गद्य-रचना(कहानी)
रिश्ता अनजाना सा
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बात कुछ वर्ष पूर्व की है ........तब.......अनु की उम्र थी यही कोई पैंतीस बरस, बहुत खूबसूरत इतनी कि...... राह चलते राहगीर रुक जाएं,क्या बच्चे बुज़ुर्ग स्त्री या पुरुष सभी उससे दोस्ती के लिए बेचैन रहते।
एक बच्चे की माँ, ऊंचे ओहदे पर पतिअनिल, शान्त सौम्य उसका ख़याल रखने वाले , सभी सुख थे।
ससुराल में लोग उसे बिजली वाली बहू के नाम से पुकारते। अनिल का पुश्तैनी घर गाँव में था।तब तक उस गांव में बिजली नहीं पहुंची थी। जब अनु का ब्याह हुआ तो उसके पापा ने(जो कि जिला कमिश्नर थे ) गांव में बेटी की विदा से पहले ही बिजली पहुंचवा दी ताकि उनकी बिटिया किसी कष्ट में ना रहे।
एक बच्चे की माँ, ऊंचे ओहदे पर पतिअनिल, शान्त सौम्य उसका ख़याल रखने वाले , सभी सुख थे।
ससुराल में लोग उसे बिजली वाली बहू के नाम से पुकारते। अनिल का पुश्तैनी घर गाँव में था।तब तक उस गांव में बिजली नहीं पहुंची थी। जब अनु का ब्याह हुआ तो उसके पापा ने(जो कि जिला कमिश्नर थे ) गांव में बेटी की विदा से पहले ही बिजली पहुंचवा दी ताकि उनकी बिटिया किसी कष्ट में ना रहे।
शुरू में सब कुछ बहुत अच्छा था तकलीफ़ तो तब शुरू हुई जब डॉक्टर ने बताया कि "अनु जी! आपके कानों की नसें धीरे धीरे सूख रही हैं आने वाले दिनों में हो सकता है कि सुनाई पड़ना बंद हो जाए।"
तब कहां विश्वास किया था उसने?
लेकिन 10 सालों बाद डॉक्टर की भविष्यवाणी सत्य निकली।
तब कहां विश्वास किया था उसने?
लेकिन 10 सालों बाद डॉक्टर की भविष्यवाणी सत्य निकली।
अभी अचानक पिछले कुछ दिनों से ठीक से नहीं सुन पाती है,....उसे लगता है बिल्कुल भी नहीं सुनाई दे रहा , इसी वजह से कहीं ना कहीं एक हीन भावना का शिकार हो गई है। इसी वजह से बेटे का दाखिला हॉस्टल में करा देना पड़ा।वो अपना कॉन्फिडेन्स लूज़ करती जा रही है।
जहाँ ठहाके होते थे धीरे धीरे सन्नाटा पसर रहा है।
जहाँ ठहाके होते थे धीरे धीरे सन्नाटा पसर रहा है।
इसी बीच एक बड़ा बदलाव आया दिल्ली हेड ऑफिस से आदेश आया और अनिल की पोस्टिंग शहर से बहुत दूर समन्दर के किनारे एक छोटी सी जगह हो गई ।
उसके सहारे वह बेटे को नहीं छोड़ना चाहते थे ........या फिर उसको अकेला घर में नहीं छोड़ना चाहते थे। वह दोनों अब गेस्ट हाउस में रहते हैं।
उसके सहारे वह बेटे को नहीं छोड़ना चाहते थे ........या फिर उसको अकेला घर में नहीं छोड़ना चाहते थे। वह दोनों अब गेस्ट हाउस में रहते हैं।
भारत सरकार ने एक बहुत पुरानी फैक्ट्री खरीदी है और उसको चालू करने की जिम्मेदारी अनिल और उसके जैसे4 ऑफिसर्स के ऊपर है।मंत्रालय का अतिरिक्त दबाव हमेशा बना रहता है।जॉब चैलेंजिंग है अनु समझती है,पर अनिल की चुप्पी उसे अंदर ही अंदर खोखला न कर दे।
अपने कमरे से अगर वह नीचे झांकती है 2-3 बड़ी-बड़ी कारें उसकी सेवा में खड़ी हैं पर वह बिल्कुल अकेली कहाँ जाए?
गेस्ट हाउस में और भी 4 औरतें हैं पर अपने पतियों के पद को लेकर मन ही मन एक दूसरे से जलती हैं,कभी कभी उनके व्यवहार में झलक जाता है।
गेस्ट हाउस में और भी 4 औरतें हैं पर अपने पतियों के पद को लेकर मन ही मन एक दूसरे से जलती हैं,कभी कभी उनके व्यवहार में झलक जाता है।
इन चक्करों में कौन पड़े?वैसे वे चारों सारा दिन रिसेप्शन में पड़े सोफों पर बैठकर गप्पे मारती हैं,चाय के कप के साथ चटपटी बातें करती हैं।
उनके होठों को देख कर वह काफी कुछ बातचीत समझ लेती हैं किंतु बराबर भाग नहीं ले पाती।
वैसे भी जब सुन पाती थी अनु, तब भी उसे गप्पे मारना ज्यादा पसंद नहीं था क्योंकिअंत तो किसी ना किसी की बुराई पर ही होता है।
अनिल ने कमरे को ऑफिस बना रखा है एक तरफ़ डेस्कटॉप और प्रिंटर रखा है दूसरी तरफ़ का कोना बहुत सारे नक्शों फाइलों से पटा पड़ा है।दो तीन फ़ोन रखे हैं।एक कोने में चाय की केतली उसके पास ही छोटा सा गोदरेज का फ्रिज।
आपस में पति पत्नी की बातें हां ......हूं.... में ही सिमट कर रह गई है।कुछ अनिल पर अतिरिक्त कार्य भार, कुछ उसकी कमज़ोर श्रवण शक्ति की वजह से ।
अनु याद करती रहती है.... वह भी क्या दिन थे जब आपसी चुहलबाजीऔर शरारत से उनका घर भरा रहता वह और अनिल दोनों ही बहुत जिंदादिल दम्पति थे एक ज़माने में।
अनु का तो हाजिर जवाबी में कोई सानी ही नहीं था.........एक बार बोलना शुरू करती तो चुप नहीं होती थी।अनिल ने एक बार उसे शोले की बसन्ती कह दिया था ,बस उसी दिन नाराज़ होकर…... वो नहीं बोली थी, ....रोई भी थी .....जब तक अनिल ने उसे मनाया नहीं ।
ये सब शुरू शुरू की बातें हैं ......याद कर के अनु मुस्कुरा पड़ी।
ऐसा नहीं है कि उसने हियरिंग एड की मदद लेने की कोशिश नहीं की लेकिन उन्हें लगाते ही कानों में सीटियाँ सी बजने लगती है जितना सुनाई नहीं पड़ता है उससे दोगुना शोर सिर में दर्द कर देता है।
अनु का तो हाजिर जवाबी में कोई सानी ही नहीं था.........एक बार बोलना शुरू करती तो चुप नहीं होती थी।अनिल ने एक बार उसे शोले की बसन्ती कह दिया था ,बस उसी दिन नाराज़ होकर…... वो नहीं बोली थी, ....रोई भी थी .....जब तक अनिल ने उसे मनाया नहीं ।
ये सब शुरू शुरू की बातें हैं ......याद कर के अनु मुस्कुरा पड़ी।
ऐसा नहीं है कि उसने हियरिंग एड की मदद लेने की कोशिश नहीं की लेकिन उन्हें लगाते ही कानों में सीटियाँ सी बजने लगती है जितना सुनाई नहीं पड़ता है उससे दोगुना शोर सिर में दर्द कर देता है।
अनिल ने कभी कुछ नहीं कहा किंतु उनके व्यवहार से उनकी पीड़ा साफ झलकती है,वह कातर दृष्टि से अपने पति को देखती रह जाती है जिसनेअपने को पूरी तरह काम में डुबो लिया है।
दरअसल किसी बड़े सेठ की अरबों रुपयों की फैक्ट्री जो कि पारिवारिक झगड़े के कारण ठप्प पड़ी है......चलाने का कार्य है जल्द से जल्द निपटाना है।
सबसे बड़ी समस्या यह है,काफ़ी स्टाफ पुराने सेठ जी का है, उनकी भाषा उड़िया है, अनिल को काम कराने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अनु क्या करें? गेस्ट हाउस का कमरा उसे काटने को दौड़ता है।
सुबह-सुबह पूजा करने के बाद 1 घंटा टहल भी आती है लेकिन मौसम ऐसा है कि बारिश 4-4 दिन तक बंद नहीं होती।हवा में उमस भर जाती है,सड़क पर बरसाती सांप के छोटे छोटे बच्चे और मेंढक आ जाते हैं,अब ऐसे में घूमने का मज़ा चला जाता है ।
उस दिन सोचा अकेली लॉन्ग ड्राइव पर चली जाए तो ड्राइवर कार की चाभी देने को राज़ी न हुआ अपनी भाषा में कुछ समझा रहा था बाद में किसी हिन्दी भाषी ने लिख कर समझाया यहां माओवादियों का आतंक है आप को खतरा है ,बस अंदर तक सिहर गयी वो ।
इसलिए बोरियत बढ़ती जा रही है।
अनिल ने समझा दिया था तुम चाहो तो कंप्यूटर को अपना दोस्त बना लो जो चाहो पढ़ो तुम्हें तो पढ़ने का शौक है और लिखने का।
मजे से पढ़ा करो, मूवी देखो, गेम खेलो,चैट करो..... बच्चों की तरह बहला रहे थे वो उसे।
अनु क्या करें? गेस्ट हाउस का कमरा उसे काटने को दौड़ता है।
सुबह-सुबह पूजा करने के बाद 1 घंटा टहल भी आती है लेकिन मौसम ऐसा है कि बारिश 4-4 दिन तक बंद नहीं होती।हवा में उमस भर जाती है,सड़क पर बरसाती सांप के छोटे छोटे बच्चे और मेंढक आ जाते हैं,अब ऐसे में घूमने का मज़ा चला जाता है ।
उस दिन सोचा अकेली लॉन्ग ड्राइव पर चली जाए तो ड्राइवर कार की चाभी देने को राज़ी न हुआ अपनी भाषा में कुछ समझा रहा था बाद में किसी हिन्दी भाषी ने लिख कर समझाया यहां माओवादियों का आतंक है आप को खतरा है ,बस अंदर तक सिहर गयी वो ।
इसलिए बोरियत बढ़ती जा रही है।
अनिल ने समझा दिया था तुम चाहो तो कंप्यूटर को अपना दोस्त बना लो जो चाहो पढ़ो तुम्हें तो पढ़ने का शौक है और लिखने का।
मजे से पढ़ा करो, मूवी देखो, गेम खेलो,चैट करो..... बच्चों की तरह बहला रहे थे वो उसे।
सुझाव इतना बुरा भी नहीं थाअनु कंप्यूटर के आगे बैठ जाती धीरे धीरे उसे अच्छा लगने लगा, सही टाइम पास था ...... और फिर सोशल साइट के जरिए उसने कुछ लोगों से दोस्ती भी कर ली, इसमें सबसे बड़ा फायदा यह था कि वह चाहे तो बात करें अपने विचार साझा करें और जब चाहे ना करें सबसे पहले उसे अपनी बचपन की सहेलियों को ढूंढ चैट करना शुरू किया लेकिन कुछ मज़ा नहीं आया...... क्योंकि वह लोग इतनी फ्री नहीं थी जितनी वो,उन लोगों को घर गृहस्थी के सैकड़ों काम थे।
इधर अनिल रात दिन फैक्ट्री में ही बिज़ी रहने लगे उस दिन की बात है.....रात के करीब 9:00 बजे थे और अनु ने ....ऐसे ही किसी को विकिपीडिया पर देखा......संदीप गर्ग...... उसके एन जी ओ की तारीफों से पूरा पेज भर हुआ था ।
बंदा बहुत कमाल का था।.
...विदेश में रह कर इंडिया के लिए इतना काम करना बड़ी बात है।
अपना पेज होना बड़ी बात होती है जी।
बंदा बहुत कमाल का था।.
...विदेश में रह कर इंडिया के लिए इतना काम करना बड़ी बात है।
अपना पेज होना बड़ी बात होती है जी।
अनु ने उसकी मेल पर hi .....लिखकर भेज दिया।
तभी अनिल आ गए,वो जवाब का इंतज़ार किये बगैर उनका खाना लगाने के लिए 9 नम्बर डायल करने लगी.... जब खाना खाकर लौटी तो रात के दस बज गए थे डेस्कटॉप की लाइट ऑफ करने जा रही थी कि खुली मेल पर निगाह पड़ी, संदीप ने लंबा जवाब दिया था
हेलो!!
माफ़ करियेगा मेरी याददाश कमज़ोर है क्या हम पहले मिले हैं?
वैसे आपका पूरा परिचय जान सकता हूँ......
आपकी फ्रेंडशिप कौन बेवकूफ़ कुबूल नहीं करना चाहेगा?
और भी बहुत कुछ
लेकिन सभी बातें ध्यानाकर्षण के लिए काफ़ी थीं।
अनु ने लिखा....
"सॉरी आपको बिना अपना परिचय दिए हुए बात करने के लिए।"
आजकल पांच हाई प्रोफ़ाइल फ्रेंड्स ढूंढ रही हूं।
बस इसीलिएआपके बारे में पढ़ कर खुद को रोक नहीं पाई।
काफ़ी बढ़िया काम कर रहे हैं।
संदीप ने लिखा "कोई बात नहीं इसी तरह से आपस में कनेक्शन होते हैं।"
"अच्छी बात है आप इतनी सोच समझ कर फ्रेंडशिप करती हैं।"
अनु बहुत खुश थी उसको अपने जैसी पसंद रखने वाला एक दोस्त मिल गया था।
तभी अनिल आ गए,वो जवाब का इंतज़ार किये बगैर उनका खाना लगाने के लिए 9 नम्बर डायल करने लगी.... जब खाना खाकर लौटी तो रात के दस बज गए थे डेस्कटॉप की लाइट ऑफ करने जा रही थी कि खुली मेल पर निगाह पड़ी, संदीप ने लंबा जवाब दिया था
हेलो!!
माफ़ करियेगा मेरी याददाश कमज़ोर है क्या हम पहले मिले हैं?
वैसे आपका पूरा परिचय जान सकता हूँ......
आपकी फ्रेंडशिप कौन बेवकूफ़ कुबूल नहीं करना चाहेगा?
और भी बहुत कुछ
लेकिन सभी बातें ध्यानाकर्षण के लिए काफ़ी थीं।
अनु ने लिखा....
"सॉरी आपको बिना अपना परिचय दिए हुए बात करने के लिए।"
आजकल पांच हाई प्रोफ़ाइल फ्रेंड्स ढूंढ रही हूं।
बस इसीलिएआपके बारे में पढ़ कर खुद को रोक नहीं पाई।
काफ़ी बढ़िया काम कर रहे हैं।
संदीप ने लिखा "कोई बात नहीं इसी तरह से आपस में कनेक्शन होते हैं।"
"अच्छी बात है आप इतनी सोच समझ कर फ्रेंडशिप करती हैं।"
अनु बहुत खुश थी उसको अपने जैसी पसंद रखने वाला एक दोस्त मिल गया था।
अनिल कब पीछे खड़े हो गएथे उसके कन्धों पर हाथ रख कर...अनु को पता नहीं चला.....पर थैन्क गॉड!!उन्होंने मैसेज नहीं पढ़ा.... बस बोले जल्दी आ जाओ,सोते हैं, सुबह जल्दी उठना है कुछ विदेशी क्लाइंट्स आ रहे हैं।
अनु रात भर यही सोचती रही अनिल को संदीप के बारे में बता दे ....किन्तु वो तो दो मिनट में ही नींद के आग़ोश में आ चुके थे।
उसने उनको चादर उढ़ा दी,अनिल ने सिकोड़ी हुई टाँगों को फैला कर उसकी ओर करवट ले ली।
रियली!! कितना थक गए थे पर चेहरे पर शान्त भाव था।
सुबह बता दूंगी....नाश्ते के समय .... वो भी गहरी नींद में सो गई।
सुबह वो ऑन लाइन फ्रेंड की बात भूल भी गयी।
किन्तु रात को करीब 10 बजे संदीप के मैसेज आने शुरू हो गए।
क्या कमाल का लिखता है?
रोतों को हंसा दे।
अगले दिन अनु और संदीप की बातचीत शुरू हो गई करीब आधा एक घंटा कहां निकल गया अनु को पता ही नहीं चला उस दिन।
अनु रात भर यही सोचती रही अनिल को संदीप के बारे में बता दे ....किन्तु वो तो दो मिनट में ही नींद के आग़ोश में आ चुके थे।
उसने उनको चादर उढ़ा दी,अनिल ने सिकोड़ी हुई टाँगों को फैला कर उसकी ओर करवट ले ली।
रियली!! कितना थक गए थे पर चेहरे पर शान्त भाव था।
सुबह बता दूंगी....नाश्ते के समय .... वो भी गहरी नींद में सो गई।
सुबह वो ऑन लाइन फ्रेंड की बात भूल भी गयी।
किन्तु रात को करीब 10 बजे संदीप के मैसेज आने शुरू हो गए।
क्या कमाल का लिखता है?
रोतों को हंसा दे।
अगले दिन अनु और संदीप की बातचीत शुरू हो गई करीब आधा एक घंटा कहां निकल गया अनु को पता ही नहीं चला उस दिन।
किसी भी व्यक्ति के साथ जुड़ कर इतना अच्छा लगेगा उसने नहीं सोचा था। अब वो कंप्यूटर को ऑफ नहीं करती और उसने नोटिफिकेशन ऑन कर दिए उस रोज़ रात के 11:45 बजे उधर से संदीपऑन लाइन था मैसेज पर मैसेज आ रहे थे अभी अनिल थके हारे फैक्ट्री से लौटे उन्होंने पूछा अभी तक सोई नहीं।
आजकल एक नया फ्रेंड बना है अमेरिका में रहता हैअभी उसी से बात कर रही थी........
अच्छा!! फ्रेंडशिप तक ही रहना वरना मेरा पत्ता साफ हो जाएगा ........कहते कहते अनिल ने अपने नाइट सूट उठाया और बाथरूम में जाकर शावर लेने लगे ....उधर बहुत दिनों बाद अनु का आज गुनगुनाने का मन कर रहा था।उसको आज बहुत नई नई बातें पता चली हैं वो जैसा सोचती है अमेरिका बिल्कुल भी वैसा नहीं है।
संदीप कह रहा था अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी बोलते हैं, न्यूयार्क में कभी भी पीछे मुड़कर देखिए कोई हिंदी या पंजाबी भाषा में बात सुनाई पड़ जाएगी.....आगे फिर..... प्रीति
गद्य रचनाआजकल एक नया फ्रेंड बना है अमेरिका में रहता हैअभी उसी से बात कर रही थी........
अच्छा!! फ्रेंडशिप तक ही रहना वरना मेरा पत्ता साफ हो जाएगा ........कहते कहते अनिल ने अपने नाइट सूट उठाया और बाथरूम में जाकर शावर लेने लगे ....उधर बहुत दिनों बाद अनु का आज गुनगुनाने का मन कर रहा था।उसको आज बहुत नई नई बातें पता चली हैं वो जैसा सोचती है अमेरिका बिल्कुल भी वैसा नहीं है।
संदीप कह रहा था अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी बोलते हैं, न्यूयार्क में कभी भी पीछे मुड़कर देखिए कोई हिंदी या पंजाबी भाषा में बात सुनाई पड़ जाएगी.....आगे फिर..... प्रीति
****रिश्ता अनजाना****(कहानी)भाग 2
(अभी तक आपने पढ़ा अनु ने अकेलेपन से ऊब कर संदीप नाम के एक व्यक्ति से दोस्ती कर ली,संदीप न्यूयार्क में रह कर इंडिया के कई शहरों में एन जी ओ चलाता है इसके लिए उसे देश विदेश में सम्मानित भी किया जा चुका है)
(अभी तक आपने पढ़ा अनु ने अकेलेपन से ऊब कर संदीप नाम के एक व्यक्ति से दोस्ती कर ली,संदीप न्यूयार्क में रह कर इंडिया के कई शहरों में एन जी ओ चलाता है इसके लिए उसे देश विदेश में सम्मानित भी किया जा चुका है)
अनु के जीवन में बे मौसम बहार आ गई।
क्या कभी सोचा था कि गेस्ट हाउस के इस कमरे में वह दुनिया जहान की बातें जान पायेगी।
संदीप ने कहा कि आजकल वह बहुत बिजी है दरअसल अपने एनजीओ के लिए आर्टिकल्स लिख रहा है।
बातों बातों में यह भी पता चला कि संदीप बिल्कुल अकेला है शादी नहीं की , अनु बोली आखिरकार आप जैसे बैचलर को लड़कियों ने छोड कैसे दिया?
