Sunday, May 31, 2020

 मेरा स्वाभिमान  (लम्बी कहानी)
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"मम्मा ये आपने क्या लिखा है? "सबा ने सान्या से कहा.
"तुम ही मेरा स्वाभिमान हो. "
"कोई पत्नी अपने पति को ऐसे बोरिंग मैसेजेस करती है? "
"वो भी गुडमॉर्निंग मैसेज."
"तुझसे मतलब?"सान्या बोली.
"और मेरा मोबाइल छूने की ज़रुरत क्या है?
"वापस रख जहाँ से उठाया था."
"रख दिया है." सबा ने कहा
"और हाँ पापा को ज़रा इंटरेस्टिंग मैसेजेस किया करो. जैसे आज मैंने कर दिया है. आपके मोबाइल से.कुछ सीखो मम्मा "
"देखना आज पापा जल्दी घर आएँगे."
सबा ने सान्या के माथे को चूमा और चहकती हुई सी घर से निकल गई. सान्या ने मोबाइल में झांकते हुए कहा.
"हे भगवान! ये लड़की बड़ी सर चढ़ी है."
"इन बाप बेटी की जोड़ी ने मेरी आफ़त कर रखी है.जतिन ने बिल्कुल बिगाड़ दिया है अपने लाड़ प्यार से "
सान्या के सौम्य, उजले चेहरे पर मुस्कुराहट थी. जो उसके गृहस्थ जीवन में व्याप्त संतोष और प्रेम को प्रकट कर रही थी.
तभी बाहर घंटी बजी डाकिया था.
"सबा जी को बुलाइये. उनके लिए एक पत्र है."
"मुझे दे दो उसकी माँ हूं."
सान्या ने पत्र को भेजने वाले का नाम देखा और उसे झटका सा लगा वो लिफ़ाफ़ा लेकर सोफे पर बैठ शून्य में निहारने लगी, जिस अतीत को भूल जाना चाहती है, बार बार सामने आ खड़ा हो जाता है.
रोहन ने एल.आई.सी. की पॉलसी भेजी है. साथ ही लिखा है. क्या वो उसके हस्ताक्षर लेने आ सकता है ? वो दो दिनों के लिए उनके शहर में है, फ़िर इंडिया चला जाएगा.
कनाडा की ठण्ड में भी सान्या का मुहँ सूख गया है. उसके गोरे गाल और कान उत्तेजना से लाल हो गए हैं.
कितनी भूली यादें एक साथ आंधी की तरह उसके दिमाग़ में चल पड़ी हैं. क्या करे वो?
वो जतिन को फ़ोन करके बुला ले.
अथवा रोहन को मना कर दे कि खबरदार जो उसके सुखी जीवन में दोबारा झाँकने की कोशिश की तो उससे बुरा कोई नहीं होगा.
रोहन उसका पहला पति और सबा का बायलोजिकल फादर...............
सान्या परेशान हो गई कैसे बताएगी सबा को रोहन के बारे में?
वो तो उसके नाम से ही भड़क जाती है.
जतिन ने इतना प्रेम दिया है कि सबा उन्हें ही अपना पिता मानती है.
जब हाई स्कूल का फॉर्म भरना था तब उसने अपना सरनेम भी बदल लिया था . अब सबा शर्मा से सबा माथुर हो गई है.
वैसे सबा के पैदा होने पर रोहन बहुत ख़ुश हुआ था. उसके एक अफगानी मित्र ने ही उसकी बेटी का नाम सबा रखा था.
मित्रता भी क्या चीज़ होती है. ग़ैरों को अपना बना दे. आप अपने मित्रों से जी भर के दिल की बातें कह सकते हैं.
आपकी अच्छी बुरी आदतों के साथ वे आपसे प्रेम करते हैं.
सान्या सोचने लगी तब हम सब कितने अच्छे मित्र थे मैं, जतिन, जोया, रोहन और सलीम भाई .
केन्या में रहना सिर्फ़ इन्हीं लोगों के कारण संभव हो पाया था.
शुरूआत में बड़े अच्छे दिन कट रहे थे.
उसकी स्कूल में नौकरी, शाम को हिन्दीभाषी दोस्तों में उठना बैठना, खाना पीना,किसी बात की फ़िक्र ना थी.
लेकिन जब सबा के पैदा होने पर उसे नौकरी छोड़नी पड़ी थी तब से ही दिक्कत शुरू हो गई थी.
रोहन ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी थी वे बिज़नेस में लग गया था . जब तब उसको बाहर जाना पड़ता था.
परदेश में नन्ही बच्ची के साथ वो परेशान हो उठी थी.
उसने रोहन से कहा था क्या वो इंडिया चली जाए? या अपनी छोटी बहन को बुला ले.
पर रोहन ने मना कर दिया था.
सबा की देख भाल के लिए सान्या ने एक लड़की रख ली थी और लड़की को तनख्वाह देने के लिए स्कूल ज्वाइन कर लिया था.
उसे याद है विवाह के तीन चार वर्ष बाद ही
रोहन ने घर का किराया, और घर खर्च के पैसे देने बन्द से ही कर दिए थे.
वो भी मांग नहीं पाती थी. सोचती थी कि जब काम चल पड़ेगा ख़ुद ही देने लगेंगे.
. मुसीबतों की मानो झड़ी सी लग गई थी उन दिनों.
पहले रोहन का बिज़नेस में घाटा दूसरी ओर सान्या का वर्क परमिट एक्सपायर हो रहा था.जिसे लेकर दिन में एक बार बहस जरूरी थी. वो स्पाउस वर्क परमिट पर थी.
बस रिन्यूअल के लिए फॉर्म ही तो भरना था, उसने कई बार रोहन से अनुरोध किया था, प्लीज़ टाइम से सारी फ़ॉर्मेलिटीज़ पूरी कर दो किन्तु रोहन सुनता ही नहीं था.
उलटे जोर जोर से चिल्लाने लगता था.
किसी और बात में कमी निकालने लगता था . जैसे फ्रिज में दूध खुला क्यों रखा है, ये सब्जियाँ क्यों सूख रही हैं, धूप में कपड़े अभी तक क्यों पड़े हैं.
सान्या को पता चल रहा था कि वो कितनी फूहड़ है. उसने अपने आप को कभी इस नज़र से देखा नहीं था.
अब वो ख़ुद को हारा हुआ मानने लगी थी.
बताओ ये छोटे छोटे काम नहीं होते हैं उससे.
रात दिन ख़ुद को कोसने लगी थी सान्या.
उसने शिद्दत से प्रयास किया कि रोहन को शिकायत का कोई मौका ना दे.
उसने अपने मम्मी पापा को देखा था उनके बीच भी झगड़े होते थे किन्तु झगड़ों की अवधि बहुत कम होती थी.
रोहन अगर एक बार रूठ जाए तो महीनों बात नहीं करता था. वो उसको मनाने के लिए कितनी दफ़ा माफ़ी मांग चुकी है. यहाँ तक कि पैर भी छुए हैं. ना जाने किस मिट्टी का बना है कि पिघलता ही नहीं है.
घर में मम्मी पापा को किस मुहँ से बताए, उसकी दो बहनें और हैं जिनके रिश्ते होने हैं.
वो सोच रही थी कि तभी उसकी सास उनसे मिलने आ गई थीं.
उन्होंने रोहन और सान्या के रिश्तों की खटास सूंघ ली थी.
सान्या को अपने पास बिठाकर समझाया था "बेटा! तुम कितनी ख़ुश रहती थी और अब मुरझा कैसे गई हो?
अपने बेटे को मैं खूब जानती हूं.
इसे छोटी छोटी बातें पकड़ने की आदत है.
मैंने सोचा था तुम्हारी जैसी सुन्दर लड़की को पाकर अपना व्यवहार बदल लेगा. पर इसमें तो ज़रा भी परिवर्तन नहीं आया.
दरअसल ये हमेशा से ही किताबों में घुसा रहता था. कल्पना लोक में विचरता है.
हमारा अकेला बच्चा भी था. शायद हमारे पालन पोषण
में कमी रह गई हो.
मैंने सोचा था तेरे जैसी चुलबुली लड़की के साथ हंसना बोलना सीखेगा पर यहाँ तो तू ही रोती हुई सी लग रही है.
फ़िर उन्होंने कहा "सकल पदारथ हैं जग माही करम हीन कुछ पावत नाहीं. "
मम्मी जी के आने से एक अच्छी बात हुई सान्या ने ख़ुद को कोसना बन्द कर दिया था.
वो दो महीने बहुत अच्छे निकले.
रोहन भी माँ के आने से ख़ुश था.
उसकी माँ प्रेम की नदी थी जो उनके नीरस सूखे वैवाहिक जीवन को हरा भरा बनाने आई थी. ऐसा सान्या को लगता था.
