Sunday, May 31, 2020

चम्पा बाई
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चम्पा बाई एक आदिवासी स्त्री थी.सांवली रंग की चमकदार त्वचा और तीखे नयन नक्श वाली ऊँचे कद की. उसके शरीर पर मात्र एक चटकीली फूलदार सूती धोती रहती जिसे वो घुटनों तक पहनती थी.उसी धोती को आगे लाकर अपना वक्ष स्थल ढँक लेती.
गर्दन में हँसुली और छोटे से बड़े होते चाँद के हार उसके तन की शोभा बढ़ाते. पीछे की सुडौल पीठ खुली दिखती रहती. कमर में भारी करधनऔर पैरों में लच्छे हर उँगली में बिछिया.अपने केशों को छोटी छोटी पतली चोटियों से गूंध कर माथे पर मांग टीका लगा कर बाकी बाल कस कर बांध देती थी. जब वो निकलती उस पर से दृष्टि हटाए ना हटती थी.मानो किसी कलाकार की बनाई कोई मूरत हो.
लाखों में नहीं पर हजारों में एक थी चम्पा बाई.
एक ही रंज था उसे कि वो अंगूठा छाप थी.
गाँव में खाने पीने के लाले थे. पाठशाला का मुहँ भी नहीं देखा था.
पांच साल की थी ब्याह दी गई थी और ग्यारह वर्ष की हुई तो गौना कर के पति गृह आ गई थी.
वो मजदूरी से पेट पालती और हर वर्ष एक सन्तान को जन्म देती थी. अजीब सी बेचैनी थी उसके अंदर, कुछ सुलगता सा रहता था पर उसको बताने में अक्षम थी.
उस दिन प्रातः काल से गाँव से बाहर कस्बे से शहर की ओर जाने वाली सड़कें चूने से सुशोभित हो गईं थी . सड़कों के किनारे पुलिस दल गश्त लगाने लगा.दारूबाज और ताड़ीबाज लोग घरों में दुबक गए थे.
लाउडस्पीकर बजते हुए शहर की ओर जाने लगे.बच्चे घरों से भाग कर मोटर के भोंपू सुनने में मगन हो गए थे. औरतों ने घर में चैन की सांस ली थी.
शहरी लोगों से पूरा रास्ता भर गया था.
प्रधान जी ने सभी गांव वालों को इकठ्ठा किया और कहा "सब तैयार होकर जमा हो जाओ थोड़ी दूर चलना होगा.इसी सड़क से प्रधानमंत्री गुजरेंगी. शहर में देश की प्रधानमंत्री आ रही हैं. अच्छा अवसर है कोई ना गवांए.
सभी बच्चे और स्त्रियां भी अवश्य आएं."
दिन भर चिलचिलाती धूप में भीड़ के साथ चलने के बाद चम्पा ने देखा एक सफ़ेद एम्बेसेडर कार से एक स्त्री उतरी और खुली हुई गाड़ी में चढ़ गई थी. वो गोरी तीखे नयन नख्श, लड़कों की तरह कटे बाल जिसमें आगे की कुछ लटें सफ़ेद थीं, लाल बॉर्डर वाली नीली साड़ी, गले में एक रुद्राक्ष की माला, एक हाथ में घड़ी, दूसरा खाली. सीधी सतर चाल थी.
हाथों में फूल माला लेकर वो जनता पर उछालती, तो कभी हाथ जोड़ कर अभिवादन करती या छोटे बच्चों को देख कर हाथ हिलाती हुई मुस्कुरा रही थी. इंदिरा गाँधी जी की गाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी और चम्पा भीड़ से हट कर जिधर को गाड़ी जा रही थी उधर लगभग भागते हुए करीब करीब10 किलोमीटर तक दौड़ गई थी वो हाँफते हुए उनके साथ ही पंडाल में पहुँच गई थी. जहाँ प्रधानमंत्री का भाषण होने वाला था. भीड़ के एक धक्के ने उसे सबसे आगे की कतार तक पहुंचा दिया था.
चम्पा आँखें फाड़ फाड़ कर देखती रही थी.
कैसी विलक्षण स्त्री थी ये. सारे लोग पीछे पीछे घूम रहे थे.चम्पा को मन ही मन खूब मजा आया.
इंदिरा गाँधी जी ने भाषण दिया बहुत सी बातें बताईं थीं . पर सच पूछो चम्पा को कुछ भी समझ ना आया . उसका ध्यान कहीं और जो था.
ये कहाँ रहती हैं.? क्या खाती होंगी?
चम्पा के बगलवाली स्त्री ने उसे कोहनी मारीऔर बोली "देख रही हो राजा लोग हैं जी. यही हमारे देश की राजा हैं."
चम्पा ने कहा
"भक्क !राजा तो मनई होता है. ई तो मेहरारू है."