संदीप ने जवाब दिया मेरा रिश्तों से विश्वास उठ गया है।
ऐसा क्यों?
वह बोला बस यूं ही समझ लो हालात ही कुछ ऐसे हैं, दरअसल जब मुझे रिश्तेदारों की जरूरत थी तो कोई काम नहीं आया और आज जब मैंने अपनी मेहनत और बलबूते से ये मुक़ाम हासिल कर लिया तो सभी लोग मेरे आगे पीछे घूमते हैं। इसी बात से मेरा किसी पर विश्वास नहीं रहा।
अनु ने कहा अगर चाहो तो मुझसे शेयर कर सकते हो मैं तुम्हारी कोई रिश्तेदार नहीं हूं,बस एक फ्रेंड हूँ।.....
संदीप बोला किसी और दिन।
तुम अपनी कहानी सुनाओ फेसबुक पर हो क्या?
अनु बोली... नहीं
संदीप...अगर मुझसे लोग पूछते हैं कि क्या पढ़ते हो मैं कहता हूँ फेसबुक!! अरे! कई बार तो मुझे लोगों की प्रोफाइल को स्टॉक करने की भी आदत है बड़ा मजा आता है।
अनु-ओ हो!! तुम तो बहुत शरारती हो।
संदीप-नहीं!नहीं! शरारती नहीं हूं बस यही मेरा टाइम पास है।
क्या कभी सोचा था कि गेस्ट हाउस के इस कमरे में वह दुनिया जहान की बातें जान पायेगी।
संदीप ने कहा कि आजकल वह बहुत बिजी है दरअसल अपने एनजीओ के लिए आर्टिकल्स लिख रहा है।
बातों बातों में यह भी पता चला कि संदीप बिल्कुल अकेला है शादी नहीं की , अनु बोली आखिरकार आप जैसे बैचलर को लड़कियों ने छोड कैसे दिया?
संदीप ने जवाब दिया मेरा रिश्तों से विश्वास उठ गया है।
ऐसा क्यों?
वह बोला बस यूं ही समझ लो हालात ही कुछ ऐसे हैं, दरअसल जब मुझे रिश्तेदारों की जरूरत थी तो कोई काम नहीं आया और आज जब मैंने अपनी मेहनत और बलबूते से ये मुक़ाम हासिल कर लिया तो सभी लोग मेरे आगे पीछे घूमते हैं। इसी बात से मेरा किसी पर विश्वास नहीं रहा।
अनु ने कहा अगर चाहो तो मुझसे शेयर कर सकते हो मैं तुम्हारी कोई रिश्तेदार नहीं हूं,बस एक फ्रेंड हूँ।.....
संदीप बोला किसी और दिन।
तुम अपनी कहानी सुनाओ फेसबुक पर हो क्या?
अनु बोली... नहीं
संदीप...अगर मुझसे लोग पूछते हैं कि क्या पढ़ते हो मैं कहता हूँ फेसबुक!! अरे! कई बार तो मुझे लोगों की प्रोफाइल को स्टॉक करने की भी आदत है बड़ा मजा आता है।
अनु-ओ हो!! तुम तो बहुत शरारती हो।
संदीप-नहीं!नहीं! शरारती नहीं हूं बस यही मेरा टाइम पास है।
तुम अपनी लोकेशन भेजो मैं भी तो देखूं कौन सी जगह रहती है?
अनु ने कहा मुझे नहीं आता लोकेशन भेजना बड़ी मुश्किल से मैसेज करना सीखा है।
वह भी मेरे हसबैंड पीछे पड़ गए
संदीप-ओ माय गॉड!! तो तुम शादीशुदा हो
अनु-क्यों शादीशुदा से दोस्ती नहीं हो सकती?
संदीप...हो सकती है ,क्यों नहीं हो सकती और वह भी जब किसी लड़की ने खुद से फ्रेंड रिकवेस्ट भेजी हो।
भई!! मैं लड़कियों की बहुत इज्जत करता हूं
हा हा हा,अच्छा अभी कुछ दिनों के लिए मैं बाहर जा रहा हूं एमिली के साथ।
हम अपना नया एन जीओ हैदराबाद में लगाने की सोच रहे हैं उसी पर काम करना है हो सकता है मैं इंडिया भी आऊं।
लेकिन अभी पक्का नहीं है,अगर आया तुमसे मिलने की कोशिश जरूर करूंगा
अनु ने कहा....बिल्कुल जहां हम लोग रहते हैं पूरा इलाका बहुत सुंदर है और आप चाहे तो हमारे पास ही ठहर सकते हैं।
हां क्यों नहीं क्या नाम बताया था अपने हसबैंड का?
अभी तक नाम ही नहीं बताया.....अनु हंस पड़ी अनिल....अनिल टंडन
ओ के!!
संदीप- किस पोस्ट पर काम करते हैं ?
अनु- यहां के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।सरकार की तरफ से पोस्टिंग है काम करने के बाद चले जाएंगे
संदीप- कहां?
अनु- कुछ पता नहीं है फिर किसी फैक्ट्री को चलाने या फिर कहीं और जहां नसीब ले जाए
तब तो काफी नक्शे होंगे तुम्हारे।
अनु- क्यों? हसबैंड की पोस्ट अच्छी है उसका नक्शा मैं क्यों लूँ।
संदीप- यह हुई ना बात तो तुम भी कुछ काम किया करो।
अनु- नहीं कर सकती ना ....यही तो प्रॉब्लम है।
संदीप-इस दुनिया में ऐसा क्या है जो कोई नहीं कर सकता।
अनु- है कोई बात सीरियस प्रॉब्लम है कभी शेयर करूंगी।
संदीप- ठीक है मैं इंतजार करूंगा।क्या तुम्हारे पास तुम्हारी कोई पिक्चर है लेटेस्ट?
अनु- नहीं मैं कभी कोई पिक्चर नहीं खिंचवाती।
संदीप- झूठ बोल रही हो।
अनु- नहीं सच बोल रही हूँ
संदीप- एक बार दिखाओ ना प्लीज! या फिर स्काइप पर हो,बस एक बार अपनी शक्ल दिखा दो
अनु-आ गए ना आम मर्दों जैसी बातों पर,अनिल हमेशा यही कहते हैं कि किसी भी लड़के से दोस्ती खतरे से खाली नहीं है।
उधर से संदीप ने कोई जवाब नहीं दिया वह ऑफलाइन हो गया था..... नाराज हो गया क्या.... अनु सोचने लगी।
वैसे क्या हो जाता अगर अपनी फोटो भेज देती,कोई कम्प्यूटर से निकल के खा तो नहीं जाएगा।
अनिल को बताए?अगर हां कहते हैं तो फ़ोटो भेज देगी ।
फिर दिमाग़ ने कहा "अनु डार्लिंग तुम दुनिया की पहली औरत होगी जो ऐसी बातों में पति को इन्वॉल्व कर रही हो"।
वो मुस्कुरा पड़ी।
तभी किसी ने डोर बेल बजाई
रूम क्लीन होगा क्या ?
तपन एक नेपाली लड़का था,कमरे के बाहर खड़ा था,बोलाधोबी प्रेस के लिए कपड़े मांग रहा है मैडम जी
अरे !!अंदर आओ अनु बोली और ज़रा ऊंचा बोला करो प्लीज़ क्या कहते हो समझ तो पाऊं,वैसे अभी कोई काम नहीं है।बाहर मैडम लोग बैठी हैं क्या?
नहीं सी- बीच पर जाने की तैयारी कर रही हैं।
आप भी जाओ, आज हाई टाइड है दूर से देखना मेम साब जी पानी के पास मत जाना।
तपन अब जोर से चिल्लाया।
अनु खुल कर हँस पड़ी,तभी अनिल आ गए,बोले ज़रा अंदर आओ अनु कुछ बात करनी है।
अनिल ने बताया अब मिनिस्टर साहब खुद एक महीने के लिए कारखाने की प्रोग्रेस देखने के लिए आ रहे हैं,सुना है संसद में प्रश्न उठ गया है कि कारखाना चल भी पाएगा या सब कुछ लोहे के दाम बिक जाएगा।
कई बार लगता है गलती हो गई अनु.... इस बैठे हुए हाथी को खड़ा करना बड़ा मुश्किल है.....अनिल उदास थे.....ऊपर से अब रोज़ रोज़ घंटों की मीटिंग में समय जाएगा।
अनु अपनी हियरिंग एड एडजस्ट करने की कोशिश करने लगी,वो अनिल की हर बात सुनना समझना चाहती थीअनिल ने उसका हाथ पकड़ कर कहा रहने दो... बस यहीं पास में.... चुपचाप बैठी रहो।पति पत्नी शांति से एक दूसरे के साथ बैठे रहे,कमरे में पिन ड्राप साइलेंस को भंग किया डेस्कटॉप के नोटिफिकेशन्स ने, रात्रि के दस बजे थे संदीपऑन लाइन था।अनिल ने कहा डेस्कटॉप की रोशनी आंखों में लग रही है मैं सोना चाहता हूं,इसे ऑफ कर दो प्लीज़।
अनु ने तुरन्त कम्प्यूटर ऑफ किया और अनिल का सिर सहलाने लगी।आज उन्होंने खाना भी नहीं खाया, भूखे सो गए।..आगे फिर जल्दी ही प्रीति मिश्रा
गद्य रचनाअनु ने कहा मुझे नहीं आता लोकेशन भेजना बड़ी मुश्किल से मैसेज करना सीखा है।
वह भी मेरे हसबैंड पीछे पड़ गए
संदीप-ओ माय गॉड!! तो तुम शादीशुदा हो
अनु-क्यों शादीशुदा से दोस्ती नहीं हो सकती?
संदीप...हो सकती है ,क्यों नहीं हो सकती और वह भी जब किसी लड़की ने खुद से फ्रेंड रिकवेस्ट भेजी हो।
भई!! मैं लड़कियों की बहुत इज्जत करता हूं
हा हा हा,अच्छा अभी कुछ दिनों के लिए मैं बाहर जा रहा हूं एमिली के साथ।
हम अपना नया एन जीओ हैदराबाद में लगाने की सोच रहे हैं उसी पर काम करना है हो सकता है मैं इंडिया भी आऊं।
लेकिन अभी पक्का नहीं है,अगर आया तुमसे मिलने की कोशिश जरूर करूंगा
अनु ने कहा....बिल्कुल जहां हम लोग रहते हैं पूरा इलाका बहुत सुंदर है और आप चाहे तो हमारे पास ही ठहर सकते हैं।
हां क्यों नहीं क्या नाम बताया था अपने हसबैंड का?
अभी तक नाम ही नहीं बताया.....अनु हंस पड़ी अनिल....अनिल टंडन
ओ के!!
संदीप- किस पोस्ट पर काम करते हैं ?
अनु- यहां के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।सरकार की तरफ से पोस्टिंग है काम करने के बाद चले जाएंगे
संदीप- कहां?
अनु- कुछ पता नहीं है फिर किसी फैक्ट्री को चलाने या फिर कहीं और जहां नसीब ले जाए
तब तो काफी नक्शे होंगे तुम्हारे।
अनु- क्यों? हसबैंड की पोस्ट अच्छी है उसका नक्शा मैं क्यों लूँ।
संदीप- यह हुई ना बात तो तुम भी कुछ काम किया करो।
अनु- नहीं कर सकती ना ....यही तो प्रॉब्लम है।
संदीप-इस दुनिया में ऐसा क्या है जो कोई नहीं कर सकता।
अनु- है कोई बात सीरियस प्रॉब्लम है कभी शेयर करूंगी।
संदीप- ठीक है मैं इंतजार करूंगा।क्या तुम्हारे पास तुम्हारी कोई पिक्चर है लेटेस्ट?
अनु- नहीं मैं कभी कोई पिक्चर नहीं खिंचवाती।
संदीप- झूठ बोल रही हो।
अनु- नहीं सच बोल रही हूँ
संदीप- एक बार दिखाओ ना प्लीज! या फिर स्काइप पर हो,बस एक बार अपनी शक्ल दिखा दो
अनु-आ गए ना आम मर्दों जैसी बातों पर,अनिल हमेशा यही कहते हैं कि किसी भी लड़के से दोस्ती खतरे से खाली नहीं है।
उधर से संदीप ने कोई जवाब नहीं दिया वह ऑफलाइन हो गया था..... नाराज हो गया क्या.... अनु सोचने लगी।
वैसे क्या हो जाता अगर अपनी फोटो भेज देती,कोई कम्प्यूटर से निकल के खा तो नहीं जाएगा।
अनिल को बताए?अगर हां कहते हैं तो फ़ोटो भेज देगी ।
फिर दिमाग़ ने कहा "अनु डार्लिंग तुम दुनिया की पहली औरत होगी जो ऐसी बातों में पति को इन्वॉल्व कर रही हो"।
वो मुस्कुरा पड़ी।
तभी किसी ने डोर बेल बजाई
रूम क्लीन होगा क्या ?
तपन एक नेपाली लड़का था,कमरे के बाहर खड़ा था,बोलाधोबी प्रेस के लिए कपड़े मांग रहा है मैडम जी
अरे !!अंदर आओ अनु बोली और ज़रा ऊंचा बोला करो प्लीज़ क्या कहते हो समझ तो पाऊं,वैसे अभी कोई काम नहीं है।बाहर मैडम लोग बैठी हैं क्या?
नहीं सी- बीच पर जाने की तैयारी कर रही हैं।
आप भी जाओ, आज हाई टाइड है दूर से देखना मेम साब जी पानी के पास मत जाना।
तपन अब जोर से चिल्लाया।
अनु खुल कर हँस पड़ी,तभी अनिल आ गए,बोले ज़रा अंदर आओ अनु कुछ बात करनी है।
अनिल ने बताया अब मिनिस्टर साहब खुद एक महीने के लिए कारखाने की प्रोग्रेस देखने के लिए आ रहे हैं,सुना है संसद में प्रश्न उठ गया है कि कारखाना चल भी पाएगा या सब कुछ लोहे के दाम बिक जाएगा।
कई बार लगता है गलती हो गई अनु.... इस बैठे हुए हाथी को खड़ा करना बड़ा मुश्किल है.....अनिल उदास थे.....ऊपर से अब रोज़ रोज़ घंटों की मीटिंग में समय जाएगा।
अनु अपनी हियरिंग एड एडजस्ट करने की कोशिश करने लगी,वो अनिल की हर बात सुनना समझना चाहती थीअनिल ने उसका हाथ पकड़ कर कहा रहने दो... बस यहीं पास में.... चुपचाप बैठी रहो।पति पत्नी शांति से एक दूसरे के साथ बैठे रहे,कमरे में पिन ड्राप साइलेंस को भंग किया डेस्कटॉप के नोटिफिकेशन्स ने, रात्रि के दस बजे थे संदीपऑन लाइन था।अनिल ने कहा डेस्कटॉप की रोशनी आंखों में लग रही है मैं सोना चाहता हूं,इसे ऑफ कर दो प्लीज़।
अनु ने तुरन्त कम्प्यूटर ऑफ किया और अनिल का सिर सहलाने लगी।आज उन्होंने खाना भी नहीं खाया, भूखे सो गए।..आगे फिर जल्दी ही प्रीति मिश्रा
****रिश्ता अनजाना****भाग 3(कहानी)
(आपने अब तक पढ़ा गेस्ट हाउस के एक कमरे में बैठी अनु विदेश में रहने वाले संदीप गर्ग से एक..hi.. भेज कर दोस्ती कर लेती है संदीप उससे उसकी फोटो मांगता है अनु कहती है उसके पास कोई फोटो नहीं है ।)
(आपने अब तक पढ़ा गेस्ट हाउस के एक कमरे में बैठी अनु विदेश में रहने वाले संदीप गर्ग से एक..hi.. भेज कर दोस्ती कर लेती है संदीप उससे उसकी फोटो मांगता है अनु कहती है उसके पास कोई फोटो नहीं है ।)
*चिढ़ाने वाला इमोजी*
अगले दिन छोटे से शहर की सड़कें चूने की सफेद लाइनों और मंत्री जी के पोस्टर्स-कट आउट्स से सजने लग गईं थी ।
कारखाने के बाहर रंग बिरंगे झंडे स्वागत के लिए तैयार खड़े थे, करीब एक ट्रक भर के गेंदे के फूल भी सजावट के लिए आए थे।
बड़े पार्क को कनातों से ढक दिया गया था। सबसे पहले मंत्री जी पोर्ट जाकर जनता को संबोधित करेंगे, उसके बाद कारखाने का दौरा और शाम को पार्क में भाषण रखा गया है।
यूं तो मंत्री जी के ठहरने का इंतजाम एक पांच सितारा होटल में किया गया था किंतु सरकारी अफसरों पुलिस पी ए सी की आवाजाही गेस्ट हाउस में बहुत बढ़ गई थी ।गेस्ट हाउस निवासिनी ऑफिसर्स वाइव्स अपने अपने कमरों में बंद हो गई थी।
हाँ फ्रंट ऑफिस वालों ने थोड़ी चैन की साँस ली थी ।
हाँ फ्रंट ऑफिस वालों ने थोड़ी चैन की साँस ली थी ।
उधर अनु ने कंप्यूटर ऑन किया और देखा कि संदीप के बीसियों मैसेज थे, साथ में कुछ फोटोज़ भी थी । व्यग्र अनु छटपटाहट में थी कि पहले किसको देखे....किसको पढ़े । अनु नाम की बहुत सी लड़कियों की तस्वीरें थी,नीचे लिखा था इनमें से कौन सी पिक्चर है आपकी ?
अनु के कपोल लाल हो गए, अचानक उसमें एक किशोरी मानो अँगड़ायी लेने लगी थी।उसे याद आ गयी हाल ही में कादिम्बनी में पढ़ी एक प्यारी सी कविता जिसका शीर्षक था 'कोंपले फिर फूट आयी', सिर झटका....पागल हो गई हो क्या ? मन ही मन सोचा, कहाँ जा रहा है मेरे सोचों का सफ़र।अनु ख़ुद में लौट आयी थी।
साथ में एक लंबा टेक्स्ट भेजा था संदीप ने, "कल से मैं और एमिली नए ढंग से कार्य करने जा रहे हैं।"क्या तुम मेरी मदद करोगी ?"
यह मानते हुए कि जैसे अनु ने हामी भर ली हो, संदीप लिख रहा था :
मुझे फैमिली प्लैनिंग के लिए छोटी-छोटी स्टोरीज़ सुझाओ।
पहले मेरा काम देख लो...अनु ने ध्यान से पढ़ा और फिर प्रिंटर ऑन करके सभी के प्रिंट्स निकाल लिए....अपने हिसाब से करेक्शन्स भी किये।
अनु ने संदीप को जवाब लिखा :
जब आप गांव में काम कर रहे हैं तो आपको वहां की स्थानीय भाषा में स्लोगन बनाने चाहिए लोगों पर मातृभाषा का असर सबसे ज्यादा होता है।
दूसरा जो भी कहानी कहनी है वह ऐसी हो कि लोगों के दिलो दिमाग़ पर सीधे चोट करे।कहने का मतलब , संदीप आपने अपनी कहानियां 'तोता-मैना' से क्यों कहलवाई?क्यों नहीं आप ...कभी पड़ोसी बनकर....कभी नर्स बन कर या कभी शिक्षिका बनकर.....सीधे बात क्यों नहीं करते, ऐसा मेरा सुझाव है, मानो या ना मानो ।
आपके एन जीओ पर काम करने के लिए क्यों ना घर में बैठी औरतों को ट्रेंड किया जाय ?
बेशक इसके लिए उन्हें कम तनख्वाह दी जाए । एक सी ड्रेस और बैग्ज़ दिए जाएं, जिस से वो टिपिकल समाज सुधरिका नहीं बल्कि आज के ज़माने की डेडिकेटेड एन जी ओ प्रोफेशनल्स के रूप में पेश हो सके।
यह मानते हुए कि जैसे अनु ने हामी भर ली हो, संदीप लिख रहा था :
मुझे फैमिली प्लैनिंग के लिए छोटी-छोटी स्टोरीज़ सुझाओ।
पहले मेरा काम देख लो...अनु ने ध्यान से पढ़ा और फिर प्रिंटर ऑन करके सभी के प्रिंट्स निकाल लिए....अपने हिसाब से करेक्शन्स भी किये।
अनु ने संदीप को जवाब लिखा :
जब आप गांव में काम कर रहे हैं तो आपको वहां की स्थानीय भाषा में स्लोगन बनाने चाहिए लोगों पर मातृभाषा का असर सबसे ज्यादा होता है।
दूसरा जो भी कहानी कहनी है वह ऐसी हो कि लोगों के दिलो दिमाग़ पर सीधे चोट करे।कहने का मतलब , संदीप आपने अपनी कहानियां 'तोता-मैना' से क्यों कहलवाई?क्यों नहीं आप ...कभी पड़ोसी बनकर....कभी नर्स बन कर या कभी शिक्षिका बनकर.....सीधे बात क्यों नहीं करते, ऐसा मेरा सुझाव है, मानो या ना मानो ।
आपके एन जीओ पर काम करने के लिए क्यों ना घर में बैठी औरतों को ट्रेंड किया जाय ?
