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एक कहानीअनकही
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मेवाड़ के छोटे से ठिकाने बिजौलिया के राव ठाकुर रतन सिंह कुछ दिन से अत्यंत उद्वेलित हैं. उनका संयमी मन अब किसी कार्य में नहीं लगता है. जब से उनकी पुत्री तेजल का विवाह नेपाल के शक्तिपुर के राणा के यहां तय हुआ है, उनकी रातों की नींद उड़ गई है.
अगर उनके बस में होता तो इस संबंध के लिए मना कर देते. किंतु उनके ऊपर मेवाड़ के राणा जी का दबाव था और राणा जी से बैर लेना उनके बस की बात नहीं थी.वे उनके मौसेरे भाई भी थे. अगर मन में संतोष था तो बस यह कि कम से कम उनकी बेटी हिंदू राजा के घर भी जा रही है.
वरना आजकल तो सत्ता लोलुपता इतनी बढ़ गई है कि कितने राजपूतों ने अपनी पुत्रियों के रिश्ते मुगलों के साथ कर लिए हैं.
उस दिन रतन सिंह की पत्नी देवल ने पूछ लिया "आजकल आपको क्या हो गया है और यह आप पुत्री को लेकर कहां निकल जाते हैं."
"विवाह के समय कोई पिता अपनी पुत्री को तलवारबाजी घुड़सवारी की शिक्षा देता है क्या?"
वो आगे बोलीं "विवाह में अभी 6 महीने बचे हैं.आप की अधीरता मुझसे देखी नहीं जाती है."
राव ने ठंडी सांस ली और बोले "पुत्री को घर से बहुत दूर भेज रहा हूं.इसलिए उसे किसी भी विषम परिस्थिति के लिए तैयार कर रहा हूं."
घर की बड़ी बूढ़िया चाहती थीं कि यदि तेजल घर में रहे तो वह उसे उबटन लगाएं, संगीत सिखाएं कुछ घर गृहस्थी की बातें भी सिखा दे.
राव की शिक्षा खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी. पिता और पुत्री एक दूसरे के करीब आ चुके थे. दिन भर साथ रहती किशोरी तेजल से वे धर्म, राजनीति, समाज की बातें छेड़ देते थे.
उसने पिता से कहा "दात्ता ! क्या आप कभी मीरा बाई से मिले हैं.
ये प्रश्न क्यों पूछ रही हो?
उन्होंने पुत्री से प्रश्न किया "गढ़ में स्त्रियां हमेशा उनके बारे में बातें करती रहती हैं. कहती है कि वह अपनी मर्जी की मालिक है और उन पर कृष्ण जी की कृपा है."
"हां बेटा! कृष्ण जी की तो कृपा है ही किंतु मीराबाई पर सरस्वती मां की भी कृपा है. "
तेजल ने पूछा "क्या वे कभी हमारे घर आ सकती हैं. "
अब राव हँस पड़े थे "सीधे-सीधे कहो ना?
"तुम क्या जानना चाहती हो? "
" हां आप सुनाइए नाआपके मुंह से सुनना चाहती हूं. "
राव बोले" थोड़ी पुरानी बात है तब मैं वृंदावन में मीराबाई तुलसीदास और सूरदास इन तीनों से ही मिला था."
" किसी से कहना नहीं अपने कुछ साथियों के साथ मीराबाई को वृन्दावन पहुंचाने का कार्य हम लोगों ने ही किया था. "राव मुस्कुराए "अब घर चले. "
तेजल ने कहा "दात्ता ! आप लोग मुझे विवाह के बाद भूल तो ना जाएंगे.? "
"नहीं कभी नहीं याद रखना विवाह पर तुम्हारी विदाई हो रही है. हम में से कोई भी तुमको अलविदा नहीं कह रहा है." यह घर हमेशा तुम्हारे लिए खुला है क्योंकि लड़कियों को पितृ गृह से पति के घर भेजने की रीति है इसलिए तुम्हें भी जाना पड़ेगा.
" आपको क्या लगता है राज महल में मुझे अलग ढंग से रहना पड़ेगा. "
जब पुत्री ने पूछा तो पिता बोले "मनुष्य तो सभी एक से ही हैं, किंतु अक्सर सत्ता और धन की अधिकता से कुछ लोगों का दिमाग खराब हो जाता है. ऐसी परिस्थिति आने पर तुम्हें यह निर्णय स्वयं लेना पड़ेगा कि तुम्हारे लिए क्या उचित है."
