Sunday, May 31, 2020

(लघु कथा)
**झूठा**
दुबला पतला, ढाई हड्डी का, हमेशा चुप रहने वाला लड़का बलवीर सरिता जी को इस कदर बेवकूफ़ बना जाएगा उन्होंने सोचा न था।
जले पर नमक छिड़का पतिदेव ने ......मुस्कुराते हुए कहा तुम तो कहती थी बेवकूफ़ है वो।
उनकी मंद मंद मुस्कान पूछ रही थी बेवकूफ़ कौन?
बस तभी से आग लग गई मिल जाए एक बार ऐसा सबक सिखाऊँ ज़िन्दगी भर याद रखेगा।
करीब दस वर्षों से उनके यहां काम कर रहा है चुपचाप घर के भीतर बाहर हर काम के लिए बस उसी का नाम ज़ुबा पर रहता ,बिना बोले सब कार्य यंत्रवत करता रहता।
भावहीन चेहरा अपने कार्य में मगन।
बस कभी कभी मुस्कुराता, सरिता जी को पता था उसकी मुस्कुराहट का अर्थ.......
जब धीमे से सिर झुका कर मुस्कुराताऔर उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो जाता उस दिन 100 रुपए उधार माँगता,
यदि शर्माने के साथ कमीज की बटन से खेलता हुआ थोड़ा वक्राकार घूमता उस दिन 500 रुपए उधार ले जाता ये पैसे उसने कभी वापस न किये अलबत्ता देने का वादा बड़े जोश खरोश से किया जाता था।
एक दिन काफ़ी उदास दिखाई पड़ा वो ......पूछने पर पता चला घरवालों ने(न्यारा) अलग कर दिया उन दोनों को,पत्नी बहुत तेज है,लेकिन एक बर्तन भी नहीं दिया अब क्या खाएं क्या बनाएँ?
ओह!गरीबी कितनी बुरी चीज़ है आज जाना।
घर के सारे फालतू बर्तन इकट्ठा कर एक बोरे में भर उसकी साइकिल पर लदवा कर चैन की सांस ली, अब से अनजाने ही उसकी मां बन गईं वो।
फिर उसकी बेटी का जन्म ,उसका मुंडन ,तीज त्योहार ,बीमारी हारी,जब तब पति पत्नी के झगड़े निपटाना कहीं न कहीं उस लड़के के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ गई हैं वो।
पिछले वर्ष जब पुत्र जन्म की खबर लाया तो सरिताजी ने समझाया बस अब और बच्चे नहीं एक तो छोटी सी पगार है और परिवार भी पूरा हुआ।
लड़के का चेहरा वैसा ही भाव हीन रहा।उनके उपदेश भा नहीं रहे थे या है ही ऐसा बौड़म वो समझ न पायीं।
मगर लड़के पर ममता और भी बढ़ गई थी अपने कुर्तों के कपड़े से बचा कपड़ा दर्जी से कह कर उसकी बिटिया की फ्राक और बेटे के झबले सिलवाने लगीं।
फिर अचानक गायब हो गया दो महीने पहले,
दस दिनों तक न दिखा.....
एक दिन सामने आ खड़ा हो गया उलझे बालों और सूखे से चेहरे में बड़ा दयनीय लग रहा था।कुछ न बोला बस काम पर लग गया।
शाम की चाय का कप पकड़ते हुए उन्होंने पूछायूँ ही बात करने के लिए... और कैसा है बेटा?
चलने लगा या नहीं।?
वो बोला ....बेटा?.......खतम नाय होय गयो(उसकी मृत्यु हो गई)
अरे!!कब ?
"बाई दिना जब भाज के घर गए थे सांझ को" (जब घर को दौड़ा था शाम को उस दिन )
हे राम!!
कैसी तकदीर लिखी है इसकी, उन्होंने काफी शोक मनाया।
लेकिन कुछ दिनों बाद जब करीब एक महीने तक बलबीर काम पर नआया तो उन्हें उसकी बहुत चिन्ता सताई माली ड्राइवर सबसे ढूंढ करवाई।
बड़ी मुश्किल से एक लड़का मिला उसके गाँव का।
उससे पूछा बलवीर को देखा कहीं ,क्या हाल हैं उससे कहनाअपनी तनख्वाह ही ले जाए अगर काम पे नहीं आ रहा है ,बीबी को क्या खिलाएगा ?पहले उसके ज़ेवर गिरवी रख देगा और फिर छुड़ाएगा।घर का क्लेश अलग झेलता है।
उस लड़के ने हंस कर कहा" मेमसाब बलवीर की तो शादी ही नहीं हुई"।
वो बोलीं ....तब तुम उसे नहीं जानते।
लड़का बोला खूब जानता हूँ वो कंजी कंजी आंखों वाला आपके घर के बाहर कई बार देखा है।
मेमसाब ऐसो ही है वो सिर्री.…... कह कर जोर से हंस पड़ा।
हारी सी सोफे पर धम्म से बैठ गईं।
अगले दिन आ गया बलवीर
आव देखा न ताव खूब खबर ली उसकी"तुमने झूठ क्यों बोला मुझसे?
बताओ!!
पत्नी, बच्चे, साझा,न्यारा,मायका,पायल,लड़ाई-झगड़ा, बीमारी, मौत सब झूठ, क्यों बोले इतने झूठ?
सरिता जी ने सांस भी न ली,आवेश में तमतमा कर सब कह दिया।शब्द कटु हो चले थे........
बोलो कुछ तो बोलो!!
पर जैसे ही बलवीर की ओर निगाहें उठीं वो धक से रह गईं।
आज उस भावहीन रहने वाले चेहरे पर अपार पीड़ा थी,उसकी भीगी आंखे अपने सपनों के महल को ध्वस्त होने का दुःख बयान कर रही थीं।
झूठा ही सही!!......
....... आज पूरा परिवार खत्म कर दिया आपने मेरा,...... कुछ ऐसी शिकायत से बलवीर ने सरिता जी की ओर देखा।
सरिता जी की आंखें भी भर आईं।
समाप्त।।प्रीति मिश्रा 15/ 2 /2019

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