गद्य रचना
रिश्ता अनजाना(छठी किश्त)
एमिली और संदीप
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एमिली ने संदीप को लैपटॉप पर झुक कर आँखें गड़ाए देखा तो मुस्कुराते हुए कहा, "क्या हो रहा है?"
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एमिली ने संदीप को लैपटॉप पर झुक कर आँखें गड़ाए देखा तो मुस्कुराते हुए कहा, "क्या हो रहा है?"
एमिली पांच फीट आठ इंच, सुंदर शारीरिक सौष्ठव की स्वामिनी गेंहुए रंग की युवती थी, जिसका मुख्य आकर्षण उसकी नीली आँखे और सुनहरे बाल थे. तीखे नयन नक्श उसने अपने राजपूत पिता से पाये थे और आँखे व बाल अपनी जर्मन मूल
की अमरीकी माँ से. आर्य नस्ल की साक्षात प्रतिमा सी थी एमेली उर्फ़ अमृता कुमारी सिसोदिया. मेवाड़ के सिसोदिया सूर्यवंशी क्षत्रिय होते हैं, महाराणा प्रताप इसी वंश से थे.
की अमरीकी माँ से. आर्य नस्ल की साक्षात प्रतिमा सी थी एमेली उर्फ़ अमृता कुमारी सिसोदिया. मेवाड़ के सिसोदिया सूर्यवंशी क्षत्रिय होते हैं, महाराणा प्रताप इसी वंश से थे.
इस इंडो अमेरिकन लड़की की हिंदी का कोई जवाब नहीं था जिसका श्रेय वह बॉलीवुड सिनेमा को देती थी. दुनिया इधर की उधर हो जाए पर मज़ाल है कि एक भी मूवी छूट जाए. हिंदी मूवीज़ के लिए दीवानगी उसके पापा से उसमें आ गयी थी.
भूपालसागर के पास किसी ज़माने मे उसके दादा जी की एक छोटी सी रियासत हुआ करती थी, वंश परम्परा के अनुसार वे राणा जी कहलाते थे. उस राजसी शान शौकत को आज राजवंश के लोग मेंटेन करने की कोशिश करते हैं,जैसे धीमी आवाज़ में बात करना मगर ठसक भी, सम्माजनक शब्दों का प्रयोग लेकिन बाज़ वक़्त दहकता सा ग़ुस्सा, मानवीय संवेदना से हटकर पॉलिश्ड ढंग से इंकार करना , कीमती पोशाकें और आभूषण, टेबल पर खाने के अपने क़ायदे और सलीक़े लेकिन अजीब सा जिद्दीपन, खान पान में रईसी लेकिन हद से ज़्यादा बर्बादी, कुछ ऐसे एटिकेट्स जो महज़ हिपोकरेसी लगते है ...फ़ेहरिस्त लम्बी ना हो जाए इसलिए फिर से मूल कहानी को लौट आते हैं.
नामालूम क्यों एमिली के पिता राणा रतन सिंह को बचपन से ही ये सब रास नहीं आते थे. यह बात अलग है कि समस्त दिखावों से परे, ख़ालिस रॉयल होने के बिम्ब हमारे राणाजी में दिख ही जाते थे जैसे शानदार ड्रेसिंग सेंस, साहित्य-कला-संगीत में रुचि, हथियारों और अच्छी गाड़ियों का शौक़,सोचों में गहरायी और व्यवहार में शालीनता, अप्रतिम संवेदनशीलता,उदारता और क्षमाशीलता, ग़लत के लिए क्रोध इत्यादि अभिजात्यता वाले गुण. आनुवांशिकता का प्रभाव बहुत गहरा होता है ना.
