Sunday, May 31, 2020


####रिश्ता अनजाना####
(आखिरी किश्त)
अभी तक आपने पढ़ा
अनु और अनिल उड़ीसा के गेस्ट हाउस में रहते हैं ,यहां अनु बोरियत से बचने के लिए सन्दीप से चैटिंग करने लगती है ,सन्दीप उसे एक एन जी ओ चलाने के लिए प्रेरित करता है.अनु को जीवन का उद्देश्य मिल जाता है, उसकी लगन देख अनिल भी प्रभावित हैं.अब आगे......
जैसा अनु का विश्वास था, संदीप और एमिली फ़ंक्शन अटेंड करने के लिए उड़ीसा आने को राजी हो गए थे.
आधी फिरंगन एमिली और पूरा देसी संदीप भारत धरा पर
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एमिली को भारत हमेशा से अपनी ओर खींचता रहा है. सबसे बड़ा चार्म उसके लिए दादीसा है जिनके निश्छल निस्वार्थ प्यार दुलार के सामने दुनिया की हर वस्तु छोटी है. उसके बाद उसे जो पसंद है भारत का वह है खाने पीने की चीज़ें : चाहे राजस्थानी दाल बाटी चूरमा हो या बादाम कतली और मिर्ची बड़ा या मांसाहार में 'शिकार' की तरह तरह की डिशेज, पंजाबी छोले कुलचे-अमृतसारी दाल नान रोटी या मांसाहार में चिकन की डिशेज़, गुजराती फरसान-ढोकले, नौर्थ इंडियन साग सब्ज़ियाँ और मिठाइयाँ नमकीन, बंगाली संदेश-रसगुल्ले-सिंघाड़े (समोसे), साउथ इंडियन डोसा-इडली-वड़ा-अप्पा-उत्तपम आदि...तीखे आचार चटनियों की भी शौक़ीन...खीर पूरी अमरस के लिए हर समय लालच.उसने पूरी लिस्ट बना रखी है ,और खाने के बाद क्रॉस करती जाएगी ताकि कुछ छूटने न पाए.सब कुछ ठीक, लेकिन भारत की गर्मी और भीड़ से डर लगता है उसे.
एमिली का एक्साइटमेंट देख कर सन्दीप अपने खयालों में खो गया था. पिछले पाँच साल पहले वह भारत आया था, चाचा जी के बहुत बुलाने पर. उससे माफ़ी मांग रही थीं चाची जी, किन्तु वो जानता था कि ये घड़ियाली आंसू इसलिए बहाये जा रहे हैं कि उनके निकम्मे लड़कों की वो कुछ माली मदद कर दे. बहुत खिन्न हो गया था उसका मन. हां वो उनसे कुछ भी बोला नहीं. चाची जी को पैरालिसिस का अटैक पड़ गया था,उनकी हालत देख उसे ज़रूर दुख हुआ था. बस फ़िर जाने का मन ही नहीं हुआ. जो कोठी कभी सजी संवरी रहती थी अबअपने मालिक की विपन्नता का बयान कर रही थी.
इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एमिली और संदीप ने इमिग्रेशन चेक की औपचारिकतायें पूरी की और समय देखा.
अगली याने भुवनेश्वर फ़्लाइट में चार घंटे की देर थी. फ़ूड कोर्ट से राजस्थानी राज कचौड़ी और गोलगप्पों का लुत्फ़ उठाने लगे, हल्दीराम के स्टॉल पर एमिली के पसंदीदा जोधपुरी मिर्ची बड़ों ने भी एमिली को बुला ही लिया था. पितृभूमि के स्पर्श का प्रभाव था या संदीप के नए माहौल में साथ का, एमिली एक स्कूली लड़की जैसी हरकतें कर रही थी, उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह एक नामी सर्जन है, रिसर्च स्कौलर है, गम्भीर मानव सेविका है और गरिमाशाली मेवाड़ वंश की राजकुमारी है....और संदीप जैसे कोई कॉलेज रोमिओ हो...एमिली की हर उलटी सीधी फ़रमाइशें पूरी कर रहा था, उसका आज्ञाकारी हो कर.
जब दो इंसानों में दिली प्रेम होता है तो बहुत से प्रोटोकोल्स और एटिकेट्स गिर से जाते हैं एक दूजे की परवाह करने के जज़्बे के सामने.
