Thursday, May 28, 2020

माँ


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जब माँ थीं तब माँ का महत्त्व नहीं पता था. फ़िर एक दिन जब माँ का कार एक्सीडेंट हुआ उस दिन घर में खाना नहीं बना. माँ अस्पताल में थीं और मैं घर पर.
पापा को भी चोटें आयी थीं.
इस शहर में हम पड़ोसियों के सहारे पल रहे थे. कभी कोई खाना दे जाता कभी कोई आकर वाशिंग मशीन चला जाता. उस वक्त मेरी उम्र यही कोई बारह तेरह वर्ष की थी.
मैं रोज़ ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि माँ जल्दी से घर आ जाएं. पर माँ घर नहीं आई, अलबत्ता मेरे इम्तिहान आ गए. उस टर्म में मैं किसी भी सब्जेक्ट में पास नहीं हो पाई .इसलिए नहीं कि घर पर कोई टोकने वाला नहीं था बल्कि इसलिए मैं अकेले घर में सिर्फ़ माँ पापा के ठीक होने के लिये प्रार्थना करती रहती थी. पागलों की तरह महामृत्युंजय जाप करती रहती थी. कहीं पढ़ा था अगर सवा लाख बार यह जाप कर लिया जाय तो कोई भी ठीक हो सकता है.
पापा घर आ गए पर माँ नहीं बचीं.
बस मेरा ईश्वर से विश्वास उठ गया था. मैं अकेली गुमसुम रहने लगी.
पापा मुझे बहुत प्यार करते थे पर वो अपना वक़्त नहीं दे पाते थे.
ऊँचे पद पर कार्य करने के कारण घर के लिये समय ही नहीं था.
जब वे घर में होते तो दुनिया भर के लोग उनसे मिलने आते रहते थे.
पापा बहुत नेकदिल इन्सान थे. अब समझती हूँ कि लोगों ने उनका खूब फ़ायदा भी उठाया.
इसी बीच मेरी दादी हमारे पास रहने के लिये आ गईं.
उनके साथ ही आईं मिनी दीदी यानी कि मेरी कज़िन.
मिनी दीदी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया.
मेरे स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग में पापा की जगह मिनी दीदी गई थीं. जहाँ मैंने सुना कि हमारी टीचर को शक था कि मैं स्पेशल चाइल्ड हूँ.
दीदी ने टीचर से बहुत लड़ाई की.
लेकिन टीचर ने यह कह कर निरुत्तरित कर दिया कि उसका बेटा भी इसी परेशानी से गुज़र रहा है. उसने अभिषेक बच्चन, और ऋतिक रोशन को भी किसी सिन्ड्रोम से ग्रसित बताया.
मेरा स्कूल बदला जाना चाहिए जहाँ मेरे अनुसार किताबें हों बस थोड़ा थोड़ा पढ़ाया जाए.
ऐसे बच्चों को प्रेम की आवश्यकता होती है. ये काफ़ी बुद्धिमान होते हैं.पढ़ाई में अच्छा नहीं कर पाते हैं.
पर दीदी ने एक ना सुनी. मेरे पिछले रिपोर्ट कार्ड्स निकाले और अगले दिन क्लास टीचर के सिर पे पटक आईं.
मिनी दीदी ने मुझे अपने साथ ले जाने की ज़िद पकड़ ली थी. ना जाने क्यों वो मुझ पर इतना प्यार लुटा रही थी . या कुदरत ने कुछ और खिलवाड़ करने बाक़ी थे.
पापा ने कहा "मिनी अगर तुम इसे ले गई तो मैं अकेला पड़ जाऊंगा."
आँखों में आँसू भरकर मिनी दीदी ने विदा ली. इधर अगले दिन ही दादी माँ का पैर फिसला और उनकी कूल्हे की हड्डी टूट गयी. मेरा पढ़ने लिखने का समय उनकी सेवा में जाने लगा.
मम्मा की एक सहेली हमारे घर के बगल वाले घर में रहती थीं.
वे किसी स्कूल में कॉमर्स पढ़ाती थीं. शाम को भी उनके घर विद्यार्थियों का मजमा लगा रहता था.
उनका एक ही बेटा था.मुझसे से काफ़ी छोटा पर वो हमारे घर खेलने आने लगा.
मैं उसे राखी भी बाँधने लगी . बच्चा बहुत ही प्यारा था हमारे साथऐसा घुल मिल गया कि लोग समझते मेरा ही भाई है.
हमारे घर में रौनकें लौट रही थीं जब तब पड़ोस वाली ऑन्टी जी आ जातीं थीं.
वो और दादी माँ घंटों बातें किया करते थे.
सुनने में आया था कि उनके पति के साथ उनकी नहीं बनती है.
*********
मिनी दीदी का विवाह तय हो गया था और विवाह के बाद वे भी हमारे शहर में आ गई.पापा ने पड़ोस में ही उनको फ्लैट दिलवा दिया था.
