Saturday, December 19, 2020

गुलाबो

 *अप्रेल फूल स्पेसल***(नादानी)


**गुलाबो**


गुलमोहर के पेड़ के नीचे गुलाबो रहती थी

मां नहीं बाप नहीं

उसको किसी का साथ नहीं

सारे ग़म अकेले सहती थी

पेड़ के साए के नीचे पलकर बढ़ती थी

भूख लगी तो नन्हीं बच्ची 

दुनिया का मुँह तकती थी

स्नेह प्यार कब जाना उसने

लोगों की नजरों में उपेक्षा ही पढ़ती थी......


बीता बीता बचपन आई जवानी 

लड़की हो गई रूप की रानी 

फूल दार टॉप के नीचे फटी जीन्स थी मोटी

फूलों जैसी कोमल लड़की की कमर से नीची चोटी

उसकी रूप की चर्चा हर जुबां पर रहती थी.......

 

रहते थे उसी शहर में बी आर पांडे 

यानि बालक राम.....

सीधे सादे बंदे थे वे 

अपने काम से काम

बी आर को लोगों ने कर दिया था बुद्धू राम 

इस तरह प्रचलित था जग में 

उनका नाम 

शहर में अपना ऑटो रिक्शा चलाते थे

काम करके सीधे अपने घर आते थे ....


गर्मी की तपती दोपहरी

बेहाल थे बुद्धू राम

पसीने से लथपत 

था न एक पल भी आराम

देख गुलमोहर की शीतल छाया

रोक के ऑटो अपना बुद्धू सुस्ताया

देखा!! गुलाबो पेड़ के नीचे झूला झूल रही थी

गर्मी की उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी


नज़रे मिलीं लड़की मुस्काई

बुद्धू के अरमानों ने ली अंगड़ाई

साहेब पानी पिएंगे या ठंडा नींबू सरबत

शोख मुस्कुराहट ने दे दी दस्तक 

आंखों आंखों में जाने क्या बात हो गई ........

...................................................

झाड़ू पोछा बर्तन लड़की पांच सौ में पट गई 


बी आर का घर था पूरा कबाड़ 

इस दुनिया में ना उनका कोई रिश्तेदार

टीवी फ्रिज ए सी सब पर धूल जमी थी 

मकड़जाल की झालर धरती को छूती थी.......


1 घंटे में गुलाबो ने घर को चमका दिया 

बी आर का घर लाइज़ोल से महका दिया 

उनके मन में आशा की किरण फूटती थी......


पूरी तरकारी के संग उसने जो खीर पकाई

बुद्धू को उसमें महबूबा नज़र आयी

इसी अदा पर वो उसको अपना दिल दे बैठे

लड़की अपनी हो जाए दिन रात सोचा करते

उधर मोहल्ले में जितने भी रहते थे लफंगे 

लड़की के आगे पीछे फिरते थे बने पतंगे

इसी बात से बुद्धू की जान निकलती थी.....


बहुत सोचा और तिकड़म समझ में आई 

क्यों न छोकरी से कर लें 

कुड़माई

शादी का प्रस्ताव गुलाबों को बिल्कुल ना भाया,

बोली साहब बड़ा फालतू विचार आपको आया

मेरा कोई पता नहीं ना मेरा कोई गांव 

मेरे सिर पर बस गुलमोहर की छांव

बी आर ने लड़की की एक नहीं मानी 

उनने तो घर बसाने की थी ठानी

बेमन गुलाबो ने शादी को हां कर दी 

नौकरानी रानी हुई ....

आगे शुरू कहानी हुई .....


दोनों की शादी पर सारे हंसते

बुद्धू की नादानी के हर ओर थे चर्चे


दिन रात एक कर वो लड़की को तमीज़ सिखाते 

पढ़ने लिखने काअतिरिक्त दवाब बनाते 

वो जंगल की रानी 

थी अब किसी गमले का पौधा 

जीवन इतना कठिन होगा उसने कब था सोचा?

शादी ऐसा जंजाल वो ना समझती थी ..... 


नए नए टीचर उसे पढ़ाने आने लगे 

ए बी सी और वन टू थ्री.. 

उसको क्या था करना.?

उसने अंग्रेजी टीचर को 

प्रेम का पाठ पढ़ाया 

बांका छैला युवक उसे पहली नजर में भाया

किस्मत थी खराब........

उस रोज बुद्धू जल्दी घर आ गए 

लड़की को टीचर के साथ रंगे हाथ पा गए

आव देखा न ताव 

लड़की की खूब धुनाई की

इतने पर भी गुलाबो खुश दिखाई दी

अपना समझा था तभी ना इतना मारा

बेशक उसका बदन दुखता था सारा

बी आर की दिल ही दिल में इज़्ज़त करती थी.....


पर बी आर का गुस्सा यूँ ही नहीं थमा

बोले बेशर्म!लड़की हो जा यहां से दफ़ा

सारा सामान लपेट गुलमोहर को भिजवा दिया

जितनी जल्दी की शादी उससे पहले तलाक़ दिया

दो चार दिनों का रोना धोना 

ग़मगीन दिखाई दी

उसके बाद गुलाबो पुराने ढर्रे पर लौट आयी

उसने अपनी आजादी का फ़िर से जश्न मनाया

साड़ी, बिंदी,चूड़ी बक्से में बंद कर दी

पहनी फटी जीन्स और बजाई 

फिर से साइकिल की घंटी

गुलमोहर के पेड़ के नीचे ..........प्रीति मिश्रा2nd april

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