Sunday, May 31, 2020



... जीत जाएंगे हम......
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नेहा और रवि  एक साथ ही नौकरी में आए, 1साल की ग्रैजुएट इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग की.
हर रोज साथ चाय पी और छुट्टी के बाद नेहा के छोटे से क्वार्टर पर साथ मूवीज़ देखीं,  कभी बॉस की हंसी उड़ाई कभी कुछ खाना पकाया, पिज़्ज़ा, बियर  और वोडका  के साथ वे  जल्दी ही के प्रेम में रंग गए थे.
रवि बांसुरी बजाता था. जो सीधे नेहा के दिल में उतरती थी.
नेहा को  कभी कोई सुष्मिता सेन जैसी बताता है तो कोई  शिल्पा शेट्टी से उसकी शक्ल मिलाता है.........
नेहा को कोई फर्क नहीं पड़ता है.  उसे आदत है इस तरह के कमेंट्स की.
अगर रात में मूवी देखने के बाद रवि  उसके घर पर ही रुक जाए, उसे इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है.

 बल्कि उन दिनों   शुक्रवार की शाम से ही वे दोनों  हॉलीडे मूड में आ जाते थे.
उन्हें देखकर आसपास खुसर पुसर होने लगी थी.
उस समय छोटी जगहों पर खुल्लम-खुल्ला इस तरह कोई भी साथ नहीं रहता था.

इसी बीच एक और घटना घट गई, नेहा की माँ उससे मिलने आ गई.
 नेहा और रवि के घनिष्ठ संबंध देखकर उन्होंने ज़िद ही  पकड़ ली कि वे दोनों जल्द से जल्द विवाह के बंधन में बंध जाएं.
उन लोगों को मम्मी का कहना मानना भी पड़ा था.
6 महीने की रिलेशनशिप के बाद अब दोनों पति-पत्नी थे.
रवि  एक आकर्षक और सुदर्शन युवक था.यूनिवर्सिटी में टॉप किया था उसके नम्बर  कैलकुलेशंस  के बारे में मशहूर था कि वो कंप्यूटर जितनी गति से एक दम सही कैलकुलेट करता है.
उसकी  स्मरण शक्ति अद्भुत थी. उन दोनों को एक साथ देख कर स्वाभाविक था कि लोग ईर्ष्या करते थे. उनकी प्रेम कहानी उस छोटे से शहर में मशहूर हो गई थी.

रवि का घर शहर  से  15 किलोमीटर की  दूरी पर था.

उसने शादी के बाद  नेहा से कहा "हम लोग माता पिता के पास ही रहते हैं."

किन्तु विवाह के बाद ससुराल वालों से नेहा की शुरू से ही नहीं जमी थी.
वो आज़ाद  ख्याल वाली लड़की और ससुराल वाले पुरातन पंथी थे.  साथ ही उसके ससुर  थोड़े कंजूस भी  थे.नेहा का बनाव  सिंगार और श्रंगार प्रसाधनों पर खर्च उन्हें बिल्कुल भी नहीं भाता था.
 सासु माँ और ससुर जी की आपसी संबंध भी बड़े अजीब थे एक ओर तो उनके बच्चों के विवाह हो रहे थे दूसरी तरफ सासु माँ ससुर जी पर शक करती थी. कई बार उन्होंने नेहा से कहा भी था.
  एक दिन जब उसने रवि से इस बारे में जिक्र किया तो  वो बोला  "इंडिया में ऐसा ही होता है, यही ख़राबी है हमारे देश की.
इंडियन पैरंट्स के बच्चों के विवाह हो जाएंगे किंतु इनके प्रेम संबंधों का रगड़ा खत्म नहीं होता है.
मम्मी पापा की बातों पर ध्यान मत दो.उनका हमेशा से ऐसा ही चला है लेकिन सारे कलेशों के बावजूद  कभी भी एक दूसरे से 2 दिन से अधिक दूर नहीं हुए हैं."

 नेहा का इस वातावरण में दम घुटने लगा था वो रवि  से बोली "क्यों ना हम किसी दूसरे शहर ट्रांसफर करा लें . कैसा रहेगा?"

