी. "
पति ने हँसते हुए अख़बार का पन्ना आगे कर दिया.
बूढ़ी नानी की आँखों से आँसू झड़ने लगे.
इतनी बड़ी हो गई है तन्वी बिटिया.
अख़बार में उसके बनाए चित्र छपने लगे हैं.
वो घर में ख़ुशी से इधर उधर घूम रही थीं. इतनी सुबह सुबह ये समाचार किसको दें?
थोड़ी देर में ख़बर फैल गई. बधाइयों के फ़ोन आने लगे थे.
आज तन्वी को गले लगाने का दिल चाह रहा था. शाबाशी देने को जी चाह रहा था. बरसों बाद इतनी अच्छी सुबह हुई थी. बार बार कमरे में झाँक कर आतीं, जहाँ वो मासूम बेखबर सोई हुई थी.
 नानी बड़बड़ा रही थीं
"कानों में इयरप्लग लगा कर सोती है.
 ना कुछ सुनेगी और ना
दस बजे से पहले  उठेगी.

इन निगोड़ी  आँखों को जाने क्या हुआ है क्यों बैरिन बार बार भर आती हैं."
......समाप्त..... प्रीति मिश्रा

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