Sunday, December 13, 2020

महामारी

 शब्द सृजन (महामारी)

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आत्म मंथन 

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महामारी 

बता कर प्रवेश कर रही है 

सावधानी 

और सजगता से 

मिल जुल कर लड़ भी लेंगे 

आने वाले समय में 

निपट भी लेंगे 

है सबसे कारगर उपाय 

एक ही 

लोगों से कम से कम मिलिये 

किन्तु 

आत्ममन्थन का समय है 

कहाँ को चली थी मानव जाति 

और कहाँ आ खड़ी हुई है 


सब जानते थे 

और डरते भी थे 

इन कृत्रिम संसाधनों के ऊपर 

जीने की आदत 

अगर 

छोड़नी पड़ी 

तो क्या होगा? 

सब धराशायी तो ना हो जाएगा 


कैसे गोलमोल उलझा लिया 

मनुष्य ने स्वयं को 

अपने द्वारा फैलाये जाल में 

किसी से सुना था 

आने वाले समय में 

मानव को सबसे बड़ा खतरा 

मशीनों से होगा 

लेकिन नहीं 

उससे पहले आ गया 


 एक नन्हा सा वायरस 

 चेताने 

ऐ !!चतुर चालाक 

मनुष्यों 

अब भी ठहरो थोड़ा 

धीमे क़दम रखो 

कभी ख़ुद से भी तो मिलो 

कहाँ भागते हो 

किससे है ये प्रतिस्पर्धा 

देखो जीवन सुन्दर है 

महसूस तो करो 

कुछ रोज़ 

घर में रहो 


बाहर द्वार पर 

चिड़ियाँ चहचाती हैं 

सुनो!!

 उसमें जीवन संगीत 


खिड़कियों से झांको 

 सड़क के उस पार 

आज धीमी पड़ी है 

गाड़ियों की 

रफ़्तार 

कितने सुन्दर पुष्प खिले हैं 

इस बार जब हो जाए सब ठीक ठाक 

कुछ पौधे रोप आना 

तुम भी वहाँ उद्यान में 


बार बार धोते हुए हाथ 

याद करो 

वो पुरानी कविता 

जो तुम बचपन में गाते थे 

आँख पे उंगली, नाक में उंगली 

मत कर, मत कर, मत कर !


अपनों की आँखों में झांको 

फ़ुरसत के पलों में 

यही पाओगे 

ये जो थोड़ा सा डर

दिखता है ना 

दरअसल तुम्हारे लिए छुपा 

असीम प्यार है 

काहे की भागदौड़ यार 

जब नश्वर ये संसार है !!!

प्रीति मिश्रा

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