अनिल ने उनको एयरपोर्ट से पारादीप लिवा लाने के लिए अपने पीआरओ नियाज़ को भेजा था और अपनी निजी निसान एसयूवी देकर. नियाज़ ने पीले गुलाबों से बना गुलदस्ता एमिली को थमाते हुए कहा, "वेल्कम है आप दोनों का "भगवान जगन्नाथ"की इस ज़मीन पर. अनु मैडम और अनिल सर ने आपको नमस्ते कहा है. अगर मंत्री जी नहीं आ रहे होते तो वे दोनों स्वयं
आपको लेने आते."
संदीप और एमिली दोनों ने नियाज़ से गर्मजोशी से हाथ मिलाया और धन्यवाद दिया. पूरे रास्ते गाड़ी के म्यूज़िक सिस्टम पर एमिली और संदीप पुराने हिंदी उर्दू गानों और भारतीय पाकिस्तानी गायकों की ग़ज़लों का लुत्फ़ ले रहे थे. एमिली को आनंद तो तब आया जब नियाज़ खान जो राजस्थानी राजपूत मुस्लिम था उसने जबअल्ला जिलाई बाई का गया "केसरिया पधारो महारे देश' की सीडी प्ले की.
यह रिश्ता क्या कहलाता है
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अनिल ने उनके रुकने का इंतज़ाम सेठज़ी वाले बंगले में ही कर दिया था,ताकि प्राइवेसी भी रहे और अनु का एनजीओ वाला ऑफिस-कम-स्टडी भी साथ जुड़ा होने के कारण आपस में विचार विमर्श की भी सुविधा रहे. संदीप और एमिली फ़ंक्शन के पन्द्रह दिन पहले ही पहुँच गए थे और क़रीब छह सप्ताह का प्रोग्राम लेकर आए थे जिसमें एक सप्ताह नेपाल और बांग्लादेश के लिए अलॉट किया हुआ था. अनिल उन दोनों से मिलकर बहुत ख़ुश हुए थे .
सन्दीप बेहद शान्त और सुलझा लगा था पहली ही नज़र में.
एमिली से तो अनायास ही एक रिश्ता सा भी निकल आया था. दरअसल अनिल के परनाना डाक्टर हरिचरण टंडन मेवाड़ राज घराने के डाक्टर थे. उस समय के महाराणा साहब ने उन्हें पटियाला से उदयपुर बुला लिया था और आज भी टंडन परिवार का एक घर उदयपुर में था जो राज परिवार ने डाक्टर टंडन को भेंट किया था. एमिली के पापा राणा रतन सिंह के दादाजी डाक्टर टंडन के समकालीन थे और उनके धर्म भाई बने हुए थे. बिना केलकुलेशन में जाए, अनिल ने एमिली से जब कहा कि वह उन्हें भाईसा कह कर पुकारेगी तो एमिली ने अपनी शुद्ध हिंदी में कहा था, "भाईसा" साथ ही लपक कर अनिल के गले लग गई, संकोची अनिल सकपका गए लेकिन वो लड़की आशीर्वाद लेने की मुद्रा में उनके कंधों के पास सिर नीचा कर थोड़ी नीचे झुक गई.उस आधी अमेरिकन लड़की के संस्कार देख वेअभिभूत हो गए.
अनिल ने उसके सिर पर स्नेह भरा हाथ धर दिया,
और इस तरह उसने अनु से ननद भाभी का रिश्ता जोड़ लिया था.
अनु को चिढ़ाने के लिए अपने टिपिकल ऐक्सेंट में कभी बाबीसा (भाभीसा) और कभी बौझाइसा (भौजाईसा) पुकारती थी. कितनी सुखद है हमारी यह फ़र्स्ट नेम या मिस्टर मिसेज़ की जगह पारिवारिक रिश्तों से पुकारने की यह सांस्कृतिक परम्परा.
एमिली-संदीप आने के दो दिन में ही अनु-अनिल से ऐसे घुल मिल गए जैसे बरसों का याराना हो. तीनों तो लगभग साथ ही हुआ करते थे और अनिल जब भी फ़ुर्सत होती आ बैठते. उनकी बातें ज़्यादातर एमिली से होती और ऐसा अपनापा मानो एक ही माँ की संतान हो.
एमिली ने तीसरी रात के डिनर के समय एक अकस्मात् घोषणा कर दी अधिकार सहित, "हम लोग याने भाभीसा, संदीप और मैं परसों कलकता जा रहे हैं. टिकट तो मैंने भाईसा की भी बुक कर रखी है लेकिन अपने काम के लिए डेडिकेटेड इस इंसान को यहीं छोड़ देना उचित होगा. पूछा इसलिए नहीं कि बहुत सवाल जवाब होते...मैं आप लोगों से मिली तो मुझे लगा कि सिर्फ़ भाईसा की टिकट ही कैंसिल करानी चाहिए....हम तीनों के बारे में प्रिंसेस एमिली डिसीजन ले सकती है और ले भी चुकी है."