प्रिंस रतन सिंह को छुटपन में पढ़ाई के लिए ग्वालियर भेज दिया गया था और बाद में इंग्लैंड. यहीं उनकी मुलाक़ात एन्नी उर्फ़ अनीता से हो गई(एमिली की मां). रतन सिंह ने अनीता को पहली बार किसी फंक्शन में एंकरिंग करते देखा था. एन्नी मानो स्वर्ग की अप्सरा थी. प्रिंस को तो वह साक्षात रानी पद्मिनी का अवतार नज़र आ रही थी...तन भी सुंदर मन भी सुंदर. उस सुंदरता की मूरत का बोलने का अन्दाज़ कुछ जुदा ही था. बोला हुआ हर शब्द मानो दिल की गहराई से निकला आ रहा हो ऊपर उठ कर. बीच बीच में गेटे (प्रसिद्ध जर्मन साहित्यकार) और ग़ालिब की चंद लाइनों का इस्तेमाल करते हुए एन्नी मूल कार्यक्रम के प्रस्तुतीकरण को और रोचक बना रही थी. उसने परम्परागत विक्टोरियन गाउन पहन रखा था, बिलकुल सफ़ेद जो कि उसके उज्जवल तन की शोभा को और बढ़ा रहा था,उसके बदन पर सजी सर्पेंट जवेलरी का, चाहे रूबी और हीरों जड़ी चोकर हो या इन्हीं जवाहिरातों वाला सांपनुमा ब्रेस्लेट और उसी डिज़ाइन की अँगूठी.उसी पैटर्न का हेयरबैंड और हैरपिन्स उस विक्टोरियन केश सज्जा को और खिला रहे थे. अनीता अपने अंतरंग और बहिरंग से हमारे प्रिंस जैसे अभिजात्य को अपने मोहपाश में पहली नज़र में बांध ले गई थी ......बात सिर्फ़ भव्यता और बेशक़ीमती होने की नहीं थी बल्कि सौंदर्य बोध और सुरुचि की थी. मर मिटा था रतन सिंह, अजेय सिसोदिया ने ना जाने क्यों उस फिरंगन राजकुमारी के सामने अपने दिल और रूह के सारे हथियार गिरा दिए थे.
कुछ ऐसा था एन्नी में कि प्रिंस रतन ना जाने क्यों उसकी जानिब खिंचे चले जा रहे थे. प्रिंस अपना सारा ग़ुरूर एक तरफ़ रख कर
जब एन्नी से मिलने ग्रीन रूम में पहुँचा तो उसे आश्चर्य हुआ एन्नी तो मानो उसका इंतज़ार कर रही थी. स्पंदनों के इस चमत्कार को शब्द किसी और अवसर पर दूँ इस मनसा को पेंडिंग रख कर कहानी को आगे बढ़ाएँ, आपको ज्यादा मजा आएगा.
कुछ ऐसा था एन्नी में कि प्रिंस रतन ना जाने क्यों उसकी जानिब खिंचे चले जा रहे थे. प्रिंस अपना सारा ग़ुरूर एक तरफ़ रख कर
जब एन्नी से मिलने ग्रीन रूम में पहुँचा तो उसे आश्चर्य हुआ एन्नी तो मानो उसका इंतज़ार कर रही थी. स्पंदनों के इस चमत्कार को शब्द किसी और अवसर पर दूँ इस मनसा को पेंडिंग रख कर कहानी को आगे बढ़ाएँ, आपको ज्यादा मजा आएगा.
दोनों की रुचियाँ और पसंद एक सी अच्छा जीवन, अच्छे चिंतन और हर अच्छेपन के लिए ललक. रतन के लिए एन्नी अनिता बन गयी थी. दोनों ने मैत्री को विवाह संस्था से अधिक महत्व दिया था और इस दोस्ती का दोनों के लिए अनुपम उपहार एमिली के रूप में मिला. एमिली के जन्मोपरांत दोनों अमेरिका आकर बस गए थे.
एमिली के पापा जब भी उसे देख कर बहुत खुश होते तो कहते कि तुम बिल्कुल मेरी मां पर गई हो, तुम्हारे सारे संस्कार भी हम राजपूतों के हैं किंतु एमिली अपने को अमेरिकन ही मानती थी. उसकी गलती भी क्या, हमेशा से तो इसी देश में रही हिंदुस्तान तो बस एक परी कथा जैसा था ना उसके लिए. कभी कभी जाती थी उदयपुर और भूपालसागर. एक तो वहाँ का मौसम एमिली को रास नहीं आता और दूसरा वहां के तौर तरीके भी बहुत अलग थे. हां एक बात और, उसकी दादीसा उसे बहुत प्यार करती थी. उनके मन में यह दुख अवश्य था कि बेटा उन से दूर चला गया था किंतु एमिली के लिए वे बार बार अमेरिका का चक्कर लगाती रहती थी.
