Sunday, May 31, 2020


****रिश्ता अनजाना****
(प्रिय मित्रोंआपको शॉर्ट में कहानी याद दिला देती हूँ)
अनु एक सीनियर आई ए एस ऑफिसरअनिल की पत्नी है,उड़ीसा के गेस्ट हाउस में बैठी ख़ाली अनु काफ़ी बोर होती है, इधरअनिल की व्यस्तता बढ़ती गई तो उन्हें लगा कि अनु बहुत परेशान है.
पिछले कुछ सालों से अनु की हियरिंग प्रॉब्लम उसे आम इंसान से काट रही है, अनु की हालत देख कर अनिल ने उसे सुझाव दिया वह चाहे तो इंटरनेट को अपना दोस्त बना ले,अपना कितना भी समय बिता सकती है चाहे कुछ पढ़े या किसी से दोस्ती कर ले.
यहीं परअनु को संदीप मिला जो कि यू एस एड से इंडिया मेंअपने कई एन जीओ चलाता है.
दरअसल संदीप दुनिया के हर कोने के लिए काम करता है,उसे अपने सोशलवर्क के लिए अवार्ड भी मिले हैं. संदीप के साथ मिलकर अनु के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हुए आइए अब देखें कि अनुऔर अनिल के जीवन में क्या चल रहा है....

अनिल और अनु
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यह तुम्हारा अमरीका वाला नया फ़्रेंड तो हमारे स्वयंभू माफ़िया मिश्रा से भी ज्यादा खतरनाक है". कहने के साथ ही अनिल हंस पड़े, और हँसी में थोड़े से तंज का भी पुट आ गया, "भई, इसका काटा तो पानी तक नहीं माँगता."
"आर यू जेलस ?....हूँ कुछ जलने की बू आ रही है."
चुहलबाज हो रही थी अनु.
"क्यों नहीं होना चाहिए जेलस, भई तहे दिल से चाहा है हमने अपनी लाइफ़ पार्ट्नर को." अनिल ने कहा.
"ऐसी कोई बात नहीं है समझे ! मियाँ समझदार मजनू." शरमा गई थी अनु.
"अरे यार इस दुनिया में खाली मैं ही तो इतना बेवकूफ नहीं जो तुम्हारे चक्कर में रहे, बहुतेरे है मुझ जैसे". अनिल ने भी प्यार भरा वार कर दिया था.
अनु नक़ली ग़ुस्सा ओढ कर बोल रही थी, "अनिल आप हद से आगे बढ़ रहे हैं."
"नहीं सच कह रहा हूं आठ से लेकर साठ तक के जितने भी नर नारी मेरी जान को देखते हैं मेरे प्रान हर लेते हैं. लेकिन मेमसाब होंगे लाखों चाहनेवाले आपके लेकिन हम सा दिलवाला कोई नहीं होगा, गारंटी है."
"अरे हटो जाने दो," अनु ने बात का रूख बदलते हुए कहा "आप क्या कह रहे थे मंत्री जी की 'मंत्राणी जी' दूजी देवी जी आने वाली है."
अनिल ने कहा "हां और उनकी डिमांड है कि बिहार से एक किलो सत्तू मंगा दिया जाय. सुना है वो नाश्ते में सिर्फ सत्तू के पराठे और आम का सूखा आचार खाती हैं."
अनु खिलखिलाई, "हा हा हा ! तो अब आई ए एस साहब 'सत्तू एक खोज' अभियान में लगने वाले हैं."
अनिल ने एक आइआइटीयन आइ ए एस होने के अलावा मनीला के ऐसियन इन्स्टिट्यूट ओफ़ मनेजमेंट से एमबीए भी था. वरक़ोंहोलिक अनिल ने एक गो गेटर के रूप में सरकारी और ग़ैर सरकारी दोनों ही हलकों में नाम कमा रखा था.
अनिल मस्ती में कह रहा था, "हां भाई नौकरी करनी है तो बॉस और बॉस के अपनों की हाजरी तो बजानी होगी."