अनु और अनिल एमिली के सुंदर चेहरे की तरफ़ आश्चर्य से देख रहे थे और बंदा संदीप तटस्थ बना कोई ठुमरी के बोल गुनगुना रहा था, बलजौर सैयां टाइप्स,और हाथ से मेज़ पर ताल दे रहा था.
एमिली बोल रही थी, " कोलकता के वुड्लैंड्ज़ हॉस्पिटल के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर रॉबिन भट्टाचार्य पहले अमरीका में थे और मैं उनकी स्टूडेंट रह चुकी हूँ. मैंने अनु का केस उनसे डिस्कस किया था और उन्होंने कहा कि सारी लेटेस्ट रिपोर्ट्स को देख कर अगर सब ठीक लगा तो कोक्लीयर इंप्लांट भी कर देंगे वहाँ सर्जरी की सब सुविधाएँ हैं सर के साथ मैं ख़ुद अनु की सर्जरी करूँगी."
अनिल और अनु हक्के बक्के से थे, ख़ुशी, अत्यधिक अधिकार प्रकट करने का आश्चर्य और थोड़े से अटपटे भाव...सब का मिला जुला सा असर उनकी प्रतिक्रिया में था लेकिन ना जाने क्यों बोल नहीं पा रहे थे.
एमिली का भाषण जारी था, "मेरी बात से ऐसा लग सकता है कि मैंने एकतरफ़ा यह निर्णय ले लिया है लेकिन यह सही नहीं है. ये सब अग्रिम तैयारियाँ समय बचाने और प्रॉपर मैनज्मेंट के लिए है ......फ़ाइनल निर्णय ख़ुद अनु को लेना होगा."
उसके बाद कॉन्फ़्रेन्स रूम की स्क्रीन पर डॉ एमिली का कोक्लीयर इंप्लांट पर डिटेल्ड प्रेज़ेंटेशन हुआ. अनिल मानो स्टैंडिंग ओवेशन के लिए खड़े हुए हों, बोले, " मैं तो बाईसा से पूर्णतः सहमत हूँ लेकिन फ़ाइनल कॉल अनु की होगी. वैसे संदीप तुम अनु के कुछ ज़्यादा क़रीब हो बोलो क्या किया जाय."
संदीप बोल रहा था, "अनिल शादी के बाद भी आपकीआवाज़ क़ायम है यहाँ तो सिर्फ़ दोस्ती में ही जुबान की मानो शल्य चिकित्सा कर दी गयी है".
एमिली के सामने न करने की ज़ुर्रत मैं तो नहीं कर सकता,अपनी ट्रिप थोड़े ही खराब करनी है.
एमिली मुँह बनाकर नाराज़गी का नाटक कर रही थी और बाक़ी तीनो ठहाके लगा रहे थे.
अनु बोल उठी, "क्या क्या तैयारियाँ करनी है कलकत्ते के लिए."
उद्घाटन : कारख़ाने का भी और जिंदगियों के नए सोपान का
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कार्यक्रम का आयोजन बहुत ही भव्य हुआ था. मंच सज्जा, श्रोताओं के बैठने की व्यवस्था, जलपान और पेयजल की स्टॉल्ज़, मेक शिफ़्ट वाश रूम्स सब ए वन. मिश्रा और उसके आदमी वालंटीयर्स बने ऐसे फैले हुए थे मानो घर परिवार का कोई बड़ा आयोजन हो. राज्य के मुखमंत्री मुख्य अतिथि थे. केंद्रीय कृषि मंत्री उर्फ़ मिनिस्टर साहब सारे प्रोटोकोल भूलकर ऐसे घूम फिर रहे थे मानो आज उनकी बेटी का विवाह हो.
फैक्ट्री के हेलीपैड के पास ही गार्ड्स अपने बैंड की पूरी तैयारी के साथ खड़े थे.
हेलीकॉप्टर से उतरते ही मंत्री जी को पहले सलामी दी गई और फिर स्वागत धुन बजाई गई.
एक पूरी शाम एनजीओ को डेडिकेटेड थी, उसमें सारे प्रस्तुतीकरण नृत्य, संगीत और अभिनय के माध्यम से थे,यह प्रदेश सांस्कृतिक रूप से बहुत संम्पन्न है ,उनके कार्यक्रम देख समझ आ गया था भाषण नहीं के बराबर थे.