" जी मैं समझ गई " तेजल ने फ़िर सवाल किया " आपको क्या लगता है स्त्री और पुरुष में कोई भेद है मेरा मतलब है कि वे शासन क्यों नहीं करती हैं.
ठाकुर रतन सिंह ने कहा "अभी नहीं करती हैं शीघ्र ही करेंगी, वो दिन दूर नहीं है जब वे अपने अधिकारों के लिए खुल कर लड़ेंगी. "
तेजल उत्साहित थी, उसके सांवले सुन्दर चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक आ गई वो कल्पना लोक में विचरने लगी थी
"मुझसे रानी पद्मिनी का जौहर बिल्कुल भी भूला नहीं जा पाता है. सोचिये कितनी स्त्रियां एक साथ मर गईं. कितनी बहादुर स्त्रियाँ थीं. सोच कर गर्व होता है किन्तु आँखों में आँसू आ जाते हैं. "
"और क्या करेगी हमारी राजकुमारी, अगर उसने कभी शासन किया तो "ठाकुर रतनसिंह ने पूछा मैं आपको, मां सा को और दादी सा को हमेशा के लिए अपने पास बुला लूंगी. राणा आगे बढ़े और अपनी पुत्री के पाँव छू लिए (जब वे प्रसन्न होते थे, ऐसा ही करते थे. )
बालिका तेजल दिन भर की थकान के कारण घर आकर सो गई थी. पिता की आंखों में नींद नहीं थी दिन पर दिन मन की चिंता बढ़ती जा रही थी.
समय पंख लगा कर उड़ गया और बेटी विदा भी हो गई है.
उन्होंने अपने आपको अब अन्य कार्यों में व्यस्त कर लिया है.
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तेजल को नेपाल आये पंद्रह दिन गुज़र चुके हैं.
वह सोच में पड़ी है...... यहाँ की भाषा अलग, खानपान अलग, विवाह संस्कार के बाद की रीतियाँ भी अलग हैं.
उसने नेपाल और मेवाड़ की संस्कृति में इतने भेद की कल्पना नहीं की थी.
यही सब विचार करते करते उस दिन संध्या हो गई और अंधेरा अपने पाँव पसारने लगा था कि कक्ष में उसकी प्रिय दासी राधा आ गई.
तेजल उसे सदा ही उल्लसित देखती है.
तेजल ने कहा "एक बात कहूं."
"जी क्या "राधा ने पूछा
"तुम क्या सोते हुए भी मुस्कुराती हो.
अपने पति से पूछ कर बताना मुझे."
राधा लज्जा से दोहरी हो आई और बोली, "आपके कक्ष में आते हुए डर नहीं लगता है अन्यथा जब मैं राजमाता के यहाँ थी तो मुस्कान क्या मेरी बोली भी नहीं निकलती थी."
"क्यों भला?"
तेजल ने पूछा
"आप तो राजकुमारी हैं क्या आपको नहीं पता कि बड़े राणा जी की पत्नियों में राजमहल में अपना स्थान बनाने के लिएआपस में कितना संघर्ष और छल कुचाल चलती रहती है. "
"वे विलासिता की चरम सीमा पर हैं. कई बार तो कोई दासी ही उनका जीवन दूभर कर सकती है. "
"अंत में सबसे अधिक व्याकुल तो राजमाता ही हो जाती हैं. अंतःपुर की राजनीति, षड्यंत्रों का निर्णय करते करते समय से पहले ही बूढ़ी हो गईं हैं वो."
"वे भी अपना क्रोध हमारे जैसे छोटे लोगों पर ही निकाल कर जी हल्का कर लेती हैं . "
"रानी साहिबा ये बातें अपने तक ही रखियेगा. अन्यथा मुझे राजद्रोह के अपराध में कारागार में डाल दिया जाएगा. "
राधा के जाने के बाद तेजल का मन मस्तिष्क घटनाओं की पुनरावृति करने लगा था उसका कुंवर जी के साथ विवाह, बिना शोर-शराबे के इस कक्ष में आना.
रानी माँ का उससे मिलने आना, उसके सांवले रंग को देखकर महल में खुसुर पुसुर होना.
