Sunday, December 13, 2020

संगीत

 शब्द सृजन 

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(संगीत)


चाहा जो, ना पाया मैंने 

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चाहा जो,ना पाया मैंने 

फ़िर भी जश्न मनाया मैंने 

इस जग को कैसे बतलाती

कुछ कहती कुछ बात छिपाती 

शब्दों की भूल भुलैया में, क्यों कर खुद को उलझाती 

सारा दर्द भुलाया मैंने 

चाहा जो,ना पाया मैंने 


लोगों से मिलकर देखा है 

सारा जग मेरे जैसा है 

थोड़े सुख हैं ज्यादा ग़म हैं 

फ़िर भी ज़िन्दा हैं क्या कम हैं 

जीवन को जैसा ही समझा, उसी तरह अपनाया मैंने 

चाहा जो ,ना पाया मैंने 

फ़िर भी जश्न मनाया मैंने 

 

लगन से अपनी सब सुर साधे

रहे अधूरे आधे आधे 

छू जाए जो अंतर्मन को

ऐसा कुछ ना गाया मैंने 

जिस दिन सच्चे सुर लग जाएं, ये संगीत अमर हो जाये 

इसी आस पर सारा जीवन 

सोच सोच बिताया मैंने

प्रीति मिश्रा 16/11/2019

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