बेशक इसके लिए उन्हें कम तनख्वाह दी जाए । एक सी ड्रेस और बैग्ज़ दिए जाएं, जिस से वो टिपिकल समाज सुधरिका नहीं बल्कि आज के ज़माने की डेडिकेटेड एन जी ओ प्रोफेशनल्स के रूप में पेश हो सके।
अनु की तरफ़ से मानो सुझावों की झड़ी सी लग गयी,ना जाने कहाँ कहाँ से एक के बाद एक आइडियाज़ उभर कर आ रहे थे, जैसे दिमाग के फ़्लड गेट्स खुल गए हों । अनगिनत सुझाव थे जिन्हें टाइप करते करते ही दोपहर के करीब 2:00 बज गए थे। आखिर में उसने अनिल और आर्यन (उसका 10 वर्षीय पुत्र) के साथ अपनी फोटो भी भेज दी थी लिख कर ..... "आर्यन,अनिल और मैं ', पहले मैं, आर्यन और अनिल' लिखा था पर ना जाने क्यों सिक्वेंस बदल डाला।यह अवचेतन मन ना.....
और लिख दिया था,"सॉरी !! कल के मज़ाक के लिए !".... और एक मुँह चिढ़ाने वाला इमोजी भी लगा दी थी जिस से वो आज तक ख़ुद चिढ़ती थी ।
और लिख दिया था,"सॉरी !! कल के मज़ाक के लिए !".... और एक मुँह चिढ़ाने वाला इमोजी भी लगा दी थी जिस से वो आज तक ख़ुद चिढ़ती थी ।
*तुम अगर साथ देने का वादा करो*
फैमिली फोटोग्राफ देखते ही अतीत में जा पहुंचा संदीप गर्ग, एक आई टी प्रोफेशनल हार्वर्ड से बिजनेस मैनेजमेंट करने के बाद यू एस में ही बस गया था।आखिर भारत लौटे भी किसके लिए?
वहां उसके पास दुःखद यादों के अलावा कुछ भी तो नहीं था । सिर्फ 10 वर्ष का था तब उसके माता पिता की मृत्यु हो गई थी । पिताजी बिजनेसमैन थे इसलिए पैसों की कोई कमी नहीं थी किंतु तब भी कोई रिश्तेदार छोटे बच्चे के पालन पोषण की जिम्मेदारी लेने को कोई भी तैयार न था।
वह याद नहीं करना चाहता पर भूल भी नहीं पाता कि चाचा जी उसे अपने घर ले आए थे । चाची जी को उसका रहना नहीं भाया था । उनकी उपेक्षा में करीब दो तीन वर्ष बीत गए, उसने अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया था किंतु जब वह अपने चचेरे भाई बहनों से पढ़ने में बहुत अच्छा करने लगा तो चाची जी ने जल भुन कर एक कुटिल प्लान बनाया।
उस दिन बाहर बारिश हो रही थी । घर में संदीप और चाची अकेले थे, चाचा जी काम के सिलसिले में दो-चार दिनों के लिए बाहर गए थे । चाची जी ने नन्हे बालक के पास आकर बड़ी राज़दार आवाज में कहा "बेटा मेरी मानो तो हॉस्टल में दाखिला ले लो।
मैं खुद तुम्हारा दाखिला करा दूंगी. यहां तुम्हारी जान को खतरा है. मुझे डर है कि प्रॉपर्टी के लालच के चक्कर में किसी दिन तुम्हारे चाचा तुम्हें नुकसान न पहुंचा दें।"
मैं खुद तुम्हारा दाखिला करा दूंगी. यहां तुम्हारी जान को खतरा है. मुझे डर है कि प्रॉपर्टी के लालच के चक्कर में किसी दिन तुम्हारे चाचा तुम्हें नुकसान न पहुंचा दें।"
इतना डर गया था संदीप कि चाचा जी के आने से पहले रात को ही घर से बाहर निकल भागा था । पास में थोड़े से रुपए थे, धीरे धीरे वो भी खत्म होने लगे थे। कई कई दिन सिर्फ खरबूजा-ककड़ी खाकर सोया था संदीप या सस्ती ब्रेड और प्याज़ खा कर। फिर दूसरे शहर में अपने पिता के मित्र के पास रहकर छोटी-मोटी नौकरी के साथ पढ़ाई जारी रखी थी ।
जितना रोना था संदीप ने बचपन में रोया.... बहुत सख्त जान हो गया है वो धीरे धीरे । वक़्त ने बहुत कुछ सिखा दिया है ना, अब नहीं निकलते उसके आंसू । अनु के परिवार की फोटो को देख कर ना जाने आर्यन में उसे अपना चेहरा दिखने लगा । बरसों बाद आँखें नम हो आयी थी । ग़ौर से लगातार देख रहा था संदीप स्नैप को.....सर झटका और लौट आया था फिर से ख़ुद में ।
जितना रोना था संदीप ने बचपन में रोया.... बहुत सख्त जान हो गया है वो धीरे धीरे । वक़्त ने बहुत कुछ सिखा दिया है ना, अब नहीं निकलते उसके आंसू । अनु के परिवार की फोटो को देख कर ना जाने आर्यन में उसे अपना चेहरा दिखने लगा । बरसों बाद आँखें नम हो आयी थी । ग़ौर से लगातार देख रहा था संदीप स्नैप को.....सर झटका और लौट आया था फिर से ख़ुद में ।
आज उसे अपने माता-पिता याद आ रहे थे । सोचने लगा था एक बार जरूर अपने घर जाऊंगा, मम्मी पापा की फोटो ले कर आऊंगा।
उसने अनु को उसके सुझाव के लिए धन्यवाद दिया और लिखा था आगे से वह एन जी ओ में स्त्रियों की नियुक्ति करेगा....अपना सारा रेस्पोंस उसने तीन शब्दों में व्यक्त कर दिया था.
"अनु ! यू आर सुपर्ब !"
"अनु ! यू आर सुपर्ब !"
तुम उड़ीसा में हमारे एन जी ओ की एक ब्रांच क्यों नहीं शुरू कर लेती अपनी जैसी ब्रिलियंट और थॉटफुल लेडीज़ को साथ ले कर ।
पूरे 36 लाख रुपयों का होता है एक प्रोजेक्ट । हां यह बात अलग है कि हम डायरेक्टर को कुछ नहीं देते । यह ऑनरेरी पोस्ट होती है लेकिन लोगों की दुआएं मिलती है, चाहें या ना चाहें यश भी मिलता है ।
सोच लो आराम से 'घर' में डिस्कस कर लो, कोई जल्दी नहीं है।
सोच लो आराम से 'घर' में डिस्कस कर लो, कोई जल्दी नहीं है।
अनु को विश्वास ही नहीं हुआ सिर्फ तीन चार दिन की मुलाकात में संदीप उसे प्रोजेक्ट इम्प्लेमेंट करने का ऑफर दे रहा है।
पागल हो गयी थी अनु एक रोमांचक खुशी से ।
अपने कमरे से निकल कर वह सीधे गेस्ट हाउस के किचन में पहुंची। शैफ से कहा "क्या आप मेरे लिए थोड़ा हलवा बना देंगे राम नरेश जी! भगवान को भोग लगाना है।"
उसका जवाब सुने बिना ही अपने मोबाइल को उठाने के लिए भागी । आज उसकी आकांक्षाएं परवान चढ़ी थी आंखों में चमक और चाल में स्फूर्ति देखते बनती थी । एक्सायटेड थी अनु ।
पागल हो गयी थी अनु एक रोमांचक खुशी से ।
अपने कमरे से निकल कर वह सीधे गेस्ट हाउस के किचन में पहुंची। शैफ से कहा "क्या आप मेरे लिए थोड़ा हलवा बना देंगे राम नरेश जी! भगवान को भोग लगाना है।"
उसका जवाब सुने बिना ही अपने मोबाइल को उठाने के लिए भागी । आज उसकी आकांक्षाएं परवान चढ़ी थी आंखों में चमक और चाल में स्फूर्ति देखते बनती थी । एक्सायटेड थी अनु ।
उसने अनिल को टेक्स्ट किया संदीप के दिए न्यू असाइनमेंट के बारे में।
नहीं देख पाए अनिल, बहुत बिज़ी होंगे ना ।
नहीं देख पाए अनिल, बहुत बिज़ी होंगे ना ।
वह किसको बताए?
ऐसे क्षणों में इंसान बहुत कुछ बताना जताना चाहता है, शब्द चाहे कुछ भी हों,मगर भावों का उबाल उँडेल देगा इंसान।
उसने हियरिंग एड लगाकर पापा को फोन लगाया, एक किशोरी की तरह चहक उठी:
"पापा!! आई एम वेरी हैप्पी एंड एक्साइटेड !"
और एक ही सांस में पूरा वाकया सुना डाला ।गद्य रचना
ऐसे क्षणों में इंसान बहुत कुछ बताना जताना चाहता है, शब्द चाहे कुछ भी हों,मगर भावों का उबाल उँडेल देगा इंसान।
उसने हियरिंग एड लगाकर पापा को फोन लगाया, एक किशोरी की तरह चहक उठी:
"पापा!! आई एम वेरी हैप्पी एंड एक्साइटेड !"
और एक ही सांस में पूरा वाकया सुना डाला ।गद्य रचना
****रिश्ता अनजाना**** (चौथी किश्त)
आपने पढ़ा संदीप और अनु की दोस्ती ई मेल पर एक hi से शुरू हुई ,अनु को भावनात्मक संबल की जो आवश्यकता थी इस दोस्ती से पूरी हो गई ,संदीप को अनु से क्या फायदा हुआ आइये देखते हैं.......
निहाल सी हो गयी थी अनु
===============
पापा से बात होने के बाद अनु को महसूस हुआ वाइब्ज़ की ट्यूनिंग का क्या असर होता है। पापा ने सब कुछ बहुत ध्यान से सुना और समझा । संदीप के बारे में भी जानकारी ली । बहुत ख़ुश थे पापा,अनु की आवाज़ में एक अरसे के बाद चहक को महसूस करके । पापा एक सेल्फ़ मेड व्यक्ति.....ज़िंदगी को बहुत नज़दीक से देखा हुआ है पापा ने....बहुत गहरायी तक भी। उनसे भी कुछ इन्पुट्स और टिप्स मिले थे अनु को और सब से बड़ा था उनका कहना कि 'अनु बिटिया आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ है।
' आकर्षण शक्ति का सिद्धांत भी बहुत रोचक है, जीवन में जब कुछ सकारात्मक घटित होना आरम्भ होता है चारों ओर से मानो सकारात्मकता बरसने लगती है। निहाल सी हो गयी थी अनु।बहुत ख़ुश थी वह उस दिन।
अनु के होठों पर कई गानों के मुखड़े और अंतरे ख़ुद ब ख़ुद आने लगे थे।शॉवर में भी और दिनों से ज़्यादा समय लगा था उसको।
आज उसे अनायास ही ख़याल आ गया था 'विक्टोरियाज़ सीक्रेट-लव स्पेल' शॉवर जेल का जो उसकी सहेली रीना उसके लिए कुछ महीनों पहले अमेरिका से लाई थी।
उसने हल्के फ़िरोज़ी रंग की फ़्रेंच शिफ़ोन की साड़ी पहनी और गले में इंद्रधनुषी झलक देते मोटे मोतियों की माला पहन ली थी।
मरून सिल्क का ब्लाउज़ साड़ी के साथ फब रहा था। बालों को हल्का सा ढीला छोड़ कर पोनी बना ली थी। मिरर में जब ख़ुद को देखा तो उसे ख़ुद को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि जो अक्स है वह उसी का है।आज उसे ख़ुद पर बेइंतहा प्यार आने लगा था।
शाम को अनिल थके मान्दे घर पहुँचे। एक नयी उमंग और उत्साह से अनु ने उसका स्वागत किया। अनिल जल्दी से शॉवर लेकर आ गए। दार्जीलिंग चाय और कुकीज़ के साथ दोनों कई दिनों बाद इस तरह से शाम का लुत्फ़ उठा रहे थे।
"मेरा टेक्स्ट देखा क्या आप ने ?" पूछा था अनु ने।
"अरे मेसेज अलर्ट टोन तो सुनी थी लेकिन देख पाया घर आते समय ..जस्ट ग्लैन्स किया, नहीं समझ पाया और सोचा अब मिल ही रहा हूँ ना तुम से, क्यों ना तुम से ही सुनूँ और समझूँ ।" कह रहे थे अनिल।
असल में कोपोरेट जगत के टॉप पोज़ीशन वाले लोगों की प्राथमिकताएँ उनके काम से सम्बंधित ही हो जाती है, वो चाहे या ना चाहें।फिर अनिल बिलकुल वरकोहोलिक इंसान, ज़िंदगी को गोल्ज़ और टार्गट्स के अनुसार जीने वाले।कई बार अनु सोचती कि ये नौकरी जीवन जीने का एक साधन है या नौकरी ही जीवन है अनिल के लिए।
अनु ने अनिल को बड़े ही सधे हुए शब्दों में संदीप के बारे में बताया. अनु का दिल तो कर रहा था, अपने इस नए चमत्कारी दोस्त को डिस्क्राइब करने में बोलती ही जाए : उसका सेंस ऑफ़ ह्यूमर, अपनत्व भरे स्पंदन, आकाश के नीचे हरेक वस्तु और विषय पर साधिकर बोलने के क्षमता, शालीनता, ऊँची पसंद, खुले विचार, शानदार ड्रेसिंग सेंस, सुदर्शन व्यक्तिव और ना जाने क्या क्या...लेकिन उसका सिक्स्थ सेंस उसे चेता रहा था कि कहीं अनिल इस को ग़लत ना ले ले। संस्कार थे या असमंजस चाह कर भी अपने मन में उमड़ी कोमल मैत्री भावनाओं को वह अपने पति से साँझा नहीं कर सकी थी।
हाँ संदीप की एनजीओ सम्बंधित गतिविधियों के बारे में उसने विस्तार से बताया था और यह भी कि उसने अनु को एक कम्यूनिटी वेलफ़ेयर प्रोजेक्ट को शुरू करने और देखने का ऑफ़र दिया है।
"अनिल ! आप तो सुबह से शाम तक अपने ऑफ़िशियल कामों में व्यस्त हो जाते हो।मेरे लिए दिन पहाड़ सा हो जाता है। कुछ नहीं कर पाने से एक ठहराव सा महसूस करने लगी हूँ।नीरसता सी आने लगी है डेली लाइफ़ में। यदि ऐसे किसी अच्छे काम में मन लगा पाऊँ तो मेरे लिए बहुत ही सुकूनदायी होगा".-अनु कह रही थी।
अनिल के पूछने पर उसने प्रोजेक्ट की रूपरेखा उसे बतायी, करीब 50 लोगों का टीम वर्क है ,एक प्रोजेक्ट मैनेजर ,एक एकाउंटेंट, चार विजिटिंग डॉक्टर्स ,दो नर्सेज परमानेंट,20 कार्यकर्ता (जो कि पेड होंगे,हज़ार रुपए ,12 घंटे पर वीक कार्य )....चार स्कूटी और एक कार भी मिलेगी।इधर उधर जाने के लिए।इसके साथ गांव में बाँटी जाने वाली पठनीय सामग्री दिखाने लगी अनु । अच्छा ख़ासा होम वर्क कर लिया था अनु ने ।
अनिल सुन रहे थे लेकिन उनके अवचेतन मस्तिष्क में घुमड़ रहे उनके काम से सम्बंधित विचार बीच बीच में आकर उसे कहीं और ले जा रहे थे।अगर टारगेट टाइम से टास्क पूरा नहीं हुआ तो अबकी कॉल पी एम ओ से आएगी, अमुक को क्या कहे, अमुक को कैसे चेज़ करे....अमुक एक्टिविटी का विकल्प क्या हो सकता है इत्यादि ।
पूछ रही थी अनु, "क्या मैं अपनी फ्रेंड्स के साथ मिलकर यह एन जी ओ के काम को हाथ में ले लूँ ?"
साथ ही यह भी कह दिया था,"दो साल की तो बात है और जहां तक मुझे उम्मीद है आपको भी फैक्ट्री को पूरी तरह स्ट्रीम में ले आने में लगभग इतना ही समय लगने वाला है ।इससे पहले हम लोग यहां से कहीं नहीं जाने वाले।"
अनिल ने कहा " दो साल से ज्यादा समय भी लग सकता है, लेकिन एक बात का डर है, तुम्हारा यहां के किसी भी गांव वाले से इंटरेक्शन नहीं हुआ है. ये लोग ज़रा टेढ़े होते हैं, जितना तुम समझ रही हो उतना आसान नहीं। एक एक स्टॉफ मेम्बर को सलेक्ट करने में ही उनकी पॉलिटिक्स से पस्त हो जाओगी, बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा तुमको, अनु।"
फिर एक चेतावनी सी भी, "एक भी ऑपेरशन गलत हो गया अनु, तो लेने के देने पड़ सकते हैं ।"
अनिल उसे अपने तौर पर ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिफ़ कर रहे थे , "खून पसीना एक करना होगा। आए दिन फैक्ट्री में सबसे ज्यादा बवाल ये गांव वाले ही करते हैं,और तुम्हें तो उनके साथ उनके लिए ही काम करना है।"
अनु ने कहा, "आप भी तो खतरों में ही काम करते हो,अनिल ,मैंने देखी है वो कन्वेयर बेल्ट,उसने खिड़की से बाहर इशारा करते हुए कहा, कितनी लम्बी और खतरनाक है ? बीस किलोमीटर तक जाती है ,आजकल इसी की रिपेयर और रेस्टोरेशन हो रहा है ना,आपकी देख रेख में ,पर क्या मैं डरती हूँ ? नहीं ना ,बस सुबह एक बार प्रार्थना कर ईश्वर पर छोड़ देती हूं सब कुछ।मुझे भी कुछ नहीं होगा व्यर्थ में डरो मत यार प्लीज़। "
फिर ज़रा और गम्भीर हो कर उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहने लगी, "मैं ना, यहां बैठी बैठी पागल हो जाऊंगी और फिर मैं अकेली तो नहीं हूं।मेरे साथ मिसेज़ तोमर,मेरी मदद करने को राजी हैं।बस आप ग्रीन सिग्नल दे दीजिए , सब कुछ बदस्तूर होने लगेगा।"
अनु और ब्रीफ़ करने लगी थी अनिल को, "मैंने बहुत डिटेल में समझा है संदीप से। पहले मैं एक बार पूरा इलाका घूम कर आऊंगी।मुझे अगर नहीं समझ में आया तो अपने आप ही आइडिया ड्रॉप कर दूंगी, प्लीज़ आप हामी भरो ना।"
उसका उत्साह और ऊर्जा देख अनिल हैरान रह गए, मन ही मन सन्दीप को धन्यवाद दिया कि अनु यदि व्यस्त हो गयी तो वह और चैन से अपने प्रोजेक्ट की ओर कॉन्सेंट्रेट कर सकेगा। हाँ, अनु से ज़रा ऊपरी होकर कहा "ठीक है जो जी चाहे करो, तुम अब मानोगी नही ।"
अनु कहने लगी, "ऐसे नहीं अगर मन से हामी नहीं भरोगे तो मैं नहीं कर पाऊँगी । बाद में कुछ गड़बड़ हुई तो बोलोगे मैंने तो पहले ही कह दिया था।वैसे मैंने पापा से भी बात की है उन्हें तो मेरा आइडिया बहुत पसंद आ रहा है।"
" ओके बाबा, तुमसे बहस करना बेकार है. ठीक है पर एन जीओ बनाने के लिए तुमको रजिस्ट्रेशन कराने भुवनेश्वर जाना पड़ेगा । यहां के किसी लोकल व्यक्ति के नाम ही रजिस्ट्रेशन हो सकता है एड्रेस प्रूफ चाहिए होगा ।" अनिल बोले....मानो अब निकल जाना चाह रहे हैं उस सीन से।
"वह सब मैं देख लूंगी." बहुत ख़ुश थी, निहाल सी हो गयी थी अनु।
बातचीत अनु और संदीप की
***********************
अनु ने लम्बा सा टेक्स्ट किया: " हुर्रे!!हिप-हिप हुर्रे !!
