Sunday, May 31, 2020

रिश्ता अनजाना(गद्य रचना)
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सातवीं किश्त
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(हाँ तो कहाँ थे हम लोग....... सन्दीप और एमिली काफ़ी गहरे दोस्त हैं साथ ही समाज के भले के लिए पूर्ण जागरूक भी.)
एमिली और संदीप की बात चल रही थी.
एयर शो से लौटते समय रिलैक्स होने के लिए दोनों एक पब में बैठ गए. दोनों ही जापानी ब्रांड्स के शौक़ीन, एमिली को 'रोकु' जिन पसंद तो संदीप सिंगल मॉल्ट 'हिबिकी'का शौक़ीन. अपने अपने पसंद के ड्रिंक्स का ऑर्डर देकर बतियाने लगे थे दोनों. सिप करते हुए एमिली ने बताया, "कल मैं जर्सी सिटी के लिए निकल रही हूं .अगले हफ्ते कई सारे अपॉइंटमेंट्स और सर्जरीज़ लाइंड अप है."
संदीप अपनी फ़ेवरिट विस्की काफ़ी दिनों बाद पी रहा था. एमिली की कम्पनी उसे हल्के से सूरूर में ले आई थी. संदीप बोला, "चलोगी तुम भी अफ्रीका ?"
"न बाबा सुना है पुलिस को साथ लेकर घूमना पड़ता है, बंद गाड़ी में. माई डिअर फ्रेंड! अकेली हूँ मां बाप की,कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती."
"बकवास नहीं, ज़रा यह देखो," सन्दीप ने टैब खोल लिया था, किसी गांव की तस्वीर थी. लोगों के शरीर कंकाल मात्र दिख थे. छोटे बच्चों के शरीर पर बस सिर ही नज़र आ रहे थे.
"इनके गांव में न पीने को पानी है ना ही इनके पास खाना है, न ही अन्य कोई सुविधाएं. हमारी कम्पनी इस गांव को गोद लेना चाहती है. क्या तुम यह काम करना चाहोगी ? तुम्हारे जाने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा इस गांव को एक डॉक्टर भी मिल जाएगा,"
एमिली हंस पड़ी, "तो आप हैं इस गांव के गॉडफादर."
संदीप ने मुस्कुराते हुए कहा "नहीं तुम ही होवोगी इसकी गॉड मदर."
"देखना ऐसा ही होता रहा तो एक दिन महात्मा गाँधी जैसे मशहूर हो जाओगे." चुटकी ले रही थी एमिली.
सन्दीप बोला, "मैं गाँधी जैसा नहीं हूं .मैं गांधी हूँ."
एमिली उसके घने बालों की तरफ़ इशारा करके अपने मोती से दाँत दिखा रही थी.
"वाह जी वाह ! क्या बात है ?"एमिली को मज़ा आने लगा था.
वह बोली "एक ना एक दिन तुम मेरा करियर खत्म करके ही रहोगे. तुमको ऐसे ऐसे आइडियाज़ आते कहाँ से हैं ?"
संदीप ने खुशी जताते हुए कहा, "तो इसका मतलब क्या मैं यह समझूं कि तुम मेरे साथ अफ़्रीका चल रही हो."
" जी हां, मगर यहां के अपने काम खत्म करने के बाद. बहुत दिनों से इंडिया भी नहीं गई हूँ, दादीसा बार बार बुला रही है.सुना है मेरे लिए कोई राजकुमार खोजा गया है."
"बेचारा बदकिस्मत !" हंसते हुए बोला संदीप, "तुम्हें झेलना आसान नहीं, राजकुमारी."
एमिली मुस्कुराई "अरे ! उसे मारो गोली."
उसने अपना मोबाइल खोला और संदीप को एक फ़ोटो दिखाई. "ये देखो, रेडियो जॉकी है. सनम नाम है, इंडियन है. यहीं न्यू जर्सी में स्ट्रगल कर रहा है. सच मे मैं इसे पसंद करने लगी हूँ अभी हम टिंडर पर हैं."
संदीप अपना सिर पकड़ कर बैठ गया था "एमिली किसी दिन बहुत बुरा फंसोगी. प्लीज़ ऐसे ऐरे गैरे लड़के तुम्हें मिल कहां जाते हैं ? और अगर तुम्हें कलाकारों को एडमायर करने का इतना ही शौक है तो खुद क्यों नहीं सीख लेती गाना, बजाना या पेंटिंग.
