Sunday, December 13, 2020

कविता ज़िन्दगी


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 ज़िन्दगी इत्तिफ़ाक़ है 

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कभी उमड़ी घटा, कभी गीली माटी की सौंध 

कभी शोला कभी शबनम सी लगा करती है ज़िन्दगी...


उगते सूरज सी रौशन न सही मगर

अंधेरों से लड़ कर चमकने का दम रखती है ज़िन्दगी....


जिस्म तो खिलौना मिट्टी का मिटने को ही बना

ताउम्र न जाने किस सफ़र में रहा करती है ज़िन्दगी....


 आसमानों से ऊँचे ख्वाहिशों के सफ़र जिनके 

 उन को इक बवाल सी लगा करती है ज़िन्दगी....


आग है के पानी , कतरा या समंदर

 हर अंदाज़ में खूब रंगीन हुआ करती है ज़िन्दगी....


जिया तुझको शिद्दत से ,महसूस किया ,जाना

समझने को फिर भी कम पड़ा करती है ज़िन्दगी....


तजरबा उनका,कहता महज इत्तिफ़ाक़ है 

मुझको तो खेल तमाशे सी लगा करती है ज़िन्दगी....

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