अनिल ने बेमन से ही सही, पर हाँ कर दी है।एक और ख़ुशख़बरी वो अपनी फैक्टरी के हॉस्पिटल में ऑपरेशन्स के लिए आपरेशन थियेटर का इस्तेमाल करने देने के लिए भी राज़ी हो गए हैं,और तो और वेलफ़ेयर फ़ंड से भी एक लाख रुपए दिलाने का वादा किया है,हर साल।अब बताओ आगे क्या और कैसे करना है ?
बहुत व्यस्त चल रहे हैं अनिल आजकल। एक तो मंत्री जी यहीं आकर जम गए हैं,और ऊपर से फैक्ट्री की टेंशन अलग। मुझे तो कई बार लगने लगता है आखिरकार अपना मानसिक संतुलन कैसे बनाये रखते हैं अनिल। एक भी दिन रेस्ट नहीं है, ना कोई सैटरडे ना संडे.....कल सुबह की ही बात ले लो मंत्री जी ने पूरी रिपोर्ट अपने होटल में मंगा ली और टाइम भी कैसा दिया? पता है, बोले सुबह 7:35 पर आ जाना, बेचारे अनिल रात भर पढ़ते लिखते रहे।"
और वो मन्त्री.....आँखों में देखता है ,सब कुछ पढ़ लेता है इन्सान का, बिना कहे सुने,अनिल कहते हैं उसके पास डिवाइन पावर है।दरअसल सरकार की इज़्ज़त का सवाल है अच्छे अच्छे कारखाने प्राइवेट ऑर्गनाइजेशन झटक लेते हैं, बस इसी लिए सब लगे पड़े हैं ।
अनु के मैसेज पढ़ते ही संदीप फिर से सोच में खो गया कमाल लिखती है .....उसे दिखने लगी अनिल की फैक्ट्री, जो समन्दर और महानदी के संगम पर थी ,वहां पर खड़े सैकड़ों ट्रक,अब वो उस सेठ को भी इमैजिन करने लगा जो बहुत गुस्से वालाथा।साथ ही उसके खयालों में अनु का गेस्ट हाउस भी आ गया वो बरबस मुस्कुरा उठा।
उसे अपनी प्रोजेक्ट मैनेजर इतनी ही स्मार्ट चाहिए।किसी भी हाल में अब उड़ीसा पर पूरा फ़ोकस करना है।
संदीप ने लिखा था, "समझ सकता हूं किसी भी बड़े काम को करने के लिए कुछ लोगों की रात दिन की मेहनत छुपी होती है।
मैं सोचता हूं अनिल कितने लकी हैं,जिसको तुम्हारी जैसी बीवी मिली. कम से कम तुम समझती तो हो,कंप्लेन नहीं करती।"
अनु ने लिख डाला था जस का तस, "बिकरिंग करने से क्या होगा ? कुछ फायदा हो तो जरूर शिकवा शिकायत करूँ। सोचती हूँ, अनिल की हेल्प नहीं कर सकती तो कम से कम इतना तो कर सकती हूँ ना कि घर में शांति बनाए रक्खूं।
मैं समझ नहीं पाती हूं आप कैसे अपना काम मैनेज करते हैं,संदीप ! मेरा मतलब है यू एस में रहकर इंडिया के लिए काम करना मुश्किल नहीं होता होगा क्या ?"
संदीप ने कहा था, "कहीं ना कहीं दिल में इंडिया जो बसा हुआ है, वही ख़ूब अच्छे से काम करा ले जाता है।
अनु ! मुझे तुमसे एक हेल्प चाहिए. क्या तुम कल ही अपने आसपास के किसी गांव में सर्वे करके आ सकती हो?
मेरा मतलब है कि तुम्हें वहां की जनसंख्या, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति देखनी है। साथ ही स्त्री और पुरुषों का अनुपात भी. प्लीज़ इतना फेवर कर दो।"
अनु ने कहा "ठीक है, नेकी और पूछ पूछ. मैं तो खुद ही यही सोच रही थी,पहले गांव देख कर आऊँ।"
संदीप : "तो फिर कल दोपहर 12:00 बजे तक रिपोर्ट करना, मैं इंतजार करूंगा और आज के क्या प्लान हैं?
अनु : "कुछ खास नहीं. आज तो सारा दिन बस यूं ही बिता दिया।दरअसल कल आर्यन का बर्थडे है। उसकी बहुत याद आ रही थी. अगर पास होता तो कितनी धूमधाम से हम बर्थडे मनाते।
न जाने क्यों अनिल आर्यन को यहां नहीं आने देना चाहते।"
संदीप : "हां मैं समझ सकता हूं, बच्चे से दूरी क्या होती है पर तुम तो बहुत एक बहादुर माँ हो।"
अनु सोच में पड़ गई, कैसे बताऊं कि अनिल को तो मुझ पर भरोसा ही नहीं रहा कि मैं उनके छोटे बच्चे को ठीक से पाल भी पाऊंगी या नही।बेटे की याद से मन कसक उठा, उसकीआंखों मेंआंसू आ गए। दिमाग़ में ख़यालआया क्यों न गांव के बच्चों के लिए चॉकलेट्स ले ली जाएं और सॉफ्ट ड्रिन्क्स भी. बच्चों को बहुत मज़ा आएगा।
अनु ने अनिल के सेक्रेटरी को फोन लगाया और कहा, "महापात्रा जी, प्लीज़ क्या आप हमारे लिए ड्राइवर अरेंज कर देंगे?
हम सभी लेडीज़ महानदी के पास जो गांव है वहां जाना चाहते है और हां ड्राइवर ऐसा दीजिएगा जो हिंदी भी समझता हो।"
"जी मैडम ! हो जाएगा मुझे 5 मिनट दीजिए।" महापात्रा जी ने जवाब दिया था।........शेष फ़िर प्रीति मिश्रा
गद्य रचना
****रिश्ता अनजाना**** (चौथी किश्त)
****रिश्ता अनजाना**** (चौथी किश्त)
आपने पढ़ा संदीप और अनु की दोस्ती ई मेल पर एक hi से शुरू हुई ,अनु को भावनात्मक संबल की जो आवश्यकता थी इस दोस्ती से पूरी हो गई ,संदीप को अनु से क्या फायदा हुआ आइये देखते हैं.......
निहाल सी हो गयी थी अनु
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पापा से बात होने के बाद अनु को महसूस हुआ वाइब्ज़ की ट्यूनिंग का क्या असर होता है। पापा ने सब कुछ बहुत ध्यान से सुना और समझा । संदीप के बारे में भी जानकारी ली । बहुत ख़ुश थे पापा,अनु की आवाज़ में एक अरसे के बाद चहक को महसूस करके । पापा एक सेल्फ़ मेड व्यक्ति.....ज़िंदगी को बहुत नज़दीक से देखा हुआ है पापा ने....बहुत गहरायी तक भी। उनसे भी कुछ इन्पुट्स और टिप्स मिले थे अनु को और सब से बड़ा था उनका कहना कि 'अनु बिटिया आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ है।
' आकर्षण शक्ति का सिद्धांत भी बहुत रोचक है, जीवन में जब कुछ सकारात्मक घटित होना आरम्भ होता है चारों ओर से मानो सकारात्मकता बरसने लगती है। निहाल सी हो गयी थी अनु।बहुत ख़ुश थी वह उस दिन।
' आकर्षण शक्ति का सिद्धांत भी बहुत रोचक है, जीवन में जब कुछ सकारात्मक घटित होना आरम्भ होता है चारों ओर से मानो सकारात्मकता बरसने लगती है। निहाल सी हो गयी थी अनु।बहुत ख़ुश थी वह उस दिन।
अनु के होठों पर कई गानों के मुखड़े और अंतरे ख़ुद ब ख़ुद आने लगे थे।शॉवर में भी और दिनों से ज़्यादा समय लगा था उसको।
आज उसे अनायास ही ख़याल आ गया था 'विक्टोरियाज़ सीक्रेट-लव स्पेल' शॉवर जेल का जो उसकी सहेली रीना उसके लिए कुछ महीनों पहले अमेरिका से लाई थी।
आज उसे अनायास ही ख़याल आ गया था 'विक्टोरियाज़ सीक्रेट-लव स्पेल' शॉवर जेल का जो उसकी सहेली रीना उसके लिए कुछ महीनों पहले अमेरिका से लाई थी।
उसने हल्के फ़िरोज़ी रंग की फ़्रेंच शिफ़ोन की साड़ी पहनी और गले में इंद्रधनुषी झलक देते मोटे मोतियों की माला पहन ली थी।
मरून सिल्क का ब्लाउज़ साड़ी के साथ फब रहा था। बालों को हल्का सा ढीला छोड़ कर पोनी बना ली थी। मिरर में जब ख़ुद को देखा तो उसे ख़ुद को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि जो अक्स है वह उसी का है।आज उसे ख़ुद पर बेइंतहा प्यार आने लगा था।
मरून सिल्क का ब्लाउज़ साड़ी के साथ फब रहा था। बालों को हल्का सा ढीला छोड़ कर पोनी बना ली थी। मिरर में जब ख़ुद को देखा तो उसे ख़ुद को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि जो अक्स है वह उसी का है।आज उसे ख़ुद पर बेइंतहा प्यार आने लगा था।
शाम को अनिल थके मान्दे घर पहुँचे। एक नयी उमंग और उत्साह से अनु ने उसका स्वागत किया। अनिल जल्दी से शॉवर लेकर आ गए। दार्जीलिंग चाय और कुकीज़ के साथ दोनों कई दिनों बाद इस तरह से शाम का लुत्फ़ उठा रहे थे।
"मेरा टेक्स्ट देखा क्या आप ने ?" पूछा था अनु ने।
"अरे मेसेज अलर्ट टोन तो सुनी थी लेकिन देख पाया घर आते समय ..जस्ट ग्लैन्स किया, नहीं समझ पाया और सोचा अब मिल ही रहा हूँ ना तुम से, क्यों ना तुम से ही सुनूँ और समझूँ ।" कह रहे थे अनिल।
असल में कोपोरेट जगत के टॉप पोज़ीशन वाले लोगों की प्राथमिकताएँ उनके काम से सम्बंधित ही हो जाती है, वो चाहे या ना चाहें।फिर अनिल बिलकुल वरकोहोलिक इंसान, ज़िंदगी को गोल्ज़ और टार्गट्स के अनुसार जीने वाले।कई बार अनु सोचती कि ये नौकरी जीवन जीने का एक साधन है या नौकरी ही जीवन है अनिल के लिए।
अनु ने अनिल को बड़े ही सधे हुए शब्दों में संदीप के बारे में बताया. अनु का दिल तो कर रहा था, अपने इस नए चमत्कारी दोस्त को डिस्क्राइब करने में बोलती ही जाए : उसका सेंस ऑफ़ ह्यूमर, अपनत्व भरे स्पंदन, आकाश के नीचे हरेक वस्तु और विषय पर साधिकर बोलने के क्षमता, शालीनता, ऊँची पसंद, खुले विचार, शानदार ड्रेसिंग सेंस, सुदर्शन व्यक्तिव और ना जाने क्या क्या...लेकिन उसका सिक्स्थ सेंस उसे चेता रहा था कि कहीं अनिल इस को ग़लत ना ले ले। संस्कार थे या असमंजस चाह कर भी अपने मन में उमड़ी कोमल मैत्री भावनाओं को वह अपने पति से साँझा नहीं कर सकी थी।
हाँ संदीप की एनजीओ सम्बंधित गतिविधियों के बारे में उसने विस्तार से बताया था और यह भी कि उसने अनु को एक कम्यूनिटी वेलफ़ेयर प्रोजेक्ट को शुरू करने और देखने का ऑफ़र दिया है।
"अनिल ! आप तो सुबह से शाम तक अपने ऑफ़िशियल कामों में व्यस्त हो जाते हो।मेरे लिए दिन पहाड़ सा हो जाता है। कुछ नहीं कर पाने से एक ठहराव सा महसूस करने लगी हूँ।नीरसता सी आने लगी है डेली लाइफ़ में। यदि ऐसे किसी अच्छे काम में मन लगा पाऊँ तो मेरे लिए बहुत ही सुकूनदायी होगा".-अनु कह रही थी।
अनिल के पूछने पर उसने प्रोजेक्ट की रूपरेखा उसे बतायी, करीब 50 लोगों का टीम वर्क है ,एक प्रोजेक्ट मैनेजर ,एक एकाउंटेंट, चार विजिटिंग डॉक्टर्स ,दो नर्सेज परमानेंट,20 कार्यकर्ता (जो कि पेड होंगे,हज़ार रुपए ,12 घंटे पर वीक कार्य )....चार स्कूटी और एक कार भी मिलेगी।इधर उधर जाने के लिए।इसके साथ गांव में बाँटी जाने वाली पठनीय सामग्री दिखाने लगी अनु । अच्छा ख़ासा होम वर्क कर लिया था अनु ने ।
अनिल के पूछने पर उसने प्रोजेक्ट की रूपरेखा उसे बतायी, करीब 50 लोगों का टीम वर्क है ,एक प्रोजेक्ट मैनेजर ,एक एकाउंटेंट, चार विजिटिंग डॉक्टर्स ,दो नर्सेज परमानेंट,20 कार्यकर्ता (जो कि पेड होंगे,हज़ार रुपए ,12 घंटे पर वीक कार्य )....चार स्कूटी और एक कार भी मिलेगी।इधर उधर जाने के लिए।इसके साथ गांव में बाँटी जाने वाली पठनीय सामग्री दिखाने लगी अनु । अच्छा ख़ासा होम वर्क कर लिया था अनु ने ।
अनिल सुन रहे थे लेकिन उनके अवचेतन मस्तिष्क में घुमड़ रहे उनके काम से सम्बंधित विचार बीच बीच में आकर उसे कहीं और ले जा रहे थे।अगर टारगेट टाइम से टास्क पूरा नहीं हुआ तो अबकी कॉल पी एम ओ से आएगी, अमुक को क्या कहे, अमुक को कैसे चेज़ करे....अमुक एक्टिविटी का विकल्प क्या हो सकता है इत्यादि ।
पूछ रही थी अनु, "क्या मैं अपनी फ्रेंड्स के साथ मिलकर यह एन जी ओ के काम को हाथ में ले लूँ ?"
साथ ही यह भी कह दिया था,"दो साल की तो बात है और जहां तक मुझे उम्मीद है आपको भी फैक्ट्री को पूरी तरह स्ट्रीम में ले आने में लगभग इतना ही समय लगने वाला है ।इससे पहले हम लोग यहां से कहीं नहीं जाने वाले।"
साथ ही यह भी कह दिया था,"दो साल की तो बात है और जहां तक मुझे उम्मीद है आपको भी फैक्ट्री को पूरी तरह स्ट्रीम में ले आने में लगभग इतना ही समय लगने वाला है ।इससे पहले हम लोग यहां से कहीं नहीं जाने वाले।"
अनिल ने कहा " दो साल से ज्यादा समय भी लग सकता है, लेकिन एक बात का डर है, तुम्हारा यहां के किसी भी गांव वाले से इंटरेक्शन नहीं हुआ है. ये लोग ज़रा टेढ़े होते हैं, जितना तुम समझ रही हो उतना आसान नहीं। एक एक स्टॉफ मेम्बर को सलेक्ट करने में ही उनकी पॉलिटिक्स से पस्त हो जाओगी, बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा तुमको, अनु।"
फिर एक चेतावनी सी भी, "एक भी ऑपेरशन गलत हो गया अनु, तो लेने के देने पड़ सकते हैं ।"
फिर एक चेतावनी सी भी, "एक भी ऑपेरशन गलत हो गया अनु, तो लेने के देने पड़ सकते हैं ।"
अनिल उसे अपने तौर पर ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिफ़ कर रहे थे , "खून पसीना एक करना होगा। आए दिन फैक्ट्री में सबसे ज्यादा बवाल ये गांव वाले ही करते हैं,और तुम्हें तो उनके साथ उनके लिए ही काम करना है।"
अनु ने कहा, "आप भी तो खतरों में ही काम करते हो,अनिल ,मैंने देखी है वो कन्वेयर बेल्ट,उसने खिड़की से बाहर इशारा करते हुए कहा, कितनी लम्बी और खतरनाक है ? बीस किलोमीटर तक जाती है ,आजकल इसी की रिपेयर और रेस्टोरेशन हो रहा है ना,आपकी देख रेख में ,पर क्या मैं डरती हूँ ? नहीं ना ,बस सुबह एक बार प्रार्थना कर ईश्वर पर छोड़ देती हूं सब कुछ।मुझे भी कुछ नहीं होगा व्यर्थ में डरो मत यार प्लीज़। "
फिर ज़रा और गम्भीर हो कर उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहने लगी, "मैं ना, यहां बैठी बैठी पागल हो जाऊंगी और फिर मैं अकेली तो नहीं हूं।मेरे साथ मिसेज़ तोमर,मेरी मदद करने को राजी हैं।बस आप ग्रीन सिग्नल दे दीजिए , सब कुछ बदस्तूर होने लगेगा।"
फिर ज़रा और गम्भीर हो कर उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहने लगी, "मैं ना, यहां बैठी बैठी पागल हो जाऊंगी और फिर मैं अकेली तो नहीं हूं।मेरे साथ मिसेज़ तोमर,मेरी मदद करने को राजी हैं।बस आप ग्रीन सिग्नल दे दीजिए , सब कुछ बदस्तूर होने लगेगा।"
अनु और ब्रीफ़ करने लगी थी अनिल को, "मैंने बहुत डिटेल में समझा है संदीप से। पहले मैं एक बार पूरा इलाका घूम कर आऊंगी।मुझे अगर नहीं समझ में आया तो अपने आप ही आइडिया ड्रॉप कर दूंगी, प्लीज़ आप हामी भरो ना।"
उसका उत्साह और ऊर्जा देख अनिल हैरान रह गए, मन ही मन सन्दीप को धन्यवाद दिया कि अनु यदि व्यस्त हो गयी तो वह और चैन से अपने प्रोजेक्ट की ओर कॉन्सेंट्रेट कर सकेगा। हाँ, अनु से ज़रा ऊपरी होकर कहा "ठीक है जो जी चाहे करो, तुम अब मानोगी नही ।"
अनु कहने लगी, "ऐसे नहीं अगर मन से हामी नहीं भरोगे तो मैं नहीं कर पाऊँगी । बाद में कुछ गड़बड़ हुई तो बोलोगे मैंने तो पहले ही कह दिया था।वैसे मैंने पापा से भी बात की है उन्हें तो मेरा आइडिया बहुत पसंद आ रहा है।"
" ओके बाबा, तुमसे बहस करना बेकार है. ठीक है पर एन जीओ बनाने के लिए तुमको रजिस्ट्रेशन कराने भुवनेश्वर जाना पड़ेगा । यहां के किसी लोकल व्यक्ति के नाम ही रजिस्ट्रेशन हो सकता है एड्रेस प्रूफ चाहिए होगा ।" अनिल बोले....मानो अब निकल जाना चाह रहे हैं उस सीन से।
"वह सब मैं देख लूंगी." बहुत ख़ुश थी, निहाल सी हो गयी थी अनु।
बातचीत अनु और संदीप की
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अनु ने लम्बा सा टेक्स्ट किया: " हुर्रे!!हिप-हिप हुर्रे !!
अनिल ने बेमन से ही सही, पर हाँ कर दी है।एक और ख़ुशख़बरी वो अपनी फैक्टरी के हॉस्पिटल में ऑपरेशन्स के लिए आपरेशन थियेटर का इस्तेमाल करने देने के लिए भी राज़ी हो गए हैं,और तो और वेलफ़ेयर फ़ंड से भी एक लाख रुपए दिलाने का वादा किया है,हर साल।अब बताओ आगे क्या और कैसे करना है ?
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अनु ने लम्बा सा टेक्स्ट किया: " हुर्रे!!हिप-हिप हुर्रे !!
अनिल ने बेमन से ही सही, पर हाँ कर दी है।एक और ख़ुशख़बरी वो अपनी फैक्टरी के हॉस्पिटल में ऑपरेशन्स के लिए आपरेशन थियेटर का इस्तेमाल करने देने के लिए भी राज़ी हो गए हैं,और तो और वेलफ़ेयर फ़ंड से भी एक लाख रुपए दिलाने का वादा किया है,हर साल।अब बताओ आगे क्या और कैसे करना है ?
