Sunday, May 31, 2020


****अनुमान****(लघु कथा)
चाची जी में आज भी वो बात है,कि भीड़ में भी लोगों का ध्यान आकर्षित कर लें,जवानी में कहर ही ढाती रही होंगी।
लव मैरिज है चाचा से उनके आगे पीछे घूमते हैं,सब हंसते,चाची शर्मा जातीं।
बस एक ही आदत गड़बड़ है कि आदमी को देखते ही अनुमान लगाने लग जातीं।
वो कभी सही ,कभी गलत निकलतीं।जब सही निकलतीं, खुश होकर कहतीं,"लिफ़ाफ़ा देख कर मजमून भाॅप जाते हैं।"
अब जो कहानी सुना रही हूं,उन्होंने ही सुनाई थी....
बान्द्रा से जब ट्रेन चली,उनके सामने की बर्थ खाली पड़ी थीं,कभी कोई इक्का,दुक्का यात्री आता और चला जाता।
"मैडम मनमाड से फुल हो जाएंगे पैसेंजर्स",
टी टी बड़ा ही भले घर का लड़का लग रहा था।उसकी बातचीत में एक लिहाज था।
ये ए सी थर्ड क्लास डिब्बे की बात है, उन्हें हल्की झपकी आने लगी थी ऑख खुली सीधे मनमाड स्टेशन पर।
"आंटी अपना बैग रख के ज़रा वाॅशरूम होकर आती हूं,देखियेगा प्लीज़" सामने एक तीस बत्तीस वर्ष की युवती आग्रह कर रही थी,
उसका रंग साॅवला था,बिलकुल सूखी तनिक ऊॅचा कद,नयन नक्श बेहद साधारण,शरीर पर कोई आभूषण नहीं, पैरों की ओर झाॅका,बिछिये नहीं थे, ना ही माथे पर बिन्दी,कलाई में बंधी मौली से पता चल गया कि लड़की हिन्दू है।
ईश्वर ने शक्ल सूरत के मामले में काफी अन्याय किया है ,वे मन ही मन बुदबुदाईं।सिर में बाल भी इतने हल्के कि चौड़ी सी मांग से आधा सिर दिखता था।
जिस सामान की सुरक्षा करने की कह गई थी,पुराने ज़माने का वी आई पी का सूटकेस था,अवश्य ही उसकी माॅ के दहेज का रहा होगा,
वक्त की मार के निशान उस पर साफ़ दिखते थे।
बरबस लड़की के लिये प्रार्थना करने का मन हुआ
" हे ईश्वर इस कन्या को अच्छा घर,वर,देना आप के हाथ में है प्रभु ! हे साईं बाबा ! कल्याण करना इसके माँ बाप को चिन्ता के मारे नींद न आती होगी "।
उन्होंने काल्पनिक मां ,बाप,घर, सब गढ़ लिया हा.. हा..हा हा अब हंसी आती है ।
साइड की बर्थ पर चार पांच किशोरों का एक दल विराजमान हो,धींगामुश्ती में लग गया था।
एक लड़का मोबाइल पर ज़ोर ज़ोर से बातें कर रहा था-........
"भइया आज तो चमत्कार हो ,गया ,......जानते हैं ए सी में बैठ कर आ रहे हैं हम पाॅचों भाई ,
माई,बाबू,पीछे स्लीपर क्लास में हैं......
हम लोगों का टिकट अपग्रेड हुआ है......रहा नहीं गया आपको बिन बताए ....इसीलिये खुसी से फोनिया दिया हूं।"
सो तो नहीं रहे थे?
तब ठीक है,भाई अभी घड़ी देखा ।....
अच्छा रखता हूं,जरा सामान सरिया लूं।
उन लड़कों की मस्ती देख मज़ाआ रहा था।
ये उमर ही ऐसी है,लड़की का ध्यान भी उस वानर दल की ओर था ,उनसे कहने लगी
" पन्द्रह ,सोलह साल के लग रहे हैं,बाबा के दर्शन करने गये होंगे,तभी लाॅटरी लग गई।
वो हँसी बिलकुल निश्चल हंसी, बोली मुझे भी जाना था ,पर हो नहीं पाया"।
इसी बीच उसके खाने की थाली आ गई,पहला कौर मुंह में डालते हुए उसने बुरा सा मुहं बनाया बड़ा बेस्वाद खाना है,नहीं खाया जाएगा।
चाची जी ने संकोच से पूछा, मेरे पास सब्जी और अचार है... पर झूठा हो गया है ।
चलेगा ,सब चलेगा,भूखी लड़की ने खाने का डिब्बा लगभग हाथ से झपट लिया
रात से कुछ नहीं खाया,आपने बनाया आंटी?