स्त्री ने अपना ज्ञान बघारा "अरे !देस पर सासन करती है.चुनाव जीत कर सबसे अधिक भोट पायी थी.
उसके पिताजी का फ़ोटो हमारे बाबू की किताब में छपा है."
चम्पा ने पूछा"गहना नहीं पहनी हैं.ऐसी कैसी राजा है?"
"जा ना अपना एक हार दे दे पहन लेगी."
वो स्त्री हँस पड़ी थी.
अचानक किसी ने उन्हें चुप रहने का संकेत किया.
सबकी नज़रें चम्पा की ओर उठ गई थीं.
वो संकोच से सिकुड़ गई थी.
भाषण के बाद में प्रश्न उत्तर शुरू हुए.
"जो चाहे अपनी बात नोट करा सकता है. मैडम जी को बाद में बता दिया जाएगा और नहीं तो आगे आते जाइये सब लोग प्रणाम करते हुए दर्शन करते हुए लड्डू लेते हुए निकलते जाइये . देखिये भीड़ मत लगाइये."
औरतें और बच्चे कब के निकल गए किन्तु चम्पा जड़वत खड़ी थी. फ़िर धीरे धीरे सरकती हुई बाड़ के पास खड़ी हो गई. अब वो मंच के नजदीक आ गई थी.
तभी उसके पास एक सिपाही आया और बोला
"आपको सर बुला रही हैं."
"मुझको"चम्पा डर गई थी.उसकी साँसे तेज तेज चल पड़ी थीं.
धीरे धीरे क़दम बढाती मंच की ओर चल पड़ी थी. और मंच से उतर कर मिसेज़ गाँधी नीचे आ गई थीं. उसको देख कर बोलीं "अकेले खड़ी हुई थी, हमारी गाड़ी के साथ दौड़ भी रही थी ना."
"हाँ.... ना हाँ नहीं जी". चम्पा काँप गई थी. प्रधानमंत्री ने कहा
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"चम्पा बाई"वो आँखें नीची कर के बोली.
"तुम्हारे गहने बहुत सुन्दर हैं. चाँदी पहनने में ठंडी रहती है .मुझे भी बहुत पसन्द हैं इस तरह के गहने."
उन्होंने बातचीत से चम्पा का भय दूर कर दिया था.
चम्पा बोली "तो पहनती क्यों नहीं? भगवान इतना सुन्दर बनाए हैं आपको. घोड़ा गाड़ी हवाई जहाज पर चलती हैं. क्या कमी है?
गहना स्त्रियों की शोभा होता है.बच्चों वाली माँ का गला नाक कान हमेशा भरा रहना चाहिए. सुभ होता है.
हमारा गहना चाँदी का नहीं है.
हम सिक्का गलवा कर बनवाए हैं.
बहुत सस्ता है. पर चाँदी जैसा दिखाता है ना."
इंदिरा जी ने चम्पा से कहा "सिक्के सामान खरीदने के लिए होते हैं चम्पा. "
आगे से सिक्के मत गलवाना."
"जी ठीक है."
प्रधानमंत्री बोलीं
"और कुछ बात हो, कुछ कहना चाहती हो. बताओ."
"जी गाँव में स्कूल नहीं है. बच्चा लोग पढ़ नहीं पा रहे हैं.
काम भी नहीं है. बहुत सारा दिक्कत होता है गाँव में, जाने दीजिये.
आप घूमने आयी हैं.अच्छे मन से वापस जाइये.हमारा भाग्य ऐसा ही है. "
"नहीं तुमलोगों की दिक्कतें दूर करने ही दिल्ली से आयी हूँ. "
"दिल्ली कहाँ है?"चम्पा ने पूछा "क्या हम लोग भी जा सकते हैं?"
"क्यों नहीं बल्कि आजकल बड़े शहरों में अच्छी मजदूरी मिलती है.जो लोग भी दिल्ली जाकर काम करना चाहते हैं ज़रूर जाएँ. यहाँ से अच्छे रहेंगेआप लोग.आगे बढ़ना है तो घर का मोह छोड़ना होगा."
प्रधानमंत्री चली गईं थीं.
किन्तु चम्पा की आँखों में स्वप्न दे गईं सोते जागते दिल्ली जाने का स्वप्न.
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दिन गुजरते गए, एक दिन सुबह गाँव में मुनादी हुई "जो लोग दिल्ली काम करने जाना चाहते हैं.अपना नाम ठेकेदार साहब को लिखवा दें. पगार के साथ रहने का जगह मुफ़्त. ट्रक चार दिन बाद लग जाएगा. रास्ते का खाना पीना मुफ़्त मिलेगा."
अपनी आँखों में सपने लेकर बच्चों और पति के साथ चम्पा भी दिल्ली चल पड़ी थी. गाँव में याद करने लायक कुछ नहीं था.मिट्टी ने जनम दिया था सो थोड़ी सी धूल आँचल में बाँध चली थी.
