Sunday, May 31, 2020


कुत्ते
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छोटे अनीश ने अपने  दादू से पूछा "दादू आज कौन सी कहानी सुनाएंगे. रामचंद्र जी की या कृष्ण की ."
"तुम बताओ किसकी कहानी सुनना चाहते हो जो कहोगे वही सुनाऊंगा."
 "पहले यह बताइए ये सतयुग और कलयुग क्या होता है मतलब इसके पीछे क्या कांसेप्ट है."
दादू सोच में पड़ गए, फ़िर बोले " मेरे हिसाब से मानव  सभ्यता को हमारे  गणितज्ञों ने चार भागों में बांट दिया था. सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग."
कहते हैं एक एक युग कई लाख वर्षों का होता है
" मोटा मोटा ऐसा समझ लो कि समय को चार भागों  को बाँट  दिया गया है सतयुग को  न्याय और धर्म का युग कहा जाता है."
 अनीश रजाई से निकलकर उठ कर बैठ गया.

" दादू रामचंद्र जी  सतयुग में हुए थे ना इसीलिए मुझे रामचंद्र जी  की कहानियाँ सबसे  ज्यादा पसंद है.
 वो राक्षसों को अपने तीर कमान से मार देते थे उन्हें किसी से डर नहीं लगता था."
बेटा मनुष्य के जीवन में अक्सर ऐसी घटनाएं हो जाती हैं कि क्या सही है और क्या गलत फैसला करना मुश्किल हो जाता है.
 देखो किसी को मारना यूं तो सही नहीं है,  क्योंकि जीवन देने वाला तो ईश्वर है किसी की जान लेने का मनुष्य को कोई हक नहीं है. लेकिन जब परिस्थितियां ऐसी बन  पड़े कि कोई चारा ही ना बचे तो यह गलत भी नहीं है.

" दादू कल मेरे पाँव में एक मोटे चींटे ने काट लिया था   जब मैंने पांव से से छुड़ाया वह मर गया क्या मुझे पाप लगेगा?"
 अनीश कुछ कहता कहता अटक गया "दरअसल उस चींटे की दो टांगे टूट गई थी और मुझे लगा अब इसको बड़ी देर तड़पना पड़ेगा. दादू उसको मैंने चप्पल से दबाकर मार दिया. मैं उसे मारना नहीं चाहता था. क्या उसे नया जन्म मिल गया होगा? "
 दादू ने अनीश के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा तुमने  कोई गलत काम नहीं किया है .
 "मेरा एक और प्रश्न है दादू."
"बेटा आप सो जाओ. "
" दिस इज़ द लास्ट क्वेश्चन प्लीज़, वो महाभारत में दिखा रहे थे ना कि द्रौपदी कृष्ण भगवान से हेल्प मांगती है और भगवान जी उसकी साड़ी को लंबा कर देते हैं फ़िर   खूब लम्बा करते  जाते हैं दादू कृष्ण  इतने पावरफुल थे तो उन्होंने उस दिन दुःशासन को क्यों नहीं मार दिया था अगर  उसको मार देते महाभारत ही ना होती."

 दादू सोच में पड़ गए कि क्या उत्तर दें.
 "आप ही ने तो बताया था ना कि कृष्ण भगवान केशव इसलिए कहलाए उन्होंने कंस मामा को मारने के बाद उसके शव को केशों से  पकड़कर खींचा था."
 "जब बचपन में इतने पावरफुल थे बड़े होकर द्रौपदी के दुश्मन को क्यों नहीं मारा. वो तो कृष्ण जी को अपना बेस्ट फ़्रैंड मानती थी."
"मैं शर्त लगा सकता हूं अगर रामचंद्र जी होते तो  अवश्य ही अपना तीर कमान निकालकर दुःशासन को दंडित करते जैसा उन्होंने बाली शूपर्णखा के टाइम किया  था."

अरे !बाबा तुमको इतनी कहानियाँ कहाँ से पता हैं.

अनीश शरमाया और बोला" कार्टून नेटवर्क पर भी  देखता हूँ."
"ओ. के. अब कल से तुम मुझे कहानियाँ सुनाना." 
"मैं आपको स्पाइडर मैन की कहानी सुनाऊंगा. "
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समय बीता अनीश ने एन. डी. ए. की परीक्षा पास की.आगे जाकर उसका सलेक्शन कमांडो की ट्रेनिंग के लिये हो गया है.उसमें कुछ कर दिखाने का जज़्बा कूट कूट कर भरा है. दादू ने कहा था वे उसे एक दिन सबसे ऊँचे पद  पर देखना चाहते हैं.
दादू को याद कर के उसकी आँखें नम हो आयी हैं.

ट्रेनिंग पर जाने से पहले वो दिल्ली आ गया है.
 उसको वीज़ा भी लगवाना है. विदेश जाने के नाम से  ही वो बहुत खुश है . उसने अपनी छुट्टी में दोस्तों के साथ मौज़ मस्ती में बिताने की सोची है.
सारा दिन क़ुतुब मीनार के आसपास घूमने के बाद उसने
राघव के घर का रुख किया, जो बिलकुल पास ही सौ फुटा रोड पर रहता है. आज वो राघव की बाइक से आया था. सडक पार बाइक धीमे कर वो अपने घर फ़ोन लगाने के लिये रुका कि उसे पेड़ के नीचे एक मोबाइल और लेडीज़  पर्स पड़ा दिखाई दिया.
अब वो चौकन्ना हो कर चारों ओर देखने लगा.
अचानक उसने देखा कि बाइक की  रौशनी से सामने कीओर कुछ आवाज़े आने लगीं.मानों कोई शैतानी हंसी हँस रहा हो उसने चारों ओर बाइक की लाइट्स घुमाई. लाइट देख कर कुछ हलचल  हुई.
अनीश जोर से चिल्लाया कौन है?
 तभी एक तीस  पैंतीस वर्ष की युवती बेहद डरी हुई सड़कों पर बदहवास सी दौड़ती हुई दिखाई दी . उसके होठों से खून निकल रहा था, आँखों के नीचे चोट के निशान थे उसकी शर्ट के बटन खुले हुए थे.
उसके पीछे दो लड़के भी उसे धमकाते हुए दौड़ रहे थे.
"रुक जा भाग के कहाँ जाएगी."

बड़ी फुर्ती से अनीश अपनी बाइक से लड़कों और उस युवती  के बीच दीवार बन कर खड़ा हो गया.
अनीश को देख दोनों लड़के एक पल तो सकपका गए फ़िर बोले "तू अपना रास्ता  नाप भाई !हमारे चक्करों में ना पड़. बड़ी मुश्किल से हाथ आयी है."
"ये हमारी सड़क है."
"सड़केंऔर इलाके  कुत्ते बांटते हैं."अनीश बोला
अनीश ने लड़की को इशारा किया "आप जाइये मैं इन्हें रोकता  हूँ."
लड़की पेड़ के नीचे से अपना मोबाइल और बैग उठा कर बेतहाशा भाग ली. इधर एक लड़के ने क्रोध में आकर चाक़ू निकाल लिया था.
जिसे अनीश ने  अगले पल ही  छीन कर बड़ी दूर फेंक दिया.
करीब आधा घंटे हाथापाई में एक लड़का बीच में ही अपनी जान छुड़ा कर भाग गया.
शायद अपने साथियों  को बुलाने गया था.
दूसरे  युवक को अनीश ने पकड़ कर अपने काबू में कर लिया था. तभी पुलिस की  जीप आ गई. जिसे युवती ने फ़ोन करके बुलाया था. अनीश को भी हल्की फुल्की चोटें आयी थीं.
किन्तु लड़की की जान बच गई इसलिए वो अपना सारा  दर्द भूल गया था.
पूरी रात थाने में ही कटी. पुलिस वाले एफ़. आई. आर लिखने से कतरा रहे थे और युवती ज़िद पकड़ कर बैठी थी कि  अगर रिपोर्ट नहीं लिखी जाएगी तो वो अन्न जल  ग्रहण नहीं करेगी. यहीं बैठी रहेगी.
आखिरकार सुबह छेड़खानी की रिपोर्ट लिखी गई.
दोनों युवकों को छेड़खानी के आरोप में जेल में डाल दिया गया.
वे दोनों किसी ठेकेदार के बेटे थे.
 बाद में सुनने में आया कि  वे रिहा हो गए हैं.
अनीश इस किस्से को भूल कर अपनी नौकरी में लग गया.

पर अवचेतन मन में कभी कभी  चलता रहता था कि उस युवती का क्या हुआ होगा?  उसकी शक्ल अब भी आँखों के आगे से हटती नहीं थी. कैसे उसके होठों से खून बह रहा था. उसके चेहरे पर चोट के निशान अच्छी भली सूरत  को वीभत्स बना गए थे.
वो पुलिस इंस्पेक्टर कितना मजबूर दिखाई दे रहा था. यह कहते हुए कि "आये दिन यहाँ पर रेप केसेज़ होते रहते हैं हमारी तो नौकरी ही मुश्किल कर दी है ऐसे  दुष्टों ने."
करीब दो वर्ष बाद
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राघव की शादी  का कार्ड आया है. उसने बहुत ज़िद की है प्लीज़  शादी में ज़रूर आना.
 दरअसल राघव की होने वाली पत्नी इशिता भी उसकी कॉमन फ्रैंड है इसलिए जाना तो बनता है.
अनीश ने  छुट्टी ले ली है. ना जाने क्यों अब दिल्ली से जी उचट गया है.
शादी का दिन नज़दीक आ गया. मोबाइल में हर फंक्शन के अपडेट देख देख कर अनीश भी उत्साहित हो उठा है.
उसने पीले रंग का सिल्क का कुरता और सफ़ेद चूड़ीदार पजामा पहनकर राघव को हल्दी की रस्म पर सरप्राइज़ देनी की सोची है.
आखिरकार राघव के दोस्त को भी अच्छा  दिखना चाहिए. यहाँ फ़ौज में तो लड़कियों का अकाल पड़ा है शायद इशिता की कोई सहेली की नज़र उस पर  पड़ जाए.

अनीश मन ही मन ख़याली पुलाव पका रहा है.
एयरपोर्ट से राघव के घर की दूरी सिर्फ़ बीस मिनटों की है. वो टैक्सी खड़ी करके अपना सामान पीछे डिक्की से निकालने लगा कि  किसी ने उसे आवाज़ दी.
वो जैसे ही पीछे मुड़ा कि उसके  ऊपर किसी ने लोहे की रॉड से हमला कर दिया था.  उसकी टांगों पर बराबर प्रहार करते हुए लड़के  कह रहे थे "बहुत हीरो बनता है तुझे तो जीते जी मार देंगे. हमें जेल कराने चला था."
"ना तू जी पाएगा ना मर पायेगा. "
ये वही लड़के थे, जिनसे उसने उस युवती को बचाया था. उसने बेहोश होने से पहले देखा.
कायर कहीं के !इसके साथ ही उसकी आंखे बंद हो गईं.उसे होश ना रहा. उसके गिरते ही अफ़रातफ़री मच गई. सिल्क का पीला कुरता खून से चिपक कर भूरा सा हो गया है और सफ़ेद पायजामा लाल रंग में रंग गया है.
राघव और इशिता अपनी शादी के दिन मिलिट्री हॉस्पिटल में बैठे आँसू बहा रहे हैं.
करीब एक महीने तक अस्पताल में रहने के बाद अनीश ने बैसाखियों से चलना शुरू कर दिया. पूरी रिकवरी में एक वर्ष लग गया है.
उसकी पोस्टिंग सीमा से हटाकर किसी छोटे शहर के ऑफिसर्स मेस में कर दी गई.
आख़िर किस बात की  सज़ा  मिली है उसे?
सिर्फ़ एक लड़की की जान बचाने का कुसूर था उसका या कुछ और?
ये कैसी  व्यवस्था  है कि  गुनहगार बाहर निकल आते हैं?
और फ़िर से उनके हौसले बुलन्द  होते जाते हैं.
इस समाज में कब तक लोग डर डर के रहेंगे?
कुछ ऐसे प्रश्न  हैं जिनके उत्तर किसी के पास नहीं हैं.
अब अनीश ने योगा करना शुरू कर दिया है और ऑफिसर्स मेस के सभी कर्मचारियों को भी ध्यान लगाना सिखा रहा है.
धीरे धीरे उसकी चाल पहले जैसी हो गई कोई कह ही नहीं सकता था कि मेजर अनीश के घुटनों की  हड्डियाँ कभी चकनाचूर हो गई थीं.
अभी कुछ दिनों पहले उसे ब्रिगेडियर  साहब ने खुशखबरी दी कि उसकी पोस्टिंग एक वर्ष के लिये कोरिया में की  जा रही है." ये टिकेट्स पकड़ो और दिल्ली जाकर वीसा लगवा लो."
"येस सर !!"
अनीश की आवाज़ में बड़े दिनों बाद उत्साह आया है. पिछले चार साल खाना बनवाते और हाउस कीपिंग  सँभालते गुज़रे थे.
"सर !!मैं एक हफ़्ते की छुट्टी चाहता हूँ मां से मिल आऊं."
"हाँ क्यों नहीं?"
"कहाँ है तुम्हारा घर?"
"जी भोपाल में."
"ओह, नाइस नवाबों के शहर से हो."
"गुड !!"
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अनीश दिल्ली  एयरपोर्ट से सीधा वीसा का काम कराने गया.अभी शाम के पांच बजे थे. उसने राघव से कहा" प्लीज़ अपनी बाइकर जैकेट और पैंट ला दोगे."
"और हां हैलमेट और जूते भी."
"क्या यार तेरा बाइक चलाने का शौक़ ख़त्म नहीं होगा."
अनीश हँस पड़ा." बहुत धीरे चलाऊंगा. अपनी जान प्यारी है मुझे."
"और हाँ कल सुबह किसी से तेरे घर भिजवा  दूंगा."
"तू  नहीं  बदलेगा साले !"
राघव ने हंसी उड़ाई.
शाम धुंधला गई थी.अनीश ने बाइक सौ फुटा रोड की ओर दौड़ाई. यहीं से उसकी ज़िन्दगी के पांच वर्ष बर्बाद हो गए थे. वो बराबर वहां के चक्कर लगाता रहा.
अचानक उसकी निगाह एक खुली जीप पर पड़ी.उसके दिल की धड़कन बढ़ गई थी.
 वे दोनों ठेकेदार के लड़के एक खुली जीप से उतरे,  बाहर आकर पुलिया पर बैठे थे. ये उनकी वर्षों पुरानी जगह थी. एक के हाथ में बीयर की बोतल थी दूसरे के हाथ में बिरियानी का मटका था.
अनीश ने तुरंत ही फैसला ले लिया अपनी बाइक को थोड़ी दूर पेड़ों के झुरमुट में छिपा  दिया.फ़िर उसने ओला से कैब मंगवाई और  वापस जीप से पांच सौ मीटर दूरी पर उतर गया. उसने अपना चेहरा हेलमेट से ढंक रखा था.कैब  के ओझल होते ही वो रोड के खाली होने का इंतज़ार करने लगा. सर्दियों की रात में ये रोड वैसे भी खाली पड़ी रहती थी.

करीब एक घंटे के बाद
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मौका पाते  ही वो खुली जीप में जा बैठा,जीप की चाभी इग्निशन में पहले से ही लगी हुई थी. दोनों युवक लापरवाही से पीने पिलाने का आनन्द उठा रहे थे. उसने बिना वक्त बर्बाद किये जीप को रिवर्स गेयर में डाला. दोनों युवक अचानक हुई इस घटना से अपनी जीप की ओर भागने लगे.
अरे !अरे ! क्या कर रहे हो.....उनकी बात अधूरी ही रह गई.
 अनीश ने अचानक गेयर बदला और फोर्थ गेयर डाल कर जीप उन दोनों दुष्टों के ऊपर चढ़ा दी. खून के फ़व्वारे रात्रि की कालिमा में सडक को भिगोते रहे.
कमांडो अवनीश ने अपनी बाइक तक की दूरी सिर्फ़ एक मिनट में दौड़ कर  तय कर ली थी. वहां से उसने सीधे गेस्ट हाउस का रुख किया.
गेस्टहाउस में रात का डिनर लेने के बाद वो रात बारह बजे कोरिया के लिये उड़ चला. आज उसके दिल से एक बोझ उतर गया था.
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सुबह चार बजे पुलिस का गश्ती दल  जब उधर से निकला तो जीप के नीचे युवकों की लाश पर निगाह गई.

सिपहियों की इत्तला पर पुलिस चौकी से पुलिस इंस्पेक्टर ने आकर मुआयना किया और बेसाख्ता उसके मुंह से निकला "कुत्ते थे कुत्तों की मौत ही मरे पाए गए."
अगले दिन के अखबारके तीसरे पेज़ के कोने में छपा कि नशे में धुत्त युवकों की लाश उनकी ही जीप के नीचे संदिग्धावस्था में पायी गई .
समाप्त

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👨‍❤️‍👨भाई साहब के प्रेम पत्र 👩‍❤️‍👨

हम लोग तीन भाई थे. सबसे बड़े भाईसाहब, उनसे करीब तीन साल छोटा मैं, फ़िर सबसे छोटा गोलू जो कि मुझसे दस वर्ष छोटा था. यानि कि बिल्कुल पिद्दी था हमारे सामने.
भाईसाहब की उम्र थी तब सत्रह वर्ष ऊँचा लम्बा कद, आकर्षक व्यक्तित्व, पापा के पुराने कपड़े पहन के जब तैयार होते तो कोई समझ नहीं सकता था कि ये लड़का पिछले दो वर्षों से  कक्षा दस में ही है.
पूरे मोहल्ले में उनके पास ही मोटर साईकिल चलाने का अधिकार था.मोहल्ले के लौंडों के अघोषित हीरो थे.
अम्मा के बहुत लाड़ले थे भाई साहब.
मेरा क्या मैं तो सैंडविच था. अम्मा भाईसाहब को दुलारने  से जब  छुट्टी पाती तो गोलू को लाड़ लड़ाने लगतीं .
मुझ पे तो उन्हें तब ही प्यार आता जब मुझसे  बाज़ार से सब्जी मंगवानी होती थी.
उस रोज़ मैं सब्जी मंडी जा रहा था. उधर से भाईसाहब निकले. मुझे देख कर मोटरसाइकिल धीमे की. मैंने आशा भरी नज़रों से देखा और कहा "अम्मा सब्जी मंगवाईं हैं.
क्या सब्जीमंडी तक छोड़ देंगे."
"अब ये मोटर साईकिल सब्जी मंडी जाएगी."भाई साहब ने हिक़ारत भरी नज़रों से देखते हुए जवाब दिया, फुर्र से बाइक स्टार्ट कर चलते बने. मैं धूल उड़ाती मोटर साईकिल को देखता रहा.
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वो कहते हैं ना समय बड़ा बलवान होता है. मेरे भी दिन फ़िरे हुआ यूँ कि भाईसाहब इस बार फ़ेल होकर मेरी ही कक्षा में आ गए.
पिताजी ने गंभीर स्वर में मुझसे कह दिया था "देखो छुट्टू ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि इस साल तुम्हारे भाईसाहब इज़्ज़त के साथ पास होकर निकलें."
मन ही मन खुंदक खा गया मैं.
"पहले तो छुट्टू छुट्टू कहते रहते हैं. ये भी कोई नाम है भला."
"दूसरा बच्चे के पास होने की जिम्मेदारी बाप नहीं लेगा तो छोटा भाई क्यों ले?"
"और भाई साहब  रात दिन इधर उधर से आते हुए झपड़ियाते रहते हैं, उस पर कभी बुढ़ऊ (जब गुस्से में होता था तो पिताजी को इसी सम्बोधन से मन ही मन पुकारता था )कोई कार्यवाही करेंगे या नहीं."
"कभी हमको भी बाइक चलाना सिखाया जाएगा. या हम पैदल ही सब्जी का झोला चलेंगे ताउम्र."
मेरी शिकायतों की फेरहिस्त बहुत  लम्बी थी पर अभी इतनी ही काफ़ी है.
वैसे एक  ही कक्षा में आने के कुछ सुखद परिणाम भी सामने आने लगे थे.
भाई साहब ने धौंस जमाना छोड़ दिया था. कभी कभी बाइक की सवारी भी करा  देते थे. मैं अपने नोट्स उनको दे देता था. जिस वजह से उनकी निगाहों में मेरे लिये इज़्ज़त साफ़ झलकती थी.
वे दिन पर दिन बदलते जा रहे थे. मैं मन ही मन गर्वित था कि इस बदलाव की वजह मैं हूँ.
किन्तु नहीं मेरा भ्रम जल्द ही टूट गया इसकी वजह थी "मधूलिका" जो हमारे घर से तीन मकान छोड़ कर रहती थी. जब भाईसाहब शाम को अपनी मोटर साईकिल से निकलते, वो पहली मंज़िल के छज्जे पर मुस्कुराती हुई बाल संवारा करती थी. भाई साहब की बाइक वहीं रुक जाती वे नीचे खेल रहे लड़कों से वे उच्च स्वर में बातें करने लगते थे . वो ऊपर से नीचे हो रही बातों पर कान लगाकर  खिलखिलाती  रहती थी.
गजब टाइमिंग थी दोनों की,
पर पूरे मोहल्ले में कोई जान  नहीं पाया था क्या गुटुर~~ ग🦅🐦~ ऊँ चल रही है. मधूलिका भाईसाहब की नज़रों में अप्सरा थी  पर मेरी नज़रों में महा मुहंफटऔर साधारण सी लड़की थी. उसकी कुछ बातों से मैं काफ़ी चिढ़ता था.
आज कल मुझे एक नये नाम से पुकारने लगी थी "लल्ला जी ".
उस दिन हम दोनों भाई लॉन में बैठे पढ़ रहे थे हमको देखा और जोर से कहने लगी
 "करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान.."