बहुत व्यस्त चल रहे हैं अनिल आजकल। एक तो मंत्री जी यहीं आकर जम गए हैं,और ऊपर से फैक्ट्री की टेंशन अलग। मुझे तो कई बार लगने लगता है आखिरकार अपना मानसिक संतुलन कैसे बनाये रखते हैं अनिल। एक भी दिन रेस्ट नहीं है, ना कोई सैटरडे ना संडे.....कल सुबह की ही बात ले लो मंत्री जी ने पूरी रिपोर्ट अपने होटल में मंगा ली और टाइम भी कैसा दिया? पता है, बोले सुबह 7:35 पर आ जाना, बेचारे अनिल रात भर पढ़ते लिखते रहे।"
और वो मन्त्री.....आँखों में देखता है ,सब कुछ पढ़ लेता है इन्सान का, बिना कहे सुने,अनिल कहते हैं उसके पास डिवाइन पावर है।दरअसल सरकार की इज़्ज़त का सवाल है अच्छे अच्छे कारखाने प्राइवेट ऑर्गनाइजेशन झटक लेते हैं, बस इसी लिए सब लगे पड़े हैं ।
और वो मन्त्री.....आँखों में देखता है ,सब कुछ पढ़ लेता है इन्सान का, बिना कहे सुने,अनिल कहते हैं उसके पास डिवाइन पावर है।दरअसल सरकार की इज़्ज़त का सवाल है अच्छे अच्छे कारखाने प्राइवेट ऑर्गनाइजेशन झटक लेते हैं, बस इसी लिए सब लगे पड़े हैं ।
अनु के मैसेज पढ़ते ही संदीप फिर से सोच में खो गया कमाल लिखती है .....उसे दिखने लगी अनिल की फैक्ट्री, जो समन्दर और महानदी के संगम पर थी ,वहां पर खड़े सैकड़ों ट्रक,अब वो उस सेठ को भी इमैजिन करने लगा जो बहुत गुस्से वालाथा।साथ ही उसके खयालों में अनु का गेस्ट हाउस भी आ गया वो बरबस मुस्कुरा उठा।
उसे अपनी प्रोजेक्ट मैनेजर इतनी ही स्मार्ट चाहिए।किसी भी हाल में अब उड़ीसा पर पूरा फ़ोकस करना है।
संदीप ने लिखा था, "समझ सकता हूं किसी भी बड़े काम को करने के लिए कुछ लोगों की रात दिन की मेहनत छुपी होती है।
मैं सोचता हूं अनिल कितने लकी हैं,जिसको तुम्हारी जैसी बीवी मिली. कम से कम तुम समझती तो हो,कंप्लेन नहीं करती।"
उसे अपनी प्रोजेक्ट मैनेजर इतनी ही स्मार्ट चाहिए।किसी भी हाल में अब उड़ीसा पर पूरा फ़ोकस करना है।
संदीप ने लिखा था, "समझ सकता हूं किसी भी बड़े काम को करने के लिए कुछ लोगों की रात दिन की मेहनत छुपी होती है।
मैं सोचता हूं अनिल कितने लकी हैं,जिसको तुम्हारी जैसी बीवी मिली. कम से कम तुम समझती तो हो,कंप्लेन नहीं करती।"
अनु ने लिख डाला था जस का तस, "बिकरिंग करने से क्या होगा ? कुछ फायदा हो तो जरूर शिकवा शिकायत करूँ। सोचती हूँ, अनिल की हेल्प नहीं कर सकती तो कम से कम इतना तो कर सकती हूँ ना कि घर में शांति बनाए रक्खूं।
मैं समझ नहीं पाती हूं आप कैसे अपना काम मैनेज करते हैं,संदीप ! मेरा मतलब है यू एस में रहकर इंडिया के लिए काम करना मुश्किल नहीं होता होगा क्या ?"
मैं समझ नहीं पाती हूं आप कैसे अपना काम मैनेज करते हैं,संदीप ! मेरा मतलब है यू एस में रहकर इंडिया के लिए काम करना मुश्किल नहीं होता होगा क्या ?"
संदीप ने कहा था, "कहीं ना कहीं दिल में इंडिया जो बसा हुआ है, वही ख़ूब अच्छे से काम करा ले जाता है।
अनु ! मुझे तुमसे एक हेल्प चाहिए. क्या तुम कल ही अपने आसपास के किसी गांव में सर्वे करके आ सकती हो?
मेरा मतलब है कि तुम्हें वहां की जनसंख्या, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति देखनी है। साथ ही स्त्री और पुरुषों का अनुपात भी. प्लीज़ इतना फेवर कर दो।"
अनु ! मुझे तुमसे एक हेल्प चाहिए. क्या तुम कल ही अपने आसपास के किसी गांव में सर्वे करके आ सकती हो?
मेरा मतलब है कि तुम्हें वहां की जनसंख्या, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति देखनी है। साथ ही स्त्री और पुरुषों का अनुपात भी. प्लीज़ इतना फेवर कर दो।"
अनु ने कहा "ठीक है, नेकी और पूछ पूछ. मैं तो खुद ही यही सोच रही थी,पहले गांव देख कर आऊँ।"
संदीप : "तो फिर कल दोपहर 12:00 बजे तक रिपोर्ट करना, मैं इंतजार करूंगा और आज के क्या प्लान हैं?
अनु : "कुछ खास नहीं. आज तो सारा दिन बस यूं ही बिता दिया।दरअसल कल आर्यन का बर्थडे है। उसकी बहुत याद आ रही थी. अगर पास होता तो कितनी धूमधाम से हम बर्थडे मनाते।
न जाने क्यों अनिल आर्यन को यहां नहीं आने देना चाहते।"
न जाने क्यों अनिल आर्यन को यहां नहीं आने देना चाहते।"
संदीप : "हां मैं समझ सकता हूं, बच्चे से दूरी क्या होती है पर तुम तो बहुत एक बहादुर माँ हो।"
अनु सोच में पड़ गई, कैसे बताऊं कि अनिल को तो मुझ पर भरोसा ही नहीं रहा कि मैं उनके छोटे बच्चे को ठीक से पाल भी पाऊंगी या नही।बेटे की याद से मन कसक उठा, उसकीआंखों मेंआंसू आ गए। दिमाग़ में ख़यालआया क्यों न गांव के बच्चों के लिए चॉकलेट्स ले ली जाएं और सॉफ्ट ड्रिन्क्स भी. बच्चों को बहुत मज़ा आएगा।
अनु ने अनिल के सेक्रेटरी को फोन लगाया और कहा, "महापात्रा जी, प्लीज़ क्या आप हमारे लिए ड्राइवर अरेंज कर देंगे?
हम सभी लेडीज़ महानदी के पास जो गांव है वहां जाना चाहते है और हां ड्राइवर ऐसा दीजिएगा जो हिंदी भी समझता हो।"
हम सभी लेडीज़ महानदी के पास जो गांव है वहां जाना चाहते है और हां ड्राइवर ऐसा दीजिएगा जो हिंदी भी समझता हो।"
"जी मैडम ! हो जाएगा मुझे 5 मिनट दीजिए।" महापात्रा जी ने जवाब दिया था।........शेष फ़िर प्रीति मिश्रा-----रिश्ता अनजाना ----
(पांचवी किश्त)
आपने पढ़ा अनु और सन्दीप की दोस्ती सोशल वर्क की तरफ़ झुक गई साथ ही वे कहीं न कहीं भावनात्मक रूप से भी जुड़ते जा रहे हैं,दोनों एक दूसरे के बारे में जानने को उत्सुक हैं आगे क्या होता है आइये देखें ........
***गाँव के लोग और अनु की मनःस्थिति***
फैक्ट्री कॉम्प्लेक्स से क़रीब 15 किलोमीटर चलने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी और अनु और उसकी सहेलियों की तरफ मुखातिब होकर बोला, "मैडम, इसके आगे गाड़ी नहीं जाती आपको पैदल ही पुल पार करना होगा ।"
पुल क्या था बिल्कुल टूटा फूटा सा ढाँचा....मुश्किल से 4 फीट की चौड़ाई वाला करीब 1 किलोमीटर का रास्ता था जिसके दोनों और किसी भी प्रकार की रेलिंग भी नहीं लगी हुई थी।
लापरवाही की भी कोई हद होती होगी ना, उसी पुलनुमा चीज़ पर गांव वाले साइकिल से भी आ जा रहे थे। इतने पतले पुल पर चलने के ख़तरे को भाँप कर तो सभी लेडीज़ ठिठक सी गई थी।
"उस पार जाया भी जाएं या नहीं,अनु ! सोच लो आपके कहने से हम लोग आ तो गए हैं, कहीं ऐसा ना हो कि हम पांचों में से कोई टपक जाए इस पानी में।" दो तीन ने खिलखिलाते हुए नारा लगाया.
"भैया!! यह पानी कितना गहरा है ?" मिसेज़ तोमर गार्ड से पूछ रही थी.
वो बोला "ज्यादा गहरा नहीं है मैडम, आप लोग धीरे धीरे चलिएगा । बस चलते वक्त इतना ख़याल रखिएगा कि आपकी नजर बस सड़क पर ही हो । पानी को मत देखियेगा, सर चकराने लगेगा।"
"अच्छा तो ये ट्रिक है," मिसेज़ सिंह फुसफुसाई, बाकी महिलाएँ भी ठठा कर हंस पड़ीं।
अनु सबसे आगे थी । उसने पीछे मुड़कर कहा, "आ जाइए ना, अगर कोई डूबने लगेगा तो मैं पक्का बचा लूँगी ।"
पुल को पार करने के बाद एक अजीब सा दृश्य दिखा। घर क्या थे ? बस झोंपड़े थे, न सड़क न कोई और सुविधा । गांव में पानी के नल नहीं थे, पता चला हर घर के आगे एक छोटा सा तालाब था । उसी तालाब में वे लोग नहाते,कपड़े धोते, उसी पानी को पिया करते और उसी से खाना भी पकाते थे । यह सब देख कर अनु और सभी स्त्रियों का मन बहुत खराब हुआ।
वह अपने साथ बच्चों को बांटने के लिए चॉकलेट्स और टोफ़्फ़ीज लाई थी ।
ड्राइवर से पूछा, "क्या आप गांव के बच्चों को एक जगह इकट्ठा कर सकते हैं ।"
"हां क्यों नहीं मैडम?" तपाक से जवाब मिला था. ड्राइवर कह रहा था, "अभी तो सीधे स्कूल चलते हैं । वहीं सारे बच्चे मिल जाएंगे । पाँचवी तक का स्कूल है मैडम ।"
स्कूल में जाकर बहुत खुशी मिली थी । सारे बच्चे मिलकर कोई अंग्रेजी राइम गा रहे थे,महिलाओं को देख कर सब ने 'गुड मॉर्निंग मैम' भी कहा था समवेत स्वर में ।
स्कूल के हैडमास्टर साहब बड़े ही मेहनती और जुझारू व्यक्ति, उत्साह के साथ बता रहे थे, "मैडम, गांव के इस स्कूल को 'इंग्लिश मीडियम' कर लिया गया है । फ़िलहाल कक्षा पांच तक है, और इस से आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं ।"
एक और अध्यापक बता रहे थे, "इसी गाँव से एक लड़की ने कुछ साल पहले आई ए एस की परीक्षा में पोजिशन हासिल की थी ।उसके प्रेरणा स्त्रोत भी हमारे हेड मास्टर साहब ही रहे हैं । कुछ भला सा नाम है लड़की का सुष्मिता दास,सभी अखबारों में उसका फ़ोटो आया था मैडम,दूरदर्शन पर भी ।
पहले टीचर थी, विवाह भी हुआ था । पति छोड़ कर विदेश भाग गया था और नहीं लौट कर आया ।"
उत्तेजित होकर आगे की कहानी सुनाने ड्राइवर स्वयमसेवक बन बैठा था, उड़िया में कथा सुनाने लगा था । अनु ने टोका, "हिंदी में बोलिये ना प्लीज़ ।"
ड्राइवर अपना सिर हिलाता, झूम झूम कर सुष्मिता का गुणगान करने लगा, "आपके साहब लोग तो जानते हैं सुष्मिता को । पहले गेस्ट हाउस में रुका करती थी, आजकल नहीं आती न जाने क्यों?शायद कहीं बाहर पोस्टिंग हो गई है ।जब भी आएगी आप ज़रूर मिलिएगा" अब थोड़ा सा जॉली बन गया था बंदा, "बिल्कुल सिंपल है वे, आप लोगों जैसी नहीं ।"
"हमलोग क्या हैं ?" ज़रा विस्तार से बताएंगे,मिसेज़ तोमर ने ड्राइवर की टांग खिंचाई शुरू कर दी । वो खींसे निपोर कर हंस रहा था । बहुत ही अपनापन था माहौल में ।
तब तक गांव के लोगों में इन पांचो महिलाओं को देखने के लिए उत्सुकता जाग गई थी । स्कूल के चारों ओर काफी भीड़ जमा हो गई थी।
उन लोगों ने बताया कि वे बस ऐसे ही गांव घूमने आई हैं ।गांव वाले तहे दिल से उनके स्वागत में दौड़ पड़े। कुछ लोग पेड़ से नारियल तोड़ लाए और नारियल पानी पीने का आग्रह करने लगे।
बेशक वे उड़िया में बोल रहे थे लेकिन उस ग़रीबी में भी उनका सत्कार और आथित्य देख कर सब विभोर हो रही थी ।
स्त्रियों ने शरीर पर वस्त्र के नाम पर सिर्फ एक साड़ी लपेटी हुई थी।
करीब एक से डेढ़ घंटा रुकने के बाद अनु ने अपना कार्य पूरा किया और वह सभी गेस्ट हाउस लौट आये । इसी बीच अनिल के कई फोन आए थे । बाद में महापात्रा जी स्वयं उन्हें देखने आए कि वे ठीक से गेस्ट हाउस पहुंच गयी हैं.
घर आकर सबसे पहले उसने संदीप को टेक्स्ट किया । जो भी जानकारी मांगी थी वो तो दी ही साथ में गांव के फोटोज़ भी शेयर किये थे ।
उस दिन सन्दीप बहुत बिजी रहा होगा तभी देर रात अनु के मैसेज देख पाया ।
आज उसके द्वारा भेजी गई फोटोज़ को बड़ा कर कर के देख रहा था वो । कितने वर्ष बीत गए ऐसे दृश्य देखे हुए । और अनु ,वो तो गांव वालों के बीच राज महिषी सी शोभित हो रही है ।
आज अचानक उसे ख़याल आया ये टंडन लोग क्या होते हैं शायद खत्री तभी इतना साफ़ रंग है । यहां आजाये तो कोई पहचान तक नहीं पाएगा कि लड़की योरोपियन है या हिंदुस्तानी । आज अनु से डिटेल में उसके बारे में जानने का मन हुआ था संदीप का ।
संदीप ने अपनी जिज्ञासा प्रकट भी कर दी थी । उसने अनु को लिखकर पूछ ही डाला, उसकी स्कूलिंग,कॉलेज और उसकी हॉबीज के बारे में।
अनु ने लिखा था, " हे भगवान ! आख़िर मेरी मेहनत का कुछ भी फ़ायदा नहीं हुआ संदीप ! आपने मेरा काम नहीं देखा, लगता है मेरी फोटो पर ही अटक गए। हा हा हा चलो अपने बारे में बता देती हूं, मेरी पढ़ाई लखनऊ के मशहूर आई टी कॉलेज से हुई और मेरी हॉबी फ्रेंड्स बनाना है एक्चुअली यह मेरे जींस में है । आपको बताती हूं मेरी नानी विंसेंट चर्चिल की पेन फ्रेंड थी आज भी नानी ने उनके लेटर्स सम्भाल कर रखे हैं ।बस अब चिट्ठी बाजी का जमाना नहीं है, इसलिए मैंने आपसे इंटर्नेट पर दोस्ती क़ायम कर ली है.....और हां मेरी मां दिल्ली यूनिवर्सिटी की पढ़ी हुई हैं।मेरे डैड बहुत ही सिंपल इंसान है, लेकिन मॉम को पसंद आ गए।
इसलिए वह मुझे,मम्मा और मेरी हिटलर नानी को झेलने को मजबूर हैं हा... हा... हा।" कितनी बातूनी हो चली थी अनु अचानक ।
फिर लिखा था, " किसी से कहना नहीं पर आपको बताए देती हूं, मेरे नाना पंडित नेहरू के फैमिली फिजिशियन थे और कुछ जानना है ? बता दीजिए ।
"और हाँ मैं अपने आप में कुछ खास नहीं हूं, इसलिए फैमिली की बात कर रही हूं । अनिल को तो आप जानते ही हो । अगर नहीं जानते तो Linked-in से देख लीजिएगा । वैसे आजकल किसी भी उड़िया पेपर को उठा कर देख लो मंत्री जी के साथ रोज़ साहब बहादुर की फोटो निकलती है।"........शेष फिर प्रीति मिश्रा
-----रिश्ता अनजाना ----
(पांचवी किश्त)
(पांचवी किश्त)
आपने पढ़ा अनु और सन्दीप की दोस्ती सोशल वर्क की तरफ़ झुक गई साथ ही वे कहीं न कहीं भावनात्मक रूप से भी जुड़ते जा रहे हैं,दोनों एक दूसरे के बारे में जानने को उत्सुक हैं आगे क्या होता है आइये देखें ........
***गाँव के लोग और अनु की मनःस्थिति***
फैक्ट्री कॉम्प्लेक्स से क़रीब 15 किलोमीटर चलने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी और अनु और उसकी सहेलियों की तरफ मुखातिब होकर बोला, "मैडम, इसके आगे गाड़ी नहीं जाती आपको पैदल ही पुल पार करना होगा ।"
पुल क्या था बिल्कुल टूटा फूटा सा ढाँचा....मुश्किल से 4 फीट की चौड़ाई वाला करीब 1 किलोमीटर का रास्ता था जिसके दोनों और किसी भी प्रकार की रेलिंग भी नहीं लगी हुई थी।
लापरवाही की भी कोई हद होती होगी ना, उसी पुलनुमा चीज़ पर गांव वाले साइकिल से भी आ जा रहे थे। इतने पतले पुल पर चलने के ख़तरे को भाँप कर तो सभी लेडीज़ ठिठक सी गई थी।
पुल क्या था बिल्कुल टूटा फूटा सा ढाँचा....मुश्किल से 4 फीट की चौड़ाई वाला करीब 1 किलोमीटर का रास्ता था जिसके दोनों और किसी भी प्रकार की रेलिंग भी नहीं लगी हुई थी।
लापरवाही की भी कोई हद होती होगी ना, उसी पुलनुमा चीज़ पर गांव वाले साइकिल से भी आ जा रहे थे। इतने पतले पुल पर चलने के ख़तरे को भाँप कर तो सभी लेडीज़ ठिठक सी गई थी।
"उस पार जाया भी जाएं या नहीं,अनु ! सोच लो आपके कहने से हम लोग आ तो गए हैं, कहीं ऐसा ना हो कि हम पांचों में से कोई टपक जाए इस पानी में।" दो तीन ने खिलखिलाते हुए नारा लगाया.
"भैया!! यह पानी कितना गहरा है ?" मिसेज़ तोमर गार्ड से पूछ रही थी.
वो बोला "ज्यादा गहरा नहीं है मैडम, आप लोग धीरे धीरे चलिएगा । बस चलते वक्त इतना ख़याल रखिएगा कि आपकी नजर बस सड़क पर ही हो । पानी को मत देखियेगा, सर चकराने लगेगा।"
"अच्छा तो ये ट्रिक है," मिसेज़ सिंह फुसफुसाई, बाकी महिलाएँ भी ठठा कर हंस पड़ीं।
अनु सबसे आगे थी । उसने पीछे मुड़कर कहा, "आ जाइए ना, अगर कोई डूबने लगेगा तो मैं पक्का बचा लूँगी ।"
"भैया!! यह पानी कितना गहरा है ?" मिसेज़ तोमर गार्ड से पूछ रही थी.