आज एमिली अनु के लिएमानो देवदूत थी, क्योंकि अब अनु बहुत अच्छे से सब कुछ सुन पा रही थी. अनु के आत्मविश्वास और सौंदर्य दोनों में इज़ाफ़ा हो गया था और अनिल प्रोजेक्ट की सफलता से कहीं अधिक अपनी सुंदर शालीन और प्रतिभाशाली जीवन साथी के लिए इतराने लगे थे.
सच में पाँचों इंद्रियाँ और आत्मा मनुष्य को प्रभु से मिला सब से उत्कृष्ट उपहार है. सब का संतुलित समन्वय की मनुष्य को आनंद की उपलब्धि करा पाता है.
अनु की खुशी का पारावार न था वह उन दोनों को चिलका लेक जगन्नाथ पुरी और पारादीप के बीच दिखाने ले गई थी. एमिली को पुरी के खाजे और भुवनेश्वर की खीर मोहन बहुत भायी. कटक की जालीदार चाँदी के हल्के फुल्के गहने भी एमिली कोअच्छे लगे थे और जब अनु ने उसे गिफ़्ट किए तो उसे लगा जैसे उसे उसकी भाभी जो सहेली भी होती है जैसे लाड़ लड़ा रही है.
अनु ने इलाक़े में घुमा घुमा कर दोनों को एनजीओ के विभिन्न कामों को दिखाया, लोगों से मिलवाया. सुष्मिता जी भी बहुत सी ट्रिप्स में साथ रही. सुष्मिताजी तो उनकी सोचों और वाइब्ज़ से इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने तय कर लिया कि अब वह इस एनजीओ के कामों को फ़ुल टाइम देखेगी अपने सारे दूसरे दायित्वों से मुक्त होकर. कहना नहीं होगा उड़ीसा अंचल के लिए अब सुष्मिता फ़्यूचर इंचार्ज थी.
बहुत दिनों बाद अनिल ने अनु को इतना खुश देखा कहीं ना कहीं मन ही मन वह संदीप का एहसान मान रहे थे.
अनु एक दिन सन्दीप से कह रही थी,"मैं कितना डर रही थी अगर एमिली ना होती तो मैं कभी भी कॉक्लियर इम्प्लांट के लिए राजी ना होती मुझे तो इंजेक्शन से भी डर लगता है लेकिन क्या कमाल लड़की है,उसने मुझे कनविंस कर लिया,आप बहुत लकी हो जो आपको एमिली जैसी दोस्त मिली."
सन्दीप ने जवाब दिया था, "हाँ एमिली तुम्हारे लिए बहुत वरिड थी.वैसे सर्जरी करना उसकी हॉबी भी है कहती है हाथों में जब तक खून न लगे मज़ा नहीं आता.ह हा हा हा !"
अनिल कह रहे हैं, जब एमिली और संदीप में इतनी अच्छी दोस्ती और अंडरस्टैंडिंग है ये लोग शादी क्यों नहीं कर लेते. बोल रही थी अनु,"यू आर मेड फ़ॉर एच अदर,कितनी अच्छी केमेस्ट्री है आप दोनों में. मैंने भी औब्जर्व किया है,आपसे बहुत प्यार करती है एमिली हर वक्त परछाई की तरह आपके साथ रहती है, और हां मेरी बात को मजाक मत समझए, पहल आपको ही करनी पड़ेगी लड़की चाहे इंडियन हो या अमेरिकन अपने आप कभी प्रपोज़ नहीं करेगी."
संदीप सोच में पड़ गया ,उसे लगा अनु ठीक कहती है,पिछले सात सालों में दिल प्रति दिन उनकी दोस्ती गहरी ही हुई है,उसके अलावा इस दुनिया में और कौन है उसका कहीं न कहीं संदीप व्यथित हो गया अगर कहीं देर हो गई तो ये पागल लड़की किसी कलाकार को ढूंढ लेगी,उससे दूर होने की कल्पना से ही सन्दीप को पसीना आ गया.
आज वह एमिली से बात करेगा या फिर दादीसा से बात करे, दादीसा एमिली से सच उगलवा ही लेंगी जब से बुढ़ापे की ओर बढ़ रही हैं एक बात को सौ बार जो पूछती हैं.परेशान होकर ही एमिली बता देगी.
उसने फ़िर सोचा, नहीं ये काम अनु को सौंप देता हूँ. ना ना मैं खुद ही पूछूंगा, निश्चय किया उसने.