"जा बाहर घूम आ. सबा को मैं संभालती हूं."
कभी पार्क, कभी किसी फ़िल्म देखने जबरजस्ती धक्का मार कर घर से निकाल देती थीं.
किन्तु उनके वापस जाते ही रोहन पहले जैसा ही हो गया था.
सान्या और उसका स्कूल
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सान्या आदर और प्रेम की भूखी थी. ये प्रेम उसने स्कूल के नन्हे मुन्ने बच्चों में तलाशना प्रारम्भ कर दिया था.
घर की विषम परिस्थितियों में तप कर वो सोना बन रही थी या कोयला ये तो वक्त ही बताने वाला था. किन्तु वो चुपचाप लगी रहती थी अपने कार्य में. अपनी मेहनत के बलबूते वो शीघ्र ही सीनियर कक्षाओं को पढ़ाने लगी थी.
जोया भी यहीं पढ़ाती थी. अब दोनों का आना जाना भी साथ होने लगा था.
आपस में बातें शेयर होने लगी थीं.
जोया जतिन के गुण गाते नहीं थकती थी.
सान्या को अपने बिखरते परिवार को समेटने के लिए एक सच्चा हमदर्द चाहिए था जो उसे बता सके कि वो कैसे रोहन के साथ निभाए. उसे ख़ुश रखे.
उसे उम्मीद थी कि जोया और जतिन कोई ना कोई हल निकाल देंगे.
जोया ने ही समझाया था सीधे सीधे बात करो और पूछो रोहन से उसे क्या तकलीफ़ है तुमसे.
अक्सर छोटी छोटी बातें बाद में बड़ी हो जाती हैं.
दिन पर दिन किच किच से सान्या भी ऊबने लगी थी. उसने परेशान होकर कहा भी था "रोहन अगर तुम्हें मुझसे कोई तकलीफ है तो साफ-साफ कहो."
" इस तरह रोज रोज लड़ने से मुझे और तुम्हें दोनों को ही परेशानी होती है मैं स्कूल में भी ठीक से पढ़ा नहीं पाती हूं."
और फिर सबा भी बड़ी हो रही है आखिर वो क्या सीखेगी.हम दोनों को देखकर.
रोहन विचित्र सी हंसी हंस पडा था और बोला "तुम अपने आप अपनी कमियां ढूंढो यह काम थोड़ा मुश्किल जरूर है.
मुझे उम्मीद है तुम इतनी इंटेलिजेंट हो, अपने में सुधार ले आओ.
हाँ मुझसे कोई उम्मीद ना रखना. सारी गड़बड़ियां तुम्हारे अंदर हैं, अगर ये सोच कर हमारे रिश्ते पर काम करोगी तो कुछ हो सकता है वरना अपना रास्ता देख लो.
मुझे ये बोझिल रिश्ता चलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है.
तुम जब चाहो मुझे छोड़ कर जा सकती हो."
सान्या घर के काम निबटाकर सड़क पर टहलने निकल आई थी.
ये क्या कह दिया रोहन ने?
उसकी ऐसी ग़लती क्या है?
समाज में उसका नाम है.
सारे विद्यार्थी उसे पसन्द करते हैं. शहर की दस खूबसूरत औरतों के नाम लिखे जाएं तो एक नाम उसका भी होगा. अच्छा कमाती है वो.
आख़िर क्या चाहिए रोहन को. कहाँ भटक रहा है इस आदमी का मन.
वो काफ़ी देर सड़क पर टहलती रही और फ़िर जोया के घर चली गई.
जोया ने उसका उड़ा चेहरा देख कर पूछा क्या हुआ?
बस वो जोया के कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी. अगर उसे कुछ पता होता तो अवश्य बताती.
जोया ने जतिन को रोहन के घर की ओर यह कहते हुए रवाना किया "जाकर देखो रोहन कैसा है? लगता है दोनों लड़ लिए हैं.
कहीं बच्ची रो तो नहीं रही है?"
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जोया ने सान्या से कहा "चुप हो जाओ सान्या और मुझे शुरू से बताओ"
सान्या बोली "मेरी और रोहन के अरेंज मैरिज है मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानती थी."
"बस इतना पता था पढ़ाई में बहुत अच्छे हैंअच्छी जॉब में हैं वह दूर रिश्ते में भी कुछ लगते हैं.बस विवाह हो गया था."
उसने गहरी सांस लेते हुए आगे कहा....
"अभी जब रोहन की मम्मी आयी थीं तो उन्होंने बताया कि रोहन की कोई गर्लफ्रेंड थी शायद पेन फ्रेंड थी. बचपन से ही, कई वर्षों तक दोनों में पत्र व्यवहार चलता रहा था. लड़की इंग्लैंड में रहती थी और फिर अचानक एक दिन उसके पत्र आने बंद हो गए थे. रोहन बहुत अपसेट रहने लगे थे."
इसीलिए जब मम्मी जी ने मुझे देखा तो उन्होंने मेरे घर वालों से करीब-करीब विनती करके मेरा हाथ मांग लिया था. इस बारे में रोहन ने कभी कुछ नहीं बताया है लेकिन ऐसा लगता है आज भी उस लड़की को वो भूल नहीं पाए हैं. इसीलिए मुझसे सीधे मुंह बात ही नहीं करते हैं अगर कोई मेरी तारीफ़ कर दे उसे वो अपना अपमान समझते हैं.
जोया ने पूछा "क्या रोहन ने कभी तुम पर हाथ उठाया? "
"नहीं "
"लेकिन इतनी मानसिक प्रताड़ना मैं नहीं सह सकती हूँ."
"मुझमें इतनी कमियां निकाल देते हैं कि किसी भी कार्य को करने में डर लगता है."
"लगता है कि सारा कॉन्फिडेंस खोती जा रही हूँ."
" मैं यहां बिल्कुल अकेली पड़ गई हूं."
"समझ नहीं आता है उनका यह रुखा व्यवहार किस तरह से सहन करूँ."
रोहन और बीती बातें
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जतिन ने रोहन से बड़े प्यार से बात की, एक बड़े भाई और दोस्त की तरह.
रोहन जतिन का बहुत लिहाज भी करता था. वो उन लोगों से आयु में भी बड़े थे. और समाज में अच्छी हैसियत भी रखते थे.
लेकिन जब रोहन ने अपनी परेशानी बताई तो जतिन को लगा ये केस तो मनोरोग विशेषज्ञ को देखना चाहिए.
रोहन कहीं ना कहीं हीन भावना का शिकार है.
हाँ ये सच है वो सान्या से चाह कर भी प्रेम नहीं कर पाता है.
दरअसल सान्या बहुत सुंदर है और वह साधारण शक्ल सूरत का आदमी है.
उसे लगता है कि सब लोग उनकी जोड़ी देखकर हँसते हैं.
सान्या के व्यवहार से उसे कभी भी नहीं लगा कि वह उसकी शक्ल सूरत को पसंद नहीं करती है.
पर शायद वह जाहिर नहीं होने देती है.
वह सान्या को ढोंगी समझता है.
साधारण शक्ल सूरत के कारण उसकी पहली गर्लफ्रेंड छोड़ कर जा चुकी हैं यह दर्द आज तक उसको सालता है.
बरसों पुरानी दोस्ती सिर्फ़ एक फ़ोटो एक्सचेंज पर टूट गई थी. रोहन ने लड़की की फ़ोटो मांगी थी. लड़की ने भी उसकी फ़ोटो मांगी. बस वही आख़िरी पत्रव्यवहार था.
उसके बाद कोई भी जवाब नहीं आया. कहाँ हर हफ़्ते एक पत्र अवश्य आता था. वो कई सालों तक उदास रहा था.
उसने सोचा था कि वह भूल जाएगा फिर कॉलेज में दूसरी बार उसकी दोस्ती एक अन्य लड़की से हुई.
बहुत खूबसूरत थी ये दूसरी लड़की भी रोहन को खूब इस्तेमाल किया उसने पढ़ाई में मदद ली और जैसे ही कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई उसके ही सीनियर से विवाह कर यू. एस. चली गई थी.
कहीं ना कहीं तभी से वह हीन भावना का शिकार हो गया है उसने अपने मन में सोच लिया था इन खूबसूरत लड़कियों के विश्वासघात का बदला लेगा.
उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य एक खूबसूरत लड़की से विवाह करना और उस औरत को परेशान कर अपने अपमान का बदला लेना है.
रोहन ने व्हिस्की का तीसरा पैग लगाते हुए जब जतिन को बताया उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी.
बार बार उनकी नज़रों के सामने सान्या का भोला भाला उदास चेहरा आ रहा था. ......... 
जतिन ने ख़ुद को सम्भाला और रोहन से कहा.
"देखो रोहन जहाँ तक मैं समझता हूँ सान्या एक भली लड़की है, और यहाँ तुम्हारे सहारे ही आयी है.