वैसे छोटे से गले और कान की सर्जरी करना भी तो अपने आप में एक आर्ट है. इन फालतू लड़कों के चौखटे प्लीज मुझे मत दिखाया करो. लगता है, ऑन्टी अंकल की दी हुई आज़ादी ठीक नहीं. मां बाप हैं ना तुम्हारे, इसलिये कोई वैल्यू नहीं....उनसे पूछो ज़रा जिनका कोई नहीं." सन्दीप अब खुंद सा हो गया था.
"अपनी लाइफ के साथ खेल रही हो एमिली तुम्हारी इन हरकतों से डर जाता हूं मैं."
टाँग खिंचाई जारी रखते हुए एमली बोली "इस बार इकत्तीस की हो जाऊंगी. पैसा बहुत है मेरे पास, बस एक अदद प्यार की तलाश में घूम रही हूँ." बड़ बड़ा रही थी शैतानी से एमिली, "कुछ भी कर के इस साल पक्का शादी कर लेनी है."
"घर चलें, तुमको अच्छी ख़ासी चढ़ गई है." संदीप का मूड खराब हो गया था.
"तो कब चलना है अफ्रीका ? टिकट भेजोगे...." एमिली जोर जोर से हँसने लगी.
"अरे यार मजाक कर रही हूं, कोई भी नहीं है मेरी लाइफ में, अकेली हूं. "अकेली हूं.....मैं इस दुनिया में कोई साथी है तो मेरा साया" गाने के बोल बदल कर एमिली खूब खुल के गा रही थी नशे में. " रुक भी जाओ प्लीज़ ! रुको ना मेरे लिए माई डियर फ्रेंड !"बड़बड़ाती हुई संदीप के पीछे पीछे हो ली थी वह. संदीप के बेचैन दिल को चैन आने लगा था.
अनु और अनिल
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रात्रि के 11 बजे थे. मंत्री जी की आँखों में नींद नहीं थी. उन्होने अनिल से कहा था कि आप जाइये मैं थोड़ी देर में होटल चला जाऊँगा.
"नहीं सर! मै आपको छोड़ कर नहीं जा सकता." अनिल अनुनय से बोल रहा था.
मंत्री जी मुस्कुराए. उन्होंने अपने बैग से करीब बीस पच्चीस लिफ़ाफ़े निकाले और पाँच सौ के नोटों की एक गड्डी भी अनिल को थमा दी. बोल रहे थे मंत्री जी, "फ़टाफ़ट नोट डालिये बरखुरदार" और इनविटेशन कार्ड्स की लिस्ट निकाली और कहने लगे, "मैं तब तक नाम लिखता हूँ."
अनिल को हैरत से देखते हुए हंस पड़े, "आप ठहरे सलेक्टेड और हम हैं एलेक्टेड. ये सब करना पड़ता है.अपनी कुर्सी बचाने को."
10 मिनट में दोनों कार में बैठ चुके थे.
अनु अभी भी जाग रही थी,कम्प्यूटर पर झुकी हुई कुछ काम कर रही थी .अनिल से बोली, "बारह घंटे का यह टाइम का फ़र्क बहुत दुखी कर देता है."
"अनिल को सफ़ाई क्यों दे रही हूं ?" उसने अपने आप से पूछा.
अनिल ने पूछा "आर्यन कैसा है ? आज तो एक बार भी बात नहीं हो पाई."
"ठीक है आज आपको मिस कर रहा था."
"ओह!काश उसके बर्थ डे पर हम पहुंच पाते."
लाइट बंद करो अनु ! बहुत देर हो गई है.
अनु बोली, "बस एक दो पेपर्स के प्रिन्ट आउट्स लेने हैं कल बैंक जाना है. अभी स्कैन करके भेज दूँ संदीप को,नहीं तो पूरा काम एक दिन टल जाएगा."
अनिल ने कुछ न कहा और बोले, "चाहो तो लैम्प जला लो लाइट्स ज़रा हल्की कर दो थकान से आंखें खुल नहीं पा रही हैं."