उन दोनों का  एक दोस्त था निखिल जो बैंक एग्ज़ाम्स में बैठ रहा था.
 रवि और नेहा ने भी खेल-खेल में ही एग्ज़ाम दे  डाला था और ताज्जुब की बात दोनों क्वालीफाई भी कर गए थे.
 घरवालों से दूर निकलने का मौका मिल गया और उनकी बुराई भी नहीं हुई थी.
 आप जैसा सोचते हैं क्या वैसा ही होता है?
नहीं ना, उन लोगों ने नौकरी से इस्तीफा दिया और नई नौकरी ज्वाइन करने के लिए दिल्ली की ट्रेन पकड़ने रेलवे स्टेशन पहुंचे थे कि प्लेटफॉर्म पर ही उनका बैग  उठाकर एक पंद्रह सोलह साल का  लड़का कब भाग गया उन्हें पता नहीं चला था .
दुख की बात यह थी कि जो बैग गायब हुआ था उसी में जरूरी कागजात सर्टिफिकेट लैपटॉप सब कुछ  रखा था. दोनों मायूस होकर रेलवे प्लेटफार्म से घर लौट आए थे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें?
नेहा की सास  ने कहा उन्हें  अपनी पुरानी कंपनी में जाकर फिर से बातचीत करनी चाहिए वापस अपने पुराने काम पर लग जाना चाहिए.
"पर माँ ऐसे नहीं  होता है अभी कल जब कंपनी वाले  रोक रहे थे तो ज़िद करके हमने यह नौकरी छोड़ी थी.कम्पनी वापस नहीं लेगी माँ. "नेहा बोली थी.
 अपने पेपर्स बनवाने के लिए दोनों लोग हाथ पैर मार ही रहे थे कि एक दिन सुबह-सुबह डाकिया एक पत्र लेकर आया,  पत्र में  लिखा हुआ था कि आपके सारे सर्टिफिकेट मार्कशीट मुझे कूड़े में पड़ी मिली हैं.  आप आकर मुझसे ले जा सकते हैं.
उन दोनों के उदास चेहरों पर एक चमक आ गई धूमिल होती हुई आशा  की किरण फिर से जाग गई थी.वे पत्र पाते ही लिखे हुए पते पर दौड़ पड़े थे. रुका हुआ काम पूर्ण होने की खुशी में नेहा की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे थे.
दोनों ने अगले दिन फ़िर से दिल्ली  जाने की तैयारी की, उन्हें लगा कितनी बड़ी मुसीबत से बाल बाल बच गए हम दोनों.

अब वो सोचती है उस दिन  मुसीबत से बचे थे या कोई अदृश्य शक्ति आगाह कर रही थी. मत जाओ दिल्ली. यहीं रुको.
बैंक की अलग-अलग ब्रांच में उन  दोनों की पोस्टिंग हो गई थी.
दोनों का जीवन थोड़ा मशीनी हो चला था.
अच्छी  बात यह थी कि नौकरी सरकारी थी.
यहां की भीड़ भाड़ देखकर रवि का कई बार जी घबराता था,  इतने सारे लोग और इतनी सारी गाड़ियां आख़िर सारा  दिन ये लोग कहाँ दौड़ते हैं.
बैंक का काम भी आसान नहीं था,  सरल रवि  के लिए. सिर पर हमेशा टारगेट्स  का डंडा पड़ा रहता था.
दिल्ली आये कई वर्ष गुज़र गए थे. पर अपने छोटे शहर की गलियाँ, और पुराने दोस्त उस  को भूलती नहीं हैं.नेहा बेकार यहाँ ले आई वो अक्सर सोचता पर कहता न था.  इसलिये उसने अपने आप को काम में झोंक दिया था.
वो परफेक्शनिस्ट था, साथ ही किसी को भी एक उंगली उठाने का मौका नहीं देना चाहता था. अब रात दिन ऑफिस को ही समर्पित था.
वो अपने खोल में सिमट रहा था.

नेहा ये परिवर्तन महसूस कर रही थी.

 तभी  नेहा और रवि के जीवन में एक नन्हे जीवन के आने  की आहट हुई , वे दोनों खुशी से फूले ना समाए.
नेहा के अस्पताल की  बुकिंग, डायट चार्ट, उसके मैटरनिटी  गाउन,फ्लैट सैंडल्स,  बच्चे की ज़रूरत का सारा सामान खरीदना सब कुछ रवि ने अपने हाथ में ले लिया था.
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अब वो नेहा को मम्मी कह कर ही  बुलाता था.