उसने बिजौलिया में सुना था उसके विवाह संबंध से मेवाड़ और नेपाल के राजनैतिक संबंध सुदृढ़ होंगे इसलिए उसने प्रतिज्ञा की थी कि वो अपनी मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ लुटा देगी........उसने विवाह में कुंवर जी की बस एक झलक ही देखी है सुंदर बलिष्ठ गौर वर्ण युवक,...... क्या वे उसको पसंद करेंगे?
तभी पिता के वचन याद आए "बेटी तुम सदैव याद रखना क्षत्रिय की पुत्री हो तनिक ना घबराना."
आज कुंवर जी से उसका प्रथम मिलन था.
वह गहनों और भारी-भरकम लहंगे और लज्जा के बोझ तले दबी जा रही है.
जब वे उसके कक्ष में आए तो वह हतप्रभ सी उनके मुखमंडल के भाव ही देखती रह गई, उसने सोचा था कि वह उन्हें प्रणाम करेगी किंतु घबराहट में भूल गई थी.
राज कुंवरने ने ही बातचीत प्रारम्भ की थी.
उनकी बातचीत का ढंग शिष्ट और शालीनता से भरा हुआ था. किशोरी तेजल का भय जाता रहा था . जब कुंवर ने कहा कि वे उसे कुछ उसकी पसन्द का उपहार देना चाहते हैं तो तेजल पुलकित और आनंदित हो उठी थी. वह धीरे से बोली" मेरे जैसी छोटे ठिकाने की एक लड़की का विवाह इस राजघराने में हुआ. ये अपने आप में बड़ा उपहार है. मैं सोचती हूं इससे अधिक सौभाग्य की बात किसी भी लड़की के लिए क्या होगी?
कुँवर बोले "मेरे प्रश्न का सही उत्तर दीजिये. आप अपनी कोई इच्छा बताइये तो सही इस संसार में जो भी प्राप्त है मैं आपको उपलब्ध कराऊंगा. "तब तेजल ने कहा" मैं सीता माता के जन्म स्थल का दर्शन करना चाहती हूं." "मैंने बिजौलिया में सुना था कि वे यही कहीं आसपास की थी."
उसके पति हंस पड़े थे उन्होंने कहा"आश्चर्य की बात है तुम्हारी आयु की किशोरी धर्मस्थल देखने की बात कर रही है, और हम राजपूत जब भी बाहर निकलते हैं तो सिर्फ युद्ध के लिए निकलते हैं.
किसी को ऐसा विचार क्यों नहीं आता है?
मैं वचन देता हूं कि हम दोनों अवश्य ही जनकपुर जाएंगे."
शक्तिपुर के जनसमुदाय में बात फैल गई थी राजकुमार नरेन्द्र जंग की पत्नी राजघराने की स्त्रियों से भिन्न है वह तेजस्विनी है मर्यादा का पालन करने वाली, सामान्य रंग रूप की किशोरी है किन्तु सिंघनी के समान निडर भी है.
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राणा नरेंद्र जंग को आराम तलबी के जीवन की आदत है.
उनके विलासिता पूर्ण जीवन में यह षोडशी कैसे आन टपकी? वे स्वयं अचम्भित हैं.
उनकी जीवन शैली इस बालिका से कहीं से भी मेल नहीं खाती है. किन्तु उसकी आभा के आगे वे नतमस्तक से होते जा रहे हैं.इस साधारण सी किशोरी को दूसरों की व्यथा दिखाई दे जाती है. जो उन्हें कभी अनुभव नहीं हुई. क्या इसका कारण राणा का सुख पूर्वक जीवन बिताना है?
तेजल जनसाधारण का मान, अपमान, न्याय, अन्याय ख़ूब समझती है. यहाँ तक कि राज महल की उपेक्षित रानियों की दुर्दशा को लेकर चिंतित है.
इतने ही दिनों में राजमाता उसे बहुरुपिया लगती हैं. वह अपने विचार प्रमाण सहित अपने पति के आगे प्रस्तुत कर चुकी है.
उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया था कि उनकी अपनी माता ही पिता द्वारा उपेक्षित हैं. राजमाता उनका शोषण कर रही हैं. माँ के साथ कुंवर का अब नया परिचय हुआ है.
तेजल महल की हर गतिविधि पर कैसी तीक्ष्ण पहरेदारी कर सकती है?