 कसम से इतना गुस्सा आया,  मन हुआ उस बदतमीज लड़की का मुंह तोड़ दूं. मैं उठने को था और बोला "मधू लिका की बच्ची" कि तभी तक  भाई साहब ने हौले से मेरा हाथ ऐसे पकड़ा कि मुझे रामलीला  का राम लक्ष्मण और परशुराम का दृश्य याद आ गया.
भाई साहब दबी जुबान से बोले "जाने दे छुट्टू ".
उनके स्वर में मिठास थी जब उनकी ओर देखा आए  हा...ए ए... उनका चेहरा शर्म से गुलाबी और कान लाल हो रहे थे.
 सच पूछो तो मेरा दिमाग झन्ना  गया था यह सोचकर कि लगता है इस वर्ष मधुलिका नाम की लड़की भाई साहब को क्लास रिपीट करवाएगी.
किंतु शाम को जब सूरज चाट वाले के यहां भाई साहब ने गर्म गर्म टिक्की और चाउमीन नींबू सोडा के साथ खिलवाई तो मैं मधुलिका का प्रकरण भूल गया.
भाई साहब ने मुझसे वादा लिया कि मैं मधू की बात अम्मा को ना बताऊँ क्योंकि उन पर इंप्रेशन खराब हो जाएगा. आखिरकार वह तेरी होने वाली भाभी है. ओ माय गॉड !भाई साहब की कल्पना शक्ति पर हंसूं या रोऊँ,  मुझे समझ नहीं आ रहा था.
 किंतु शाम को वह बेशर्म लड़की मधुलिका मेरे आगे तन कर खड़ी हो गई और मेरे हाथ में हिंदी व्याकरण की मोटी किताब रख कर यह कहती हुई चली गई, "उनको दे देना."
 मैंने  किताब उलट-पुलट कर देखी उसका ऊपरी कवर पेज कुछ मोटा सा लगा मैं  दौड़ा-दौड़ा घर के अंदर गया और कमरे की कुंडी चढ़ाकर रखे हुए किताब के अंदर का मामला समझने की कोशिश की,  किंतु चालाक लड़की ने सेलो टेप से कवर को चिपका रखा था.
भाई साहब आए और किताब लेकर अंदर चले गए कल तक जो  भाई साहब मुझे  दुनिया भर के  मूर्ख ज़ालिम और मंदबुद्धि नज़र आते थे.  आज वह अचानक ही मेरी नजरों में दिलीप कुमार राज कपूर और राजेंद्र कुमार जैसे हीरो बन गए थे पहली बार गर्व  हुआ कि  मैं उनका छोटा भाई हूं.
भाई साहब कमरे से बाहर निकले तो तो वह एक गीत गुनगुना रहे थे "इतना ना मुझसे तू प्यार जता ". यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि
 हमारे घर में रेडियो पर भी गाना सुनना मना था प्रेम गीत तो बिल्कुल ही नहीं बज सकते थे. बगावत का बिगुल बज चुका था.
भाई साहब मच्छरदानी के अंदर पलंग पर बैठ कर कॉपी में कुछ लिख रहे थे अम्मा आई और झाँक कर चली गई बबुआ इस बार बहुत मेहनत करके पढ़ रहे हैं इस बार जरूर अच्छे नंबरों से पास हो जाएंगे.
 सुबह-सुबह भाई साहब ने हिंदी व्याकरण की किताब फिर तो तैयार कर दी और मुझेआते हुए देख  बोले जाओ सीधे मधु को देना गनीमत थी कि भाई साहब ने कवर पेज चिपकाया नहीं था मैं मधु के घर जाने से पहले किसी ना किसी बहाने उसमें रखे हुए पत्र को पढ़ना चाहता था और खुश किस्मती थी कि मुझे पढ़ने का मौका भी मिल गया.
 भाई साहब मोटरसाइकिल स्टार्ट  करके कहीं चले गए.  धड़कते हुए उसे मैंने पत्र को खोला किंतु पत्र को देखकर काफी हंसी आई उन्होंने लिखा था
 प्रिय मधु
के नीचे
एक बड़ा सा दिल♥️
जिसके  के आर पार तीर था, फ़िर छोटे दिलों के सहायता से 🌺फूल बनाया था. ड्राइंग शीट का इस्तेमाल बखूबी किया गया था पूरे पेपर को नीले रंग से रंगा गया था. जिस पर सफ़ेद रंग के सितारे थे  बीचो बीच में लड़का और लड़की👫 हाथ में हाथ लिये दिखाए गए थे. चमकते हुए सितारे रात्रि का बेहद खूबसूरत आभास देते थे हां पेपर शीट के ऊपर और नीचे दोनों और लाल रंग 👄 के होठों का इस्तेमाल किया गया था.
  आज एक बात पता चली कि भाई साहब पढ़ाई लिखाई में बेशक गुड़ गोबर थे किंतु उनके ड्राइंग बहुत अच्छी थी और मैं अच्छा भला विद्यार्थी होने के बावजूद भी चित्रकला में बेहद फिसड्डी था.बस मैंने जुगत लगाई और अपनी ड्राइंग कॉपी और बायलॉजी प्रैक्टिकल कॉपी भाई साहब के पास ले आया.प्लीज़ मेरे चित्र बना दीजिये  जिसके एवज में प्रेम पत्र इधर से उधर किसी कबूतर की भांति पहुंचाने का ठेका ले लिया था.
खास बात यह थी कि  चाह कर भी कभी भी मधूलिका के पत्र ना पढ़ सका ना जाने भाई साहब कहां छुपाते थे पूरा घर ढूंढ मारा था. बिल्कुल सच्चा प्रेम था उनका.

अब तक उनके इश्क का राजदार हो गया था इसलिए भाई साहब अपनी चित्रकला को दर्शाता हुआ प्रेम पत्र मेरे सामने ही ड्रॉ किया करते थे. उस रात की बात है तारीख थी 1 मार्च रात्रि  10:00 बजे का समय था बाबूजी की  चप्पल हमारे कमरे में रखी थी वे अपने जूते शू रैक में  रखने आए थे. जूते रख कर चप्पल उठाने के लिए जैसे ही नीचे झुके भाई साहब को तन्मयता से चित्र बनाते देखा बड़े प्यार से उन्होंने झाँका था...... कि पेपर पर आई लव यू और लाल👄 होठों का निशान देखते उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया., फिर तो आव देखा न ताव हाथ में पकड़ी हुई चप्पल किसी अस्त्र की तरह इस्तेमाल करते हुए भाई साहब की बहुत धुनाई की.
अम्मा बचाने आयीं तो बोले "दूर हट जाओ तुम्हें भी एक दो हाथ लग जाएगा" वे उल्टे पांव वापस चली गई.

पिताजी की गलत टाइम पर एंट्री से भाईसाहब का प्रेमपत्र अधूरा रह गया था. दरअसल मेरा ही सुझाव था कि"भाईसाहब  आई लव यू  लिखने के बाद बीच में  मधूलिका का पोर्ट्रेट बना दीजिये. काफ़ी ख़ुश हो जाएगी."

 भाईसाहब के पास मधुलिका की  पासपोर्ट साइज़ फ़ोटो थी आज वही बनाने जा रहे थे बेचारे !! अधूरा रह गया पोर्ट्रेट.
 खींचातानी में मधुलिका की फोटो नीचे गिर गई थी.
 यह गनीमत थी असली माजरा समझ नहीं पाया पाए थे पिताजी.
किन्तु पिता जी ने जितना भाईसाहब को कू टा था सबका बदला भाई साहब ने मुझे पीट कर ले लिया क्योंकि कहीं ना कहीं दोषी था आई लव यू लिखने का, मधू की फ़ोटो से 👧तस्वीर बनाने का आईडिया मेरा ही था.

 हम दोनों भाई रात अलग-अलग कारणों से रोते हुए सोए अचानक रात के 12:00 बजे भाईसाहब ने मुझे हिलाकर जगाया बोले "छुट्टू अरे यार उठ "मैं आँख मलते  बिस्तर पर बैठ गया वे बोले "मधू की फोटो कहां चली गई चल ढूंढते  हैं."
रात भर हम दोनों भाई टॉर्च की रोशनी में पलंग के नीचे अलमारी के पीछे बक्से के अगल बगल  मेजपोश झाड़ के सभी कॉपी किताबों में पासपोर्ट साइज की फोटो ढूंढते रहे. किंतु ना जाने कहाँ सरक गई नहीं मिली.
 हार मान कर  हम दोनों सो गए अगले दिन सुबह पिताजी जब ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे तो उनके मोजों और जूतों के बीच में कुछ फंस रहा था. पिताजी ने जब जूते में हाथ डाला तो देखा  मधुलिका की फ़ोटो निकल पड़ी,  उनके चेहरे पर बल पड़ते कि सबसे छोटा भाई बोल पड़ा "पापा पापा ये हमारी भाभी हैं. भैया कहते हैं."
मन ही मन भाईसाहब पिताजी से और मैं भाईसाहब से फ़िर से  पिटने को तैयार हो चुके थे.
किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ वो फ़ोटो मेज़ पर रख कर बोले "नालायक "मैंने कनखियों से देखा पिताजी मुस्कुरा रहे थे.
भाईसाहब ने मेरे कान में धीरे से कहा  "रावण हँसा."
समाप्त

प्रीति मिश्रा
लघुकथा
हलवा पूरी
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काका जी काफी बूढ़े थे.
 काकी तो ना जाने कब की  गुजर गई थी. अमित को उन्होंने ही पाला था.
इसलिए उसके  परिवार का हिस्सा थे. अपने जमाने में काफी रौब था उनका. अब  दिनभर चुपचाप कमरे में पड़े रहते,  और शाम को 4:00 बजने का बेसब्री से इंतजार करते थे.  दरअसल शाम को 4:00 बजे अमित की बहू उनको रोज नाश्ता देती थी. कभी पकौड़े कभी हलवा.
 काका जी बहू से पर्दा करते थे इसलिए अपने मन की बता नहीं पाते थे. उस रोज बहू को जल्दी थी बहू ने चाय बनाई और साथ में बिस्किट लगा दिये. मेरीगोल्ड के बिस्किट शाम को 4:00 बजे कोई खाता है क्या?  काका जी उदास हो गए.
उधरअनजान बहू अपने काम में लगी हुई थी कि तभी  काका जी के कराहने की  आवाज आई. छोटा बेटा दौड़ कर उनके पास जाकर बोला दादू आपको क्या हुआ है?
 काका जी बोले "पता नहीं बहुत घबराहट हो रही है. मेरे सीने में बड़ा दर्द हो रहा है. "
बहू भी डर गई.
देखने में तो बिल्कुल ठीक-ठाक थे. काका जी के माथे पर पसीना आ गया था बोले "कुछ अच्छा नहीं लग रहा है मुंह सूख रहा है."
घर में पति को आने में बहुत देर थी.पास पड़ोस में कोई डॉक्टर भी नहीं था.

तभी न जाने बहू को क्या सूझी?

"आपको ठंड तो नहीं लग रही है."
"क्या मैं आपके लिए  गरम-गरम हलवा बना दूँ."
"मैंने सुना है देसी घी दिल के लिए बहुत अच्छा होता है." काका जी बोले "शायद तुम ठीक कहती हो बहू."
वो फ़टाफ़ट रसोई घर में गई  और हलवा बनाकर ले आई उसने देखा बूढ़े काका स्वाद लेकर पूरी प्लेट हलवा चट कर गए हैं. उस  के बाद आशीष वचनों की झड़ी लगा दी ईश्वर तुम लोगों को स्वस्थ रखें, सुखी रखें.
तुम लोग हलवा पूरी खिलाते हो. मेरा मन तृप्त हो जाता है.
दरअसल बहू को  कूड़े दान में  बिस्किट के टुकड़े  नज़र आते ही सारा माज़रा समझ में आ गया था.
काका जी को कुछ नहीं हुआ है बस भूखे हैं .
 आज ही उसने जल्दबाजी में काका जी को ताज़ा नाश्ता नहीं दिया.
अगले दिन से बेटे की मैगी भी और बिटिया का केक भी काका जी की प्लेट में जाने लगी थी.
"बेटा केक में अंडा तो  नहीं  है."
"नहीं दादू"
दोनों बच्चे एक साथ  बोल उठे थे.
समाप्त
गद्य  रचना
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आँगन के उस  पार
***************

बात आज़ादी  से पहले की है, वो हवेली के आँगन के उस पार रहती थी. 
वैसे तो ठाकुर साहब की तीसरी पत्नी कहलाती थी, पर ब्याहता नहीं थी.क्योंकि सबसे नयी थी इसलिये जाहिर है
 उनको सबसे ज्यादा प्रिय थी.
दोनों पत्नियों की आंखों में खटकती थी वह.
उसका इधर आना बड़ी ठकुराइन ने निषिद्ध कर रखा था.
मंझली कुछ ना  कहती. दूर से देखती थी.
जितनी रूपवती थी उससे दोगुना श्रृंगार जो करती थी. हर समय मुँह में पान के बीडे की लाली रहती या होंठ ही लाल थे. दूर से दिखाई नहीं देता था. ठाकुर साहब शौक़ीन थे. कुछ भी घर में ले आते थे. एक रात्रि के अँधेरे में उसे ले आये थे.
स्त्रियों का  राय मशवरा लेना  उनकी मर्दानगी के ख़िलाफ़ था.
सुख के दिन बीते और परिवार पर गाज गिरी, हुआ यों कि उनकी नौ वर्ष की पुत्री जिसका विवाह पिछले वर्ष किया था वैधव्य को प्राप्त हुई. जब घर में ख़बर आयी तो वो बच्ची अपनी गुड़िया की शादी रचा रही थी.
ऐसे वक्त में काम आयी आंगन पार वाली स्त्री. वो नन्ही बच्ची को जबरन आँगन के उस पार ले गई. एक भी बेहूदी रस्म ना होने दी उसने. इस मामले में ठाकुर साहब के साथ अंदर ही अंदर दोनों पत्नियां भी उसके साथ थीं.
दो चार महीने में सब ठीक  हो गया था. वे अपने जीवन में आगे बढ़ चले थे.

 फिर वह एक पुत्र और पुत्री की मां बन गई.
 अब घर की बर्फ पिघल रही थी. आंगन के उस पार उसके घर से भजन और कीर्तन के मधुर स्वर आने लगे.
बच्चे घुटनों चल कर इस ओर आ जाते थे.अपने भोलेपन से बड़े भाईबहनों से मिल गए  जैसे दूध में पानी.

तीनों स्त्रियां बैठती और अपने सुख दुःख कहतीं थीं.
पहली पत्नी के दो पुत्रियां थीं, पुत्र ना था. इसलिये ठाकुर साहब ने दूसरा विवाह किया था.
किन्तु मंझली पत्नी के तो पुत्र हुआ था....... फ़िर......  तीसरी बोल पड़ी ठाकुर साहब मुझे  कोठे से खरीद कर लाए हैं. मुझे स्वयं भी अपने माता-पिता का पता नहीं है.
तीनों स्त्रियों के दर्द अलग थे.
ये दर्द ही उन तीनों स्त्रियों की मित्रता का कारण बन गया था.
 बच्चे साथ-साथ बड़े होने लगे, और फ़िर  एक दिन ऐसा आया कि  तीसरी पत्नी बिना कुछ बोले जैसे इस घर में आई थी वैसे ही चली गई.
जाते जाते एक पत्र छोड़ गई थी. उन दोनों स्त्रियों के नाम. हो सके तो मेरे मालिक से कहना कि मैं बेवफा नहीं थी.
उन्होंने मुझ पर शक किया इसलिए अब  उनका मुझ पर  कोई हक नहीं है.
दोनों स्त्रियां रो पड़ी थीं. अपने हिस्से में आई बेवफ़ाई को याद करके, या सचमुच उस कुजात की हिम्मत और अपनी ग़ुलामी का शोक मना रही थीं.
काफ़ी देर विलाप करने के बाद ठकुराइन ने दोनों बच्चों को उठाया और आँगन के उस पार घर में रहने चली गईं.
 अब ठाकुर साहब का वहां जाना निषिध्द हुआ था.
लघुकथा
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उधार
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बात करीब साठवें दशक की  है.
 उस लड़के के  खानदान की मानो परम्परा बन चुकी थी कि यदि कोई लड़का ठीक से पढ़ाई ना करता तो लखनऊ से बॉम्बे  जाने वाली ट्रेन में बैठ जाता था. सोचता था फ़िल्म इंडस्ट्री वाले उसके इंतज़ार में फूल माला लिए खड़े हैं.
दरअसल मुम्बई के गोरेगांव फिल्मसिटी  में रहते थे, उनके  मुनुआ चाचा, जो कि किसी कैमरा मैन के असिस्टेंट थे, या कुछ और छोटा मोटा कार्य करते थे. ठीक से मालूम नहीं है किन्तु उनके पास रहने को एक  कमरा था.
आने वाले भतीजों  का खुले दिल से स्वागत भी करते थे.

अब जब  उसने दसवीं में दो बार गुलाटी मारी, यह देख के घर में सभी आशंकित हुए इसलिये  उसे बड़े भइया पिताजी से ज़िद करके अपने पास गोरखपुर ले आये थे.
लेकिन बड़े भैया के चुग़लख़ोर दोस्तों के कारण उसकी भैया के  यहाँ अच्छी  वाट लग गई थी.
" शुक्ला जी आपका भाई पतंग उड़ा रहा था."
कोई कहता
"भरी दुपहरी में अमरुद के साथ सड़क  पर नीम्बू शिकंजी पी रहा था."
"स्कूल के समय पिक्चर हॉल में था."
बड़े भैया भी चुगली की  गंभीरता के अनुसार उसे कन्टाप धर देते थे. पता नहीं शहर के हर कोने में उनके दोस्त भरे पड़े थे.
उस दिन पहली बार गोलघर के  नुक्कड़ पर वसीम के कहने से सिगरेट बस उसके होठों से छू  ही पायी थी कि सामने से भैया के  मित्र महोदय दिख गए.
वो पिटने के डर से सीधा रेलवे स्टेशन भागा और बिना टिकट मालगाड़ी में छुप कर बैठ गया था. इत्तिफ़ाक़ देखिए गाड़ी बॉम्बे जा रही थी.
दो दिन बाद गोरे गांव पहुंचा तो मुनुआ चाचा तक फ़ोन से  ख़बर आ चुकी थी. उन्होंने भतीजे को प्रेम से गले लगा लिया.
चाचा ने कहा "मैं खाना बनाता हूँ तुम चटनी पीस लो, साथ में खाएंगे. "
वो दो दिन का भूखा था. फ़टाफ़ट खिचड़ी के साथ चटनी छप्पन प्रकार के भोगों से अधिक स्वादिष्ट लगी थी.
अब  हर दिन उसका काम था, चटनी पीसना, सब्जियाँ काटना, मुनुआ चाचा खाना बनाते जाते बीच बीच में कहते "जा बेटा कटोरी धो कर ला दे,  थाली और चम्मच भी धो लाना."
कभी कभी अठन्नी या एक दो रूपए भी दे देते थे चाचा.
उसने मन ही मन सोचा  था कि जल्द ही इससे ज्यादा कर लौटा देगा.

कहते हैं बॉम्बे ऐसा शहर है जिसने सबकी झोली भरी है. वो तो किस्मत वाला था, जल्द ही उसे कपड़े की मिल में नौकरी मिल गई थी.जीवन पटरी पर आ गया था.
 रहने को अपने कमरे की व्यवस्था भी हो गई थी.
अबके  चाचा जी के घर मिलने गया तो मिठाई और फल  ले गया था. उनके लिए एक लखनऊ का कुर्ता पायजामा भी खरीदा था. वो भी शरमाते हुए दे आया था.
जब वापस जाने लगा तो चाचा बोले "बेटवा हमारे पांच रूपए पचास पैसे......" जी चाचा जी."
उसने तुरन्त पैसे निकाले और दे दिए. पर मन खट्टा हो  गया था.
कुछ दिनों बाद उसने एक लड़की से विजातीय प्रेमविवाह  कर लिया, विवाह के समय फ़िर चाचा चाची जी आए  वर पक्ष से अकेले थे.
अब जब तब घरवाली से मिलने आते रहते थे.
पर हर बार  मुनुआ चाचा गोरखपुर से उसका पलायन और पांच रूपए पचास पैसे उधार की बात अवश्य छेड़ देते थे.
वो कभी चुपचाप  दे देता था. कभी अनसुनी  कर देता था.
पिछले दस वर्षों में आठ बार उधार चुकाया था उसने.
कुछ वर्षों में उसने वाशी में एक  प्लॉट खरीदा और उस पर बल्व बनाने की एक फैक्ट्री लगाई, इस बार पिताजी और बड़े भैया को भी बुलाया था.वो यहाँ का नामी व्यापारी था.
पिताजी ख़ुश थे कि  उनका नालायक बेटा इतनी उन्नति कर गया है उन्होंने मुनुआ को भी धन्यवाद दिया, तभी आदत के अनुसार मुनुआ चाचा को अपने पैसे याद आ गए, आज उससे ना रहा गया वो भी मुस्कुराते हुए बोला चाचा मैंने भी तो दो महीने आप की  कटोरियाँ चमचे धोए थे, सब्जी काटी थी, मेरा  भी कुछ पैसे का उधार आप पर बनता है.
सभी लोग ज़ोर से हँस पड़े थे, चाचा इधर उधर बगलें झाँकने लगे थे.

