*** धोखा ***
सेठ दीनदयाल के जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा था.
पीतल के कुशल व्यवसायी के रूप में देश विदेश में उनका नाम था. पुश्तैनी कारोबार को वह नित नया रूप देते आए थे.
साथ के व्यापारी क्रिस्टल्स की चमक से हार मानकर अपना व्यापार चौपट कर बैठे थे किन्तु दीनदयाल जी ने पीतल की मूर्तियों में मीनाकारी कर सुनारों को भी मात देना शुरू कर दिया था. साथ ही शहर में बड़ा सा शोरूम "अग्रवाल वॉच सेन्टर" उनके समय के साथ समन्वय रखने का एक प्रत्यक्ष उदाहरण था.उनकी व्यापारिक सूझ बूझ का लोहा उनके बाज़ार के ही नहीं शहर के दूसरे क्षेत्रों के व्यापारी भी मानते थे.
समझदार और शालीन पत्नी,एक बेटा और एक प्यारी सी बिटिया. बेटे का नाम हरीश और बिटिया का नाम लाड़ली था.
दरअसल लाड़ली का कोई दूसरा नाम नहीं रखा गया था क्योंकि वह थी ही सचमुच लाड़ली, उनकी आंखों का तारा.....सभी की दुलारी,जिनके बीच बैठती रौनक लगा देती.
सेठ जी का सपना था कि हमेशा उनके बच्चे हंसते खिलखिलाते रहें. फिर लाड़ली तो जहाँ बैठ जाए वातावरण अपने आप खुशनुमा हो जाता. हाज़िर जवाबी में उसका कोई सानी नहीं था. लाड़ली अपना भविष्य हॉकी प्लेयर के रूप में देखती थी. इसलिए लड़की की सुबह से ही भागदौड़ शुरू हो जाती. सुबह पांच बजे उठ कर स्टेडियम में दौड़ने जाती. लौटते ही हल्का नाश्ता करती. आठ बजे जिम इंस्ट्रक्टर आ जाता.
सुमित्रा जी (लाड़ली की मां) को फूटी आंख नहीं भाता था, पूरे शरीर पर गोदना गुदाए हुएअजीब सा वह लड़का.
लाड़ली हंसती अपनी मां पर, 'गोदना नहीं टैटू कहते हैं मां आजकल बहुत फैशन में है.'
'मैंने भी सोचा है कि अगर नेशनल टीम में सलेक्ट हो गई तो गणेशा का टैटू बनवाऊंगी यहां.'
उसने अपनी पीठऔर गर्दन के बीच का भाग दिखाते हुए कहा.
सावित्री बिना प्रतीक्षा के बोल उठी "फिर सारी जिंदगी करवट ले के सोइयो बेटा वर्ना गणेश जी का तो दम घुट जाएगा."
सेठ जी ने मां बेटी के वार्तालाप में दख़ल दी, "मेरी मानो तो दाहिनी कलाई में बनवाना खेलेगी, तो गणपति बप्पा भी जोर लगा देंगे."
"तब तो हनुमान जी का ठीक रहेगा पापा." लाड़ली सेठ जी के पास सोफ़े की बांह पर बैठ गई.
सुमित्रा ने कहा "खूब बिगाड़ो बेटी को, जब ससुराल जाएगी तब पता चलेगा."
"मां मुझे नहीं जाना ससुराल,ओलम्पिक में जाऊंगी मैं तो,"उसने कहा.
"वैसे तुझे इस खेल में क्या मज़ा आता है?बता ना," सुमित्रा ने पूछा.
"तुमको चटनी बनाने में क्या मज़ा आता है माँ?" लाड़ली ने जवाब दिया.
सुमित्रा झूठ मूठ गुस्सा होकर जाने लगी तो लाड़ली ने खींच कर उसे अपने पास बिठा लिया.
"यहीं बैठो माँ, बनाने दो बीना दीदी को खाना क्यों परेशान हो रही हो?"
"मां तुम बहुत ही प्यारी हो," कहते हुए लाड़ली ने सुमित्रा की गोद में सिर रख लिया था.