हक़ीक़त यह थी कि मंत्री जी बहुत ही सहज सरल और उदार इंसान थे...अनिल का उनका और उनके अपनों का ख़याल रखना
उसके शालीन व्यवहार और संवेदनशील स्वभाव के कारण था ना कि चापलूसी जो इस देश की ब्यूरोकरेसी का युग धर्म बन गया है.
अनु ने बड़े फ़लसफ़ाना अन्दाज़ में कहा "कई बार सोचती हूं होम मेकर होकर कितनी सुखी हूं मैं."
अनिल निहाल हो कर बोल रहा था, "हां वह तो है, खुश मैं भी हूं और जब तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान देखता हूं तो मेरी सारी थकन दूर भाग जाती है और कुछ कुछ भी होने लगता है."
अनु अनिल के पास आकर बैठ गई और उनके कंधे पर अपना सिर रख दिया. आज उसे लग रहा था जैसे उसका खोया हुआ ख़ज़ाना मिल गया था.
एमिली अपने अस्पताल में
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एमिली ने सहानुभूति पूर्वक अपने सामने बैठे हुए नवजात शिशु के बेहद डरे हुए माता-पिता से कहा,
"हां तो आप बताइए आपको पहली बार कब लगा कि बच्चा सुन नहीं पा रहा है"
बच्चे के पिता ने बोलना शुरू किया "डॉक्टर कल की ही बात है हम लोग ट्रेन से सफर कर रहे थे,तभी अचानक बगल से एक दूसरी ट्रेन सीटी बजाते हुए गुजरी. हमारे केबिन में एक दूसरा बच्चा भी सो रहा था...करीब तीन चार महीने का था. वह जोर जोर से रोने लगा लेकिन हमारा बेटा चैन से सोता रहा. उस वक्त ही मुझे एहसास हो गया था कहीं ना कहीं मेरे बेटे में कोई कमी
है. ट्रेन से उतरते ही घर आकर मैंने किचन में जाकर एक स्टील की प्लेट उठाई और चम्मच से जोर जोर से टकराना शुरू किया. मेरे हाथों में दर्द होने लगा डॉक्टर ! लेकिन मेरे बेटे पर कोई भी रिएक्शन नहीं हुआ. बताते बताते उसकी आवाज भर्रा गई थी शब्द लड़खड़ाने लगे थे.
डॉ एमिली ने कहा, "आई एम वेरी सॉरी कि आपका बच्चा सुन नहीं सकता लेकिन यकीन मानिए आज की तारीख में ना सुनना कोई बड़ी बीमारी नहीं है इसको हम इलाज के द्वारा ठीक कर सकते हैं."
बच्चे की माँ ने पूछा "लेकिन डॉक्टर इसकी वजह क्या है?".
एमिली ने कहा "ठीक ठीक बता पाना मुश्किल है पर मैं अभी सब समझाती हूँ".
"सबसे पहले ये जान लीजिए कि आपका बच्चा ठीक हो जाएगा, आप बहुत सही वक्त पर इसे हमारे पास ले आयी हैं."
उसने अपने पेशेंट के माता पिता को धैर्य बंधाते हुए कहा" मैंने नाइन मंथ्स तक के बच्चों के कॉक्लियर इम्प्लांट किए हैं इनके रिजल्ट बहुत अच्छे हैं,पिछले तीस सालों से ये इम्प्लांट प्रोफाउंड डेफनेस में यूज़ होता है, जितनी कम उम्र होगी उतनी जल्दी बच्चा बोलना भी सीख लेता है,आप घबराइए नहीं.
"मैं ऑडिटरी ब्रेन स्टेमप्लांट भी करती हूं जो कि ब्रेन की स्टेम से डिवाइस को जोड़ देता है ,ये भी बहुत अच्छा है, दुनिया में बहुत कम जगहों पर ही होता है. मैं आपको करीब ऐसे पच्चीस तीस बच्चों से मिलवा सकती हूं और उनके पेरेंट्स से बात करा सकती हूं जो इस इलाज से लाभान्वित हुए हैं. आप जब अच्छी तरह से निश्चिंत हो जाइए तब अपने बच्चे को सर्जरी के लिए मेरे पास लेकर आइए."