समाप्त 
प्रीति मिश्रा


... जीत जाएंगे हम......
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नेहा और रवि  एक साथ ही नौकरी में आए, 1साल की ग्रैजुएट इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग की.
हर रोज साथ चाय पी और छुट्टी के बाद नेहा के छोटे से क्वार्टर पर साथ मूवीज़ देखीं,  कभी बॉस की हंसी उड़ाई कभी कुछ खाना पकाया, पिज़्ज़ा, बियर  और वोडका  के साथ वे  जल्दी ही के प्रेम में रंग गए थे.
रवि बांसुरी बजाता था. जो सीधे नेहा के दिल में उतरती थी.
नेहा को  कभी कोई सुष्मिता सेन जैसी बताता है तो कोई  शिल्पा शेट्टी से उसकी शक्ल मिलाता है.........
नेहा को कोई फर्क नहीं पड़ता है.  उसे आदत है इस तरह के कमेंट्स की.
अगर रात में मूवी देखने के बाद रवि  उसके घर पर ही रुक जाए, उसे इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है.

 बल्कि उन दिनों   शुक्रवार की शाम से ही वे दोनों  हॉलीडे मूड में आ जाते थे.
उन्हें देखकर आसपास खुसर पुसर होने लगी थी.
उस समय छोटी जगहों पर खुल्लम-खुल्ला इस तरह कोई भी साथ नहीं रहता था.

इसी बीच एक और घटना घट गई, नेहा की माँ उससे मिलने आ गई.
 नेहा और रवि के घनिष्ठ संबंध देखकर उन्होंने ज़िद ही  पकड़ ली कि वे दोनों जल्द से जल्द विवाह के बंधन में बंध जाएं.
उन लोगों को मम्मी का कहना मानना भी पड़ा था.
6 महीने की रिलेशनशिप के बाद अब दोनों पति-पत्नी थे.
रवि  एक आकर्षक और सुदर्शन युवक था.यूनिवर्सिटी में टॉप किया था उसके नम्बर  कैलकुलेशंस  के बारे में मशहूर था कि वो कंप्यूटर जितनी गति से एक दम सही कैलकुलेट करता है.
उसकी  स्मरण शक्ति अद्भुत थी. उन दोनों को एक साथ देख कर स्वाभाविक था कि लोग ईर्ष्या करते थे. उनकी प्रेम कहानी उस छोटे से शहर में मशहूर हो गई थी.

रवि का घर शहर  से  15 किलोमीटर की  दूरी पर था.

उसने शादी के बाद  नेहा से कहा "हम लोग माता पिता के पास ही रहते हैं."

किन्तु विवाह के बाद ससुराल वालों से नेहा की शुरू से ही नहीं जमी थी.
वो आज़ाद  ख्याल वाली लड़की और ससुराल वाले पुरातन पंथी थे.  साथ ही उसके ससुर  थोड़े कंजूस भी  थे.नेहा का बनाव  सिंगार और श्रंगार प्रसाधनों पर खर्च उन्हें बिल्कुल भी नहीं भाता था.
 सासु माँ और ससुर जी की आपसी संबंध भी बड़े अजीब थे एक ओर तो उनके बच्चों के विवाह हो रहे थे दूसरी तरफ सासु माँ ससुर जी पर शक करती थी. कई बार उन्होंने नेहा से कहा भी था.
  एक दिन जब उसने रवि से इस बारे में जिक्र किया तो  वो बोला  "इंडिया में ऐसा ही होता है, यही ख़राबी है हमारे देश की.
इंडियन पैरंट्स के बच्चों के विवाह हो जाएंगे किंतु इनके प्रेम संबंधों का रगड़ा खत्म नहीं होता है.
मम्मी पापा की बातों पर ध्यान मत दो.उनका हमेशा से ऐसा ही चला है लेकिन सारे कलेशों के बावजूद  कभी भी एक दूसरे से 2 दिन से अधिक दूर नहीं हुए हैं."

 नेहा का इस वातावरण में दम घुटने लगा था वो रवि  से बोली "क्यों ना हम किसी दूसरे शहर ट्रांसफर करा लें . कैसा रहेगा?"

उन दोनों का  एक दोस्त था निखिल जो बैंक एग्ज़ाम्स में बैठ रहा था.
 रवि और नेहा ने भी खेल-खेल में ही एग्ज़ाम दे  डाला था और ताज्जुब की बात दोनों क्वालीफाई भी कर गए थे.
 घरवालों से दूर निकलने का मौका मिल गया और उनकी बुराई भी नहीं हुई थी.
 आप जैसा सोचते हैं क्या वैसा ही होता है?
नहीं ना, उन लोगों ने नौकरी से इस्तीफा दिया और नई नौकरी ज्वाइन करने के लिए दिल्ली की ट्रेन पकड़ने रेलवे स्टेशन पहुंचे थे कि प्लेटफॉर्म पर ही उनका बैग  उठाकर एक पंद्रह सोलह साल का  लड़का कब भाग गया उन्हें पता नहीं चला था .
दुख की बात यह थी कि जो बैग गायब हुआ था उसी में जरूरी कागजात सर्टिफिकेट लैपटॉप सब कुछ  रखा था. दोनों मायूस होकर रेलवे प्लेटफार्म से घर लौट आए थे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें?
नेहा की सास  ने कहा उन्हें  अपनी पुरानी कंपनी में जाकर फिर से बातचीत करनी चाहिए वापस अपने पुराने काम पर लग जाना चाहिए.
"पर माँ ऐसे नहीं  होता है अभी कल जब कंपनी वाले  रोक रहे थे तो ज़िद करके हमने यह नौकरी छोड़ी थी.कम्पनी वापस नहीं लेगी माँ. "नेहा बोली थी.
 अपने पेपर्स बनवाने के लिए दोनों लोग हाथ पैर मार ही रहे थे कि एक दिन सुबह-सुबह डाकिया एक पत्र लेकर आया,  पत्र में  लिखा हुआ था कि आपके सारे सर्टिफिकेट मार्कशीट मुझे कूड़े में पड़ी मिली हैं.  आप आकर मुझसे ले जा सकते हैं.
उन दोनों के उदास चेहरों पर एक चमक आ गई धूमिल होती हुई आशा  की किरण फिर से जाग गई थी.वे पत्र पाते ही लिखे हुए पते पर दौड़ पड़े थे. रुका हुआ काम पूर्ण होने की खुशी में नेहा की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे थे.
दोनों ने अगले दिन फ़िर से दिल्ली  जाने की तैयारी की, उन्हें लगा कितनी बड़ी मुसीबत से बाल बाल बच गए हम दोनों.

अब वो सोचती है उस दिन  मुसीबत से बचे थे या कोई अदृश्य शक्ति आगाह कर रही थी. मत जाओ दिल्ली. यहीं रुको.
बैंक की अलग-अलग ब्रांच में उन  दोनों की पोस्टिंग हो गई थी.
दोनों का जीवन थोड़ा मशीनी हो चला था.
अच्छी  बात यह थी कि नौकरी सरकारी थी.
यहां की भीड़ भाड़ देखकर रवि का कई बार जी घबराता था,  इतने सारे लोग और इतनी सारी गाड़ियां आख़िर सारा  दिन ये लोग कहाँ दौड़ते हैं.
बैंक का काम भी आसान नहीं था,  सरल रवि  के लिए. सिर पर हमेशा टारगेट्स  का डंडा पड़ा रहता था.
दिल्ली आये कई वर्ष गुज़र गए थे. पर अपने छोटे शहर की गलियाँ, और पुराने दोस्त उस  को भूलती नहीं हैं.नेहा बेकार यहाँ ले आई वो अक्सर सोचता पर कहता न था.  इसलिये उसने अपने आप को काम में झोंक दिया था.
वो परफेक्शनिस्ट था, साथ ही किसी को भी एक उंगली उठाने का मौका नहीं देना चाहता था. अब रात दिन ऑफिस को ही समर्पित था.
वो अपने खोल में सिमट रहा था.

नेहा ये परिवर्तन महसूस कर रही थी.

 तभी  नेहा और रवि के जीवन में एक नन्हे जीवन के आने  की आहट हुई , वे दोनों खुशी से फूले ना समाए.
नेहा के अस्पताल की  बुकिंग, डायट चार्ट, उसके मैटरनिटी  गाउन,फ्लैट सैंडल्स,  बच्चे की ज़रूरत का सारा सामान खरीदना सब कुछ रवि ने अपने हाथ में ले लिया था.
.
अब वो नेहा को मम्मी कह कर ही  बुलाता था.

 "नेहा !किसी ने बताया है कि दिल्ली में बच्चों के स्कूल एडमिशन में बड़ी दिक्कत होती है वो बन्दा कह रहा था अगर आप लोग चाहे तो अभी से अप्लाई कर दीजिए."

" अभी बेबी ने पेट में पहली किक भी नहीं मारी  है, और तुम उस पर पढ़ाई का बोझ डाल रहे हो."
"मैं तो उसे पांच साल से पहले पेंसिल भी नहीं पकड़ने दूँगी."

फिर दोनों हंस पड़े थे.
क्या खूब दिन थे, हर दिन वो अपने शरीर में परिवर्तन महसूस कर रही थी.

 नेहा को नहीं भूलती 1 दिसंबर की वह शाम जब वो  घर वापस आने की तैयारी कर रही थी कि पेट में दर्द शुरू हो गया उसके सहकर्मियों ने उसे हॉस्पिटल पहुँचाया था.
पीड़ा के कारण बेहोश हो गई और जब उसे होश आया तो अस्पताल के बेड के बगल मे रवि  को बैठा पाया था. नेहा को लगा उसके शरीर की सारी शक्तियां जैसे निचोड़ी  जा चुकी थी. जब उसने रवि की तरफ देखा उसकी आंखों में आंसू थे जो  कह रहे थे कि हमने अपना बच्चा खो दिया है. नेहा जितनी उदास थी उससे कहीं ज्यादा रवि  टूट गया था.
 उसका व्यवहार दिन पर दिन परिवर्तित होता जा रहा था.आने वाले छह महीनों में वो अपनी आकर्षक छवि खो बैठा था.कई कई दिनों तक शेव नहीं करता था.
अब वह  ऑफिस से जल्दी ही घर आ जाता था.
उसके  कैलकुलेशंस गलत होने लगे थे.
 अंधेरे कमरे में न जाने क्यों बैठा रहता था.
रात में भी वह सो नहीं पाता था,  जब नेहा ने
कहा कि हम डॉक्टर को दिखा लेते हैं.वो  बोला मुझे कुछ नहीं हुआ है.

 धीरे-धीरे रवि ने बैंक जाना छोड़ दिया.

शुरू में तो वह कभी-कभी अवकाश पर रहता था, किंतु पिछले 2 महीने से तो मेडिकल लीव पर आ गया था.

वह क्या करे समझ नहीं पा रही थी.

ऐसा लग रहा था कि जैसे सब कुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा है.
एक दिन  बहुत बहला-फुसलाकर रवि को मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले गई थी.
डॉक्टर ने नेहा से जो भी पूछा तो उसने सभी कुछ डिटेल में बताया था. किन्तु अपने मिस्कैरेज की बात करते करते उसकी हिचकियाँ बंध गई थीं.

डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा हो जाता है और उन  लोगों के साथ जिनका दिमाग बहुत तेज होता है. वे लोग कई बार ऐसे झटके सह नहीं पाते हैं.
रवि को आराम से ज्यादा आपकी जरूरत है.
अपना ध्यान कहीं और लगाना होगा उन्हें.  उनकी कोई हॉबी  है क्या जैसे पेंटिग या म्यूज़िक.
"जी डॉक्टर साहब रवि बांसुरी बहुत अच्छी बजाते हैं , पर अब उस बात को गुज़रे अब ज़माना हुआ. "
  "डॉक्टर!रवि घर में अकेले ही  रहते हैं है पिछले कई दिनों से अझेल होते जा  रहे हैं. "
"जोर जोर से चीखना  चिल्लाना शुरू कर देते  हैं बात बात में  रो पड़ते हैं "
डॉक्टर बोले "आपके घर के काम कौन करता है?"
"दो लड़कियां हैं पायल  और मुमताज़."
"यही कोई बीस से पच्चीस वर्ष की लड़कियां हैं. "
"पिछले तीन सालों से हैं."वो अपने आंसू पोंछ कर बोली थी.
आप उनसे पता करिये आपके पीछे रवि  क्या करते  है?
"जी डॉक्टर !मैं पूछ कर बताती हूं. "

"पहले वो ऐसे नहीं थे.   डॉक्टर!! आप कुछ करिए."
 नेहा के आँसू रुक नहीं रहे थे.
 डॉक्टर को उस से पूरी सहानुभूति थी,  लेकिन समस्या का समाधान नेहा और रवि को ही करना था.
 नेहा को  यह चिंता भी खाए जा रही थी कि रवि  की तबीयत खराब  की बात अगर लीक हो गई तो उसे नौकरी से हाथ धोना ना पड़ जाए.
"डॉक्टर लाख चाहने के  बावजूद भी मैं दोबारा मां नहीं बन पा रही हूं. अगर एक बच्चा हो जाए तो सब ठीक हो जाएगा."
"मेरी गाइनी  कहती हैं कि मुझे अपने दिमाग को शांत रखना होगा तभी मैं कंसीव कर सकती हूं.'
"आप बताइए ऐसे में कैसे मेरा दिमाग शांत होगा."
 "पागल तो  नहीं हो जाऊंगी मैं? "
डॉक्टर ने उसको धीरज रखने को कहा और कहा "आप घर से किसी को बुलवा लीजिए."
नेहा ने रात भर सोचा और फिर कुछ दिनों की छुट्टियां अप्लाई कर दी.
 सोचा था इस वीकेंड पर जयपुर घूमने चले जाएंगे.
 शादी के बाद शुरू के दिनों में वे जयपुर गए थे उनकी मीठी यादें जुड़ी हैं वहां से.
अगले दिन ही अख़बार किसी बैंक के घपले की ख़बर से भर गए थे.  कस्टमर्स में पैनिक फैल  गया . हर दिन कोई ना कोई कस्टमर उन लोगों के ऊपर तंज़ कस के चला जाता है.
छुट्टी कैंसिल करनी पड़ी है. आख़िर वो ब्रान्च मैनेजर है.
दो चार दिन बाद ही कोरोना के साइड इफ़ेक्ट बैंक पर सबसे पहले दिखने लगे थे.
जिनके बच्चे विदेशों में हैं. वे जल्दी से जल्दी अपने बच्चों को मनी ट्रांसफर करने के लिए लाइन लगाए खड़े हैं.
उनके चेहरे की  बेचारगी वो अपने कमरे से भी महसूस कर सकती है.
इनकी तकलीफ़ उसकी तकलीफ़ के आगे बहुत अधिक है.
वो अब जीवन को नए ढंग से लेने लगी है.
उसे लगता है जीवन बस धूप छाँव का ही नाम है. जो सामने आये करते चलो. बहुत सी चीज़ों पर अपना बस नहीं है.

  रविवार को पूरे भारत बंद की प्रधानमंत्री मोदी जी ने घोषणा की  है. ये  रिहर्सल किया जा रहा है बंद का . आगे लम्बा लॉक डाउन होगा.

वो रवि के चक्कर में इतनी परेशान थी कि दुनिया में क्या चल रहा है उसे बिल्कुल होश नहीं था.
काम पर सभी लोग बड़ी डिप्रेसिंग सी बातें करने लगे हैं.
 सारे ऑफिस,  बाजार, रेल, बस, एयर ट्रेफिक,  स्कूल,  मंदिर, मस्जिद,  गुरुद्वारे, चर्च सब बन्द.
आर. बी. आई. की नई गाइडलाइंस आ गई है. पैसे के लेन देन के अलावा बैंक ने अन्य कार्य रोक दिए गए हैं. सिर्फ़ बैंक, अस्पताल  खुले हैं. खाली सड़कें, सूने बाज़ार, नेहा  से देखे नहीं जाते हैं. सड़कों के किनारे धूल खाती  टैक्सीज़ अपने मालिकों की बाट जोह रही हैं.

लोगों की जान बचानी जरूरी है सबको  घर में रहना होगा. अजीब सी मनहूसियत छा गई है वातावरण में.

 आदमी आदमी से दूर होता जा रहा है.
  सड़कें खाली हो गई हैं.
उसने पायल और मुमताज़ दोनों को समझा दिया है कि घर में बैठें और पैसों की  चिंता  ना करें. दोनों की मुट्ठी में पगार थमा दी है उसने.
 जब पायल ने कहा "दीदी साहब को कौन देखेगा?"
तो नेहा उदास हो गई. उसने कहा "मैं हूं ना. "
मुमताज भी जाते जाते रो पड़ी थी. दोनों लड़कियों का सेवा भाव देख नेहा द्रवित हो गई थी.

उसने ड्राइवर की भी छुट्टी कर दी है.
कभी इन सड़कों पर वो ड्राइव नहीं करना चाहती थी. आज खाली पड़ी हैं.
 जब बैंक से शाम को  घर लौट  रही थी तो सोच रही थी घर में  कहाँ से काम शुरू करना है?
लेकिन घर आकर एक सुखद आश्चर्य से भर गई है वो. बड़े दिनों बाद घर का टी. वी. चल रहा था.
 रवि ने  उसके लिए कॉफी बना कर रखी थी.
घर एकदम साफ़ सुथरा था.
 रवि  ने खाना भी बनाया  था.
नेहा ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया था.
******-
एक हफ़्ते बाद रवि ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया है.


कितनी अजीब बात हुई  है.............
 दुनिया में लोग लॉक डाउन में बन्द हैं और रवि के दिमाग के ताले खुलते जा रहे हैं.
धीरे-धीरे वो नार्मल होता जा रहा है.
अब नेहा के  साथ घर के काम भी करा देता है. डोरबेल, लिफ्ट की नॉब्स पोंछना नीचे जाकर दूध लाना ऐसे छोटे-छोटे काम उसने खुद संभाल लिये हैं.
डॉक्टर सही कह रहे थे कि अगर रवि अपना ध्यान कहीं  और लगा ले तो अपने आप अवसाद  से बाहर निकल जाएगा.
नेहा ने उसकी बांसुरी भी निकाल कर सामने रख दी है. शायद किसी दिन तो वो इसे अपने होठों से लगाएगा.

 कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है.

 कल उसकी किसी सहेली का फ़ोन आया था जो कि पुलिस विभाग में काम करती है कह रही थी किआज कल  परिवार में हिंसा बढ़ती जा रही है.100 में से 90 फ़ोन घर वालों के झगड़ों के होते हैं.
वो हैरान  है कि इस वक्त तो एक दूसरे  का साथ देने का वक्त है, बिगड़े रिश्ते सुधारने का इससे अच्छा मौका कब मिलेगा? अगर अब भी नहीं संभले तो फ़िर कब सम्हलेंगे ये लोग.

शाम का धुंधलका गहरा रहा है.  नेहा ने खिड़की से परदे हटा दिये थे.रवि ने बांसुरी पर कोई पुरानी धुन छेड़ दी थी.तभी खिड़की से उन दोनों ने बाहर देखा बड़ा मार्मिक दृश्य था. मजदूर  लोग हुजूम के हुजूम बनाकर सिर पर सामान रख कर पैदल सड़कों पर निकल पड़े हैं.
एक आदमी पर निगाह रुक गई जो अपने 4 साल के बच्चे को घसीटते हुआ और एक छोटे बच्चे को गोद में लेकर पैदल भीड़ के बीच जा  रहा था. रवि ने खिड़की के पर्दे गिरा दिये और नेहा से बोला "सुनो तुम मुमताज और पायल को फोन करो उन्हें  बोलो घर से कहीं नहीं जाएंगे उन्हें अपने गांव जाने की कोई जरूरत नहीं है.
उनका किराया और रहने का खर्चा हम लोग देंगे जब तक कि हालात सुधर नहीं जाते हैं."
उसने खिड़की से बाहर की ओर देख कर कहा
"हम लोग कितने बेबस हैं चाह कर भी इतने लोगों की मदद नहीं कर सकते हैं. कभी सोचा था कि इंसान इतना बेबस होगा और हम खिड़की से बस बेबसी का तमाशा देखेंगे.
कुछ ना कर पाएंगे.
......नेहा क्या तुम सोसाइटी के गार्ड को खाना खिला दोगी. मुझे पता है वो ढाबे पर खाना खाता  है. अब ढाबे बन्द हैं."
 नेहा ने कहा "हां रवि क्यों नहीं?एक आदमी का खाना बनाना कोई मुश्किल बात नहीं है."
" बिल्कुल ठीक कह रहे हो तुम".
रवि ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया था.

रवि ने फ़िर बांसुरी उठा ली थी अब वो बजा रहा था
......  "जीत जाएंगे हम, तू अगर संग है ज़िन्दगी हर क़दम एक नई जंग है. "...... नेहा वही पास बैठकर बांसुरी की धुन में खो गई थी. उसने अपना सिर पति  के कंधे पर टिका दिया था.
उसके मन में एक आस थी, संकट के ये दिन भी निकल जाएंगे. ये जंग एक दिन हम अवश्य जीत जाएंगे.