"हर वक़्त काम में मत लगो,हो जाएगा माँ इतने लोग हैं तो,"अब सुमित्रा उसका सिर सहलाने लगीं.
सब कुछ इतना अच्छा चल रहा था कि अचानक मुसीबत आन पड़ी.
याद है आज भी वो मनहूस दिन बहुत गर्मी थी उस दिन.
लाड़ली स्कूल की हॉकी टीम में थी.
जब प्रैक्टिस के बाद घर आयी सिर दर्द से फटा जा रहा था.
थोड़ी देर बाद ज्वर आ गया, देखते ही देखते बच्ची बेहोश हो गयी.
डॉक्टरों के अथक प्रयास, और सब लोगों की दुआओं से लाड़ली करीब एक महीने की अस्वस्थता के बाद बिस्तर से उठ पायी ,किन्तु अब उसमें पहले सी बात नहीं रही है.
बिलकुल गुमसुम,और सुस्त रहने लगी है लड़की.
ढेरों दवाइयां मिल गई हैं तीनों वक़्त खाने की.देख कर ही उबकाई आने लगती है लाड़ली को.
एम.आर.आई. की रिपोर्ट देख डॉक्टर ने जो बताया, उससे तो सेठ जी के पाँवो तले ज़मीन ही खिसक गई है.
"बुख़ार से मस्तिष्क के एक हिस्से में खून का थक्का जम गया है,इसी वजह से इसकी सामान्य बौद्धिक क्षमता पर प्रभाव पड़ रहा है.सीखने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है ऐसे में,"डॉक्टर ने एक्सरे के धब्बे पर उंगली रखते हुए कहा,"अब खेलना बंद करना पड़ेगा.धूप से ही पहला स्ट्रोक आया है."
समय बीता, लाड़ली किसी भी कार्य को ध्यान से नहीं कर पाती है.उसे देख कोई कह नहीं सकता है कि यह वही चुलबुली लड़की है.
कई वर्षों से दसवीं कक्षा में है.
माता पिता दोनों परेशान हैं इस बात को लेकर. जाते जाते बच्ची की सामान्य बौद्धिक क्षमता को बुखार मानों ग्रस गया हो.
डॉक्टर लोग कहते हैं समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.
लेकिन बच्ची में साफ़ फर्क दिख रहा है, पीठ पीछे लोग जब उसे बेवकूफ और मंद बुद्धि कह कर पुकारते हैं तो पिता का ह्रदय रो उठता है.
माँ सुमित्रा ने हार नहीं मानी. अब वह पूजा पाठ और ताबीजों का सहारा ले रही हैं अपनी बेटी के वास्ते.
मां का दिल है, इसलिए रोकते नहीं किन्तु सेठ जी निराश हो चुके हैं लाड़ली को लेकर.
लाड़ली की अपनी अलग ही दुनिया है.
एक दम निश्छल भोली भाली लड़की...बड़ी बड़ी आँखें, गोरा रंग ऊँचा कद. ये लम्बाई ही उसकी असली शत्रु है.
स्कूल की प्रार्थना सभा में लाइन में सबसे पीछे लगती है कक्षा में सभी लड़कियाँ उससे दूर दूर रहती हैं. सब छोटी हैं उम्र में भी,उसकी सहेलियां कब की कॉलेज में चली गईं ,कैसे समझाए पापा को उसको स्कूल नहीं जाना...मन ही मन सोचती रहती है लाड़ली.
आज माँ से बात करूँगी,अगर याद रहा. इतनी जल्दी भूल भी जाती हूँ. "भुलक्कड़ ,भुलक्कड़...लाड़ली भुलक्कड़," गाना बना लिया उसने. तभी पापा दिख गए तो छोटे बच्चों सी खुश हो ताली बजाने लगी.
किसी तरह से उस वर्ष लाड़ली ने दसवीं पास कर ली. सेठ जी के घर में ऐसा जश्न मनाया जा रहा है कि पूछिये मत.