अनु ने सोचा, यह भी कोई जीना है ? बस गधे की तरह काम में लगे रहो और आकर सो जाओ. दूसरी तरफ संदीप है, क्या नहीं करता ? एनजीओ चलाता है, अपनी आईटी कंपनी है. फिर भी जब देखो,उसके पास अपने लिए टाइम है. कभी लिखता है....एयर शो देखने गया था. उसके पहले हफ्ते नियाग्रा फॉल्स की पिक्चर्स भेज रहा था. अभी अफ्रीका जाने वाला है....और एक हम लोग, जब से विवाह हुआ है बस काम ही काम. अनिल भी क्या करें, अपने जॉब का तक़ाज़ा है. अगर कोई बेकार सा मंत्री मिल जाए तो बीच में ही ट्रांसफर पक्का है. अनजाने ही आजकल तुलना करने लगती है अपनी और संदीप की. हम कितना ही रैशनलायज़ करे परिस्थितियों और प्रारब्ध के नाम से और कितना भी झटकना चाहे विचारों को किंतु बहुत दफ़ा वश नहीं चलता. उसने सोचा कल से रेगुलर मेडिटेशन करूंगी, सुना हैं ध्यान लगाने से व्यर्थ के विचार परेशान नहीं करते.
अनिल ने सोचा अच्छा हुआ,अनु किसी काम में लग गई वरना अकेले परेशान ही जाती. अच्छा ख़ास एक्सपोजर भी मिलेगा, बस कल एक कमरा खुलवा देता हूँ यहीं जहां अपना काम कर सके ये लोग.
मंत्री जी से कह कर शानदार इनोगरेशन कराता हूँ. एक पंथ दो काज, अनु का भला और चुनाव से पहले एक बड़ा प्लेटफॉर्म मन्त्री जी को भी मिल जाएगा. फ़िर ये बड़े आदमी दिल के भी बड़े , अगर गांव वालों को कुछ देना चाहें तो दे भी दें. अनिल को सोचते सोचते नींद आ गई. उन्होंने बिस्तर पर अनु को ढूंढा और कहा, "सो भी जाओ. ऐसा लग रहा है जैसे कल कोई परीक्षा है तुम्हारी,यार छोड़ो भी, बाकी काम कल दिन में कर लेना ना."
अगले दिन महापात्रा जी आये और गेस्टहाउस के पीछे वाली बिल्डिंग की चाभी अनु को देकर बोले," ये साहब ने आपको देने को कहा है. अनु खुशी से फूली न समाई, अपनेआप में पूरा फ्लैट था, जिसको अनिल ने ऑफिस में कन्वर्ट कर दिया था. मेज पर एप्पल का कंप्यूटर था. उसके नाम की तख्ती भी लगी थी, साथ ही में उसके नाम के विज़िटिंग कार्ड्स भी प्लास्टिक बॉक्स में रखे हुए थे. उसने कभी नहीं सोचा था कि अनिल इतना अच्छा रिस्पॉन्स देंगे वो भी बिना कहे.....वो खुशी से रो पड़ी.
महापात्रा जी ने कहा कि आज सुष्मिता दास मैम भी आयेंगी, उन्होंने आपके एनजीओ की डायरेक्टर बनना स्वीकार कर लिया है. यह ख़बर उसे सुरक्षा का एहसास दे रही थी.
आज खुशी से उसके पांव ज़मीन पर न थे. भावातिरेक में उसने पहली दफ़ा संदीप के नम्बर पर वीडियो कॉल भी ट्राई कर ली. बहुत इक्सायटेड थी अनु,अपना ऑफिस संदीप को दिखाना चाहती थी. उधर से कोई जवाब नहीं आया. सोचने लगी थी क्यों नहीं रेस्पांड किया संदीप ने. अभी तो कोई १० बजे होंगे रात के....सोया तो नहीं होंगे संदीप. अनायास ही एमिली के बारे में सोचने लगी थी अनु. पूछ रही थी ख़ुद से, क्या होने लगा है उसको.
वह अपने पापा को फ़ोन करने की सोच रही थी कि महापात्रा जी बोले, " मैम पहले पूरी बिल्डिंग का जायज़ा तो ले लीजिए,किसी ज़माने में ये सेठ जी याने, फ़ैक्टरी के पूर्व मालिक डालमिया साहब का बंगला था."........शेष फिर प्रीति मिश्रा

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