वो बोला "ज्यादा गहरा नहीं है मैडम, आप लोग धीरे धीरे चलिएगा । बस चलते वक्त इतना ख़याल रखिएगा कि आपकी नजर बस सड़क पर ही हो । पानी को मत देखियेगा, सर चकराने लगेगा।"
"अच्छा तो ये ट्रिक है," मिसेज़ सिंह फुसफुसाई, बाकी महिलाएँ भी ठठा कर हंस पड़ीं।
अनु सबसे आगे थी । उसने पीछे मुड़कर कहा, "आ जाइए ना, अगर कोई डूबने लगेगा तो मैं पक्का बचा लूँगी ।"
पुल को पार करने के बाद एक अजीब सा दृश्य दिखा। घर क्या थे ? बस झोंपड़े थे, न सड़क न कोई और सुविधा । गांव में पानी के नल नहीं थे, पता चला हर घर के आगे एक छोटा सा तालाब था । उसी तालाब में वे लोग नहाते,कपड़े धोते, उसी पानी को पिया करते और उसी से खाना भी पकाते थे । यह सब देख कर अनु और सभी स्त्रियों का मन बहुत खराब हुआ।
वह अपने साथ बच्चों को बांटने के लिए चॉकलेट्स और टोफ़्फ़ीज लाई थी ।
ड्राइवर से पूछा, "क्या आप गांव के बच्चों को एक जगह इकट्ठा कर सकते हैं ।"
"हां क्यों नहीं मैडम?" तपाक से जवाब मिला था. ड्राइवर कह रहा था, "अभी तो सीधे स्कूल चलते हैं । वहीं सारे बच्चे मिल जाएंगे । पाँचवी तक का स्कूल है मैडम ।"
स्कूल में जाकर बहुत खुशी मिली थी । सारे बच्चे मिलकर कोई अंग्रेजी राइम गा रहे थे,महिलाओं को देख कर सब ने 'गुड मॉर्निंग मैम' भी कहा था समवेत स्वर में ।
स्कूल के हैडमास्टर साहब बड़े ही मेहनती और जुझारू व्यक्ति, उत्साह के साथ बता रहे थे, "मैडम, गांव के इस स्कूल को 'इंग्लिश मीडियम' कर लिया गया है । फ़िलहाल कक्षा पांच तक है, और इस से आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं ।"
ड्राइवर से पूछा, "क्या आप गांव के बच्चों को एक जगह इकट्ठा कर सकते हैं ।"
"हां क्यों नहीं मैडम?" तपाक से जवाब मिला था. ड्राइवर कह रहा था, "अभी तो सीधे स्कूल चलते हैं । वहीं सारे बच्चे मिल जाएंगे । पाँचवी तक का स्कूल है मैडम ।"
स्कूल में जाकर बहुत खुशी मिली थी । सारे बच्चे मिलकर कोई अंग्रेजी राइम गा रहे थे,महिलाओं को देख कर सब ने 'गुड मॉर्निंग मैम' भी कहा था समवेत स्वर में ।
स्कूल के हैडमास्टर साहब बड़े ही मेहनती और जुझारू व्यक्ति, उत्साह के साथ बता रहे थे, "मैडम, गांव के इस स्कूल को 'इंग्लिश मीडियम' कर लिया गया है । फ़िलहाल कक्षा पांच तक है, और इस से आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं ।"
एक और अध्यापक बता रहे थे, "इसी गाँव से एक लड़की ने कुछ साल पहले आई ए एस की परीक्षा में पोजिशन हासिल की थी ।उसके प्रेरणा स्त्रोत भी हमारे हेड मास्टर साहब ही रहे हैं । कुछ भला सा नाम है लड़की का सुष्मिता दास,सभी अखबारों में उसका फ़ोटो आया था मैडम,दूरदर्शन पर भी ।
पहले टीचर थी, विवाह भी हुआ था । पति छोड़ कर विदेश भाग गया था और नहीं लौट कर आया ।"
उत्तेजित होकर आगे की कहानी सुनाने ड्राइवर स्वयमसेवक बन बैठा था, उड़िया में कथा सुनाने लगा था । अनु ने टोका, "हिंदी में बोलिये ना प्लीज़ ।"
ड्राइवर अपना सिर हिलाता, झूम झूम कर सुष्मिता का गुणगान करने लगा, "आपके साहब लोग तो जानते हैं सुष्मिता को । पहले गेस्ट हाउस में रुका करती थी, आजकल नहीं आती न जाने क्यों?शायद कहीं बाहर पोस्टिंग हो गई है ।जब भी आएगी आप ज़रूर मिलिएगा" अब थोड़ा सा जॉली बन गया था बंदा, "बिल्कुल सिंपल है वे, आप लोगों जैसी नहीं ।"
पहले टीचर थी, विवाह भी हुआ था । पति छोड़ कर विदेश भाग गया था और नहीं लौट कर आया ।"
उत्तेजित होकर आगे की कहानी सुनाने ड्राइवर स्वयमसेवक बन बैठा था, उड़िया में कथा सुनाने लगा था । अनु ने टोका, "हिंदी में बोलिये ना प्लीज़ ।"
ड्राइवर अपना सिर हिलाता, झूम झूम कर सुष्मिता का गुणगान करने लगा, "आपके साहब लोग तो जानते हैं सुष्मिता को । पहले गेस्ट हाउस में रुका करती थी, आजकल नहीं आती न जाने क्यों?शायद कहीं बाहर पोस्टिंग हो गई है ।जब भी आएगी आप ज़रूर मिलिएगा" अब थोड़ा सा जॉली बन गया था बंदा, "बिल्कुल सिंपल है वे, आप लोगों जैसी नहीं ।"
"हमलोग क्या हैं ?" ज़रा विस्तार से बताएंगे,मिसेज़ तोमर ने ड्राइवर की टांग खिंचाई शुरू कर दी । वो खींसे निपोर कर हंस रहा था । बहुत ही अपनापन था माहौल में ।
तब तक गांव के लोगों में इन पांचो महिलाओं को देखने के लिए उत्सुकता जाग गई थी । स्कूल के चारों ओर काफी भीड़ जमा हो गई थी।
उन लोगों ने बताया कि वे बस ऐसे ही गांव घूमने आई हैं ।गांव वाले तहे दिल से उनके स्वागत में दौड़ पड़े। कुछ लोग पेड़ से नारियल तोड़ लाए और नारियल पानी पीने का आग्रह करने लगे।
उन लोगों ने बताया कि वे बस ऐसे ही गांव घूमने आई हैं ।गांव वाले तहे दिल से उनके स्वागत में दौड़ पड़े। कुछ लोग पेड़ से नारियल तोड़ लाए और नारियल पानी पीने का आग्रह करने लगे।
बेशक वे उड़िया में बोल रहे थे लेकिन उस ग़रीबी में भी उनका सत्कार और आथित्य देख कर सब विभोर हो रही थी ।
स्त्रियों ने शरीर पर वस्त्र के नाम पर सिर्फ एक साड़ी लपेटी हुई थी।
करीब एक से डेढ़ घंटा रुकने के बाद अनु ने अपना कार्य पूरा किया और वह सभी गेस्ट हाउस लौट आये । इसी बीच अनिल के कई फोन आए थे । बाद में महापात्रा जी स्वयं उन्हें देखने आए कि वे ठीक से गेस्ट हाउस पहुंच गयी हैं.
करीब एक से डेढ़ घंटा रुकने के बाद अनु ने अपना कार्य पूरा किया और वह सभी गेस्ट हाउस लौट आये । इसी बीच अनिल के कई फोन आए थे । बाद में महापात्रा जी स्वयं उन्हें देखने आए कि वे ठीक से गेस्ट हाउस पहुंच गयी हैं.
घर आकर सबसे पहले उसने संदीप को टेक्स्ट किया । जो भी जानकारी मांगी थी वो तो दी ही साथ में गांव के फोटोज़ भी शेयर किये थे ।
उस दिन सन्दीप बहुत बिजी रहा होगा तभी देर रात अनु के मैसेज देख पाया ।
आज उसके द्वारा भेजी गई फोटोज़ को बड़ा कर कर के देख रहा था वो । कितने वर्ष बीत गए ऐसे दृश्य देखे हुए । और अनु ,वो तो गांव वालों के बीच राज महिषी सी शोभित हो रही है ।
आज अचानक उसे ख़याल आया ये टंडन लोग क्या होते हैं शायद खत्री तभी इतना साफ़ रंग है । यहां आजाये तो कोई पहचान तक नहीं पाएगा कि लड़की योरोपियन है या हिंदुस्तानी । आज अनु से डिटेल में उसके बारे में जानने का मन हुआ था संदीप का ।
संदीप ने अपनी जिज्ञासा प्रकट भी कर दी थी । उसने अनु को लिखकर पूछ ही डाला, उसकी स्कूलिंग,कॉलेज और उसकी हॉबीज के बारे में।
अनु ने लिखा था, " हे भगवान ! आख़िर मेरी मेहनत का कुछ भी फ़ायदा नहीं हुआ संदीप ! आपने मेरा काम नहीं देखा, लगता है मेरी फोटो पर ही अटक गए। हा हा हा चलो अपने बारे में बता देती हूं, मेरी पढ़ाई लखनऊ के मशहूर आई टी कॉलेज से हुई और मेरी हॉबी फ्रेंड्स बनाना है एक्चुअली यह मेरे जींस में है । आपको बताती हूं मेरी नानी विंसेंट चर्चिल की पेन फ्रेंड थी आज भी नानी ने उनके लेटर्स सम्भाल कर रखे हैं ।बस अब चिट्ठी बाजी का जमाना नहीं है, इसलिए मैंने आपसे इंटर्नेट पर दोस्ती क़ायम कर ली है.....और हां मेरी मां दिल्ली यूनिवर्सिटी की पढ़ी हुई हैं।मेरे डैड बहुत ही सिंपल इंसान है, लेकिन मॉम को पसंद आ गए।
इसलिए वह मुझे,मम्मा और मेरी हिटलर नानी को झेलने को मजबूर हैं हा... हा... हा।" कितनी बातूनी हो चली थी अनु अचानक ।
फिर लिखा था, " किसी से कहना नहीं पर आपको बताए देती हूं, मेरे नाना पंडित नेहरू के फैमिली फिजिशियन थे और कुछ जानना है ? बता दीजिए ।
"और हाँ मैं अपने आप में कुछ खास नहीं हूं, इसलिए फैमिली की बात कर रही हूं । अनिल को तो आप जानते ही हो । अगर नहीं जानते तो Linked-in से देख लीजिएगा । वैसे आजकल किसी भी उड़िया पेपर को उठा कर देख लो मंत्री जी के साथ रोज़ साहब बहादुर की फोटो निकलती है।"........शेष फिर प्रीति मिश्रागद्य रचना
उस दिन सन्दीप बहुत बिजी रहा होगा तभी देर रात अनु के मैसेज देख पाया ।
आज उसके द्वारा भेजी गई फोटोज़ को बड़ा कर कर के देख रहा था वो । कितने वर्ष बीत गए ऐसे दृश्य देखे हुए । और अनु ,वो तो गांव वालों के बीच राज महिषी सी शोभित हो रही है ।
आज अचानक उसे ख़याल आया ये टंडन लोग क्या होते हैं शायद खत्री तभी इतना साफ़ रंग है । यहां आजाये तो कोई पहचान तक नहीं पाएगा कि लड़की योरोपियन है या हिंदुस्तानी । आज अनु से डिटेल में उसके बारे में जानने का मन हुआ था संदीप का ।
संदीप ने अपनी जिज्ञासा प्रकट भी कर दी थी । उसने अनु को लिखकर पूछ ही डाला, उसकी स्कूलिंग,कॉलेज और उसकी हॉबीज के बारे में।
अनु ने लिखा था, " हे भगवान ! आख़िर मेरी मेहनत का कुछ भी फ़ायदा नहीं हुआ संदीप ! आपने मेरा काम नहीं देखा, लगता है मेरी फोटो पर ही अटक गए। हा हा हा चलो अपने बारे में बता देती हूं, मेरी पढ़ाई लखनऊ के मशहूर आई टी कॉलेज से हुई और मेरी हॉबी फ्रेंड्स बनाना है एक्चुअली यह मेरे जींस में है । आपको बताती हूं मेरी नानी विंसेंट चर्चिल की पेन फ्रेंड थी आज भी नानी ने उनके लेटर्स सम्भाल कर रखे हैं ।बस अब चिट्ठी बाजी का जमाना नहीं है, इसलिए मैंने आपसे इंटर्नेट पर दोस्ती क़ायम कर ली है.....और हां मेरी मां दिल्ली यूनिवर्सिटी की पढ़ी हुई हैं।मेरे डैड बहुत ही सिंपल इंसान है, लेकिन मॉम को पसंद आ गए।
इसलिए वह मुझे,मम्मा और मेरी हिटलर नानी को झेलने को मजबूर हैं हा... हा... हा।" कितनी बातूनी हो चली थी अनु अचानक ।
फिर लिखा था, " किसी से कहना नहीं पर आपको बताए देती हूं, मेरे नाना पंडित नेहरू के फैमिली फिजिशियन थे और कुछ जानना है ? बता दीजिए ।
"और हाँ मैं अपने आप में कुछ खास नहीं हूं, इसलिए फैमिली की बात कर रही हूं । अनिल को तो आप जानते ही हो । अगर नहीं जानते तो Linked-in से देख लीजिएगा । वैसे आजकल किसी भी उड़िया पेपर को उठा कर देख लो मंत्री जी के साथ रोज़ साहब बहादुर की फोटो निकलती है।"........शेष फिर प्रीति मिश्रागद्य रचना
रिश्ता अनजाना(छठी किश्त)
एमिली और संदीप
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एमिली ने संदीप को लैपटॉप पर झुक कर आँखें गड़ाए देखा तो मुस्कुराते हुए कहा, "क्या हो रहा है?"
एमिली पांच फीट आठ इंच, सुंदर शारीरिक सौष्ठव की स्वामिनी गेंहुए रंग की युवती थी, जिसका मुख्य आकर्षण उसकी नीली आँखे और सुनहरे बाल थे. तीखे नयन नक्श उसने अपने राजपूत पिता से पाये थे और आँखे व बाल अपनी जर्मन मूल
की अमरीकी माँ से. आर्य नस्ल की साक्षात प्रतिमा सी थी एमेली उर्फ़ अमृता कुमारी सिसोदिया. मेवाड़ के सिसोदिया सूर्यवंशी क्षत्रिय होते हैं, महाराणा प्रताप इसी वंश से थे.
इस इंडो अमेरिकन लड़की की हिंदी का कोई जवाब नहीं था जिसका श्रेय वह बॉलीवुड सिनेमा को देती थी. दुनिया इधर की उधर हो जाए पर मज़ाल है कि एक भी मूवी छूट जाए. हिंदी मूवीज़ के लिए दीवानगी उसके पापा से उसमें आ गयी थी.
भूपालसागर के पास किसी ज़माने मे उसके दादा जी की एक छोटी सी रियासत हुआ करती थी, वंश परम्परा के अनुसार वे राणा जी कहलाते थे. उस राजसी शान शौकत को आज राजवंश के लोग मेंटेन करने की कोशिश करते हैं,जैसे धीमी आवाज़ में बात करना मगर ठसक भी, सम्माजनक शब्दों का प्रयोग लेकिन बाज़ वक़्त दहकता सा ग़ुस्सा, मानवीय संवेदना से हटकर पॉलिश्ड ढंग से इंकार करना , कीमती पोशाकें और आभूषण, टेबल पर खाने के अपने क़ायदे और सलीक़े लेकिन अजीब सा जिद्दीपन, खान पान में रईसी लेकिन हद से ज़्यादा बर्बादी, कुछ ऐसे एटिकेट्स जो महज़ हिपोकरेसी लगते है ...फ़ेहरिस्त लम्बी ना हो जाए इसलिए फिर से मूल कहानी को लौट आते हैं.
नामालूम क्यों एमिली के पिता राणा रतन सिंह को बचपन से ही ये सब रास नहीं आते थे. यह बात अलग है कि समस्त दिखावों से परे, ख़ालिस रॉयल होने के बिम्ब हमारे राणाजी में दिख ही जाते थे जैसे शानदार ड्रेसिंग सेंस, साहित्य-कला-संगीत में रुचि, हथियारों और अच्छी गाड़ियों का शौक़,सोचों में गहरायी और व्यवहार में शालीनता, अप्रतिम संवेदनशीलता,उदारता और क्षमाशीलता, ग़लत के लिए क्रोध इत्यादि अभिजात्यता वाले गुण. आनुवांशिकता का प्रभाव बहुत गहरा होता है ना.
प्रिंस रतन सिंह को छुटपन में पढ़ाई के लिए ग्वालियर भेज दिया गया था और बाद में इंग्लैंड. यहीं उनकी मुलाक़ात एन्नी उर्फ़ अनीता से हो गई(एमिली की मां). रतन सिंह ने अनीता को पहली बार किसी फंक्शन में एंकरिंग करते देखा था. एन्नी मानो स्वर्ग की अप्सरा थी. प्रिंस को तो वह साक्षात रानी पद्मिनी का अवतार नज़र आ रही थी...तन भी सुंदर मन भी सुंदर. उस सुंदरता की मूरत का बोलने का अन्दाज़ कुछ जुदा ही था. बोला हुआ हर शब्द मानो दिल की गहराई से निकला आ रहा हो ऊपर उठ कर. बीच बीच में गेटे (प्रसिद्ध जर्मन साहित्यकार) और ग़ालिब की चंद लाइनों का इस्तेमाल करते हुए एन्नी मूल कार्यक्रम के प्रस्तुतीकरण को और रोचक बना रही थी. उसने परम्परागत विक्टोरियन गाउन पहन रखा था, बिलकुल सफ़ेद जो कि उसके उज्जवल तन की शोभा को और बढ़ा रहा था,उसके बदन पर सजी सर्पेंट जवेलरी का, चाहे रूबी और हीरों जड़ी चोकर हो या इन्हीं जवाहिरातों वाला सांपनुमा ब्रेस्लेट और उसी डिज़ाइन की अँगूठी.उसी पैटर्न का हेयरबैंड और हैरपिन्स उस विक्टोरियन केश सज्जा को और खिला रहे थे. अनीता अपने अंतरंग और बहिरंग से हमारे प्रिंस जैसे अभिजात्य को अपने मोहपाश में पहली नज़र में बांध ले गई थी ......बात सिर्फ़ भव्यता और बेशक़ीमती होने की नहीं थी बल्कि सौंदर्य बोध और सुरुचि की थी. मर मिटा था रतन सिंह, अजेय सिसोदिया ने ना जाने क्यों उस फिरंगन राजकुमारी के सामने अपने दिल और रूह के सारे हथियार गिरा दिए थे.
कुछ ऐसा था एन्नी में कि प्रिंस रतन ना जाने क्यों उसकी जानिब खिंचे चले जा रहे थे. प्रिंस अपना सारा ग़ुरूर एक तरफ़ रख कर
जब एन्नी से मिलने ग्रीन रूम में पहुँचा तो उसे आश्चर्य हुआ एन्नी तो मानो उसका इंतज़ार कर रही थी. स्पंदनों के इस चमत्कार को शब्द किसी और अवसर पर दूँ इस मनसा को पेंडिंग रख कर कहानी को आगे बढ़ाएँ, आपको ज्यादा मजा आएगा.
दोनों की रुचियाँ और पसंद एक सी अच्छा जीवन, अच्छे चिंतन और हर अच्छेपन के लिए ललक. रतन के लिए एन्नी अनिता बन गयी थी. दोनों ने मैत्री को विवाह संस्था से अधिक महत्व दिया था और इस दोस्ती का दोनों के लिए अनुपम उपहार एमिली के रूप में मिला. एमिली के जन्मोपरांत दोनों अमेरिका आकर बस गए थे.
एमिली के पापा जब भी उसे देख कर बहुत खुश होते तो कहते कि तुम बिल्कुल मेरी मां पर गई हो, तुम्हारे सारे संस्कार भी हम राजपूतों के हैं किंतु एमिली अपने को अमेरिकन ही मानती थी. उसकी गलती भी क्या, हमेशा से तो इसी देश में रही हिंदुस्तान तो बस एक परी कथा जैसा था ना उसके लिए. कभी कभी जाती थी उदयपुर और भूपालसागर. एक तो वहाँ का मौसम एमिली को रास नहीं आता और दूसरा वहां के तौर तरीके भी बहुत अलग थे. हां एक बात और, उसकी दादीसा उसे बहुत प्यार करती थी. उनके मन में यह दुख अवश्य था कि बेटा उन से दूर चला गया था किंतु एमिली के लिए वे बार बार अमेरिका का चक्कर लगाती रहती थी.
सन्दीप से उसकी मुलाकात जर्मनी के एक छोटे से शहर डॉर्मस्टेड में हुई थी. दोनों को किसी कॉन्फ्रेंस में पेपर प्रेजेंट करने थे. दोनों ही नये थे और बहुत घबरा रहे थे. एक दूसरे को तसल्ली दे रहे थे कि सब ठीक हो जाएगा. आज याद आता है तो हंसी आ जाती है. कॉन्फ्रेंस के बाद दोनों सड़कों पर घूमने निकल जाते. महलों और म्यूज़ियम वाला शहर था डोर्मस्टेड. वहीं ही सड़कों पर वायलिन बजाता इवानोव टकरा गया था एमिली से.