किन्तु तेजल को प्राप्त करने के बाद भी उनके मन को संतोष नहीं है. या कहें उसके गुणों का रंग फीका हो चला है.
जैसे जैसे समय व्यतीत हुआ राणा जी को आभास होता जा रहा है तेजल धर्मपत्नी तो बन सकती है.
वे उसे अपनी प्रेमिका नहीं बना पाएंगे.
विवाह के कुछ वर्ष बीत गए हैं. राजमहल में तेजल के विरुद्ध स्वर उठने लगे हैं कि वह अभी तक माँ नहीं बन पायी है.
राणा जी अब एक मृगतृष्णा में जी रहे हैं. उनकी रंगशाला विवाह के बाद भंग हो गई है.उन्हें उसकी याद सताने लगी, पहले वो अपने विलासी वातावरण में प्रसन्न थे. अधिक दिनों तक तेजल उन्हें बाँध ना पायी........ अपितु उसके संपर्क में कुछ ऐसे प्रश्न उठ खड़े हुए जिनसे राणा बचना चाहते हैं.
वे सुख से अभिशापित हैं, दूसरों की व्यथा देखना पसन्द नहीं करते हैं. वे अपने सुख के लिए आँखों पर पट्टी बाँध लेना पसन्द करेंगे. हां यदि वे चाहे तो अन्य स्त्रियों से संपर्क बना सकते हैं कोई नहीं रोकेगा किंतु वे तो भटक रहे हैं ना जाने किसकी खोज में?
शायद एक प्रियतमा की खोज में. उन्हें प्रेमिका चाहिए. एक रूपवती अपनी आयु की पत्नी.
उनकी इच्छा की पूर्ति भी शीघ्र हो गई थी.
अपने परममित्र के घर विवाहोत्सव पर उनकी भेंट पूर्वी नामक युवती से हुई जो कि नववधू की सखियों में से एक थी.
उसके रूप से उनकी आंखें चौथिया गई थी. कुंवर उसे पाने को मचल पड़े.
आनन-फानन में "पूर्वी"राणा नरेंद्र जंग की पत्नी हुई. उस विवाह की सभी रीतियों को पूर्ण कराने का उत्तरदायित्व रानी तेजल ने निस्पृह भाव से अपने हाथ में ले लिया है.
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इधर राजमहल में बड़े परिवर्तन हुए हैं.
इसी बीच राणा नरेन्द्र जंग के पिता का निधन हो गया और राजकार्य की सारी जिम्मेदारी नरेंद्र जंग पर आ गई है. शासन संबंधी राय मशवरे में राणा तेजल पर ही आश्रित है.
नवीन विवाह के बाद भी राणा नरेन्द्र जंग जब तब तेजल के कक्ष में देखे जाते हैं.
राणा और तेजल का साथ नई रानी पूर्वी को फूटी आंख नहीं सुहाता है.
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पूर्वी नित नये श्रंगार से अपने रूप पर आप ही मोहित है.
पूर्वी चाहती है किसी भी प्रकार राणा उसके वश में हो जाए.
उस साधारण सी दिखने वाली तेजल में ऐसा क्या है कि राणा उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते हैं.
पूर्वी की ऑंखें आजकल एक नवीन स्वप्न देख रही हैं.
राणा की पटरानी बनने का स्वप्न.
सुदूर देशों तक उसके सौंदर्य के चर्चे हों.
जनसमुदाय में तेजल की जगह राणा के साथ वह जाए.
इस राजप्रासाद की आने वाले समय में वो राजमाता हो.
तेजल उसकी आँखों में खटक रही है.
शीघ्र ही पूर्वी ने अपने गर्भवती होने के समाचार से राणा को चिरप्रतीक्षित सुख की कल्पना से भर दिया था.
राणा चाहते थे कि पूर्वी के स्वास्थ्य का ध्यान रानी तेजल रखे.
किन्तु तेजल को पूर्वी ने अपने पास नहीं फटकने दिया था. उसने तेजल से कहा वो अपनी सेवा में केवल उन्हें ही पसन्द करेगी जिनको माँ बनने का अनुभव है.
इसलिये रानी तेजल ने राणा से कुछ ना कहा उसने अपनेआप को अपने कक्ष में ही सीमित कर लिया है.
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पिछले कुछ दिनों से तेजल का जी बहुत घबराता है. भोजन पचता नहीं भूख मर गई है.