"देखो सुमित्रा पूरे इक्कीस वर्ष की हो गयी अपनी लाड़ली बिटिया, कोईअच्छा सा लड़का देख कर शादी कर देते हैं,"उन्होंने आगे कहा"देखने में अभी सत्रह अठारह की लगती है,और फ़िर बिज़नेस वाले तो कर ही देते हैं छोटी बच्चियों की शादी"....... कहते कहते उनके शब्द लड़खड़ा गए हैं.
उन्होंने सोचा नहीं था कि बिटिया को हॉकी प्लेयर के रूप में आगे बढाने की जगह,कभी उसके विवाह के बारे में इतनी जल्दी फैसला लेना पड़ जाएगा."अभी छोटी है,कोई भी लड़का मिल जाएगा बाद में यही सवाल उठेगा कि लड़की ने पढ़ाई क्यों नहीं की?"वह बड़बड़ाए"फिर मां बाप सारी उम्र बैठे नहीं रहते,"उनके पास अपने तर्क और व्यापारिक बुद्धि थी.
वह चाहते हैंअपने जीते जी ही बेटी को उसके परिवार में ठीक से एडजस्ट करवा दें.
अगर उसका विवाह सफल नहीं रहता तो कुछ और सोचेंगे कि लाड़ली के लिए क्या करना है?इसी तरह के विचार सेठ जी के मन में घुमड़ते रहते हैं.
बेबस मां का हृदय अंदर से डरता रहता है कि इतनी मासूम बच्ची कैसे निभाएगी विवाह को? आजकल अच्छे अच्छे लोगों की शादियां नहीं चलतीहैं.
"कितनी सीधी है,कहीं जराभी गड़बड़ परिवार मिल गया मुश्किल हो जायेगी,ऐसे जोभी हो,जैसा भी है,आँखों के सामने है हमारी बच्ची."
सुमित्रा विवाह के योग्य नहीं मानती, अपनी नादान पुत्री को.
अभी कल की ही बात है छत पर गेहूं सुखाने के लिए डाले थे ,लाड़ली से कहा "बेटा देखना कहीं कबूतर आ जायें तो बताना."
शाम को छत पर गयीं तो देखा गेहूं की चादर पर ही सो रही थी लाड़ली. सारा दिन गेहुओं के साथ खुद भी सूख ली लड़की, गुस्सा तो बहुत आया,किन्तु अपने ऊपर.
लाड़ली ने कहा-"आपने ही तो कहा था कबूतर देखने को इसीलिए यहीं बैठी रही मां फिर नींद आ गई,"सुनते ही सुमित्रा ने उसे गले से लगा लिया. उनकी आंखों से दोअश्रु बिंदु टपक पड़े.
ऐसी लड़की का विवाह करने की ज़िद क्यों पकड़ बैठे हैं सेठ जी?
लेकिन होनी को जो मंजूर, वो हो कर ही रहता है या कहिये घर में सेठ जी की ही चली.
शीघ्र ही उनकी निगाह में राकेश आ गया.
अच्छी नौकरी,साधारण रंग रूप,परिवार में माता पिता कोई नहीं.
चाचा चाची की कृपा पर बड़ा हुआ राकेश.सब कुछ जंच गया है सेठ जी को.
बस झट मँगनी पट ब्याह हो गया.
विवाह को लेकर बड़ा उत्साह है ,राकेश के मन में.
अपनी कल्पनाओं में गुम रहता है आजकल. सोचता है अब सही मायनों में अपना घर होगा. बस एक जीवन संगिनी चाहिए जो मेरे सुख दुःख की साथी हो.न जाने कितनी बातें हैं जो उसे अपनी पत्नी को बतानी हैं.
धीरे धीरे सब कुछ जुटा लूँगा,अपनी तनख्वाह से.
उसने सोचा कि अब जब घर आएगा तो पत्नी स्वागत में दरवाज़े पर खड़ी मिला करेगी.
लाड़ली की फ़ोटो से उसकी निगाह ही नहीं हटती हैं ."उसको मैं पसंद भी आऊंगा क्या?" यह डर भी है राकेश के मन में.
सेठ जी ने दामाद का घर भर दिया ,इतना सामान कि छोटे से घर में समाता नहीं था.
पास में एक फ़्लैट भी बुक करा दिया है सेठजी ने. शादी के बाद शीघ्र ही नवदम्पत्ति नए घर में चले गए.