 "नेहा !किसी ने बताया है कि दिल्ली में बच्चों के स्कूल एडमिशन में बड़ी दिक्कत होती है वो बन्दा कह रहा था अगर आप लोग चाहे तो अभी से अप्लाई कर दीजिए."

" अभी बेबी ने पेट में पहली किक भी नहीं मारी  है, और तुम उस पर पढ़ाई का बोझ डाल रहे हो."
"मैं तो उसे पांच साल से पहले पेंसिल भी नहीं पकड़ने दूँगी."

फिर दोनों हंस पड़े थे.
क्या खूब दिन थे, हर दिन वो अपने शरीर में परिवर्तन महसूस कर रही थी.

 नेहा को नहीं भूलती 1 दिसंबर की वह शाम जब वो  घर वापस आने की तैयारी कर रही थी कि पेट में दर्द शुरू हो गया उसके सहकर्मियों ने उसे हॉस्पिटल पहुँचाया था.
पीड़ा के कारण बेहोश हो गई और जब उसे होश आया तो अस्पताल के बेड के बगल मे रवि  को बैठा पाया था. नेहा को लगा उसके शरीर की सारी शक्तियां जैसे निचोड़ी  जा चुकी थी. जब उसने रवि की तरफ देखा उसकी आंखों में आंसू थे जो  कह रहे थे कि हमने अपना बच्चा खो दिया है. नेहा जितनी उदास थी उससे कहीं ज्यादा रवि  टूट गया था.
 उसका व्यवहार दिन पर दिन परिवर्तित होता जा रहा था.आने वाले छह महीनों में वो अपनी आकर्षक छवि खो बैठा था.कई कई दिनों तक शेव नहीं करता था.
अब वह  ऑफिस से जल्दी ही घर आ जाता था.
उसके  कैलकुलेशंस गलत होने लगे थे.
 अंधेरे कमरे में न जाने क्यों बैठा रहता था.
रात में भी वह सो नहीं पाता था,  जब नेहा ने
कहा कि हम डॉक्टर को दिखा लेते हैं.वो  बोला मुझे कुछ नहीं हुआ है.

 धीरे-धीरे रवि ने बैंक जाना छोड़ दिया.

शुरू में तो वह कभी-कभी अवकाश पर रहता था, किंतु पिछले 2 महीने से तो मेडिकल लीव पर आ गया था.

वह क्या करे समझ नहीं पा रही थी.

ऐसा लग रहा था कि जैसे सब कुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा है.
एक दिन  बहुत बहला-फुसलाकर रवि को मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले गई थी.
डॉक्टर ने नेहा से जो भी पूछा तो उसने सभी कुछ डिटेल में बताया था. किन्तु अपने मिस्कैरेज की बात करते करते उसकी हिचकियाँ बंध गई थीं.

डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा हो जाता है और उन  लोगों के साथ जिनका दिमाग बहुत तेज होता है. वे लोग कई बार ऐसे झटके सह नहीं पाते हैं.
रवि को आराम से ज्यादा आपकी जरूरत है.
अपना ध्यान कहीं और लगाना होगा उन्हें.  उनकी कोई हॉबी  है क्या जैसे पेंटिग या म्यूज़िक.
"जी डॉक्टर साहब रवि बांसुरी बहुत अच्छी बजाते हैं , पर अब उस बात को गुज़रे अब ज़माना हुआ. "
  "डॉक्टर!रवि घर में अकेले ही  रहते हैं है पिछले कई दिनों से अझेल होते जा  रहे हैं. "
"जोर जोर से चीखना  चिल्लाना शुरू कर देते  हैं बात बात में  रो पड़ते हैं "
डॉक्टर बोले "आपके घर के काम कौन करता है?"
"दो लड़कियां हैं पायल  और मुमताज़."
"यही कोई बीस से पच्चीस वर्ष की लड़कियां हैं. "
"पिछले तीन सालों से हैं."वो अपने आंसू पोंछ कर बोली थी.
आप उनसे पता करिये आपके पीछे रवि  क्या करते  है?
"जी डॉक्टर !मैं पूछ कर बताती हूं. "