समाप्त
प्रीति मिश्रा

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एक कहानीअनकही
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मेवाड़ के छोटे से ठिकाने बिजौलिया के राव ठाकुर रतन सिंह कुछ दिन से अत्यंत उद्वेलित हैं.  उनका संयमी मन अब किसी कार्य में नहीं लगता है. जब से उनकी पुत्री तेजल  का विवाह नेपाल के शक्तिपुर के राणा के यहां तय हुआ है, उनकी रातों की नींद उड़ गई है.
 अगर उनके बस में होता तो इस संबंध के लिए मना कर देते.  किंतु उनके ऊपर मेवाड़ के राणा जी का दबाव था और राणा जी से बैर लेना उनके बस की बात नहीं थी.वे उनके मौसेरे  भाई भी थे. अगर मन में संतोष था तो बस यह कि कम से कम उनकी बेटी हिंदू राजा के घर भी जा रही है.
वरना आजकल तो सत्ता लोलुपता इतनी बढ़ गई है कि कितने  राजपूतों ने अपनी पुत्रियों के रिश्ते मुगलों के साथ कर लिए हैं.
 उस दिन रतन सिंह की पत्नी देवल ने पूछ लिया "आजकल आपको क्या हो गया है और यह आप पुत्री  को लेकर कहां निकल जाते हैं."
"विवाह के समय कोई पिता अपनी पुत्री को तलवारबाजी घुड़सवारी की शिक्षा देता है क्या?"
  वो आगे बोलीं "विवाह में अभी 6 महीने बचे हैं.आप  की अधीरता मुझसे देखी नहीं जाती है."
 राव ने ठंडी सांस ली  और बोले "पुत्री को घर से बहुत दूर भेज रहा हूं.इसलिए उसे किसी भी विषम परिस्थिति के लिए तैयार कर रहा हूं."
घर की बड़ी बूढ़िया चाहती थीं कि यदि तेजल घर में रहे तो वह उसे उबटन लगाएं, संगीत सिखाएं कुछ घर गृहस्थी  की बातें भी सिखा दे.
राव की शिक्षा खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी. पिता और पुत्री एक दूसरे के करीब आ चुके थे. दिन भर साथ रहती किशोरी तेजल  से वे धर्म, राजनीति, समाज की बातें छेड़ देते थे.
 उसने पिता से कहा "दात्ता !  क्या आप कभी मीरा बाई  से मिले हैं.
ये प्रश्न क्यों पूछ रही हो?
उन्होंने पुत्री से प्रश्न किया "गढ़  में स्त्रियां हमेशा उनके बारे में बातें करती रहती हैं. कहती है कि वह अपनी मर्जी की मालिक है और उन पर कृष्ण जी की कृपा है."
 "हां बेटा! कृष्ण जी की तो कृपा है ही किंतु मीराबाई पर सरस्वती मां की भी कृपा है. "
तेजल  ने पूछा "क्या वे कभी हमारे घर आ सकती हैं. "
अब राव हँस पड़े थे "सीधे-सीधे कहो ना? 
"तुम क्या जानना चाहती हो? "
 " हां आप सुनाइए नाआपके  मुंह से सुनना चाहती हूं. "
राव बोले" थोड़ी पुरानी बात है तब मैं वृंदावन में मीराबाई तुलसीदास और सूरदास इन तीनों से ही मिला था."
" किसी से कहना नहीं अपने कुछ साथियों के साथ मीराबाई को वृन्दावन पहुंचाने का  कार्य हम लोगों ने ही किया था. "राव मुस्कुराए "अब  घर चले. "
तेजल  ने  कहा "दात्ता ! आप लोग मुझे विवाह के बाद भूल तो ना जाएंगे.? "
"नहीं कभी नहीं याद रखना विवाह पर तुम्हारी विदाई हो रही है. हम में से कोई भी तुमको अलविदा नहीं कह रहा है." यह घर हमेशा तुम्हारे लिए खुला है क्योंकि लड़कियों को पितृ गृह से पति के घर भेजने की रीति  है इसलिए तुम्हें भी  जाना पड़ेगा.
"  आपको क्या लगता है राज महल में मुझे अलग ढंग से रहना पड़ेगा. "
जब पुत्री ने पूछा तो पिता बोले "मनुष्य तो सभी एक से ही हैं, किंतु अक्सर सत्ता और धन की अधिकता से कुछ लोगों का दिमाग खराब हो जाता है. ऐसी परिस्थिति आने पर तुम्हें यह निर्णय स्वयं लेना पड़ेगा कि तुम्हारे लिए क्या उचित है."
" जी मैं समझ गई " तेजल  ने फ़िर सवाल किया "  आपको  क्या लगता है स्त्री  और पुरुष में कोई भेद है मेरा मतलब है कि वे शासन क्यों नहीं करती हैं.
ठाकुर रतन सिंह ने कहा "अभी नहीं करती हैं शीघ्र ही करेंगी, वो दिन दूर नहीं है जब वे अपने अधिकारों के लिए खुल कर लड़ेंगी. "
तेजल  उत्साहित थी, उसके सांवले सुन्दर चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक आ गई वो कल्पना लोक में विचरने लगी थी

"मुझसे रानी पद्मिनी का जौहर बिल्कुल भी भूला नहीं जा पाता है. सोचिये कितनी स्त्रियां एक साथ मर गईं. कितनी बहादुर स्त्रियाँ थीं. सोच कर गर्व होता है किन्तु आँखों में आँसू आ जाते हैं. "

 "और क्या करेगी हमारी राजकुमारी, अगर उसने कभी शासन किया तो "ठाकुर रतनसिंह ने पूछा  मैं आपको, मां सा को  और दादी सा को हमेशा के लिए अपने पास बुला लूंगी. राणा आगे बढ़े और अपनी पुत्री के पाँव छू लिए (जब वे प्रसन्न होते थे, ऐसा ही करते थे. )
बालिका तेजल दिन भर की थकान  के कारण  घर आकर सो गई थी. पिता की आंखों में नींद  नहीं थी दिन पर दिन मन की चिंता बढ़ती जा रही थी.
समय पंख लगा कर उड़ गया और बेटी विदा भी हो गई है.
उन्होंने अपने आपको अब अन्य कार्यों में व्यस्त कर लिया है.
+++++++++++++++++
तेजल  को नेपाल आये पंद्रह दिन गुज़र चुके हैं.
वह सोच में पड़ी है...... यहाँ की भाषा अलग, खानपान अलग, विवाह संस्कार के बाद की रीतियाँ भी अलग हैं.
उसने  नेपाल और मेवाड़  की संस्कृति में इतने भेद की कल्पना नहीं की थी.
यही सब विचार करते करते उस दिन संध्या हो गई और अंधेरा अपने पाँव पसारने लगा था कि कक्ष में उसकी प्रिय दासी राधा आ गई.
तेजल उसे सदा ही उल्लसित देखती है.
तेजल ने कहा "एक बात कहूं."
 "जी क्या "राधा ने पूछा
"तुम क्या सोते हुए भी मुस्कुराती हो.
अपने पति से पूछ कर बताना मुझे."
राधा लज्जा से दोहरी हो आई और बोली, "आपके कक्ष में आते हुए डर नहीं लगता है अन्यथा जब मैं राजमाता के यहाँ थी तो मुस्कान क्या  मेरी बोली भी नहीं निकलती थी."
"क्यों भला?"
तेजल ने पूछा
"आप तो राजकुमारी हैं क्या आपको नहीं पता कि बड़े राणा जी की पत्नियों में राजमहल में अपना स्थान बनाने के लिएआपस में  कितना संघर्ष और छल कुचाल चलती रहती है.   "
"वे विलासिता की चरम सीमा पर हैं. कई बार तो कोई दासी ही  उनका जीवन दूभर कर सकती है. "
"अंत में सबसे अधिक व्याकुल तो राजमाता ही हो जाती हैं. अंतःपुर की  राजनीति, षड्यंत्रों का निर्णय करते करते समय से पहले ही बूढ़ी हो गईं हैं वो."
"वे भी अपना क्रोध हमारे जैसे छोटे  लोगों पर ही निकाल कर जी हल्का कर लेती  हैं . "
"रानी साहिबा ये बातें अपने तक ही रखियेगा. अन्यथा मुझे राजद्रोह के अपराध में कारागार में डाल दिया जाएगा. "
 राधा के जाने के बाद तेजल का मन मस्तिष्क घटनाओं की  पुनरावृति करने लगा था उसका कुंवर जी के साथ  विवाह,  बिना शोर-शराबे के इस कक्ष में आना.
रानी माँ का उससे मिलने आना, उसके सांवले रंग को देखकर महल में खुसुर पुसुर होना.
 उसने बिजौलिया में सुना था उसके विवाह संबंध से  मेवाड़ और नेपाल के राजनैतिक संबंध सुदृढ़ होंगे इसलिए उसने प्रतिज्ञा की थी कि वो अपनी मातृभूमि के लिए अपना सब  कुछ लुटा देगी........उसने विवाह में कुंवर जी की बस एक झलक ही देखी है सुंदर बलिष्ठ गौर वर्ण युवक,...... क्या वे उसको पसंद करेंगे?
तभी पिता के वचन याद आए "बेटी तुम सदैव याद रखना क्षत्रिय की पुत्री हो तनिक ना घबराना."
आज कुंवर जी से उसका प्रथम मिलन था.
वह गहनों और भारी-भरकम लहंगे और लज्जा  के बोझ तले दबी जा रही है.
जब वे उसके कक्ष में आए तो वह हतप्रभ सी  उनके मुखमंडल के भाव ही देखती रह गई, उसने सोचा था कि वह उन्हें प्रणाम करेगी किंतु घबराहट में भूल गई थी.
 राज कुंवरने ने ही बातचीत प्रारम्भ की थी.
उनकी बातचीत का ढंग शिष्ट और शालीनता से भरा हुआ था. किशोरी तेजल का भय जाता रहा था . जब कुंवर ने कहा कि वे उसे कुछ उसकी पसन्द का उपहार देना चाहते हैं तो तेजल पुलकित और आनंदित हो उठी थी.  वह  धीरे से बोली" मेरे जैसी छोटे ठिकाने की एक लड़की का विवाह इस राजघराने में हुआ. ये अपने आप में बड़ा उपहार है. मैं  सोचती हूं इससे अधिक सौभाग्य की बात किसी भी लड़की के लिए क्या होगी?
कुँवर बोले "मेरे प्रश्न का सही उत्तर दीजिये. आप अपनी कोई इच्छा बताइये तो सही इस संसार में जो भी प्राप्त है मैं आपको उपलब्ध कराऊंगा. "तब तेजल ने कहा" मैं सीता माता के  जन्म स्थल का दर्शन करना चाहती हूं." "मैंने बिजौलिया में सुना था कि वे  यही कहीं आसपास की थी."
 उसके पति हंस पड़े थे उन्होंने कहा"आश्चर्य  की बात है तुम्हारी आयु की किशोरी धर्मस्थल देखने की बात कर रही है, और हम राजपूत जब भी बाहर निकलते हैं तो सिर्फ युद्ध के लिए निकलते हैं.
किसी को ऐसा विचार क्यों नहीं आता है?
मैं वचन देता हूं कि हम दोनों अवश्य ही जनकपुर जाएंगे."

 शक्तिपुर के जनसमुदाय में बात फैल गई थी राजकुमार नरेन्द्र जंग की पत्नी राजघराने  की स्त्रियों से भिन्न है वह तेजस्विनी है मर्यादा का पालन करने वाली,  सामान्य रंग रूप की किशोरी  है किन्तु सिंघनी के समान निडर भी है.
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राणा नरेंद्र जंग  को आराम तलबी के  जीवन की आदत है.
उनके विलासिता पूर्ण जीवन में यह षोडशी कैसे आन टपकी?  वे स्वयं अचम्भित हैं.
उनकी जीवन शैली इस बालिका से कहीं से भी मेल नहीं खाती है. किन्तु उसकी आभा के आगे वे नतमस्तक से होते जा रहे हैं.इस साधारण सी किशोरी को दूसरों की व्यथा दिखाई दे जाती है. जो उन्हें कभी अनुभव नहीं हुई. क्या इसका कारण राणा का सुख पूर्वक जीवन बिताना है?
तेजल जनसाधारण का मान,  अपमान, न्याय,  अन्याय ख़ूब समझती है. यहाँ तक कि  राज महल की उपेक्षित रानियों  की दुर्दशा को लेकर चिंतित है.
 इतने ही दिनों में राजमाता उसे बहुरुपिया  लगती हैं. वह अपने विचार प्रमाण सहित अपने पति के आगे प्रस्तुत कर चुकी है.

 उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया था कि उनकी अपनी माता ही पिता द्वारा उपेक्षित हैं. राजमाता उनका शोषण कर रही हैं. माँ  के साथ कुंवर का अब नया परिचय हुआ है.
तेजल महल की हर गतिविधि पर कैसी तीक्ष्ण पहरेदारी कर सकती है?

किन्तु तेजल को प्राप्त करने के बाद भी उनके मन को  संतोष नहीं है. या कहें उसके गुणों का रंग फीका हो चला है.
 जैसे जैसे समय व्यतीत हुआ राणा जी को आभास होता जा रहा है तेजल धर्मपत्नी तो बन सकती है.

 वे उसे  अपनी प्रेमिका नहीं बना पाएंगे.

  विवाह के  कुछ वर्ष बीत गए हैं. राजमहल में तेजल के विरुद्ध स्वर उठने लगे हैं कि वह अभी तक माँ नहीं बन पायी है.
राणा जी अब एक मृगतृष्णा में जी रहे हैं. उनकी  रंगशाला विवाह के बाद भंग हो गई है.उन्हें उसकी याद सताने लगी, पहले  वो अपने विलासी वातावरण में प्रसन्न थे. अधिक दिनों तक तेजल उन्हें बाँध ना पायी........ अपितु उसके संपर्क में कुछ ऐसे प्रश्न उठ खड़े हुए जिनसे राणा बचना चाहते हैं.

 वे सुख से अभिशापित हैं,  दूसरों की व्यथा देखना पसन्द नहीं करते हैं. वे अपने सुख के लिए आँखों पर पट्टी बाँध लेना पसन्द करेंगे. हां यदि वे चाहे तो अन्य स्त्रियों से संपर्क बना सकते हैं कोई नहीं रोकेगा किंतु वे तो भटक रहे हैं ना जाने किसकी खोज में? 
शायद एक प्रियतमा की खोज में. उन्हें प्रेमिका चाहिए. एक रूपवती अपनी आयु की पत्नी.


उनकी इच्छा की पूर्ति भी शीघ्र हो गई थी.
अपने परममित्र के घर विवाहोत्सव पर उनकी भेंट पूर्वी नामक युवती से हुई जो कि नववधू की  सखियों में से एक थी.

 उसके रूप से उनकी आंखें चौथिया गई थी. कुंवर उसे पाने को मचल पड़े.
 आनन-फानन में "पूर्वी"राणा नरेंद्र जंग की पत्नी हुई. उस विवाह की सभी रीतियों  को पूर्ण कराने  का उत्तरदायित्व  रानी तेजल ने निस्पृह भाव से अपने हाथ में ले लिया है.
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इधर राजमहल में बड़े परिवर्तन हुए हैं.
इसी बीच राणा नरेन्द्र जंग के पिता का  निधन हो गया और राजकार्य की सारी जिम्मेदारी नरेंद्र जंग  पर आ गई है. शासन संबंधी राय मशवरे में  राणा तेजल  पर ही आश्रित है.
नवीन  विवाह के बाद भी  राणा नरेन्द्र जंग  जब तब तेजल के कक्ष में  देखे जाते हैं.
 राणा और तेजल का साथ नई रानी पूर्वी  को फूटी आंख नहीं सुहाता है.
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पूर्वी नित नये श्रंगार से अपने रूप पर आप ही मोहित है.
पूर्वी चाहती है किसी भी प्रकार राणा उसके वश में हो जाए.
उस साधारण सी दिखने वाली तेजल में ऐसा क्या है कि  राणा उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते हैं.
पूर्वी की  ऑंखें आजकल एक नवीन स्वप्न देख रही हैं.
राणा की पटरानी बनने का स्वप्न.
सुदूर देशों तक उसके सौंदर्य के चर्चे हों.
जनसमुदाय में तेजल की जगह राणा के साथ वह जाए.
इस राजप्रासाद की आने वाले समय में वो राजमाता हो.
तेजल उसकी आँखों में खटक रही है.
  शीघ्र ही पूर्वी ने  अपने गर्भवती होने के समाचार से राणा को चिरप्रतीक्षित सुख की कल्पना से  भर दिया था.
राणा चाहते थे कि पूर्वी के स्वास्थ्य का ध्यान रानी तेजल रखे.
 किन्तु तेजल को पूर्वी ने अपने पास नहीं फटकने दिया था. उसने तेजल से कहा वो अपनी सेवा में केवल उन्हें ही पसन्द करेगी जिनको माँ बनने का अनुभव है. 
इसलिये रानी तेजल ने राणा से कुछ ना कहा उसने अपनेआप को अपने कक्ष में ही सीमित कर लिया है.
++++++++++

पिछले कुछ दिनों से तेजल का  जी बहुत घबराता है. भोजन पचता नहीं भूख मर गई है.
राधा ने उसकी यह दशा देखी तो बोली " मैं राजवैद्य को बुलाती हूं."
"नहीं रहने दे अगर दो चार दिन और तबीयत ठीक ना हुई तब देखेंगे."
  तेजल को आज  पितृगृह की बहुत याद आ रही है. उसने  अपने पिता को एक पत्र लिखा और  राणा जी से कहा  कि कृपया  वे यह पत्र बिजौलिया भिजवा दें.
राणा ने अनजाने ही पत्र खोल लिया तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना  न रहा. तेजल ने अपनी कुशलक्षेम  के साथ ही ठाकुर  रतनसिंह को शुभ समाचार भी सुनाया था कि वे नाना बनने वाले हैं वह चार मास की  गर्भवती है और परंपरानुसार उसे प्रसव के लिए अपने मायके  आना है.

राणा सोच में पड़ गए कि रानी तेजल  ने यह शुभ समाचार उन्हें क्यों नहीं सुनाया?
क्या उनसे कुछ भूल हुई?
 रानी राजमहल क्यों छोड़ना चाहती है?
अथवा परम्परा का निर्वाह करना चाहती है?
क्या उसे  यहाँ किसी प्रकार की  हानि का अंदेशा है?
किससे डर है उसे?
राजमाता से?
या पूर्वी से?
उन्हें साक्ष्य चाहिए.
किन्तु तेजल के प्राणों की रक्षा उनका प्रथम कर्तव्य है.
रानी तेजल के पास सभी प्रश्नों के उत्तर हैं.
वे समय आने पर ले भी लेंगे.

किन्तु अभी यही उचित यही होगा कि वे तेजल को मेवाड़ भिजवाने का प्रबंध कर दें. कहीं देर ना हो जाये.
उन्होंने रानी की विश्वस्त सेविका राधा और उसके पति को आदेश दिया कि वे मेवाड़  जाने की  तैयारी करें.
साथ में विश्वत रक्षकों की टोली को साथ कर राणा जी ने अपनी पत्नी को मेवाड़ के लिए भारी मन से  विदा दी और कहा, शीघ्र ही हमें अपनी और हमारी नन्ही जान की कुशलता का समाचार सुनाइयेगा.
तेजल अब  करीब पच्चीस छब्बीस  वर्ष की युवती थी. जब राजमहल में आयी थी एक किशोरी थी. आज इतने वर्षों बाद वह पितृगृह जा रही है.

ना जाने क्यों भय सा प्रतीत हो रहा है. उसके क़दम शिथिल हो रहे हैं. जब वह रथ पर सवार हुई तो पवन की गति से मन चल पड़ा है.

लाख झटकती है, पर विचारों की श्रंखला टूटती नहीं.

वह नेपाल के राजमहल में पलंग पर बैठ कर सोलह श्रंगार करने कभी भी  नहीं आयी थी.
जब उसे पता चला था कि वह विवाह के चार पांच वर्षों बाद तक राज कुल को संतान नहीं दे पाई थी........ तो
राणा का विवाह भी उसके लिए कोई बड़ी बात ना था. वहाँ आये दिन यही सब देख रही थी.
उसने खुले ह्रदय से पूर्वी को अपनाया था.

उसे पूर्वी के सौंदर्य से भी कोई ईर्ष्या नहीं है.
किन्तु पिछले दो महीनों में पांच बार उसके भोजन में कुछ विषाक्त दवाइयां मिलायी जा रही हैं.उसके विश्वस्त सूत्रों ने बताया है. इसके पीछे पूर्वी के चाहने वालों का हाथ है.
अभी राणा तेजल के अनुकूल हैं,  और उसकी गुप्तचरों पर पूरी पकड़ है.
किन्तु पूर्वी पर आक्षेप लगाते ही वह राणा की आँखों में एक सामान्य ईर्ष्यालु स्त्री रह जाएगी.
इसलिये उसे चुप रह जाना चाहिए था उसने वही किया था. पता नहीं सही था अथवा ग़लत .
तेजल के विचारों को विराम मिला जब राधा ने कहा
"नेपाल की सीमा छोड़ दी है. रानी साहिबा अब थोड़ी देर में मगध की सीमा में प्रवेश कर लेंगे हमलोग."
"ठीक है आपलोग जहाँ भी चाहें वहीं विश्राम की व्यवस्था करें."
"क्या रात्रि में  हम लोग किसी धर्मशाला में रुकेंगे ?"साथ चल रहे घुड़ सवार अंग रक्षकों में से एक ने पूछा.
"नहीं कहीं बाहर ही तम्बू लगा लीजिए. मैं नहीं चाहती कि  हमारे ठिकाने की  भनक किसी को भी लगे."
जैसी आज्ञा.
एक दिन में वे लगभग बीस से तीस मील रास्ता तय कर पाते थे.
जैसे जैसे समय बीता रानी तेजल कांतिहीन होती जा रही थी.
उसके अंग रक्षकों ने कई बार विनती की कि यहीं रुक जाइये .आपका स्वास्थ्य सुधरे तब  हम लोग आगे चलेंगे.
राधा ने भी कहा" इतनी दुर्बलता में आप स्वस्थ शिशु को जन्म कैसे देंगी?"
किन्तु रानी तेजल ने किसी की ना सुनी. उसके जीवन का एक मात्र ध्येय अपनेअंदर पल रहे शिशु के प्राणों की रक्षा करना था.
जिस बात का डर था वही हुआ तेजल बेहद कमज़ोर हो गई, उसने पितृ गृह जाने का विचार त्याग दिया था,
यहाँ से केवल चार कोस पर उसके नाना सा का गाँव था. जहाँ वह अपनी मां सा के साथ आया करती थी.
तेजल ने राधा को अपने पास बिठाया और बोली. यहाँ बी दासर के "ठाकुर मानसिंह जी "मेरे नानोसा  हैं. यदि मुझे कुछ हो जाये तो मेरी सन्तान को उनके हवाले कर देना.
उसके स्वर क्षीण होते जा रहे हैं....... राधा.......
मुझे ये वचन दे कभी किसी को भी नहीं बताएगी कि मैंने अपनी सन्तान  नानोसा को दी  है. समझ रही है तू.
कुछ लोग ऐसे हैं जो  मेरे बच्चे को मार देंगे....... मैंने देख लिया है कि मनुष्य के लिए जीवन जितना सरलता से जिया जाए उतना आनन्द दायक है..वो अगर साधारण जीवन जिएगा तभी अच्छा शासक बन सकेगा. मेरे बेटे की माँ बन जाना.और अगर बेटी हो तो उसे भी मजबूत बनाना  ... राधा.... सुन रही है ना.