राधा ने उसकी यह दशा देखी तो बोली " मैं राजवैद्य को बुलाती हूं."
"नहीं रहने दे अगर दो चार दिन और तबीयत ठीक ना हुई तब देखेंगे."
तेजल को आज पितृगृह की बहुत याद आ रही है. उसने अपने पिता को एक पत्र लिखा और राणा जी से कहा कि कृपया वे यह पत्र बिजौलिया भिजवा दें.
राणा ने अनजाने ही पत्र खोल लिया तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. तेजल ने अपनी कुशलक्षेम के साथ ही ठाकुर रतनसिंह को शुभ समाचार भी सुनाया था कि वे नाना बनने वाले हैं वह चार मास की गर्भवती है और परंपरानुसार उसे प्रसव के लिए अपने मायके आना है.
राणा सोच में पड़ गए कि रानी तेजल ने यह शुभ समाचार उन्हें क्यों नहीं सुनाया?
क्या उनसे कुछ भूल हुई?
रानी राजमहल क्यों छोड़ना चाहती है?
अथवा परम्परा का निर्वाह करना चाहती है?
क्या उसे यहाँ किसी प्रकार की हानि का अंदेशा है?
किससे डर है उसे?
राजमाता से?
या पूर्वी से?
उन्हें साक्ष्य चाहिए.
किन्तु तेजल के प्राणों की रक्षा उनका प्रथम कर्तव्य है.
रानी तेजल के पास सभी प्रश्नों के उत्तर हैं.
वे समय आने पर ले भी लेंगे.
किन्तु अभी यही उचित यही होगा कि वे तेजल को मेवाड़ भिजवाने का प्रबंध कर दें. कहीं देर ना हो जाये.
उन्होंने रानी की विश्वस्त सेविका राधा और उसके पति को आदेश दिया कि वे मेवाड़ जाने की तैयारी करें.
साथ में विश्वत रक्षकों की टोली को साथ कर राणा जी ने अपनी पत्नी को मेवाड़ के लिए भारी मन से विदा दी और कहा, शीघ्र ही हमें अपनी और हमारी नन्ही जान की कुशलता का समाचार सुनाइयेगा.
तेजल अब करीब पच्चीस छब्बीस वर्ष की युवती थी. जब राजमहल में आयी थी एक किशोरी थी. आज इतने वर्षों बाद वह पितृगृह जा रही है.
ना जाने क्यों भय सा प्रतीत हो रहा है. उसके क़दम शिथिल हो रहे हैं. जब वह रथ पर सवार हुई तो पवन की गति से मन चल पड़ा है.
लाख झटकती है, पर विचारों की श्रंखला टूटती नहीं.
वह नेपाल के राजमहल में पलंग पर बैठ कर सोलह श्रंगार करने कभी भी नहीं आयी थी.
जब उसे पता चला था कि वह विवाह के चार पांच वर्षों बाद तक राज कुल को संतान नहीं दे पाई थी........ तो
राणा का विवाह भी उसके लिए कोई बड़ी बात ना था. वहाँ आये दिन यही सब देख रही थी.
उसने खुले ह्रदय से पूर्वी को अपनाया था.
उसे पूर्वी के सौंदर्य से भी कोई ईर्ष्या नहीं है.
किन्तु पिछले दो महीनों में पांच बार उसके भोजन में कुछ विषाक्त दवाइयां मिलायी जा रही हैं.उसके विश्वस्त सूत्रों ने बताया है. इसके पीछे पूर्वी के चाहने वालों का हाथ है.
अभी राणा तेजल के अनुकूल हैं, और उसकी गुप्तचरों पर पूरी पकड़ है.
किन्तु पूर्वी पर आक्षेप लगाते ही वह राणा की आँखों में एक सामान्य ईर्ष्यालु स्त्री रह जाएगी.
इसलिये उसे चुप रह जाना चाहिए था उसने वही किया था. पता नहीं सही था अथवा ग़लत .
तेजल के विचारों को विराम मिला जब राधा ने कहा
"नेपाल की सीमा छोड़ दी है. रानी साहिबा अब थोड़ी देर में मगध की सीमा में प्रवेश कर लेंगे हमलोग."
"ठीक है आपलोग जहाँ भी चाहें वहीं विश्राम की व्यवस्था करें."
"क्या रात्रि में हम लोग किसी धर्मशाला में रुकेंगे ?"साथ चल रहे घुड़ सवार अंग रक्षकों में से एक ने पूछा.