सन्दीप से उसकी मुलाकात जर्मनी के एक छोटे से शहर डॉर्मस्टेड में हुई थी. दोनों को किसी कॉन्फ्रेंस में पेपर प्रेजेंट करने थे. दोनों ही नये थे और बहुत घबरा रहे थे. एक दूसरे को तसल्ली दे रहे थे कि सब ठीक हो जाएगा. आज याद आता है तो हंसी आ जाती है. कॉन्फ्रेंस के बाद दोनों सड़कों पर घूमने निकल जाते. महलों और म्यूज़ियम वाला शहर था डोर्मस्टेड. वहीं ही सड़कों पर वायलिन बजाता इवानोव टकरा गया था एमिली से.
सन्दीप आज भी हंसता है,उस बात पर,लेकिन तब वो और सन्दीप मुश्किल से तेईस चौबीस वर्ष के थे पर उनकी दोस्तीआज तक कायम है।सन्दीप को जर्मन बोलना और लिखना आता था. एमिली शायद इस बात से प्रभावित हुई थी लेकिन कहीं न कहीं उसे संदीप का भारतीय होना भी उसको भा गया था.
सन्दीप आज भी हंसता है,उस बात पर,लेकिन तब वो और सन्दीप मुश्किल से तेईस चौबीस वर्ष के थे पर उनकी दोस्तीआज तक कायम है।सन्दीप को जर्मन बोलना और लिखना आता था. एमिली शायद इस बात से प्रभावित हुई थी लेकिन कहीं न कहीं उसे संदीप का भारतीय होना भी उसको भा गया था.
एमिली ने कहा, "फ़ॉर गॉड सेक, यह मत कह देना कि तुम को इस इंडियन लड़की से प्यार हो गया, क्योंकि तुम्हारी एक तरफ़ा लव स्टोरी मैं नहीं झेल सकती हूं,और अभी मेरे पास बिल्कुल भी टाइम नहीं है सीरियसली."
सन्दीप बोला, "अपना भूल गई उस रूसी फ़ंटूस को....क्या नाम था उसका इवानोव. उसको जब तुमने छोड़ा था तो किसके कंधे पर सर रख के रोई थी......और मैं तुम्हें बता दूं कि पहले दिन से ही मैं जानता था कि वह ईडियट तुम्हारे लायक नहीं है लेकिन तुम्हें तो उसकी वायलिन और बिंदास होना पसंद आ गया था ना. अरे, कहां तुम एक डबल FRCS ENT एंड General Surgeon जिसको राजसीपन,मेधा, करुणा और उदारता विरासत में मिली है और कहां वो सड़क छाप आवारा ग़ैर ज़िम्मेदार फ़ंटूस. बहुत दिनों तक टेक्स्ट कर कर के मेरी जान खाता रहा था." सन्दीप मुस्कुराया, "बेचारा राजकुमारी के प्यार में पागल इश्क का मारा-आवारा हूँ टाइप्स."
एमिली ने कहा, " लेकिन बच्चा, वो कम से कम मेरे साथ तो था, तुम्हारी तरह सब हवा में तो नहीं." फिर आगे बात बढ़ते हुए कहने लगी थी, "अरे ! शादीशुदा लेडी है तुम्हारे चक्कर में नहीं आने वाली."
संदीप बोला, " तुम भी ना जाने मुझे क्या समझती हो ? मुझे तो वो बस अच्छी लगती है ."
संदीप बोला, " तुम भी ना जाने मुझे क्या समझती हो ? मुझे तो वो बस अच्छी लगती है ."
"कित्ती ?" चिढ़ती सी पूछ रही थी एमिली.
"बस तेरे ज़ित्ती" कम कैसे रहे संदीप भी.
"चलो तब ठीक है,चलेगा" एमिली ने उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए कहा, "चलें अब...आज एयर शो देखने जाने वाले थे हम. तुम्हारे इस नए इंडियन चार्म के चक्कर में कहीं हमारा शो छूट न जाए." फिर आगे कुछ चिढ़ाने कुछ चिंता के भाव लिए एमिली ऊवाच हुआ था, " वैसे लड़की बहुत खूबसूरत है और इनोसेंट सी भी लगती है. लेकिन हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती ना संदीप साहब."