अरे यार ! पत्नी है तुम्हारी.
तुमको उसको पाकर ख़ुश होना चाहिए.
हर व्यक्ति का एक अतीत होता है. भूल जाओ, जीवन के आज को देखो.तुम्हारा छोटा सा घर संसार है. प्यारी सी बच्ची है, एक सुशील पत्नी है.
इसे बचाओ रोहन.
चलो मेरे घर चलो जोया ने तुमको बुलाया है आज साथ में ही डिनर करते हैं."
"सबा चलिए बेटा आपको भैया और दीदी के साथ खेलना है?"जब जतिन ने पूछा तो नन्ही सबा अपने जूते उठा लाई और पहनने का प्रयास करने लगी.
"मैं पहनाता हूँ इधर बैठो."
जतिन ने कहा तब तक रोहन भी कपड़े बदल कर आ गया था.
उस दिन के बाद जोया और जतिन ने रोहन और सान्या के यहाँ आना जाना बढ़ा लिया था.
जतिन ने एक मनोरोग विशेषज्ञ से बातचीत की जो कि उनकी पारिवारिक मित्र भी थीं, इस तरह से सान्या और रोहन की काउंसलिंग शुरू हुई.
सान्या को आज भी याद है पूरी दस सिटिंग्स हुई थीं उन दोनों की.
लम्बी लम्बी बातें, दुनिया भर के डिस्कशंन्स और तरह तरह की मनोविज्ञान को सुलझाती एक्सरसाइसेज़.
सान्या हर हाल में अपना रिश्ता बचाना चाहती थी. उसे समझ नहीं आता था कि जो रोहन सबके साथ इतना अच्छा है उसके साथ ही क्यों नहीं पटा पा रहा है.
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जोया और जतिन..........
नैरोबी में कुछ वक्त गुजारने के बाद जोया और जतिन को मुम्बासा जाना पड़ा था.
उनके नैरोबी छोड़ने की ख़बर रोहन और सान्या को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी.
रोहन ने जोया से कहा "प्लीज़ आप भाईसाब को कहिये यहाँ से ना जाएं."
सान्या बोली "भाईसाब आप लोग चले गए तो हमारे झगड़े कौन निबटाएगा."
"इसीलिये जा रहा हूँ ताकि तुम दोनों समझदारी से रह सको."
वो दोनों हँस पड़े थे.
रोहनऔर सान्या का हँसता खेलता परिवार देख कर जोया को अच्छा लगता था.
डिनर के बाद जब वे दोनों चले गए तो जतिन ने जोया से कहा "आज डॉ सिन्हा मिली थीं. "
"अच्छा कैसी हैं."
"वो तो ठीक हैं, पर सान्या को लेकर परेशान थी. कह रही थी, सान्या का व्यवहार बिल्कुल ठीक है पर रोहन में प्रॉब्लंस हैं. लास्ट सिटिंग में उन्होंने रोहन को हिप्नोटाइज़ किया था. उसके मन में पुराने धोखे जड़ जमा कर बैठ गए हैं, आज भी बदले की भावना नहीं निकाल पा रहा है. "
"मुझे तो इस लड़की के लिए दुःख होता है."
जोया ने कहा "परेशान ना होइए, सब ठीक होगा. आपने देखा नहीं आजकल दोनों कितने प्यार से रह रहे हैं."
जतिन ने कहा" जो तुम कह रही हो वही सच हो."
जोया बोली "और फ़िर रोहन आपकी इज़्ज़त करता है. आपको बड़े भाई की तरह मानता है. आप जाने से पहले उसको समझा दीजिएगा."
भारी मन से पति पत्नी ने नैरोबी से विदा ली और मुम्बासा में नये ढंग से जीवन की शुरुआत की किन्तु जोया और बच्चे नैरोबी को बहुत मिस करते थे. दो वर्ष गुज़र गए,
ना जाने जतिन का मन भी नहीं लग रहा था.उन्होंने वहाँ खूब पैसे कमाए पर जैसे ही
नैरोबी आने का मौका मिला और वो सब वापस आ गए.
अभी कुछ दिन ही बीते थे कि जतिन और जोया का कार एक्सीडेंट हो गया.जिसमें दोनों को बहुत चोटें आयी थीं.
बहुत कोशिशों के बावजूद जोया को डॉक्टर्स बचा नहीं सके थे. जतिन को भी बहुत चोटें आयी थीं. वो पूरे चार महीने अस्पताल में ही भर्ती थे. नैरोबी के भारतीय परिवारों में हलचल मच गई. वो दोनों सभी के प्रिय थे. सबके काम आने वाले ज़िंदादिल और नर्म दिल इन्सान.
उनके दोनों बच्चों को सान्या अपने घर ले आई थी.
तब उनकी बेटी बारह वर्ष की थी और बेटा सिर्फ़ दस साल का.
उन्हें देख कर कलेजा मुहँ को आता था.
उन्हें कोई कैसे समझाए?
जीवन भर का शून्य उन दोनों के जीवन में आ गया था. इसे कैसे सहन करेंगे ये मासूम बच्चे.
माँ की कमी कौन पूरी करेगा.
जोया के जाने के बाद दोनों बच्चे ऐसे गुमसुम हुए कि लगता था, उनके मुंह में जुबान ही नहीं है.
पढ़ाई में भी कंसन्ट्रेट नहीं कर पा रहे थे दोनों.
क्लास टीचर ने दुःखी होकर कहा था.
जोया मैम अपने हर स्टुडेन्ट पर कितना ध्यान देती थीं.आज उनके बच्चों को देखने वाला कोई नहीं है.
ईश्वर की क्या मर्ज़ी है?
कई बार समझ में नहीं आता है.
फिलहाल जब तक इंडिया से कोई नहीं आ जाता सान्या ने बच्चों की देखभाल का जिम्मा ले लिया था. बच्चे उससे हिल मिल गए थे.सबा को दो दोस्त मिल गए थे.
बच्चों की देखभाल के साथ ही वो जतिन की भी मदद कर रही थी.
रोहन और सान्या के लिए जतिन अपने फैमिली मेंबर जैसे थे.
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एक वर्षऔर निकल गया था.
सान्या अपने कॉलेज में बिज़ी हो गई थी. इस बार जब इंडिया गई थी तो उसकी छोटी बहन भी ज़िद करके उसके पास घूमने के लिए नैरोबी आ गई थी.उसके आने से सान्या को बहुत अच्छा लगता था.
सान्या बचपन से ही ईश्वर में आस्था रखती थीऔर शादी के बाद पूजापाठ और भी बढ़ गया था क्योंकि परदेश में भगवान का ही एक सहारा दिखता था.
इस बार दुर्गापूजा पर उसने नौ दिन के व्रत रखे थे. अभी तक याद है वो व्रत का आख़िरी दिन था.
सबा ने पूछा "मम्मा आप देवी माँ के बारे में बताइये ना."
सान्या ने कहा "देवी माँ हमको सिखाती हैं कि हमें बहादुर होना चाहिए. किसी भी अन्याय को नहीं सहना चाहिए. क्योंकि इससे आपको तो दुःख पहुँचता ही है पर सामने वाले शैतान की ताक़त दो गुनी बढ़ जाती है."
"क्या मैं बहादुर हूँ."सबा बोली.
"हाँ तुम बहादुर हो.कितनी बार घर में अकेली रुक जाती हो."
"थैंक्स मम्मा."
ओहो !!जल्दी करो सबा आज मैं पूजा के चक्कर में कॉलेज के लिए लेट हो गई. बाहर निकलो सबा. सान्या चिल्लाई"जल्दी बेटा. "
कॉलेज पहुँच कर उसे ना जाने क्या सूझा वो कॉलेज से घर आ गई थी.
उसे लग रहा था जल्दीबाजी में ठीक से पूजा नहीं हुई है. उसने सोचा था देवी माँ की आरती करेगी और कोई इंडियन ड्रेस पहनेगी.फ़िर दोबारा कॉलेज चली जाएगी.
उसके घर से पैदल का रास्ता था.
पूजा करने के बाद सान्या ने जैसे ही बाहर जाने के लिए क़दम रखा कि लैंडलाइन फ़ोन घनघना उठा.
उसके साथी पाकिस्तानी प्रोफेसर का फ़ोन था "मैं ज़ाकिर बोल रहा हूँ आज ही पाकिस्तान के लिए वापस निकल रहा हूँ मुझे कॉलेज से निकाल दिया गया है.
किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी है कि मेरा वर्क परमिट एक्सपायर हो गया है.
किसी तरह जाने से पहले तुम्हें बताना चाहता था कि तुम्हारे ख़िलाफ़ भी चार्ज शीट बनाई गई है.
तुम अपनेआप को बचा लेना.
