Sunday, May 31, 2020

 {लघु कथा }
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बदलाव
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नीता पांडेय उस वर्ष बहुत खुश थीं जब उनके पुत्र की प्रशासनिक सेवा में पांचवी पोजीशन आई थी किन्तु यह प्रसन्नता अधिक दिनों तक न रह
पायी|
हुआ यूँ कि पुत्र के लिए आये एक से बढ़िया एक रिश्तों पर पल भर में पानी फिर गया जब ट्रेनिंग से लौटते हुए बेटे ने बताया कि उसे अपने दोस्त सुनील की बहन पसंद आ गई है उनको फोटो दिखाते हुए बोला, रूमा नाम है आपकी होने वाली बहू का, बंगाली हैं ये लोग|
अपना दुःख शेयर करते हुए नीता जी ने अपनी ननद से कहा "गधा निकला मेरा बेटा जिस घर में प्याज भी वर्जित है अब मछलियाँ तली जायेंगीं|"
हंसोड़ ननद ने कहा "शुक्र करो भाभी कि लड़की हिन्दू है"
अब क्या बताएं नीता कि बेशरम लड़के ने ये भी बताया है कि "सुनील की बीवी मुसलमान है आप देख लेना मम्मा किअपने ज्यादा दकियानूसी रिश्तेदारों को बुलाना है भी या नहीं| शादी में आकर तमाशा न करें ,आप को जैसा ठीक लगे मम्मा|"
कितनी आसानी से कह रहा है ?मानों कुछ हुआ ही नहीं |
बेहद सादगी भरे विवाह समारोह के बाद जब सब मेहमान विदा हुए तो घर में नीता जी अपनी साड़ी बदल कर सोने की तैयारी कर रही थीं ,उन्होंने अपने कमरे के दरवाजे पर रूमा [नव वधू] को खड़े पाया|
उन्हें देख वो बोली "माँ क्या आपके कमरे में आ सकती हूँ?"
हाँ हाँ क्यों नहीं नीता जी ने कहा|
"वो क्या है कि आज पापा की बड़ी याद आ रही है मैं रोज़ रात को उनके पैर दबाती हूँ,यूँ ही बचपन से, झूठ मूठ,पर मुझे अच्छा लगता है|"
रूमा ने सकुचाते हुए कहा क्या मैं आपके पाँव......बात बीच में ही काट दी, नीता जी ने "बिलकुल नहीं"
"सुनो!! मेरे पाँव नहीं कंधे दुखते हैं|''
रूमा ने जैसे उनके कन्धों को छुआ नीता जी की आँखें भर आयीं |पर माहौल को हल्का करने के लिए वे बोलीं "धीरे धीरे रूमा कन्धों से लगा हुआ तुम्हारी सास का गला भी है|" दोनों के कहकहों से घर ख़ुशी से भर गया|
बहू की तरफ़ दोस्ती का हाथ उन्होंने खुले दिल से बढ़ा दिया था|
प्रीति मिश्रा २ मार्च २०१९

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