राकेश बहुत प्रसन्न था. अभी कुछ दिनों पहले वो कैसे सहमा सहमा सा चाचा जी के घर में रहता था.लाड़ली के आते ही भाग्य ने मानो करवट बदल ली.
बहुत सुन्दर थी लाड़ली और बेहद संस्कारी भी.
कितनी कम बातें करती है, शर्मीली सी दुल्हन है उसकी.
आज कल की लड़कियों जैसी नहीं कि बोलना शुरु करें तो चुप करना मुश्किल, ऐसा ही सोचता था शुरू शुरू में राकेश.
किन्तु शीघ्र ही उसे समझ आ गया कि अपार धन दौलत के बदले सेठ जी ने अपनी मंद बुद्धि कन्या उसके मत्थे मढ़ दी है.
मन ही मन पछताता चाचा जी ने कितना कहा था, एक बार लड़की से मिल ले लेकिन उसे तस्वीर इतनी ज्यादा पसंद थी कि मिलने की आवश्यकता नहीं समझी.
पहली बार उसने पत्नी से बड़े प्यार से पूछा-"तुमको मैं कैसा लगता हूँ?"
लाड़ली बोली "अच्छे हैंआप,बस रंग काला है,पापा कहते हैं लड़कों का रंग रूप नहीं देखना चाहिए ,पढ़ाई और नौकरी देखते हैं,"राकेश को उसका उत्तर कुछ अजीब सा लगा.उसका दिमाग़ ठनका.
भाव विहीन लाड़ली आगे बोली, "माँ कहती है भगवान सबको सब कुछ नहीं देते,अब मुझे ही देखिये कित्ती सुन्दर हूँ. कुछ भी याद नहीं रख सकती ,पहले एकदम नॉर्मल थी.जब बुख़ार आया था ना उसके बाद से ये हाल हुआ है हमारा."
वह सोच रहा था लाड़ली सरल है अथवा मूर्ख ? किस श्रेणी में रखें उसे ?
जिस जीवन संगिनी के साथ रहने के सपने देखे थे, सभी सपने लाड़ली की बातों से ताश के पत्तों की भांति धराशाई हो गए.
सड़क पर टहलने जाती है तो नाली में जाने क्या ढूंढती रहती है. बोर हो कर अकेले घूमने जाने लगा है वो .
फिर उसने सोचा था छुटकारा पा ले,इस मुसीबत से.
पहले वो एक फिजीशियन से मिला. दो चार बार लाड़ली से मिलने के बाद उन्होंने कहा-"आपकी पत्नी मन्दबुद्धि नहीं है, स्लो है थोड़ी."
"नहीं डॉक्टर किसी को कुछ भी कह देती है,"राकेश ने विरोध किया तब डॉक्टर ने कहा "बहुत सारे लोग स्ट्रेट फॉरवर्ड होते हैं"
फ़िर भी मैं आपको एक वकील का फ़ोन नम्बर देता हूँ.
राकेश जब वकील साहब से मिलने पहुंचा उससे पहले ही डॉक्टर ने वकील साहब को फ़ोन करके पूरा केस समझा दिया था.
दरअसल वो लाड़ली के मासूम व्यवहार को देख द्रवित हो गए थे.कहाँ जाएगी ये मासूम लड़की तलाक़ के बाद.
इसलिए वकील साहब की बातों से भी निराशा ही हाथ लगी राकेश को.
चाचाजी से अपनी समस्या कही तो चाचाजी ने यह कह कर निरुत्तर कर दिया कि "अगर विवाह के बाद बहू को कुछ हो जाता तो छोड़ देते."
अबअक्सर सड़क पर निकल जाता है राकेशऔर बेवजह सिगरेट के कश लगाता रहता है. फिर थक कर घर आ सो रहता है.
मानों शरीर में प्राण ही न रह गए हों और लाड़ली उसके इस व्यवहार से सहमी सहमी रहती है. उसे समझ नहीं आता कि उसके पति ठीक से बात क्यूँ नहीं करते हैं?