उसकी आवाज़ डूबती सी प्रतीत हुई.
राधा तेजल के गले लग कर रो पड़ी थी. तेजल ने कहा "आज के समय में हम स्त्रियों की आँखों में तेज और ज्वाला होनी चाहिए, ताकि हम विषम परिस्थियों में आग लगा सकें."

"तेरे मुख पर हमेशा मुस्कान ही शोभा देती है राधा!! आज मेरे निकट ही सो जाना देखती हूं  तू रात में सोते हुए भी मुस्कुराती है या नहीं."


"मेरे बाद मेरी सन्तान  की देखभाल कर सकेगी  राधा!!"

"आप हिम्मत हार रही हैं रानी, देखिएगा प्रसव पीड़ा से निवृत होते ही आप ठीक हो जाएंगी."राधा बोली.
"मैंने राणा जी को वचन दिया है मैं आपको और आपकी सन्तान को वापस  ले कर आऊंगी. "
तेजल का मुखमण्डल मधुर स्मित से भर उठा.
"राणा से मेरा सम्बन्ध बस यहीं तक था. अब तो मैं मां का कर्तव्य निभा रही हूं."
"ऊपर देख राधा" रानी ने बरगद के वृक्ष की ओर लटक रहे घोंसले को दिखा कर कहा, "इस घोंसले में रहने वाले पक्षियों को पता है यहाँ उनके अंडे और चूज़े सुरक्षित हैं."
"मैं भी जानती हूं तुम सब मिलकर इस रानी का मान रख लोगे. "
अगले दिन तेजल  ने बरगद के वृक्ष के नीचे  ही एक बालक को जन्म दिया.तब तक उनके अंग रक्षक ठाकुर मानसिंह को बुलाकर ले आए थे.
तेजल को बचाया ना जा सका था.
वह दुधमुँहे बालक को तीन दिन का छोड़ कर इस निष्ठुर संसार को विदा कह गई थी.इतिहास में यह घटना कहीं वर्णित नहीं है. अनेकों अवर्णित  बलिदानों में एक बलिदान उसका भी था.
समाप्त
प्रीति मिश्रा

फाँस
****

मस्तमौला प्यारी सी रितु  इसी माह 26 वर्ष की  हुई थी.
बस तब से माँ  हाथ धो के पीछे पड़ गईं हैं." शादी कर ले.अभी इतनी खूबसूरत है दुल्हन बनकर अच्छी फोटोज़ आएंगी. बाद में चेहरे की रौनक कम हो जाती है.  इतनी उम्र में तो दो बच्चे भी हो गए थे हमारे."
उसने माँ से कह रखा था कि इस साल शादी कर लेगी.
पर ये झूठ अपनी जान बचाने के लिए कहा था.
छोटा भाई भी इंजीनियर  बन गया है.
रितु  रास्ता ख़ाली करे तो उसकी शादी का  नम्बर आए.
रोहित उसका एक्स बॉयफ्रेंड भी बड़ा डरपोक निकला है.  अपनी मम्मी  को कन्विन्स ही नहीं कर पाया है. कहती हैं अंडा खाने वाली लड़की नहीं चलेगी.
प्यार में पगलाई हुई थी रितु सो उसने रोहित से कहा "ऑन्टी जी से कहो मैं प्याज़ भी नहीं छूऊँगी."
पर नहीं मानी वो.
" यार! गले में फाँस सी चुभ रही है. "
"तुझे छोड़ने के ख़याल से डर जाती हूं." रितु रोहित से बोली थी.
"मुझे तू गिल्ट में डाल रही है.हम हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगे.  "रोहित बोला था.
वो कहना चाहती थी ऐसा नहीं हो पाएगा. पर जाने क्यों चुप रह गई थी.
थोड़े दिनों में ही रोहित ने अपनी माँ की पसन्द से शादी कर ली थी.
++++++++++
तन्मय उन दोनों का कॉमन फ्रेंड था उसने रितु से  कहा"ऐसे डरपोक के लिए क्यों टाइम वेस्ट करती है?"
"साला डर गया था वैसे बहुत चाहता था  तुझे. "
"भूल जा उसको. "
"मुझसे होता नहीं है यार !"
एक मिनट भी नहीं भूल पाती हूं अभी तो और तू हमेशा के लिए भूल जाने को कह रहा है.
"तो मां के बताये रिश्तों में से एक ढंग का रिश्ता  ढूंढ ले."
"फ़िर पक्का भूल जाएगी इस नमूने को." तन्मय ने ही  सुझाया था.
++++++++++
 शादी डॉट कॉम से छांटे  हुए लड़कों की माँ ने रितु को लिस्ट पकड़ाई है.
एक एक कर उनसे मिलने का उबाऊ काम शुरू हुआ है.
"अब मम्मी ये लास्ट बार आ रही हूं. बंगलौर से दिल्ली आना इतना आसान नहीं है. इसके बाद अगली बार, यानी कि  अगली साल देखेंगे लड़का, यहाँ ऑफिस में सब मेरा  मज़ाक उड़ा रहे हैं."
पर आख़िरी बार में तो मम्मी उसके सपनों का राजकुमार जैसा लड़का ढूंढ लायी हैं. 6फ़ीट लम्बा, आई. आई. टी पास आउट , विदेश से एम बी ए. अमेरिका में वेल सेटेल्ड.खाते पीते लोग हैं.
रितु की तरफ़ से हाँ है. अगर कुंडली मिल गई तो लड़के वाले भी हाँ कर देंगे.
"मनोज नाम है, फेसबुक पर प्रोफ़ाइल चेक कर लेना."
उसने तन्मय को बताया तो वो फ़ोन पर ही हँस पड़ा. "देखियो फिर गच्चा मत खा जाइयो. मेरी मान लड़के के टच में रह कुंडली नहीं आदतें  काम आती हैं , शादी के बाद. देखना आपस में विचार मेल खाते हैं या नहीं.
"इस दुनिया में कौन परफेक्ट है? ज़रा बताना." फिर रोहित को ही क्या  जान पायी मैं? "रितु ने कहा.
"इसीलिये कह रहा हूं ठीक से मैच मिला. अभी बेटी बाप की है."
"अपना ज्ञान अपने पास रख और हां अगर परसों बुलाऊंगी तो आ जाना 50%सगाई के चान्सेज़ हैं. "

"कूल यार !!"

"तुझसे ये उम्मीद नहीं थी कि तेरी शादी पंडित जी डिसाइड करेंगे."
"आर यू  जेलस?"
"क्यों भई?"
"किससे?"तन्मय ने पूछा.
+++++++
"चट मंगनी - पट ब्याह" वाली कहावत हो  गई है.  धूमधाम से सगाई हो गई मनोज और रितु की, डेढ़ महीने  बाद ही शादी है. मनोज  शिकागो की  फ्लाइट ले कर उड़ गया है. वो भी दिल्ली से बंगलौर आ गई है.
कल मीटिंग थी कि उसके मंगेतर मनोज  के मैसेज आने लगे सही टाइम पर पहुँच गया है.
उसने भी उसे चुपचाप स्माइली सेंड कर दिए हैं.
लिख दिया है कि मीटिंग में हूं.
अब रोज़ बातें होने लगी हैं पर बारह घंटे का डिफ्रेंस बड़ा भारी पड़ जाता है.ऑफिस टाइम में फ़ोन करता है बड़ी मुश्किल में पड़ जाती है.
रितु की सबसे प्यारी  सहेली तन्वी  की इसी बीच शादी तय हो गई है, उस दिन तन्वी के घर बैचलर्स  पार्टी थी. तभी रितु  का मोबाइल बज उठा, मनोज का फ़ोन आ गया.
"कहाँ हो? "
"तन्वी  के घर"
उधर  से क्या बोला मनोज रितु को कुछ सुनाई नहीं पड़ा.
लड़कियों ने लाउड म्यूजिक बजा रखा था.
बाद में फ़ोन करती हूं, कह कर उसने फ़ोन रख दिया और नाचने में मगन हो गई.
"क्या कह रहे हैं हमारे जीजा जी?"
तन्मय बोला.
"पता नहीं, सुनाई नहीं पड़ा था. "
"तो बाहर जाके बात कर ले बंदा इतनी दूर से फ़ोन लगा रहा है."
"ओ के  गाईज़, अभीआती हूं, ज़रा एकांत में जा रही हूं.  पार्टी चालू रखो. मैं एक कॉल करके आती हूं."
काफ़ी देर हो गई है पर रितु नहीं लौटी. तन्मय ने बाहर जा कर देखा तो उसकी कार नहीं थी.
वो घर चली गई है. उसके सर में बहुत दर्द हो रहा है. रितु ने तन्मय को मैसेज किया है.
+++++++++
एक महीने बाद रितु को शादी का लहंगा खरीदने दिल्ली जाना है उसके होने वाले पति और सास दोनों आ रहे हैं.
साऊथ एक्स फ्रंटियर राज से लहंगा ले लिया है और वहीं टेलर से ब्लाउज़ का नाप भी दे रही है वो.
बड़ी ख़ुश है वो.
पेमेंट अभी करने ही वाले थे कि  पीछे से टेलर मास्टर दौड़ते हुए आ गए. मैडम गला कितना रखेंगे पीछे से? बताना भूल गईं आप.
"डीप रखना भैया. "
"बस चार इंच की पट्टी छोड़ना पीछे."
"जी मैडम !"
"इतना गहरा गला भला क्या अच्छा लगेगा?"मनोज ने प्रतिवाद किया, उसकी मम्मी ने टोका "क्यों लड़कियों की फैशन में टांग अड़ाते हो बेटा? बनवाने दो अपनी मर्ज़ी के कपड़े."
रितु वापस बंगलौर लौट आयी है.
उसकी शादी को सिर्फ़ दस दिन रह गए हैं.
अब उसने  पहले की तरह चहकना बन्द कर दिया है .
तन्मय ने पूछा "क्या हुआ? मम्मी पापा से बिछड़ने का दुःख है?"
"बड़ी दूर शादी को हाँ कर दी तूने."
"अब बस कुछ दिनों में ये चिड़िया फुर्र हो जाएगी शिकागो."
रितु थोड़ा मुस्कुराई, फ़िर आँखों में आँसू भर कर बोली "तुझसे एक बात कहूं. "
"हां बता "
"यार !गले में फाँस सी चुभ रही है ."
"अब क्या हुआ?"तन्मय घबराया "क्या इस लड़के की मम्मी ने भी तुझे रिजेक्ट कर दिया."
"नहीं वो बात नहीं है"....... दरअसल अब रितु अटक अटक कर बात कर रही है....... "यार !!ये बन्दा गुड लुकिंग है, अच्छा कमाता है, सिगरेट शराब को हाथ भी नहीं लगाता है पर पता है मेरे टाइप का नहीं है. इसका तो कोई फ्रेंड भी नहीं है. "
"बात बात में टोकता रहता है. उस रात याद है उसने मुझे पार्टी में से घर जाने को कह दिया था."
"ऐसी बहुत सी बातें हैं. लगता है थोड़ा टाइम और लेना चाहिए था एक दूसरे को समझने के लिए."
"पढ़ाकू टाइप का बन्दा होगा. तेरे साथ रहेगा तेरे जैसा मस्त  हो जाएगा."तन्मय ने कहा.
"आई होप  सो."
तन्मय ने विदा ली.
रितु भी अब ख़ुद को हल्का महसूस कर रही है.
+++++++++
तन्वी की शादी को सिर्फ़ दो दिन बचे हैं और अभी तक दूल्हे साहब ने अपनी  शेरवानी दर्जी की दुकान  से नहीं उठाई है .
तन्वी ने रितु को ये काम दिया है "प्लीज़ तुम शाहपुर जाट से  शेरवानी ले  लो और एक बार होटल जाकर राहुल  को पकड़  कर पहनवा भी लेना. प्लीज़ मेरी प्यारी बहना. "
अरे ये कौन सा बड़ा काम है. अभी करती हूं.
"मैं जीजू को भी साथ ले जाऊंगी. एक साथ दोनों काम कर लेंगे."
तन्वी "हां यही तो  मैं चाहती हूं. थैंक्स यार !"
"नो  मेंशन "
+++++++
"शेरवानी बिल्कुल परफेक्ट है  जीजू !!"रितु ने कहा."इधर शीशे में देखिये, ज़रा पीछे भी मुड़ेंगे. "
तभी मनोज का फ़ोन आ गया.
रितु कार  का दरवाज़ा खोलते हुए बोली "hi "
"बस अब दस दिन बचे हैं.अपनी शादी में."
"आई एम सो एक्ससाइटेड. "
"आज तन्वी के फंक्शन्स में
 अपनी शादी इमैजिन कर रही हूं. "
"बड़े काम होते हैं ऐन वक्त तक."
वो मनोज से बोलती जा रही है.
उसने इशारे से राहुल से कहा आप बैठिये.
राहुल ने पूछा "कौन है?"
रितु - "मनोज हैं आप सबको हैलो बोल रहे हैं."
मनोज ने पूछा "कोई साथ में है. "
हां
"तन्वी का फियांसी."
"ओ.के."
"जब अकेली होना कॉल करना. फ़ोन रखता हूं. "
उधर से फ़ोन कट गया है.
रितु  कार चलाते वक्त सोच रही थी कि शायद मनोज को अच्छा नहीं लगा कि वो राहुल के साथ है.
पर  राहुल तो उसके  भाई जैसा है.
बेकार क्यों  शक करना मनोज पर भी.....  घर जाकर बात कर लूंगी.
पूरे रास्ते चुपचाप  कार चलाती रही थी वो.
घर आकर सबसे पहले मनोज को फ़ोन लगाया, वो तो बहुत नाराज़ हो रहा था. "देखो मैंने तुमको पहले ही बता दिया है मुझे ज्यादा दोस्तीबाज़ी पसन्द नहीं है, और लड़कों के साथ तो बिल्कुल भी नहीं."
"पर..... मैंने ऐसा क्या किया है ? "
"मेरी बेस्ट फ्रेंड का होने वाला पति तो मेरे भाई जैसा है. "
"इसमें मैं कहाँ ग़लत हूं. "
वो रोने रोने हो गई.
मनोज का स्वर सख्त था "मुझे सफ़ाई नहीं चाहिए. "
"जो मैं कह रहा हूं समझो. "
"सुनो एक मिनट "अब रितु  की  बारी थी "मनोज मेरी बात सुनो. "
रितु ने कहा "सुनो मनोज अब तक तुम्हारे साथ मैं एडजस्ट करने की कोशिश कर रही हूं तुम बहुत अच्छे हो, अच्छी नौकरी में हो, गुडलुकिंग हो."
अचानक रितु की आवाज़ बन्द हो गई है. "हां रितु मैं सुन रहा हूं " मनोज अब अधीर था......" मगर तुम मेरे जैसे नहीं  हो. आई एम सॉरी हम लोग  मेड फॉर ईच अदर नहीं हैं. सॉरी मैं तुम्हारे साथ शादी नहीं कर सकती हूं."

मनोज बोला "अरे !समझ रही हो क्या कह रही हो?"
"सारी बुकिंग्स हो गईं हैं कार्ड्स बँट  गए हैं."
रितु "सॉरी ये मेरा अंतिम फैसला  है. "
"फ़ोन रखिये मम्मी को बताना है."
"बुकिंग कैंसिल करानी  हैं."

मम्मी को सब  बातें सुनकर  धक्का लगा था , खूब रोई धोईं थीं, लेकिन पापा ने पूरे दो घंटे वीडियो कॉल पर उससे बात की और कहा "मेरे लिए तुम्हारी ख़ुशी ही सर्वोपरि है." उन्होंने  लड़के वालों को मना  कर दिया है.
तन्वी की हल्दी में नहीं जा पायी उस दिन रितु.
मनोज ने उसका सारा मूड स्पॉयल कर दिया था.
+++++++++
एक दिन बाद तन्वी की शादी हो गई. सारे फ़ंक्शन अटेंड करने के बाद  रितु ने  तन्मय से कहा "यार गले में फाँस सी अटक रही है.........कल मैंने मनोज को फ़ाइनली मना कर दिया है. मेरी शादी कैंसिल हो गई है .
तुम सही थे कुंडली से ज़्यादा एक दूसरे से विचार मिलने चाहिए."
तन्मय कुछ देर चुप रहने के बाद बोला