सन्दीप आज भी हंसता है,उस बात पर,लेकिन तब वो और सन्दीप मुश्किल से तेईस चौबीस वर्ष के थे पर उनकी दोस्तीआज तक कायम है।सन्दीप को जर्मन बोलना और लिखना आता था. एमिली शायद इस बात से प्रभावित हुई थी लेकिन कहीं न कहीं उसे संदीप का भारतीय होना भी उसको भा गया था.
एमिली ने कहा, "फ़ॉर गॉड सेक, यह मत कह देना कि तुम को इस इंडियन लड़की से प्यार हो गया, क्योंकि तुम्हारी एक तरफ़ा लव स्टोरी मैं नहीं झेल सकती हूं,और अभी मेरे पास बिल्कुल भी टाइम नहीं है सीरियसली."
सन्दीप बोला, "अपना भूल गई उस रूसी फ़ंटूस को....क्या नाम था उसका इवानोव. उसको जब तुमने छोड़ा था तो किसके कंधे पर सर रख के रोई थी......और मैं तुम्हें बता दूं कि पहले दिन से ही मैं जानता था कि वह ईडियट तुम्हारे लायक नहीं है लेकिन तुम्हें तो उसकी वायलिन और बिंदास होना पसंद आ गया था ना. अरे, कहां तुम एक डबल FRCS ENT एंड General Surgeon जिसको राजसीपन,मेधा, करुणा और उदारता विरासत में मिली है और कहां वो सड़क छाप आवारा ग़ैर ज़िम्मेदार फ़ंटूस. बहुत दिनों तक टेक्स्ट कर कर के मेरी जान खाता रहा था." सन्दीप मुस्कुराया, "बेचारा राजकुमारी के प्यार में पागल इश्क का मारा-आवारा हूँ टाइप्स."
एमिली ने कहा, " लेकिन बच्चा, वो कम से कम मेरे साथ तो था, तुम्हारी तरह सब हवा में तो नहीं." फिर आगे बात बढ़ते हुए कहने लगी थी, "अरे ! शादीशुदा लेडी है तुम्हारे चक्कर में नहीं आने वाली."
संदीप बोला, " तुम भी ना जाने मुझे क्या समझती हो ? मुझे तो वो बस अच्छी लगती है ."
"कित्ती ?" चिढ़ती सी पूछ रही थी एमिली.
"बस तेरे ज़ित्ती" कम कैसे रहे संदीप भी.
"चलो तब ठीक है,चलेगा" एमिली ने उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए कहा, "चलें अब...आज एयर शो देखने जाने वाले थे हम. तुम्हारे इस नए इंडियन चार्म के चक्कर में कहीं हमारा शो छूट न जाए." फिर आगे कुछ चिढ़ाने कुछ चिंता के भाव लिए एमिली ऊवाच हुआ था, " वैसे लड़की बहुत खूबसूरत है और इनोसेंट सी भी लगती है. लेकिन हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती ना संदीप साहब."
संदीप भी कम नहीं, कब चूकने वाला था, "तुमको तो सभी इनोसेंट लगते हैं एक सन्दीप गर्ग को छोड़कर. छोड़ो, कुछ खाओगी ?"
"क्रैश डाइट पर हूं, पाँच किलो वजन जो कम करना है, अगले महीने उड़ीसा के बीच पर जाना है जरा फ़िगर ठीक कर लूं."
ना जाने क्या क्या सोचती एमिली बोले जा रही थी.
" तुम भी ना, एमिली ! कमाल हो." संदीप बोल पड़ा.
"हाँ तभी तो तुम्हें झेल पाती हूँ" एमिली ने तपाक से जवाब दिया. सन्दीप बोला," थैंक्स एमिली ! ये सच है कि तुमसे प्यारा दोस्त इस दुनिया में मिलना मुश्किल है."
"अब चलें भी", एमिली ने घर और कार की चाभी उठा ली थी.
"हां बिल्कुल, अभी आया."संदीप ने रेस्पांड किया.
दोनों की यह नोकझोंक बहुत कुछ अनकहा कहे जा रही थी.
कितने रूप बसते हैं हमारे इस केवल एक लगने वाले स्वरूप में.
थोड़ी देर में वो दोनों रोमांचक हवाई शो देख रहे थे. एमिली बहुत उत्साहित थी. मैदान में दौड़ दौड़ कर पायलेट्स के साथ तस्वीरें खिंचवा रही थी उसने संदीप को भी अपने पास घसीटा, "एक ग्रुप फ़ोटो हो जाए."
संदीप ने ये तस्वीरें अनु को भी भेजी थी. जाने क्यों अनु को कुछ मजा नहीं आया, उसने बस इतना ही पूछा कि एमिली तुम्हारी गर्लफ्रेंड है.
संदीप का जवाब आया था कि गर्लफ्रेंड नहीं पर बेस्ट फ्रेंड है.
"ओ के" अनु थोड़ी देर के लिए ऑफलाइन हो गई थी.
थोड़ी देर बाद ही अनु ने अपने विचारों को झटका, उसे क्या करना है संदीप और एमिली के बारे में जानकर. उसे ऐसे नहीं लिखना चाहिए था.लेकिन अब तो देर हो चुकी थी .बात तब की है जब डिलीट बटन नहीं हुआ करता था, एक बार जो छप गया सो छप गया....शेष फिर प्रीति मिश्रा
गद्य रचनारिश्ता अनजाना(गद्य रचना)
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सातवीं किश्त
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(हाँ तो कहाँ थे हम लोग....... सन्दीप और एमिली काफ़ी गहरे दोस्त हैं साथ ही समाज के भले के लिए पूर्ण जागरूक भी.)
एमिली और संदीप की बात चल रही थी.
एयर शो से लौटते समय रिलैक्स होने के लिए दोनों एक पब में बैठ गए. दोनों ही जापानी ब्रांड्स के शौक़ीन, एमिली को 'रोकु' जिन पसंद तो संदीप सिंगल मॉल्ट 'हिबिकी'का शौक़ीन. अपने अपने पसंद के ड्रिंक्स का ऑर्डर देकर बतियाने लगे थे दोनों. सिप करते हुए एमिली ने बताया, "कल मैं जर्सी सिटी के लिए निकल रही हूं .अगले हफ्ते कई सारे अपॉइंटमेंट्स और सर्जरीज़ लाइंड अप है."
संदीप अपनी फ़ेवरिट विस्की काफ़ी दिनों बाद पी रहा था. एमिली की कम्पनी उसे हल्के से सूरूर में ले आई थी. संदीप बोला, "चलोगी तुम भी अफ्रीका ?"
"न बाबा सुना है पुलिस को साथ लेकर घूमना पड़ता है, बंद गाड़ी में. माई डिअर फ्रेंड! अकेली हूँ मां बाप की,कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती."
"बकवास नहीं, ज़रा यह देखो," सन्दीप ने टैब खोल लिया था, किसी गांव की तस्वीर थी. लोगों के शरीर कंकाल मात्र दिख थे. छोटे बच्चों के शरीर पर बस सिर ही नज़र आ रहे थे.
"इनके गांव में न पीने को पानी है ना ही इनके पास खाना है, न ही अन्य कोई सुविधाएं. हमारी कम्पनी इस गांव को गोद लेना चाहती है. क्या तुम यह काम करना चाहोगी ? तुम्हारे जाने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा इस गांव को एक डॉक्टर भी मिल जाएगा,"
एमिली हंस पड़ी, "तो आप हैं इस गांव के गॉडफादर."
संदीप ने मुस्कुराते हुए कहा "नहीं तुम ही होवोगी इसकी गॉड मदर."
"देखना ऐसा ही होता रहा तो एक दिन महात्मा गाँधी जैसे मशहूर हो जाओगे." चुटकी ले रही थी एमिली.
सन्दीप बोला, "मैं गाँधी जैसा नहीं हूं .मैं गांधी हूँ."
एमिली उसके घने बालों की तरफ़ इशारा करके अपने मोती से दाँत दिखा रही थी.
"वाह जी वाह ! क्या बात है ?"एमिली को मज़ा आने लगा था.
वह बोली "एक ना एक दिन तुम मेरा करियर खत्म करके ही रहोगे. तुमको ऐसे ऐसे आइडियाज़ आते कहाँ से हैं ?"
संदीप ने खुशी जताते हुए कहा, "तो इसका मतलब क्या मैं यह समझूं कि तुम मेरे साथ अफ़्रीका चल रही हो."
" जी हां, मगर यहां के अपने काम खत्म करने के बाद. बहुत दिनों से इंडिया भी नहीं गई हूँ, दादीसा बार बार बुला रही है.सुना है मेरे लिए कोई राजकुमार खोजा गया है."
"बेचारा बदकिस्मत !" हंसते हुए बोला संदीप, "तुम्हें झेलना आसान नहीं, राजकुमारी."
एमिली मुस्कुराई "अरे ! उसे मारो गोली."
उसने अपना मोबाइल खोला और संदीप को एक फ़ोटो दिखाई. "ये देखो, रेडियो जॉकी है. सनम नाम है, इंडियन है. यहीं न्यू जर्सी में स्ट्रगल कर रहा है. सच मे मैं इसे पसंद करने लगी हूँ अभी हम टिंडर पर हैं."
संदीप अपना सिर पकड़ कर बैठ गया था "एमिली किसी दिन बहुत बुरा फंसोगी. प्लीज़ ऐसे ऐरे गैरे लड़के तुम्हें मिल कहां जाते हैं ? और अगर तुम्हें कलाकारों को एडमायर करने का इतना ही शौक है तो खुद क्यों नहीं सीख लेती गाना, बजाना या पेंटिंग.
वैसे छोटे से गले और कान की सर्जरी करना भी तो अपने आप में एक आर्ट है. इन फालतू लड़कों के चौखटे प्लीज मुझे मत दिखाया करो. लगता है, ऑन्टी अंकल की दी हुई आज़ादी ठीक नहीं. मां बाप हैं ना तुम्हारे, इसलिये कोई वैल्यू नहीं....उनसे पूछो ज़रा जिनका कोई नहीं." सन्दीप अब खुंद सा हो गया था.
"अपनी लाइफ के साथ खेल रही हो एमिली तुम्हारी इन हरकतों से डर जाता हूं मैं."
टाँग खिंचाई जारी रखते हुए एमली बोली "इस बार इकत्तीस की हो जाऊंगी. पैसा बहुत है मेरे पास, बस एक अदद प्यार की तलाश में घूम रही हूँ." बड़ बड़ा रही थी शैतानी से एमिली, "कुछ भी कर के इस साल पक्का शादी कर लेनी है."
"घर चलें, तुमको अच्छी ख़ासी चढ़ गई है." संदीप का मूड खराब हो गया था.
"तो कब चलना है अफ्रीका ? टिकट भेजोगे...." एमिली जोर जोर से हँसने लगी.
"अरे यार मजाक कर रही हूं, कोई भी नहीं है मेरी लाइफ में, अकेली हूं. "अकेली हूं.....मैं इस दुनिया में कोई साथी है तो मेरा साया" गाने के बोल बदल कर एमिली खूब खुल के गा रही थी नशे में. " रुक भी जाओ प्लीज़ ! रुको ना मेरे लिए माई डियर फ्रेंड !"बड़बड़ाती हुई संदीप के पीछे पीछे हो ली थी वह. संदीप के बेचैन दिल को चैन आने लगा था.
अनु और अनिल
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रात्रि के 11 बजे थे. मंत्री जी की आँखों में नींद नहीं थी. उन्होने अनिल से कहा था कि आप जाइये मैं थोड़ी देर में होटल चला जाऊँगा.
"नहीं सर! मै आपको छोड़ कर नहीं जा सकता." अनिल अनुनय से बोल रहा था.
मंत्री जी मुस्कुराए. उन्होंने अपने बैग से करीब बीस पच्चीस लिफ़ाफ़े निकाले और पाँच सौ के नोटों की एक गड्डी भी अनिल को थमा दी. बोल रहे थे मंत्री जी, "फ़टाफ़ट नोट डालिये बरखुरदार" और इनविटेशन कार्ड्स की लिस्ट निकाली और कहने लगे, "मैं तब तक नाम लिखता हूँ."
अनिल को हैरत से देखते हुए हंस पड़े, "आप ठहरे सलेक्टेड और हम हैं एलेक्टेड. ये सब करना पड़ता है.अपनी कुर्सी बचाने को."
10 मिनट में दोनों कार में बैठ चुके थे.
अनु अभी भी जाग रही थी,कम्प्यूटर पर झुकी हुई कुछ काम कर रही थी .अनिल से बोली, "बारह घंटे का यह टाइम का फ़र्क बहुत दुखी कर देता है."
"अनिल को सफ़ाई क्यों दे रही हूं ?" उसने अपने आप से पूछा.
अनिल ने पूछा "आर्यन कैसा है ? आज तो एक बार भी बात नहीं हो पाई."
"ठीक है आज आपको मिस कर रहा था."
"ओह!काश उसके बर्थ डे पर हम पहुंच पाते."
लाइट बंद करो अनु ! बहुत देर हो गई है.
अनु बोली, "बस एक दो पेपर्स के प्रिन्ट आउट्स लेने हैं कल बैंक जाना है. अभी स्कैन करके भेज दूँ संदीप को,नहीं तो पूरा काम एक दिन टल जाएगा."
अनिल ने कुछ न कहा और बोले, "चाहो तो लैम्प जला लो लाइट्स ज़रा हल्की कर दो थकान से आंखें खुल नहीं पा रही हैं."
अनु ने सोचा, यह भी कोई जीना है ? बस गधे की तरह काम में लगे रहो और आकर सो जाओ. दूसरी तरफ संदीप है, क्या नहीं करता ? एनजीओ चलाता है, अपनी आईटी कंपनी है. फिर भी जब देखो,उसके पास अपने लिए टाइम है. कभी लिखता है....एयर शो देखने गया था. उसके पहले हफ्ते नियाग्रा फॉल्स की पिक्चर्स भेज रहा था. अभी अफ्रीका जाने वाला है....और एक हम लोग, जब से विवाह हुआ है बस काम ही काम. अनिल भी क्या करें, अपने जॉब का तक़ाज़ा है. अगर कोई बेकार सा मंत्री मिल जाए तो बीच में ही ट्रांसफर पक्का है. अनजाने ही आजकल तुलना करने लगती है अपनी और संदीप की. हम कितना ही रैशनलायज़ करे परिस्थितियों और प्रारब्ध के नाम से और कितना भी झटकना चाहे विचारों को किंतु बहुत दफ़ा वश नहीं चलता. उसने सोचा कल से रेगुलर मेडिटेशन करूंगी, सुना हैं ध्यान लगाने से व्यर्थ के विचार परेशान नहीं करते.
अनिल ने सोचा अच्छा हुआ,अनु किसी काम में लग गई वरना अकेले परेशान ही जाती. अच्छा ख़ास एक्सपोजर भी मिलेगा, बस कल एक कमरा खुलवा देता हूँ यहीं जहां अपना काम कर सके ये लोग.
मंत्री जी से कह कर शानदार इनोगरेशन कराता हूँ. एक पंथ दो काज, अनु का भला और चुनाव से पहले एक बड़ा प्लेटफॉर्म मन्त्री जी को भी मिल जाएगा. फ़िर ये बड़े आदमी दिल के भी बड़े , अगर गांव वालों को कुछ देना चाहें तो दे भी दें. अनिल को सोचते सोचते नींद आ गई. उन्होंने बिस्तर पर अनु को ढूंढा और कहा, "सो भी जाओ. ऐसा लग रहा है जैसे कल कोई परीक्षा है तुम्हारी,यार छोड़ो भी, बाकी काम कल दिन में कर लेना ना."
अगले दिन महापात्रा जी आये और गेस्टहाउस के पीछे वाली बिल्डिंग की चाभी अनु को देकर बोले," ये साहब ने आपको देने को कहा है. अनु खुशी से फूली न समाई, अपनेआप में पूरा फ्लैट था, जिसको अनिल ने ऑफिस में कन्वर्ट कर दिया था. मेज पर एप्पल का कंप्यूटर था. उसके नाम की तख्ती भी लगी थी, साथ ही में उसके नाम के विज़िटिंग कार्ड्स भी प्लास्टिक बॉक्स में रखे हुए थे. उसने कभी नहीं सोचा था कि अनिल इतना अच्छा रिस्पॉन्स देंगे वो भी बिना कहे.....वो खुशी से रो पड़ी.
महापात्रा जी ने कहा कि आज सुष्मिता दास मैम भी आयेंगी, उन्होंने आपके एनजीओ की डायरेक्टर बनना स्वीकार कर लिया है. यह ख़बर उसे सुरक्षा का एहसास दे रही थी.
आज खुशी से उसके पांव ज़मीन पर न थे. भावातिरेक में उसने पहली दफ़ा संदीप के नम्बर पर वीडियो कॉल भी ट्राई कर ली. बहुत इक्सायटेड थी अनु,अपना ऑफिस संदीप को दिखाना चाहती थी. उधर से कोई जवाब नहीं आया. सोचने लगी थी क्यों नहीं रेस्पांड किया संदीप ने. अभी तो कोई १० बजे होंगे रात के....सोया तो नहीं होंगे संदीप. अनायास ही एमिली के बारे में सोचने लगी थी अनु. पूछ रही थी ख़ुद से, क्या होने लगा है उसको.
वह अपने पापा को फ़ोन करने की सोच रही थी कि महापात्रा जी बोले, " मैम पहले पूरी बिल्डिंग का जायज़ा तो ले लीजिए,किसी ज़माने में ये सेठ जी याने, फ़ैक्टरी के पूर्व मालिक डालमिया साहब का बंगला था."........शेष फिर प्रीति मिश्रा
****रिश्ता अनजाना****
(प्रिय मित्रोंआपको शॉर्ट में कहानी याद दिला देती हूँ)
अनु एक सीनियर आई ए एस ऑफिसरअनिल की पत्नी है,उड़ीसा के गेस्ट हाउस में बैठी ख़ाली अनु काफ़ी बोर होती है, इधरअनिल की व्यस्तता बढ़ती गई तो उन्हें लगा कि अनु बहुत परेशान है.
पिछले कुछ सालों से अनु की हियरिंग प्रॉब्लम उसे आम इंसान से काट रही है, अनु की हालत देख कर अनिल ने उसे सुझाव दिया वह चाहे तो इंटरनेट को अपना दोस्त बना ले,अपना कितना भी समय बिता सकती है चाहे कुछ पढ़े या किसी से दोस्ती कर ले.
यहीं परअनु को संदीप मिला जो कि यू एस एड से इंडिया मेंअपने कई एन जीओ चलाता है.
दरअसल संदीप दुनिया के हर कोने के लिए काम करता है,उसे अपने सोशलवर्क के लिए अवार्ड भी मिले हैं. संदीप के साथ मिलकर अनु के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हुए आइए अब देखें कि अनुऔर अनिल के जीवन में क्या चल रहा है....
अनिल और अनु
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यह तुम्हारा अमरीका वाला नया फ़्रेंड तो हमारे स्वयंभू माफ़िया मिश्रा से भी ज्यादा खतरनाक है". कहने के साथ ही अनिल हंस पड़े, और हँसी में थोड़े से तंज का भी पुट आ गया, "भई, इसका काटा तो पानी तक नहीं माँगता."
"आर यू जेलस ?....हूँ कुछ जलने की बू आ रही है."
चुहलबाज हो रही थी अनु.
"क्यों नहीं होना चाहिए जेलस, भई तहे दिल से चाहा है हमने अपनी लाइफ़ पार्ट्नर को." अनिल ने कहा.
"ऐसी कोई बात नहीं है समझे ! मियाँ समझदार मजनू." शरमा गई थी अनु.
"अरे यार इस दुनिया में खाली मैं ही तो इतना बेवकूफ नहीं जो तुम्हारे चक्कर में रहे, बहुतेरे है मुझ जैसे". अनिल ने भी प्यार भरा वार कर दिया था.
अनु नक़ली ग़ुस्सा ओढ कर बोल रही थी, "अनिल आप हद से आगे बढ़ रहे हैं."
"नहीं सच कह रहा हूं आठ से लेकर साठ तक के जितने भी नर नारी मेरी जान को देखते हैं मेरे प्रान हर लेते हैं. लेकिन मेमसाब होंगे लाखों चाहनेवाले आपके लेकिन हम सा दिलवाला कोई नहीं होगा, गारंटी है."
"अरे हटो जाने दो," अनु ने बात का रूख बदलते हुए कहा "आप क्या कह रहे थे मंत्री जी की 'मंत्राणी जी' दूजी देवी जी आने वाली है."
