Sunday, May 31, 2020

गद्य रचना
****रिश्ता अनजाना****भाग 3(कहानी)
(आपने अब तक पढ़ा गेस्ट हाउस के एक कमरे में बैठी अनु विदेश में रहने वाले संदीप गर्ग से एक..hi.. भेज कर दोस्ती कर लेती है संदीप उससे उसकी फोटो मांगता है अनु कहती है उसके पास कोई फोटो नहीं है ।)
*चिढ़ाने वाला इमोजी*
अगले दिन छोटे से शहर की सड़कें चूने की सफेद लाइनों और मंत्री जी के पोस्टर्स-कट आउट्स से सजने लग गईं थी ।
कारखाने के बाहर रंग बिरंगे झंडे स्वागत के लिए तैयार खड़े थे, करीब एक ट्रक भर के गेंदे के फूल भी सजावट के लिए आए थे।
बड़े पार्क को कनातों से ढक दिया गया था। सबसे पहले मंत्री जी पोर्ट जाकर जनता को संबोधित करेंगे, उसके बाद कारखाने का दौरा और शाम को पार्क में भाषण रखा गया है।
यूं तो मंत्री जी के ठहरने का इंतजाम एक पांच सितारा होटल में किया गया था किंतु सरकारी अफसरों पुलिस पी ए सी की आवाजाही गेस्ट हाउस में बहुत बढ़ गई थी ।गेस्ट हाउस निवासिनी ऑफिसर्स वाइव्स अपने अपने कमरों में बंद हो गई थी।
हाँ फ्रंट ऑफिस वालों ने थोड़ी चैन की साँस ली थी ।
उधर अनु ने कंप्यूटर ऑन किया और देखा कि संदीप के बीसियों मैसेज थे, साथ में कुछ फोटोज़ भी थी । व्यग्र अनु छटपटाहट में थी कि पहले किसको देखे....किसको पढ़े । अनु नाम की बहुत सी लड़कियों की तस्वीरें थी,नीचे लिखा था इनमें से कौन सी पिक्चर है आपकी ?
अनु के कपोल लाल हो गए, अचानक उसमें एक किशोरी मानो अँगड़ायी लेने लगी थी।उसे याद आ गयी हाल ही में कादिम्बनी में पढ़ी एक प्यारी सी कविता जिसका शीर्षक था 'कोंपले फिर फूट आयी', सिर झटका....पागल हो गई हो क्या ? मन ही मन सोचा, कहाँ जा रहा है मेरे सोचों का सफ़र।अनु ख़ुद में लौट आयी थी।
साथ में एक लंबा टेक्स्ट भेजा था संदीप ने, "कल से मैं और एमिली नए ढंग से कार्य करने जा रहे हैं।"क्या तुम मेरी मदद करोगी ?"
यह मानते हुए कि जैसे अनु ने हामी भर ली हो, संदीप लिख रहा था :
मुझे फैमिली प्लैनिंग के लिए छोटी-छोटी स्टोरीज़ सुझाओ।
पहले मेरा काम देख लो...अनु ने ध्यान से पढ़ा और फिर प्रिंटर ऑन करके सभी के प्रिंट्स निकाल लिए....अपने हिसाब से करेक्शन्स भी किये।
अनु ने संदीप को जवाब लिखा :
जब आप गांव में काम कर रहे हैं तो आपको वहां की स्थानीय भाषा में स्लोगन बनाने चाहिए लोगों पर मातृभाषा का असर सबसे ज्यादा होता है।
दूसरा जो भी कहानी कहनी है वह ऐसी हो कि लोगों के दिलो दिमाग़ पर सीधे चोट करे।कहने का मतलब , संदीप आपने अपनी कहानियां 'तोता-मैना' से क्यों कहलवाई?क्यों नहीं आप ...कभी पड़ोसी बनकर....कभी नर्स बन कर या कभी शिक्षिका बनकर.....सीधे बात क्यों नहीं करते, ऐसा मेरा सुझाव है, मानो या ना मानो ।
आपके एन जीओ पर काम करने के लिए क्यों ना घर में बैठी औरतों को ट्रेंड किया जाय ?
बेशक इसके लिए उन्हें कम तनख्वाह दी जाए । एक सी ड्रेस और बैग्ज़ दिए जाएं, जिस से वो टिपिकल समाज सुधरिका नहीं बल्कि आज के ज़माने की डेडिकेटेड एन जी ओ प्रोफेशनल्स के रूप में पेश हो सके।
अनु की तरफ़ से मानो सुझावों की झड़ी सी लग गयी,ना जाने कहाँ कहाँ से एक के बाद एक आइडियाज़ उभर कर आ रहे थे, जैसे दिमाग के फ़्लड गेट्स खुल गए हों । अनगिनत सुझाव थे जिन्हें टाइप करते करते ही दोपहर के करीब 2:00 बज गए थे। आखिर में उसने अनिल और आर्यन (उसका 10 वर्षीय पुत्र) के साथ अपनी फोटो भी भेज दी थी लिख कर ..... "आर्यन,अनिल और मैं ', पहले मैं, आर्यन और अनिल' लिखा था पर ना जाने क्यों सिक्वेंस बदल डाला।यह अवचेतन मन ना.....
और लिख दिया था,"सॉरी !! कल के मज़ाक के लिए !".... और एक मुँह चिढ़ाने वाला इमोजी भी लगा दी थी जिस से वो आज तक ख़ुद चिढ़ती थी ।
*तुम अगर साथ देने का वादा करो*
फैमिली फोटोग्राफ देखते ही अतीत में जा पहुंचा संदीप गर्ग, एक आई टी प्रोफेशनल हार्वर्ड से बिजनेस मैनेजमेंट करने के बाद यू एस में ही बस गया था।आखिर भारत लौटे भी किसके लिए?