मां पापा तो सारा दिन बात करते हैं. भैया भाभी तो सिनेमा भी जाते हैं. ये मुझे कहीं भी अपने साथ नहीं ले जाते.
राकेश लाड़ली को अपने साथ ले जाना चाहता था हर जगह,किन्तु उसके व्यवहार के कारण लज्जित नहीं होना चाहता था. एक तो शक्लसूरत से एक्स्ट्रा ऑर्डिनेरी है,सब उससे बातें करना चाहते हैं पर मुहं खोलते ही सब कुछ चौपट कर देती है.
कसमसा कर रह चुका है कई बार.
अगर कानून में एक खून की इजाज़त हो तो वह अपने ससुर को नहीं छोड़े. रुपए पैसे के साथ तौल दीअपनी मंदबुद्धि कन्या. मेरे मत्थे डाल दी अपनी मुसीबत. धोखेबाज कहीं के.
उधर सेठ जी आते जाते बेटी का हाल लेते रहते हैं यही उस सरल लड़की की खुशी का कारण है .
इसी बीच पता चला कि लाड़ली माँ बनने वाली है. राकेश की वितृष्णा धीरे धीरे करुणा में तब्दील होने लगी है,तकलीफ़ सह कर भी बच्चों जैसी चहकती रहती है लाड़ली.
अपना पेट छू छू कर खुश होती,चिंता है तो बस एक, बच्चे को गोरा होना चाहिए....और उसका नाम क्या रखा जाए?
समय के साथ नेहा ने जन्म लिया. रंग रूप में बिलकुल अपनी माँ की परछाईं है नेहा, लेकिन दिमाग की बहुत तेज.
अपनी माँ का ख्याल ऐसे रखती है मानों वही माँ हो लाड़ली की. नाना नानी के घर जाती फिर अपना घर भी वैसे ही सजा संवरा रखने की कोशिश करती. राकेश उसे घर के बाहर ही छोड़ आता है.अन्दर से मन नहीं होता है उसका ससुराल में जाकर बैठने का,दिखावे के लिए वो कुछ नहीं कर पाता है.
नन्हीं सी जान नेहा माता पिता के रिश्ते को लेकर बड़ी संवेदनशील हो गई है, "माँ ऐसे काम क्यों करती हो जो पापा को पसंद नहीं ?"
देखो पड़ोस वाली शर्मा आँटी को देखो,उनकी तरह कपड़े पहना करो माँ. वैसे ही घर सजाओ, मां.छोटी नेहा जबरदस्ती लाड़ली को पकड़ जब तब पड़ोस वाले घर में ले जाती है.
''माँग नहीं भरती क्यों ? ''लाड़ली मिसेज़ शर्मा से पूछती ''चूड़ी क्यों नहीं पहनती ?
जितनी बार मिलती एक ही प्रश्न करती है ,हर बार वही सधा उत्तर देती मिसेज़ शर्मा, "बैंक में काम करती हूँ न. सारे जेंट्स हैं."
"'बस बस याद आ गया." लाड़ली मासूमियत से कहती ''आपको सिम्पल रहना अच्छा लगता है." एक वर्ष में बस यही दो लाइनों का वार्तालाप हो पाता है उन दोनों के बीच.
मिसेज़ शर्मा को देख कई बार राकेश का मन अनजाने में अपनी पत्नी से तुलना करने लगता है. फिर उसका क्रोध निकलता अनजाने में लाड़ली पर. ऐसा नहीं कि उसने लाड़ली के साथ मेहनत नहीं की.स्त्रियों से सम्बंधित सभी पत्रिकाएँ गृह शोभा, मनोरमा, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी इत्यादि मंगाता. रसोई घर से लेकर पत्नी के कपड़ों की शॉपिंग भी पूरे मन से करता था राकेश.
लेकिन लाड़ली बस चित्र देख कर उदासीनता से एक किनारे रख देती पत्रिका को, अलबत्ता एक कमरा कूड़े का ढेर हो गया था. रद्दी नहीं देती थी लाड़ली,बच्चों सी मचल जाती, अच्छा अच्छा खाना बनाऊँगी इनको पढ़कर."
अब कहना ही छोड़ दिया था राकेश ने. जो जी चाहे करो.
