लघुकथा
हलवा पूरी
*********
काका जी काफी बूढ़े थे.
काकी तो ना जाने कब की गुजर गई थी. अमित को उन्होंने ही पाला था.
इसलिए उसके परिवार का हिस्सा थे. अपने जमाने में काफी रौब था उनका. अब दिनभर चुपचाप कमरे में पड़े रहते, और शाम को 4:00 बजने का बेसब्री से इंतजार करते थे. दरअसल शाम को 4:00 बजे अमित की बहू उनको रोज नाश्ता देती थी. कभी पकौड़े कभी हलवा.
काका जी बहू से पर्दा करते थे इसलिए अपने मन की बता नहीं पाते थे. उस रोज बहू को जल्दी थी बहू ने चाय बनाई और साथ में बिस्किट लगा दिये. मेरीगोल्ड के बिस्किट शाम को 4:00 बजे कोई खाता है क्या? काका जी उदास हो गए.
उधरअनजान बहू अपने काम में लगी हुई थी कि तभी काका जी के कराहने की आवाज आई. छोटा बेटा दौड़ कर उनके पास जाकर बोला दादू आपको क्या हुआ है?
काका जी बोले "पता नहीं बहुत घबराहट हो रही है. मेरे सीने में बड़ा दर्द हो रहा है. "
बहू भी डर गई.
देखने में तो बिल्कुल ठीक-ठाक थे. काका जी के माथे पर पसीना आ गया था बोले "कुछ अच्छा नहीं लग रहा है मुंह सूख रहा है."
घर में पति को आने में बहुत देर थी.पास पड़ोस में कोई डॉक्टर भी नहीं था.
तभी न जाने बहू को क्या सूझी?
"आपको ठंड तो नहीं लग रही है."
"क्या मैं आपके लिए गरम-गरम हलवा बना दूँ."
"मैंने सुना है देसी घी दिल के लिए बहुत अच्छा होता है." काका जी बोले "शायद तुम ठीक कहती हो बहू."
वो फ़टाफ़ट रसोई घर में गई और हलवा बनाकर ले आई उसने देखा बूढ़े काका स्वाद लेकर पूरी प्लेट हलवा चट कर गए हैं. उस के बाद आशीष वचनों की झड़ी लगा दी ईश्वर तुम लोगों को स्वस्थ रखें, सुखी रखें.
तुम लोग हलवा पूरी खिलाते हो. मेरा मन तृप्त हो जाता है.
दरअसल बहू को कूड़े दान में बिस्किट के टुकड़े नज़र आते ही सारा माज़रा समझ में आ गया था.
काका जी को कुछ नहीं हुआ है बस भूखे हैं .
आज ही उसने जल्दबाजी में काका जी को ताज़ा नाश्ता नहीं दिया.
अगले दिन से बेटे की मैगी भी और बिटिया का केक भी काका जी की प्लेट में जाने लगी थी.
"बेटा केक में अंडा तो नहीं है."
"नहीं दादू"
दोनों बच्चे एक साथ बोल उठे थे.
समाप्त
हलवा पूरी
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काका जी काफी बूढ़े थे.
काकी तो ना जाने कब की गुजर गई थी. अमित को उन्होंने ही पाला था.
इसलिए उसके परिवार का हिस्सा थे. अपने जमाने में काफी रौब था उनका. अब दिनभर चुपचाप कमरे में पड़े रहते, और शाम को 4:00 बजने का बेसब्री से इंतजार करते थे. दरअसल शाम को 4:00 बजे अमित की बहू उनको रोज नाश्ता देती थी. कभी पकौड़े कभी हलवा.
काका जी बहू से पर्दा करते थे इसलिए अपने मन की बता नहीं पाते थे. उस रोज बहू को जल्दी थी बहू ने चाय बनाई और साथ में बिस्किट लगा दिये. मेरीगोल्ड के बिस्किट शाम को 4:00 बजे कोई खाता है क्या? काका जी उदास हो गए.
उधरअनजान बहू अपने काम में लगी हुई थी कि तभी काका जी के कराहने की आवाज आई. छोटा बेटा दौड़ कर उनके पास जाकर बोला दादू आपको क्या हुआ है?
काका जी बोले "पता नहीं बहुत घबराहट हो रही है. मेरे सीने में बड़ा दर्द हो रहा है. "
बहू भी डर गई.
देखने में तो बिल्कुल ठीक-ठाक थे. काका जी के माथे पर पसीना आ गया था बोले "कुछ अच्छा नहीं लग रहा है मुंह सूख रहा है."
घर में पति को आने में बहुत देर थी.पास पड़ोस में कोई डॉक्टर भी नहीं था.
तभी न जाने बहू को क्या सूझी?
"आपको ठंड तो नहीं लग रही है."
"क्या मैं आपके लिए गरम-गरम हलवा बना दूँ."
"मैंने सुना है देसी घी दिल के लिए बहुत अच्छा होता है." काका जी बोले "शायद तुम ठीक कहती हो बहू."
वो फ़टाफ़ट रसोई घर में गई और हलवा बनाकर ले आई उसने देखा बूढ़े काका स्वाद लेकर पूरी प्लेट हलवा चट कर गए हैं. उस के बाद आशीष वचनों की झड़ी लगा दी ईश्वर तुम लोगों को स्वस्थ रखें, सुखी रखें.
तुम लोग हलवा पूरी खिलाते हो. मेरा मन तृप्त हो जाता है.
दरअसल बहू को कूड़े दान में बिस्किट के टुकड़े नज़र आते ही सारा माज़रा समझ में आ गया था.
काका जी को कुछ नहीं हुआ है बस भूखे हैं .
आज ही उसने जल्दबाजी में काका जी को ताज़ा नाश्ता नहीं दिया.
अगले दिन से बेटे की मैगी भी और बिटिया का केक भी काका जी की प्लेट में जाने लगी थी.
"बेटा केक में अंडा तो नहीं है."
"नहीं दादू"
दोनों बच्चे एक साथ बोल उठे थे.
समाप्त
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