"जी ज़ाकिर भाई !आप क्या कह रहे हैं?"
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है."सान्या घबरा गई थी.
"ख़ुदा हाफ़िज़ !अपने लिए वकील कर लेना बेटा."
ज़ाकिर सर ने फ़ोन काट दिया था.
उन दिनों मोबाईल फ़ोन नहीं आये थे.
सान्या डर से काँप रही थी. उसने सबसे पहले रोहन को पेजर पर मैसेज किया. Call me this is urgent.
लेकिन रोहन का फ़ोन नहीं आया.
वो बार बार मैसेज करती रही फ़िर हताश हो गई.
उसने सोचा कॉलेज में प्रिंसिपल से बात करती हूँ.
उनसे सारी सच्चाई पता चल जाएगी. वो ही कोई रास्ता सुझाएंगे.
जैसे ही उसने कॉलेज में प्रिंसिपल के ऑफिस में क़दम रखा उसे ढूँढ़ते हुए पुलिस कर्मी पहुँच चुके थे.
उनके पास कोर्ट का अरेस्ट वॉरेंट था.
सान्या को याद नहीं कि उन लोगों ने क्या कहा?
किन्तु पांच मिनट के भीतर ही वो लोग अपनी पुलिस वैन में बिठा कर उसको ले चले थे.
पूरा कॉलेज उसकी गिरफ़्तारी देख रहा था. छुट्टी का वक्त था. वो शर्मिंदगी से अपना सर ऊपर नहीं कर पा रही थी.
ये चार खूंखार से दिखने वाले काले लम्बे पुलिस कर्मी थे.
आपस में उसे देख कर स्वाहिली भाषा में अश्लील मज़ाक कर रहे थे.
सान्या समझ गई थी वो किसी बड़ी मुसीबत में फँस चुकी है.
शाम के चार बज चुके थे. शुक्रवार का दिन था.
कोर्ट से बेल सिर्फ़ साढ़े पांच बजे तक हो सकती थी. उसके बाद शनिवार और रविवार को न्यायालय बन्द था.
सान्या को अपनी छोटी बहन और नन्ही बच्ची की फ़िक्र हो रही है.
रोहन तो 7या आठ बजे से पहले घर नहीं आता है.
अचानक उसने ध्यान दिया कि ड्राइवर ने शहर की सड़क छोड़ दी है वो कोर्ट के पिछवाड़े की बिल्डिंग की ओर मुड़ गया है.
सान्या ने उनमें से एक पुलिस ऑफिसर से पूछा आप मुझे कहाँ ले जा रहे हैं? पुलिस स्टेशन तो पीछे छूट गया है.
उसने कोई जवाब नहीं दिया किंतु उसके साथी एक शैतानी हंसी हँस पड़े.उनमें से एक बोला.."पुलिस स्टेशन जैसी जगह तुम्हारी जैसी सुंदरियों के लिए नहीं है.
तुम दो दिन तक हमारे साथ रहो.हमें ख़ुश करो, वादा करते हैं बिना कोई केस बनाए तुम्हें छोड़ देंगे.
हम तुमको गेस्ट हाउस ले जा रहे हैं, और याद रखना अगर जरा भी आवाज़ निकाली तो तुम्हारा वो हाल करेंगे तुम सोच नहीं सकती हो."
सान्या उनकी कैद से निकलने को आतुर हो उठी थी. गेस्ट हाउस का कमरा दसवीं मंज़िल पर था.
उसने सोच लिया था कि मौका मिलते ही वो कमरे की खिड़की से कूद जाएगी किन्तु इन शैतानों को अपना शरीर नहीं छूने देगी.
उसे कुछ सूझ नहीं रहा था वो मन ही मन ईश्वर को याद करने लगी थी. उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे.
ये पुलिस वाले 5.30 बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे.
उसके बाद कोर्ट की बिल्डिंग दो दिन के लिए खाली हो जाने वाली थी.
वे सब शैतानी हंसी हँस रहे थे.
सान्या ने ईश्वर से प्रार्थना की कि मुझे मौत दे दो.
पांच बजकर बीस मिनट हो गए थे. कि अचानक गेस्ट हाउस के दरवाजे पर चहलकदमी और आवाज़ों का शोर सुनाई पड़ने लगा.
आवाज़ें बढ़ीं और उस कमरे के आगे आकर रुक गईं जहाँ सान्या को छुपाया गया था. उनके कमरे के दरवाज़े को ज़ोर की लात मार कर एक साढ़े छह फुट के काले अफ़्रीकी ने खोल दिया था. उसके साथ एक दो और व्यक्ति भी थे.
अब वे सब इंग्लिश और स्वाहली भाषा में बहस कर रहे थे.
"मुझे पूरी उम्मीद थी तुम लोगों ने यहीं इस लड़की को छुपाया होगा."
उसके हाथ में एक लिफ़ाफ़ा था. उसने लिफ़ाफ़ा पुलिस ऑफिसर के मुहँ पर मारा और कहा "ये इस लड़की की ज़मानत के पेपर्स हैं."
"ठीक से पढ़ लो."
पुलिस वालों के मंसूबे कामयाब ना हुए तो सान्या को छोड़ते हुए बोले "कितने दिनों के लिए ले जा रहे हो? "
"देखना इसे जल्द ही हम फ़िर पकड़ लेंगे."
"बाय !बाय ! लड़की आज तो तू बच गई है पर देखता हूँ तू कब तक बचेगी?"
अगर दो दिनों में वर्क परमिट की मोहर नहीं लगी तो हम तुझे उठा ले जाएंगे लड़की याद रखना.
पुलिस ऑफिसर खिसिया कर जोर जोर से चिल्ला रहा था.
उस वकील ने सान्या के सिर पर हाथ फ़ेर कर कहा "डरो मत मैं तुम्हारे पिता जैसा हूँ.
तुम्हारे कॉलेज की केमिस्ट्री टीचर रोज़ी मेरी पत्नी है. आज मैं कोर्ट से जल्दी घर के लिए निकल रहा था तभी रोज़ी का फ़ोन आया."
वो व्यक्ति थोड़ा मुस्कुराया... "उसने मुझे बताया कि उसके कॉलेज की एक टीचर को पुलिस पकड़ ले गई है.इत्तिफ़ाक़ की बात आज जब ये लोग तुमको लेकर गेस्ट हाउस ला रहे थे तो मैं भी उसी वक्त गेस्ट हाउस से बाहर निकल रहा था. मुझे कुछ गड़बड़ तो लग रही थी.
मैंने ज़मानत की अर्जी तैयार की और जज साहब से साइन करा कर तुम्हें ढूँढ़ते हुए सबसे पहले यहीं आया, देखो तुम मिल भी गई.
खैर चलो बेटा मेरे साथ चलो तुम्हारा घर कहाँ है मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ."
सान्या अभी भी सहमी हुई थी. पिछले तीन घंटे उसके लिए तीन सदियों जैसे लम्बे थे. उससे कुर्सी से उठा ही नहीं जा रहा था.
"मुझे अफ़सोस है बेटा हमारे देश की पुलिस और कानून व्यवस्था में अराजकता चरम सीमा पर है."
सान्या बोली "इसी देश में आप जैसे भले लोग भी हैं.अगर आप नहीं होते तो ना जाने मेरा क्या होता "
इतना घबराई हुई थी कि घर आने पर सान्या ने उन्हें घर के अंदर आने को भी नहीं कहा.
सीधे अंदर बिस्तर पर जाकर लुढ़क गई. सबा और उसकी छोटी बहन गुड़िया डरी हुई उसके बगल में आकर बैठ गईं.
रोहन अभी तक घर नहीं आया था.शाम को जब रोहन घर आया, घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. घर में खाना नहीं बना था. सुबह का प्रसाद ही रखा था.
जब सान्या थोड़ा नार्मल हुई तो उसने रोहन को अपनी आप बीती सुनाई.
रोहन ने कहा "कोई बात नहीं मुझे सोचने दो. कुछ हल निकल आएगा."
रोहन जैसे ही फ्रिज का दरवाजा खोल कर खड़ा हुआ उसमें खुला दूध देख कर चिढ़ गया और नाराज़ होने लगा.
कोई और दिन होता सान्या चुपचाप जाकर दूध ढांक देती किन्तु आज वो बहुत परेशान थी.
झुंझला पड़ी रोहन पर"तुम हमेशा दूसरों को तमीज़ सिखाते रहोगे, कभी अपने गिरेबां में झांकोगे.
इतने वर्षों से घर का किराया मैं दे रही हूँ.
सबा को मैं देखूँ.
खाना मैं बनाऊं.
बाज़ार का सामान मैं लाऊं.
घर मैं साफ़ करूँ.
तुम जब चाहो नौकरी करो जब चाहो छोड़ दो.