जल्दी ही पता चला कि वो माँ बनने वाली हैं. अब अक्सर उनकी तबीयत ख़राब रहने लगी मैं उनकी मदद के लिये उनके घर जाने लगी.वो नये मेहमान का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से कर रही थीं. एक दम पतली दुबली दीदी को जीजा जी ने चॉकलेट खिला खिला कर अपने जैसा मोटा कर दिया था.
अब मैं उनके पास अक्सर रुकने लगी कि एक दिन मेरी मेड का फ़ोन आया " बेबी जल्दी घर आओ."मैं ने कहा "जल्दी बताओ क्या बात है?"
वो बोली "घर आओ सीधे !"
जब घर आई तो उसने डरते डरते बताया कि पड़ोस वाली ऑन्टी का हमारे घर आना जाना बढ़ गया है. उनके पति से उनका तलाक़ हो गया है.
अब वो पापा को भैया भी नहीं कहती हैं.
"बेबी कल फ़ोन पर मैंने बड़े अजीब से मैसेज देखे हैं. कहते हुए शर्म आ रही है बहुत फ़ालतू पिक्चर्स भी भेज रही हैं ऑन्टी. बेबी हम लोगों का क्या होगा?"
"कुछ नहीं होगा मैं अब तुम्हें और पापा को छोड़कर नहीं जाऊंगी."
मुझे माँ की आज बहुत याद आयी.
अब अपनी बचकानी बुद्धि के अनुसार मैंने माँ की तरह खाना पकाना शुरू कर दिया था.पापा का ध्यान रखना शुरू कर दिया था.
पूरी सामर्थ्य से पढ़ाई भी शुरू कर दी.
मैंने सोच लिया था कि पापा से बात करूंगी कि आपका इन ऑन्टी से मिलना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है.
लेकिन सारा खेल बिगाड़ दिया ऑन्टी के मासूम बेटे ने. उस दिन दीवाली थी पापा के सामने ही वो बोल उठा "मम्मा क्या मैं स्नेहा दीदी के पापा को पापा कह सकता हूँ." ऑन्टी हक्की बक्की रह गईं.
देखते देखते ही उनकी आँखों से आँसू बहने लगे.
मैंने देखा पापा उन्हें चुप करा रहे थे.
बस वो तो पापा के गले ही लग गईं. और ऐसी चिपकीं कि फ़िर कोई उन्हें अलग ना कर सका.
सब कचरा कर दिया उस नन्हें शैतान ने.
मेरे ना चाहते हुए भी पापा और ऑन्टी ने सादा समारोह में विवाह कर लिया.
इस तरह अब पिता का प्यार भी बंट गया.
काश!! नई माँ कभी मुझे भी प्यार करती.
वो अपने बेटे को प्रिंस कह कर बुलाती थीं.
मेरी ओर उनकी कोई भी जिम्मेदारी नहीं थी.
मैं अपने ही खोल में सिमटती चली गई.
माँ !!मैंने आपको हर दिन मिस किया है.
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उस दिन पता चला कि मिनी दीदी अस्पताल में हैं उनकी डिलीवरी डेट आ गई थी. मैं स्कूल से सीधे उनके पास पहुंची जीजाजी ने बताया नन्हा मेहमान आ चुका है.
दीदी जीजा जी ने उसका नाम सोच रखा था "हर्षवर्धन."
दीदी की तबीयत ख़राब है, और उन्हें मेरी ज़रुरत है.
नई माँ के आने के बाद अपना घर पराया हो गया था. इसलिए मैं मिनी दीदी के पास अगले साल भर तक रोज़ जाती रही. जीजा जी की नाइट शिफ्ट में उनके पास ही रुक जाती थी.नन्हा बच्चा मेरी आवाज़ सुनते ही पालने से किलकारी मारने लगता था.
मिनी दीदी ने मुझ पर बहुत प्यार उड़ेला पर एक राज़ छुपा लिया कि उनको ल्यूकीमिया हो गया था.क्या गजब की एक्ट्रेस थीं दीदी. किसी को पता ही नहीं चला और वो हँसते हँसते सबसे हाथ झटक कर चलती बनीं. सिर्फ़ एक महीने के अंदर सब ख़त्म हो गया.
हर्षवर्धन मुझसे बहुत हिल गया था.
माँ के बाद दीदी का झटका असहनीय था.
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अब मैं उनके घर में नहीं जा सकती हूँ. मुझमें हिम्मत नहीं है, मिनी दीदी की यादें उस घर में हर ओर बिखरी हैं. हर्षवर्धन को जीजा जी हमारे घर छोड़ गए हैं. उस मासूम के भाग्य पर रोना आता है.
कुछ दिनों बाद उसके नाना नानी, दादा दादी आ गए हैं.
वे उसे लेकर अपने घर चले गए हैं.
अभी उन लोगों को गए सिर्फ़ हफ्ता ही गुज़रा था कि मेरे पापा के पास मिनी दीदी के ससुर का फ़ोन आया कि हर्षवर्धन चुप नहीं हो रहा है रोए ही जा रहा है.उसे तेज़ बुखार है.
