Sunday, December 13, 2020

कैसे समाज कैसे रिवाज़



कैसा  समाज, कैसे रिवाज़ 

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5 फुट 7 इंच लंबी, गोरी 

 नीली आंखों वाली लड़की

 ससुराल में सब काम करती 

 नित्य 

ज़ालिम पति के हाथों अपमानित होती 

क्योंकि ब्याहता तो थी 

 पर गरीब मां-बाप की औलाद को  

 चंद रुपयों की उधारी के एवेज में 

  ससुर जी ने 

बिगड़ैल पुत्र हेतु खरीदा था


 इसी बात को लेकर उसका पति 

दिन रात ताने देता था 

उस रात ज़ुल्म की इंतहा  थी 

 जालिम ने सर्द रात में

 ठिठुरती  स्त्री को 

घर के आंगन में 

विवस्त्र कर निकाल दिया 

कपड़े यहीं रख जा 

तेरे बाप ने नहीं दिए हैं 

वो बहुत गिड़गिड़ाई थी 

तब कहीं सुबह चार बजे 

कमरे में आ पाई थी 

आंसुओं और अपमान से सराबोर 

मन ही मन कर लिया था प्रण 

तोड़ देगी वो ये बन्धन 

जो तिल तिल मरने को 

मजबूर करता है 


फ़िर दिन मास वर्ष बीते 

एक दिन अख़बार में 

ख़बर छपी 

कई दिनों तक समाज में चर्चा रही 

क्या ज़माना आ गया 

किसी को कोई शर्म 

लिहाज़ ही ना रहा 

देखो दो  बच्चों की माँ 

प्रेमी संग भागी 

हाँ  कई बरस लग गए थे 

तोड़ने में ये झूठे रस्मों रिवाज़ 


अब जो प्रेम करेगा 

वही है पति कहलाने का अधिकारी 


हाँ मेरे बच्चों !!

भूख,  अपमान, लानतें 

पड़ गईं हैं ममता पर भारी 

जब भी मौका पाऊँगी 

तुमको भी 

नर्क से निकाल लाऊंगी 

वो अब मुंबई में मॉडलिंग करती है 

जो कपड़ा तन पर रख ले 

वही फैशन बन जाती है 

बड़े बड़े बैनरों, पोस्टरों 

में नज़र आती है 

अच्छे पैसे कमाती है 

काम से थक कर चूर 

जब बिस्तर पर जाती है 

बच्चों की तस्वीर देख

 दो आंसू ढुलकाती है

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