थीम सृजन-दीप से दीप जला
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कुछ तुमसे सुनी जाए, कुछ तुम्हें सुनाया जाए
अफ़साना मोहब्बत का,फिर से दोहराया जाए
ढोएं कब तक यूँ तन्हा गठरी ग़म की
खोल दें दिल चलो कुछ बोझ घटाया जाए
तग़ाफ़ुल ज़ख्मों का ,नासूर बना देता है
दुआ - दवा करें मरहम भी लगाया जाए
अपना चेहरा भी अनजान हुआ जाता है
आईना इक मेरे वास्ते लगाया जाए
तुम चले जाओगे तो जान क्या रह पाएगी
खुद की साँसों के लिए तुमसे निभाया जाए
दाग दामन में औ' दिल में गिरहें काफी हैं
सुलझा लें गांठों को ,दागों को मिटाया जाए
हुआ एलान ये शहरे वफ़ा में कैसा
मिलने पे हुई पाबंदी,जश्न अकेले मनाया जाए
गर्द से हारे हैं सूरज चाँद और तारे
दीप से दीप जला अंधेरों को मिटाया जाए
प्रीति मिश्रा
(सम्पादन के लिए मुदिता गर्ग का आभार)
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