दिल्ली में गगन चुम्बी इमारतें बनाते हुए समय निकलता जा रहा था. पास में जब चार पैसे जमा होने लगे तो बच्चों को भी स्कूल भेजना शुरू कर दिया था. किसी अख़बार में इंदिरा गांधी की फ़ोटो देखी तो चम्पा घर ले आयी थी आटे की लेई बना कर एक दरवाजे पर चिपका दिया था.
बच्चों ने पूछा इनकी फ़ोटो क्यों लगाई हो? तो वो बोली "इन्हीं के कारण तुम लोग स्कूल जा रहे हो. हमारी गुरु और सहेली हैं."
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चम्पा के बच्चे घर की ओर दौड़े और माँ से लिपट गए. बोले "माई बहुत बुरा हो गया. वो जो फोटो वाली सहेली हैं ना आपकी उनका लड़का विमान उड़ाते हुए गिरा दिया.सब कह रहे हैं वो मर गया.एक ठो और आदमी था विमान में कोई नहीं बचा."
"क्या कह रहे हो?"खाना बनाती हुई चम्पा ने कहा "तुमको कौन बताया?"
टी.वी. पर बतला रहा है. बेटे ने कहा.
"ओह! सुनो बिटिया आज खाने में हल्दी मत डालना घर में ग़मी हो गयी है."
"बताओ कितनी बड़ी विपत्ति में पड़ गई बिचारी ?"चम्पा ठेकेदार के घर जाकर टी वी पर समाचार देख कर आयी थी.
फ़िर ठेकेदार से बोली "क्या हम सब लोग शोक व्यक्त करने प्रधानमंत्री के घर जा सकते हैं.
"लेकिन वो तुम लोगों को नहीं जानती हैं. क्या कहोगी उनसे?"
वो बोली "कहना क्या है? जवान लड़का मरा है उनका, और हम घर पर बैठे रहें. ई हमसे ना होई.
या तो हमें उनके घर पंहुचा दो. या पता लिख के दे दो."
चम्पा के साथ बाक़ी मजदूर स्त्रियों ने भी हामी भरी.
"विपत्ति में जो काम नहीं आवे तो देश की प्रजा बेकार है."
बहुत समझाने के बावज़ूद जब मजदूर स्त्रियाँ नहीं मानी हार कर ठेकेदार तैयार हो गया था और बोला "पंद्रह बीस दिन बाद चलना, थोड़ा रुक जाओ."
आदिवासी स्त्रियां जब गेट पर पहुंची तो उस दिन जनता दरबार लगा हुआ था. इसलिये उन्हें भी घुसने को मिल गया था.जब उनका नम्बर आया और उन्होंने अपने आने का मन्तव्य बताया तो माँ की आँखें छलछला आयी थी.
तभी चम्पा ने अपनी धोती की गाँठ से एक मुड़ा तुड़ा लिफ़ाफ़ा निकाल कर इंदिरा जी को दिया.
"ये क्या है?"
"कुछ नहीं. हमारे यहाँ का रिवाज़ है किसी दोस्त, रिश्तेदार के घर जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो सब लोग कुछ पैसा देते हैं."
"मेरे पास पैसे रूपए की कोई कमी नहीं है. प्लीज़ ये अपने पास रखिये"प्रधानमंत्री ने कहा .... चम्पा मान नहीं रही थी क्योंकि ये उसकी जिम्मेदारी थी ....
"आपको कैसे विश्वास दिलाऊं." इंदिरा जी ने पास खड़े व्यक्ति को बुलाया और कहा "इन लोगों को हमारा घर घुमा दो और हाँ बिना चाय नाश्ते के ना जाने देना.हमारी सहेलियां हैं ये."
इंदिरा गाँधी चम्पा और उसकी सखियों से विदा लेकरआँसू भरी आँखों से अपने ऑफिस की ओर बढ़ गई थीं.
चम्पा और उसकी सखियाँ उनका घर घूमने के बाद जब चाय पी रही थीं और सोच रही थीं ये उनके जीवन की सबसे अच्छी चाय थी,ख़ालिस दूध में बनी इलाइची की खुशबू वाली चाय.
जब चम्पा दोपहर में घर आई तो बिटिया ने पूछा माई का खाना बनी. चम्पा बोली तू रहे दे. जाकर किताब पढ़. खाना ते बनबे जाई.
चम्पा बाई की आँखों में एक नया स्वप्न कुलबुलाने लगा था. वो अपने पति के पास गयी और बोली "सुनते हैं लइकिया का बियाह गाँव में नहीं देंगे. पहले पढ़ाएंगे उसको.लड़कियों को भीअपना पैर पर खड़ा करेंगे "
"का हुआ? कौन बियाह कर रहा है जी पगला गई हो का?"
चम्पा मुस्कुरा कर सब्जी काटने चल दी थी.
.... समाप्त.....प्रीति मिश्रा

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