घर क्या था हर चीज़ बेतरतीब.....बल्कि इसे कबाड़ घर कहना उचित होगा.
टेलीविजन की दीवानी है लाड़ली. कोई भी सीरियल छूटना नहीं चाहिए. उनके पात्र जैसे उस के मित्र थे. उनके उतार चढ़ाव से वह भी खुश और उदास होती रहती है.
''नेहा तू बता जोधा अपने को सच्चा साबित कर पायेगी ?" सात वर्ष की नेहा माँ को समझाती, "'माँ स्टोरी है ,झूठ -मूठ दिखाते हैं ,इंटरेस्टिंग बनाते हैं अपने सीरियल."
"सही कह रही है तू." लाड़ली सिर हिलाकर हामी भरती.
एक अच्छी बात यह हुई कि बिटिया की चिंता नहीं करनी पड़ी राकेश को. माँ -बेटी सहेलियों की तरह रहती थी.
बच्ची को पढ़ाने के लिए घर पर ही एक लड़की आती थी. उतनी ही देर में आफत कर देती थी लाड़ली,''नेहा जल्दी पढ़ाई पूरी कर बेटा, फिर पार्क में चल कर हॉकी खेलेंगे. "
बस पुरानी यादों में यही खेल बाकी रह गया था. बाकी सब स्मृति पटल से साफ़ हो चुका था.
एक बच्ची की माँ होकर भी बच्चों जैसी निश्चलता है लाड़ली में . सुबह -सुबह ऑफिस जाने से पूर्व बेटी के साथ पत्नी के बालों की भी कंघी करना शुरू कर दिया था राकेश ने.
वरना शाम तक ऐसे ही घूमती रहेगी. बाल भी नहीं कटाने, क्योंकि अंध विश्वास है कि बाल कटाने से विवाहित स्त्रियों के पति मर जाते हैं.
ऐसा उसे काम वाली बाई ने बताया था....बहुत अच्छी है वो बाई कभी झूठ नहीं बोलती. अपनी बड़ी बड़ी आँखों को और फैला लेती वह.
''वादा करो नेहा के पापा. नेहा की शादी से पहले नहीं मरोगेआप. ''राकेश को अब आदत हो गयी थी ऐसी बातों की. हँस कर टाल देने की.सोच लिया था,एक नहीं दो बच्चियां पालनी हैं.
समय ने करवट ली नेहा बड़ी हो गयी पर उसकी माँ वैसी ही भोली भाली बनी रही. उसकी सहेलियाँ जब कहती," तेरी मॉम तो बहुत प्रेटी है." नेहा को बहुतअच्छा लगता है जब कोई उसकी माँ की प्रशंसा करता है.
क्या बताए इन लोगों को,वह बेचारी अपनी दुनिया में अकेली ही मस्त रहती है. कई बार पापा से कहा माँ के साथ कहीं घूम आइये, पर कहीं नहीं जाते वे दोनों एक साथ.
पापा डरते हैं...कहीं कोई उनकी हँसी न उड़ाए....माँ भी कुछ न कुछ ऐसा कर भी देंगी कि मुसीबत में डाल देंगी पापा को.
अभी कल की ही बात लो बिट्टू मामा पहली बार मामी के साथ घर आये थे.
शर्माआन्टी कितनी ख़ुशी के साथ मामी को देखने आयी थी.
माँ उन्हें हाथ पकड़ कर कोने में ले गयी और बोली ''देखिये भाभी जी अब ये नई बहू वाला घर है ,अगली बार से आना तो साड़ी पहन कर आना,"और तो और मामी से बर्तन धुलवा लिए.कौन करता है ऐसा?
एक मिनट को हक्की -बक्की रह गईथीं,शर्माआंटी भी,लेकिन इतने बरसों से माँ को जानती थी इस लिए हँस कर टाल दिया उन्होंने.
इस बार ट्रांसफर लिस्ट में राकेश का नाम आ गया. नेहा बारहवीं कक्षा में है ,इसलिए अकेले ही जाना पड़ा.
