Sunday, December 13, 2020

कविता महफ़िल

:महफ़िल 

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जाने क्यों होता है 

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ऐसा क्यों होता है 

जाने क्यों होता है 

लोग देखते तो हैं मुझको 

पर बातें आपकी करते हैं 


जानना कुछ और चाहते  हैं 

सवाल कुछ और ही करते हैं 

हमारी  मोहब्बत के किस्से 

उनकी महफ़िल  में चलते हैं 


कितने  अफ़साने और किस्से 

जो ना थे कभी अपने हिस्से 

इतनी शिद्दत से सुनाते  हैं 

उनके झूठ सच से भले लगते हैं 

चाँद आ जाता है ज़मीं पर 

तारे भी गुफ़्तगू सी करते  हैं 


समझती हूँ मैं मासूमियत उनकी 

हैं बिलकुल हमारे ही जैसे वो 

बात बस इतनी है 

हम कह लेते हैंआसानी से दिल की बातें 

वो जज़्बात दिल में

दफ़न रखते हैं 

अपनी आँखों को इजाज़त देते नहीं 

ख़्वाबों को सजाने की 

दिल में ताक़त नहीं शायद 

भूले नग़मों को गुनगुनाने की 


अपने अरमानों पे क़फ़न  रखते  हैं 

ना जाने कैसे भरम रखते हैं 


ऐसा क्यों होता है 

जाने क्यों होता है

प्रीति मिश्रा

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