"पहले वो ऐसे नहीं थे.   डॉक्टर!! आप कुछ करिए."
 नेहा के आँसू रुक नहीं रहे थे.
 डॉक्टर को उस से पूरी सहानुभूति थी,  लेकिन समस्या का समाधान नेहा और रवि को ही करना था.
 नेहा को  यह चिंता भी खाए जा रही थी कि रवि  की तबीयत खराब  की बात अगर लीक हो गई तो उसे नौकरी से हाथ धोना ना पड़ जाए.
"डॉक्टर लाख चाहने के  बावजूद भी मैं दोबारा मां नहीं बन पा रही हूं. अगर एक बच्चा हो जाए तो सब ठीक हो जाएगा."
"मेरी गाइनी  कहती हैं कि मुझे अपने दिमाग को शांत रखना होगा तभी मैं कंसीव कर सकती हूं.'
"आप बताइए ऐसे में कैसे मेरा दिमाग शांत होगा."
 "पागल तो  नहीं हो जाऊंगी मैं? "
डॉक्टर ने उसको धीरज रखने को कहा और कहा "आप घर से किसी को बुलवा लीजिए."
नेहा ने रात भर सोचा और फिर कुछ दिनों की छुट्टियां अप्लाई कर दी.
 सोचा था इस वीकेंड पर जयपुर घूमने चले जाएंगे.
 शादी के बाद शुरू के दिनों में वे जयपुर गए थे उनकी मीठी यादें जुड़ी हैं वहां से.
अगले दिन ही अख़बार किसी बैंक के घपले की ख़बर से भर गए थे.  कस्टमर्स में पैनिक फैल  गया . हर दिन कोई ना कोई कस्टमर उन लोगों के ऊपर तंज़ कस के चला जाता है.
छुट्टी कैंसिल करनी पड़ी है. आख़िर वो ब्रान्च मैनेजर है.
दो चार दिन बाद ही कोरोना के साइड इफ़ेक्ट बैंक पर सबसे पहले दिखने लगे थे.
जिनके बच्चे विदेशों में हैं. वे जल्दी से जल्दी अपने बच्चों को मनी ट्रांसफर करने के लिए लाइन लगाए खड़े हैं.
उनके चेहरे की  बेचारगी वो अपने कमरे से भी महसूस कर सकती है.
इनकी तकलीफ़ उसकी तकलीफ़ के आगे बहुत अधिक है.
वो अब जीवन को नए ढंग से लेने लगी है.
उसे लगता है जीवन बस धूप छाँव का ही नाम है. जो सामने आये करते चलो. बहुत सी चीज़ों पर अपना बस नहीं है.

  रविवार को पूरे भारत बंद की प्रधानमंत्री मोदी जी ने घोषणा की  है. ये  रिहर्सल किया जा रहा है बंद का . आगे लम्बा लॉक डाउन होगा.

वो रवि के चक्कर में इतनी परेशान थी कि दुनिया में क्या चल रहा है उसे बिल्कुल होश नहीं था.
काम पर सभी लोग बड़ी डिप्रेसिंग सी बातें करने लगे हैं.
 सारे ऑफिस,  बाजार, रेल, बस, एयर ट्रेफिक,  स्कूल,  मंदिर, मस्जिद,  गुरुद्वारे, चर्च सब बन्द.
आर. बी. आई. की नई गाइडलाइंस आ गई है. पैसे के लेन देन के अलावा बैंक ने अन्य कार्य रोक दिए गए हैं. सिर्फ़ बैंक, अस्पताल  खुले हैं. खाली सड़कें, सूने बाज़ार, नेहा  से देखे नहीं जाते हैं. सड़कों के किनारे धूल खाती  टैक्सीज़ अपने मालिकों की बाट जोह रही हैं.

लोगों की जान बचानी जरूरी है सबको  घर में रहना होगा. अजीब सी मनहूसियत छा गई है वातावरण में.

 आदमी आदमी से दूर होता जा रहा है.
  सड़कें खाली हो गई हैं.
उसने पायल और मुमताज़ दोनों को समझा दिया है कि घर में बैठें और पैसों की  चिंता  ना करें. दोनों की मुट्ठी में पगार थमा दी है उसने.
 जब पायल ने कहा "दीदी साहब को कौन देखेगा?"
तो नेहा उदास हो गई. उसने कहा "मैं हूं ना. "
मुमताज भी जाते जाते रो पड़ी थी. दोनों लड़कियों का सेवा भाव देख नेहा द्रवित हो गई थी.