वहां उसके पास दुःखद यादों के अलावा कुछ भी तो नहीं था । सिर्फ 10 वर्ष का था तब उसके माता पिता की मृत्यु हो गई थी । पिताजी बिजनेसमैन थे इसलिए पैसों की कोई कमी नहीं थी किंतु तब भी कोई रिश्तेदार छोटे बच्चे के पालन पोषण की जिम्मेदारी लेने को कोई भी तैयार न था।
वह याद नहीं करना चाहता पर भूल भी नहीं पाता कि चाचा जी उसे अपने घर ले आए थे । चाची जी को उसका रहना नहीं भाया था । उनकी उपेक्षा में करीब दो तीन वर्ष बीत गए, उसने अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया था किंतु जब वह अपने चचेरे भाई बहनों से पढ़ने में बहुत अच्छा करने लगा तो चाची जी ने जल भुन कर एक कुटिल प्लान बनाया।
उस दिन बाहर बारिश हो रही थी । घर में संदीप और चाची अकेले थे, चाचा जी काम के सिलसिले में दो-चार दिनों के लिए बाहर गए थे । चाची जी ने नन्हे बालक के पास आकर बड़ी राज़दार आवाज में कहा "बेटा मेरी मानो तो हॉस्टल में दाखिला ले लो।
मैं खुद तुम्हारा दाखिला करा दूंगी. यहां तुम्हारी जान को खतरा है. मुझे डर है कि प्रॉपर्टी के लालच के चक्कर में किसी दिन तुम्हारे चाचा तुम्हें नुकसान न पहुंचा दें।"
इतना डर गया था संदीप कि चाचा जी के आने से पहले रात को ही घर से बाहर निकल भागा था । पास में थोड़े से रुपए थे, धीरे धीरे वो भी खत्म होने लगे थे। कई कई दिन सिर्फ खरबूजा-ककड़ी खाकर सोया था संदीप या सस्ती ब्रेड और प्याज़ खा कर। फिर दूसरे शहर में अपने पिता के मित्र के पास रहकर छोटी-मोटी नौकरी के साथ पढ़ाई जारी रखी थी ।
जितना रोना था संदीप ने बचपन में रोया.... बहुत सख्त जान हो गया है वो धीरे धीरे । वक़्त ने बहुत कुछ सिखा दिया है ना, अब नहीं निकलते उसके आंसू । अनु के परिवार की फोटो को देख कर ना जाने आर्यन में उसे अपना चेहरा दिखने लगा । बरसों बाद आँखें नम हो आयी थी । ग़ौर से लगातार देख रहा था संदीप स्नैप को.....सर झटका और लौट आया था फिर से ख़ुद में ।
आज उसे अपने माता-पिता याद आ रहे थे । सोचने लगा था एक बार जरूर अपने घर जाऊंगा, मम्मी पापा की फोटो ले कर आऊंगा।
उसने अनु को उसके सुझाव के लिए धन्यवाद दिया और लिखा था आगे से वह एन जी ओ में स्त्रियों की नियुक्ति करेगा....अपना सारा रेस्पोंस उसने तीन शब्दों में व्यक्त कर दिया था.
"अनु ! यू आर सुपर्ब !"
तुम उड़ीसा में हमारे एन जी ओ की एक ब्रांच क्यों नहीं शुरू कर लेती अपनी जैसी ब्रिलियंट और थॉटफुल लेडीज़ को साथ ले कर ।
पूरे 36 लाख रुपयों का होता है एक प्रोजेक्ट । हां यह बात अलग है कि हम डायरेक्टर को कुछ नहीं देते । यह ऑनरेरी पोस्ट होती है लेकिन लोगों की दुआएं मिलती है, चाहें या ना चाहें यश भी मिलता है ।
सोच लो आराम से 'घर' में डिस्कस कर लो, कोई जल्दी नहीं है।
अनु को विश्वास ही नहीं हुआ सिर्फ तीन चार दिन की मुलाकात में संदीप उसे प्रोजेक्ट इम्प्लेमेंट करने का ऑफर दे रहा है।
पागल हो गयी थी अनु एक रोमांचक खुशी से ।
अपने कमरे से निकल कर वह सीधे गेस्ट हाउस के किचन में पहुंची। शैफ से कहा "क्या आप मेरे लिए थोड़ा हलवा बना देंगे राम नरेश जी! भगवान को भोग लगाना है।"
उसका जवाब सुने बिना ही अपने मोबाइल को उठाने के लिए भागी । आज उसकी आकांक्षाएं परवान चढ़ी थी आंखों में चमक और चाल में स्फूर्ति देखते बनती थी । एक्सायटेड थी अनु ।
उसने अनिल को टेक्स्ट किया संदीप के दिए न्यू असाइनमेंट के बारे में।
नहीं देख पाए अनिल, बहुत बिज़ी होंगे ना ।
वह किसको बताए?
ऐसे क्षणों में इंसान बहुत कुछ बताना जताना चाहता है, शब्द चाहे कुछ भी हों,मगर भावों का उबाल उँडेल देगा इंसान।
उसने हियरिंग एड लगाकर पापा को फोन लगाया, एक किशोरी की तरह चहक उठी:
"पापा!! आई एम वेरी हैप्पी एंड एक्साइटेड !"
और एक ही सांस में पूरा वाकया सुना डाला ।
आगे फिर😊
--प्रीति मिश्रा

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