Saturday, December 12, 2020

ग़ज़ल

 चेहरे बुजुर्गों के किसी फूल से खिल जाते हैं

घर के बच्चे जब उनसे मिलने आते हैं.

सुना होगा यह सच कहते हुए लोगों को
बुढ़ापे में सब अपना बचपन ही तो दोहराते हैं.


दिल का अच्छा है मगर खफ़ा -ख़फ़ा सा रहता है
रुठे हुए उस शख्स को चलो मिलके सब मनाते हैं.


हार जाएंगे सन्नाटे जोअपनी पे आजाओ तुम,
चलो एक गीत तरन्नुम में गुनगुनाते हैं.


आप जो पूछेंगे बस मुस्कुरा के रह जाएंगे
बात दिल की किसी को हम कब बताते हैं.

कलम चलती ही नहीं कहने को कहानी अपनी
कैसे कहें हौसला नहीं ,दर्द से हम घबराते हैं.

अजीब बात है सब भूल गया कैसे मुझको
गुजरे जमाने के किस्से वो आज भी दोहराते हैं.

रिश्ते नाते दोस्ती वफ़ा रखिये संभाल कर
काँच से नाज़ुक हैं छूटे तो दरक जाते हैं.

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