************
सुनते हो !!
*********
सुनते हो !कल रात मुझे एक ख्वाब आया
अपना गाँव खेत बाग़ सब साथ साथ आया
तितलियाँ उड़ती थीं, चहचहाती थीं चिड़ियाँ
पेड़ों की छाँव में खिलखिलाती थीं लड़कियाँ
ख्वाब रंगीन होते हैं मान लो बताती हूँ तुम्हें
सुनो ना ध्यान से किस्सा अब सुनाती हूँ तुम्हें
गीली मिट्टी में मैं बीज दबाती जाती थी
पीछे मुड़ती तो फूलों को खिला पाती थी
आदतन तुम फूलों के बारे में बात करते थे
मानों फ़िर कोई भूली सी किताब पढ़ते थे
मेरी उंगलियां तुम्हारी उँगलिओं में फंसी थी
तुम्हारे चेहरे पे आफ़ताब और मासूम हंसी थी
तुमको कल रात अपने बेहद करीब पाया मैंने
बड़े दिनों बाद ऐसा अच्छा वक्त बिताया हमने
सुबह जागी तो एक टीस सी उभर आयी
हाय!क्यों गाँव छूटा और क्यों मैं शहर आयी
प्रीति मिश्रा
No comments:
Post a Comment