संदीप ने अपने अमेरिका वाले घर का मंज़र जेहन में लाया. अनु सच ही तो कहती है एमिली तो उसके पूरे घर में बिखरी हुई है. उसका लैपटॉप ,चार्जर,बालों के क्लिप्स,बाथरूम में टूथब्रश,शैम्पू,परफ्यूम्स, सब तो उसी का है.
जब से एमिली ने जुलियार्ड में एडमिशन लिया है उसका तो बस बेडरूम ही रह गया है अपना.घर पर तो एमिली का ही राज है.
ओह ओ ! वो भी कितना पागल है,जो इस तरफ़ ध्यान ही नहीं गया. उफ! ये स्त्रियां भी इन्हें समझना बहुत मुश्किल है.
संदीप मन ही मन मुस्कुरा उठा, उसने अनु को कहा प्लीज़ मुझे सजेस्ट करो मैं एमिली को कब कैसे और कहाँ प्रपोज़ करूँ?
उदयपुर की ट्रिप प्लान हो गयी अफ़रातफ़री में. ओबेराय उदय विलास में दोनो कपल्स ने चेक इन किया. उदयपुर का चप्पा चप्पा एमिली को एक अलग सी थ्रिल दे रहा था. चित्तौड़गढ़ में महारानी पद्मिनी के महल को जब देख रहे थे तो अचानक संदीप ने एमिली से कहा, "क्या सिसोदिया वंश की यह राजकुँवरी मुझ संदीप को अपना जीवनसाथी स्वीकार करने की कृपा करेगी." संदीप की आवाज़ में प्रेम और अनुनय दोनों ही शामिल थे. एमिली चुप थी....चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखाई दे रहे थे.
जहाँ संदीप उदास सा था, अनु और अनिल आश्चर्य चकित थे....अनपेक्षित सा था एमिली का मौन.
चारों ही मेच्योर्ड थे. उस क्षण को मस्तिष्क से झटक कर आगे बढ़ गए थे.
चितौड़ फ़ोर्ट के एकलिंग मंदिर में चारों थे. शिव स्तोत्र के पाठ हो रहे थे. सूर्यवंश की आन बान के स्पंदन नगाड़े की आवाज़ के साथ सभी को रोमांचित कर रहे थे. बहुत ही चार्ज्ड था माहौल और मेडिटेटिव भी. अचानक एमिली ने सर पर स्कार्फ़ ओढ कर भगवान एकलिंग को प्रणाम किया. एमिली ने संदीप की तरफ़ कोई नव्वे सेकंड्ज़ तक देखा और ना जाने क्या फ़ील किया....अनु को बोली एमिली, " भाभीसा मुझको ये लड़का पसंद है. आप और भाईसा बात कर लो दादीसा से.... वो मान जाएंगी .....नहीं मानती तो ये शादी नहीं हो पाएगी." मानो एमिली अपने पापा राणा रतन सिंह के विद्रोही होने के अपराध का प्रायश्चित करना चाह रही हो या दादीसा के माँ के हृदय को लगी चोट पर मरहम लगाना चाह रही हो.
जय एकलिंग ! जय एकलिंग ! के तीव्र उद्घोष ने मानो किसी 'शुभ 'की पुष्टि कर दी हो.
भूपालसागर से विदा कराके, संदीप और बाराती अर्थात अनु और अनिल उदयपुर एयर पोर्ट पर दिल्ली की फ़्लाइट लेने को पहुँच गए थे. परम्परागत राजपूतानी पोशाक में एमिली साक्षात रानी पद्मिनी सी लग रही थी. दादीसा को प्रणाम किया दोनों ने, आशीर्वाद देती दादीसा बोल रही थी, "सदा ख़ुश रहो ! जीवन में सब कुछ पाओ जिसकी कामना तुम लोगों को हो."
संदीप को दादीसा ने सीख दी थी, "कुँवर साहब ! नारी नर की साथी होती है मातहत नहीं. आपने साबित करके दिखाया यह, इसीलिए मेरा आशीर्वाद आप दोनों को मिला." कह रहे थी दादीसा, "म्हारी कँवरी थोड़ी चंचल और नाज़ुक है, आपरे प्यार स्यूँ ही संभली रहसी."
अनु ने कोहनी मार कर अनिल से कहा, "सुन लिया ना दादीसा जो बोल रही थी."
(कहानी कभी भी समाप्त नहीं होती बस विश्राम के लिए रुक जाती है : इस कथा यात्रा की यह है अंतिम कड़ी)

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