"नहीं कहीं बाहर ही तम्बू लगा लीजिए. मैं नहीं चाहती कि हमारे ठिकाने की भनक किसी को भी लगे."
जैसी आज्ञा.
एक दिन में वे लगभग बीस से तीस मील रास्ता तय कर पाते थे.
जैसे जैसे समय बीता रानी तेजल कांतिहीन होती जा रही थी.
उसके अंग रक्षकों ने कई बार विनती की कि यहीं रुक जाइये .आपका स्वास्थ्य सुधरे तब हम लोग आगे चलेंगे.
राधा ने भी कहा" इतनी दुर्बलता में आप स्वस्थ शिशु को जन्म कैसे देंगी?"
किन्तु रानी तेजल ने किसी की ना सुनी. उसके जीवन का एक मात्र ध्येय अपनेअंदर पल रहे शिशु के प्राणों की रक्षा करना था.
जिस बात का डर था वही हुआ तेजल बेहद कमज़ोर हो गई, उसने पितृ गृह जाने का विचार त्याग दिया था,
यहाँ से केवल चार कोस पर उसके नाना सा का गाँव था. जहाँ वह अपनी मां सा के साथ आया करती थी.
तेजल ने राधा को अपने पास बिठाया और बोली. यहाँ बी दासर के "ठाकुर मानसिंह जी "मेरे नानोसा हैं. यदि मुझे कुछ हो जाये तो मेरी सन्तान को उनके हवाले कर देना.
उसके स्वर क्षीण होते जा रहे हैं....... राधा.......
मुझे ये वचन दे कभी किसी को भी नहीं बताएगी कि मैंने अपनी सन्तान नानोसा को दी है. समझ रही है तू.
कुछ लोग ऐसे हैं जो मेरे बच्चे को मार देंगे....... मैंने देख लिया है कि मनुष्य के लिए जीवन जितना सरलता से जिया जाए उतना आनन्द दायक है..वो अगर साधारण जीवन जिएगा तभी अच्छा शासक बन सकेगा. मेरे बेटे की माँ बन जाना.और अगर बेटी हो तो उसे भी मजबूत बनाना ... राधा.... सुन रही है ना.
उसकी आवाज़ डूबती सी प्रतीत हुई.
राधा तेजल के गले लग कर रो पड़ी थी. तेजल ने कहा "आज के समय में हम स्त्रियों की आँखों में तेज और ज्वाला होनी चाहिए, ताकि हम विषम परिस्थियों में आग लगा सकें."
"तेरे मुख पर हमेशा मुस्कान ही शोभा देती है राधा!! आज मेरे निकट ही सो जाना देखती हूं तू रात में सोते हुए भी मुस्कुराती है या नहीं."
"मेरे बाद मेरी सन्तान की देखभाल कर सकेगी राधा!!"
"आप हिम्मत हार रही हैं रानी, देखिएगा प्रसव पीड़ा से निवृत होते ही आप ठीक हो जाएंगी."राधा बोली.
"मैंने राणा जी को वचन दिया है मैं आपको और आपकी सन्तान को वापस ले कर आऊंगी. "
तेजल का मुखमण्डल मधुर स्मित से भर उठा.
"राणा से मेरा सम्बन्ध बस यहीं तक था. अब तो मैं मां का कर्तव्य निभा रही हूं."
"ऊपर देख राधा" रानी ने बरगद के वृक्ष की ओर लटक रहे घोंसले को दिखा कर कहा, "इस घोंसले में रहने वाले पक्षियों को पता है यहाँ उनके अंडे और चूज़े सुरक्षित हैं."
"मैं भी जानती हूं तुम सब मिलकर इस रानी का मान रख लोगे. "
अगले दिन तेजल ने बरगद के वृक्ष के नीचे ही एक बालक को जन्म दिया.तब तक उनके अंग रक्षक ठाकुर मानसिंह को बुलाकर ले आए थे.
तेजल को बचाया ना जा सका था.
वह दुधमुँहे बालक को तीन दिन का छोड़ कर इस निष्ठुर संसार को विदा कह गई थी.इतिहास में यह घटना कहीं वर्णित नहीं है. अनेकों अवर्णित बलिदानों में एक बलिदान उसका भी था.
समाप्त
प्रीति मिश्रा
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