"नहीं मेरी भाभी ने"
"बहुत अच्छी होगी आपकी भाभी,
आजकल कौन इतना करता है? "खाने के बाद उसने अपना वी आई पी सूटकेस ऊपर सीट पर रख लिया,
तभी न जाने क्या हुआ ,कुछ दिख गया जैसे ,वो सीट से कूद दरवाजे की ओर चीते के समान फुर्ती दिखाती दौड़ पड़ी।
दरअसल किसी जंगल में रूकने के बाद जब ट्रेन चली ,एक किशोर नीचे उतर गया था, उसे गाड़ी के चलने का पता ही न चला, दौड़ कर चढ़ना चाहा किन्तु दरवाज़ा बन्द था,अब दरवाजे के बाहर लटका हुआ था खिड़की की रेलिंग पकड़ कर डरा सहमा सा।
बेहद घबराये हुए लड़के को , सावधानी के साथ अन्दर खींच लिया उसने,अन्दर आकर लड़का रो पड़ा दीदी।
क्यों जी कैसे मर्द हो? रोते क्यों हो?
उसने गाल पर प्यार से एक चपत लगा दी।
वातावरण को हलका करने के लिये सभी लड़कों को चाय पिलवाई,इधर उधर की बातें कर सहमे हुये से लड़कों का डर निकाल दिया।
अब उसने अपना पुराना वी आई पी सूटकेस खोला,तीन,चार मोटी मोटी किताबें निकालीं बोली इन भारी भरकम किताबों की वजह से ये मजबूत वी आई पी सूट केस रखना पड़ता है, बाहर से विचार खराब हो गया है ,फिर अपने आई पैड पर नोट्स बनाने लगी ।
वे भौंचंकी सी बस उस साधारण सी दिखने वाली लड़की को देखने लगी।
उन्हें अपनी तरफ़ देखते हुए बोली MS(गाइनी)कर रही हूँ।
कल बड़ी कठिन डिलीवरी का केस आ गया था,बच्चे की एक बांह बाहर आ गई बड़ी मुश्किल में मां और बच्चे की जान बच पायी।
इसीलिए तो दौड़ भाग के ट्रेन पकड़ी।
मोबाइल भी डेड पड़े हैं। उसने एप्पल का मोबाइल फ़ोन निकाल चार्जिंग पर लगा दिया।
"मुझे ये ट्रेन के लम्बे सफ़र बहुत अच्छे लगते हैं,शान्ति से पढ़ाई हो जाती है"।
करीब तीन चार घण्टे किताबों में सर घुसाए रहने के बाद उसनेशायद अपने घर फ़ोन मिलाया अब वो पूछ रही थी "बच्चे कैसे हैं बात कराओ।डॉक्टर साहब से कह देना वक़्त मिलते ही कॉल कर लें"
फिर अपने बच्चों को दादी को तंग न करने की हिदायत देने लगी।
फ़ोन रखते ही बोली....मैं और मेरे पति गांव की पृष्ठभूमि से हैं,बड़ी कठिनाइयों से भरा जीवन जिया है.....अब ....हमारा नर्सिंग होम है उससे लगा स्कूल,हॉस्टल भी है गांव के बच्चों के लिए,
चाची मुहं खोले बस उस, साधारण दिखने वाली की,असाधारण बातें सुन रहीं थीं।अगले दिन जब उसका स्टेशन आया उसे रिसीव करने एक सुदर्शन पुरुष खड़ा था ,चाची ने फिर सोचा अवश्य ही लड़की का पति है,......उनकी कल्पना शक्ति उड़ान भरने लगी,लड़की उतर कर जा चुकी थी अब सामने एक नवयुवक और युवती बैठे थे चाची फिर से अनुमान लगाने में व्यस्त हो गईं ............समाप्त

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