बहुत सी हिदायतें दी लाड़ली को. घर अंदर से बंद रखना, किसी को बताना नहीं कि मैं घर में नहीं हूं इत्यादि. उसने भी बड़ी समझदारी से सिर हिलाया.
नेहा ने कहा "पापा आप बेफिक्र हो कर जाइये मैं सब सम्भाल लूँगी."
दिल्ली पास में ही है मुरादाबाद के सो करीब करीब हर हफ्ते ही घर आ जाता है राकेश.
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'' सो गयी क्या नेहा ?"
''नहीं माँ थक गयी हूँ इसलिए चुपचाप लेटी हूँ .
"तेरे पापा की याद आ रही है बेटा."
"कल फ़ोन कर लेना दिन में."
"नेहा जब वो थे खाना बना देते थे ,बाहर से सूखे कपडे उतार देते थे."
"बहुत चालाक हो,अपने मतलब से याद करती हो पापा को."
"न बेटा, कभी कभी तो अच्छा लगता है ,अकेले रहना,सच्ची बहुत चिल्लाते हैं तेरे पापा बिना बात."
"बिना बात? आप ठण्ड में बिना मोजों के घूमती हैं,क्या ये कोई बात नहीं है," नेहा ने कहा.
"ना ये बात नहीं है."
"दरअसल वो तेरे नाना से नाराज हैं."
नेहा ने कहा "आपको कैसे पता ? कुछ भी कहती हो."
लाड़ली राज़दार आवाज़ में बोली "डायरी लिखते हैं तेरे पापा, उसी में पढ़ा है."
"माँ तो जासूसी करती हो और वह भी पापा की...वाह भाई वाह."
"हा हा हा" लाड़ली हंस पड़ी.
"नहीं अपनी किताब ढूंढ रही थी,अचार बनाने के लिए, सो नज़र पड़ गई."
नेहा ने समझाया, "पापा से मत बताना किसी की डायरी पढ़ना अच्छी बात नहीं."
"नहीं बताऊंगी."
"पर नेहा ! मैं ने तो शर्मा आंटी को बता दिया है, कहीं कुछ होगा तो नहीं."
अब वो वाकई घबरा गई थी.
"नहीं कुछ नहीं होगा वो तो आपकी सहेली हैं."
"हाँ ये बात तो है."
लाड़ली ने दूसरी ओर करवट बदल ली.
जब सुबह नेहा कॉलेज जाने लगी तो लाड़ली ने पास जाकर कहा"बेटा कॉलेज से सीधे घर आना,
अब बड़ी हो रही हो,कहीं किसी के साथ भाग मत जाना ,आज कल बहुत दिखाते हैं टी वी पे,लड़कियों को बहला लेते हैं,तेरे तो पापा भी यहाँ नहीं हैं."
'हाँ मम्मा सीधे घर आऊँगी,"नेहा बोली, "अब जाऊं?देर हो रही है."
"हाँ बेटा जा."
कुछ ऐसा हुआ कि अगले दिन ही राकेश ने अचानक आकर मां बेटी को चौंका दिया.
''आप इस समय, हे भगवान! काश!थोड़ी देर पहले आ जाते ''नेहा देख बेटा तेरे पापा आ गये ,तारक मेहता का उल्टा चश्मा,छूट गया उनका'' कहती हुई लाड़ली अंदर चली गयी.
रात बहुत थका हुआ था राकेश, पास वाले फ्लैट से ऊँची ऊँची आवाज़ें आ रही थीं. स्वर क्रमशः और तीव्र होते जा रहे थे. कितने जंगली लोग हैं? अगर लड़ना है तो धीरे लड़ो आधी रात तमाशा करने की क्या जरूरत है? बिस्तर पर पड़े पड़े बड़बड़ा रहा था वह.
करवट बदली, देखा तो पत्नी नदारद. तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी. पड़ोस वाली महिला को ले आयी थी लाड़ली,स्त्री के चेहरे पर चोट का निशान था.
"आप यहीं बैठिये,ड्राइंग रूम में. अंदर नेहा के पापा सो रहे हैं." लाड़ली धीरे धीरे फुसफुसा रही थी.
राकेश की आंख खुल चुकी थी.
अब उसके ड्राइंग रूम में तमाशा हो रहा था.