"हां ठीक कह रही हो पर तुमने नोटिस किया कि  हम दोनों के विचार काफ़ी  मिलते हैं."
"इनफैक्ट हम दोनों भी काफ़ी जल्दी जल्दी मिलते हैं. "
तन्मय शरारत से मुस्कुराया.
"अगर तेरे गले की फाँस निकल गई हो तो हुकुम कर
अपने मम्मी पापा को तुम्हारे घर भेजूँ. पर देख ले . बिल्कुल साधारण सी  फैमिली है हमारी, पर तुम्हारे नख़रे मिलकर उठा लेंगे सब.  यहीं इंडिया में रहना पड़ेगा सबके साथ."
रितु मुस्कुरा उठी बोली "मंज़ूर  है. "
****समाप्त*****
 मेरा स्वाभिमान  (लम्बी कहानी)
*******************
"मम्मा ये आपने क्या लिखा है? "सबा ने सान्या से कहा.
"तुम ही मेरा स्वाभिमान हो. "
"कोई पत्नी अपने पति को ऐसे बोरिंग मैसेजेस करती है? "
"वो भी गुडमॉर्निंग मैसेज."
"तुझसे मतलब?"सान्या बोली.
"और मेरा मोबाइल छूने की ज़रुरत क्या है?
"वापस रख जहाँ से उठाया था."
"रख दिया है." सबा ने कहा
"और हाँ पापा को ज़रा इंटरेस्टिंग मैसेजेस किया करो. जैसे आज मैंने कर दिया है. आपके मोबाइल से.कुछ सीखो मम्मा "
"देखना आज पापा जल्दी घर आएँगे."
सबा ने सान्या के माथे को चूमा और चहकती हुई सी घर से निकल गई. सान्या ने मोबाइल में झांकते हुए कहा.
"हे भगवान! ये लड़की बड़ी सर चढ़ी है."
"इन बाप बेटी की जोड़ी ने मेरी आफ़त कर रखी है.जतिन ने बिल्कुल बिगाड़ दिया है अपने लाड़ प्यार से "
सान्या के सौम्य, उजले चेहरे पर मुस्कुराहट थी. जो उसके गृहस्थ जीवन में व्याप्त संतोष और प्रेम को प्रकट कर रही थी.
तभी बाहर घंटी बजी डाकिया था.
"सबा जी को बुलाइये. उनके लिए एक पत्र है."
"मुझे दे दो उसकी माँ हूं."
सान्या ने पत्र को भेजने वाले का नाम देखा और उसे झटका सा लगा वो लिफ़ाफ़ा लेकर सोफे पर बैठ शून्य में निहारने लगी, जिस अतीत को भूल जाना चाहती है, बार बार सामने आ खड़ा हो जाता है.
रोहन ने एल.आई.सी. की पॉलसी भेजी है. साथ ही लिखा है. क्या वो उसके हस्ताक्षर लेने आ सकता है ? वो दो दिनों के लिए उनके शहर में है, फ़िर इंडिया चला जाएगा.
कनाडा की ठण्ड में भी सान्या का मुहँ सूख गया है. उसके गोरे गाल और कान उत्तेजना से लाल हो गए हैं.
कितनी भूली यादें एक साथ आंधी की तरह उसके दिमाग़ में चल पड़ी हैं. क्या करे वो?
वो जतिन को फ़ोन करके बुला ले.
अथवा रोहन को मना कर दे कि खबरदार जो उसके सुखी जीवन में दोबारा झाँकने की कोशिश की तो उससे बुरा कोई नहीं होगा.
रोहन उसका पहला पति और सबा का बायलोजिकल फादर...............
सान्या परेशान हो गई कैसे बताएगी सबा को रोहन के बारे में?
वो तो उसके नाम से ही भड़क जाती है.
जतिन ने इतना प्रेम दिया है कि सबा उन्हें ही अपना पिता मानती है.
जब हाई स्कूल का फॉर्म भरना था तब उसने अपना सरनेम भी बदल लिया था . अब सबा शर्मा से सबा माथुर हो गई है.
वैसे सबा के पैदा होने पर रोहन बहुत ख़ुश हुआ था. उसके एक अफगानी मित्र ने ही उसकी बेटी का नाम सबा रखा था.
मित्रता भी क्या चीज़ होती है. ग़ैरों को अपना बना दे. आप अपने मित्रों से जी भर के दिल की बातें कह सकते हैं.
आपकी अच्छी बुरी आदतों के साथ वे आपसे प्रेम करते हैं.
सान्या सोचने लगी तब हम सब कितने अच्छे मित्र थे मैं, जतिन, जोया, रोहन और सलीम भाई .
केन्या में रहना सिर्फ़ इन्हीं लोगों के कारण संभव हो पाया था.
शुरूआत में बड़े अच्छे दिन कट रहे थे.
उसकी स्कूल में नौकरी, शाम को हिन्दीभाषी दोस्तों में उठना बैठना, खाना पीना,किसी बात की फ़िक्र ना थी.
लेकिन जब सबा के पैदा होने पर उसे नौकरी छोड़नी पड़ी थी तब से ही दिक्कत शुरू हो गई थी.
रोहन ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी थी वे बिज़नेस में लग गया था . जब तब उसको बाहर जाना पड़ता था.
परदेश में नन्ही बच्ची के साथ वो परेशान हो उठी थी.
उसने रोहन से कहा था क्या वो इंडिया चली जाए? या अपनी छोटी बहन को बुला ले.
पर रोहन ने मना कर दिया था.
सबा की देख भाल के लिए सान्या ने एक लड़की रख ली थी और लड़की को तनख्वाह देने के लिए स्कूल ज्वाइन कर लिया था.
उसे याद है विवाह के तीन चार वर्ष बाद ही
रोहन ने घर का किराया, और घर खर्च के पैसे देने बन्द से ही कर दिए थे.
वो भी मांग नहीं पाती थी. सोचती थी कि जब काम चल पड़ेगा ख़ुद ही देने लगेंगे.
. मुसीबतों की मानो झड़ी सी लग गई थी उन दिनों.
पहले रोहन का बिज़नेस में घाटा दूसरी ओर सान्या का वर्क परमिट एक्सपायर हो रहा था.जिसे लेकर दिन में एक बार बहस जरूरी थी. वो स्पाउस वर्क परमिट पर थी.
बस रिन्यूअल के लिए फॉर्म ही तो भरना था, उसने कई बार रोहन से अनुरोध किया था, प्लीज़ टाइम से सारी फ़ॉर्मेलिटीज़ पूरी कर दो किन्तु रोहन सुनता ही नहीं था.
उलटे जोर जोर से चिल्लाने लगता था.
किसी और बात में कमी निकालने लगता था . जैसे फ्रिज में दूध खुला क्यों रखा है, ये सब्जियाँ क्यों सूख रही हैं, धूप में कपड़े अभी तक क्यों पड़े हैं.
सान्या को पता चल रहा था कि वो कितनी फूहड़ है. उसने अपने आप को कभी इस नज़र से देखा नहीं था.
अब वो ख़ुद को हारा हुआ मानने लगी थी.
बताओ ये छोटे छोटे काम नहीं होते हैं उससे.
रात दिन ख़ुद को कोसने लगी थी सान्या.
उसने शिद्दत से प्रयास किया कि रोहन को शिकायत का कोई मौका ना दे.
उसने अपने मम्मी पापा को देखा था उनके बीच भी झगड़े होते थे किन्तु झगड़ों की अवधि बहुत कम होती थी.
रोहन अगर एक बार रूठ जाए तो महीनों बात नहीं करता था. वो उसको मनाने के लिए कितनी दफ़ा माफ़ी मांग चुकी है. यहाँ तक कि पैर भी छुए हैं. ना जाने किस मिट्टी का बना है कि पिघलता ही नहीं है.
घर में मम्मी पापा को किस मुहँ से बताए, उसकी दो बहनें और हैं जिनके रिश्ते होने हैं.
वो सोच रही थी कि तभी उसकी सास उनसे मिलने आ गई थीं.
उन्होंने रोहन और सान्या के रिश्तों की खटास सूंघ ली थी.
सान्या को अपने पास बिठाकर समझाया था "बेटा! तुम कितनी ख़ुश रहती थी और अब मुरझा कैसे गई हो?
अपने बेटे को मैं खूब जानती हूं.
इसे छोटी छोटी बातें पकड़ने की आदत है.
मैंने सोचा था तुम्हारी जैसी सुन्दर लड़की को पाकर अपना व्यवहार बदल लेगा. पर इसमें तो ज़रा भी परिवर्तन नहीं आया.
दरअसल ये हमेशा से ही किताबों में घुसा रहता था. कल्पना लोक में विचरता है.
हमारा अकेला बच्चा भी था. शायद हमारे पालन पोषण
में कमी रह गई हो.
मैंने सोचा था तेरे जैसी चुलबुली लड़की के साथ हंसना बोलना सीखेगा पर यहाँ तो तू ही रोती हुई सी लग रही है.
फ़िर उन्होंने कहा "सकल पदारथ हैं जग माही करम हीन कुछ पावत नाहीं. "
मम्मी जी के आने से एक अच्छी बात हुई सान्या ने ख़ुद को कोसना बन्द कर दिया था.
वो दो महीने बहुत अच्छे निकले.
रोहन भी माँ के आने से ख़ुश था.
उसकी माँ प्रेम की नदी थी जो उनके नीरस सूखे वैवाहिक जीवन को हरा भरा बनाने आई थी. ऐसा सान्या को लगता था.
"जा बाहर घूम आ. सबा को मैं संभालती हूं."
कभी पार्क, कभी किसी फ़िल्म देखने जबरजस्ती धक्का मार कर घर से निकाल देती थीं.
किन्तु उनके वापस जाते ही रोहन पहले जैसा ही हो गया था.
सान्या और उसका स्कूल
********************
सान्या आदर और प्रेम की भूखी थी. ये प्रेम उसने स्कूल के नन्हे मुन्ने बच्चों में तलाशना प्रारम्भ कर दिया था.
घर की विषम परिस्थितियों में तप कर वो सोना बन रही थी या कोयला ये तो वक्त ही बताने वाला था. किन्तु वो चुपचाप लगी रहती थी अपने कार्य में. अपनी मेहनत के बलबूते वो शीघ्र ही सीनियर कक्षाओं को पढ़ाने लगी थी.
जोया भी यहीं पढ़ाती थी. अब दोनों का आना जाना भी साथ होने लगा था.
आपस में बातें शेयर होने लगी थीं.
जोया जतिन के गुण गाते नहीं थकती थी.
सान्या को अपने बिखरते परिवार को समेटने के लिए एक सच्चा हमदर्द चाहिए था जो उसे बता सके कि वो कैसे रोहन के साथ निभाए. उसे ख़ुश रखे.
उसे उम्मीद थी कि जोया और जतिन कोई ना कोई हल निकाल देंगे.
जोया ने ही समझाया था सीधे सीधे बात करो और पूछो रोहन से उसे क्या तकलीफ़ है तुमसे.
अक्सर छोटी छोटी बातें बाद में बड़ी हो जाती हैं.
दिन पर दिन किच किच से सान्या भी ऊबने लगी थी. उसने परेशान होकर कहा भी था "रोहन अगर तुम्हें मुझसे कोई तकलीफ है तो साफ-साफ कहो."
" इस तरह रोज रोज लड़ने से मुझे और तुम्हें दोनों को ही परेशानी होती है मैं स्कूल में भी ठीक से पढ़ा नहीं पाती हूं."
और फिर सबा भी बड़ी हो रही है आखिर वो क्या सीखेगी.हम दोनों को देखकर.
रोहन विचित्र सी हंसी हंस पडा था और बोला "तुम अपने आप अपनी कमियां ढूंढो यह काम थोड़ा मुश्किल जरूर है.
मुझे उम्मीद है तुम इतनी इंटेलिजेंट हो, अपने में सुधार ले आओ.
हाँ मुझसे कोई उम्मीद ना रखना. सारी गड़बड़ियां तुम्हारे अंदर हैं, अगर ये सोच कर हमारे रिश्ते पर काम करोगी तो कुछ हो सकता है वरना अपना रास्ता देख लो.
मुझे ये बोझिल रिश्ता चलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है.
तुम जब चाहो मुझे छोड़ कर जा सकती हो."
सान्या घर के काम निबटाकर सड़क पर टहलने निकल आई थी.
ये क्या कह दिया रोहन ने?
उसकी ऐसी ग़लती क्या है?
समाज में उसका नाम है.
सारे विद्यार्थी उसे पसन्द करते हैं. शहर की दस खूबसूरत औरतों के नाम लिखे जाएं तो एक नाम उसका भी होगा. अच्छा कमाती है वो.
आख़िर क्या चाहिए रोहन को. कहाँ भटक रहा है इस आदमी का मन.
वो काफ़ी देर सड़क पर टहलती रही और फ़िर जोया के घर चली गई.
जोया ने उसका उड़ा चेहरा देख कर पूछा क्या हुआ?
बस वो जोया के कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी. अगर उसे कुछ पता होता तो अवश्य बताती.
जोया ने जतिन को रोहन के घर की ओर यह कहते हुए रवाना किया "जाकर देखो रोहन कैसा है? लगता है दोनों लड़ लिए हैं.
कहीं बच्ची रो तो नहीं रही है?"
*******
जोया ने सान्या से कहा "चुप हो जाओ सान्या और मुझे शुरू से बताओ"
सान्या बोली "मेरी और रोहन के अरेंज मैरिज है मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानती थी."
"बस इतना पता था पढ़ाई में बहुत अच्छे हैंअच्छी जॉब में हैं वह दूर रिश्ते में भी कुछ लगते हैं.बस विवाह हो गया था."
उसने गहरी सांस लेते हुए आगे कहा....
"अभी जब रोहन की मम्मी आयी थीं तो उन्होंने बताया कि रोहन की कोई गर्लफ्रेंड थी शायद पेन फ्रेंड थी. बचपन से ही, कई वर्षों तक दोनों में पत्र व्यवहार चलता रहा था. लड़की इंग्लैंड में रहती थी और फिर अचानक एक दिन उसके पत्र आने बंद हो गए थे. रोहन बहुत अपसेट रहने लगे थे."
इसीलिए जब मम्मी जी ने मुझे देखा तो उन्होंने मेरे घर वालों से करीब-करीब विनती करके मेरा हाथ मांग लिया था. इस बारे में रोहन ने कभी कुछ नहीं बताया है लेकिन ऐसा लगता है आज भी उस लड़की को वो भूल नहीं पाए हैं. इसीलिए मुझसे सीधे मुंह बात ही नहीं करते हैं अगर कोई मेरी तारीफ़ कर दे उसे वो अपना अपमान समझते हैं.
जोया ने पूछा "क्या रोहन ने कभी तुम पर हाथ उठाया? "
"नहीं "
"लेकिन इतनी मानसिक प्रताड़ना मैं नहीं सह सकती हूँ."
"मुझमें इतनी कमियां निकाल देते हैं कि किसी भी कार्य को करने में डर लगता है."
"लगता है कि सारा कॉन्फिडेंस खोती जा रही हूँ."
" मैं यहां बिल्कुल अकेली पड़ गई हूं."
"समझ नहीं आता है उनका यह रुखा व्यवहार किस तरह से सहन करूँ."
रोहन और बीती बातें
****************
जतिन ने रोहन से बड़े प्यार से बात की, एक बड़े भाई और दोस्त की तरह.
रोहन जतिन का बहुत लिहाज भी करता था. वो उन लोगों से आयु में भी बड़े थे. और समाज में अच्छी हैसियत भी रखते थे.
लेकिन जब रोहन ने अपनी परेशानी बताई तो जतिन को लगा ये केस तो मनोरोग विशेषज्ञ को देखना चाहिए.
रोहन कहीं ना कहीं हीन भावना का शिकार है.
हाँ ये सच है वो सान्या से चाह कर भी प्रेम नहीं कर पाता है.
दरअसल सान्या बहुत सुंदर है और वह साधारण शक्ल सूरत का आदमी है.
उसे लगता है कि सब लोग उनकी जोड़ी देखकर हँसते हैं.
सान्या के व्यवहार से उसे कभी भी नहीं लगा कि वह उसकी शक्ल सूरत को पसंद नहीं करती है.
पर शायद वह जाहिर नहीं होने देती है.
वह सान्या को ढोंगी समझता है.
साधारण शक्ल सूरत के कारण उसकी पहली गर्लफ्रेंड छोड़ कर जा चुकी हैं यह दर्द आज तक उसको सालता है.
बरसों पुरानी दोस्ती सिर्फ़ एक फ़ोटो एक्सचेंज पर टूट गई थी. रोहन ने लड़की की फ़ोटो मांगी थी. लड़की ने भी उसकी फ़ोटो मांगी. बस वही आख़िरी पत्रव्यवहार था.
उसके बाद कोई भी जवाब नहीं आया. कहाँ हर हफ़्ते एक पत्र अवश्य आता था. वो कई सालों तक उदास रहा था.
उसने सोचा था कि वह भूल जाएगा फिर कॉलेज में दूसरी बार उसकी दोस्ती एक अन्य लड़की से हुई.
बहुत खूबसूरत थी ये दूसरी लड़की भी रोहन को खूब इस्तेमाल किया उसने पढ़ाई में मदद ली और जैसे ही कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई उसके ही सीनियर से विवाह कर यू. एस. चली गई थी.
कहीं ना कहीं तभी से वह हीन भावना का शिकार हो गया है उसने अपने मन में सोच लिया था इन खूबसूरत लड़कियों के विश्वासघात का बदला लेगा.
उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य एक खूबसूरत लड़की से विवाह करना और उस औरत को परेशान कर अपने अपमान का बदला लेना है.
रोहन ने व्हिस्की का तीसरा पैग लगाते हुए जब जतिन को बताया उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी.
बार बार उनकी नज़रों के सामने सान्या का भोला भाला उदास चेहरा आ रहा था. ......... 
जतिन ने ख़ुद को सम्भाला और रोहन से कहा.
"देखो रोहन जहाँ तक मैं समझता हूँ सान्या एक भली लड़की है, और यहाँ तुम्हारे सहारे ही आयी है.
अरे यार ! पत्नी है तुम्हारी.
तुमको उसको पाकर ख़ुश होना चाहिए.
हर व्यक्ति का एक अतीत होता है. भूल जाओ, जीवन के आज को देखो.तुम्हारा छोटा सा घर संसार है. प्यारी सी बच्ची है, एक सुशील पत्नी है.
इसे बचाओ रोहन.
चलो मेरे घर चलो जोया ने तुमको बुलाया है आज साथ में ही डिनर करते हैं."
"सबा चलिए बेटा आपको भैया और दीदी के साथ खेलना है?"जब जतिन ने पूछा तो नन्ही सबा अपने जूते उठा लाई और पहनने का प्रयास करने लगी.
"मैं पहनाता हूँ इधर बैठो."
जतिन ने कहा तब तक रोहन भी कपड़े बदल कर आ गया था.
उस दिन के बाद जोया और जतिन ने रोहन और सान्या के यहाँ आना जाना बढ़ा लिया था.
जतिन ने एक मनोरोग विशेषज्ञ से बातचीत की जो कि उनकी पारिवारिक मित्र भी थीं, इस तरह से सान्या और रोहन की काउंसलिंग शुरू हुई.
सान्या को आज भी याद है पूरी दस सिटिंग्स हुई थीं उन दोनों की.
लम्बी लम्बी बातें, दुनिया भर के डिस्कशंन्स और तरह तरह की मनोविज्ञान को सुलझाती एक्सरसाइसेज़.
सान्या हर हाल में अपना रिश्ता बचाना चाहती थी. उसे समझ नहीं आता था कि जो रोहन सबके साथ इतना अच्छा है उसके साथ ही क्यों नहीं पटा पा रहा है.
************
जोया और जतिन..........
नैरोबी में कुछ वक्त गुजारने के बाद जोया और जतिन को मुम्बासा जाना पड़ा था.
उनके नैरोबी छोड़ने की ख़बर रोहन और सान्या को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी.
रोहन ने जोया से कहा "प्लीज़ आप भाईसाब को कहिये यहाँ से ना जाएं."
सान्या बोली "भाईसाब आप लोग चले गए तो हमारे झगड़े कौन निबटाएगा."
"इसीलिये जा रहा हूँ ताकि तुम दोनों समझदारी से रह सको."
वो दोनों हँस पड़े थे.
रोहनऔर सान्या का हँसता खेलता परिवार देख कर जोया को अच्छा लगता था.
डिनर के बाद जब वे दोनों चले गए तो जतिन ने जोया से कहा "आज डॉ सिन्हा मिली थीं. "
"अच्छा कैसी हैं."
"वो तो ठीक हैं, पर सान्या को लेकर परेशान थी. कह रही थी, सान्या का व्यवहार बिल्कुल ठीक है पर रोहन में प्रॉब्लंस हैं. लास्ट सिटिंग में उन्होंने रोहन को हिप्नोटाइज़ किया था. उसके मन में पुराने धोखे जड़ जमा कर बैठ गए हैं, आज भी बदले की भावना नहीं निकाल पा रहा है. "
"मुझे तो इस लड़की के लिए दुःख होता है."
जोया ने कहा "परेशान ना होइए, सब ठीक होगा. आपने देखा नहीं आजकल दोनों कितने प्यार से रह रहे हैं."
जतिन ने कहा" जो तुम कह रही हो वही सच हो."
जोया बोली "और फ़िर रोहन आपकी इज़्ज़त करता है. आपको बड़े भाई की तरह मानता है. आप जाने से पहले उसको समझा दीजिएगा."
भारी मन से पति पत्नी ने नैरोबी से विदा ली और मुम्बासा में नये ढंग से जीवन की शुरुआत की किन्तु जोया और बच्चे नैरोबी को बहुत मिस करते थे. दो वर्ष गुज़र गए,
ना जाने जतिन का मन भी नहीं लग रहा था.उन्होंने वहाँ खूब पैसे कमाए पर जैसे ही
नैरोबी आने का मौका मिला और वो सब वापस आ गए.
अभी कुछ दिन ही बीते थे कि जतिन और जोया का कार एक्सीडेंट हो गया.जिसमें दोनों को बहुत चोटें आयी थीं.
बहुत कोशिशों के बावजूद जोया को डॉक्टर्स बचा नहीं सके थे. जतिन को भी बहुत चोटें आयी थीं. वो पूरे चार महीने अस्पताल में ही भर्ती थे. नैरोबी के भारतीय परिवारों में हलचल मच गई. वो दोनों सभी के प्रिय थे. सबके काम आने वाले ज़िंदादिल और नर्म दिल इन्सान.
उनके दोनों बच्चों को सान्या अपने घर ले आई थी.
तब उनकी बेटी बारह वर्ष की थी और बेटा सिर्फ़ दस साल का.
उन्हें देख कर कलेजा मुहँ को आता था.
उन्हें कोई कैसे समझाए?
जीवन भर का शून्य उन दोनों के जीवन में आ गया था. इसे कैसे सहन करेंगे ये मासूम बच्चे.