"लेकिन डॉक्टर मेरे बच्चे के साथ ही ऐसा क्यों हुआ".
बच्चे की मां आंखों में आंसू भर कर बोली.
एमिली ने बच्चे को प्यार से गुदगुदाते हुए और उसकी मां के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "कोई भी मुसीबत बिना बताए ही आती है और फिर यकीन मानो मेरे रहते हुए भी यह मुसीबत कोई मुसीबत ही नहीं है मैं आपके बेटे को सुनने और बोलने लायक बना दूंगी
"सोचो कितने सारे लोग होते हैं जिन को हार्ट अटैक आ जाता है वे लोग भी तो अपनी सर्जरी कराते हैं ना, और उसमें जिसके बाद उनका जीवन नार्मल हो जाता है और आपके बेबी को अस्सी नब्बे साल तक जीना है आपका नाम रोशन करना है".
फिर यह कोई बड़ा ऑपरेशन नहीं है कान के पीछे जो है हॉलो स्पेस है वहां मशीन फिट कर देंगे,उसने कम्प्यूटर स्क्रीन पर आपरेशन के एक एक स्टेप को समझाते हुए कहा "बच्चे को कोई दिक्कत नहीं होगी मेरा विश्वास करिए."
"जी डॉक्टर आपके भरोसे के सहारे ही तो मैं यहां आई हूं". बच्चे की माँ आशान्वित होकर कह रही थी.
"लेकिन डॉक्टर क्या मैं जान सकती हूं इसके कारण क्या है?" उसने दोबारा पूछा.
एमिली "इसका एक बड़ा कारण जेनेटिक है. दूसरी तरफ पटाखे, टेलिफोन ,डिस्को,किसी भी किस्म का नॉइज़ पोल्युशन भी किसी हद तक जिम्मेदार है अक्सर मेनिनजाइटिस से बाद में बहरापन आ जाता है और माँ को रूबैला हो जाना,कान का बहना ,नज़दीकी रिश्तों में शादी आदि बहुत से कारण हैं".
वो आगे बोली,
"मनुष्य के शरीर के बहुत ही अनोखे अंगों में से एक है कान और इस अनोखी चीज को बचाना बहुत जरूरी है, क्योंकि एक बार सुनाई देने की क्षमता चली जाए तो उसे नेचुरली कोई वापस नहीं ला सकता. ये बहुत दुःख की बात है."
एक बात और मैं आपको कुछ दवाइयों के नाम बताती हूँ जैसे क्लोरोक्वीन, स्टेटपटोमाईसीन, एस्पिरिन ,जेंटामाइसिन, लेसीक्स जैसी कुछ ऐसी दवाइयां है जिनके साइड इफ़ेक्ट्स सुनने की शक्ति को खराब कर देते हैं. ऑटोटॉक्सिटी ना हो तो यह दवाइयां ली जा सकती हैं, लेकिन आप अपने बच्चे के डॉक्टर को यह अवश्य बताएं ताकि आप का डॉक्टर इन दवाइयों के बारे में उपयुक्त निर्णय ले सके."
थैंक्यू, डॉक्टर ! उस युवा जोड़े में अब थोड़ा धैर्य आ गया था. उनके चेहरे पर सुकून था.
एमिली उन तीनों को बाहर तक छोड़नेआयी. उसका मन ऐसे में माँ-बाप की बेबसी से हमेशा ही द्रवित हो जाता है.
अब उसे अनु की याद आ गई. मन ही मन निश्चय कर उसने अनु को एक लम्बा मेल किया, जिसमें उसकी बीमारी की पूरी हिस्ट्री माँगी थी
अभी एक मिनट भी गुज़रा न था अनु के मैसेजेस आने लगेऔर सभी मेडिकल रिपोर्ट्स भी.
उसकी सारी रिपोर्ट्स प्रिन्ट करके वो अपने सीनियर डॉक्टर से डिस्कस करने चल पड़ी.