संदीप भी कम नहीं, कब चूकने वाला था, "तुमको तो सभी इनोसेंट लगते हैं एक सन्दीप गर्ग को छोड़कर. छोड़ो, कुछ खाओगी ?"
"क्रैश डाइट पर हूं, पाँच किलो वजन जो कम करना है, अगले महीने उड़ीसा के बीच पर जाना है जरा फ़िगर ठीक कर लूं."
ना जाने क्या क्या सोचती एमिली बोले जा रही थी.
" तुम भी ना, एमिली ! कमाल हो." संदीप बोल पड़ा.
"क्रैश डाइट पर हूं, पाँच किलो वजन जो कम करना है, अगले महीने उड़ीसा के बीच पर जाना है जरा फ़िगर ठीक कर लूं."
ना जाने क्या क्या सोचती एमिली बोले जा रही थी.
" तुम भी ना, एमिली ! कमाल हो." संदीप बोल पड़ा.
"हाँ तभी तो तुम्हें झेल पाती हूँ" एमिली ने तपाक से जवाब दिया. सन्दीप बोला," थैंक्स एमिली ! ये सच है कि तुमसे प्यारा दोस्त इस दुनिया में मिलना मुश्किल है."
"अब चलें भी", एमिली ने घर और कार की चाभी उठा ली थी.
"हां बिल्कुल, अभी आया."संदीप ने रेस्पांड किया.
दोनों की यह नोकझोंक बहुत कुछ अनकहा कहे जा रही थी.
कितने रूप बसते हैं हमारे इस केवल एक लगने वाले स्वरूप में.
"अब चलें भी", एमिली ने घर और कार की चाभी उठा ली थी.
"हां बिल्कुल, अभी आया."संदीप ने रेस्पांड किया.
दोनों की यह नोकझोंक बहुत कुछ अनकहा कहे जा रही थी.
कितने रूप बसते हैं हमारे इस केवल एक लगने वाले स्वरूप में.
थोड़ी देर में वो दोनों रोमांचक हवाई शो देख रहे थे. एमिली बहुत उत्साहित थी. मैदान में दौड़ दौड़ कर पायलेट्स के साथ तस्वीरें खिंचवा रही थी उसने संदीप को भी अपने पास घसीटा, "एक ग्रुप फ़ोटो हो जाए."
संदीप ने ये तस्वीरें अनु को भी भेजी थी. जाने क्यों अनु को कुछ मजा नहीं आया, उसने बस इतना ही पूछा कि एमिली तुम्हारी गर्लफ्रेंड है.
संदीप का जवाब आया था कि गर्लफ्रेंड नहीं पर बेस्ट फ्रेंड है.
"ओ के" अनु थोड़ी देर के लिए ऑफलाइन हो गई थी.
थोड़ी देर बाद ही अनु ने अपने विचारों को झटका, उसे क्या करना है संदीप और एमिली के बारे में जानकर. उसे ऐसे नहीं लिखना चाहिए था.लेकिन अब तो देर हो चुकी थी .बात तब की है जब डिलीट बटन नहीं हुआ करता था, एक बार जो छप गया सो छप गया....शेष फिर प्रीति मिश्रा
संदीप ने ये तस्वीरें अनु को भी भेजी थी. जाने क्यों अनु को कुछ मजा नहीं आया, उसने बस इतना ही पूछा कि एमिली तुम्हारी गर्लफ्रेंड है.
संदीप का जवाब आया था कि गर्लफ्रेंड नहीं पर बेस्ट फ्रेंड है.
"ओ के" अनु थोड़ी देर के लिए ऑफलाइन हो गई थी.
थोड़ी देर बाद ही अनु ने अपने विचारों को झटका, उसे क्या करना है संदीप और एमिली के बारे में जानकर. उसे ऐसे नहीं लिखना चाहिए था.लेकिन अब तो देर हो चुकी थी .बात तब की है जब डिलीट बटन नहीं हुआ करता था, एक बार जो छप गया सो छप गया....शेष फिर प्रीति मिश्रा
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