दिल दुखता है
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ग़म नहीं इसका के वो छोड़ गया है मुझको
उसने हर बात छुपाई,इस बात पे दिल दुखता है
छोड़ दिया मैंने जहाँ सारा मोहब्बत में जिसकी
वो मेरे सिवा ,सारे जहाँ की खबर रखता है
राह तकती हूँ मैं नादां बेसब्रों सी जिसकी
लोग कहते हैं कि अब उसका अलग रस्ता है
कहता था वो कि बस मैं हूँ नज़र में उसकी
झूठ ये उसका कांच की किरचों की तरह चुभता है
बदल लेना साथी फितरत ही रही थी उसकी
मुझको तो आज भी वो अपना सा ही लगता है
वो गया जबसे जिगर चाक हुआ है ऐसे
अब कहाँ बनने सवरने में दिल लगता है
आज ग़मगीन हूँ कल ठीक भी हो जाऊंगी
घाव गहरा हो गर ,भरने में तो वक़्त लगता है
प्रीति मिश्रा
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