अनु उड़ीसा में
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आज अनु को पूरा भरोसा हो गया था कि कोई भी कार्य या घटना किसी न किसी मक़सद से जुड़ी होती है. अगर वह उडीसा ना आती तो वह जीवन की एक बहुत बड़ी सच्चाई से रूबरू न हो पाती.
सोचने लगी कौन होती है एमेली मेरी ? क्या रिश्ता है उस से ? सात समंदर पार बैठी लड़की मेरी परवाह कर रही है, मेरे लिए सोच रही है और कुछ करना चाह रही है.
अनु भी पूरे जोश के साथ अपने काम में जुट गई. दिन कैसे भाग रहे थे उसे पता ही नहीं चल रहा था. धूप में घूम घूम कर उसका गोरा रंग झुलस कर टेन हो गया था. उमस वाली गरमी से पसीने के कारण उसे दिन में चार पांच बार नहाना पड़ता था. हमेशा एयर कंडीशन के आगे पड़ी रहने वाली सुबह से सुष्मिता और मिसेज़ तोमर के साथ गांवों का दौरा करने निकल पड़ती हैं. यह ऊर्जा में बढ़ोतरी अस्तित्व का अवदान थी जो उसके मनोवैज्ञानिक बूस्ट का परिणाम थी.
सोच रही थी अनु, "बस यही तमन्ना है कि यहां से जाने से पहले यदि गांव की जीवन शैली में कुछ परिवर्तन कर सके तो उसका जीवन सफ़ल हो जाए."
ऑफिस का स्टोर सैनिटरी पैड्स,पैम्फलेट्स और गर्भनिरोधक सामग्रियों से भर गया था. सोचती थी अनु, कैसी विडम्बना है यह कि मानव के लाभ के लिए हुई ये खोजें और आविष्कार नहीं पहुँच पाए हैं उन तक जिन्हें इनकी सब से ज़्यादा ज़रूरत है.
उड़िया बोलने वाली ग्रामीण स्त्रियां जब इस्त्री किये हुए कपड़ों में रोज़ सुबह उसे नमस्कार कहती तो सुनाई न पड़ने के बावजूद भी अनु को अंदर तक तसल्ली की अनुभूति होती.
लोग मदद के लिए इस कदर आगे आएंगे अनु ने सोचा तक नहीं था.पचास हज़ार का चेक तो वो मिश्रा दे गया जो हर ट्रक से पैसा वसूलने को बदनाम था.
हाथ जोड़कर बोला था मिश्रा, "मैडम जी कोई माने या न माने मैं भी गरीबों के वास्ते ही लड़ रहा हूँ बस मेरा तरीका आप लोगों से ज़रा अलग है. मैंने जो कुछ झेला और देखा है वह भी तो अलग ही है."
अनु ने कहा, " मिश्रा जी हमारी सी बी डी वर्कर्स को कोई परेशानी न हो यह देखना आप की जिम्मेदारी है."
"बिल्कुल मैडम हमारा भी अपना परिवार है आप निश्चिन्त रहिये."
जाते जाते दरवाज़े पर रुक गया वो,"हाँ बोलिये कुछ कहना चाह रहे हैं."
अनु के पूछने पर बोला " ये मज़दूर जो प्रोजेक्ट के काम में लगे हैं निहायत ही ग़रीब हैं. आप तो इलाक़े में धूम फिर चुकी हैं, साहेब को ज़रा कनविंस करिए मज़दूरों की दिहाड़ी में इज़ाफ़ा करने के लिए. आपकी बात नहीं टालेंगे साहेब."
अनु मुस्कुरा पड़ी थी.
सुष्मिता भी कल कह रही थी, "अनु जी जी करता है नौकरी छोड़ कर इसी एन जीओ के कार्य को देश के कोने कोने में आगे बढाऊँ."
आजकल अखबार वाले भी जब तब उन दोनों की फोटो छाप देते हैं. अबकी उसे टाइटिल दिया था "पानी वाली मैडम". अंदर तक भीग गई थी अनु एक सुखद अनुभूति से, इसलिए नहीं कि उसे कोई उपमा या उपाधि मिली थी बल्कि इसलिए कि अच्छे काम का रेकग्निशन हो रहा था.