क्या बिज़नेस है तुम्हारा आजकल तुमने कभी बताया है?
मेरे पेजर पर मैसेज देख कर भी तुमसे एक फ़ोन नहीं किया गया.
सान्या का स्वर इतने वर्षों में पहली बार तेज़ हुआ था.
वो रुकी नहीं आगे बोली तुम्हें पता है तुम्हारी कामचोरी,और लापरवाही की मुझे आज क्या सजा भुगतनी पड़ी?
अगर बता दूंगी तो सुन नहीं पाओगे.
लेकिन तुम्हारा क्या है तुम उसमें भी मेरी ग़लती निकाल देना." कहते कहते वो रो पड़ी थी. उसने अपने कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया था. जाने कितनी देर रोती रही और सो गई सुबह आँख खुली तो बाहर चिड़ियाँ शोर मचा रही थीं. सूरज की रौशनी पर्दों से छन कर उसके बिस्तर पर आ रही थी. उसे सबा की फ़िक्र होने लगी वो दौड़ कर दूसरे कमरे में गई सबा अपनी गुड़िया मौसी के पास सो रही थी. उसे देख कर नींद में ही बोली "यहीं सो जाओ मम्मा."
रोहन घर में नहीं था पता नहीं सुबह सुबह कहाँ चला गया?
वो फ़ोन लेकर बैठ गई और अपने परिचितों से राय मशवरा माँगने लगी थी.
सभी को उससे सहानुभूति थी किन्तु कोई भी व्यक्ति सरकारी तंत्र तक पहुँच नहीं रखता था.
तभी सान्या की दोस्त सोनिया ने कहा "तुम अपने जतिन भाई साब से क्यों बात नहीं करती हो?
वो किसी ना किसी को ज़रूर जानते होंगे.
लायन्स क्लब के प्रेसिडेंट रह चुके हैं वो., "
सान्या बोली "वो आजकल यहाँ नहीं हैं. उनके बच्चे अपनी दादी के साथ रह रहे हैं. कल ही बच्चों से मिलना हुआ था."
"फ़िर भी उनके लिए मैसेज छोड़ दो."सोनिया बोली
"ठीक है, देखती हूँ. "
तभी दरवाज़े का ताला खुलने की आवाज़ आयी.
रोहन था अंदर आते ही बोला "हम लोग एक बजे की फ्लाइट से तंज़ानिया निकल रहे हैं."
सिर्फ़ मैं और तुम समझी.
"लेकिन सबा....."
"वो गुड़िया के पास रह लेगी."
"लेकिन गुड़िया तो बहुत छोटी है. सबा मेरे बिना नहीं रह पाएगी."
"जो कहता हूँ करो बहस मत करो."
सान्या को लेकर रोहन तंज़ानिया के एक खूबसूरत होटल में रुका था.
वो अपनी बच्ची के लिए बेचैन हो रही थी.
रोहन उस पर आग बबूला हो रहा था "ड्रामा क्वीन किसी तरह भी ख़ुश नहीं रह सकती है कभी. अब क्यों इतना मुहँ सूजा हुआ है."
वो आगे बोला "अब चुपचाप एन्जॉय करो. रोना धोना छोड़ो.
मैं फंस गया हूँ इस औरत के साथ." वो बड़बड़ाता हुआ कमरे से निकल गया.
सान्या ने होटल स्टॉफ से कह कर नैरोबी अपने घर फ़ोन लगाया. फ़ोन गुड़िया ने उठाया और कहा "जतिन भाईसाब आये थे. वो कह रहे थे आप से बात करा दूँ."
"अच्छा !"सान्या को उम्मीद की लौ नज़र आयी थी.
दूसरा फ़ोन सान्या ने जतिन के घर लगाया था.
जतिन ने कहा "तुम लोग कहाँ हो?
सान्या बोली "तंज़ानिया."
"क्या दिमाग़ ख़राब हो गया है? तुम लोगों का तुरन्त वापस आओ अगली फ्लाइट से."
वो नाराज़ होते हुए बोले
"तुम लोगों को इतना भी कॉमन सेन्स नहीं है कि इस हालत में तुम लोगों पर देश छोड़ने का एक और केस लग जाएगा. तुम पढ़े लिखे लोग ऐसी अनपढ़ों जैसी हरकतें कैसे कर सकते हो? मुझे ताज्जुब होता है."
तभी रोहन कमरे में आ गया था. सान्या ने जतिन का फ़ोन उसे पकड़ाया, जतिन से बात करने के बाद रोहन सान्या को लेकर तुरन्त एयरपोर्ट के लिए वापस निकल पड़ा था.
कुछ घंटों में वे नैरोबी पहुँच गए जहाँ सान्या के सारे पेपर्स तैयार थे. उस रात्रि के दस बजे उसने पेपर्स साइन किये और अपना वर्क परमिट प्राप्त कर लिया था.
जतिन के सम्पर्क सूत्र ही काम आये थे. वो उनके एहसान तले दब रही थी.
पिछले दो दिनों के घटना चक्र ने उस की मानसिक स्थिति को ख़राब कर दिया था.
अब चाह कर भी सान्या नार्मल नहीं हो पा रही थी.वो एक जगह घंटों बैठी रहती थी.
उसने कॉलेज जाना बन्द कर दिया था. उसे वहाँ जाने में अजीब सी हिचक हो रही थी.उसके सामने वही पुराने दृश्य उपस्थित हो जाते थे. उधर डरी सहमी गुड़िया वापस इंडिया जाने की ज़िद कर रही थी.
वैसे तो सान्या चाहती थी कुछ दिन वो भी मम्मी पापा के पास चंडीगढ़ रह आए उसका मूड ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसी नौबत नहीं आने दी रोहन ने.
उस दिन जब सान्या घर से बाहर थी रोहन ने
गुस्से में गुड़िया को घर से निकाल दिया था. बेचारी चौदह पंद्रह बरस की बच्ची पड़ोस वाले शर्मा अंकल के यहाँ जाकर बैठी थी.उन लोगों की मदद से उसने अपने मम्मी पापा को इंडिया फ़ोन लगाया, और सारी बातें बता दीं थी. सान्या के आते ही गुड़िया उसे गले लग कर रोने लगी थी.
सान्या जानती थी कि हो सकता है गुड़िया से किसी कमरे की लाइट जली छूट गई हो या कुछ और ऐसा ही हो गया होगा. बस रोहन अपने पर काबू ना रख पाया होगा.
रोहन किस बात पर नाराज़ है ये वो कभी भी नहीं बताता था.
अब कई महीनों की मनहूस लड़ाई चलेगी.
उसे माफ़ी मांगनी होगी. यहाँ तक कि रोहन के पैर छूने होंगे.पर वो आसानी से मानेगा नहीं. बात भी नहीं करेगा अगले चार पांच महीने. सान्या ने हिसाब लगाया पिछले सात बरस के वैवाहिक जीवन में पूरे चार साल तो उन दोनों ने बिना बात किये ही निकाले हैं.
बाकी के दिन डर डर के कि कहीं रोहन नाराज़ ना हो जाए.
"ओह !गुड़िया ये क्या किया बेटा."
"दीदी मैंने जानबूझ कर कुछ भी नहीं किया मैं तो सबा के साथ खेल रही थी पर अचानक जीजाजी आए और मुझे बांह पकड़ कर घर से बाहर कर दिया."
सान्या के माता पिता ने दामाद से फ़ोन पर बात कर उसे समझाने की कोशिश की तो रोहन ने उन्हें भी खूब खरी खोटी बातें सुना दी थीं.
उसने कहा था कि या तो वे लोगअपनी बेटियों को बुला लें वरना वो घर छोड़ कर चला जाएगा. रोहन ने सान्या के घर में घुसते ही चीख चीख कर कहा जितनी जल्दी हो सके वो उसका घर छोड़ दे.
सान्या आज हतप्रभ थी.
जिस बात को डरती थी वो हो गई थी.
किन्तु उसने भी मन ही मन एक कठोर निर्णय ले लिया था अगर ये घर से बाहर कर रहा है तो मैं कभी भी लौट के नहीं आऊंगी. इतने दिनों का वैवाहिक जीवन सिर्फ़ ताने सुनकर और माफ़ी मांग कर ही खींच पायी थी वो.
बस अब और नहीं सहना है.
वो अपने कॉलेज गई और प्रिंसिपल को अपना इस्तीफ़ा सौंपते हुए कहा सर ! मैं इंडिया जा रही हूँ हमेशा के लिए.
"ऐसे निर्णय सोच समझ कर लेते हैं सान्या. फ़िर भी तुम्हारी जैसी टीचर को हम खोना नहीं चाहते हैं."
वो आगे बोले
"एक बार मसूरी जाकर देख लो हम तुम्हारा ट्रांन्सफर मसूरी कर देंगे.
