थीम सृजन (दिल और दिमाग़ )
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दिल ने हरदम की मनमानी
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दिल ने हर दम की मनमानी
रही दिमाग़ से खींचातानी
अपना तो ऐसा ही किस्सा
लोग कहें इसको नादानी
रंग बिरंगे स्वप्न दिखा कर
दिल ने मुझको खूब फंसाया
भूल भुलैया में ला छोड़ा
रस्ता कोई नज़र ना आया
अब जीवन की सांझ हुई रे !!
दिल को जब समझाना चाहा
हँस कर बोला झूठ है ये सब
दिमाग ने बस उलझाना चाहा
मैं जानूँ वो सच बोले है
पर उसको पागल कहती हूँ
वो भी पगली कहता मुझको
सुन सुन के मैं हँस देती हूँ
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