माँ की कमी कौन पूरी करेगा.
जोया के जाने के बाद दोनों बच्चे ऐसे गुमसुम हुए कि लगता था, उनके मुंह में जुबान ही नहीं है.
पढ़ाई में भी कंसन्ट्रेट नहीं कर पा रहे थे दोनों.
क्लास टीचर ने दुःखी होकर कहा था.
जोया मैम अपने हर स्टुडेन्ट पर कितना ध्यान देती थीं.आज उनके बच्चों को देखने वाला कोई नहीं है.
ईश्वर की क्या मर्ज़ी है?
कई बार समझ में नहीं आता है.
फिलहाल जब तक इंडिया से कोई नहीं आ जाता सान्या ने बच्चों की देखभाल का जिम्मा ले लिया था. बच्चे उससे हिल मिल गए थे.सबा को दो दोस्त मिल गए थे.
बच्चों की देखभाल के साथ ही वो जतिन की भी मदद कर रही थी.
रोहन और सान्या के लिए जतिन अपने फैमिली मेंबर जैसे थे.
********
एक वर्षऔर निकल गया था.
सान्या अपने कॉलेज में बिज़ी हो गई थी. इस बार जब इंडिया गई थी तो उसकी छोटी बहन भी ज़िद करके उसके पास घूमने के लिए नैरोबी आ गई थी.उसके आने से सान्या को बहुत अच्छा लगता था.
सान्या बचपन से ही ईश्वर में आस्था रखती थीऔर शादी के बाद पूजापाठ और भी बढ़ गया था क्योंकि परदेश में भगवान का ही एक सहारा दिखता था.
इस बार दुर्गापूजा पर उसने नौ दिन के व्रत रखे थे. अभी तक याद है वो व्रत का आख़िरी दिन था.
सबा ने पूछा "मम्मा आप देवी माँ के बारे में बताइये ना."
सान्या ने कहा "देवी माँ हमको सिखाती हैं कि हमें बहादुर होना चाहिए. किसी भी अन्याय को नहीं सहना चाहिए. क्योंकि इससे आपको तो दुःख पहुँचता ही है पर सामने वाले शैतान की ताक़त दो गुनी बढ़ जाती है."
"क्या मैं बहादुर हूँ."सबा बोली.
"हाँ तुम बहादुर हो.कितनी बार घर में अकेली रुक जाती हो."
"थैंक्स मम्मा."
ओहो !!जल्दी करो सबा आज मैं पूजा के चक्कर में कॉलेज के लिए लेट हो गई. बाहर निकलो सबा. सान्या चिल्लाई"जल्दी बेटा. "
कॉलेज पहुँच कर उसे ना जाने क्या सूझा वो कॉलेज से घर आ गई थी.
उसे लग रहा था जल्दीबाजी में ठीक से पूजा नहीं हुई है. उसने सोचा था देवी माँ की आरती करेगी और कोई इंडियन ड्रेस पहनेगी.फ़िर दोबारा कॉलेज चली जाएगी.
उसके घर से पैदल का रास्ता था.
पूजा करने के बाद सान्या ने जैसे ही बाहर जाने के लिए क़दम रखा कि लैंडलाइन फ़ोन घनघना उठा.
उसके साथी पाकिस्तानी प्रोफेसर का फ़ोन था "मैं ज़ाकिर बोल रहा हूँ आज ही पाकिस्तान के लिए वापस निकल रहा हूँ मुझे कॉलेज से निकाल दिया गया है.
किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी है कि मेरा वर्क परमिट एक्सपायर हो गया है.
किसी तरह जाने से पहले तुम्हें बताना चाहता था कि तुम्हारे ख़िलाफ़ भी चार्ज शीट बनाई गई है.
तुम अपनेआप को बचा लेना.
"जी ज़ाकिर भाई !आप क्या कह रहे हैं?"
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है."सान्या घबरा गई थी.
"ख़ुदा हाफ़िज़ !अपने लिए वकील कर लेना बेटा."
ज़ाकिर सर ने फ़ोन काट दिया था.
उन दिनों मोबाईल फ़ोन नहीं आये थे.
सान्या डर से काँप रही थी. उसने सबसे पहले रोहन को पेजर पर मैसेज किया. Call me this is urgent.
लेकिन रोहन का फ़ोन नहीं आया.
वो बार बार मैसेज करती रही फ़िर हताश हो गई.
उसने सोचा कॉलेज में प्रिंसिपल से बात करती हूँ.
उनसे सारी सच्चाई पता चल जाएगी. वो ही कोई रास्ता सुझाएंगे.
जैसे ही उसने कॉलेज में प्रिंसिपल के ऑफिस में क़दम रखा उसे ढूँढ़ते हुए पुलिस कर्मी पहुँच चुके थे.
उनके पास कोर्ट का अरेस्ट वॉरेंट था.
सान्या को याद नहीं कि उन लोगों ने क्या कहा?
किन्तु पांच मिनट के भीतर ही वो लोग अपनी पुलिस वैन में बिठा कर उसको ले चले थे.
पूरा कॉलेज उसकी गिरफ़्तारी देख रहा था. छुट्टी का वक्त था. वो शर्मिंदगी से अपना सर ऊपर नहीं कर पा रही थी.
ये चार खूंखार से दिखने वाले काले लम्बे पुलिस कर्मी थे.
आपस में उसे देख कर स्वाहिली भाषा में अश्लील मज़ाक कर रहे थे.
सान्या समझ गई थी वो किसी बड़ी मुसीबत में फँस चुकी है.
शाम के चार बज चुके थे. शुक्रवार का दिन था.
कोर्ट से बेल सिर्फ़ साढ़े पांच बजे तक हो सकती थी. उसके बाद शनिवार और रविवार को न्यायालय बन्द था.
सान्या को अपनी छोटी बहन और नन्ही बच्ची की फ़िक्र हो रही है.
रोहन तो 7या आठ बजे से पहले घर नहीं आता है.
अचानक उसने ध्यान दिया कि ड्राइवर ने शहर की सड़क छोड़ दी है वो कोर्ट के पिछवाड़े की बिल्डिंग की ओर मुड़ गया है.
सान्या ने उनमें से एक पुलिस ऑफिसर से पूछा आप मुझे कहाँ ले जा रहे हैं? पुलिस स्टेशन तो पीछे छूट गया है.
उसने कोई जवाब नहीं दिया किंतु उसके साथी एक शैतानी हंसी हँस पड़े.उनमें से एक बोला.."पुलिस स्टेशन जैसी जगह तुम्हारी जैसी सुंदरियों के लिए नहीं है.
तुम दो दिन तक हमारे साथ रहो.हमें ख़ुश करो, वादा करते हैं बिना कोई केस बनाए तुम्हें छोड़ देंगे.
हम तुमको गेस्ट हाउस ले जा रहे हैं, और याद रखना अगर जरा भी आवाज़ निकाली तो तुम्हारा वो हाल करेंगे तुम सोच नहीं सकती हो."
सान्या उनकी कैद से निकलने को आतुर हो उठी थी. गेस्ट हाउस का कमरा दसवीं मंज़िल पर था.
उसने सोच लिया था कि मौका मिलते ही वो कमरे की खिड़की से कूद जाएगी किन्तु इन शैतानों को अपना शरीर नहीं छूने देगी.
उसे कुछ सूझ नहीं रहा था वो मन ही मन ईश्वर को याद करने लगी थी. उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे.
ये पुलिस वाले 5.30 बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे.
उसके बाद कोर्ट की बिल्डिंग दो दिन के लिए खाली हो जाने वाली थी.
वे सब शैतानी हंसी हँस रहे थे.
सान्या ने ईश्वर से प्रार्थना की कि मुझे मौत दे दो.
पांच बजकर बीस मिनट हो गए थे. कि अचानक गेस्ट हाउस के दरवाजे पर चहलकदमी और आवाज़ों का शोर सुनाई पड़ने लगा.
आवाज़ें बढ़ीं और उस कमरे के आगे आकर रुक गईं जहाँ सान्या को छुपाया गया था. उनके कमरे के दरवाज़े को ज़ोर की लात मार कर एक साढ़े छह फुट के काले अफ़्रीकी ने खोल दिया था. उसके साथ एक दो और व्यक्ति भी थे.
अब वे सब इंग्लिश और स्वाहली भाषा में बहस कर रहे थे.
"मुझे पूरी उम्मीद थी तुम लोगों ने यहीं इस लड़की को छुपाया होगा."
उसके हाथ में एक लिफ़ाफ़ा था. उसने लिफ़ाफ़ा पुलिस ऑफिसर के मुहँ पर मारा और कहा "ये इस लड़की की ज़मानत के पेपर्स हैं."
"ठीक से पढ़ लो."
पुलिस वालों के मंसूबे कामयाब ना हुए तो सान्या को छोड़ते हुए बोले "कितने दिनों के लिए ले जा रहे हो? "
"देखना इसे जल्द ही हम फ़िर पकड़ लेंगे."
"बाय !बाय ! लड़की आज तो तू बच गई है पर देखता हूँ तू कब तक बचेगी?"
अगर दो दिनों में वर्क परमिट की मोहर नहीं लगी तो हम तुझे उठा ले जाएंगे लड़की याद रखना.
पुलिस ऑफिसर खिसिया कर जोर जोर से चिल्ला रहा था.
उस वकील ने सान्या के सिर पर हाथ फ़ेर कर कहा "डरो मत मैं तुम्हारे पिता जैसा हूँ.
तुम्हारे कॉलेज की केमिस्ट्री टीचर रोज़ी मेरी पत्नी है. आज मैं कोर्ट से जल्दी घर के लिए निकल रहा था तभी रोज़ी का फ़ोन आया."
वो व्यक्ति थोड़ा मुस्कुराया... "उसने मुझे बताया कि उसके कॉलेज की एक टीचर को पुलिस पकड़ ले गई है.इत्तिफ़ाक़ की बात आज जब ये लोग तुमको लेकर गेस्ट हाउस ला रहे थे तो मैं भी उसी वक्त गेस्ट हाउस से बाहर निकल रहा था. मुझे कुछ गड़बड़ तो लग रही थी.
मैंने ज़मानत की अर्जी तैयार की और जज साहब से साइन करा कर तुम्हें ढूँढ़ते हुए सबसे पहले यहीं आया, देखो तुम मिल भी गई.
खैर चलो बेटा मेरे साथ चलो तुम्हारा घर कहाँ है मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ."
सान्या अभी भी सहमी हुई थी. पिछले तीन घंटे उसके लिए तीन सदियों जैसे लम्बे थे. उससे कुर्सी से उठा ही नहीं जा रहा था.
"मुझे अफ़सोस है बेटा हमारे देश की पुलिस और कानून व्यवस्था में अराजकता चरम सीमा पर है."
सान्या बोली "इसी देश में आप जैसे भले लोग भी हैं.अगर आप नहीं होते तो ना जाने मेरा क्या होता "
इतना घबराई हुई थी कि घर आने पर सान्या ने उन्हें घर के अंदर आने को भी नहीं कहा.
सीधे अंदर बिस्तर पर जाकर लुढ़क गई. सबा और उसकी छोटी बहन गुड़िया डरी हुई उसके बगल में आकर बैठ गईं.
रोहन अभी तक घर नहीं आया था.शाम को जब रोहन घर आया, घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. घर में खाना नहीं बना था. सुबह का प्रसाद ही रखा था.
जब सान्या थोड़ा नार्मल हुई तो उसने रोहन को अपनी आप बीती सुनाई.
रोहन ने कहा "कोई बात नहीं मुझे सोचने दो. कुछ हल निकल आएगा."
रोहन जैसे ही फ्रिज का दरवाजा खोल कर खड़ा हुआ उसमें खुला दूध देख कर चिढ़ गया और नाराज़ होने लगा.
कोई और दिन होता सान्या चुपचाप जाकर दूध ढांक देती किन्तु आज वो बहुत परेशान थी.
झुंझला पड़ी रोहन पर"तुम हमेशा दूसरों को तमीज़ सिखाते रहोगे, कभी अपने गिरेबां में झांकोगे.
इतने वर्षों से घर का किराया मैं दे रही हूँ.
सबा को मैं देखूँ.
खाना मैं बनाऊं.
बाज़ार का सामान मैं लाऊं.
घर मैं साफ़ करूँ.
तुम जब चाहो नौकरी करो जब चाहो छोड़ दो.
क्या बिज़नेस है तुम्हारा आजकल तुमने कभी बताया है?
मेरे पेजर पर मैसेज देख कर भी तुमसे एक फ़ोन नहीं किया गया.
सान्या का स्वर इतने वर्षों में पहली बार तेज़ हुआ था.
वो रुकी नहीं आगे बोली तुम्हें पता है तुम्हारी कामचोरी,और लापरवाही की मुझे आज क्या सजा भुगतनी पड़ी?
अगर बता दूंगी तो सुन नहीं पाओगे.
लेकिन तुम्हारा क्या है तुम उसमें भी मेरी ग़लती निकाल देना." कहते कहते वो रो पड़ी थी. उसने अपने कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया था. जाने कितनी देर रोती रही और सो गई सुबह आँख खुली तो बाहर चिड़ियाँ शोर मचा रही थीं. सूरज की रौशनी पर्दों से छन कर उसके बिस्तर पर आ रही थी. उसे सबा की फ़िक्र होने लगी वो दौड़ कर दूसरे कमरे में गई सबा अपनी गुड़िया मौसी के पास सो रही थी. उसे देख कर नींद में ही बोली "यहीं सो जाओ मम्मा."
रोहन घर में नहीं था पता नहीं सुबह सुबह कहाँ चला गया?
वो फ़ोन लेकर बैठ गई और अपने परिचितों से राय मशवरा माँगने लगी थी.
सभी को उससे सहानुभूति थी किन्तु कोई भी व्यक्ति सरकारी तंत्र तक पहुँच नहीं रखता था.
तभी सान्या की दोस्त सोनिया ने कहा "तुम अपने जतिन भाई साब से क्यों बात नहीं करती हो?
वो किसी ना किसी को ज़रूर जानते होंगे.
लायन्स क्लब के प्रेसिडेंट रह चुके हैं वो., "
सान्या बोली "वो आजकल यहाँ नहीं हैं. उनके बच्चे अपनी दादी के साथ रह रहे हैं. कल ही बच्चों से मिलना हुआ था."
"फ़िर भी उनके लिए मैसेज छोड़ दो."सोनिया बोली
"ठीक है, देखती हूँ. "
तभी दरवाज़े का ताला खुलने की आवाज़ आयी.
रोहन था अंदर आते ही बोला "हम लोग एक बजे की फ्लाइट से तंज़ानिया निकल रहे हैं."
सिर्फ़ मैं और तुम समझी.
"लेकिन सबा....."
"वो गुड़िया के पास रह लेगी."
"लेकिन गुड़िया तो बहुत छोटी है. सबा मेरे बिना नहीं रह पाएगी."
"जो कहता हूँ करो बहस मत करो."
सान्या को लेकर रोहन तंज़ानिया के एक खूबसूरत होटल में रुका था.
वो अपनी बच्ची के लिए बेचैन हो रही थी.
रोहन उस पर आग बबूला हो रहा था "ड्रामा क्वीन किसी तरह भी ख़ुश नहीं रह सकती है कभी. अब क्यों इतना मुहँ सूजा हुआ है."
वो आगे बोला "अब चुपचाप एन्जॉय करो. रोना धोना छोड़ो.
मैं फंस गया हूँ इस औरत के साथ." वो बड़बड़ाता हुआ कमरे से निकल गया.
सान्या ने होटल स्टॉफ से कह कर नैरोबी अपने घर फ़ोन लगाया. फ़ोन गुड़िया ने उठाया और कहा "जतिन भाईसाब आये थे. वो कह रहे थे आप से बात करा दूँ."
"अच्छा !"सान्या को उम्मीद की लौ नज़र आयी थी.
दूसरा फ़ोन सान्या ने जतिन के घर लगाया था.
जतिन ने कहा "तुम लोग कहाँ हो?
सान्या बोली "तंज़ानिया."
"क्या दिमाग़ ख़राब हो गया है? तुम लोगों का तुरन्त वापस आओ अगली फ्लाइट से."
वो नाराज़ होते हुए बोले
"तुम लोगों को इतना भी कॉमन सेन्स नहीं है कि इस हालत में तुम लोगों पर देश छोड़ने का एक और केस लग जाएगा. तुम पढ़े लिखे लोग ऐसी अनपढ़ों जैसी हरकतें कैसे कर सकते हो? मुझे ताज्जुब होता है."
तभी रोहन कमरे में आ गया था. सान्या ने जतिन का फ़ोन उसे पकड़ाया, जतिन से बात करने के बाद रोहन सान्या को लेकर तुरन्त एयरपोर्ट के लिए वापस निकल पड़ा था.
कुछ घंटों में वे नैरोबी पहुँच गए जहाँ सान्या के सारे पेपर्स तैयार थे. उस रात्रि के दस बजे उसने पेपर्स साइन किये और अपना वर्क परमिट प्राप्त कर लिया था.
जतिन के सम्पर्क सूत्र ही काम आये थे. वो उनके एहसान तले दब रही थी.
पिछले दो दिनों के घटना चक्र ने उस की मानसिक स्थिति को ख़राब कर दिया था.
अब चाह कर भी सान्या नार्मल नहीं हो पा रही थी.वो एक जगह घंटों बैठी रहती थी.
उसने कॉलेज जाना बन्द कर दिया था. उसे वहाँ जाने में अजीब सी हिचक हो रही थी.उसके सामने वही पुराने दृश्य उपस्थित हो जाते थे. उधर डरी सहमी गुड़िया वापस इंडिया जाने की ज़िद कर रही थी.
वैसे तो सान्या चाहती थी कुछ दिन वो भी मम्मी पापा के पास चंडीगढ़ रह आए उसका मूड ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसी नौबत नहीं आने दी रोहन ने.
उस दिन जब सान्या घर से बाहर थी रोहन ने
गुस्से में गुड़िया को घर से निकाल दिया था. बेचारी चौदह पंद्रह बरस की बच्ची पड़ोस वाले शर्मा अंकल के यहाँ जाकर बैठी थी.उन लोगों की मदद से उसने अपने मम्मी पापा को इंडिया फ़ोन लगाया, और सारी बातें बता दीं थी. सान्या के आते ही गुड़िया उसे गले लग कर रोने लगी थी.
सान्या जानती थी कि हो सकता है गुड़िया से किसी कमरे की लाइट जली छूट गई हो या कुछ और ऐसा ही हो गया होगा. बस रोहन अपने पर काबू ना रख पाया होगा.
रोहन किस बात पर नाराज़ है ये वो कभी भी नहीं बताता था.
अब कई महीनों की मनहूस लड़ाई चलेगी.
उसे माफ़ी मांगनी होगी. यहाँ तक कि रोहन के पैर छूने होंगे.पर वो आसानी से मानेगा नहीं. बात भी नहीं करेगा अगले चार पांच महीने. सान्या ने हिसाब लगाया पिछले सात बरस के वैवाहिक जीवन में पूरे चार साल तो उन दोनों ने बिना बात किये ही निकाले हैं.
बाकी के दिन डर डर के कि कहीं रोहन नाराज़ ना हो जाए.
"ओह !गुड़िया ये क्या किया बेटा."
"दीदी मैंने जानबूझ कर कुछ भी नहीं किया मैं तो सबा के साथ खेल रही थी पर अचानक जीजाजी आए और मुझे बांह पकड़ कर घर से बाहर कर दिया."
सान्या के माता पिता ने दामाद से फ़ोन पर बात कर उसे समझाने की कोशिश की तो रोहन ने उन्हें भी खूब खरी खोटी बातें सुना दी थीं.
उसने कहा था कि या तो वे लोगअपनी बेटियों को बुला लें वरना वो घर छोड़ कर चला जाएगा. रोहन ने सान्या के घर में घुसते ही चीख चीख कर कहा जितनी जल्दी हो सके वो उसका घर छोड़ दे.
सान्या आज हतप्रभ थी.
जिस बात को डरती थी वो हो गई थी.
किन्तु उसने भी मन ही मन एक कठोर निर्णय ले लिया था अगर ये घर से बाहर कर रहा है तो मैं कभी भी लौट के नहीं आऊंगी. इतने दिनों का वैवाहिक जीवन सिर्फ़ ताने सुनकर और माफ़ी मांग कर ही खींच पायी थी वो.
बस अब और नहीं सहना है.
वो अपने कॉलेज गई और प्रिंसिपल को अपना इस्तीफ़ा सौंपते हुए कहा सर ! मैं इंडिया जा रही हूँ हमेशा के लिए.
"ऐसे निर्णय सोच समझ कर लेते हैं सान्या. फ़िर भी तुम्हारी जैसी टीचर को हम खोना नहीं चाहते हैं."
वो आगे बोले
"एक बार मसूरी जाकर देख लो हम तुम्हारा ट्रांन्सफर मसूरी कर देंगे.
इस्तीफ़ा तो कभी भी दे सकती हो. इतनी जल्दी क्या है?"
उसे समझा बुझा कर वापस कर दिया था.
उसी रात वो गुड़िया और सबा इंडिया की फ्लाइट में बैठ गए थे.
रास्ते भर सान्या के विचार थमने का नाम नहीं ले रहे थे.
वो अपने मम्मी पापा से क्या कहेगी?
अगर उसका और रोहन का तलाक़ हुआ तो बिरादरी में नाक कट जाएगी.
क्या उसे प्रिंसिपल सर का ऑफर मान कर सीधे मसूरी चले जाना चाहिए.
वो इंडिया आने से पहले जतिन को भी बता कर नहीं आयी है.
उनका ठीक से धन्यवाद भी नहीं कर पायी थी.
आख़िर रोहन ने उसे क्यों नकार दिया?
कुछ ना कुछ तो मेरी भी ग़लती रही होगी.
क्या अब सबा बिना पापा के बड़ी होगी?
रोहन सबा को उससे छीन तो नहीं लेगा.
सैकड़ों सवालों की चीटियां उसके बदन में रेंगने लगी थीं.
+++++++++
जब सान्या चंडीगढ़ पहुंची तो मम्मी और पापा को देख कर सारे दुःख भूल गयी.
उसके पापा ने कहा अब कभी भी वापस केन्या जाने की ज़रूरत नहीं है.
"तुमने इतनी तकलीफें क्यों सहीं बेटा.
मैंने तुम्हारा विवाह किया था तुम्हें बेचा नहीं था.
विवाह को चलाना पति पत्नी दोनों की जिम्मेदारी है. माना कि कोई ना कोई कमी भी हर इन्सान में होती है. किन्तु ज़िल्लत की ज़िन्दगी जीने से बेहतर है कि ऐसे रिश्ते से मुक्ति पा ली जाए.
अगर गुड़िया नैरोबी नहीं जाती तो तू हमें कुछ भी नहीं बताती. ये तूने ठीक नहीं किया बेटा तुझे एक बार अपने मम्मी पापा को बताना चाहिए था."
"पापा मैं कोशिश कर रही थी कि सब ठीक कर लूँ.
मैं डरपोक नहीं थी पापा. मैं बहादुरी से परिस्थितियों से लड़ रही थी. लेकिन हार गई.
मैंने डॉ सिन्हा (मनोरोग विशेषज्ञ)को दिखाया भी था. रोहन और मेरी काउंसलिंग की थी उन्होंने.
हमने घंटों बातचीत की है. मेरे अच्छे खासे पैसे काउंसिलिंग में खर्च हुए हैं. उनकी बातों से प्रभावित होकर रोहन ने अपने आप को बदलने की कोशिश भी की थी. पर सिर्फ़ कुछ दिनों तक ही हमारे सम्बन्ध ठीक रहे. फ़िर सब गड़बड़ हो गया. पापा मैं संभाल नहीं पाईअपनी शादी."