इस्तीफ़ा तो कभी भी दे सकती हो. इतनी जल्दी क्या है?"
उसे समझा बुझा कर वापस कर दिया था.
उसी रात वो गुड़िया और सबा इंडिया की फ्लाइट में बैठ गए थे.
रास्ते भर सान्या के विचार थमने का नाम नहीं ले रहे थे.
वो अपने मम्मी पापा से क्या कहेगी?
अगर उसका और रोहन का तलाक़ हुआ तो बिरादरी में नाक कट जाएगी.
क्या उसे प्रिंसिपल सर का ऑफर मान कर सीधे मसूरी चले जाना चाहिए.
वो इंडिया आने से पहले जतिन को भी बता कर नहीं आयी है.
उनका ठीक से धन्यवाद भी नहीं कर पायी थी.
आख़िर रोहन ने उसे क्यों नकार दिया?
कुछ ना कुछ तो मेरी भी ग़लती रही होगी.
क्या अब सबा बिना पापा के बड़ी होगी?
रोहन सबा को उससे छीन तो नहीं लेगा.
सैकड़ों सवालों की चीटियां उसके बदन में रेंगने लगी थीं.
+++++++++
जब सान्या चंडीगढ़ पहुंची तो मम्मी और पापा को देख कर सारे दुःख भूल गयी.
उसके पापा ने कहा अब कभी भी वापस केन्या जाने की ज़रूरत नहीं है.
"तुमने इतनी तकलीफें क्यों सहीं बेटा.
मैंने तुम्हारा विवाह किया था तुम्हें बेचा नहीं था.
विवाह को चलाना पति पत्नी दोनों की जिम्मेदारी है. माना कि कोई ना कोई कमी भी हर इन्सान में होती है. किन्तु ज़िल्लत की ज़िन्दगी जीने से बेहतर है कि ऐसे रिश्ते से मुक्ति पा ली जाए.
अगर गुड़िया नैरोबी नहीं जाती तो तू हमें कुछ भी नहीं बताती. ये तूने ठीक नहीं किया बेटा तुझे एक बार अपने मम्मी पापा को बताना चाहिए था."
"पापा मैं कोशिश कर रही थी कि सब ठीक कर लूँ.
मैं डरपोक नहीं थी पापा. मैं बहादुरी से परिस्थितियों से लड़ रही थी. लेकिन हार गई.
मैंने डॉ सिन्हा (मनोरोग विशेषज्ञ)को दिखाया भी था. रोहन और मेरी काउंसलिंग की थी उन्होंने.
हमने घंटों बातचीत की है. मेरे अच्छे खासे पैसे काउंसिलिंग में खर्च हुए हैं. उनकी बातों से प्रभावित होकर रोहन ने अपने आप को बदलने की कोशिश भी की थी. पर सिर्फ़ कुछ दिनों तक ही हमारे सम्बन्ध ठीक रहे. फ़िर सब गड़बड़ हो गया. पापा मैं संभाल नहीं पाईअपनी शादी."
"नहीं मेरे बच्चे!तू ने कुछ ग़लत नहीं किया."पापा बोले थे
"उस लड़के की किस्मत ही ख़राब रही होगी जो तुझसे नहीं निभा पाया.
तू फ़िकर ना कर मैं तुझे और सबा को अब कभी भी अपनी नज़रों से दूर नहीं करूँगा."
उन्होंने कहा
"बस वादा कर अब तू उस लड़के की शक्ल भी नहीं देखेगी. आगे पढ़ाई कर या यहीं कोई नौकरी कर. चाहे तो घर बैठ. मुझे वापस अपनी चुलबुली बेटी चाहिए.
मैं उसकी मम्मी से भी बात करता हूँ कल." वो हांफने लगे थे. "डाइवोर्स दिला के रहूँगा. "
"पापा उसकी मम्मी बहुत अच्छी हैं. आप उन्हें कुछ मत कहिएगा."सान्या ने प्रतिवाद किया था.
उसके बाद करीब एक वर्ष तक वो भारत में ही रही थी.
सबा की नन्ही मुन्नी शरारतों में ख़ुद को बहलाती रही थी.
उसके पापा की कोशिश रंग ला रही थी.वो ख़ुश रहने लगी थी.
सान्या इसी बीच मसूरी का कॉलेज भी देख कर आयी थी. पर उसे घर से दूर बच्ची को लेकर रहना उचित नहीं लगा था.
छोटी सी जगह में उसके विवाह की असफलता की बात फैल गई थी और ताज्जुब की बात उसके लिए फ़िर से विवाह प्रस्ताव आने लगे थे.
उसके सौंदर्य और गुणों को देखकर उसके कॉलेज के पुराने साथी ही विवाह करने को उत्सुक थे.
किसी ना किसी बहाने उसके घर लड़कों ने चक्कर लगाने शुरू कर दिए थे.
अभी उसकी उम्र सिर्फ़ सत्ताईस वर्ष की थी. उसके साथ की लड़कियां तो कुंवारी बैठी थीं.
किन्तु सान्या पहले की ठोकर खायी हुई थी. अब तो उसे सबा की भी फ़िक्र थी. वो अपनी बेटी पर किसी की भी कुदृष्टि नहीं पड़ने दे सकती थी.
उसके मम्मी पापा उसे रोहन को भूल कर जीवन में आगे बढ़ने के लिए कहने लगे थे.
माँ ने यहाँ तक कहा "मैं सबा को अपने सीने से लगा कर पाल लूंगी. ज़रूरी नहीं है कि तुझे अगली बार भी धोखा मिले. इस दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है बेटा."
सान्या बोली "मैं नौकरी करूंगी और अपनी जिम्मेदारी ख़ुद उठाऊंगी. बस मेरे चित्त को स्थिर होने दीजिये.
विवाह के नाम से डर जाती हूँ मैं."
+++++++++
नैरोबी में... जतिन और रोहन
सान्या के जाने के बाद रोहन अपने बिज़नेस में पूरी तन्मयता से लग गया था. उसका एक पार्टनर भी था. वे अपनी योजनाओं को शीघ्र ही अंजाम देना चाहते थे.
परदेश आकर छोटी मोटी नौकरी करके उसे अपना जीवन ख़राब नहीं करना था.
जैसे जैसे दिन निकलते जा रहे थे उसे सान्या और सबा याद आने लगे थे.
उसे पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि सान्या ने उसके जीवन में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है.
सबा की उपस्थिति पूरे घर में है.
उसकी भोली भाली फ़ोटो देखकर वो विचलित हो उठा था.
क्या करे?
फ़ोन कर ले, शायद सान्या ही उठा ले. फ़िर याद आया कि उसके पापा से तो करीब करीब लड़ ही बैठा था वो.
दरअसल गुड़िया जब से आयी थी सान्या का सारा ध्यान उसी पर था.
उसे क्यों लगता है कि उसकी पत्नी उसे कुछ नहीं समझती है. अपने आप को बहुत स्मार्ट समझती है.
उस दिन उसको मिलने वाला बड़ा आर्डर आख़िरी मिनट पर कैंसिल हो गया था और उसका गुस्सा गुड़िया पर निकल गया था.
लेकिन सान्या ने कभी पूछा भी कि तुम्हारे बिज़नेस में क्या चल रहा है?
सान्या आम औरतों जैसी नहीं है कि पति की बात चुपचाप मान ले.उसके पास अपने वाजिब तर्क होते हैं. बस इसी बात पर वो खुंदक खा जाता है.
जब रोहन को कुछ समझ नहीं आया तो वो जतिन के घर की ओर चल पड़ा था.
पिछले झगड़े निबटाने में इन्हीं लोगों ने सहायता की थी.
जतिन को जब उसने सारी बातें बताईं तो वो गम्भीर हो गए उन्होंने कहा "तुम मुझसे क्या मदद चाहते हो?"
रोहन ने कहा "आप मेरी बात सान्या से करा दीजिये या उसे समझाइये कि वापस नैरोबी आ जाए अब उसको शिकायत का मौका नहीं दूंगा."
जतिन ने कहा "तुम मुझे उसका फ़ोन नम्बर दो मैं उससे बात करके देखता हूँ.
"पर तुमने उसे घर से कैसे निकाल दिया? तुमको पता नहीं कि घर घरवाली से ही होता है.
मुझे ये बात बिल्कुल भी समझ नहीं आयी है.
रोहन कहीं ऐसा ना हो एक दिन तुम उसे हमेशा के लिए खो दो."
वो बोले
"मेरी मानो इंडिया जाओ अपनी माँ को लेकर उसके घर जाना और सबसे माफ़ी मांगना.
हो सकता है वो लड़की तुम्हें माफ़ कर दे."
रोहन के जाने के बाद जतिन सोच में पड़ गए थे.