अख़बारों और पत्रिकाओं में पहले भी उसकी तस्वीरें छपी थी किन्तु एक नोबेल कार्य से जुड़कर मन को जो शान्ति आती है उसको बयां करने के लिए अनु के पास शब्द नहीं थे.
पूरे छः महीने गुज़र गए थे. जो टारगेट था पूरा हुआ,बल्कि उससे बहुत ज्यादा परिवार नियोजन के ऑपरेशंस हो गए थे. महिलाएँ ही नहीं पुरुष भी आगे आ रहे हैं थे. लोगों की सोचों और अप्रोच में बदलाव आया था, इस बात से वह बहुत खुश थी.
गंगा और हडसन : कुछ भारत-कुछ अमेरिका
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गंगा और हडसन में बहुत सा पानी बह गया था. समय बीता....कारख़ाने की चिमनी से उठता धुंआ मानो अनिल और उसकी टीम की कामयाबी की दास्तान बयान कर रहा था. पौ फटने से पहले ही हेड ऑफिस दिल्ली के फ़ोन बार बार घनघना रहे थे. प्रोडक्शन शुरू हो गया था. मंत्री जी भी अनौपचारिक रिपोर्ट पल पल की ले रहे थे यद्यपि औपचारिक सूचनाओं का संवहन ब्यूरोकरेसी के बीच हो रहा था. रेकोर्ड समय में एक बंद हुई सिक फ़ैक्टरी का वापस सुव्यवस्थित ढंग से नवारंभ कर देना और वह भी सार्वजनिक क्षेत्र की प्रबंधन सम्बंधी सारी जटिलताओं के साथ, कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी.
"बस अब कुछ ही दिनों की बात है अनु ! मैनेजमेंट टीम पूरे फ़ोरम में है और सब कुछ संभाल रही है.मेरा काम था मंत्री जी के इस फ़ार्मर्स फ़्रेंडली ड्रीम प्रोजेक्ट को सफलता पूर्वक इम्प्लमेंट करके योग्य प्रोफ़ेशनल्स के हाथों सुपुर्द करके वापस पेरेंट पोस्टिंग पर लौट जाना. बस अब और यहाँ कंटिन्यू करने का मन नहीं."
" क्या खराबी थी इस पोस्टिंग में ?"अनु बोली.
"मेरी समझ में तो यह हमारी लाइफ का सब से अच्छा कार्यकाल रहा और इस जगह ने हमें बहुत कुछ दिया है. मुझे मेरी पहचान मिली और संदीप जितना अच्छा दोस्त." अनु कहते कहते रुक सी गई. उसने देखा एक ही पल में अनिल के चेहरे पर कई भाव आए और गए उन्हें अंदर से अच्छा नहीं लगा था किंतु वह कुछ ना बोले.
थोड़ी देर में सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा उन्होंने कहा, "मैं आर्यन के बारे में सोच रहा था छोटा सा बच्चा हमसे दूर हो गया है."
अब अनु चुप थी. सही तो कह रहे थे अनिल. उस को क्या हो गया है ? वह अपनी दुनिया में इतनी मग्न है कि अपने बेटे का ख़याल तक नहीं आता जैसा आना चाहिए. ऐसा क्यों हो रहा है आख़िर ? क्या एक साथ इंसान काफी चीजें नहीं संभाल सकता ?"
अनिल बोले, "इस प्रोजेक्ट के सफल प्रारम्भ का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाएगा. उसी के साथ तुम भी अपने एन जी ओ का कोई फ़ंक्शन प्लान कर लो और उसमें सारा काम अपनी सेकंड लाइन को सुपुर्द करने की घोषणा कर दो. हम अधिक से अधिक तीन महीने और हैं यहाँ."
" हां ये ठीक रहेगा".अनु ने सहमति जताई.