"नहीं मेरे बच्चे!तू ने कुछ ग़लत नहीं किया."पापा बोले थे
"उस लड़के की किस्मत ही ख़राब रही होगी जो तुझसे नहीं निभा पाया.
तू फ़िकर ना कर मैं तुझे और सबा को अब कभी भी अपनी नज़रों से दूर नहीं करूँगा."
उन्होंने कहा
"बस वादा कर अब तू उस लड़के की शक्ल भी नहीं देखेगी. आगे पढ़ाई कर या यहीं कोई नौकरी कर. चाहे तो घर बैठ. मुझे वापस अपनी चुलबुली बेटी चाहिए.
मैं उसकी मम्मी से भी बात करता हूँ कल." वो हांफने लगे थे. "डाइवोर्स दिला के रहूँगा. "
"पापा उसकी मम्मी बहुत अच्छी हैं. आप उन्हें कुछ मत कहिएगा."सान्या ने प्रतिवाद किया था.
उसके बाद करीब एक वर्ष तक वो भारत में ही रही थी.
सबा की नन्ही मुन्नी शरारतों में ख़ुद को बहलाती रही थी.
उसके पापा की कोशिश रंग ला रही थी.वो ख़ुश रहने लगी थी.
सान्या इसी बीच मसूरी का कॉलेज भी देख कर आयी थी. पर उसे घर से दूर बच्ची को लेकर रहना उचित नहीं लगा था.
छोटी सी जगह में उसके विवाह की असफलता की बात फैल गई थी और ताज्जुब की बात उसके लिए फ़िर से विवाह प्रस्ताव आने लगे थे.
उसके सौंदर्य और गुणों को देखकर उसके कॉलेज के पुराने साथी ही विवाह करने को उत्सुक थे.
किसी ना किसी बहाने उसके घर लड़कों ने चक्कर लगाने शुरू कर दिए थे.
अभी उसकी उम्र सिर्फ़ सत्ताईस वर्ष की थी. उसके साथ की लड़कियां तो कुंवारी बैठी थीं.
किन्तु सान्या पहले की ठोकर खायी हुई थी. अब तो उसे सबा की भी फ़िक्र थी. वो अपनी बेटी पर किसी की भी कुदृष्टि नहीं पड़ने दे सकती थी.
उसके मम्मी पापा उसे रोहन को भूल कर जीवन में आगे बढ़ने के लिए कहने लगे थे.
माँ ने यहाँ तक कहा "मैं सबा को अपने सीने से लगा कर पाल लूंगी. ज़रूरी नहीं है कि तुझे अगली बार भी धोखा मिले. इस दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है बेटा."
सान्या बोली "मैं नौकरी करूंगी और अपनी जिम्मेदारी ख़ुद उठाऊंगी. बस मेरे चित्त को स्थिर होने दीजिये.
विवाह के नाम से डर जाती हूँ मैं."
+++++++++
नैरोबी में... जतिन और रोहन
सान्या के जाने के बाद रोहन अपने बिज़नेस में पूरी तन्मयता से लग गया था. उसका एक पार्टनर भी था. वे अपनी योजनाओं को शीघ्र ही अंजाम देना चाहते थे.
परदेश आकर छोटी मोटी नौकरी करके उसे अपना जीवन ख़राब नहीं करना था.
जैसे जैसे दिन निकलते जा रहे थे उसे सान्या और सबा याद आने लगे थे.
उसे पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि सान्या ने उसके जीवन में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है.
सबा की उपस्थिति पूरे घर में है.
उसकी भोली भाली फ़ोटो देखकर वो विचलित हो उठा था.
क्या करे?
फ़ोन कर ले, शायद सान्या ही उठा ले. फ़िर याद आया कि उसके पापा से तो करीब करीब लड़ ही बैठा था वो.
दरअसल गुड़िया जब से आयी थी सान्या का सारा ध्यान उसी पर था.
उसे क्यों लगता है कि उसकी पत्नी उसे कुछ नहीं समझती है. अपने आप को बहुत स्मार्ट समझती है.
उस दिन उसको मिलने वाला बड़ा आर्डर आख़िरी मिनट पर कैंसिल हो गया था और उसका गुस्सा गुड़िया पर निकल गया था.
लेकिन सान्या ने कभी पूछा भी कि तुम्हारे बिज़नेस में क्या चल रहा है?
सान्या आम औरतों जैसी नहीं है कि पति की बात चुपचाप मान ले.उसके पास अपने वाजिब तर्क होते हैं. बस इसी बात पर वो खुंदक खा जाता है.
जब रोहन को कुछ समझ नहीं आया तो वो जतिन के घर की ओर चल पड़ा था.
पिछले झगड़े निबटाने में इन्हीं लोगों ने सहायता की थी.
जतिन को जब उसने सारी बातें बताईं तो वो गम्भीर हो गए उन्होंने कहा "तुम मुझसे क्या मदद चाहते हो?"
रोहन ने कहा "आप मेरी बात सान्या से करा दीजिये या उसे समझाइये कि वापस नैरोबी आ जाए अब उसको शिकायत का मौका नहीं दूंगा."
जतिन ने कहा "तुम मुझे उसका फ़ोन नम्बर दो मैं उससे बात करके देखता हूँ.
"पर तुमने उसे घर से कैसे निकाल दिया? तुमको पता नहीं कि घर घरवाली से ही होता है.
मुझे ये बात बिल्कुल भी समझ नहीं आयी है.
रोहन कहीं ऐसा ना हो एक दिन तुम उसे हमेशा के लिए खो दो."
वो बोले
"मेरी मानो इंडिया जाओ अपनी माँ को लेकर उसके घर जाना और सबसे माफ़ी मांगना.
हो सकता है वो लड़की तुम्हें माफ़ कर दे."
रोहन के जाने के बाद जतिन सोच में पड़ गए थे.
अब उनके सामने रोहन की कन्फ्यूज्ड पर्सनालिटी उभर रही थी. उन्हें कभी कभी लगता पागल तो नहीं है ये लड़का.
वो दुःखी थे, रोहन के लिए और सान्या के लिए भी.
उन्होंने सोच लिया था मियां बीवी के झगड़े में नहीं पड़ेंगे.
परिवार चलाने का ढंग सारी दुनिया में एक सा ही है आपसी प्रेम, सामंजस्य, जिसकी मूलभूत बुनियादें हैं.
रोहन शिकायतों और अविश्वास से भरा हुआ है. इस सम्बन्ध का भगवान ही मालिक है.
किन्तु शाम को रोहन फिर घर आ गया था भाईसाब आपकी बात हुई क्या?
मजबूरी में जतिन ने चंडीगढ़ फ़ोन मिलाया और सान्या से बात की थी. सान्या ने कहा था कि वो अब कभी नहीं लौटेगी.
"मैं अपनी मर्जी से नहीं आयी थी.
मुझे घर से निकाला गया है.
क्या आपको रोहन ने बताया है. बस बहुत हुआ. अब बर्दाश्त नहीं होता है.मैं डिप्रेशन में जा रही हूं. "
फ़ोन पर जतिन से बात करके सान्या बहुत अपसेट हो गई थी. उसके पापा ने भी फ़ोन का वार्तालाप सुन लिया था वो बोले "ये जतिन कौन है हमारे घर के बीच में बोलने वाला. अगली बार कॉल करे मुझे बताना मैं उसका दिमाग़ ठीक कर दूंगा.
वो बहुत परेशान हो उठे थे.
रोहन ने सान्या की बेरुख़ी से अंदाज़ लगा लिया था कि अब वो वापस नहीं आएगी.
इसलिये उसने चंडीगढ़ जाकर सान्या से मिलना उचित समझा. वो नैरोबी से अगले दिन ही भारत के लिए चल पड़ा और सीधे
सान्या से मिलने जा पहुंचा, पहली बार उसने अपने कृत्य की माफ़ी मांगी.
सान्या बोली"अपनी ग़लती समझने में आपको एक वर्ष का समय लग गया.इतने दिनो में आपने एक बार बेटी की भी ख़बर नहीं ली. उससे क्या नाराज़गी थी?
उसने दुःखी होकर कहा
"सॉरी रोहन हमारा रिश्ता चलने वाला नहीं है. मैं यहाँ ठीक हूँ. अब वापस नहीं जाऊंगी."
"बस एक आख़िरी मौका दे दो." रोहन गिड़गिड़ाने लगा था.
"मैं तुम्हारे और सबा के बगैर नहीं रह सकता हूँ."
तभी सबा भी आ गई थी.
रोहन ने उससे पूछा "सबा तुमको कहाँ अच्छा लगता है?"
"चंडीगढ़ या नैरोबी?"
नन्हीं बच्ची ने सोचा और कहा "नैरोबी. "
"प्लीज़ सान्या हमने एक साथ अच्छे दिन भी बिताए हैं, उन्हें याद करो और वापस चलो."
रोहन ने बार बार सबा का वास्ता देकर उसे मना लिया था.
जब उसने रोहन के साथ वापस जाने की बात घर में बताई तो उसके
पापा ने कहा "बेटा मैंने दुनिया देखी है. तू इस लड़के की मीठी मीठी बातों में मत आ.ये तुझे बेवकूफ़ बना रहा है. तेरी नौकरी के बिना इसका खर्च नहीं चल रहा होगा. वरना ये कभी वापस नहीं आता."
"नहीं पापा उसका बिज़नेस चल निकला है. इस बार वो झूठ नहीं बोल रहा है."सान्या ने रोहन की तरफ़दारी की थी. रोहन एक हफ़्ते इंडिया रुका, अब वापसी का दिन भी करीब आ गया था. अगले दिन दिल्ली रवाना होना था, और फ़िर नैरोबी.
करीब शाम को छः बजे रोहन ने सान्या से कहा "सान्या जल्दीबाजी में मैं कैश लाना भूल गया हूँ. तुम अपनी और सबा की टिकट ले लोगी ना. "
सान्या का दिमाग़ घूम गया..... क्या वो फ़िर से पुरानी ग़लती दोहरा रही है?
ये आदमी पैसों के मामले में सदा से ही खड़ूस है.
वो पिछले एक साल से घर बैठी थी. जमापूँजी खर्च हो गई थी.
पापा से पैसे मांगने का सवाल ही नहीं उत्पन्न होता, वो तो पहले ही इसके साथ जाने को मना कर रहे हैं. अगर उन्हें पता चल गया तो कभी नहीं जाने देंगे.
उसने भारी मन से अपनी सोने की चूड़ियां उतारीं और चुपचाप सुनार को बेच आयी इस प्रकार अपनी और सबा की टिकटें खरीदी थीं .
नैरोबी जाने का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया था.
जब नैरोबी के लिए विमान ने उड़ान भरी तो रोहन के पास बिज़नेस क्लास की टिकट थी. वो सबा और सान्या से दूर बैठा था. बस एक बार उनकी सीट के पास आया आया और बोला "तुम लोगों को यहाँ घुटन नहीं हो रही है.
अरे! !सान्या इकॉनमी क्लास की टिकट खरीदी तुमने. हा हा हा."
रोहन की बेतुकी बातें सुनकर सान्या को उस पर जरा भी गुस्सा नहीं आया उसे स्वयं पर क्रोध आ रहा था. सबसे बड़ी मूर्ख वो है जो बार बार एक ही ग़लती दोहरा रही है. सब जानते बूझते इसके साथ रहने चल पड़ती है.
पापा ठीक कह रहे थे.
++++++++
नैरोबी में जाते ही सान्या ने अपना कॉलेज ज्वाइन कर लिया था.
उसने सोच लिया था कि अब रोहन से कोई उम्मीद नहीं रखेगी.
वो अपने रिश्ते में प्रेम ढूंढ़ती है इसीलिए तकलीफ़ पाती है. बिना प्रेम के समझदारी के साथ वो सबा की ख़ातिर ये सम्बन्ध निभाएगी.
जब उसे रोहन से कोई उम्मीद ही नहीं होगी तो झगड़े भी क्यों होंगे?
इस तरह के तर्क वितर्क कर के उसने ख़ुद को मनाया था.
कॉलेज के बाद वो ट्यूशंस भी लेने लगी थी.
जतिन के दोनों बच्चे भी उसके पास पढ़ने आने लगे थे.
वो उनको अक्सर खाना खिला कर भेजती थी.
कभी कभी बच्चों की दादी से भी मिलने चली जाती थी. वो उस की अच्छी दोस्त बन गई थीं.वे अपने मन की बातें बताने लगी थीं.
वो आजकल इंडिया जाकर अपने बेटे के लिए वधू ढूंढ़ना चाहती थीं.
अभी कितना वक्त गुज़रा है जोया को गए हुए?
सान्या का मन जोया की याद में भारी हो गया .
रोहन में थोड़ा सुधार तो दिख रहा था. सबा को उसके पापा मिल गए,सान्या इसी बात से तसल्ली कर लेती.
"यहाँ अच्छे पैसे हैं. इंडिया में एक टीचर को क्या मिलेगा?"
"कुछ नहीं."
सान्या अपने आप को नैरोबी आकर इसी तरह समझाती रहती थी.
करीब डेढ़ वर्ष गुज़र गया था. पुराने घाव भर चले थे.
++++
उसआज भी याद है शाम का वक्त था वो रोहन का इंतज़ार कर रही थी, फ़िर रात हो चली रोहन बड़ी देर तक घर नहीं आया. वो किसी आशंका से डरने लगी.
परदेश में ऐसे क्षणों में वो सबसे ज़्यादा अकेला महसूस करती थी.
रात्रि के दस बजे रोहन आया था. थका हारा सा.
वो घबरा गई थी कि क्या हुआ?
पूछने की हिम्मत नहीं थी कि कहीं गुस्स्सा ना हो जाए.
वो चुपचाप उसका खाना लगाने लगी.
"नहीं रहने दो खाना मैं खाकर आया हूँ."
उसने बताया कि उसे बिज़नेस में बहुत घाटा हो गया है. वो केन्या छोड़ने की सोच रहा है.
अब वो इंग्लैंड जाकर बस जाना चाहता है. उसको वीसा मिल गया है.
सान्या ने पूछा "ये सब एक दिन में तो नहीं हुआ होगा.
तुमने मुझे कुछ भी बताना उचित नहीं समझा. इतना बड़ा निर्णय अकेले ले लिया तुमने."
"मैं ऐसा ही हूँ. इंग्लैंड मैं अकेला जाऊंगा. अगर तुम्हें ले जाना होता तो अवश्य बताता."वो बोला "और अगर तुमको मैं पसन्द नहीं हूँ तो बेशक़ मुझे छोड़कर जा सकती हो. मुझे तुम्हारी कोई ज़रुरत नहीं है.
मैं सबा को अकेले बड़ा कर लूँगा.मुझे तुम में कोई दिलचस्पी नहीं है."
वो शब्दों के जहरीले तीर छोड़ता हुआ कमरे से बाहर निकल गया जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो.
कितना रोए सान्या अब आँसू भी नहीं आते हैं.
रोहन इंग्लैंड चला गया और वह ठगी सी देखती रह गई.
आख़िर भाग्य कितनी परीक्षा लेगा?
एक दिन में ही उसका संसार उजड़ गया था.
परदेश में अकेले रहना भारी पड़ने लगा था. उसने अपना सामान समेटा और फ़िर इंडिया वापस आ गई थी.
उसने अपनेआप से वादा किया
इस बार वो रोएगी नहीं. कठोर क़दम उठाएगी.
सबसे पहले उसने रोहन पर तलाक़ का मुक़दमा दर्ज कियाऔर इस झूठे बन्धन को शीघ्र ही तोड़ फेंका था.
मुक़दमे में उसकी सास ने उसके पक्ष में गवाही दी थी. इसलिये सबा की कस्टडी उसे आसानी से मिल गई थी.
समय कब रुकता है.
सबा स्कूल जाने लगी थी. सान्या के
माता पिता उस पर फ़िर से विवाह का जोर बना रहे थे.
बहुत सोचने विचारने के बाद सान्या ने कहा कि वो अगर विवाह करेगी तो जतिन से करेगी.
घर में ये बात सुनते ही तूफ़ान खड़ा हो गया था क्योंकि जतिन उससे पंद्रह वर्ष बड़े थे. साथ ही दो बच्चों के पिता भी थे.
सान्या का कहना था कि "मैं जतिन को जानती हूँ उनकी समझदारी से परिचित हूँ. मैं उस व्यक्ति से विवाह करुँगी जो औरतों की इज़्ज़त करता हो.
अगर अपने हम उम्र व्यक्ति से विवाह किया तो वो मेरी बच्ची को अपनाएगा मुझे शक है."
वो अपने से अधिक सबा के बारे में सोच रही थी. सबा जतिन और उनके बच्चों को भी जानती है.बरसों का साथ में उठना बैठना खेलना कूदना है. हाँलाकि किशोर बच्चों की दूसरी माँ बनाना भी अपने आप में नई परीक्षा होगी.
किन्तु आज नहीं तो कल ये सब बच्चे आपस में सामंजस्य बिठा लेंगे. ऐसा उसे विश्वास था.
सान्या के पापा के अपने तर्क थे.वे चाहते थे उसका जीवन साथी उसका हमउम्र हो. वो उसे किसी लड़के से मिलाना भी चाहते थे. सान्या ने जब यह सुना तो उसने भूख हड़ताल कर दी, पूरे सात दिन तक उसने खाना नहीं खाया था.
उसकी ज़िद के आगे पापा की एक नहीं चली.
उन्होंने कहा "ला फ़ोन नम्बर दे जतिन की माँ से बात करता हूँ."
बिना शोर शराबा सादा ढंग से उन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली थी.
उसके बाद वे लोग कनाडा शिफ़्ट हो गए. पुरानी यादों को दफ़न कर दिया था उसने.
जीवन का नवीन अध्ध्याय आरम्भ हो चुका था.
उसने जतिन की मदद से स्त्रियों के लिए कनाडा में एक संस्था शुरू की थी. आज उसकी कई शाखाएं हैं. सान्या और जतिन के नाम से ही आज शहर में डोमेस्टिक वॉयलेंस की घटनाएं थम जाती हैं. उन दोनों ने कई घरों को टूटने से बचाया है.
कई बार लेडीज़ बताती हैं कि उनके पति सान्या माथुर के नाम से डर जाते हैं. वो बस मुस्कुरा कर रह जाती है.
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रोहन से जीवन के किसी मोड़ पर कभी भी मिलना नहीं हुआ.
उड़ती उड़ती खबरें सुनती है. कई देशों में बिज़नेस के सिलसिले में भटकता रहता है. कहीं भी टिक कर काम नहीं करता है.
वो अतीत से वर्तमान में आ गई रोहन का लिफ़ाफ़ा अब भी उसके हाथ में था.
जतिन के घर आते ही सान्या ने उन्हें रोहन द्वारा भेजे पेपर्स दिखाए तो वो बोले "मैं सबा से बात करता हूँ. मैं उसको मना लूँगा कि वो अपने पिता से एक बार अवश्य मिले."
सान्या ने जतिन के कंधे पर सिर रख दिया. वो बोले "घबराओ नहीं कई बार जीवन में अजीब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. क्या हमने कभी सोचा था कि रोहन से ऐसे मिलना होगा?"
जतिन ने सबा को बहुत मनाया है कि वो रोहन से मिल ले. पर उसका कहना था इतने वर्षों में एक बार भी उन्होंने उसकी ख़बर नहीं ली है.
"पापा आपको पता नहीं है मेरा दर्द." सबा जतिन से बोली थी.
"जब पेरेंट्स अलग होते हैं तो बच्चों पर क्या गुजरती है.बयां करना मुश्किल है. मैंने जब से होश सम्भाला मम्मा को रोते ही देखा था.
मैं उस आदमी की इज़्ज़त नहीं करती हूँ."
"प्लीज़ बेटा ! मेरे कहने से एक बार मिल लो.हो सकता है वो तुम्हें देखना चाहता हो ये पेपर्स, तुम्हारे सिग्नेचर सिर्फ़ तुमसे मिलने का एक बहाना हो."
"आप कहते हैं तो ठीक है. पर आप भी मेरे साथ रहेंगे." सबा ने कहा तो जतिन ने हामी भरी "हाँ बेटा !"
जतिन ने रोहन को शहर के एक रेस्तरां में बुलाया और वे भी नियत समय पर सान्या और सबा को लेकर निकल पड़े. जतिन ने घर में पड़ा एक गिफ्ट पैक रख लिया था.
आज तीनों की मनःस्थिति अलग थी.
"सान्या वो पेपर्स रख लिए."
जतिन ने कार में व्याप्त चुप्पी तोड़ते हुए बस यूँ ही हवा में प्रश्न उछाला था.
सान्या ने बस "हाँ "में सिर हिला दिया था.
"पापा मैं कह रही हूँ हम बेकार जा रहे हैं."सबा बोली.
"तुम मेरा कहना मानती हो या नहीं."जतिन ने कहा.
"जी"सबा बोली.
"तो फ़िर बहस क्यों?" वो बोले.
"एक कप कॉफी पी कर लौट आएंगे."
सान्या और रोहन आपस में बात करने में हिचक रहे थे.
जतिन ने ही बातचीत शुरू की थी.
फ़िर सबा और रोहन को बात करने के लिए छोड़ दिया.
सबा को रोहन ये समझाने में असफल रहा कि उसके नाम ली गई पॉलिसी पूरी होने पर वो साइन करके वो ये रकम ले ले. सबा के प्रश्न "मैं क्यों साइन करूँ और मुझे इस पैसे की ज़रुरत क्या है?
मुझे इतने सालों से मम्मी पापा देख रहे हैं.
और अगर आप को ये पैसे चाहिए तो मुझे साइन करने की ज़रुरत क्या है?" इन प्रश्नों के उत्तर रोहन के पास ना थे.
"ये सबा शर्मा के नाम की पॉलिसी है. अब मैं सबा माथुर हूँ."
रुखाई से सबा ने सिग्नेचर करने से इनकार कर दिया था.
बड़ी बेनतीजा और रूखी बैठक थी एक पिता और परित्यक्त पुत्री की.
लौटते हुए सबा के मन में उथल पुथल थी.
अगर पापा मेरे लिए एक चॉकलेट भी ले आते तो शायद मैं वही नन्ही सबा बन जाती, मैं सब भूल जाती. उन्होंने मुझसे मेरी स्टडीज़ के बारे में कुछ नहीं पूछा.उनको कहना चाहिए था कि वो मुझे मिस करते हैं. एक बार गले भी नहीं लगाया मुझे.वो मुझसे सिर्फ़ पेपर साइन कराने आये थे. या सचमुच मिलने आये थे.
अठारह वर्षीय सबा सोच रही थी और आँसू बहा रही थी.
जतिन और सान्या ने उसे अनदेखा किया.
बच्ची है पहली बार चोट लगी है.समय के साथ इस दुःख से उबर जाएगी.
अगली सुबह जब जतिन ने मोबाइल उठाया वो मुस्कुरा पड़े सबा का गुडमॉर्निंग मैसेज था जिसके नीचे लिखा था
"पापा आप ही मेरा स्वाभिमान हो."
समाप्त
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