उसने ड्राइवर की भी छुट्टी कर दी है.
कभी इन सड़कों पर वो ड्राइव नहीं करना चाहती थी. आज खाली पड़ी हैं.
 जब बैंक से शाम को  घर लौट  रही थी तो सोच रही थी घर में  कहाँ से काम शुरू करना है?
लेकिन घर आकर एक सुखद आश्चर्य से भर गई है वो. बड़े दिनों बाद घर का टी. वी. चल रहा था.
 रवि ने  उसके लिए कॉफी बना कर रखी थी.
घर एकदम साफ़ सुथरा था.
 रवि  ने खाना भी बनाया  था.
नेहा ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया था.
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एक हफ़्ते बाद रवि ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया है.


कितनी अजीब बात हुई  है.............
 दुनिया में लोग लॉक डाउन में बन्द हैं और रवि के दिमाग के ताले खुलते जा रहे हैं.
धीरे-धीरे वो नार्मल होता जा रहा है.
अब नेहा के  साथ घर के काम भी करा देता है. डोरबेल, लिफ्ट की नॉब्स पोंछना नीचे जाकर दूध लाना ऐसे छोटे-छोटे काम उसने खुद संभाल लिये हैं.
डॉक्टर सही कह रहे थे कि अगर रवि अपना ध्यान कहीं  और लगा ले तो अपने आप अवसाद  से बाहर निकल जाएगा.
नेहा ने उसकी बांसुरी भी निकाल कर सामने रख दी है. शायद किसी दिन तो वो इसे अपने होठों से लगाएगा.

 कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है.

 कल उसकी किसी सहेली का फ़ोन आया था जो कि पुलिस विभाग में काम करती है कह रही थी किआज कल  परिवार में हिंसा बढ़ती जा रही है.100 में से 90 फ़ोन घर वालों के झगड़ों के होते हैं.
वो हैरान  है कि इस वक्त तो एक दूसरे  का साथ देने का वक्त है, बिगड़े रिश्ते सुधारने का इससे अच्छा मौका कब मिलेगा? अगर अब भी नहीं संभले तो फ़िर कब सम्हलेंगे ये लोग.

शाम का धुंधलका गहरा रहा है.  नेहा ने खिड़की से परदे हटा दिये थे.रवि ने बांसुरी पर कोई पुरानी धुन छेड़ दी थी.तभी खिड़की से उन दोनों ने बाहर देखा बड़ा मार्मिक दृश्य था. मजदूर  लोग हुजूम के हुजूम बनाकर सिर पर सामान रख कर पैदल सड़कों पर निकल पड़े हैं.
एक आदमी पर निगाह रुक गई जो अपने 4 साल के बच्चे को घसीटते हुआ और एक छोटे बच्चे को गोद में लेकर पैदल भीड़ के बीच जा  रहा था. रवि ने खिड़की के पर्दे गिरा दिये और नेहा से बोला "सुनो तुम मुमताज और पायल को फोन करो उन्हें  बोलो घर से कहीं नहीं जाएंगे उन्हें अपने गांव जाने की कोई जरूरत नहीं है.
उनका किराया और रहने का खर्चा हम लोग देंगे जब तक कि हालात सुधर नहीं जाते हैं."
उसने खिड़की से बाहर की ओर देख कर कहा
"हम लोग कितने बेबस हैं चाह कर भी इतने लोगों की मदद नहीं कर सकते हैं. कभी सोचा था कि इंसान इतना बेबस होगा और हम खिड़की से बस बेबसी का तमाशा देखेंगे.
कुछ ना कर पाएंगे.
......नेहा क्या तुम सोसाइटी के गार्ड को खाना खिला दोगी. मुझे पता है वो ढाबे पर खाना खाता  है. अब ढाबे बन्द हैं."
 नेहा ने कहा "हां रवि क्यों नहीं?एक आदमी का खाना बनाना कोई मुश्किल बात नहीं है."
" बिल्कुल ठीक कह रहे हो तुम".
रवि ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया था.

रवि ने फ़िर बांसुरी उठा ली थी अब वो बजा रहा था
......  "जीत जाएंगे हम, तू अगर संग है ज़िन्दगी हर क़दम एक नई जंग है. "...... नेहा वही पास बैठकर बांसुरी की धुन में खो गई थी. उसने अपना सिर पति  के कंधे पर टिका दिया था.
उसके मन में एक आस थी, संकट के ये दिन भी निकल जाएंगे. ये जंग एक दिन हम अवश्य जीत जाएंगे.

समाप्त
प्रीति मिश्रा

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