" मैं यह चाहता हूं कि तुम संदीप और एमिली को भी बुलाओ आखिरकार यह एन जी ओ उनका ही तो ब्रेन चाइल्ड है उन्हें अवश्य उपस्थित होना ही चाहिए और महसूस करना चाहिए कि उनकी परिकल्पना को कितना सुंदर मूर्त रूप दिया है तुम ने."
अनु ख़ुशी से झूम उठी थी. यह ख़ुशी कई सुखद बातों का मिश्रण थी, संदीप और एमिली से मिलने का एक्सायट्मेंट, पेरेंट पोस्टिंग याने दिल्ली लौट जाने पर कलेजे के टुकड़े आर्यन का साथ और अपने इस एन जी ओ के काम को पूरे देश में फैलाने के ख़्वाब को ताबीर देने के मौक़े जो उसका दिल्ली स्टेशंड होना मुहय्या करा सकेगा.
"पता नहीं संदीप आना भी चाहेगा या नहीं". अनु बोली.
अनिल ने पूछा "क्यों ऐसी क्या दिक्कत हो सकती है."
"उसके कुछ पर्सनल इश्यूज हैं. जिसकी वजह से वह इंडिया आना अवॉइड करता है."
" अरे वो तुम्हारा दोस्त है. बुला कर तो देखो जरूर आएगा" अनिल ने हंसकर कहा "और ख़ासकर जब कि भविष्य में भी तुम्हें मिल कर काम करना है."
अनिल अचानक ना जाने कहाँ खो गए. पुरुष कितना ही दावा करे कि वह स्त्री से शारीरिक और मानसिक दृष्टि से मज़बूत होता है, कम भावुक होता है, कम सपने देखता है लेकिन रिश्तों में असुरक्षा की भावना उसमें स्त्रियों से कम नहीं होती. एक तरफ़ वह संदीप और अनु के रिश्ते को एक स्वस्थ मैत्री मानता था और उसे बहुत आदर देता था दूसरी ओर अनायास ही संदीप के सामने ख़ुद को बौना महसूस करने लगता था जबकि वह किसी भी लिहाज़ से उस से कमतर नहीं था, हाँ भिन्न अवश्य था.
स्त्री अपने साथी के मन को भाँप लेने में बड़ी कुशल होती है, अनु ने अनिल के सारे भाव विभाव पढ़ समझ डाले थे.
अनु बोली, "आपने महाभारत पढ़ी है ना. यूं तो द्रौपदी के पाँच पति देव थे लेकिन वह सबसे ज्यादा निकटता बिना शर्त और स्वार्थ के कृष्ण के साथ पाती थी, क्योंकि कृष्ण के साथ लेने और देने के सम्बंध नहीं बल्कि हर स्थिति में कुछ ना कुछ दिव्य पाने के सम्बंध थे.जैसे कृष्ण द्रौपदी के मित्र थे वैसे ही संदीप भी मेरा फ्रेंड है समझे टंडन साहब." अनु अनिल के साथ लता सी लिपट गयी थी और दुष्टता पर उतर आई थी. धीरे से अनु अनिल के कान में फुसफुसा रही थी, "आप तो मेरे तन मन धन के साथी हो और संसार के सब से ऊँचे रिश्ते में हैं हम....जीवन साथी हैं.....और संदीप से मेरा रिश्ता तो एक वन वे ट्रेफ़िक सा है."
"आई नो, तभी तो जी जलता है कभी कभी".
अनिल ने कहा.
"चलो मैसेज करो अभी, टाइम बहुत कम रह गया है, फिर मुझे कार्ड भी छपवाने हैं उसी हिसाब से इन्विटेशन कार्ड बनेगा."
अनु ने संदीप को टेक्स्ट किया और लगभग आदेश सा दिया कि उसे फ़ंक्शन में शामिल होना है और एमिली को भी साथ लेकर आना है.......अनु जानती थी जवाब हाँ में ही आना है.
माहौल और आपसी संवादों में मन की अभिव्यक्ति कुछ ऐसी थी कि एक अरसे के बाद वो घटित हुआ जो मानो सर्वथा नवीन था........ आगे फ़िर बहुत जल्द
प्रीति मिश्रा

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