पड़ोस की स्त्री लाड़ली से कह रही थी, "धोखेबाज है मेरा पति और मैंने विरोध किया तो मारपीट पर उतर आया."
लाड़ली समझा रही थी पति पत्नी दोनों को. राकेश के कानों में ये शब्द पड़े.
"ये कोई धोखा है अगर किसी लड़की से बात कर भी ली तो क्या हुआ ? अब कर ली तो कर ली ना."
इसमें धोखे वाली क्या बात है, लाड़ली की समझ में नहीं आरहा था.
"भाईसाब! रात में ऐसी बातों पर इतनी लड़ाई करता है कोई."
"नेहा के पापा दिल्ली से आये हैं जग जाते तो".
"अरे जीवन भर का धोखा तो मेरी नेहा के पापा के साथ हुआ है मेरे जैसी लड़की से शादी जो हो गई उनकी."
सच्ची!!
खुद से खाना बनाते हैं.
स्लो हूँ न मैं सच्ची!!....उसने आगे कहा-
"मेरे साथ भी धोखा हुआ है भाईसाब, पता थोड़े ही था कि ये सिगरेट पीते हैं. कभी नेहा की शादी से पहले मर गए तो उसकी शादी कैसे होगी? यही सोचती रहती हूं." लाड़ली भावविहीन हो कर कह रही थी.
"हेभगवान! पांच दस साल जिंदा रखना नेहा के पापा को."
अब लाड़ली ने अपनी रौ में बहकर बोलना शुरू कर दिया तो बेडरूम में राकेश ने अपना सिर पकड़ लिया.
उसने अपने कमरे से बाहर निकलना उचित न समझा.
अंदर से ही कान लगा सुनने लगा.
लाड़ली स्त्री के पति की ओर मुखतिब हुई, ''देखिये भाई साब,मेरे पापा के घर एक किरायेदार रहता था वो भी आपकी तरह अपनी बीवी को बहुत मारता था.वो एक पल रुकी फिर कहा
"पापा ने पहले तो एक दो बार उसे समझाया,लेकिन जब नहीं माना महीने भर के भीतर मकान खाली करा लिया."उसने गहरी सांस ली और बोली"मैं भी आज आपको समझा रही हूँ, आइंदा ऐसा हुआ अपने पापा को बुलवा कर सोसाइटी से बाहर निकलवा दूँगी. मेरे पापा पुलिस को जानते हैं, पकड़वा भी देंगे आपको."
सचमुच शर्मिंदा हो रहे थे दोनों पति पत्नी.लाड़ली अपनी बुद्धि के अनुसार सुलह कराने की पूरी कोशिश जो कर रही थी.
लाड़ली ने कहा, "घर में आपसी सलाह से रहा जाता है,मारा मत करो,छोटे बच्चे करते हैं मारपीट."
पति पत्नी दोनों ने लाड़ली को आपस में सुलह करने का वचन दिया, फिरअपने घर चले गए दोनों.
लाड़ली शांति से आकर दो मिनट में ऐसी सुखद निद्रा में सो गयी,जैसे कोई बात ही नहीं हुई हो.
रात भर यही सोचता रहा राकेश.....क्या लड़ाई झगडे के स्वर और लोगों ने नहीं सुने ?
सभी उसकी तरह अनजान बने रहे क्या ये तटस्थता ,उदासीनता ,भीरुता की परिचायक नहीं ,वह स्वयं भी कुछ न करता.दोष तो ये भी है अपने आप में.
अचानक उसे याद आई बरसों पुरानी एक बात,"बेवकूफ़ नहीं है आपकी पत्नी बस थोड़ी सी अलग है,मासूम है"आज डॉक्टर की बातों पर यकीन करने का दिल चाह रहा है उसका.अनजाने हीअपनी पत्नी पर प्रेम उमड़ पड़ा.
उसने लाड़ली की ओर करवट ली नींद में जाने क्या बड़बड़ा रही थी? शायद कोई सपना देख रही है, राकेश ने उसेअपनी बाहों के घेरे में सुरक्षित कर लिया.
...........समाप्त............... प्रीति मिश्रा
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