अब उनके सामने रोहन की कन्फ्यूज्ड पर्सनालिटी उभर रही थी. उन्हें कभी कभी लगता पागल तो नहीं है ये लड़का.
वो दुःखी थे, रोहन के लिए और सान्या के लिए भी.
उन्होंने सोच लिया था मियां बीवी के झगड़े में नहीं पड़ेंगे.
परिवार चलाने का ढंग सारी दुनिया में एक सा ही है आपसी प्रेम, सामंजस्य, जिसकी मूलभूत बुनियादें हैं.
रोहन शिकायतों और अविश्वास से भरा हुआ है. इस सम्बन्ध का भगवान ही मालिक है.
किन्तु शाम को रोहन फिर घर आ गया था भाईसाब आपकी बात हुई क्या?
मजबूरी में जतिन ने चंडीगढ़ फ़ोन मिलाया और सान्या से बात की थी. सान्या ने कहा था कि वो अब कभी नहीं लौटेगी.
"मैं अपनी मर्जी से नहीं आयी थी.
मुझे घर से निकाला गया है.
क्या आपको रोहन ने बताया है. बस बहुत हुआ. अब बर्दाश्त नहीं होता है.मैं डिप्रेशन में जा रही हूं. "
फ़ोन पर जतिन से बात करके सान्या बहुत अपसेट हो गई थी. उसके पापा ने भी फ़ोन का वार्तालाप सुन लिया था वो बोले "ये जतिन कौन है हमारे घर के बीच में बोलने वाला. अगली बार कॉल करे मुझे बताना मैं उसका दिमाग़ ठीक कर दूंगा.
वो बहुत परेशान हो उठे थे.
रोहन ने सान्या की बेरुख़ी से अंदाज़ लगा लिया था कि अब वो वापस नहीं आएगी.
इसलिये उसने चंडीगढ़ जाकर सान्या से मिलना उचित समझा. वो नैरोबी से अगले दिन ही भारत के लिए चल पड़ा और सीधे
सान्या से मिलने जा पहुंचा, पहली बार उसने अपने कृत्य की माफ़ी मांगी.
सान्या बोली"अपनी ग़लती समझने में आपको एक वर्ष का समय लग गया.इतने दिनो में आपने एक बार बेटी की भी ख़बर नहीं ली. उससे क्या नाराज़गी थी?
उसने दुःखी होकर कहा
"सॉरी रोहन हमारा रिश्ता चलने वाला नहीं है. मैं यहाँ ठीक हूँ. अब वापस नहीं जाऊंगी."
"बस एक आख़िरी मौका दे दो." रोहन गिड़गिड़ाने लगा था.
"मैं तुम्हारे और सबा के बगैर नहीं रह सकता हूँ."
तभी सबा भी आ गई थी.
रोहन ने उससे पूछा "सबा तुमको कहाँ अच्छा लगता है?"
"चंडीगढ़ या नैरोबी?"
नन्हीं बच्ची ने सोचा और कहा "नैरोबी. "
"प्लीज़ सान्या हमने एक साथ अच्छे दिन भी बिताए हैं, उन्हें याद करो और वापस चलो."
रोहन ने बार बार सबा का वास्ता देकर उसे मना लिया था.
जब उसने रोहन के साथ वापस जाने की बात घर में बताई तो उसके
पापा ने कहा "बेटा मैंने दुनिया देखी है. तू इस लड़के की मीठी मीठी बातों में मत आ.ये तुझे बेवकूफ़ बना रहा है. तेरी नौकरी के बिना इसका खर्च नहीं चल रहा होगा. वरना ये कभी वापस नहीं आता."
"नहीं पापा उसका बिज़नेस चल निकला है. इस बार वो झूठ नहीं बोल रहा है."सान्या ने रोहन की तरफ़दारी की थी. रोहन एक हफ़्ते इंडिया रुका, अब वापसी का दिन भी करीब आ गया था. अगले दिन दिल्ली रवाना होना था, और फ़िर नैरोबी.
करीब शाम को छः बजे रोहन ने सान्या से कहा "सान्या जल्दीबाजी में मैं कैश लाना भूल गया हूँ. तुम अपनी और सबा की टिकट ले लोगी ना. "
सान्या का दिमाग़ घूम गया..... क्या वो फ़िर से पुरानी ग़लती दोहरा रही है?
ये आदमी पैसों के मामले में सदा से ही खड़ूस है.
वो पिछले एक साल से घर बैठी थी. जमापूँजी खर्च हो गई थी.
पापा से पैसे मांगने का सवाल ही नहीं उत्पन्न होता, वो तो पहले ही इसके साथ जाने को मना कर रहे हैं. अगर उन्हें पता चल गया तो कभी नहीं जाने देंगे.
उसने भारी मन से अपनी सोने की चूड़ियां उतारीं और चुपचाप सुनार को बेच आयी इस प्रकार अपनी और सबा की टिकटें खरीदी थीं .
नैरोबी जाने का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया था.
जब नैरोबी के लिए विमान ने उड़ान भरी तो रोहन के पास बिज़नेस क्लास की टिकट थी. वो सबा और सान्या से दूर बैठा था. बस एक बार उनकी सीट के पास आया आया और बोला "तुम लोगों को यहाँ घुटन नहीं हो रही है.
अरे! !सान्या इकॉनमी क्लास की टिकट खरीदी तुमने. हा हा हा."
रोहन की बेतुकी बातें सुनकर सान्या को उस पर जरा भी गुस्सा नहीं आया उसे स्वयं पर क्रोध आ रहा था. सबसे बड़ी मूर्ख वो है जो बार बार एक ही ग़लती दोहरा रही है. सब जानते बूझते इसके साथ रहने चल पड़ती है.
पापा ठीक कह रहे थे.
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नैरोबी में जाते ही सान्या ने अपना कॉलेज ज्वाइन कर लिया था.
उसने सोच लिया था कि अब रोहन से कोई उम्मीद नहीं रखेगी.
वो अपने रिश्ते में प्रेम ढूंढ़ती है इसीलिए तकलीफ़ पाती है. बिना प्रेम के समझदारी के साथ वो सबा की ख़ातिर ये सम्बन्ध निभाएगी.
जब उसे रोहन से कोई उम्मीद ही नहीं होगी तो झगड़े भी क्यों होंगे?
इस तरह के तर्क वितर्क कर के उसने ख़ुद को मनाया था.
कॉलेज के बाद वो ट्यूशंस भी लेने लगी थी.
जतिन के दोनों बच्चे भी उसके पास पढ़ने आने लगे थे.
वो उनको अक्सर खाना खिला कर भेजती थी.
कभी कभी बच्चों की दादी से भी मिलने चली जाती थी. वो उस की अच्छी दोस्त बन गई थीं.वे अपने मन की बातें बताने लगी थीं.
वो आजकल इंडिया जाकर अपने बेटे के लिए वधू ढूंढ़ना चाहती थीं.
अभी कितना वक्त गुज़रा है जोया को गए हुए?
सान्या का मन जोया की याद में भारी हो गया .
रोहन में थोड़ा सुधार तो दिख रहा था. सबा को उसके पापा मिल गए,सान्या इसी बात से तसल्ली कर लेती.
"यहाँ अच्छे पैसे हैं. इंडिया में एक टीचर को क्या मिलेगा?"
"कुछ नहीं."
सान्या अपने आप को नैरोबी आकर इसी तरह समझाती रहती थी.
करीब डेढ़ वर्ष गुज़र गया था. पुराने घाव भर चले थे.
++++
उसआज भी याद है शाम का वक्त था वो रोहन का इंतज़ार कर रही थी, फ़िर रात हो चली रोहन बड़ी देर तक घर नहीं आया. वो किसी आशंका से डरने लगी.
परदेश में ऐसे क्षणों में वो सबसे ज़्यादा अकेला महसूस करती थी.
रात्रि के दस बजे रोहन आया था. थका हारा सा.
वो घबरा गई थी कि क्या हुआ?
पूछने की हिम्मत नहीं थी कि कहीं गुस्स्सा ना हो जाए.
वो चुपचाप उसका खाना लगाने लगी.
"नहीं रहने दो खाना मैं खाकर आया हूँ."
उसने बताया कि उसे बिज़नेस में बहुत घाटा हो गया है. वो केन्या छोड़ने की सोच रहा है.
अब वो इंग्लैंड जाकर बस जाना चाहता है. उसको वीसा मिल गया है.
सान्या ने पूछा "ये सब एक दिन में तो नहीं हुआ होगा.
तुमने मुझे कुछ भी बताना उचित नहीं समझा. इतना बड़ा निर्णय अकेले ले लिया तुमने."
"मैं ऐसा ही हूँ. इंग्लैंड मैं अकेला जाऊंगा. अगर तुम्हें ले जाना होता तो अवश्य बताता."वो बोला "और अगर तुमको मैं पसन्द नहीं हूँ तो बेशक़ मुझे छोड़कर जा सकती हो. मुझे तुम्हारी कोई ज़रुरत नहीं है.
