वक़्त
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क्यों किसी को कोई रास्ता नज़र नहीं आताए
बुरे वक्त! क्यों जल्दी से गुज़र नहीं जाता...
बंद पलकों के ख़्वाब कुछ इस तरह टूटे
खुली आंखों में हौसलाअब नज़र नहीं आता...
एक मासूम ने फ़िर माँ से यूँ पूछा है सवाल
मुद्दतों से कोई अपने घर क्यों नहीं आता...
दिन रात मौसम बदलने की रिवयात है यहाँ
फ़िर क्यों ठहरा है मंज़र,बदल क्यों नहीं जाता...
हवा में ख़ौफ़ है इतना अपने पराये क्या कहिये
एक पल भी किसी दिल से डर क्यों नहीं जाता...
दुश्मन है तो दुश्मनी निभा वार सामने से कर
पीठ का खंजर क्यों तेरा दिल दुखा नहीं जाता...
प्रीति मिश्रा
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