अनिल ने कहा "हां और उनकी डिमांड है कि बिहार से एक किलो सत्तू मंगा दिया जाय. सुना है वो नाश्ते में सिर्फ सत्तू के पराठे और आम का सूखा आचार खाती हैं."
अनु खिलखिलाई, "हा हा हा ! तो अब आई ए एस साहब 'सत्तू एक खोज' अभियान में लगने वाले हैं."
अनिल ने एक आइआइटीयन आइ ए एस होने के अलावा मनीला के ऐसियन इन्स्टिट्यूट ओफ़ मनेजमेंट से एमबीए भी था. वरक़ोंहोलिक अनिल ने एक गो गेटर के रूप में सरकारी और ग़ैर सरकारी दोनों ही हलकों में नाम कमा रखा था.
अनिल मस्ती में कह रहा था, "हां भाई नौकरी करनी है तो बॉस और बॉस के अपनों की हाजरी तो बजानी होगी."
हक़ीक़त यह थी कि मंत्री जी बहुत ही सहज सरल और उदार इंसान थे...अनिल का उनका और उनके अपनों का ख़याल रखना
उसके शालीन व्यवहार और संवेदनशील स्वभाव के कारण था ना कि चापलूसी जो इस देश की ब्यूरोकरेसी का युग धर्म बन गया है.
अनु ने बड़े फ़लसफ़ाना अन्दाज़ में कहा "कई बार सोचती हूं होम मेकर होकर कितनी सुखी हूं मैं."
अनिल निहाल हो कर बोल रहा था, "हां वह तो है, खुश मैं भी हूं और जब तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान देखता हूं तो मेरी सारी थकन दूर भाग जाती है और कुछ कुछ भी होने लगता है."
अनु अनिल के पास आकर बैठ गई और उनके कंधे पर अपना सिर रख दिया. आज उसे लग रहा था जैसे उसका खोया हुआ ख़ज़ाना मिल गया था.
एमिली अपने अस्पताल में
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एमिली ने सहानुभूति पूर्वक अपने सामने बैठे हुए नवजात शिशु के बेहद डरे हुए माता-पिता से कहा,
"हां तो आप बताइए आपको पहली बार कब लगा कि बच्चा सुन नहीं पा रहा है"
बच्चे के पिता ने बोलना शुरू किया "डॉक्टर कल की ही बात है हम लोग ट्रेन से सफर कर रहे थे,तभी अचानक बगल से एक दूसरी ट्रेन सीटी बजाते हुए गुजरी. हमारे केबिन में एक दूसरा बच्चा भी सो रहा था...करीब तीन चार महीने का था. वह जोर जोर से रोने लगा लेकिन हमारा बेटा चैन से सोता रहा. उस वक्त ही मुझे एहसास हो गया था कहीं ना कहीं मेरे बेटे में कोई कमी
है. ट्रेन से उतरते ही घर आकर मैंने किचन में जाकर एक स्टील की प्लेट उठाई और चम्मच से जोर जोर से टकराना शुरू किया. मेरे हाथों में दर्द होने लगा डॉक्टर ! लेकिन मेरे बेटे पर कोई भी रिएक्शन नहीं हुआ. बताते बताते उसकी आवाज भर्रा गई थी शब्द लड़खड़ाने लगे थे.
डॉ एमिली ने कहा, "आई एम वेरी सॉरी कि आपका बच्चा सुन नहीं सकता लेकिन यकीन मानिए आज की तारीख में ना सुनना कोई बड़ी बीमारी नहीं है इसको हम इलाज के द्वारा ठीक कर सकते हैं."
बच्चे की माँ ने पूछा "लेकिन डॉक्टर इसकी वजह क्या है?".
एमिली ने कहा "ठीक ठीक बता पाना मुश्किल है पर मैं अभी सब समझाती हूँ".
"सबसे पहले ये जान लीजिए कि आपका बच्चा ठीक हो जाएगा, आप बहुत सही वक्त पर इसे हमारे पास ले आयी हैं."
उसने अपने पेशेंट के माता पिता को धैर्य बंधाते हुए कहा" मैंने नाइन मंथ्स तक के बच्चों के कॉक्लियर इम्प्लांट किए हैं इनके रिजल्ट बहुत अच्छे हैं,पिछले तीस सालों से ये इम्प्लांट प्रोफाउंड डेफनेस में यूज़ होता है, जितनी कम उम्र होगी उतनी जल्दी बच्चा बोलना भी सीख लेता है,आप घबराइए नहीं.
"मैं ऑडिटरी ब्रेन स्टेमप्लांट भी करती हूं जो कि ब्रेन की स्टेम से डिवाइस को जोड़ देता है ,ये भी बहुत अच्छा है, दुनिया में बहुत कम जगहों पर ही होता है. मैं आपको करीब ऐसे पच्चीस तीस बच्चों से मिलवा सकती हूं और उनके पेरेंट्स से बात करा सकती हूं जो इस इलाज से लाभान्वित हुए हैं. आप जब अच्छी तरह से निश्चिंत हो जाइए तब अपने बच्चे को सर्जरी के लिए मेरे पास लेकर आइए."
"लेकिन डॉक्टर मेरे बच्चे के साथ ही ऐसा क्यों हुआ".
बच्चे की मां आंखों में आंसू भर कर बोली.
एमिली ने बच्चे को प्यार से गुदगुदाते हुए और उसकी मां के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "कोई भी मुसीबत बिना बताए ही आती है और फिर यकीन मानो मेरे रहते हुए भी यह मुसीबत कोई मुसीबत ही नहीं है मैं आपके बेटे को सुनने और बोलने लायक बना दूंगी
"सोचो कितने सारे लोग होते हैं जिन को हार्ट अटैक आ जाता है वे लोग भी तो अपनी सर्जरी कराते हैं ना, और उसमें जिसके बाद उनका जीवन नार्मल हो जाता है और आपके बेबी को अस्सी नब्बे साल तक जीना है आपका नाम रोशन करना है".
फिर यह कोई बड़ा ऑपरेशन नहीं है कान के पीछे जो है हॉलो स्पेस है वहां मशीन फिट कर देंगे,उसने कम्प्यूटर स्क्रीन पर आपरेशन के एक एक स्टेप को समझाते हुए कहा "बच्चे को कोई दिक्कत नहीं होगी मेरा विश्वास करिए."
"जी डॉक्टर आपके भरोसे के सहारे ही तो मैं यहां आई हूं". बच्चे की माँ आशान्वित होकर कह रही थी.
"लेकिन डॉक्टर क्या मैं जान सकती हूं इसके कारण क्या है?" उसने दोबारा पूछा.
एमिली "इसका एक बड़ा कारण जेनेटिक है. दूसरी तरफ पटाखे, टेलिफोन ,डिस्को,किसी भी किस्म का नॉइज़ पोल्युशन भी किसी हद तक जिम्मेदार है अक्सर मेनिनजाइटिस से बाद में बहरापन आ जाता है और माँ को रूबैला हो जाना,कान का बहना ,नज़दीकी रिश्तों में शादी आदि बहुत से कारण हैं".
वो आगे बोली,
"मनुष्य के शरीर के बहुत ही अनोखे अंगों में से एक है कान और इस अनोखी चीज को बचाना बहुत जरूरी है, क्योंकि एक बार सुनाई देने की क्षमता चली जाए तो उसे नेचुरली कोई वापस नहीं ला सकता. ये बहुत दुःख की बात है."
एक बात और मैं आपको कुछ दवाइयों के नाम बताती हूँ जैसे क्लोरोक्वीन, स्टेटपटोमाईसीन, एस्पिरिन ,जेंटामाइसिन, लेसीक्स जैसी कुछ ऐसी दवाइयां है जिनके साइड इफ़ेक्ट्स सुनने की शक्ति को खराब कर देते हैं. ऑटोटॉक्सिटी ना हो तो यह दवाइयां ली जा सकती हैं, लेकिन आप अपने बच्चे के डॉक्टर को यह अवश्य बताएं ताकि आप का डॉक्टर इन दवाइयों के बारे में उपयुक्त निर्णय ले सके."
थैंक्यू, डॉक्टर ! उस युवा जोड़े में अब थोड़ा धैर्य आ गया था. उनके चेहरे पर सुकून था.
एमिली उन तीनों को बाहर तक छोड़नेआयी. उसका मन ऐसे में माँ-बाप की बेबसी से हमेशा ही द्रवित हो जाता है.
अब उसे अनु की याद आ गई. मन ही मन निश्चय कर उसने अनु को एक लम्बा मेल किया, जिसमें उसकी बीमारी की पूरी हिस्ट्री माँगी थी
अभी एक मिनट भी गुज़रा न था अनु के मैसेजेस आने लगेऔर सभी मेडिकल रिपोर्ट्स भी.
उसकी सारी रिपोर्ट्स प्रिन्ट करके वो अपने सीनियर डॉक्टर से डिस्कस करने चल पड़ी.
अनु उड़ीसा में
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आज अनु को पूरा भरोसा हो गया था कि कोई भी कार्य या घटना किसी न किसी मक़सद से जुड़ी होती है. अगर वह उडीसा ना आती तो वह जीवन की एक बहुत बड़ी सच्चाई से रूबरू न हो पाती.
सोचने लगी कौन होती है एमेली मेरी ? क्या रिश्ता है उस से ? सात समंदर पार बैठी लड़की मेरी परवाह कर रही है, मेरे लिए सोच रही है और कुछ करना चाह रही है.
अनु भी पूरे जोश के साथ अपने काम में जुट गई. दिन कैसे भाग रहे थे उसे पता ही नहीं चल रहा था. धूप में घूम घूम कर उसका गोरा रंग झुलस कर टेन हो गया था. उमस वाली गरमी से पसीने के कारण उसे दिन में चार पांच बार नहाना पड़ता था. हमेशा एयर कंडीशन के आगे पड़ी रहने वाली सुबह से सुष्मिता और मिसेज़ तोमर के साथ गांवों का दौरा करने निकल पड़ती हैं. यह ऊर्जा में बढ़ोतरी अस्तित्व का अवदान थी जो उसके मनोवैज्ञानिक बूस्ट का परिणाम थी.
सोच रही थी अनु, "बस यही तमन्ना है कि यहां से जाने से पहले यदि गांव की जीवन शैली में कुछ परिवर्तन कर सके तो उसका जीवन सफ़ल हो जाए."
ऑफिस का स्टोर सैनिटरी पैड्स,पैम्फलेट्स और गर्भनिरोधक सामग्रियों से भर गया था. सोचती थी अनु, कैसी विडम्बना है यह कि मानव के लाभ के लिए हुई ये खोजें और आविष्कार नहीं पहुँच पाए हैं उन तक जिन्हें इनकी सब से ज़्यादा ज़रूरत है.
उड़िया बोलने वाली ग्रामीण स्त्रियां जब इस्त्री किये हुए कपड़ों में रोज़ सुबह उसे नमस्कार कहती तो सुनाई न पड़ने के बावजूद भी अनु को अंदर तक तसल्ली की अनुभूति होती.
लोग मदद के लिए इस कदर आगे आएंगे अनु ने सोचा तक नहीं था.पचास हज़ार का चेक तो वो मिश्रा दे गया जो हर ट्रक से पैसा वसूलने को बदनाम था.
हाथ जोड़कर बोला था मिश्रा, "मैडम जी कोई माने या न माने मैं भी गरीबों के वास्ते ही लड़ रहा हूँ बस मेरा तरीका आप लोगों से ज़रा अलग है. मैंने जो कुछ झेला और देखा है वह भी तो अलग ही है."
अनु ने कहा, " मिश्रा जी हमारी सी बी डी वर्कर्स को कोई परेशानी न हो यह देखना आप की जिम्मेदारी है."
"बिल्कुल मैडम हमारा भी अपना परिवार है आप निश्चिन्त रहिये."
जाते जाते दरवाज़े पर रुक गया वो,"हाँ बोलिये कुछ कहना चाह रहे हैं."
अनु के पूछने पर बोला " ये मज़दूर जो प्रोजेक्ट के काम में लगे हैं निहायत ही ग़रीब हैं. आप तो इलाक़े में धूम फिर चुकी हैं, साहेब को ज़रा कनविंस करिए मज़दूरों की दिहाड़ी में इज़ाफ़ा करने के लिए. आपकी बात नहीं टालेंगे साहेब."
अनु मुस्कुरा पड़ी थी.
सुष्मिता भी कल कह रही थी, "अनु जी जी करता है नौकरी छोड़ कर इसी एन जीओ के कार्य को देश के कोने कोने में आगे बढाऊँ."
आजकल अखबार वाले भी जब तब उन दोनों की फोटो छाप देते हैं. अबकी उसे टाइटिल दिया था "पानी वाली मैडम". अंदर तक भीग गई थी अनु एक सुखद अनुभूति से, इसलिए नहीं कि उसे कोई उपमा या उपाधि मिली थी बल्कि इसलिए कि अच्छे काम का रेकग्निशन हो रहा था.
अख़बारों और पत्रिकाओं में पहले भी उसकी तस्वीरें छपी थी किन्तु एक नोबेल कार्य से जुड़कर मन को जो शान्ति आती है उसको बयां करने के लिए अनु के पास शब्द नहीं थे.
पूरे छः महीने गुज़र गए थे. जो टारगेट था पूरा हुआ,बल्कि उससे बहुत ज्यादा परिवार नियोजन के ऑपरेशंस हो गए थे. महिलाएँ ही नहीं पुरुष भी आगे आ रहे हैं थे. लोगों की सोचों और अप्रोच में बदलाव आया था, इस बात से वह बहुत खुश थी.
गंगा और हडसन : कुछ भारत-कुछ अमेरिका
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गंगा और हडसन में बहुत सा पानी बह गया था. समय बीता....कारख़ाने की चिमनी से उठता धुंआ मानो अनिल और उसकी टीम की कामयाबी की दास्तान बयान कर रहा था. पौ फटने से पहले ही हेड ऑफिस दिल्ली के फ़ोन बार बार घनघना रहे थे. प्रोडक्शन शुरू हो गया था. मंत्री जी भी अनौपचारिक रिपोर्ट पल पल की ले रहे थे यद्यपि औपचारिक सूचनाओं का संवहन ब्यूरोकरेसी के बीच हो रहा था. रेकोर्ड समय में एक बंद हुई सिक फ़ैक्टरी का वापस सुव्यवस्थित ढंग से नवारंभ कर देना और वह भी सार्वजनिक क्षेत्र की प्रबंधन सम्बंधी सारी जटिलताओं के साथ, कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी.
"बस अब कुछ ही दिनों की बात है अनु ! मैनेजमेंट टीम पूरे फ़ोरम में है और सब कुछ संभाल रही है.मेरा काम था मंत्री जी के इस फ़ार्मर्स फ़्रेंडली ड्रीम प्रोजेक्ट को सफलता पूर्वक इम्प्लमेंट करके योग्य प्रोफ़ेशनल्स के हाथों सुपुर्द करके वापस पेरेंट पोस्टिंग पर लौट जाना. बस अब और यहाँ कंटिन्यू करने का मन नहीं."
" क्या खराबी थी इस पोस्टिंग में ?"अनु बोली.
"मेरी समझ में तो यह हमारी लाइफ का सब से अच्छा कार्यकाल रहा और इस जगह ने हमें बहुत कुछ दिया है. मुझे मेरी पहचान मिली और संदीप जितना अच्छा दोस्त." अनु कहते कहते रुक सी गई. उसने देखा एक ही पल में अनिल के चेहरे पर कई भाव आए और गए उन्हें अंदर से अच्छा नहीं लगा था किंतु वह कुछ ना बोले.
थोड़ी देर में सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा उन्होंने कहा, "मैं आर्यन के बारे में सोच रहा था छोटा सा बच्चा हमसे दूर हो गया है."
अब अनु चुप थी. सही तो कह रहे थे अनिल. उस को क्या हो गया है ? वह अपनी दुनिया में इतनी मग्न है कि अपने बेटे का ख़याल तक नहीं आता जैसा आना चाहिए. ऐसा क्यों हो रहा है आख़िर ? क्या एक साथ इंसान काफी चीजें नहीं संभाल सकता ?"
अनिल बोले, "इस प्रोजेक्ट के सफल प्रारम्भ का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाएगा. उसी के साथ तुम भी अपने एन जी ओ का कोई फ़ंक्शन प्लान कर लो और उसमें सारा काम अपनी सेकंड लाइन को सुपुर्द करने की घोषणा कर दो. हम अधिक से अधिक तीन महीने और हैं यहाँ."
" हां ये ठीक रहेगा".अनु ने सहमति जताई.
" मैं यह चाहता हूं कि तुम संदीप और एमिली को भी बुलाओ आखिरकार यह एन जी ओ उनका ही तो ब्रेन चाइल्ड है उन्हें अवश्य उपस्थित होना ही चाहिए और महसूस करना चाहिए कि उनकी परिकल्पना को कितना सुंदर मूर्त रूप दिया है तुम ने."
अनु ख़ुशी से झूम उठी थी. यह ख़ुशी कई सुखद बातों का मिश्रण थी, संदीप और एमिली से मिलने का एक्सायट्मेंट, पेरेंट पोस्टिंग याने दिल्ली लौट जाने पर कलेजे के टुकड़े आर्यन का साथ और अपने इस एन जी ओ के काम को पूरे देश में फैलाने के ख़्वाब को ताबीर देने के मौक़े जो उसका दिल्ली स्टेशंड होना मुहय्या करा सकेगा.
"पता नहीं संदीप आना भी चाहेगा या नहीं". अनु बोली.
अनिल ने पूछा "क्यों ऐसी क्या दिक्कत हो सकती है."
"उसके कुछ पर्सनल इश्यूज हैं. जिसकी वजह से वह इंडिया आना अवॉइड करता है."
" अरे वो तुम्हारा दोस्त है. बुला कर तो देखो जरूर आएगा" अनिल ने हंसकर कहा "और ख़ासकर जब कि भविष्य में भी तुम्हें मिल कर काम करना है."
अनिल अचानक ना जाने कहाँ खो गए. पुरुष कितना ही दावा करे कि वह स्त्री से शारीरिक और मानसिक दृष्टि से मज़बूत होता है, कम भावुक होता है, कम सपने देखता है लेकिन रिश्तों में असुरक्षा की भावना उसमें स्त्रियों से कम नहीं होती. एक तरफ़ वह संदीप और अनु के रिश्ते को एक स्वस्थ मैत्री मानता था और उसे बहुत आदर देता था दूसरी ओर अनायास ही संदीप के सामने ख़ुद को बौना महसूस करने लगता था जबकि वह किसी भी लिहाज़ से उस से कमतर नहीं था, हाँ भिन्न अवश्य था.
स्त्री अपने साथी के मन को भाँप लेने में बड़ी कुशल होती है, अनु ने अनिल के सारे भाव विभाव पढ़ समझ डाले थे.
अनु बोली, "आपने महाभारत पढ़ी है ना. यूं तो द्रौपदी के पाँच पति देव थे लेकिन वह सबसे ज्यादा निकटता बिना शर्त और स्वार्थ के कृष्ण के साथ पाती थी, क्योंकि कृष्ण के साथ लेने और देने के सम्बंध नहीं बल्कि हर स्थिति में कुछ ना कुछ दिव्य पाने के सम्बंध थे.जैसे कृष्ण द्रौपदी के मित्र थे वैसे ही संदीप भी मेरा फ्रेंड है समझे टंडन साहब." अनु अनिल के साथ लता सी लिपट गयी थी और दुष्टता पर उतर आई थी. धीरे से अनु अनिल के कान में फुसफुसा रही थी, "आप तो मेरे तन मन धन के साथी हो और संसार के सब से ऊँचे रिश्ते में हैं हम....जीवन साथी हैं.....और संदीप से मेरा रिश्ता तो एक वन वे ट्रेफ़िक सा है."
"आई नो, तभी तो जी जलता है कभी कभी".
अनिल ने कहा.
"चलो मैसेज करो अभी, टाइम बहुत कम रह गया है, फिर मुझे कार्ड भी छपवाने हैं उसी हिसाब से इन्विटेशन कार्ड बनेगा."
अनु ने संदीप को टेक्स्ट किया और लगभग आदेश सा दिया कि उसे फ़ंक्शन में शामिल होना है और एमिली को भी साथ लेकर आना है.......अनु जानती थी जवाब हाँ में ही आना है.
माहौल और आपसी संवादों में मन की अभिव्यक्ति कुछ ऐसी थी कि एक अरसे के बाद वो घटित हुआ जो मानो सर्वथा नवीन था........ आगे फ़िर बहुत जल्द
प्रीति मिश्रा
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