मैं सबा को अकेले बड़ा कर लूँगा.मुझे तुम में कोई दिलचस्पी नहीं है."
वो शब्दों के जहरीले तीर छोड़ता हुआ कमरे से बाहर निकल गया जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो.
कितना रोए सान्या अब आँसू भी नहीं आते हैं.
रोहन इंग्लैंड चला गया और वह ठगी सी देखती रह गई.
आख़िर भाग्य कितनी परीक्षा लेगा?
एक दिन में ही उसका संसार उजड़ गया था.
परदेश में अकेले रहना भारी पड़ने लगा था. उसने अपना सामान समेटा और फ़िर इंडिया वापस आ गई थी.
उसने अपनेआप से वादा किया
इस बार वो रोएगी नहीं. कठोर क़दम उठाएगी.
सबसे पहले उसने रोहन पर तलाक़ का मुक़दमा दर्ज कियाऔर इस झूठे बन्धन को शीघ्र ही तोड़ फेंका था.
मुक़दमे में उसकी सास ने उसके पक्ष में गवाही दी थी. इसलिये सबा की कस्टडी उसे आसानी से मिल गई थी.
समय कब रुकता है.
सबा स्कूल जाने लगी थी. सान्या के
माता पिता उस पर फ़िर से विवाह का जोर बना रहे थे.
बहुत सोचने विचारने के बाद सान्या ने कहा कि वो अगर विवाह करेगी तो जतिन से करेगी.
घर में ये बात सुनते ही तूफ़ान खड़ा हो गया था क्योंकि जतिन उससे पंद्रह वर्ष बड़े थे. साथ ही दो बच्चों के पिता भी थे.
सान्या का कहना था कि "मैं जतिन को जानती हूँ उनकी समझदारी से परिचित हूँ. मैं उस व्यक्ति से विवाह करुँगी जो औरतों की इज़्ज़त करता हो.
अगर अपने हम उम्र व्यक्ति से विवाह किया तो वो मेरी बच्ची को अपनाएगा मुझे शक है."
वो अपने से अधिक सबा के बारे में सोच रही थी. सबा जतिन और उनके बच्चों को भी जानती है.बरसों का साथ में उठना बैठना खेलना कूदना है. हाँलाकि किशोर बच्चों की दूसरी माँ बनाना भी अपने आप में नई परीक्षा होगी.
किन्तु आज नहीं तो कल ये सब बच्चे आपस में सामंजस्य बिठा लेंगे. ऐसा उसे विश्वास था.
सान्या के पापा के अपने तर्क थे.वे चाहते थे उसका जीवन साथी उसका हमउम्र हो. वो उसे किसी लड़के से मिलाना भी चाहते थे. सान्या ने जब यह सुना तो उसने भूख हड़ताल कर दी, पूरे सात दिन तक उसने खाना नहीं खाया था.
उसकी ज़िद के आगे पापा की एक नहीं चली.
उन्होंने कहा "ला फ़ोन नम्बर दे जतिन की माँ से बात करता हूँ."
बिना शोर शराबा सादा ढंग से उन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली थी.
उसके बाद वे लोग कनाडा शिफ़्ट हो गए. पुरानी यादों को दफ़न कर दिया था उसने.
जीवन का नवीन अध्ध्याय आरम्भ हो चुका था.
उसने जतिन की मदद से स्त्रियों के लिए कनाडा में एक संस्था शुरू की थी. आज उसकी कई शाखाएं हैं. सान्या और जतिन के नाम से ही आज शहर में डोमेस्टिक वॉयलेंस की घटनाएं थम जाती हैं. उन दोनों ने कई घरों को टूटने से बचाया है.
कई बार लेडीज़ बताती हैं कि उनके पति सान्या माथुर के नाम से डर जाते हैं. वो बस मुस्कुरा कर रह जाती है.
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रोहन से जीवन के किसी मोड़ पर कभी भी मिलना नहीं हुआ.
उड़ती उड़ती खबरें सुनती है. कई देशों में बिज़नेस के सिलसिले में भटकता रहता है. कहीं भी टिक कर काम नहीं करता है.
वो अतीत से वर्तमान में आ गई रोहन का लिफ़ाफ़ा अब भी उसके हाथ में था.
जतिन के घर आते ही सान्या ने उन्हें रोहन द्वारा भेजे पेपर्स दिखाए तो वो बोले "मैं सबा से बात करता हूँ. मैं उसको मना लूँगा कि वो अपने पिता से एक बार अवश्य मिले."
सान्या ने जतिन के कंधे पर सिर रख दिया. वो बोले "घबराओ नहीं कई बार जीवन में अजीब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. क्या हमने कभी सोचा था कि रोहन से ऐसे मिलना होगा?"
जतिन ने सबा को बहुत मनाया है कि वो रोहन से मिल ले. पर उसका कहना था इतने वर्षों में एक बार भी उन्होंने उसकी ख़बर नहीं ली है.
"पापा आपको पता नहीं है मेरा दर्द." सबा जतिन से बोली थी.
"जब पेरेंट्स अलग होते हैं तो बच्चों पर क्या गुजरती है.बयां करना मुश्किल है. मैंने जब से होश सम्भाला मम्मा को रोते ही देखा था.
मैं उस आदमी की इज़्ज़त नहीं करती हूँ."
"प्लीज़ बेटा ! मेरे कहने से एक बार मिल लो.हो सकता है वो तुम्हें देखना चाहता हो ये पेपर्स, तुम्हारे सिग्नेचर सिर्फ़ तुमसे मिलने का एक बहाना हो."
"आप कहते हैं तो ठीक है. पर आप भी मेरे साथ रहेंगे." सबा ने कहा तो जतिन ने हामी भरी "हाँ बेटा !"
जतिन ने रोहन को शहर के एक रेस्तरां में बुलाया और वे भी नियत समय पर सान्या और सबा को लेकर निकल पड़े. जतिन ने घर में पड़ा एक गिफ्ट पैक रख लिया था.
आज तीनों की मनःस्थिति अलग थी.
"सान्या वो पेपर्स रख लिए."
जतिन ने कार में व्याप्त चुप्पी तोड़ते हुए बस यूँ ही हवा में प्रश्न उछाला था.
सान्या ने बस "हाँ "में सिर हिला दिया था.
"पापा मैं कह रही हूँ हम बेकार जा रहे हैं."सबा बोली.
"तुम मेरा कहना मानती हो या नहीं."जतिन ने कहा.
"जी"सबा बोली.
"तो फ़िर बहस क्यों?" वो बोले.
"एक कप कॉफी पी कर लौट आएंगे."
सान्या और रोहन आपस में बात करने में हिचक रहे थे.
जतिन ने ही बातचीत शुरू की थी.
फ़िर सबा और रोहन को बात करने के लिए छोड़ दिया.
सबा को रोहन ये समझाने में असफल रहा कि उसके नाम ली गई पॉलिसी पूरी होने पर वो साइन करके वो ये रकम ले ले. सबा के प्रश्न "मैं क्यों साइन करूँ और मुझे इस पैसे की ज़रुरत क्या है?
मुझे इतने सालों से मम्मी पापा देख रहे हैं.
और अगर आप को ये पैसे चाहिए तो मुझे साइन करने की ज़रुरत क्या है?" इन प्रश्नों के उत्तर रोहन के पास ना थे.
"ये सबा शर्मा के नाम की पॉलिसी है. अब मैं सबा माथुर हूँ."
रुखाई से सबा ने सिग्नेचर करने से इनकार कर दिया था.
बड़ी बेनतीजा और रूखी बैठक थी एक पिता और परित्यक्त पुत्री की.
लौटते हुए सबा के मन में उथल पुथल थी.
अगर पापा मेरे लिए एक चॉकलेट भी ले आते तो शायद मैं वही नन्ही सबा बन जाती, मैं सब भूल जाती. उन्होंने मुझसे मेरी स्टडीज़ के बारे में कुछ नहीं पूछा.उनको कहना चाहिए था कि वो मुझे मिस करते हैं. एक बार गले भी नहीं लगाया मुझे.वो मुझसे सिर्फ़ पेपर साइन कराने आये थे. या सचमुच मिलने आये थे.
अठारह वर्षीय सबा सोच रही थी और आँसू बहा रही थी.
जतिन और सान्या ने उसे अनदेखा किया.
बच्ची है पहली बार चोट लगी है.समय के साथ इस दुःख से उबर जाएगी.
अगली सुबह जब जतिन ने मोबाइल उठाया वो मुस्कुरा पड़े सबा का गुडमॉर्निंग मैसेज था जिसके नीचे लिखा था
"पापा आप ही मेरा स्वाभिमान हो."
समाप्त
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