क्या आप स्नेहा को भेज देंगे. डॉ कह रहे हैं बच्चा जगह बदलने के कारण रो रहा है. वो स्नेहा को मिस कर रहा है.
पापा ने कहा"आप चाहें तो बच्चे को यहाँ छोड़ दीजिये."
"नहीं माथुर साहब एक दिन की बात नहीं है.हालांकि मैं स्वार्थी हो रहा हूँ पर....... हम चाहते हैं कि स्नेहा की शादी मेरे बेटे के साथ हो जाए."वो एक झटके में कह गए. "हर्षवर्धन उससे बहुत हिला हुआ है."
"पर स्नेहा तो सिर्फ़ सोलह साल की मासूम बच्ची है भाई साहब !!"
मैं सब सुन रही थी.
अचानक जाने कहाँ से हिम्मत आ गई. मैंने पापा से कहा "मैं तैयार हूँ."
मैंने उस वक़्त विवाह के लिये हाँ कर दी जब मुझे विवाह का अर्थ भी नहीं पता था.
जानते हैं क्यों?
अपनी नई माँ से बचने के लिये.
और हर्षवर्धन को भी एक नई माँ से बचाने के लिये.
मेरा अपना घर पराया हो चुका था. नई माँ ने मेरी माँ के गहने और कपड़े पहनने में कोई दोष नहीं माना था. किन्तु अपनी सहेली के जिगर के टुकड़े को उपेक्षा की, मुझे अवसाद की गर्त में धकेल दिया था. माँ की सहेली थीं मेरी नई माँ. पर कोई इतना स्वार्थी हो सकता है देख कर हैरानी होती है.
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आज मैं ये सब क्यों याद कर रही हूँ?
क्यूंकि हर्षवर्धन आज इक्कीस वर्ष का हो गया है. उसने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है. हम पति पत्नी ने उसे मिनी दीदी के बारे में नहीं बताया है. पर मैं चाहती हूँ कि उसे सच्चाई से रूबरू कराया जाए.
क्या पता वो इस बात से मुझे अपनी माँ मानना बंद कर दे. लोग कहते हैं बच्चे अपने बायलॉजिकल मदर, फादर के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं. कितने बच्चे जिन्हें गोद लिया गया हैअपने माँ बाप को ढूंढ कर ही रहते हैं.
मेरा कलेजा मुहँ को आ रहा है. लगता है जैसे आज मेरा बेटा मुझसे जुदा हो जाएगा.
मैंने मिनी दीदी की शादी का एल्बम निकाल लिया है.
जिसको कि हमेशा से एक बक्से में छुपा कर रखा था.
हर्षवर्धन आ गया है. उसने मेरे कमरे की लाइट जलाई और बोला "आप यहाँ अँधेरे में बैठी हैं "मैंने उसके हाथ में एल्बम दिया. उसने पूछा मुझे क्यों दे रही हैं. आपको पता है ना मुझे आपके रिश्तेदारों में कोई दिलचस्पी नहीं है.
मैंने कहा नहीं ये बात नहीं है ये मिनी दीदी...... वो मेरी बात काट कर आगे बोला और पापा की शादी का एल्बम है. यही ना.... मुझे पता था माँ आप कितनी भी पतली होतीं ना तब भी इतनी पतली नहीं हो सकती थीं.वो निर्दोष हंसी हँस पड़ा.
"क्या तुमने ये एल्बम देखा है."
हाँ और उस बक्से में रखे आपके और पापा के सारे लव लेटर्स और कार्ड्स भी पढ़े हैं. वो शरारत से हँस पड़ा.
एक वेलवेट वाले ब्लाउज़ की आस्तीन काट कर छुटकी के क्राफ्ट में बटुआ बना कर भी सालों पहले जमा कर दिया है.
जब आप और पापा बाहर जाते हैं तो यही तो टाइम पास होता है हमारा.
"क्यों छुटकी?"
"हाँ मैं उसमें रखी चुन्नी पहन कर दुल्हन बनती थी बचपन में . क्यों भैया?"
भाई की हाँ में हाँ मिलाने मेरी बेटी भी आ गई है.
भैया उस लेडी का नाम पूछो ना जिसे देख कर तुम चुड़ैल कह रहे थे.
हर्ष !तुझे ज़रा भी दुःख नहीं है अपनी माँ के जाने का.
मैं पूछना चाहती हूँ, बस मैंने अपनी प्रश्न वाचक आँखें उसकी ओर उठाईं.
तभी हर्षवर्धन मेरे गले में बाहें डाल कर बोला "तुमने कभी कोई कमी को महसूस जो नहीं होने दिया."
मैं रो पड़ी हूँ. छुटकी मेरे लिये पानी लाने चली गई है. आज मिनी दीदी फ़िर बहुत याद आ रही हैं.
समाप्त

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